रूमटॉइड आर्थराइटिस में आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली
चर्चा में क्यों? हाल ही में एक अध्ययन ने दीर्घकालिक ऑटोइम्यून रोग रुमेटॉइड आर्थराइटिस (RA) के प्रबंधन में आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली (AWS) की प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला। शोध से पता चलता है कि AWS न केवल RA के लक्षणों को कम करता है बल्कि रोगियों में सामान्य चयापचय संतुलन के पुनर्स्थापन में भी मदद करता है। यह पारंपरिक चिकित्सा उपचारों के लिये एक आशाजनक पूरक उपगाम प्रस्तुत करता है। रुमेटॉइड आर्थराइटिस के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं? परिचय: RA एक दीर्घकालीन सूजन/शोथ संबंधी रोग है, जो जोड़ों की परत/अस्तर को प्रभावित करता है, जिससे दर्दनाक सूजन होती है, जो अंततः अस्थियों के क्षय और जोड़ों की विकृति का कारण बन सकती है। कुछ लोगों में यह स्थिति त्वचा, आँखों, फुफ्फुस, हृदय और रक्त वाहिकाओं सहित शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुँचा सकती है। यह एक ऑटोइम्यून रोग है। ऐसा तब होता है जब प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं करती है और जोड़ों की परत पर हमला करती है, जिसे सिनोवियम कहा जाता है। अध्ययन का महत्त्व: यह ‘संप्राप्ति विघातन’ की आयुर्वेदिक अवधारणा पर आधारित है, जिसके तहत रोग उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया को नष्ट किया जाता है और शरीर के ‘दोषों’ (जैव-ऊर्जाओं) को वापस संतुलन में लाया जाता है। यह शोध महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके तहत आयुर्वेदिक संपूर्ण-प्रणाली दृष्टिकोण का उपयोग करके RA में पैथोलॉजी रिवर्सल की क्षमता का पता लगाया जाता है। प्रेक्षित प्रमुख नैदानिक सुधार: रोग गतिविधि में कमी: रोग गतिविधि स्कोर-28 एरिथ्रोसाइट अवसादन दर (DAS-28 ESR) में उल्लेखनीय कमी आई, जो RA की गंभीरता का आकलन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। जोड़ों की सूजन/शोथ में कमी: AWS उपचार प्राप्त करने वाले रोगियों में सूजन/शोथ और जोड़ों के क्षय संबंधी रोग दोनों की कुल संख्या में कमी आई। विषाक्त पदार्थों में कमी: शरीर में विषाक्त पदार्थों का मूल्यांकन करने वाले Ama गतिविधि माप (AAM) स्कोर में हस्तक्षेप के बाद महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई, जो तंत्रिक/दैहिक शोथ और विषाक्तता में कमी का संकेत देता है। मेटाबोलिक प्रोफाइल में बदलाव: AWS उपचार के बाद लाइसिन, क्रिएटिन आदि जैसे असंतुलित मेटाबोलिक मार्कर स्वस्थ नियंत्रण में देखे गए सामान्य स्तरों की ओर शिफ्ट होने लगे, जो अधिक संतुलित मेटाबोलिक स्थिति में वापसी का संकेत देते हैं। अपनी तरह का पहला साक्ष्य: यह RA के प्रबंधन में AWS की नैदानिक प्रभावकारिता को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने वाला पहला अध्ययन है। यह लक्षणों में कमी और मेटाबोलिक सामान्यीकरण के दोहरे लाभ पर प्रकाश डालता है, जो संभावित रूप से रोगियों के लिये दीर्घकालिक सकारात्मक परिणामों की पुष्टि करता है। एकीकृत चिकित्सा (Integrative Medicine) के लिये निहितार्थ: यह अध्ययन पारंपरिक आयुर्वेदिक विधियों को आधुनिक चिकित्सा उपागमों के साथ एकीकृत करने की क्षमता को रेखांकित करता है। इस तरह के इंटीग्रेशन से रोगी के उपचार, विशेषकर RA जैसी दीर्घकालिक स्थितियों के प्रबंधन में बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं। आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली क्या है? परिचय: आयुर्वेद भारत की टाइम टेस्टेड पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है। ‘आयुर्वेद’ शब्द जिसका अर्थ है ‘जीवन का ज्ञान’, दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है, अर्थात ‘आयु’ जिसका अर्थ है ‘जीवन’ और ‘वेद’ जिसका अर्थ है ‘ज्ञान’ या ‘विज्ञान’। आयुर्वेद चिकित्सा की एक संपूर्ण-शरीर (समग्र) प्रणाली है। इस पद्धति में स्वास्थ्य और कल्याण के सभी पहलुओं के लिये एक प्राकृतिक उपागम अपनाया जाता है। आयुर्वेदिक रणनीति: आयुर्वेद इस विचार पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ जीवन शक्तियाँ (दोष) होती हैं और ब्रह्मांड में सब कुछ जुड़ा हुआ है। किसी एक क्षेत्र में असंतुलन दूसरे क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है। जब असंतुलन को ठीक नहीं किया जाता है, तो बीमारी बढ़ सकती है और अस्वस्थता हो सकती है। आयुर्वेद में अधिकतर पोषण, जीवनशैली में बदलाव और प्राकृतिक उपचार का प्रयोग किया जाता है। इनका प्रयोग संतुलन और स्वास्थ्य के पुनर्स्थापन/रिवर्सल के लिये किया जाता है। तीन प्रमुख ऊर्जाएँ (दोष): आयुर्वेद तीन आधारभूत प्रकार की ऊर्जा या कार्यात्मक सिद्धांतों की पहचान करता है, जो प्रत्येक जीव और प्रत्येक वस्तु में मौजूद हैं। वात: यह श्वसन, पलक झपकाने, माँसपेशियों की गतिविधि और तरल पदार्थों के परिसंचरण जैसे कार्यों को नियंत्रित करता है। पित्त: यह पाचन, अवशोषण, पोषण और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। कफ: यह शरीर के संरचनात्मक घटकों को नियंत्रित करता है, जोड़ों में स्नेहकता प्रदान करता है, त्वचा को नमी देता है और प्रतिरक्षा को बनाए रखता है।
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