Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

Indian Current affairs

रूमटॉइड आर्थराइटिस में आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली

चर्चा में क्यों? हाल ही में एक अध्ययन ने दीर्घकालिक ऑटोइम्यून रोग रुमेटॉइड आर्थराइटिस (RA) के प्रबंधन में आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली (AWS) की प्रभावशीलता पर प्रकाश डाला। शोध से पता चलता है कि AWS न केवल RA के लक्षणों को कम करता है बल्कि रोगियों में सामान्य चयापचय संतुलन के पुनर्स्थापन में भी मदद करता है। यह पारंपरिक चिकित्सा उपचारों के लिये एक आशाजनक पूरक उपगाम प्रस्तुत करता है। रुमेटॉइड आर्थराइटिस के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं? परिचय: RA एक दीर्घकालीन सूजन/शोथ संबंधी रोग है, जो जोड़ों की परत/अस्तर को प्रभावित करता है, जिससे दर्दनाक सूजन होती है, जो अंततः अस्थियों के क्षय और जोड़ों की विकृति का कारण बन सकती है। कुछ लोगों में यह स्थिति त्वचा, आँखों, फुफ्फुस, हृदय और रक्त वाहिकाओं सहित शरीर के कई अंगों को नुकसान पहुँचा सकती है। यह एक ऑटोइम्यून रोग है। ऐसा तब होता है जब प्रतिरक्षा प्रणाली ठीक से काम नहीं करती है और जोड़ों की परत पर हमला करती है, जिसे सिनोवियम कहा जाता है। अध्ययन का महत्त्व: यह ‘संप्राप्ति विघातन’ की आयुर्वेदिक अवधारणा पर आधारित है, जिसके तहत रोग उत्पन्न करने वाली प्रक्रिया को नष्ट किया जाता है और शरीर के ‘दोषों’ (जैव-ऊर्जाओं) को वापस संतुलन में लाया जाता है। यह शोध महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसके तहत आयुर्वेदिक संपूर्ण-प्रणाली दृष्टिकोण का उपयोग करके RA में पैथोलॉजी रिवर्सल की क्षमता का पता लगाया जाता है। प्रेक्षित प्रमुख नैदानिक ​​सुधार: रोग गतिविधि में कमी: रोग गतिविधि स्कोर-28 एरिथ्रोसाइट अवसादन दर (DAS-28 ESR) में उल्लेखनीय कमी आई, जो RA की गंभीरता का आकलन करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण उपाय है। जोड़ों की सूजन/शोथ में कमी: AWS उपचार प्राप्त करने वाले रोगियों में सूजन/शोथ और जोड़ों के क्षय संबंधी रोग दोनों की कुल संख्या में कमी आई। विषाक्त पदार्थों में कमी: शरीर में विषाक्त पदार्थों का मूल्यांकन करने वाले Ama गतिविधि माप (AAM) स्कोर में हस्तक्षेप के बाद महत्त्वपूर्ण कमी देखी गई, जो तंत्रिक/दैहिक शोथ और विषाक्तता में कमी का संकेत देता है। मेटाबोलिक प्रोफाइल में बदलाव: AWS उपचार के बाद लाइसिन, क्रिएटिन आदि जैसे असंतुलित मेटाबोलिक मार्कर स्वस्थ नियंत्रण में देखे गए सामान्य स्तरों की ओर शिफ्ट होने लगे, जो अधिक संतुलित मेटाबोलिक स्थिति में वापसी का संकेत देते हैं। अपनी तरह का पहला साक्ष्य: यह RA के प्रबंधन में AWS की नैदानिक ​​प्रभावकारिता को स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करने वाला पहला अध्ययन है। यह लक्षणों में कमी और मेटाबोलिक सामान्यीकरण के दोहरे लाभ पर प्रकाश डालता है, जो संभावित रूप से रोगियों के लिये दीर्घकालिक सकारात्मक परिणामों की पुष्टि करता है। एकीकृत चिकित्सा (Integrative Medicine) के लिये निहितार्थ: यह अध्ययन पारंपरिक आयुर्वेदिक विधियों को आधुनिक चिकित्सा उपागमों के साथ एकीकृत करने की क्षमता को रेखांकित करता है। इस तरह के इंटीग्रेशन से रोगी के उपचार, विशेषकर RA जैसी दीर्घकालिक स्थितियों के प्रबंधन में बेहतर परिणाम प्राप्त हो सकते हैं।   आयुर्वेदिक संपूर्ण प्रणाली क्या है? परिचय: आयुर्वेद भारत की टाइम टेस्टेड पारंपरिक चिकित्सा प्रणाली है। ‘आयुर्वेद’ शब्द जिसका अर्थ है ‘जीवन का ज्ञान’, दो संस्कृत शब्दों से मिलकर बना है, अर्थात ‘आयु’ जिसका अर्थ है ‘जीवन’ और ‘वेद’ जिसका अर्थ है ‘ज्ञान’ या ‘विज्ञान’। आयुर्वेद चिकित्सा की एक संपूर्ण-शरीर (समग्र) प्रणाली है। इस पद्धति में स्वास्थ्य और कल्याण के सभी पहलुओं के लिये एक प्राकृतिक उपागम अपनाया जाता है। आयुर्वेदिक रणनीति: आयुर्वेद इस विचार पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति में कुछ जीवन शक्तियाँ (दोष) होती हैं और ब्रह्मांड में सब कुछ जुड़ा हुआ है। किसी एक क्षेत्र में असंतुलन दूसरे क्षेत्र को प्रभावित कर सकता है। जब असंतुलन को ठीक नहीं किया जाता है, तो बीमारी बढ़ सकती है और अस्वस्थता हो सकती है। आयुर्वेद में अधिकतर पोषण, जीवनशैली में बदलाव और प्राकृतिक उपचार का प्रयोग किया जाता है। इनका प्रयोग संतुलन और स्वास्थ्य के पुनर्स्थापन/रिवर्सल के लिये किया जाता है। तीन प्रमुख ऊर्जाएँ (दोष): आयुर्वेद तीन आधारभूत प्रकार की ऊर्जा या कार्यात्मक सिद्धांतों की पहचान करता है, जो प्रत्येक जीव और प्रत्येक वस्तु में मौजूद हैं। वात: यह श्वसन, पलक झपकाने, माँसपेशियों की गतिविधि और तरल पदार्थों के परिसंचरण जैसे कार्यों को नियंत्रित करता है। पित्त: यह पाचन, अवशोषण, पोषण और शरीर के तापमान को नियंत्रित करता है। कफ: यह शरीर के संरचनात्मक घटकों को नियंत्रित करता है, जोड़ों में स्नेहकता प्रदान करता है, त्वचा को नमी देता है और प्रतिरक्षा को बनाए रखता है।

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शिक्षक दिवस- 2024

चर्चा में क्यों? हाल ही में भारत ने 5 सितंबर, 2024 को डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन (1888-1975) की जयंती के अवसर पर शिक्षक दिवस मनाया। इस दिन भारत के राष्ट्रपति शिक्षकों को सम्मानित करने, समाज को सशक्त बनाने और शिक्षित करने में उनके योगदान को मान्यता देने के लिये राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार (NTA) प्रदान करते हैं।   डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं? जन्म: उनका जन्म 5 सितंबर, 1888 को तमिलनाडु के तिरुत्तनी में एक तेलुगु परिवार में हुआ था। शैक्षणिक उपलब्धियाँ: उन्होंने कई प्रतिष्ठित पदों पर कार्य किया। वे वर्ष 1921 से 1932 तक कलकत्ता विश्वविद्यालय में किंग जॉर्ज पंचम चेयर, वर्ष 1931 से 1936 तक आंध्र विश्वविद्यालय के द्वितीय कुलपति और 1939 से 1948 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के चौथे कुलपति रहे। इसके अतिरिक्त वर्ष 1936 से 1952 तक वह ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्म और नीतिशास्त्र के प्रोफेसर थे। राजनीतिक करियर: वे भारत के प्रथम उपराष्ट्रपति (वर्ष 1952-62) और बाद में भारत के द्वितीय राष्ट्रपति (वर्ष 1962-67) बने। दार्शनिक: दार्शनिक क्षेत्र में व्यापक रूप से उन्हें भारत और पश्चिम के बीच एक ‘सेतु-निर्माता’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने हिंदू धर्म का बचाव उस “अज्ञानी पश्चिमी आलोचना” के विरुद्ध किया, जिससे वैश्विक स्तर पर धर्म की अधिक सूक्ष्म समझ स्थापित करने में मदद मिली। सम्मान: वर्ष 1954 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया। वर्ष 1931 में उनकी उल्लेखनीय शिक्षा के लिये उन्हें ब्रिटेन के पूर्व राजा किंग जॉर्ज पंचम द्वारा नाइटहुड की उपाधि से सम्मानित किया गया। राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार क्या है? NTA के बारे में: राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार (National Teachers’ Award- NTA) स्थापना शिक्षकों के अद्वितीय योगदान का उत्सव मनाने और उन्हें सम्मानित करने के लिये की गई थी, जिन्होंने शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार किया है और छात्रों के जीवन को समृद्ध बनाया है। इसमें प्रमाण-पत्र, 50,000 रुपए का नकद पुरस्कार और एक रजत पदक दिया जाता है। यह शिक्षा मंत्रालय द्वारा दिया जाता है। वर्ष 2024 में 82 शिक्षकों का चयन NTA के लिये किया गया था। NTA के लिये शिक्षकों की पात्रता: मान्यता प्राप्त प्राथमिक/मध्य/उच्च/उच्चतर माध्यमिक विद्यालयों में कार्यरत स्कूल शिक्षक और स्कूल प्रमुख चयन हेतु पात्र हैं। उदाहरणतः राज्य सरकार/संघ शासित प्रदेश प्रशासन द्वारा संचालित स्कूल, CBSE से संबद्ध स्कूल आदि। केवल न्यूनतम दस वर्ष की सेवा वाले नियमित शिक्षक और स्कूल प्रमुख ही पात्र हैं। NTA के लिये अयोग्यता: शिक्षक/प्रधानाध्यापक को निजी ट्यूशन उपलब्ध कराने में शामिल नहीं होना चाहिये। संविदा शिक्षक और शिक्षा मित्र पात्र नहीं हैं। शैक्षिक प्रशासक, शिक्षा निरीक्षक और प्रशिक्षण संस्थानों के कर्मचारी इन पुरस्कारों के लिये पात्र नहीं हैं। मूल्यांकन मानदंड: शिक्षकों का मूल्यांकन, मूल्यांकन मैट्रिक्स के आधार पर किया जाता है, जिसमें मूल्यांकन के लिये दो प्रकार के मानदंड होते हैं। वस्तुनिष्ठ मानदंड: इसके अंतर्गत शिक्षकों को प्रत्येक वस्तुनिष्ठ मानदंड के लिये अंक दिये जाते हैं। इसे 100 में से 10 अंक दिये जाते हैं। प्रदर्शन के आधार पर मानदंड: इसके अंतर्गत शिक्षकों को प्रदर्शन के आधार पर अंक दिये जाते हैं, जैसे अधिगम के परिणामों को बेहतर बनाने के लिये पहल, किये गए नए प्रयोग आदि। इन मानदंडों को 100 में से 90 अंक दिये जाते हैं।

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समुद्र प्रताप का प्रक्षेपण

हाल ही में गोवा में पहला स्वदेश निर्मित प्रदूषण नियंत्रण पोत समुद्र प्रताप लॉन्च किया गया। इस पोत का निर्माण गोवा शिपयार्ड लिमिटेड (GSL) द्वारा भारतीय तटरक्षक बल (ICG) के लिये किया गया है। यह पहली बार है कि इन पोतों को स्वदेशी रूप से डिज़ाइन और निर्मित किया जा रहा है। यह पोत देश के समुद्री तट पर तेल रिसाव की घटनाओं का पता लगाने और उन्हें रोकने में सहायता करेगा। तेल रिसाव: तेल रिसाव मानवीय गतिविधियों के कारण पर्यावरण, विशेषकर समुद्री क्षेत्रों में तरल पेट्रोलियम हाइड्रोकार्बन का रिसाव है। तेल रिसाव का कारण टैंकरों, अपतटीय प्लेटफार्मों, ड्रिलिंग रिगों या कुओं से कच्चे तेल का रिसाव हो सकता है। समुद्र की सतह पर तेल सूर्य के प्रकाश को अवरुद्ध करके और घुलित ऑक्सीजन के स्तर को कम करके जलीय जीवन को नुकसान पहुँचाता है। मेक्सिको की खाड़ी में डीपवाटर होराइज़न तेल रिसाव (2010) को इतिहास का सबसे बड़ा और सबसे प्रसिद्ध तेल रिसाव माना जाता है। ऑयलज़ैपिंग तेल रिसाव से छुटकारा पाने के लिये बैक्टीरिया का उपयोग करने की नई तकनीक ह पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो स्थापना दिवस हाल ही में पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो (BPR&D) ने नई दिल्ली में अपना 54वाँ स्थापना दिवस मनाया, जिसमें आपराधिक कानून और पुलिस आधुनिकीकरण में महत्त्वपूर्ण विकास पर प्रकाश डाला गया। इस कार्यक्रम में नए आपराधिक कानूनों पर प्रकाश डाला गया। ये कानून पीड़ित-केंद्रित हैं और इनका उद्देश्य सज़ा देने के बजाय न्याय प्रदान करना है। इस कार्यक्रम में वर्ष 2023 और वर्ष 2024 के लिये विशिष्ट सेवा हेतु राष्ट्रपति पदक (PSM) तथा सराहनीय सेवा के लिये राष्ट्रपति पदक (MSM) के प्राप्तकर्ताओं को सम्मानित किया गया। BPR&D की स्थापना 28 अगस्त, 1970 को गृह मंत्रालय के तहत की गई थी, जिसका उद्देश्य वर्ष 1966 में स्थापित तत्कालीन मौजूदा पुलिस अनुसंधान और सलाहकार परिषद को एक नई दिशा प्रदान करना था। इसका उद्देश्य पुलिस संबंधी मुद्दों को हल करना, व्यवस्थित अध्ययनों को बढ़ावा देना और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी को पुलिसिंग विधियों में एकीकृत करना है। शुरू में इसमें दो प्रभाग शामिल थे: अनुसंधान, सांख्यिकी और प्रकाशन तथा विकास। 1973 में पुलिस दक्षताओं को बढ़ाने के लिये प्रशिक्षण प्रभाग को जोड़ा गया, इसके बाद 1983 में फोरेंसिक विज्ञान निदेशालय की स्थापना की गई तथा 1995 में सुधारात्मक प्रशासन को शामिल किया गया। इस ब्यूरो का नेतृत्व महानिदेशक स्तर के भारतीय पुलिस सेवा अधिकारी करते हैं, जिनकी सहायता अतिरिक्त महानिदेशक करते हैं।. BPR&D का विशेष परियोजना प्रभाग मानव तस्करी विरोधी, लैंगिक चिंताओं और अल्पसंख्यक तथा एससी/एसटी समुदायों से संबंधित मामलों जैसे उभरते मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों को संबोधित करता है। BPR&D प्रकाशन: भारतीय पुलिस जर्नल, पुलिस संगठनों पर डेटा और सजग भारत एवं सतर्क भारत पत्रिका।

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भारत-आसियान: साझेदारी में विकास

भारतीय प्रधानमंत्री की आगामी सिंगापुर यात्रा भारत-सिंगापुर साझेदारी के विकास में एक महत्त्वपूर्ण क्षण है। भारत और सिंगापुर लगभग आधा दर्जन समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाले हैं, जिसमें सेमीकंडक्टर पारितंत्र के निर्माण पर एक महत्त्वपूर्ण समझौता भी शामिल है। हाल ही में भारत-सिंगापुर मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन के दौरान चिह्नित किये गए नए क्षेत्रों या ‘न्यू एंकर्स’ (new anchors) पर आगे बढ़ते हुए दोनों देशों का द्विपक्षीय संबंध एक बड़ी छलांग के लिये तैयार है। आसियान (ASEAN) में भारत के सबसे बड़े व्यापार भागीदार के रूप में और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के एक प्रमुख स्रोत के रूप में सिंगापुर की स्थिति इस संबंध के आर्थिक महत्त्व को रेखांकित करती है। सिंगापुर के साथ भारत की संलग्नता आसियान के साथ अपने व्यापक संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। चूँकि भारत अपनी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को गहन करना चाहता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है, एक प्रमुख आसियान सदस्य के रूप में सिंगापुर के साथ संबंधों को बढ़ाना रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है।   भारत के लिये आसियान का क्या महत्त्व है? ऐतिहासिक संदर्भ और साझेदारी का स्तर: वर्ष 1992: भारत आसियान का ‘क्षेत्रीय वार्ता साझेदार’ बना, जिससे औपचारिक सहभागिता की शुरुआत हुई। वर्ष 1995: भारत को ‘वार्ता साझेदार’ के स्तर पर पदोन्नत किया गया, जहाँ विदेश मंत्री स्तर तक वार्ता की वृद्धि हुई। वर्ष 2002: संबंधों को शिखर सम्मेलन स्तर तक उन्नत किया गया और पहला शिखर सम्मेलन (2002) आयोजित किया गया। वर्ष 2012: नई दिल्ली में आयोजित 20-वर्षीय स्मारक शिखर सम्मेलन (Commemorative Summit) में वार्ता साझेदारी को रणनीतिक साझेदारी के रूप में उन्नत किया गया। वर्ष 2018: 25-वर्षीय स्मारक शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और आसियान समुद्री क्षेत्र में सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सहमत हुए। वर्ष 2022: आसियान-भारत संबंधों की 30वीं वर्षगाँठ मनाई गई, जिसे आसियान-भारत मैत्री वर्ष के रूप में नामित किया गया। इसका समापन रणनीतिक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत करने के रूप में हुआ। आर्थिक महाशक्ति – दक्षिण-पूर्व एशियाई बाज़ारों का प्रवेश-द्वार: आसियान भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक ब्लॉक का प्रतिनिधित्व करता है, जो 3.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद के साथ 650 मिलियन से अधिक लोगों के बाज़ार तक पहुँच प्रदान करता है। आसियान-भारत मुक्त व्यापार क्षेत्र ने वर्ष 2021-2022 में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 110.39 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया है। आसियान भारत के प्रमुख व्यापार साझेदारों में से एक है, जो भारत के वैश्विक व्यापार में 11% हिस्सेदारी रखता है। सिंगापुर आसियान में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और विश्व भर में छठा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह 11.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ भारत के लिये FDI का सबसे बड़ा स्रोत था। रणनीतिक प्रतिसंतुलन: बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के संदर्भ में, विशेष रूप से चीन के साथ, आसियान भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में कार्य करता है। भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और आसियान का ‘आउटलुक ऑन दी इंडो-पैसिफिक’ क्षेत्रीय स्थिरता के लिये पूरक दृष्टिकोण साझा करते हैं। वर्ष 2022 में भारत-आसियान संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक उन्नत करना इस संरेखण को रेखांकित करता है। पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit) और आसियान क्षेत्रीय मंच (ASEAN Regional Forum) जैसे मंचों पर आसियान के साथ भारत की सहभागिता, क्षेत्र में एक समग्र सुरक्षा प्रदाता के रूप में अपनी भूमिका को मुखर करने, चीन के प्रभाव का मुक़ाबला करने और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये एक आधार प्रदान करती है। संपर्क उत्प्रेरक: आसियान भारत के उन्नत क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के दृष्टिकोण में केंद्रीय स्थिति रखता है। भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट जैसी परियोजनाएँ, देरी के बावजूद, दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भौतिक एकीकरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती हैं। डिजिटल कनेक्टिविटी संबंधी पहलें, जिसमें 5G और साइबर सुरक्षा सहयोग पर हाल में केंद्रित ध्यान भी शामिल है, इन संबंधों को और मज़बूत बनाती है। ये कनेक्टिविटी परियोजनाएँ केवल आधारभूत संरचना होने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक एकीकृत आर्थिक एवं सांस्कृतिक अवसर के निर्माण की दिशा में रणनीतिक निवेश भी हैं जो इस क्षेत्र में चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) को टक्कर दे सकते हैं। सांस्कृतिक संगम: भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच गहरे ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध भारत को ‘सॉफ्ट पावर’ कूटनीति के लिये एक अद्वितीय आधार प्रदान करते हैं। आसियान-भारत आर्टिस्ट कैंप और संगीत महोत्सव जैसी पहलें इस साझा विरासत का उत्सव मनाती हैं। वर्ष 2022 में आसियान-भारत विश्वविद्यालय नेटवर्क की स्थापना से शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को और मज़बूती मिलेगी। ये सांस्कृतिक संबंध ऐसे युग में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं जहाँ सार्वजनिक कूटनीति अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे भारत को इस क्षेत्र में सद्भावना और प्रभाव के प्रसार में मदद मिलती है। प्रौद्योगिकीय तालमेल: आसियान की तेज़ी से डिजिटल होती अर्थव्यवस्थाएँ भारत के IT क्षेत्र और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती हैं। पहले आसियान-भारत स्टार्ट-अप फेस्टिवल ने फिनटेक, ई-कॉमर्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं को प्रदर्शित किया है। आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास कोष को हाल ही में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता दी गई है, जो अत्याधुनिक क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान को समर्थन प्रदान करेगा। समुद्री सुरक्षा सहयोग: आसियान भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति में, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में, एक प्रमुख भागीदार है। आसियान क्षेत्रीय मंच और विस्तारित आसियान समुद्री मंच जैसे निकायों में समुद्री डकैती, अवैध मत्स्यग्रहण आपदा प्रबंधन जैसे मुद्दों पर सहयोग भारत के ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) सिद्धांत के अनुरूप है। पहला आसियान-भारत समुद्री अभ्यास मई 2023 में दक्षिण चीन सागर में आयोजित किया गया। ऊर्जा सुरक्षा और संवहनीयता: आसियान के ऊर्जा संपन्न सदस्य देश भारत के लिये अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के अवसर प्रदान करते हैं, जो इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है। इसके साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा (विशेष रूप से सौर ऊर्जा) के क्षेत्र में भारत की विशेषज्ञता आसियान के संवहनीयता लक्ष्यों के अनुरूप है। हाल ही में नवीकरणीय ऊर्जा पर आयोजित आसियान-भारत उच्चस्तरीय सम्मेलन इस तालमेल

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भारत में जैव प्रौद्योगिकी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये BioE3 (Biotechnology for Economy, Environment and Employment) प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी है। जबकि भारत ने वैक्सीन विकास जैसे क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, देश द्वारा अभी भी जैव प्रौद्योगिकी की व्यापक क्षमता का पूरी तरह से लाभ उठाना शेष है। BioE3 नीति छह कार्यक्षेत्रों पर केंद्रित है, जिसमें जैव-आधारित रसायन, फंक्शनल फूड, परिशुद्ध जैव चिकित्सा, जलवायु-प्रत्यास्थी कृषि, कार्बन कैप्चर और समुद्री/अंतरिक्ष अनुसंधान शामिल हैं। अच्छी मंशा से प्रस्तुत की गई इस नीति की सफलता केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से दीर्घकालिक वित्तीय एवं अवसंरचनात्मक समर्थन पर निर्भर करेगी। BioE3 नीति एक आशाजनक कदम है, लेकिन दीर्घकालिक पूंजी निवेश के लिये अनुकूल माहौल बनाना और केंद्र एवं राज्य सरकारों के बीच सहयोग को बढ़ावा देना आवश्यक है। इन अनुकूल परिस्थितियों के बिना नीति का प्रभाव सीमित हो सकता है। भारत को जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र में और अधिक प्रगति करने की आवश्यकता है ताकि इसकी क्षमता को पूरी तरह से साकार किया जा सके तथा इस क्षेत्र में वैश्विक प्रगति में योगदान किया जा सके। भारत के जैव प्रौद्योगिकी क्षेत्र की वर्तमान स्थिति : स्थिति: भारत विश्व भर में जैव प्रौद्योगिकी के लिये शीर्ष 12 गंतव्यों में से एक है। यह एशिया-प्रशांत क्षेत्र में जैव प्रौद्योगिकी के लिये तीसरा सबसे बड़ा गंतव्य है। भारत की जैव अर्थव्यवस्था वर्ष 2024 में अनुमानित 130 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच जाएगी। जैव प्रौद्योगिकी को ‘सनराइज़’ क्षेत्र के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। भारत वैश्विक जैव प्रौद्योगिकी बाज़ार में लगभग 3% हिस्सेदारी के साथ नवोन्मेषी और वहनीय स्वास्थ्य देखभाल समाधान प्रदान करने के एक प्रमुख केंद्र के रूप में उभर रहा है। भारत में जैव प्रौद्योगिकी श्रेणियाँ बायो-फार्मास्युटिकल्स: भारत निम्न-लागतपूर्ण दवाओं और टीकों का अग्रणी वैश्विक आपूर्तिकर्ता है। यह बायोसिमिलर्स (biosimilars) के क्षेत्र में भी अग्रणी है, जहाँ घरेलू बाज़ार में सबसे अधिक संख्या में बायोसिमिलर्स को मंज़ूरी दी गई है। जैव-कृषि (Bio-Agriculture): लगभग 55% भारतीय भूमि कृषि के लिये समर्पित है और भारत विश्व में जैविक कृषि भूमि का 5वाँ सबसे बड़ा क्षेत्र रखता है। जैव-कृषि क्षेत्र में वर्ष 2025 तक जैव अर्थव्यवस्था में अपने योगदान को लगभग दोगुना कर 10.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की क्षमता है। जैव-औद्योगिक (Bio-Industrial): जैव प्रौद्योगिकी देश भर में औद्योगिक प्रक्रियाओं, विनिर्माण और अपशिष्ट निपटान में परिवर्तन ला रही है। जैव आईटी और जैव सेवाएँ (Bio IT & BioServices): भारत में अनुबंध विनिर्माण, अनुसंधान और नैदानिक परीक्षणों की प्रबल क्षमताएँ मौजूद हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका के बाहर भारत में ही सबसे अधिक संख्या में अमेरिका के FDA द्वारा अनुमोदित संयंत्र संचालित हैं। सरकारी पहलें: ‘ग्रीनफील्ड फार्मा’ और चिकित्सा उपकरणों के विनिर्माण के लिये स्वचालित मार्ग से 100% FDI की अनुमति है। FDI नीतियाँ अनुकूल हैं, जिनमें ‘ब्राउनफील्ड फार्मा’ और चिकित्सा उपकरणों के लिये विशिष्ट मार्ग उपलब्ध हैं। राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति 2021-25 का उद्देश्य भारत को जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान, नवाचार, ट्रांसलेशन, उद्यमिता और औद्योगिक विकास में वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाना तथा वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर की जैव अर्थव्यवस्था में परिणत करना है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने किसानों को वैज्ञानिकों एवं संस्थानों से जोड़ने के लिये 51 बायोटेक-किसान केंद्रों (Biotech-KISAN hubs) को वित्तपोषित किया है, जो सतत कृषि पद्धतियों, मृदा स्वास्थ्य, सिंचाई और नई कृषि प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित करेंगे। केंद्रीय बजट 2023-24 के अंतर्गत सरकार ने गोबरधन योजना (GOBARdhan scheme) के तहत 10,000 करोड़ रुपए के कुल निवेश के साथ 500 नए ‘अपशिष्ट से धन’ (waste to wealth) संयंत्रों की स्थापना की घोषणा की है। जीनोमइंडिया परियोजना GenomeIndia Project) का उद्देश्य प्रतिनिधि भारतीय जनसंख्या के जीनोम को अनुक्रमित करना और उसका विश्लेषण करना है, ताकि आनुवंशिक विविधता और सार्वजनिक स्वास्थ्य पर इसके प्रभाव को समझा जा सके। भारत सरकार के जैव प्रौद्योगिकी विभाग (DBT) ने सितंबर 2007 में प्रथम राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगिकी विकास रणनीति की घोषणा की थी।   भारत के लिये जैव प्रौद्योगिकी का क्या महत्त्व है? आर्थिक महाशक्ति – बायोटेक में व्यापक संभावना: भारत का बायोटेक उद्योग विस्फोटक वृद्धि के लिये तैयार है, जहाँ अनुमान है कि यह वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच सकता है। बायोकॉन (Biocon) जैसी सफलता की कहानियाँ भारतीय बायोटेक कंपनियों की वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धा करने की क्षमता को प्रदर्शित करती हैं। BioE3 और जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान सहायता परिषद (BIRAC) जैसी पहलों के माध्यम से सरकार का लक्ष्य इस विकास को गति प्रदान करना है, जिससे संभावित रूप से लाखों उच्च-कुशल रोज़गार अवसर उत्पन्न होंगे और भारत के सकल घरेलू उत्पाद में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलेगा। वैक्सीन कौशल: वैक्सीन उत्पादन में भारत की दक्षता ने इसे ‘विश्व के दवाख़ाने’ (pharmacy of the world) के रूप में प्रतिष्ठित किया है। भारत वैश्विक वैक्सीन उत्पादन में 60% हिस्सेदारी रखता है, जहाँ डिप्थीरिया, टेटनस और पर्टुसिस (DPT) के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन की मांग की 40-70% की पूर्ति करता है। कोविड-19 महामारी के दौरान, भारत का सीरम इंस्टीट्यूट विश्व के सबसे बड़े वैक्सीन विनिर्माता के रूप में सामने आया। यह क्षमता न केवल भारत की स्वास्थ्य सुरक्षा सुनिश्चित करती है, बल्कि वैश्विक स्वास्थ्य पहलों में उसे एक महत्त्वपूर्ण भागीदार के रूप में स्थापित करती है। इससे भारत के ‘जीनोमइंडिया परियोजनाऔर कूटनीतिक प्रभाव की वृद्धि होती है। कृषि क्रांति 2.0 (Agricultural Revolution 2.0): जैव प्रौद्योगिकी भारत की गंभीर कृषि चुनौतियों का समाधान प्रस्तुत करती है, जिसमें जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों से लेकर उन्नत पोषण सामग्री तक व्यापक क्षेत्र शामिल हैं। भारत की पहली आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल बीटी कपास (Bt cotton) अब कपास की खेती में 95% योगदान देती है, जिससे उपज और किसानों की आय में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सूखा-प्रतिरोधी चावल की किस्मों और ‘गोल्डन राइस’ जैसी जैव-प्रबलित/बायो-फोर्टिफाइड फसलों पर चल रहे शोध से भारत की बढ़ती आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है पर्यावरण सुरक्षा: जैव प्रौद्योगिकी भारत की पर्यावरणीय चुनौतियों के लिये आशाजनक समाधान प्रस्तुत करती है। प्रदूषित स्थलों की सफाई के लिये बायो-रेमेडियन तकनीकों (Bioremediation techniques) का विकास किया जा रहा है, जहाँ मुंबई के वर्सोवा समुद्र तट की सफाई जैसी सफल पायलट परियोजनाएँ क्रियान्वित की

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DICGC द्वारा वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूली

चर्चा में क्यों ? भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) की सहायक कंपनी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (DICGC) अपने प्रीमियम ढाँचे के लिये जाँच के दायरे में है, जो वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूलती है, जबकि सहकारी बैंकों को अनुपातहीन रूप से लाभ पहुँचाती है। इससे वर्तमान  प्रणाली की निष्पक्षता और दक्षता के बारे में चिंताएँ उत्पन्न होती हैं, जिससे विभिन्न बैंकिंग संस्थानों के रिस्क प्रोफाइल के आधार पर प्रीमियम के पुनर्मूल्यांकन की मांग उठती है। वाणिज्यिक बैंकों से डिपॉजिट इंश्योरेंस के लिये अधिक शुल्क कैसे वसूला जा रहा है? अनुपातहीन प्रीमियम बोझ: DICGC वाणिज्यिक बैंकों से 94% प्रीमियम एकत्र करता है, जो निवल दावों (net claims) का 1.3% है, जबकि सहकारी बैंक प्रीमियम का 6% योगदान देते हैं और निवल दावों का 98.7% दावा करते हैं। वर्ष 1962 से वाणिज्यिक बैंकों ने 295.85 करोड़ रुपए के सकल दावे दायर किये हैं, जिसमें कुल निवल दावे 138.31 करोड़ रुपए हैं। इसके विपरीत सहकारी बैंकों ने 14,735.25 करोड़ रुपए  के सकल दावे दायर किये हैं, जिसमें निवल दावे 10,133 करोड़ रुपए हैं। इसका अर्थ  है कि अच्छी तरह से प्रबंधित वाणिज्यिक बैंक सहकारी बैंकों से जुड़े उच्च जोखिमों को प्रभावी ढंग से सब्सिडी दे रहे हैं, जिसके लिये दावों के एक महत्त्वपूर्ण हिस्से की आवश्यकता होती है। वाणिज्यिक बैंकों से अधिक शुल्क वसूलने के निहितार्थ: उच्च अनुपालन लागत: वाणिज्यिक बैंकों को जोखिम प्रोफाइल की परवाह किये बिना प्रति 100 रुपए बीमाकृत 12 पैसे की मानक प्रीमियम दर के कारण उच्च अनुपालन लागत का सामना करना पड़ता है। यह बैंकों की परिचालन दक्षता और लाभप्रदता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, जिससे अंततः ऋण प्रदान करने एवं उपभोक्ताओं को सफलतापूर्वक सेवा प्रदान करने की उनकी क्षमता प्रभावित होती है। असमान जोखिम मूल्यांकन: वाणिज्यिक बैंक, जिनका जोखिम प्रोफाइल आम तौर पर कम होता है, उन्हें उच्च प्रीमियम के माध्यम से दंडित किया जाता है, जो जोखिम मूल्यांकन के सिद्धांतों को कमज़ोर करता है, जिसे बीमा मूल्य निर्धारण का मार्गदर्शन करना चाहिए। वित्तीय स्थिरता पर प्रभाव: उच्च प्रीमियम वाणिज्यिक बैंकों के लिये वित्तीय स्थिरता को कम कर सकता है, क्योंकि उन्हें इन लागतों को जमाकर्ताओं और उधारकर्ताओं पर डालना पड़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप ऋणों के लिये उच्च ब्याज दरें और जमाकर्ताओं के लिये कम रिटर्न हो सकता है, जिससे समग्र बैंकिंग पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होता है। खराब प्रबंधन पद्धतियों को प्रोत्साहन: सहकारी बैंकों की विफलताओं से जुड़ी लागतों को वाणिज्यिक बैंकों को वहन करने की आवश्यकता होने से, वर्तमान संरचना अनजाने में सहकारी बैंकों के भीतर खराब प्रबंधन पद्धतियों को प्रोत्साहित कर सकती है, क्योंकि चूक के परिणाम अधिक स्थिर संस्थानों पर स्थानांतरित हो जाते हैं। DICGC के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं? परिचय: यह वर्ष 1978 में संसद द्वारा डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन एक्ट, 1961 के पारित होने के बाद जमा बीमा निगम (Deposit Insurance Corporation- DIC) तथा क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (Credit Guarantee Corporation of India- CGCI) के विलय के बाद अस्तित्व में आया। यह भारत में बैंकों के लिये जमा बीमा और ऋण गारंटी के रूप में कार्य करता है। यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा संचालित और पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है। DICGC द्वारा प्रबंधित निधियाँ: जमा बीमा निधि: यह निधि बैंक के जमाकर्त्ताओं को उस स्थिति में बीमा प्रदान करती है, जब बैंक वित्तीय रूप से विफल हो जाता है और उसके पास जमाकर्त्ताओं को भुगतान करने के लिये धन नहीं होता है तथा उसे परिसमापन की स्थिति में जाना पड़ता है। इसका वित्तपोषण बैंकों से प्राप्त प्रीमियम द्वारा किया जाता है। ऋण गारंटी निधि: यह वह गारंटी है, जो प्रायः ऋणदाता को विशिष्ट उपाय उपलब्ध कराती है, यदि देनदार उसका ऋण वापस नहीं करता है। सामान्य निधि: यह DICGC के परिचालन व्यय को कवर करती है, जो इसके परिचालन से प्राप्त अधिशेष से वित्तपोषित होती है। DICGC की जमा बीमा योजना क्या है? जमा बीमा की सीमा: वर्तमान में एक जमाकर्त्ता बीमा कवर के रूप में प्रति खाता अधिकतम 5 लाख रुपए का दावा कर सकता है। इस राशि को ‘जमा बीमा’ कहा जाता है। प्रति जमाकर्त्ता 5 लाख रुपए का कवर DICGC द्वारा प्रदान किया जाता है। यदि बैंक डूब जाता है तो खाते में 5 लाख रुपए से अधिक राशि रखने वाले जमाकर्त्ताओं के पास धन वापस पाने के लिये कोई कानूनी उपाय नहीं है। बीमा के लिये प्रीमियम राशि प्रति 100 रुपए जमा पर 10 पैसे से बढ़ाकर 12 पैसे कर दी गई है तथा 15 पैसे की सीमा तय की गई है। इस बीमा के लिये प्रीमियम का भुगतान बैंकों द्वारा DICGC को किया जाता है, तथा इसे जमाकर्त्ताओं को नहीं दिया जाता। बीमित बैंक प्रत्येक वित्तीय छमाही के आरंभ से 2 महीने के भीतर निगम को अग्रिम बीमा प्रीमियम का भुगतान अर्द्ध-वार्षिक आधार पर करते हैं, जो पिछली छमाही के अंत में उनकी जमाराशियों पर आधारित होता है। कवरेज: क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, स्थानीय क्षेत्र के बैंकों, भारत में शाखाओं वाले विदेशी बैंकों और सहकारी बैंकों सहित सभी बैंकों को DICGC के साथ जमा बीमा कवर लेना अनिवार्य है। प्राथमिक सहकारी समितियों का DICGC द्वारा बीमा नहीं किया जाता है। कवर की गई जमा राशियों के प्रकार: DICGC निम्नलिखित प्रकार की जमाराशियों को छोड़कर सभी बैंक जमाओं, जैसे बचत, सावधि, चालू, आवर्ती आदि का बीमा करता है: विदेशी सरकारों की जमाराशियाँ। केंद्र/राज्य सरकारों की जमाराशियाँ। अंतर-बैंक जमा। राज्य भूमि विकास बैंकों की राज्य सहकारी बैंकों में जमाराशियाँ। भारत के बाहर प्राप्त कोई भी जमा राशि। कोई भी राशि जिसे RBI की पिछली मंज़ूरी के साथ निगम द्वारा विशेष रूप से छूट दी गई है। जमा बीमा की आवश्यकता: हाल ही में पंजाब एवं महाराष्ट्र सहकारी (PMC) बैंक, यस बैंक और लक्ष्मी विलास बैंक जैसे मामलों में जमाकर्त्ताओं को बैंकों में अपने धन तक तत्काल पहुँच प्राप्त करने में होने वाली परेशानियों ने जमा बीमा के विषय पर प्रकाश डाला है। DICGC द्वारा जमा बीमा प्रीमियम का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता क्यों है? प्रस्ताव: वाणिज्यिक बैंकों के लिये प्रीमियम को 12 पैसे से घटाकर 3 पैसे प्रति 100 रुपए बीमाकृत करने का प्रस्ताव किया गया है, जिससे इन बैंकों को वित्त वर्ष 2025-26 में लगभग 20,000 करोड़ रुपए की राहत मिल सकती है।    इसके विपरीत सहकारी बैंकों

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विश्व के प्रवासियों की धार्मिक संरचना पर रिपोर्ट

  चर्चा में क्यों ? हाल ही में प्यू रिसर्च सेंटर ने संयुक्त राष्ट्र और 270 जनगणनाओं एवं सर्वेक्षणों के डेटा के आधार पर विश्व के प्रवासियों की धार्मिक संरचना(The Religious Composition of the World’s Migrants) शीर्षक से एक रिपोर्ट प्रकाशित की वर्ष 2020 में 280 मिलियन से अधिक व्यक्ति या विश्व की आबादी का 3.6%, अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों के रूप में रह रहे थे धर्म, प्रवासन में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो मातृभूमि से प्रस्थान और गंतव्य देश में स्वागत दोनों को प्रभावित करता है। रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं? हिंदू प्रवासियों के बीच रुझान: वर्ष 2020 में भारत हिंदू प्रवासियों (बाहरी प्रवासियों) और अप्रवासियों (अंदर-प्रवासियों) दोनों के लिये शीर्ष देश के रूप में उभरा। भारत में जन्मे 7.6 मिलियन हिंदू विदेश में रह रहे थे। अन्य देशों में जन्मे लगभग 3 मिलियन हिंदू भारत में रह रहे थे। ईसाइयों के बीच रुझान: वैश्विक प्रवासी आबादी में सबसे बड़ा हिस्सा ईसाईयों का है, जिनकी संख्या 47% है। भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के बीच प्रवास के रुझान: भारतीय प्रवासियों में धार्मिक अल्पसंख्यकों की संख्या अत्यधिक है। भारतीय प्रवासियों में ईसाई समुदाय की हिस्सेदारी 16% है, लेकिन भारत की आबादी में उनकी हिस्सेदारी केवल 2% है। भारत में जन्मे सभी प्रवासियों में से 33% मुसलमान हैं, लेकिन भारत की आबादी में उनकी हिस्सेदारी केवल 15% है। भारत मुस्लिम प्रवासियों का दूसरा सबसे बड़ा स्रोत है, क्योंकि 6 मिलियन भारतीय मुसलमान विदेशों में रहते हैं- मुख्य रूप से संयुक्त अरब अमीरात (1.8 मिलियन), सऊदी अरब (1.3 मिलियन) और ओमान (720,000)। GCC देशों में रुझान: खाड़ी सहयोग परिषद (GCC) देशों में प्रवासी जनसंख्या वर्ष 1990 के बाद से 277% बढ़ी है। GCC प्रवासियों में अधिकांश मुसलमान (75%) हैं, जबकि हिंदू और ईसाई क्रमशः 11% व 14% हैं। GCC देशों (बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब, यूएई) में वर्ष 2020 तक 9.9 मिलियन भारतीय प्रवासी हैं। वैश्विक प्रवासन के रुझान: वर्ष 1990 से 2020 तक अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों की संख्या में 83% की वृद्धि हुई है, जो वैश्विक जनसंख्या वृद्धि 47% से काफी अधिक है। प्रवासी औसतन 2,200 मील की दूरी तय करते हैं। धार्मिक संरेखण और प्रवासन पैटर्न: प्रवासी अक्सर उन देशों में स्थानांतरित होते हैं, जहाँ उनका धर्म मूल देश की आबादी के धर्म के साथ संरेखित होता है। यह प्रवृत्ति सांस्कृतिक और धार्मिक परिचिय से प्रेरित हो सकती है, जो गंतव्य के चयन तथा एकीकरण प्रक्रिया दोनों को प्रभावित करती है।   हिंदू प्रवासन पैटर्न और रुझान क्या है? वैश्विक स्तर पर कम प्रतिनिधित्व: हिंदू प्रवासी सभी अंतर्राष्ट्रीय प्रवासियों का एक छोटा हिस्सा (5%) हैं, जिनमें से वर्ष 2020 तक 13 मिलियन हिंदू अपने जन्म के देश से बाहर रह रहे हैं। यह वैश्विक जनसंख्या में उनके अनुपात (15%) से काफी कम है। तय की गई दूरी: हिंदू प्रवासी अधिक लंबी दूरी की यात्रा करते हैं, जो उनके मूल देश से औसतन 3,100 मील है, जबकि सभी प्रवासियों के लिये वैश्विक औसत 2,200 मील है। यह एशिया में उत्पन्न सभी धार्मिक समूहों के बीच तय की गई सबसे लंबी औसत दूरी है। हिंदू प्रवासियों के गंतव्य क्षेत्र: एशिया-प्रशांत क्षेत्र में हिंदू प्रवासियों की सबसे बड़ी हिस्सेदारी (44%) है, इसके बाद मध्य पूर्व-उत्तरी अफ्रीका (24%) और उत्तरी अमेरिका (22%) का स्थान है। इसका एक छोटा हिस्सा यूरोप (8%) में रहता है तथा लैटिन अमेरिका या उप-सहारा अफ्रीका में बहुत कम लोग रहते हैं।   हिंदू प्रवासियों के मूल क्षेत्र: हिंदू प्रवासियों का विशाल बहुमत (95%) एशिया-प्रशांत क्षेत्र से आता है, विशेष रूप से भारत से जहाँ विश्व के हिंदू प्रवासियों का 57% हिस्सा रहता है तथा वैश्विक हिंदू आबादी का 94% हिस्सा यहीं रहता है। अन्य महत्त्वपूर्ण स्रोतों में बांग्लादेश (हिंदू प्रवासियों का 12%) और नेपाल (11%) शामिल हैं। हिंदू प्रवासियों के लिये भारत एक प्रमुख गंतव्य है, जहाँ सभी हिंदू प्रवासियों का 22% (3 मिलियन) निवास करता है। इसका मुख्य कारण ऐतिहासिक घटनाएँ हैं, विशेषकर वर्ष 1947 में ब्रिटिश भारत का विभाजन और उसके बाद पाकिस्तान तथा बांग्लादेश जैसे अपने नए देशों में उनका उत्पीड़न। हिंदू प्रवास के लिये उल्लेखनीय देश शामिल: भारत से अमेरिका: हिंदुओं के लिये सबसे आम प्रवास मार्ग भारत से अमेरिका है, जहाँ 1.8 मिलियन हिंदू इस मार्ग से जाते हैं। ये प्रवासी अक्सर रोज़गार, उच्च शिक्षा और आय स्तर की तलाश में होते हैं। बांग्लादेश से भारत: दूसरा सबसे आम मार्ग बांग्लादेश से भारत की ओर प्रवास है, जिसमें 1.6 मिलियन हिंदू ऐतिहासिक, सामाजिक और आर्थिक कारकों से प्रेरित होकर इस मार्ग पर आते हैं। प्रवासी समुदाय अपने देश में विकास को कैसे बढ़ावा देते हैं? पर्याप्त वित्तीय प्रवाह: प्रवासी समुदाय धन भेजकर अपने गृह देशों में महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं। वर्ष 2022 में उभरते और विकासशील देशों के प्रवासियों ने 430 बिलियन अमेरिकी डॉलर भेजे, जो इन देशों को अन्य देशों या अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से प्राप्त वित्तीय सहायता से तीन गुना अधिक है। सकल घरेलू उत्पाद पर प्रभाव: कई देशों में सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में धन प्रेषण का एक बड़ा हिस्सा होता है, जैसे कि ताजिकिस्तान में 37%, नेपाल में 30% तथा टोंगा, लाइबेरिया व हैती में लगभग 25 प्रवासी निवेश: प्रवासी प्रायः स्वदेश के व्यवसायों और सरकारी बॉण्ड में निवेश करते हैं, जिससे वित्तीय पूंजी बढ़ती है ज्ञान अंतरण और विशेषज्ञता: प्रवासी विदेश में अर्जित ज्ञान और विशेषज्ञता को अपने देश/स्वदेश में वापस स्थानांतरित करते हैं। यह शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार और बेहतर व्यवसाय तथा शासन पद्धतियों को विकसित करके उत्पादकता को बढ़ा सकता है। ज्ञान अंतराल को समाप्त करना: प्रवासी सदस्य अपने कौशल, वैश्विक संपर्कों और स्थानीय रीति-रिवाजों की समझ का उपयोग स्वदेश के व्यवसायों को चुनौतियों से निपटने, दक्षता में सुधार करने तथा नए बाज़ारों में विस्तार करने में मदद करने के लिये करते हैं। उदाहरण के लिये अमेरिकी प्रौद्योगिकी कंपनियों में भारतीय अधिकारियों ने भारत को आउटसोर्सिंग की सुविधा प्रदान की है।

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भारत में BioE3 नीति और जैव प्रौद्योगिकी

चर्चा में क्यों?  हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जैव प्रौद्योगिकी विभाग के प्रस्ताव ‘उच्च प्रदर्शन जैव विनिर्माण को बढ़ावा देने के लिये अर्थव्यवस्था, पर्यावरण और रोज़गार के लिये जैव प्रौद्योगिकी (BioE3) नीति’ को मंज़ूरी दी। BioE3 नीति के साथ-साथ केंद्रीय मंत्रिमंडल ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की तीन योजनाओं को मिलाकर एक योजना बना दी है, जिसे विज्ञान धारा कहा गया है, जिसका वित्तीय परिव्यय वर्ष 2025-26 तक 10,579 करोड़ रुपए है। BioE3 नीति क्या है? परिचय: BioE3 का उद्देश्य उच्च प्रदर्शन वाले जैव-विनिर्माण को बढ़ावा देना है, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों में जैव-आधारित उत्पादों का उत्पादन शामिल है। यह नीति व्यापक राष्ट्रीय लक्ष्यों के अनुरूप है, जैसे ‘नेट जीरो’ कार्बन अर्थव्यवस्था प्राप्त करना और सर्कुलर बायोइकोनॉमी के माध्यम से सतत् विकास को बढ़ावा देना। उद्देश्य: BioE3 नीति अनुसंधान एवं विकास (R&D) और उद्यमिता में नवाचार पर ज़ोर देती है, बायोमैन्युफैक्चरिंग, Bio-AI हब व बायोफाउंड्रीज की स्थापना करती है, जिसका उद्देश्य भारत के कुशल जैव प्रौद्योगिकी कार्यबल का विस्तार करना है, जो ‘पर्यावरण के लिये जीवनशैली’ कार्यक्रमों के साथ संरेखित है तथा पुनर्योजी जैव अर्थव्यवस्था मॉडल के विकास को लक्षित करता है। BioE3 नीति का उद्देश्य जैव विनिर्माण केंद्रों की स्थापना के माध्यम से विशेष रूप से टियर-II और टियर-III शहरों में महत्त्वपूर्ण रोज़गार सृजन करना है। ये केंद्र स्थानीय बायोमास का उपयोग कर क्षेत्रीय आर्थिक विकास और समतामूलक विकास को बढ़ावा देंगे। नीति में ज़िम्मेदार जैव प्रौद्योगिकी विकास सुनिश्चित करते हुए भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देने के लिये नैतिक जैव सुरक्षा और वैश्विक नियामक संरेखण पर भी ज़ोर दिया गया है। BioE3 नीति की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं जैव-आधारित रसायन और एंज़ाइम: पर्यावरणीय प्रभाव को कम करने के लिये उन्नत जैव-आधारित रसायनों और एंज़ाइमों का विकास। कार्यात्मक खाद्य पदार्थ और स्मार्ट प्रोटीन: पोषण एवं खाद्य सुरक्षा को बढ़ाने के लिये  कार्यात्मक खाद्य पदार्थों और स्मार्ट प्रोटीन में नवाचार। प्रिसिजन बायोथेरेप्यूटिक्स: स्वास्थ्य सेवा परिणामों को बेहतर बनाने के लिये सटीक चिकित्सा और बायोथेरेप्यूटिक्स को आगे बढ़ाना। जलवायु लचीला कृषि: जलवायु परिवर्तन के लिये लचीले कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देना, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना। कार्बन कैप्चर और उपयोग: विभिन्न उद्योगों में कुशल कार्बन कैप्चर और इसके उपयोग के लिये प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना। भविष्य के समुद्री और अंतरिक्ष अनुसंधान: जैव विनिर्माण में नई सीमाओं का पता लगाने के लिये समुद्री और अंतरिक्ष जैव प्रौद्योगिकी में अनुसंधान का विस्तार करना।   विज्ञान धारा योजना क्या है? पृष्ठभूमि: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) देश में विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार गतिविधियों के आयोजन, समन्वय तथा संवर्धन हेतु नोडल विभाग के रूप में कार्य करता है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी से संबंधित तीन प्रमुख केन्द्रीय क्षेत्र योजनाएँ-संस्थागत एवं मानव क्षमता निर्माण, अनुसंधान एवं विकास तथा नवाचार और प्रौद्योगिकी विकास व परिनियोजन, जो DST द्वारा कार्यान्वित थी, को एक एकीकृत योजना ‘विज्ञान धारा’ में विलय कर दिया गया है। उद्देश्य और लक्ष्य: तीनों योजनाओं को एक ही योजना में विलय करने से निधि उपयोग की दक्षता में सुधार होगा और विभिन्न उप-योजनाओं/कार्यक्रमों के बीच समन्वय स्थापित होगा। विज्ञान धारा योजना का उद्देश्य देश में अनुसंधान एवं विकास का विस्तार करना तथा पूर्णकालिक समकक्ष (FTE) शोधकर्त्ताओं की संख्या में वृद्धि करना है। केंद्रित हस्तक्षेप से लिंग समानता प्राप्त करने के लक्ष्य के साथ विज्ञान, प्रौद्योगिकी और नवाचार (STI क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ेगी। विज्ञान धारा के अंतर्गत सभी कार्यक्रम विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के 5-वर्षीय लक्ष्यों के अनुरूप हैं तथा इनका उद्देश्य वर्ष 2047 तक विकसित भारत अर्थात “विकसित भारत 2047” के व्यापक दृष्टिकोण को ध्यान में रखना है। BioE3 नीति को पूरक बनाना: विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संस्थागत बुनियादी ढाँचे को बढ़ाना और महत्त्वपूर्ण मानव संसाधन पूल का विकास करना। बुनियादी अनुसंधान, टिकाऊ ऊर्जा, जल आदि क्षेत्र में उपयोग योग्य अनुसंधान को बढ़ावा देता है। स्कूल से लेकर उद्योग स्तर तक नवाचारों का समर्थन करता है और शिक्षा, सरकार एवं उद्योगों के बीच सहयोग बढ़ाता है। जैव प्रौद्योगिकी क्या है? परिचय: जैव प्रौद्योगिकी एक ऐसा क्षेत्र है, जो जीवविज्ञान को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ता है, सेलुलर और बायोमॉलिक्यूलर प्रक्रियाओं का प्रयोग करके ऐसे उत्पाद एवं प्रौद्योगिकी बनाता है, जो हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं तथा हमारे ग्रह की सुरक्षा करते हैं। लाभ:  स्वास्थ्य सेवा में प्रगति: मेडिकल बायोटेक्नोलॉजी (रेड बायोटेक) उन्नत दवाओं, टीकों और उपचारों के विकास को सक्षम बनाता है, जिसमें व्यक्तिगत चिकित्सा, जीन थेरेपी और लक्षित कैंसर उपचार शामिल हैं। इसके अतिरिक्त जैसा कि कोविड-19 महामारी द्वारा प्रदर्शित किया गया है, यह टीकों के निर्माण को गति देता है। स्टेम सेल अनुसंधान और ऊतक इंजीनियरिंग क्षतिग्रस्त ऊतकों एवं अंगों को पुनर्जीवित करने की क्षमता प्रदान करते हैं, जिससे उन रोगों के उपचार के नए मार्ग खुलते हैं जिन्हें लाइलाज माना जाता था। कृषि सुधार: कृषि जैव प्रौद्योगिकी (ग्रीन बायोटेक) के तहत पादप वर्ग में आनुवंशिक संशोधन और इंजीनियरिंग शामिल है, जो कीटों, बीमारियों एवं अनावृष्टि जैसे पर्यावरणीय तनावों के प्रति अधिक प्रतिरोधी फसल किस्मों का उत्पादन कर सकते हैं, जिससे खाद्य सुरक्षा में सुधार होता है। बायोटेक उन्नत पोषण प्रोफाइल वाली फसलों के विकास की अनुमति देता है, जैसे कि गोल्डन राइस, जो कुपोषण से निपटने के लिये विटामिन A से भरपूर होता है। पर्यावरणीय स्थिरता: जैव प्रौद्योगिकी के तहत तेल रिसाव, भारी धातुओं और प्लास्टिक जैसे प्रदूषकों (बायोरेमेडिएशन) को साफ करने के लिये सूक्ष्मजीवों का प्रयोग किया जाता है, जिससे पारिस्थितिकी तंत्र के पुनर्भरण करने और पर्यावरणीय क्षति को कम करने में मदद मिलती है। औद्योगिक जैव प्रौद्योगिकी (व्हाइट बायोटेक) जैव प्रौद्योगिकी को औद्योगिक प्रक्रियाओं में लागू करती है, जैसे जैव ईंधन, जैव प्लास्टिक और बायोडिग्रेडेबल पदार्थों का उत्पादन। यह पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभाव को कम करने और स्वच्छ उत्पादन विधियों के माध्यम से स्थिरता को बढ़ावा देने पर केंद्रित है। जैव प्रौद्योगिकी नवाचार अपशिष्ट पदार्थों को रीसाइकिल और अपसाइकिल करने में मदद करते हैं, परिपत्र अर्थव्यवस्था में योगदान करते हैं तथा लैंडफिल को कम करते हैं। आर्थिक विकास: जैव प्रौद्योगिकी उद्योग अनुसंधान, विकास और विनिर्माण क्षेत्रों में रोज़गार सृजित करके आर्थिक विकास को गति देता है। जैव प्रौद्योगिकी में निवेश करने वाले देश अत्याधुनिक नवाचारों में अग्रणी हैं, जिससे उन्हें वैश्विक बाज़ारों और व्यापार में प्रतिस्पर्द्धात्मक बढ़त मिलती है। जलवायु परिवर्तन शमन: कुछ जैव प्रौद्योगिकी वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर उसका उपयोग कर सकती हैं,

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राष्ट्रीय खेल दिवस- 2024 और RESET कार्यक्रम

हाल ही में विभिन्न आयोजनों और गतिविधियों के माध्यम से भारत में खेल और शारीरिक स्वस्थता को बढ़ावा देने के लिये मेजर ध्यानचंद की जयंती पर 29 अगस्त, 2024 को राष्ट्रीय खेल दिवस (NSD) 2024 मनाया गया। NSD 2024 पर सरकार ने सेवानिवृत्त खिलाड़ी सशक्तीकरण प्रशिक्षण (Retired Sportsperson Empowerment Training- RESET) कार्यक्रम का शुभारंभ किया। NSD और RESET कार्यक्रम से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं? परिचय: यह भारत में खेल के प्रति उत्साह को चिह्नित करने वाला एक विशेष अवसर है।  इसका उद्देश्य सभी आयु वर्ग के व्यक्तियों को शारीरिक गतिविधियों में भाग लेने हेतु प्रेरित करना, खेल संस्कृति को बढ़ावा देना और एथलीटों की उपलब्धियों का सम्मान करना है। राष्ट्रीय खेल दिवस का महत्त्व: राष्ट्र के गौरव और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एथलीटों के योगदान का सम्मान करते हुए यह दिवस उनकी उपलब्धियों को मान्यता प्रदान करता है। सरकार इस दिवस पर विभिन्न खेल योजनाओं का शुभारंभ करती है, जैसे कि वर्ष 2018 में खेलो इंडिया अभियान की शुरुआत की गई थी। भारत के राष्ट्रपति इस दिन प्रतिष्ठित खेल पुरस्कार प्रदान करते हैं, जिनमें से एक मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार है। RESET कार्यक्रम: उद्देश्य: सेवानिवृत्त खिलाड़ियों को आवश्यक ज्ञान और कौशल प्रदान करके उन्हें अधिक रोज़गार योग्य बनाना। पात्रता: ऐसे सेवानिवृत्त एथलीट जिनकी आयु 20-50 वर्ष वर्ष के बीच है, जो अंतर्राष्ट्रीय पदक विजेता रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में भाग ले चुके हैं या राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर प्राप्त हैं, RESET कार्यक्रम के तहत आवेदन करने के पात्र हैं। संरचना: यह शैक्षिक योग्यता के आधार पर दो स्तरों पर होगी अर्थात् कक्षा 12वीं और उससे ऊपर तथा कक्षा 11वीं और उससे नीचे। कार्यक्रम को लागू करने वाला अग्रणी संस्थान: लक्ष्मीबाई राष्ट्रीय शारीरिक शिक्षा संस्थान (Lakshmibai National Institute of Physical Education- LNIPE), ग्वालियर। मेजर ध्यानचंद के संबंध में मुख्य तथ्य क्या हैं? मेजर ध्यानचंद भारत के स्वतंत्रता-पूर्व के एक प्रमुख हॉकी खिलाड़ी थे। अपनी स्टिक वर्क और खेल की समझ के कारण वे “हॉकी के जादूगर” और “जादूगर” के नाम से प्रसिद्ध हैं। उन्होंने वर्ष 1928, 1932 और 1936 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत की पहली बार स्वर्ण पदक जीतने की हैट्रिक में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वर्ष 1926 और 1948 के बीच उन्होंने भारत के लिये 185 मैच खेले और 400 से अधिक गोल किये। वह वर्ष 1956 में भारतीय सेना की पंजाब रेजिमेंट में मेजर के पद से सेवानिवृत्त हुए। वह दिन में अपनी रेजिमेंट संबंधी ड्यूटी पूरी करते थे, इसलिये वह चाँदनी रात में अभ्यास करते थे, जिससे उन्हें चंद की उपाधि मिली। उन्हें 1956 में तीसरा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्म भूषण मिला। वर्ष 2012 में भारत सरकार ने उनकी जयंती को प्रतिवर्ष राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया। उन्हें सम्मानित करने के लिये भारत सरकार ने 2021 में राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया। भारत में दिये जाने वाले विभिन्न खेल पुरस्कार कौन-कौन से हैं? मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार: इसे भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान माना जाता है। यह पुरस्कार चार साल की अवधि में खेलों में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये दिया जाता है और विजेताओं को एक पदक, प्रमाण पत्र और नकद राशि मिलती है। अर्जुन पुरस्कार: यह विगत चार वर्षों की अवधि में अच्छे प्रदर्शन के लिये दिया जाता है। अर्जुन पुरस्कार के विजेताओं को अर्जुन की एक प्रतिमा, एक प्रमाण पत्र और नकद पुरस्कार दिया जाता है। द्रोणाचार्य पुरस्कार: यह प्रशिक्षकों के लिये भारत का सर्वोच्च खेल सम्मान है। यह प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में पदक विजेता तैयार करने वाले व्यक्तियों को दिया जाता है। मेजर ध्यानचंद पुरस्कार: यह भारत के हॉकी के जादूगर ध्यानचंद के नाम पर दिया जाने वाला एक और पुरस्कार है। यह खेलों में आजीवन उपलब्धियों के लिये भारत का सर्वोच्च सम्मान है। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ट्रॉफी: यह किसी संस्था या विश्वविद्यालय को पिछले एक वर्ष की अवधि में अंतर-विश्वविद्यालयी टूर्नामेंट में शीर्ष प्रदर्शन के लिये दी जाती है। राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार: यह पुरस्कार पिछले तीन वर्षों में खेल के प्रचार तथा विकास के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले संगठनों या कॉर्पोरेट्स (निजी और सार्वजनिक दोनों) तथा व्यक्तियों को दिया जाता है।

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भारत का खाद्य प्रसंस्करण परिदृश्य

भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है, जिसमें वृद्धि और निर्यात विस्तार की व्यापक संभावना है। कृषि विकास को प्राथमिकता देने के सरकार के प्रयासों—जहाँ वर्ष 2024-25 में 1.52 लाख करोड़ रुपए का पर्याप्त बजट आवंटन भी किया गया है, के बावजूद देश का कृषि-निर्यात कमज़ोर प्रदर्शन कर रहा है। कृषि निर्यात का केवल 25% भाग प्रसंस्करित या मूल्यवर्द्धित उत्पादों का है और यह आँकड़ा पिछले एक दशक से गतिहीन बना हुआ है। भारत वैश्विक औसत और चीन जैसे प्रतिस्पर्द्धियों से पीछे है। यह अंतराल भारतीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये चुनौती और अवसर दोनों प्रस्तुत करता है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (Production Linked Incentive Scheme for the Food Processing Industry- PLISFPI) का कार्यान्वयन धीमा रहा है, जहाँ क्रियान्वयन समय-सीमा के मध्य तक आवंटित धनराशि का केवल 10% ही उपयोग किया गया है। भारत को अपनी पूरी क्षमता को साकार करने और वैश्विक बाज़ार में प्रभावी रूप से प्रतिस्पर्द्धा करने के लिये इस क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन करने की आवश्यकता है। खाद्य प्रसंस्करण (Food Processing) क्या है?  परिचय: खाद्य प्रसंस्करण में कच्चे (raw) पादप एवं पशु पदार्थों को खाद्य उत्पादों में परिणत करने के लिये उपयोग की जाने वाली विधियाँ और तकनीकें शामिल हैं। इसमें सरल परिरक्षण से लेकर जटिल औद्योगिक विधियों तक की विस्तृत शृंखला शामिल है। प्रसंस्करण के स्तर:  प्राथमिक प्रसंस्करण: कृषि उत्पादों की बुनियादी सफाई, ग्रेडिंग और पैकेजिंग। द्वितीयक प्रसंस्करण: सामग्री को खाद्य उत्पादों में परिवर्तित करना (जैसे, गेहूँ को पीसकर आटा बनाना)। तृतीयक प्रसंस्करण: खाने के लिये तैयार (ready-to-eat) खाद्य पदार्थ का निर्माण करना (जैसे, आटे से रोटी पकाना)। मुख्य उद्देश्य:  परिरक्षण: खाद्य उत्पादों के उपयोग-काल या ‘शेल्फ-लाइफ’ को बढ़ाना सुरक्षा: हानिकारक सूक्ष्मजीवों और संदूषकों को समाप्त करना गुणवत्ता वृद्धि: स्वाद, बनावट और पोषण मूल्य में सुधार करना सुविधा: आसानी से तैयार होने वाले (easy-to-prepare) या खाने के लिये तैयार (ready-to-eat) उत्पाद बनाना मूल्य संवर्द्धन: कच्चे कृषि उत्पादों का आर्थिक मूल्य बढ़ाना भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के विकास को बढ़ावा देने वाले प्रमुख कारक   जनसांख्यिकीय लाभांश से प्रेरित मांग: भारत की बड़ी एवं बढ़ती आबादी आय वृद्धि और शहरीकरण के साथ संयुक्त होकर प्रसंस्करित खाद्य पदार्थों की मांग को बढ़ा रही है। चूँकि 65% जनसंख्या 35 वर्ष से कम आयु वर्ग की है, इसलिये बदलती जीवनशैली और खाद्य प्राथमिकताएँ बाज़ार को नया स्वरूप दे रही हैं। भारतीय प्रसंस्करित खाद्य बाज़ार के वर्ष 2019-20 में 263 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2025 तक 470 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है। यह वृद्धि ‘रेडी-टू-ईट’ खाद्य की बढ़ती लोकप्रियता से स्पष्ट है। डिजिटल क्रांति – ‘फ्रॉम फार्म टू फोन टू प्लेट’ (Digital Revolution – From Farm to Phone to Plate): भारत की खाद्य आपूर्ति शृंखला का तेज़ी से डिजिटलीकरण इस क्षेत्र में बदलाव ला रहा है। ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म और फूड डिलीवरी ऐप्स ने प्रसंस्करित खाद्य उत्पादों के लिये बाज़ार पहुँच का विस्तार किया है। सरकार की डिजिटल इंडिया पहल ने भी किसानों और प्रसंस्करणकर्ताओं के बीच प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित किया है, जिससे बिचौलियों की संख्या कम हुई है। एक B2B ताज़ा उत्पाद आपूर्ति शृंखला कंपनी निंजाकार्ट (Ninjacart) ने सब्जी एवं फल उत्पादक किसानों का व्यवसायों से प्रत्यक्ष संपर्क स्थापित किया है, जो खाद्य प्रसंस्करण पारिस्थितिकी तंत्र में डिजिटल एकीकरण की क्षमता को प्रदर्शित करता है। सरकारी नीतियाँ – विकास को उत्प्रेरण (Government Policies – Catalyzing Growth): खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को आगे बढ़ाने में समर्थनकारी सरकारी नीतियों ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्ष 2021 में शुरू की गई खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन योजना (PLISFPI) ने घरेलू विनिर्माण और निर्यात को बढ़ावा देने के लिये 10,900 करोड़ रुपए आवंटित किये। स्वचालित मार्ग के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण में 100% FDI की अनुमति ने महत्त्वपूर्ण विदेशी निवेश आकर्षित किया है। उदाहरण के लिये, नेस्ले (Nestlé) ने भारत में वर्ष 2025 तक 5,000 करोड़ रुपए निवेश करने की योजना की घोषणा की है, जहाँ प्रसंस्करित खाद्य क्षेत्र में क्षमता विस्तार और नए उत्पाद विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। नवोन्मेष – सफलता का स्वाद (Innovation – The Flavor of Success): उत्पाद नवोन्मेष एक प्रमुख प्रेरक है, जहाँ कंपनियाँ बदलती उपभोक्ता प्राथमिकताओं को पूरा करने के लिये लगातार नई पेशकशें पेश करती रहती हैं। स्वास्थ्य के प्रति जागरूक एवं कार्यात्मक खाद्य पदार्थों (health-conscious and functional foods) पर फोकस से नवोन्मेषी उत्पादों में उछाल आया है। उदाहरण के लिये, ITC के ‘फार्मलैंड’ फ्रोज़न खाद्य श्रेणी—जहाँ परिरक्षक-मुक्त और न्यूनतम प्रसंस्करित उत्पादों पर बल दिया गया है, ने वित्त वर्ष 2023-24 में तेज़ वृद्धि देखी। आधुनिक प्रारूपों में पारंपरिक भारतीय सामग्रियों की पेशकश ने भी लोकप्रियता हासिल की है (जैसे कि GAIA के मोटे अनाज आधारित स्नैक्स)। एग्री-टेक – प्रसंस्करण के बीज बोना (Agri-Tech – Sowing Seeds of Processing): कृषि में प्रौद्योगिकी का एकीकरण अप्रत्यक्ष रूप से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र को भी बढ़ावा दे रहा है। एग्री-टेक स्टार्टअप्स ने वर्ष 2023 में 706 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का वित्तपोषण जुटाया, जो सुदृढ़ विकास क्षमता को इंगित करता है। क्रॉप-इन (CropIn) जैसी कंपनियाँ, जो फसल की पैदावार एवं गुणवत्ता में सुधार के लिये AI और उपग्रह निगरानी का उपयोग करती हैं, उच्च गुणवत्तापूर्ण कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये खाद्य प्रसंस्करणकर्ताओं के साथ साझेदारी स्थापित कर रही हैं। यह तकनीकी हस्तक्षेप विशेष रूप से अनुबंध कृषि व्यवस्था (contract farming arrangements) के लिये महत्त्वपूर्ण है, जो खाद्य प्रसंस्करण कंपनियों के बीच अपनी आपूर्ति शृंखलाओं को सुरक्षित करने के दृष्टिकोण से तेज़ी से लोकप्रिय होती जा रही है। भारत में खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र से संबद्ध प्रमुख मुद्दे   विखंडित आपूर्ति शृंखला – ‘द ब्रोकेन लिंक’ (Fragmented Supply Chain – The Broken Link): भारत का खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र अत्यधिक विखंडित आपूर्ति शृंखला से ग्रस्त है, जिसके कारण अकुशलताएँ पैदा होती हैं। चूँकि 86% से अधिक किसान लघु और सीमांत किसान हैं, इसलिये उपज का एकत्रीकरण एक बड़ी चुनौती बन जाता है। इस विखंडन के परिणामस्वरूप अनेक बिचौलिये उत्पन्न हो जाते हैं, जिनमें से प्रत्येक आनुपातिक मूल्य संवर्द्धन के बिना लागत में वृद्धि करता है। भारत में किसानों को अपनी उपज का मात्र 30-35% मूल्य ही मिल पाता है, जबकि विकसित अर्थव्यवस्थाओं में यह स्तर 65-70% तक है। किसान और प्रसंस्करणकर्ता के बीच प्रत्यक्ष संपर्क का अभाव न केवल कच्चे माल की गुणवत्ता को

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