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RCEP को लेकर भारत करेगा पुनर्विचार

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चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व बैंक के नवीनतम इंडिया डेवलपमेंट अपडेट: इंडियाज़ अपरच्युनिटी इन अ चेंजिंग ग्लोबल कॉन्टेक्स्ट में, भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल होने पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया गया।

  • एक भारतीय थिंक टैंक ने इस विचार को यह कहते हुए खारिज़ कर दिया कि यह त्रुटिपूर्ण मान्यताओं और पुराने अनुमानों पर आधारित है।

भारत के RCEP से हटने के बारे में विश्व बैंक का विश्लेषण क्या है?

  • आय लाभ: विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार यदि भारत समझौते में फिर से शामिल होता है तो उसकी आय में सालाना 60 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि होगी और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो 6 बिलियन अमरीकी डॉलर की कमी आएगी।
    • ये लाभ कच्चे माल, हल्के और उन्नत विनिर्माण एवं सेवाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में होंगे।
  • निर्यात वृद्धि: RCEP में शामिल होने से विपणन, बैंकिंग और कंप्यूटर सहित सेवाओं के निर्यात में संभावित 17% की वृद्धि का अनुमान है।
  • आर्थिक लाभ से इनकार: भारत के बिना RCEP (भारत के बिना) से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 186 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि होगी और सदस्य देशों के सकल घरेलू उत्पाद में स्थायी आधार पर सालाना 0.2% की वृद्धि होगी।
    • मुख्य लाभार्थी चीन (85 बिलियन अमरीकी डॉलर), जापान (48 बिलियन अमरीकी डॉलर) और दक्षिण कोरिया (23 बिलियन अमरीकी डॉलर) होंगे।
    • भारत RCEP से होने वाले आर्थिक लाभ का एक बड़ा हिस्सा खो देगा।
  • व्यापार विपथन/स्थानांतरण जोखिम: RCEP से बाहर रहने से भारत को व्यापार स्थानांतरण का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि व्यापार ब्लॉक के सदस्य आपूर्ति शृंखलाओं को स्थानांतरित कर सकते हैं और आपस में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ा सकते हैं, जिससे संभावित रूप से RCEP राष्ट्रों में भारत द्वारा निर्यात को नुकसान पहुँच सकता है।
  • संभावित नए सदस्य: बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देशों ने हाल ही में RCEP में शामिल होने में रुचि दिखाई है।
    • वास्तव में भारत RCEP के प्रभावों से पूरी तरह मुक्त नहीं सकता, क्योंकि श्रीलंका जैसे देशों के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) है।

भारत की निर्यात रणनीति और व्यापार नीति के संदर्भ में विश्व बैंक का मूल्यांकन क्या है?

  • निर्यात विविधीकरण की आवश्यकता: समय के साथ सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का वस्तु व्यापार कम हुआ है तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में इसकी भागीदारी भी कम हुई है।
    • वस्त्र, परिधान, चमड़ा और जूते जैसे अधिक श्रम-प्रधान क्षेत्रों में विस्तार करके विविधीकरण हासिल किया जा सकता है।
      • परिधान, चमड़ा, वस्त्र और जूते (Apparel, Leather, Textiles, and Footwear- ALTF) के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2002 के 0.9% से बढ़कर वर्ष 2013 में 4.5% के शिखर पर पहुँच गई, लेकिन वर्ष 2022 में यह हिस्सेदारी घटकर 3.5% रह गई।

 

  • GVC की भागीदारी में वृद्धि: GVC में एकीकरण करके भारत:
    • उच्चतर मूल्यवर्धित वस्तुओं के उत्पादन में भाग लेकर अपने उत्पादन की विविधता का विस्तार करेगा।
    • उन्नत प्रौद्योगिकियों और वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त करके अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाएगा।
    • भारत में उत्पादन करने की इच्छुक बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा FDI प्रवाह में वृद्धि करेगा।
  • उदारीकरण और संरक्षणवाद में संतुलन: भारत की व्यापार नीति में उदारीकरण और संरक्षणवाद दोनों ही उपाय शामिल हैं। उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति 2022 और डिजिटल सुधार जैसी पहलों का उद्देश्य लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना तथा व्यापार सुगमता में सुधार करना है।
    • इसके विपरीत संरक्षणवादी उपायों में पुनः वृद्धि हुई है, जैसे टैरिफ में वृद्धि और गैर-टैरिफ बाधाएँ, जो भारत के खुले व्यापार को प्रतिबंधित करती हैं।
  • व्यापार समझौते: हाल ही में UAE और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) अधिमान्य व्यापार समझौतों की ओर बदलाव का संकेत देते हैं। हालाँकि भारत संभावित लाभों के बावजूद क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) जैसे बड़े व्यापार ब्लॉकों में शामिल होने से बचता रहा है।
  • भारत की टैरिफ और औद्योगिक नीतियों का पुनर्मूल्यांकन: भारत मोबाइल फोन का शुद्ध निर्यातक बन गया है क्योंकि राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति 2019, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना 2020 जैसी नीतियों के कारण आयात में गिरावट के बीच निर्यात में वृद्धि हुई है।
    • हालाँकि प्रमुख मध्यवर्ती सुझावों पर आयात शुल्क में हाल ही में की गई वृद्धि, जिसने वर्ष 2018 और 2021 के बीच औसत शुल्क को 4% से 18% तक ला दिया है, इस क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को खतरे में डालती है। 
  • भारत के लिये अवसर: भू-राजनीतिक जोखिमों की बढ़ती धारणा ने कंपनियों को अपनी सोर्सिंग रणनीतियों में विविधता लाने हेतु प्रेरित किया है।
    • यह भारत जैसे देशों के लिये एक अवसर प्रस्तुत करता है, जहाँ प्रचुर कार्यबल और बढ़ता हुआ विनिर्माण आधार है।

 

भारत RCEP में शामिल होने पर पुनर्विचार क्यों अनिश्चित रहा है?

  • विश्व बैंक के सुझाव में त्रुटिपूर्ण धारणाएँ: विश्व बैंक के अध्ययन में वर्ष 2030 तक 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आय वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, लेकिन इसमें यह नहीं माना गया है कि इनमें से अधिकांश लाभ आयात में वृद्धि से आएगा, जिससे व्यापार असंतुलन उत्पन्न होगा।
  • RCEP सदस्यों के बीच व्यापार घाटा: RCEP के चालू होने के बाद से चीन के साथ आसियान का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 81.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 135.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है।
    • इसी तरह चीन के साथ जापान का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 22.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 41.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था।
    • दक्षिण कोरिया को वर्ष 2024 में पहली बार चीन के साथ व्यापार घाटे का भी सामना करना पड़ सकता है।
  • चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भरता: RCEP सदस्यों का बढ़ता व्यापार घाटा चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर बढ़ती निर्भरता को उजागर करता है।
    • यह निर्भरता महत्त्वपूर्ण जोखिम प्रस्तुत करती है, विशेष रूप से वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के संदर्भ में, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान अनुभव किया गया।
  • अनुचित प्रतिस्पर्द्धा: RCEP में शामिल न होकर भारत ने अन्य व्यापार समझौतों की संभावनाओं को तलाशना जारी रखा, जो चीन के पक्ष में अनुचित रूप से न हों या उसके आर्थिक हितों के लिये खतरा न हों।
    • चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2023-24 में बढ़कर 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा।
  • वैकल्पिक व्यापार समझौते: भारत के पास पहले से ही न्यूज़ीलैंड और चीन को छोड़कर 15 RCEP सदस्यों में से 13 के साथ कई कार्यात्मक मुक्त व्यापार समझौते (FTA) हैं।
  • “चाइना+1” रणनीति: RCEP में शामिल न होने का भारत का निर्णय, चीन पर निर्भरता से जुड़े जोखिमों को कम करने के लिये “चाइना+1” रणनीति अपनाने की वैश्विक प्रवृत्ति के अनुरूप है।

क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) क्या है?

  • RCEP 10 आसियान देशों और उनके पाँच मुक्त व्यापार समझौते (FTA) भागीदारों: चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड के बीच एक व्यापार समझौता है।
  • RCEP को नवंबर 2011 में 19वें आसियान शिखर सम्मेलन के दौरान प्रस्तुत किया गया था और नवंबर 2012 में इस पर चर्चा  शुरू हुई थी।
    • RCEP 1 जनवरी, 2022 को लागू हुआ।
  • संयुक्त GDP (26 ट्रिलियन डॉलर), जनसंख्या (2.27 बिलियन) और हस्ताक्षरकर्ता पक्षों के कुल निर्यात मूल्य (5.2 ट्रिलियन डॉलर) के अनुसार यह विश्व का सबसे बड़ा FTA है।

 

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