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List of Folk dances of India: जानिए भारत के प्रसिद्ध लोक नृत्य के बारे में

भारत विविधता से परिपूर्ण अनेकता में एकता समेटे हुए एक महान देश है. भारत की अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के कारण विश्व में एक अलग हीं पहचान है. भारतीय लोकनृत्य, लोकगीत, शास्त्रीय संगीत, नृत्य, परंपरायें, त्यौहार, परंपरागत पहनावे, व्यंजन, इत्यादि हमारी संस्कृति की विशिष्ट पहचान हैं. नृत्यों की बात करें तो भारत में, नृत्यों को मुख्य रूप से दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है शास्त्रीय नृत्य और लोकनृत्य के बीच अंतर – हालाँकि इन दोनों हीं नृत्य रूपों की उत्पत्ति भारतीय स्थानीय परंपरानुसार भारत के विभिन्न हिस्सों में हुई है. लेकिन इन दोनों नृत्यों के रूपों में काफी अंतर है. शास्त्रीय नृत्य और लोकनृत्य के बीच में प्रमुख अंतर यह है कि शास्त्रीय नृत्य का सम्बन्ध नाट्य शस्त्र (भरत मुनि द्वारा रचित) से है. नाट्य शस्त्र में प्रत्येक शास्त्रीय नृत्य से सम्बंधित विशेषताओं का वर्णन किया गया है. लोकनृत्य सम्बंधित राज्य या भौगोलिक क्षेत्र की स्थानीय परम्पराओं के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आये. भारत के लोक नृत्य भारत के लोक नृत्य अपनी उत्पत्ति के क्षेत्र में बसे समुदायों की संस्कृति और परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं. लोक नृत्य आमतौर पर संबंधित समुदाय के उत्सव- बच्चे के जन्म, त्योहारों, शादियों, फसल रोपनी या कटाई, ऋतुओं के बदलने आदि के अवसर पर किए जाते हैं. जैसे वर्षा ऋतु में कजरी, होली के त्यौहार पर फाग या फगुआ तो बच्चे के जन्म पर सोहर नृत्य. लोक नृत्य आम जनता द्वारा किये जाते हैं. लोक नृत्य के लिए उन्हें किसी औपचारिक प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती. ये नृत्य सहज और भावना से उत्पन्न होते हैं. लोकनृत्यों में निहित यह सादगी हीं इस कला को एक अंतर्निहित सुंदरता प्रदान करती है. हालाँकि ये नृत्य एक निश्चित संप्रदाय या किसी विशेष इलाके तक हीं सीमित रह जाते हैं. लोक नृत्य को पीढ़ी दर पीढ़ी अपने विशेष संप्रदाय के बीच हीं आगे बढ़ाया जाता है. भारत के हर राज्य में विभिन्न प्रकार के लोक नृत्य प्रचलित हैं. भारत के लोक नृत्यों की सूची:  राज्य लोक नृत्य आंध्रप्रदेश भामकल्पम, कोलट्टम, विलासिनी नाट्यम, वीरनाट्यम, दप्पू, टप्पेता गुल्लू, लम्बाडी, धीम्सा आदि. अरुणाचल प्रदेश वान्चो, मुखौटा नृत्य, बुइया, चलो, पासी कोंगकी, पोनुंग, पोपिरो  आदि. असम बिहू, नागा नृत्य, बिछुआ, नटपूजा, महारस, कलिगोपाल, बगुरुम्बा, खेल गोपाल आदि. बिहार जट-जटिन, सामा-चकेवा, पंवरिया आदि. छत्तीसगढ़ गौर माड़िया, कापालिक, पंथी, राउत नाचा, पंडवानी, वेदमती आदि. गुजरात गरबा, डांडिया रास, भवाई, टिप्पनी जुरियुन आदि. गोवा तरंगमेल, कोली, देखनी, फुगड़ी, शिग्मो, घोडे, मोदनी, समयी नृत्य, जागर, रणमाले आदि. हरियाणा झूमर, फाग, दाफ, धमाल, लूर, गुग्गा, खोर आदि. हिमाचल प्रदेश झोरा, धामन, झाली, छरही, छपेली, महासू आदि. जम्मू कश्मीर कूद दंडी नाच, रउफ, हिकत, मंदजस आदि. झारखण्ड झूमर, सोहराय, सरहुल, कर्मा, अलकप, अग्नि, जनानी झुमर, मर्दाना झुमर, पाइका, फगुआ आदि. कर्नाटक यक्षगान, करगा, हुत्तरी, सुग्गी, कुनिथा आदि. केरल ओट्टम थुल्लल, कैकोट्टिकली आदि. महाराष्ट्र लावणी, कोली, नकाटा, लेज़िम, गफ़ा, दहिकला दशावतार  आदि. मध्य प्रदेश जवारा, मटकी, आड़ा, खड़ा नच, फूलपति, ग्रिडा नृत्य, सेलालार्की, सेलभदोनी आदि. मणिपुर डोल चोलम, थांग ता, लाई हराओबा, पुंग चोलोम आदि. मेघालय का शाद सुक मिनसिएम, नोंगक्रेम, लाहौ आदि. मिज़ोरम चेराव नृत्य, खुल्लम, छैलम, सावलाकिन, चावंगलाइज़न, ज़ंगटालम आदि. नागालैंड रंगमा, ज़ेलिआंग, नसुइरोलियन, गेथिंगलिम ओड़िशा सावरी, घूमर, पेनका, मुनारी आदि. पंजाब भंगड़ा, गिद्दा, डफ, धमन  आदि. राजस्थान घूमर, कलबेलिया, गणगौर, चकरी, झूलन लीला, झूमा, सुइसिनी, घपल आदि. सिक्किम चू फाट, सिकमारी, सिंघी चाम या स्नो लायन, याक चाम, डेन्जोंग गेन्हा, ताशी यांगकू आदि. तमिलनाडु कुमि, कवडी, कोलट्टम आदि. त्रिपुरा होजागीरी आदि. उत्तर प्रदेश नौटंकी, रासलीला, कजरी, झोरा, छपेली आदि. उत्तराखंड गढ़वाली, कुमायुनी, कजरी, झोरा, रासलीला आदि

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List of Amendment in Indian Constitution, भारतीय संविधान में हुए प्रमुख संशोधन की सूची

List of Amendments in the Indian Constitution- भारत में संविधान 26 जनवरी 1950 में लागु हुआ था जिसके बाद से अभी तक कई बार इसमें संशोधन किए जा चुके है। अक्टूबर 2021 तक भारत के संविधान में 105 बार अमेंडमेंट (संशोधन) किए जा चुके है। हमारे देश के संविधान में किसी भी तरह के संशोधन के लिए लोकसभा और राज्यसभा में दो तिहाई सदस्य की सहमति के बाद ही संशोधन किया जा सकता है। भारत का संविधान दुनिया का सबसे बड़ा लिखित संविधान है और इसके साथ ही भारत का संविधान दुनिया का सबसे ज्यादा बार संशोधन किया जाने वाला संविधान भी है। हमारे देश के संविधान में राज्य सरकार केंद्र सरकार और लोकल बॉडीज के काम करने के तरीके साथ ही तीनों के बीच ताकत का बंटवारा विस्तार से किया गया है। भारतीय संविधान में संशोधन से जुड़े टॉपिक अक्सर कई प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। संविधान संशोधन सूची (List of Amendment in Indian Constitution) प्रथम संशोधन, 1951 : यह संविधान का प्रथम संशोधन था। इसमें नवीन अनुच्छेद अर्थात् 31 क और 31ख को संविधान में अंतः स्थापित किया गया है। इसके द्वारा संविधान में एक नवीन अर्थात् नौवीं अनुसूची जोड़ी गई। दूसरा संशोधन अधिनियम, 1952 : संविधान का दूसरा संशोधन, 1952: इस संशोधन के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 81 में संशोधन किया गया। यह संशोधन विधेयक संसद में राज्यों के प्रतिनिधित्व में परिवर्तन से संबंधित था। अतः इस विधेयक के अनुच्छेद 368 की अपेक्षाओं के अनुरूप भाग क और भाग ख में निर्दिष्ट राज्यों में से आधे राज्यों के विधान मंडल का समर्थन प्राप्त किया गया है। तीसरा संशोधन अधिनियम, 1954 : इस संशोधन द्वारा संविधान को सातवीं अनुसूची की सूची 3 (अर्थात समवर्ती सूची की प्रविष्ट 33 में संशोधन किया गया। चूंकि यह संशोधन अधिनियम केंद्र राज्य विधायी संबंधों को शासित करने वाली सातवीं अनुसूची की एक सूची में संशोधन के लिए था, अतः इस अधिनियम के संबंध में भी अनुच्छेद 368 की अपेक्षाओं के अनुरूप भाग क और भाग ख में निर्दिष्ट राज्यों में से आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों का समर्थन प्राप्त किया गया। चौथा संशोधन अधिनियम, 1955 : इस संशोधन अधिनियम के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 31 ए, 31 क और 305 तथा संविधान की नौवीं अनुसूची में संशोधन किया गया। 7वां संविधान संशोधन, 1956 : यह संविधान संशोधन राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिशों को लागू करने और परिणामिक परिवर्तनों को शामिल करने के उद्देश्य से किया गया था। मोटे तौर पर तत्कालीन राज्यों और राज्य क्षेत्रों का राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के रूप में वर्गीकरण किया गया। इस संशोधन में लोकसभा का गठन, प्रत्येक जन गणना के पश्चात पुनः समायोजन, नए उच्च न्यायालयों की स्थापना और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों आदि के बारे में उपबंधो की  व्यवस्था की गई है। भारतीय संविधान के निर्माण के बारे में अधिक जानने के लिए- Download the Free- Book here. 9वां संशोधन अधिनियम, 1960 : भारत और पाकिस्तान के मध्य हुए समझौते के क्रियान्वयन हेतु असोम, पंजाब, प. बंगाल और त्रिपुरा के संघ राज्य क्षेत्र से पाकिस्तान को कुछ राज्य क्षेत्र प्रदान करने के लिए इस अधिनियम द्वारा प्रथम अनुसूची में संशोधन किया गया। यह संशोधन इसलिए आवश्यक हुआ कि बेरुवाडी क्षेत्र में हस्तांतरण के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि किसी राज्य क्षेत्र में हस्तांतरण के मामले में उच्चतम न्यायालय ने यह निर्णय दिया गया था कि किसी राज्य क्षेत्र को किसी दूसरे देश में देने के करार अनुच्छेद 3 द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा क्रियान्वित नहीं किया जा सकता, अपितु इसे संविधान में संशोधन करके ही क्रियान्वित किया जा सकता है। 10वां संविधान संशोधन, 1960: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत भूतपूर्व पुर्तगाली अंतः क्षत्रों – दादर एवं नगर हवेली को भारत में शामिल कर उन्हें केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा दे दिया गया। 11वां संविधान संशोधन, 1961: इस संविधान संशोधन के अंतर्गत उपराष्ट्रपति के निर्वाचन की विधि मान्यता को प्रश्नगत करने के अधिकार को संकुचित बना दिया गया। 12वां संविधान संशोधन,1962: इसके अंतर्गत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन कर गोवा, दमन और दीव को भारत में केंद्र शासित प्रदेश के रूप में शामिल कर लिया गया। 13वां संविधान संशोधन, 1962: इस संविधान संशोधन के द्वारा एक नवीन अधिनियम अर्थात् 371 क संविधान में स्थापित किया गया। इसके द्वारा नागालैंड के संबंध में विशेष प्रावधान अपना कर उसे एक राज्य का दर्जा दे दिया गया । 14 वां संविधान संशोधन 1963: इस संविधान संशोधन के द्वारा केंद्र शासित प्रदेश के रूप में पुदुचेरी को भारत में शामिल किया गया तथा संघ राज्य क्षेत्रों का लोकसभा में प्रतिनिधित्व 20 से बढ़ाकर 25 कर दिया गया।

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मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं

मौलिक अधिकार कौन-कौन से हैं   मौलिक अधिकार :- संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12-35 तक) में मौलिक अधिकारों का विवरण है। ◆ मौलिक अधिकार: भारत का संविधान छह मौलिक अधिकार प्रदान करता है: ● समता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18) ● स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 19-22) ●शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23-24) ●धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28) ●संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार (अनुच्छेद 29-30) ● संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)     ★ मौलिक अधिकारों की सूची | List of Fundamental Rights ◆ समानता का अधिकार | Right To Equality सभी व्यक्तियों के साथ अवसर, रोजगार, पदोन्नति आदि के मामलों में समान व्यवहार को संदर्भित करता है, चाहे उनकी जाति, जाति, धर्म, लिंग या जन्म स्थान कुछ भी हो। भारतीय संविधान में अनुच्छेद 14 से 18 का संबंध समानता का अधिकार से है। ● अनुच्छेद 14 : राज्य को किसी भी व्यक्ति (भारतीयों के साथ-साथ विदेशियों) को कानून के समक्ष समानता और भारत के क्षेत्र में कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं करना चाहिए। ● अनुच्छेद 15 : राज्य किसी नागरिक के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकता। ● अनुच्छेद 16 : राज्य के अधीन किसी पद पर नियोजन या नियुक्ति से संबंधित मामलों में अवसर की समानता। ● अनुच्छेद 17 : अस्पृश्यता का उन्मूलन और किसी भी रूप में इसके अभ्यास का निषेध। इस अनुच्छेद के अनुसार अस्पृश्यता दंडनीय अपराध है। ● अनुच्छेद 18 : राज्य के अधीन लाभ या विश्वास का पद धारण करने वाला व्यक्ति राष्ट्रपति की पूर्व सहमति के बिना किसी भी राज्य से उपाधि, उपहार, परिलब्धियां या किसी भी प्रकार का पद स्वीकार नहीं कर सकता।     ◆ स्वतंत्रता का अधिकार | Right To Freedom स्वतंत्रता का अधिकार एक सकारात्मक अधिकार है (अर्थात वह अधिकार जो विशेषाधिकार प्रदान करता है)। स्वतंत्रता के आदर्श को बढ़ावा देने के लिए, संविधान निर्माताओं ने भारतीय नागरिकों को ये अधिकार प्रदान किए। हमारे संविधान का अनुच्छेद 19, 20, 21 और 22 स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत आता है। ● अनुच्छेद 19: इस अनुच्छेद के तहत, भारत के नागरिकों को स्वतंत्रता से संबंधित 6 अधिकारों की गारंटी दी गई है। वो हैं, 19 (i) वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता। 19 (ii) बिना किसी हथियार के शांतिपूर्वक इकट्ठा होने की स्वतंत्रता। 19 (iii) संघ या संघ या सहकारी समितियाँ बनाने की स्वतंत्रता। 19 (iv) भारत के पूरे क्षेत्र में स्वतंत्र रूप से घूमने की स्वतंत्रता। 19 (v) भारतीय क्षेत्र के किसी भी हिस्से में रहने और बसने की स्वतंत्रता। 19(vi) पसंद के किसी भी पेशे में जाने की स्वतंत्रता।   ● अनुच्छेद 20: यह अनुच्छेद एक दोषी व्यक्ति को कार्योत्तर कानून, दोहरे खतरे और आत्म-अपराध के खिलाफ आवश्यक सुरक्षा प्रदान करता है। यह भारतीय नागरिकों के साथ-साथ विदेशियों पर भी लागू होता है। ● अनुच्छेद 21: इस अनुच्छेद के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा। मेनका गांधी मामले के फैसले के बाद , सुप्रीम कोर्ट ने इस अनुच्छेद के तहत कई अधिकारों की घोषणा की। ● अनुच्छेद 21 (A): यह शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है। इस अनुच्छेद के अनुसार, राज्य को छह से चौदह वर्ष की आयु के सभी बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करनी चाहिए। ● अनुच्छेद 22: यह अनुच्छेद उन लोगों को सुरक्षा प्रदान करता है जिन्हें या तो गिरफ्तार किया गया है या हिरासत में लिया गया है।     ◆ शोषण के खिलाफ अधिकार | Right Against Exploitation समाज के कमजोर वर्गों के शोषण को रोकने के लिए संविधान निर्माताओं ने शोषण के खिलाफ अधिकार को मूल अधिकार (Fundamental Rights in Hindi) के रूप में शामिल किया। ● अनुच्छेद 23: इस अनुच्छेद के तहत, मानव तस्करी और किसी भी प्रकार के बलात् श्रम पर सख्त प्रतिबंध है और अपराधियों को कानून के अनुसार सजा दी जाती है। यह नागरिकों और गैर-नागरिकों दोनों पर लागू होता है। ● अनुच्छेद 24: 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को किसी कारखाने, खदान या किसी भी खतरनाक गतिविधियों में रोजगार इस अनुच्छेद के तहत निषिद्ध है। हालाँकि, यह अनुच्छेद उन्हें हानिरहित नौकरियों में काम करने से नहीं रोकता है।     ◆ धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार | Right To Freedom Of Religion भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 और 28 के तहत नागरिकों और गैर-नागरिकों को धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया गया है। संविधान में ‘धर्म’ शब्द को निर्माताओं द्वारा परिभाषित नहीं किया गया है और इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने इसके लिए एक समझ परिभाषा दी है। ● अनुच्छेद 25: यह अनुच्छेद अंतरात्मा की स्वतंत्रता और सभी व्यक्तियों को समान रूप से धर्म को स्वतंत्र रूप से मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने का अधिकार प्रदान करता है। ● अनुच्छेद 26: इस अनुच्छेद के तहत, प्रत्येक धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग को निम्नलिखित अधिकार प्राप्त हैं : 26 (A) धार्मिक और धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए संस्थानों की स्थापना और रखरखाव करना। 26 (B) धर्म से संबंधित मामलों में अपने मामलों का प्रबंधन करने के लिए। 26 (C) चल और अचल संपत्ति का स्वामित्व और अधिग्रहण करने के लिए। 26 (D) कानून के अनुसार उन संपत्तियों का प्रशासन करने के लिए। ● अनुच्छेद 27: इस अनुच्छेद में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को किसी विशेष धर्म या धार्मिक संप्रदाय के प्रचार या रखरखाव के लिए किसी भी प्रकार के करों का भुगतान करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। ● अनुच्छेद 28: इस अनुच्छेद के तहत, कोई भी शैक्षणिक संस्थान जो पूरी तरह से राज्य के धन से संचालित होता है, उसे कोई धार्मिक निर्देश नहीं देना चाहिए।        ◆ सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार | Cultural And Educational Rights सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (Cultural And Educational Rights in Hindi) अनुच्छेद 29 और 30 (Article 29 & 30) के तहत सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा करते हैं। ● अनुच्छेद 29: यह अनुच्छेद सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को उनकी विशिष्ट भाषा, लिपि और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार प्रदान करता है। यह इन अल्पसंख्यकों को धर्म, नस्ल, जाति या भाषा के आधार पर शैक्षणिक

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भारत सरकार की महत्वपूर्ण योजनाएं 2015-2023

भारत सरकार की महत्वपूर्ण योजनाएं  1. नीति आयोग – 1 जनवरी 2015 2. ह्रदय योजना -21 जनवरी 2015 3. बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं -22 जनवरी 2015 4. सुकन्या समृद्धि योजना -22 जनवरी 2015 5. मुद्रा बैंक योजना -8 अप्रैल 2015 6. प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना -9 मई 2015 7. अटल पेंशन योजना -9 मई 2015 8. प्रधानमंत्री जीवन ज्योति योजना -9 मई 2015 9. उस्ताद योजना (USTAD) -14 मई 2015 10. प्रधानमंत्री आवास योजना -25 जून 2015 11. अमरुत योजना(AMRUT) -25 जून 2015 12. स्मार्ट सिटी योजना -25 जून 2015 13. डिजिटल इंडिया मिशन -1 जुलाई 2015 14. स्किल इंडिया मिशन -15 जुलाई 2015 15. दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना -25 जुलाई 2015 16. नई मंजिल -8 अगस्त 2015 17. सहज योजना -30 अगस्त 2015 18. स्वावलंबन स्वास्थ्य योजना – 21 सितंबर 2015 19. मेक इन इंडिया -25 सितंबर 2015 20. इमप्रिण्ट इंडिया योजना – 5 नवंबर 2015 21. स्वर्ण मौद्रीकरण योजना -5 नवंबर 2015 22. उदय योजना (UDAY) -5 नवंबर 2015 23. वन रैंक वन पेंशन योजना -7 नवंबर 2015 24. ज्ञान योजना -30 नवंबर 2015 25. किलकारी योजना -25 दिसंबर 2015 26. नगामि गंगे, अभियान का पहला चरण आरंभ -5जनवरी 2016 27. स्टार्ट अप इंडिया -16 जनवरी 2016 28. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना -18 फरवरी 2016 29. सेतु भारतम परियोजना -4 मार्च 2016 30. स्टैंड अप इंडिया योजना – 5 अप्रैल 2016 31. ग्रामोदय से भारत उदय अभियान -14अप्रैल 2016 32. प्रधानमंत्री अज्वला योजना – 1 मई 2016 33. प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना – 31 मई 2016 34. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन योजना -1 जून 2016 35. नगामी गंगे कार्यक्रम -7 जुलाई 2016 36. गैस फॉर इंडिया -6 सितंबर 2016 37. उड़ान योजना -21 अक्टूबर 2016 38. सौर सुजला योजना -1 नवंबर 2016 39. प्रधानमंत्री युवा योजना -9 नवंबर 2016 40. भीम एप – 30 दिसंबर 2016 41. भारतनेट परियोजना फेज – 2 -19 जुलाई 2017 42. प्रधानमंत्री वय वंदना योजना -21 जुलाई 2017 43. आजीविका ग्रामीण एक्सप्रेस योजना -21 अगस्त 2017 44. प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना- सौभाग्य -25 सितंबर 2017 45. साथी अभियान -24 अक्टूबर 2017 46. दीनदयाल स्पर्श योजना- 3 नवंबर 2017     भारतीय पचवर्षीय योजनाओं में प्राथमिकता के प्रमुख क्षेत्र 1 पंचवर्षीय योजना (1951-56) – कृषि की प्राथमिकता। 2 पंचवर्षीय योजना (1956-61) – उद्योग क्षेत्र की प्राथमिकता। 3 पंचवर्षीय योजना (1961-66) – कृषि और उद्योग। 4 पंचवर्षीय योजना (1969-74) – न्याय के साथ गरीबी के विकास को हटाया। 5वीं पंचवर्षीय योजना (1974-79) – गरीबी और आत्म निर्भरता को हटाया। 6 पंचवर्षीय योजना (1980-85) – पाँचवीं योजना के रूप में ही जोर दिया। 7वीं पंचवर्षीय योजना (1985-90) – फूड प्रोडक्शन, रोजगार, उत्पादकता 8वीं पंचवर्षीय योजना (1992-97) – रोजगार सृजन, जनसंख्या का नियंत्रण। 9वीं पंचवर्षीय योजना (1997-02) -7 प्रतिशत की विकास दर. 10वीं पंचवर्षीय योजना (2002-07) – स्व रोजगार और संसाधनों का विकास।

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भारत की राष्ट्रीय पार्टियां 2023, राजनितिक दलों की पूरी जानकारी

भारत की राष्ट्रीय पार्टियां 2023   राष्ट्रीय पार्टी किसे कहते है? एक मान्यता प्राप्त पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा तभी प्रदान किया जा सकता है यदि वह निम्नलिखित तीन में से किसी एक शर्त को पूरा करती है:  उस राजनीतिक दल को तीन अलग-अलग राज्‍यों की लोकसभा (11 सीटों) की 2 प्रतिशत सीटें प्राप्‍त हुई हों। लोकसभा या विधानसभा के किसी आम चुनाव में उस राजनीतिक दल को 4 राज्‍यों के कुल मतों में से 6 प्रतिशत मत प्राप्‍त हुए हों और उसने लोकसभा की 4 सीटें जीती हों। किसी राजनीतिक दल को 4 या अधिक राज्‍यों में राज्‍य स्‍तरीय दल के रूप में मान्‍यता प्राप्‍त हो।         निर्वाचन आयोग :- देश की हर पार्टी को निर्वाचन आयोग में अपना पंजीकरण कराना पड़ता है। • इन्हें चुनाव चिह्न दिया जाता है। • आयोग पार्टी को अलग चुनाव चिन्ह देता है जिसे मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल कहा जाता है    राजनीतिक दल :- लोकतंत्र में नागरिकों का कोई भी समूह राजनीतिक दल बना सकता है। • भारत में चुनाव आयोग में 750 पंजीकृत दल है। • किसी देश में तीन तरह की पार्टी हो सकती है   भारत में 2020 तक भारत में राजनीतिक दलों को तीन समूहों :- राष्ट्रीय दल ( संख्या 8) ,क्षेत्रीय दल (संख्या 53) और गैर मान्यता प्राप्त दलों (संख्या 2044) के रूप में बाँटा गया है|. सभी राजनीतिक दल जो स्थानीय स्तर, राज्य स्तर या राष्ट्रीय स्तरपर चुनाव लड़ने के इच्छुक होते हैं उनका भारतीय निर्वाचन आयोग (EIC) में पंजीकृत होनाआवश्यक है.   भारत के सभी राष्ट्रीय पार्टियों की सूची नीचे दी गई है: (List of All the Political Parties in India)   क्र.सं. नाम गठन 1 भारतीय जनता पार्टी (BJP) 1980 2 बहुजन समाज पार्टी (BSP) 1984 3 मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) 1964 4 भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) 1925 5 भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (INC) 1885 6 राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) 1999 7 तृणमूल कांग्रेस पार्टी (TMC) 1998 8 नेशनल पीपुल्स पार्टी 2013 9. आम आदमी पार्टी (AAP) 2012     1. भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस :- स्थापना: 1885 चुनाव चिन्ह: पंजा    इसे आमतौर पर कांग्रेस पार्टी कहा जाता है और यह दुनिया के सबसे पुराने दलों में से यह कह 1885 में गठित इस दल के कई बार विभाजन हुए हैं। आजादी के बाद राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अनेक दशकों तक इस ने प्रमुख भूमिका निभाई हैं। जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में इस दल ने भारत की एक आधुनिक धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने का प्रयास किया। 1952 से 1971 तक लगातार और फिर 1980 से ही1989 तक और फिर उसके बाद 2004 से 2014 तक इसने देश पर शासन किया।     2. भारतीय जनता पार्टी :- स्थापना: 1980 चुनाव चिन्ह: कमल के फूल   पुराने जनसंघ को, जिसे श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में गठित किया था। पुनर्जीवित करके 1980 में भारतीय जनता पार्टी बनी। भारत की प्राचीन संस्कृति और मूल्य दीनदयाल उपाध्याय के विचार समग्र मानवतावाद एवं अंत्योदय से प्रेरणा लेकर मजबूत और आधुनिक भारत बनाने का लक्ष्य ; भारतीय राष्ट्रवाद और राजनीति की इसकी अवधारणा में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद या हिंदुत्व एक प्रमुख तत्व है। पार्टी जम्मू कश्मीर को क्षेत्रीय और राजनीतिक स्तर पर विशेष दर्जा देने के खिलाफ है। यह देश में रहने वाले सभी धर्म के लोगों के लिए समान नागरिक संहिता बनाने और धर्मांतरण पर रोक लगाने के पक्ष में हैं। 1990 के दशक में इसके समर्थन में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के नेता की हैसियत से यह पार्टी 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सत्ता में आई। 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में 282 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरा। 2019 में दुबारा नरेंद्र मोदी जीते।     3. भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी :- स्थापना: 1925 चुनाव चिन्ह: बाली-हंसिया 1925 में गठित मार्क्सवाद-लेनिनवाद, धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र में आस्था अलगाववादी और साप्रदायिक ताकतों की विरोधी। यह पार्टी संसदीय लोकतंत्र को मजदूर वर्ग, किसानों, और गरीबों के हितों के को आगे बढ़ाने का उपकरण मानती है। केरल, पश्चिम बंगाल, पंजाब, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु में ये पार्टी है। लेकिन इसके समर्थन धीरे-धीरे कमी ही रही है। 2014 के चुनाव में से 1 फ़ीसदी से कम वोट मिला है और 1 सीट हासिल हुई। इस पार्टी ने वाम मोर्चा बनाने के लिए सभी वामपंथी दलों को साथ लाने का पक्षधर है।     4. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी :- स्थापना:1964 चुनाव चिन्ह : हंसिया-हथौड़ा 1964 में स्थापित मार्क्सवाद-लेनिनवाद में आस्था समाजवाद, धर्मनिरपेक्ष और लोकतंत्र के समर्थक तथा साम्राज्यवाद और संप्रदायिकता की विरोधी। यह पार्टी भारत में सामाजिक आर्थिक न्याय के लक्ष्य साधने में लोकतांत्रिक चुनाव को सहायक और उपयोगी मानती है। यह पार्टी पश्चिम बंगाल, केरल, त्रिपुरा में मजबूत है। गरीबों कारखाना मजदूरों, खेतिहर मजदूरों और बुद्धिजीवियों के लिए अच्छी पकड़ है। पश्चिम बंगाल में लगातार 34 वर्षों से शासन कर रही। 2014 के चुनाव में इसने क़रीब 3 फ़ीसदी वोट और लोकसभा की 9 सीटें हासिल की।     5. बहुजन समाज पार्टी (बसपा) :- स्थापना: 1984 चुनाव चिन्ह: हाथी स्व: काशीराम के नेतृत्व में 1984 में गठन किया। जिसमें दलित, आदिवासी, पिछड़ी जातियां, और धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल है , राजनीतिक सत्ता पाने का प्रयास और उनका प्रतिनिधित्व करने का दावा। पार्टी साहू महाराजा, महात्मा फुले, पेरियार रामास्वामी और बाबा साहब अंबेडकर के विचारों और शिक्षाओं से प्रेरणा लेती है। दलितों और कमजोर वर्गों के लोगों को कल्याण और उनके हितों की रक्षा के लिए सक्रिय है। यह पार्टी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तराखंड, पंजाब में है। इसने उत्तर प्रदेश में चार बार सरकार बनाई है। इस दल को 2014 के लोकसभा चुनाव में केवल 4 वोट मिले।     6. अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीएमसी) :- स्थापना: 1 जनवरी 1998 चुनाव चिन्ह : जोहरा घास फूल सुश्री ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली अब यह एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल है. जिसे चुनाव आयोग ने सितम्बर 2016 में यह 1 जनवरी 1998 को ममता बनर्जी के नेटवर्क में बनी। इसे 2016 में राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। ‘पुष्प’ और तृण पार्टी का प्रतीक है। धर्मनिरपेक्षता और संघवाद के प्रति प्रतिबद्ध है। 2011 में पश्चिम बंगाल में सत्ता में आई अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा में भी इसकी उपस्थिति है। 2014 में हुए आम चुनाव में 4 फ़ीसदी वोट मिले

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भारत में नागरिकता / नागरिकता संशोधन 2019

भारत में नागरिकता – अनुच्छेद 5,6,7,8,9,10 और 11 | Citizenship in India     ★ नागरिकता :- ◆ सवैधानिक प्रावधान :- नागरिकता को संविधान के तहत ‘संघ सूची में सूचीबद्ध किया गया है और इस प्रकार यह संसद के अनन्य अधिकार क्षेत्र में है। संविधान ‘नागरिक’ शब्द को परिभाषित नहीं करता है, लेकिन नागरिकता के लिये पात्र व्यक्तियों की विभिन्न श्रेणियों का विवरण भाग 2 (अनुच्छेद 5 से 11) में दिया गया है। ● भारतीय नागरिकता का अधिग्रहण :- वर्ष 1955 का नागरिकता अधिनियम, नागरिकता प्राप्त करने के पाँच तरीकों का उल्लेख करता है, जिसमें जन्म, वंश, पंजीकरण, देशीयकरण और क्षेत्र का समावेश शामिल है। ● नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 2019 :- अधिनियम में वर्ष 2015 से पहले भारत में प्रवेश करने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के धार्मिक अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदू, सिख, बौद्धों, जैन, पारसियों तथा ईसाइयों के लिये नागरिकता में तेज़ी लाने हेतु कानून में संशोधन किया गया। ●  भारतीय नागरिकता :- आवेदन करने से पहले उनके लिये कम-से-कम 11 वर्ष तक भारत में रहने की आवश्यकता को घटाकर पाँच वर्ष कर दिया गया है।       ◆ नागरिकता का प्रावधान :- ● भारत में एकल नागरिकता का प्रावधान है। ● USA में दोहरी नागरिकता का प्रावधान है। ● स्विट्जरलैंड में तिहरी नागरिकता का प्रावधान है।     ★ जन्मजात नागरिक का निर्धारण के नियम :- (i) रक्त संबंध का सिद्धांत :- माता-पिता जिस देश के नागरिक हो बच्चे को उसी देश की नागरिकता प्राप्त हो जाती है चाहे उसका जन्म विदेश में हुआ हो या स्वदेश में भारत, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, इटली, फ्रांस और अमेरिका जैसे देशों में नागरिकता की इसी प्रकार की व्यवस्था है (ii) जन्म स्थान का सिद्धांत :- इस नियम के अनुसार किसी व्यक्ति की नागरिकता उसके जन्म-स्थान के आधार पर किया जाता है | किसी राज्य के सीमाओं के अंदर जन्में बच्चे को उस राज्य की नागरिकता प्राप्त हो जाती है | माता पिता चाहे किसी भी देश के नागरिक हो | उदाहरण – अर्जेंटीना (दक्षिण अमेरिका) ब्रिटेन और अमेरिका आदि |       ★ सार्वभौमिक नगारिकता :- हम यह मान लेते हैं कि किसी देश की पूर्ण सदस्यता उन सबको उपलब्ध होनी चाहिए जो सामान्यतः उस देश के निवासी है, वहां काम करते या जो नागरिकता के लिए आवदेन करते हैं किंतु नागरिकता देने की शर्तें सभी तय करते हैं। अवांछित नागरिकता से बाहर रखने के लिए राज्य ताकत का इस्तेमाल करते हैं परंतु फिर भी व्यापक स्तर पर लोगों का देशांतरण होता है।   ★ विश्व नागरिकता :- आज हम एक ऐसी दुनिया में रहते है जो आपस में एक दूसरे से जुड़ा है संचार के साधन, टेलिविजन या इंटरनेट ने हमारे संसार को समझने के ढंग में भारी परिवर्तन किया है। एशिया की सुनामी या बड़ी आपदाओं के पीड़ितों की सहायता के लिए विश्व के सभी भागों से उमड़ा भावोद्वार विश्व समाज की उभार को ओर इशारा करता है। इसी को विश्व नागरिकता कहा जाता है। यही ‘ विश्व ग्राम’ व्यवस्था का आधार भी है।     ★ संविधान का भाग-2 (अनुच्छेद 5-11) नागरिकता :- ● भारत के संविधान के भाग-2 (अनुच्छेद 5-11) भारत की नागरिकता से संबंधित है। ● संविधान (26 नवंबर, 1949) के प्रारंभ में अनुच्छेद 5 भारत की नागरिकता के बारे में है।     ◆ संविधान के प्रारम्भ पर नागरिकता :- ● अनुच्छेद 5 :- भारत की नागरिकता के बारे में है। ● यदि कोई व्यक्ति भारत में जन्मा हो तो वह भारत का नागरिक होगा । ● यदि उसके माता – पिता भारत में जन्में हो । ● उसके माता – पिता में से कोई भी एक भारत में जन्मा हो। ● यदि कोई व्यक्ति संविधान लागू होने से पूर्व लगातार 5 वर्षो तक भारत में रहा हो , तो वह भारतीय नागरिक होगा ।      2. भारतीय नागरिकता :- ● अनुच्छेद 6 :- पाकिस्तान से भारत आने वाले व्यक्तियों की नागरिकता के अधिकार के बारे में है। ● वे लोग जो 19 July 1948 तक या उससे पहले भारत में आ गए हो भारतीय नागरिक होंगे। ● वे लोग जो 19 July 1948 के बाद भारत में आए उन्हें भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन देना होगा। ● ऐसे व्यक्ति को पंजीकृत के लिए 6 महीने तक भारत में निवास आवश्यक है।      3. पाकिस्तान में प्रवास करने पर नागरिकता :- ● अनुच्छेद 7 :- पाकिस्तान में प्रवास करने वाले व्यक्तियों की नागरिकता के बारे में उपबंध करता है। ● 1मार्च 1947 के पश्चात भारत से पाकिस्तान स्थानांतरित हो गया हो । ● लेकिन बाद में 19 July 1948 से पहले भारत वापस आ गए , तो वे भारतीय नागरिक बन सकते हैं।     4. भारत में जन्मा हो परन्तु विदेश में रहता हो :- ● अनुच्छेद 8 :- विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के कुछ व्यक्तियों के लिए नागरिकता के सम्बन्ध में प्रावधन किया गया हैं। ● ऐसे व्यक्ति जो भारत सरकार अधिनियम 1935 (Government of India Act, 1935) के अंतर्गत भारत के नागरिक थे , तो वे भारत के नागरिक होंगे ● देश में भारत के राजनयिक प्रतिनिधि के यहाँ भारतीय नागरिकता के लिए रजिस्ट्रीकरण करा रखा हो।     5. विदेशी राज्य की नागरिकता लेने पर भारत का नागरिक ना होना :- ● अनुच्छेद 9 :- यदि कोई व्यक्ति दूसरे देश की नागरिकता ग्रहण कर ले तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वत: ही समाप्त हो जाएगी।      6. नागरिकता के अधिकारों का बने रहना :- ● अनुच्छेद 10 :- प्रत्येक व्यक्ति जो भारत का नागरिक हैं। ● संसदीय विधि के अधीन भारत का नागरिक बना रहेगा। ● संसदीय विधान के अतिरिक्त किसी अन्य रीति से , छीना नही जा सकता।     7. संसद द्वारा संसद द्वारा नागरिकता के अधिकार को नियंत्रित करने के लिए कानून :- ● अनुच्छेद 11 :- संसद को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह नागरिकता के अर्जन व समाप्ति के तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी कानून बना सकती है। ● संसद द्वारा भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955 पारित किया गया है। ●जिसमें 1986 , 1992 , 2003 , 2005 , 2015 , एवं 2019 में संशोधन किया गया है।     ★ नागरिकता अधिनियम :- ◆ इस अधिनियम के

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भारतीय धर्मनिरपेक्षता क्या है : धर्म निरपेक्ष या पंथनिरपेक्ष किसे कहते है।

भारतीय धर्मनिरपेक्षता क्या है ?   ★ धर्म :- किसी व्यक्ति या वस्तु में सदा रहने वाली उसकी मूल वृत्ति, प्रकृति, स्वभाव, मूल गुण अथवा किसी जाति, वर्ग, पद आदि के लिए निश्चित किया हुआ कार्य या व्यवहार, कर्त्तव्य; धर्म कहलाता है।   ★ धर्मनिरपेक्षता – किसी भी धर्म विशेष से दूर रहते हुए सभी धर्मों का समान आदर करना ही ‘धर्मनिरपेक्षता’ कहलाती है।     ★ धर्म निरपेक्ष और पंथनिरपेक्ष  ● धर्म निरपेक्ष :- धर्म निरपेक्ष का अर्थ है नैतिकता से निरपेक्ष होना धर्मनिरपेक्षता का आशय है कि राज्य सभी धर्मो से दूरी बनाकर रहे। ● पंथनिरपेक्ष :- पंथनिरपेक्ष का अर्थ है किसी मजहव विशेष के प्रति भेदभाव न करना इस दृष्टि से धर्म निरपेक्षता एक अनुचित धारणा है जबकि पंथनिरपेक्षता उचित है     भारतीय धर्मनिरपेक्षता क्या है:- 1. पहला :- कोई भी धर्मिक समुदाय किसी दूसरे धार्मिक समुदाय को न दबाए कुछ लोग अपने ही धर्म के अन्य सदस्यों को न दबाएँ। 2. दूसरा :- राज्य न तो किसी खास धर्म को थोपेगा और न ही लोगों की धर्मिक स्वतंत्रता छिनेगा। 3. तीसरा :- भारतीय राज्य की बागडोर न तो किसी एक धार्मिक समूह के हाथों में है और न ही राज्य किसी एक धर्म को समर्थन देता हैं। 4. चौथा :- भारत में कचहरी, थाने, सरकारी विद्यालय, दफ्तर जैसी सरकारी संस्थानों में किसी खास धर्म को प्रोत्साहन देने या उसका प्रदर्शन करने की अपेक्षा नही की जाती है। और 5. पाँचवा :- भारतीय राज्य इस बात को मान्यता देता है कि पगड़ी पहनना सिख धर्म की प्रथाओं के मुताबिक महत्वपूर्ण है। धार्मिक आस्थाओं में दखलंदाजी से बचने के लिए राज्य ने कानून में रियायत दे दी है। 6. छठा :- भारतीय संविधान धार्मिक समुदायों को अपने स्कूल और कॉलेज खोलने का अधिकार देता है। गैर-प्राथमिकता के आधार पर राज्य से उन्हें सीमित आर्थिक सहायता भी मिलती है।      ★धर्म निरपेक्ष राज्य :- ● धार्मिक भेदभाव रोकने का एक रास्ता यह हो सकता है कि हम आपसी जागरूकता के लिए एक साथ मिलकर कार्य करें। ● एक राष्ट्र में धार्मिक वर्चस्व व भेदभावों को रोकने के लिए यह जरूरी होता है कि राज्यसत्ता किसी विशेष धर्म के प्रमुखों द्वारा संचालित नहीं होनी चाहिए। ● यदि हमारे लिए शान्ति, स्वतन्त्रता और समानता का कोई महत्व है, तो धार्मिक संस्थाओं और राज्यसत्ता की संस्थाओं के बीच दूरी अवश्य होनी चाहिए। ● वास्तव में धर्मनिरपेक्ष होने के लिए राज्यसत्ता को न केवल धर्म-संचालित होने से इंकार करना होगा बल्कि उसे किसी भी धर्म के साथ किसी भी तरह के औपचारिक कानूनी गठजोड़ से भी परहेज करना होगा। ● धर्मनिरपेक्ष राज्य को उन सिद्धान्तों के प्रति ज्यादा झुका हुआ होना चाहिए, जो किसी धार्मिक स्रोत से उत्पन्न न हुए हों। इन सिद्धान्तों में शान्ति, धार्मिक स्वतन्त्रता इत्यादि को शामिल किया जा सकता है। ★ धर्मनिरपेक्षता का भारतीय मॉडल :- ● पं. जवाहरलाल नेहरू ने भारत में धर्मनिरपेक्षता का आशय स्पष्ट करते हुए कहा था कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का मतलब ‘सभी धर्मों को राज्य द्वारा समान संरक्षण’ दिया जाना है। ● भारतीय धर्मनिरपेक्षता पर पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता की नकल होने का आरोप लगाया जाता है। लेकिन वास्तव में भारतीय धर्मनिरपेक्षता पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता से बुनियादी रूप में भिन्न है। ● यह धर्म और राज्य के आपसी सम्बन्धों के विच्छेद के साथ-साथ सभी धर्मों के साथ समान आचरण पर भी बल देती है। धार्मिक विविधता के चलते भारत में पहले से ही अन्तर-धार्मिक सहिष्णुता की संस्कृति विद्यमान थी। यह धार्मिक वर्चस्व की विरोधी नहीं है। ● भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में विशिष्ट है क्योंकि पहले से व्याप्त भारतीय धार्मिक विविधता और पश्चिम से आए विचारों का इसमें उचित मिश्रण विद्यमान है। ● भारतीय धर्मनिरपेक्षता का सम्बन्ध व्यक्तियों की धार्मिक आजादी से ही नहीं बल्कि अल्पसंख्यक समुदायों की धार्मिक आजादी से भी है। ● धर्मनिरपेक्ष राज्य के लिए यह सदैव जरूरी नहीं होता है कि वह धर्म की हर बात को एक जैसा सम्मान प्रदान करे। यदि कुछ बातें अमानवीय या गलत हैं तो धर्मनिरपेक्ष राज्य उनमें हस्तक्षेप कर सकता है। ● भारतीय धर्मनिरपेक्षता धर्म से सैद्धान्तिक दूरी कायम रखने पर चलती है, जो हस्तक्षेप की सम्भावना भी उत्पन्न करती     ★ धर्मनिरपेक्षता का अर्थ :- ● धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है कि राज्य राजनीति या किसी गैर-धार्मिक मामले से धर्म को दूर रखे तथा सरकार धर्म के आधार पर किसी से भी कोई भेदभाव न करे। ● धर्मनिरपेक्षता का अर्थ किसी के धर्म का विरोध करना नहीं है बल्कि सभी को अपने धार्मिक विश्वासों एवं मान्यताओं को पूरी आज़ादी से मानने की छूट देता है। ● धर्मनिरपेक्ष राज्य में उस व्यक्ति का भी सम्मान होता है जो किसी भी धर्म को नहीं मानता है। ● धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में धर्म, व्यक्ति का नितांत निजी मामला है, जिसमे राज्य तब तक हस्तक्षेप नहीं करता जब तक कि विभिन्न धर्मों की मूल धारणाओं में आपस में टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो।     ★ धर्मनिरपेक्षता के संदर्भ में संवैधानिक दृष्टिकोण :- ● भारतीय परिप्रेक्ष्य में संविधान के निर्माण के समय से ही इसमें धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा निहित थी जो सविधान के भाग-3 में वर्णित मौलिक अधिकारों में धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार (अनुच्छेद-25 से 28) से स्पष्ट होती है। ● भारतीय संविधान में पुन: धर्मनिरपेक्षता को परिभाषित करते हुए 42 वें सविधान संशोधन अधिनयम, 1976 द्वारा इसकी प्रस्तावना में ‘पंथ निरपेक्षता’ शब्द को जोड़ा गया। ● यहाँ पंथनिरपेक्ष का अर्थ है कि भारत सरकार धर्म के मामले में तटस्थ रहेगी। उसका अपना कोई धार्मिक पंथ नही होगा तथा देश में सभी नागरिकों को अपनी इच्छा के अनुसार धार्मिक उपासना का अधिकार होगा। भारत सरकार न तो किसी धार्मिक पंथ का पक्ष लेगी और न ही किसी धार्मिक पंथ का विरोध करेगी। ● पंथनिरपेक्ष राज्य धर्म के आधार पर किसी नागरिक से भेदभाव न कर प्रत्येक व्यक्ति के साथ समान व्यवहार करता है। भारत का संविधान किसी धर्म विशेष से जुड़ा हुआ नहीं है।     ★ भारतीय धर्मनिरपेक्षता तथा पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता के बीच अंतर :- ● पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता जहाँ धर्म एवं राज्य के बीच पूर्णत: संबंध विच्छेद पर आधारित है, वहीं भारतीय संदर्भ में यह अंतर-धार्मिक समानता पर आधारित है। ● पश्चिम में धर्मनिरपेक्षता का पूर्णत: नकारात्मक एवं अलगाववादी स्वरूप दृष्टिगोचर होता है, वहीं भारत

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भारत राष्ट्र है या राज्य ? भारत राज्यों का संघ जाने पूरी जानकारी

भारत राष्ट्र है या राज्य ? राष्ट्र (Nation) शब्द की उत्पति राष्ट्रवाद क्या है राष्ट्र आवश्यक तत्व भारत में राष्ट्रवाद के उदय के कारण   ★राष्ट्र (Nation) शब्द की उत्पति :- राष्ट्र शब्द का अंग्रेजी भाषा में नेशन (Nation) कहते है और इसका हिंदी अर्थ ” राष्ट्र” है। नेशन शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों ‘नेशियों’ (natio) और नेट्स (Natus) से निकला है, जिनका अर्थ क्रमश: है – ‘ जन्म या नस्ल ‘ और पैदा हुआ।   ★ राष्ट्रवाद क्या है:- ● सामान्यतः यदि जनता की राय ले तो इस विषय में राष्ट्रीय ध्वज, देश भक्ति प्रदेश के लिए बलिदान जैसी बाते सुनेंगे। दिल्ली में गणतंत्र दिवस की परेड़ भारतीय राष्ट्रवाद का विचित्र प्रतीक है। ● राष्ट्रवाद पिछली दो शताब्दियों के दौरान एक ऐसे सम्मोहक राजनीतिक सिद्धांत के रूप में उभरकर सामने आया है कि जिसने इतिहास रचने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है। इसने अत्याचारी शासन से आजादी दिलाने में सहायता की है तो इसके साथ ही यह विरोध, कटुता और युद्धों की वजह भी रहा है। ● राष्ट्रवाद बड़े-बड़े साम्राज्यों के पतन में भागीदार रहा है। बीसवीं शताब्दी की शुरूआत में यूरोप में आस्ट्रेयाई-हंगेरियाई और रूसी साम्राज्य तथा इसके साथ एशिया और अफ्रीका में फ्रांसीसी, ब्रिटिश, डच और पुर्तगाली साम्राज्य के बंटवारे के मूल में राष्ट्रवाद ही था। ● इसी के साथ राष्ट्रवाद ने उन्नीसवीं शताब्दी के यूरोप में कई छोटी-छोटी रियासतों के एकीकरण से वृहदत्तर राष्ट्र राज्यों की स्थापना का मार्ग दिखाया है।    ◆ राज्य :- राज्य किसी निश्चित भू-प्रदेश पर निवास करने वाले मनुष्यों का राजनीतिक संगठन है, जबकि ◆ राष्ट्र :- राष्ट्र का आशय उन मनुष्यों से है जो समान भाषा, धर्म, सभ्यता और संस्कृति के सूत्र में बंधे रहते हैं।     ◆ राष्ट्र तथा राष्ट्रवाद :- ● राष्ट्र :- राष्ट्र के सदस्य के रूप में हम राष्ट्र के अधिकतर सदस्यों को प्रत्यक्ष तौर पर न कभी जान पाते है और न ही उनके साथ वंशानुगत संबंध जोड़ने की जरूरत पड़ती है। फिर भी राष्ट्रों का वजूद है, लोग उनमें रहते हैं और उनका सम्मान करते हैं। ● राष्ट्रवाद :- राष्ट्र काफी हद तक एक काल्पनिक समुदाय है जो अपने सदस्यों के सामूहिक यकीन, इच्छाओं, कल्पनाओं विश्वास आदि के सहारे एक धागे में गठित होता है। यह कुछ विशेष मान्यताओं पर आधारित होता है जिन्हें लोग उस पूर्ण समुदाय के लिए बनाते हैं जिससे वह अपनी पहचान बनाए रखते हैं।      ★राष्ट्र के विषय में मान्यताएं :- 1. साझे विश्वास :- एक राष्ट्र का आस्तित्व तभी बना रहता है जब उसके सदस्यों को यह विश्वास हो कि वे एक-दूसरे के साथ है। 2. इतिहास :- व्यक्ति अपने आपको एक राष्ट्र मानते हैं उनके अंदर अधिकतर स्थाई ऐतिहासिक पहचान की भावना होती है देश की स्थायी पहचान का ढांचा पेश करने हेतु वे किवंदतियों, स्मृतियों तथा ऐतिहासिक इमारतों तथा अभिलेखों की रचना के जरिए स्वयं राष्ट्र के इतिहास के बोध की रचना करते हैं। 3. भू-क्षेत्र :- किसी भू क्षेत्र पर काफी हद तक साथ-साथ रहना एवं उससे संबंधित साझे अतीत की स्मृतियां जन साधारण को एक सामूहिक पहचान का अनुभाव कराती है जैसे कोई इसे मातृभूमि या पितृभूमि कहता है तो कोई पवित्र भूमि । 4. सांझे राजनीतिक विश्वास :- जब राष्ट्र के सदस्यों की इस विषय पर एक सांझा दृष्टि होती है कि वे कैसे राज्य बनाना चाहते हैं शेष तथ्यों के अतिरिक्त वे धर्म निरपेक्षता, लोकतंत्र और उदारवाद जैसे मूल्यों और सिद्धांतों को स्वीकार करते हैं तब यह विचार राष्ट्र के रूप में उनकी राजनीतिक पहचान को स्पष्ट करता है। 5 साझी राजनीतिक पहचान :- व्यक्तियों को एक राष्ट्र में बांधने के लिए एक समान भाषा, जातीय वंश परंपरा जैसी सांस्कृतिक पहचान भी आवश्यक है। ऐसे हमारे विचार, धार्मिक विश्वास, सामाजिक परंपराए सांझे हो जाते हैं। वास्तव में लोकतंत्र में किसी खास नस्ल, धर्म या भाषा से संबद्धता की जगह एक मूल्य समूह के प्रति निष्ठा की आवश्यकता होती है।     ★ राष्ट्रवाद के गुण :- (i) राष्ट्रवाद की भावना में मुक्ति आन्दोलनों को प्रेरणा दी (ii) राष्ट्रवाद ने विश्व को साम्राज्यवाद के चंगुल से बचाया (iii) राष्ट्रीयता की भावना की नीव पर निर्मित राज्य हमेशा अधिक स्थायी होते हैं । (iv) राष्ट्रवाद प्रेरणा का जीवंत स्रोत है जो राष्ट्र हित के आवश्यक है । (v) राष्ट्रवाद से एकता की भावना बढती है |     ◆ राष्ट्रवाद की कमियाँ :- (i) आक्रामक राष्ट्रवाद घृणा को जन्म देता है | (ii) राष्ट्रवाद के कारण विश्व के बहुत से भागों का अधिकाधिक एकीकरण हुआ है । (iii) एक राज्य के अन्दर भिन्न-भिन्न राष्ट्रीयता वाले लोग रहते है जिससे राष्ट्र-राज्य का आदर्श अनेक कठिनाईयाँ उत्पन्न कर सकता है |   ★ राष्ट्र :- शब्द का अर्थ राज्य, देश, किसी निश्चित और विशिष्ट क्षेत्र में रहने वाले लोग जिनकी एक भाषा, एक से रीती-रिवाज तथा एक सी विचारधारा होती है, तथा किसी एक शासन में रहने वाले सब लोगों का समूह किया गया है।   ★ भारत राष्ट्र है या राज्य :- यदि भारतीय विचारधारा और संस्कृति का गम्भीरता से अध्ययन किया जाये, तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि भारत एक राष्ट्र है।    ● हमारी राष्ट्र का नाम क्या है? संविधान में हमारे राष्ट्र का उल्लेख भारत तथा इण्डिया नाम से किया गया है।   ● राज्य आवश्यक तत्व :- जनसंख्या, भूमि, सरकार और संप्रभुता राज्य के चार आवश्यक तत्व हैं। इनके बिना राज्य की कल्पना भी नहीं की जा सकती। ● राष्ट्र आवश्यक तत्व :- राष्ट्र को इन तत्वों की आवश्यकता नहीं है, बल्कि साझा धर्म, सामान्य भाषा, सामान्य रीति रिवाज, सामान्य इतिहास और भावनात्मक एकता की भावना की आवश्यकता है।     ★ राष्ट्रवाद का उदय :- ● सामूहिक अपनेपन का भाव :- वे कारक जिन्होंने भारतीय लोगों में सामूहिक अपनेपन की भावना को जगाया तथा सभी भारतीयों लोगों को एक किया। ● चित्र व प्रतीक :- भारत माता की प्रथम छवि ‘ बंकिमचन्द्र ‘द्वारा बनाई गई। इस छवी के माध्यम से राष्ट्र को पहचानने में मदद मिली। ● लोक कथाएँ :- राष्ट्रवादी घूम घूम कर इन लोक कथाओं का संकलन करने लगे ये कथाएँ परंपरागत संस्कृति की सही तस्वीर पेश करती थी तथा अपनी राष्ट्रीय पहचान को ढूढ़ने तथा अतीत में गौरव का भाव पैदा करती

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संविधान : अनुच्छेद 1 से 395 तक सूची

भाग 1: संघ और उसका क्षेत्र अनुच्छेद 1 संघ का नाम और राज्यक्षेत्र। अनुच्छेद 2 नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना। अनुच्छेद 2A [निरस्त।] अनुच्छेद 3 नए राज्यों का गठन और मौजूदा राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन। अनुच्छेद 4 पहली और चौथी अनुसूचियों के संशोधन और पूरक, आकस्मिक और परिणामी मामलों के लिए अनुच्छेद 2 और 3 के तहत बनाए गए कानून। भाग 22: नागरिकता अनुच्छेद 5 संविधान के प्रारंभ में नागरिकता। अनुच्छेद 6 कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार जो पाकिस्तान से भारत आए हैं। अनुच्छेद 7 पाकिस्तान में कुछ प्रवासियों के नागरिकता के अधिकार। अनुच्छेद 8 भारत के बाहर रहने वाले भारतीय मूल के कुछ व्यक्तियों के नागरिकता के अधिकार। अनुच्छेद 9 व्यक्तियों का स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त करना उनका नागरिक नहीं होना। अनुच्छेद 10 नागरिकता के अधिकारों की निरंतरता। अनुच्छेद 11 संसद कानून द्वारा नागरिकता के अधिकार को विनियमित करने के लिए। भाग 3: मौलिक अधिकार आम अनुच्छेद 12 परिभाषा अनुच्छेद 13 मौलिक अधिकारों से असंगत या उनका अपमान करने वाले कानून। समानता का अधिकार अनुच्छेद 14 कानून के समक्ष समानता। अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध। अनुच्छेद 16 सार्वजनिक रोजगार के मामलों में अवसर की समानता। अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का उन्मूलन। अनुच्छेद 18 उपाधियों का उन्मूलन।   स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 19 वाक् स्वतंत्रता आदि के संबंध में कुछ अधिकारों का संरक्षण। अनुच्छेद 20 अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण। अनुच्छेद 21 जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा। अनुच्छेद 21A शिक्षा का अधिकार अनुच्छेद 22 कुछ मामलों में गिरफ्तारी और नजरबंदी के खिलाफ संरक्षण। शोषण के खिलाफ अधिकार अनुच्छेद 23 मनुष्य के यातायात और बलात् श्रम का निषेध। अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बच्चों के नियोजन पर रोक। धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार अनुच्छेद 25 अंतःकरण की और धर्म के स्वतंत्र पेशे, आचरण और प्रचार की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 26 धार्मिक मामलों के प्रबंधन की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 27 किसी धर्म विशेष के प्रचार के लिए करों के भुगतान की स्वतंत्रता। अनुच्छेद 28 कुछ शिक्षण संस्थानों में धार्मिक शिक्षा या धार्मिक पूजा में उपस्थिति के बारे में स्वतंत्रता। सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार अनुच्छेद 29 अल्पसंख्यकों के हितों का संरक्षण। अनुच्छेद 30 अल्पसंख्यकों का शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना और प्रशासन का अधिकार। कुछ कानूनों की बचत अनुच्छेद 31क सम्पदा आदि के अधिग्रहण के लिए प्रावधान करने वाले कानूनों की बचत। अनुच्छेद 31बी कुछ अधिनियमों और विनियमों का सत्यापन। अनुच्छेद 31सी कतिपय निदेशक सिद्धांतों को प्रभावी करने वाले कानूनों की बचत। संवैधानिक उपचार का अधिकार अनुच्छेद 32 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों के प्रवर्तन के लिए उपाय। अनुच्छेद 33 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों को बलों आदि पर लागू करने में संशोधन करने की संसद की शक्ति। अनुच्छेद 34 इस भाग द्वारा प्रदत्त अधिकारों पर निर्बन्धन जबकि किसी भी क्षेत्र में मार्शल लॉ लागू है। अनुच्छेद 35 इस भाग के उपबंधों को प्रभावी करने के लिए विधान।भाग IV: राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत अनुच्छेद 36 परिभाषा। अनुच्छेद 37 इस भाग में निहित सिद्धांतों का अनुप्रयोग। अनुच्छेद 38 लोगों के कल्याण को बढ़ावा देने के लिए एक सामाजिक व्यवस्था को सुरक्षित करने के लिए राज्य। अनुच्छेद 39 राज्य द्वारा पालन किए जाने वाले नीति के कुछ सिद्धांत। अनुच्छेद 39ए समान न्याय और मुफ्त कानूनी सहायता। अनुच्छेद 40 ग्राम पंचायतों का संगठन। अनुच्छेद 41 कुछ मामलों में काम, शिक्षा और सार्वजनिक सहायता का अधिकार। अनुच्छेद 42 काम की न्यायसंगत और मानवीय स्थितियों और मातृत्व राहत का प्रावधान। अनुच्छेद 43 कामगारों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि। अनुच्छेद 43क उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी। अनुच्छेद 43बी सहकारी समितियों का संवर्धन। अनुच्छेद 44 नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता। अनुच्छेद 45 बच्चों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का प्रावधान। अनुच्छेद 46 अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य कमजोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना। अनुच्छेद 47 पोषाहार के स्तर और जीवन स्तर को ऊपर उठाने और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करने के लिए राज्य का कर्तव्य। अनुच्छेद 48 कृषि और पशुपालन का संगठन। अनुच्छेद 48क पर्यावरण का संरक्षण और सुधार तथा वनों और वन्य जीवों की सुरक्षा। अनुच्छेद 49 राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों और स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण। अनुच्छेद 50 न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग करना। अनुच्छेद 51 अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देना। भाग 4A: मौलिक कर्तव्य अनुच्छेद 51ए मौलिक कर्तव्य। भाग 5: संघ अध्याय I: कार्यकारी राष्ट्रपति और उपाध्यक्ष अनुच्छेद 52 भारत के राष्ट्रपति। अनुच्छेद 53 संघ की कार्यपालिका शक्ति। अनुच्छेद 54 राष्ट्रपति का चुनाव। अनुच्छेद 55 राष्ट्रपति के चुनाव का तरीका। अनुच्छेद 56 राष्ट्रपति के पद का कार्यकाल। अनुच्छेद 57 पुनर्निर्वाचन के लिए पात्रता। अनुच्छेद 58 राष्ट्रपति के रूप में चुनाव के लिए योग्यता। अनुच्छेद 59 राष्ट्रपति कार्यालय की शर्तें। अनुच्छेद 60 राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान। अनुच्छेद 61 राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया। अनुच्छेद 62 अध्यक्ष पद की रिक्तियों को भरने के लिए निर्वाचन कराने का समय तथा आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति का कार्यकाल। अनुच्छेद 63 भारत के उपराष्ट्रपति। अनुच्छेद 64 उपराष्ट्रपति का राज्यों की परिषद का पदेन अध्यक्ष होना। अनुच्छेद 65 उपराष्ट्रपति को राष्ट्रपति के रूप में कार्य करना या कार्यालय में आकस्मिक रिक्तियों के दौरान या राष्ट्रपति की अनुपस्थिति के दौरान अपने कार्यों का निर्वहन करना। अनुच्छेद 66 उपराष्ट्रपति का चुनाव। अनुच्छेद 67 उपराष्ट्रपति के पद की अवधि। अनुच्छेद 68 उपाध्यक्ष पद की रिक्तियों को भरने के लिए निर्वाचन कराने का समय तथा आकस्मिक रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचित व्यक्ति का कार्यकाल। अनुच्छेद 69 उपराष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान। अनुच्छेद 70 अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वहन। अनुच्छेद 71 राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित या उससे संबंधित मामले। अनुच्छेद 72 राष्ट्रपति की क्षमा आदि प्रदान करने की शक्ति, और कुछ मामलों में सजा को निलंबित करने, हटाने या कम करने की। अनुच्छेद 73 संघ की कार्यकारी शक्ति की सीमा। मंत्रिमंडल अनुच्छेद 74 मंत्रिपरिषद राष्ट्रपति को सहायता और सलाह देगी। अनुच्छेद 75 मंत्रियों के रूप में अन्य प्रावधान। भारत के महान्यायवादी अनुच्छेद 76 भारत के लिए अटॉर्नी-जनरल। सरकारी व्यवसाय का संचालन अनुच्छेद 77 भारत सरकार के व्यवसाय का संचालन। अनुच्छेद 78 राष्ट्रपति को जानकारी देने आदि के संबंध में प्रधान मंत्री के कर्तव्य

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भारत के विदेशी नीति नेहरू से मोदी तक 1952-2023

भारत की विदेश नीति उद्देश्य संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की भूमिका भारत और गुटनिरपेक्ष शक्तिशाली देशो के साथ शक्ति संतुलन भारत की परमाणु नीति भारत का पड़ोसी देशों के साथ संबंध विदेश नीति नेहरू से मोदी तक            ★ भारत की विदेश नीति :- ● एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के साथ संबंध स्थापित करने, अंतर्राष्ट्रीय मंच पर सर्वश्रेष्ठ स्थान पाने एवं युद्ध तथा शान्ति के प्रश्नों में अपनी भूमिका के लिए जो कार्यक्रम एवं नीतियाँ अपनाई जाती हैं, उसे ही उस राष्ट्र की विदेश नीति कहते हैं। ● भारतीय विदेश नीति :- भारतीय विदेश नीति के मूल तत्वों का समावेश हमारे संविधान के अनुच्छेद 51 में किया गया है | ◆ विदेश नीति के उद्देश्य :- ● संप्रभुता की रक्षा करना । ● क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करना। ● तेजी से आर्थिक विकास को बढ़ावा देना।   ◆ नेहरू की भूमिका :- ● जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री दोनों थे जिन्होंने 1946 से 1964 के दौरान भारत की विदेश नीति के निर्माण और कार्यान्वयन को प्रभावित किया। ● श्री जवाहर लाल नेहरू ने भारतीय विदेश नीति के 3 प्रमुख आधार स्तम्भ बताए :- शान्ति, मित्रता एवं समानता। ● नेहरू गुटनिरपेक्ष रणनीति के माध्यम से इसे हासिल करना चाहते थे। ● भारतीय विदेश नीति के आधार स्तम्भ के रूप में श्री नेहरू का कथन आज भी दृष्टिगोचर है – ‘ भारत वैदेशिक संबंधों के क्षेत्र में एक स्वतंत्र नीति का अनुसरण करेगा और गुटों की खींचतान से दूर रहते हुए विश्व के समस्त पराधीन देशों को आत्मनिर्णय का अधिकार प्रदान कराने तथा जातीय भेदभाव की नीति का दृढ़तापूर्वक उन्मूलन कराने का प्रयत्न करेगा। साथ ही यह विश्व के अन्य स्वतंत्रता प्रेमी और शान्तिप्रिय राष्ट्रों के साथ मिलकर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और सद्भावना के प्रसार के लिए भी निरंतर प्रयत्नशील रहेगा।   ● लेकिन डॉक्टर अम्बेडकर जैसे नेता और कुछ राजनीतिक दल उस अमेरिकी गुट का अनुसरण करना चाहते थे जो लोकतंत्र समर्थक होने का दावा करता था।     1. नेहरू युग (1947-1964) :- ● अंतर्राष्ट्रीय और अखिल एशियावाद के समर्थक तथा साम्राज्यवाद, उपनिवेशवादी और फासीवाद के विरोधी पं. नेहरू भारतीय विदेश नीति के सूत्रधार कहे जा सकते हैं। ● प्रधानमंत्री होने के साथ-साथ विदेश मंत्री होने के नाते भी नेहरू का भारतीय विदेश नीति पर अधिक प्रभाव पड़ा। उनके समय की विदेश नीति के कुछ महत्त्वपूर्ण पहलू निम्न प्रकार हैं। ◆ पंचशील :- पंचशील के सिद्धान्तों को भारत की विदेश-नीति ने एक नई दिशा प्रदान की। ◆ ये सिद्धान्त निम्न हैं :- (1) एक-दूसरे देश पर आक्रमण न करना। (2) परस्पर सहयोग एवं लाभ को बढ़ावा देना। (3) शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति का पालन करना। (4) दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना। (5) सभी देशों द्वारा अन्य देशों की क्षेत्रीय अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना।     ● अफ्रेशियाई एकता :- एशिया एवं अफ्रीका के नव स्वतंत्र राष्ट्रों की एकता के लिए मार्च, 1947 में नई दिल्ली में तथा इण्डोनेशिया के प्रश्न पर जनवरी, 1949 में दिल्ली में सम्मेलन आयोजित किया, साथ ही 1955 के बाण्डुंग सम्मेलन में भी भाग लिया। ● असंलग्नता :- नेहरू ने विश्व की असंलग्नता की नीति का संदेश देते हुए सभी राज्यों के साथ शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व एवं सक्रिय अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर बल दिया। ● राष्ट्रमण्डल :- नेहरू यह जानते थे कि आर्थिक दृष्टि से भारत अधिकांश रूप से ब्रिटेन पर निर्भर है, अतः उन्होंने दूरदर्शिता अपनाते हुए राष्ट्रमण्डल के सदस्य बने रहने की इच्छा प्रकट की। ● गोआ पर अधिकार ◆ आलोचना :- (1) नेहरू की नीति अत्यन्त आदर्शवादी एवं भावना प्रधान थी, उदहारण-तिब्बत संबंधी नीति । (2) असंलग्नता की नीति को संदेह से देखा गया। (3) भारत की राष्ट्रमण्डल की सदस्यता को दास मनोवृत्ति का परिचायक माना जाता था।     ★ भारत की विदेश नीति के उद्देश्य :- (1) गुट निरपेक्षता को प्रोत्साहन। (2) उपनिवेशवाद का विरोध। (3) विश्व शान्ति को बनाए रखना। (4) राष्ट्रीय हितों की रक्षा प्राथमिक उद्देश्य। (5) जातिभेद, रंगभेद, साम्राज्यवाद का विरोध। (6) विवादों की मध्यस्थता या पंच द्वारा निपटारा। (7) दक्षिण एशिया में पड़ोसी देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध स्थापित करने पर जोर।          ★ भारतीय विदेश नीति के उद्देश्य :- 1. राष्ट्रीय हित:- भारत की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्य राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा है। राष्ट्रीय हितों में उसका विदेशी व्यापार, आर्थिक स्थिति, पड़ोसी देशों के साथ संबंध, स्थलीय सीमा, समुद्री तट, गुट निरपेक्षता, अफ्रेशियाई राष्ट्रों की एकता आदि मुख्य हैं। यह मुख्यतः निम्न राष्ट्रीय हितों एवं व्यावहारिकता से प्रभावित रही है- ● राष्ट्रीय हितों के लिए पश्चिमी के संकट में इजरायल के बजाए प्रायः अरब राष्ट्रों का समर्थन करना। ● 1991 में बांग्लादेश संकट उत्पन्न होने पर रूस के साथ एक 20 वर्षीय संधि करना । ● आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप के विरुद्ध होते हुए भी मानवीय आधार पर 1987 में जाफना की जनता के लिए राहत सामग्री पहुँचाना। ● राष्ट्रीय हित के लिए ही अणु अप्रसार संधि तथा व्यापक परीक्षण प्रतिबंध संधि पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर देना ।   2. भौगोलिक तत्त्वं :- भारत विश्व के ऐसे भाग में स्थित है जिसका भौगोलिक और सामरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्त्व है। उत्तर में साम्यवादी राष्ट्र चीन, दक्षिण में हिन्द महासागर, दक्षिण-पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा दक्षिण-पश्चिम में अरब सागर भारत के लिए सामरिक महत्व रखते हैं। हिन्द महासागर के तटवर्ती देशों के बीच सहयोग बढ़ाने के उद्देश्य से मार्च, 1997 में भारत तथा अन्य 13 देशों मिलकर ‘ हिमतक्षेप ‘ के गठन की घोषणा की।   3. गुटनिरपेक्षता :- भारत द्वारा हमेशा असंलग्नता या गुटनिरपेक्षता की नीति पर जोर दिया जाता रहा है। स्वाधीनता के उपरान्त विश्व की दो महाशक्तियों के विभाजित होने पर भी उसने दोनों से समान संबंध रखते हुए असंलग्नता की नीति अपनाई । 4. विचारधारा :- भारतीय विदेश नीति सदैव शान्ति एवं अहिंसा की गांधीवादी विचारधारा तथा अरविन्द, टैगोर एवं एम.एन. रॉय के मानवतावादी विचारों से प्रभावित रही है। 5. आर्थिक, तकनीकी और सैनिक तत्त्व :- आर्थिक एवं तकनीकी सहायता प्राप्त करने के उद्देश्य से ही भारत ने दोनों महाशक्तियों के साथ गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। 1974 एवं 1998 के अणु परीक्षणों तथा पृथ्वी, नाग, सूर्य, आकाश जैसे विकसित किए गए प्रक्षेपास्त्रों ने भारत की

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