Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

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स्नातकोत्तर कार्यक्रमों हेतु पाठ्यक्रम और क्रेडिट फ्रेमवर्क जारी

विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (University Grants Commission- UGC) ने “स्नातकोत्तर कार्यक्रमों के लिये पाठ्यक्रम और क्रेडिट फ्रेमवर्क” जारी किया। इस ढाँचे का उद्देश्य निम्नलिखित के लिये लचीलापन प्रदान करना है: स्नातक कार्यक्रमों (UG) में पढ़ाए गए विषयों से भिन्न विषयों का अध्ययन करना विभिन्न शिक्षण विधियों से PG शिक्षा प्राप्त करना एक साथ शैक्षणिक या औद्योगिक कार्य करना और उसके लिये क्रेडिट प्राप्त करना एक वर्ष के बाद PG डिप्लोमा के साथ PG कार्यक्रम से बाहर निकलना। फ्रेमवर्क की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं: PG कार्यक्रम के लिये क्रेडिट आवश्यकता और पात्रता: इसमें स्नातक स्तर के छात्रों के लिये विभिन्न प्रकार के PG कार्यक्रमों हेतु पात्रता मानदंड निर्धारित किये गए हैं। उदाहरण के लिये एक वर्षीय MA, MCom या MSc डिग्री हेतु पात्र होने के लिये, उम्मीदवार के पास न्यूनतम 160 क्रेडिट के साथ ऑनर्स के साथ स्नातक की डिग्री होनी चाहिये। हालाँकि दो वर्षीय MA, MCom या MSc डिग्री हेतु पात्र होने के लिये उन्हें 120 क्रेडिट के साथ तीन वर्षीय/छह सेमेस्टर की स्नातक डिग्री की आवश्यकता होती है। ऋण वितरण:  राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के अनुरूप, इस रूपरेखा के अनुसार PG कार्यक्रमों की अवधि एक या दो वर्ष होनी चाहिये। एक वर्षीय PG कार्यक्रम में 40 क्रेडिट होंगे। इसे कोर्स वर्क, रिसर्च (प्रत्येक 20 क्रेडिट) या दोनों करके प्राप्त किया जा सकता है। दो वर्षीय PG डिप्लोमा में 40 क्रेडिट होते हैं, जिन्हें केवल पाठ्यक्रम के माध्यम से ही प्राप्त किया जाना चाहिये। अन्य दो वर्षीय PG कार्यक्रमों में भी 40 क्रेडिट होते हैं। इन्हें कोर्सवर्क, शोध या दोनों (प्रत्येक में 20 क्रेडिट) के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। PG में विषय बदलने में लचीलापन: यह रूपरेखा स्नातक छात्रों को निम्नलिखित की अनुमति देती है: यदि वे प्रवेश परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते हैं, तो स्नातकोत्तर में एक अलग विषय का अध्ययन कर सकते हैं। किसी ऐसे PG कार्यक्रम के लिये आवेदन करना जो स्नातक अध्ययन में प्रमुख या गौण विषय रहा हो। इस फ्रेमवर्क के अंतर्गत, कुछ छात्र मास्टर इन इंजीनियरिंग या मास्टर ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रवेश के लिये पात्र होंगे। आकलन:  यह रूपरेखा सुझाव देती है कि मूल्यांकन योगात्मक (इसमें इकाई परीक्षण और सेमेस्टर-वार परीक्षाएँ शामिल हैं) के विपरीत सतत् होना चाहिये। इसमें यह भी सुझाव दिया गया है कि मूल्यांकन सीखने के परिणामों पर आधारित होना चाहिये। राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा योग्यता रूपरेखा (National Higher Education Qualification Framework- NHEQF) UG और PG कार्यक्रमों के लिये सीखने के परिणामों को रेखांकित करती है। परीक्षा प्रक्रिया में सुधार का सुझाव देने हेतु उच्च स्तरीय समिति गठित शिक्षा मंत्रालय के अंतर्गत उच्च शिक्षा विभाग ने परीक्षाओं का पारदर्शी, सुचारु और निष्पक्ष संचालन सुनिश्चित करने के लिये एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया है। समिति की अध्यक्षता IIT कानपुर के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के अध्यक्ष और इसरो के पूर्व अध्यक्ष डॉ. के. राधाकृष्णन करेंगे। समिति निम्नलिखित पर सिफारिशें करेगी: परीक्षा प्रक्रिया के तंत्र में सुधार डेटा सुरक्षा प्रोटोकॉल में सुधार राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी की संरचना और कार्यप्रणाली।

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पवित्र गंगा – भारत की जीवन रेखा

गंगा, जिसे अक्सर ‘गंगा मैया’ कहा जाता है, हर भारतीय के दिल में अद्वितीय महत्व रखती है। गंगोत्री ग्लेशियर से निकलकर, यह उत्तरी मैदानों से होकर गुजरती है, पवित्र शहरों का गवाह बनती है और लाखों लोगों को जीवन देने वाला पानी प्रदान करती है। शक्तिशाली ब्रह्मपुत्र – तिब्बत से बंगाल की खाड़ी तक तिब्बती पठार से निकलकर, ब्रह्मपुत्र बंगाल की खाड़ी में बहने से पहले विभिन्न परिदृश्यों से होकर गुजरती है, उपजाऊ मैदानों का निर्माण करती है और विविध पारिस्थितिक तंत्र का पोषण करती है। इसकी यात्रा प्रकृति की शक्ति का प्रमाण है। यमुना यमुना, गंगा की एक सहायक नदी है, जो ऐतिहासिक स्थलों और सांस्कृतिक परिदृश्यों को जोड़ती है। ताज महल से लेकर प्राचीन मंदिरों तक यह साम्राज्यों के उत्थान और पतन का गवाह रहा है। गोदावरी – हृदय स्थल से बहती हुई ‘दक्षिण गंगा’ के रूप में जानी जाने वाली, गोदावरी भारत के हृदय क्षेत्र से होकर बहती है, कृषि को बनाए रखती है और सांस्कृतिक समृद्धि को बढ़ावा देती है। इसका महत्व दक्षिण भारत के ताने-बाने में गहराई से समाया हुआ है। नर्मदा – शांति की नदी   नर्मदा अपने शांत प्रवाह के साथ मध्य भारत के ऊबड़-खाबड़ इलाकों से होकर गुजरती है। इसे पवित्र माना जाता है, इसका सांस्कृतिक महत्व है और यह जैव विविधता का अभयारण्य है। कृष्णा – दक्कन के पठार का पोषण   दक्कन के पठार से होकर बहने वाली कृष्णा नदी इस क्षेत्र में कृषि और समुदायों के लिए जीवन रेखा रही है। इसकी यात्रा प्रकृति और सभ्यता के बीच सहजीवी संबंध को दर्शाती है। सिन्धु – प्राचीन सभ्यताओं का साक्षी प्राचीन सिंधु नदी, जो कभी महान सिंधु घाटी सभ्यता का घर थी, वर्तमान पाकिस्तान से होकर बहती है। इसका ऐतिहासिक महत्व और सांस्कृतिक विरासत अमूल्य है। ताप्ती – मूक धारा भारत के पश्चिमी राज्यों से होकर बहने वाली ताप्ती नदी भले ही शांत हो, लेकिन कृषि और स्थानीय अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में इसकी भूमिका स्पष्ट और स्पष्ट है। महानदी – पूर्वी भारत को धारण करने वाली पूर्वी राज्यों से होकर बहने वाली महानदी लाखों लोगों के लिए जीविका का स्रोत रही है। इसके उपजाऊ मैदान और डेल्टा क्षेत्र इस क्षेत्र की समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। चंबल चुनौती – एक वन्यजीव स्वर्ग चंबल नदी, जो अपनी बीहड़ सुंदरता के लिए जानी जाती है, वन्यजीवों के लिए स्वर्ग है। घड़ियाल से लेकर डॉल्फ़िन तक, इसके पानी में खोज लायक एक अनोखा पारिस्थितिकी तंत्र मौजूद है। बेतवा – एक ऐतिहासिक यात्रा ऐतिहासिक परिदृश्यों और प्राचीन शहरों से होकर बहती बेतवा नदी बीते युगों की कहानियाँ सुनाती है। इसके किनारे इतिहास का एक ख़ज़ाना हैं जो खुलने का इंतज़ार कर रहा है। उदात्त सरस्वती – मिथक या वास्तविकता? प्राचीन ग्रंथों में वर्णित मायावी सरस्वती नदी इसके अस्तित्व के बारे में दिलचस्प सवाल उठाती है। सरस्वती के रहस्य को उजागर करने से भारत की नदी कथा में एक आकर्षक परत जुड़ गई है। कावेरी – दक्षिण भारत की जीवन रेखा दक्षिण भारत में पूजनीय कावेरी नदी इस क्षेत्र में कृषि और संस्कृति को कायम रखती है। पहाड़ियों और मैदानों के माध्यम से इसकी यात्रा विविध परिदृश्यों का प्रमाण है। निष्कर्ष भारत के प्रमुख डरे की हमारी खोज के निष्कर्ष में, हम पाते हैं कि ये नदियाँ जल निकायों से कहीं अधिक हैं; वे संस्कृति, इतिहास और जीवन के संरक्षक हैं। जैसे ही हम इन विशाल नदियों के तट पर खड़े होते हैं, हमें प्रकृति और मानव अस्तित्व के अंतर्संबंध की याद आती है।

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इमारतें चित्र तथा किताबें

लौह स्तंभ :- महरौली (दिल्ली) में कुतुबमीनार के परिसर में खड़ा यह लौह स्तंभ भारतीय शिल्पकरों की कुशलता का एक अद्भुत उदाहरण है। इसकी ऊँचाई 7.2 मीटर और वजन 3 टन से भी ज़्यादा है। इसका निर्माण लगभग 1500 साल पहले हुआ। इसके बनने के समय की जानकारी हमें इस पर खुदे अभिलेख से मिलती है। इतने वर्षों के बाद भी इसमें जंग नहीं लगा है।     ईटों और पत्थरों की इमारतें :-हमारे शिल्पकरों की कुशलता के नमूने स्तूपों जैसी कुछ इमारतों में देखने को मिलते है। स्तूप का शब्दिक अर्थ ‘ टीला ‘ होता है हालांकि स्तूप विभिन्न आकार के थे – कभी गोल या लंबे तो कभी बड़े या छोटे। उन सब में एक समानता है। प्राय: सभी स्तूपों के भीतर एक छोटा-सा डिब्बा रखा है। डिब्बों में बुद्ध या उनके अनुयायियों के शरीर के अवशेष ( जैसे दाँत ,हड्डी या राख ) या उनके द्वारा प्रयुक्त कोई चीज या कोई कीमती पत्थर अथवा सिक्के रखे रहते है। इसी धातु-मंजूषा कहते है। प्रारंभिक स्तूप , धातु-मंजूषा के ऊपर रखा मिट्टी का टीला होता था। बाद के कल में उस गुम्बदनुमा ढाँचे को तराशे हुए पत्थरों से ढक दिया गया। प्राय: स्तूपों के चारों ओर परिक्रमा करने के लिए एक वृताकार पथ बना होता था , जिसे प्रदक्षिण पथ कहते है। इस रास्ते को रेलिंग से घेर दिया जाता था , जिसे वेदिका कहते है।   साँची का स्तूप – मध्य प्रदेश इस काल में कुछ आरंभिक हिन्दू मंदिरों का भी निर्माण किया गया। मंदिरों में विष्णु , शिव तथा दुर्गा जैसी देवी-देवताओं की पूजा होती थी। मंदिरों का सबसे महत्वपूर्ण भाग गर्भगृह होता था , जहाँ मुख्य देवी या देवता की मूर्ति को रखा जाता था। पुरोहित , भक्त पूजा करते थे। भीतरगाँव जैसे मंदिरों में उसके ऊपर काफी ऊँचाई तक निर्माण किया जाता था, जिसे शिखर कहते थे। अधिकतर मंदिरों में मंडपनाम की एक जगह होती थी। यह एक सभागार होता था , जहाँ लोग इकट्ठा होते थे। महाबलीपुरम और ऐहोल मंदिर।     स्तूप तथा मंदिर किस तरह बनाए जाते थे :- पहला अच्छे किस्म के पत्थर ढूँढ़कर शिलाखंडों को खोदकर निकालना होता था। यहाँ पत्थरों को काट-छाँटकर तराशने के बाद खंभो , दीवारों की चौखटों , फ़र्शों तथा छतों का आकार दिया जाता था। मुश्किल सबके तैयार हो जाने पर सही जगहों पर उन्हें लगाना काफी मुश्किल का काम था।     पुस्तकों की दुनिया :- 1800 साल पहले एक प्रसिद्ध तमिल महाकाव्य ‘ सिलप्पदिकारम ‘ की रचना इलांगो नामक कवि ने की। पुरानी कहानियाँ :- पुराण का शब्दिक अर्थ है प्राचीन। इनमे विष्णु , शिव , दुर्गा या पार्वती जैसे देवी-देवताओं से जुड़ी कहानियाँ हैं। दो संस्कृत महाकाव्य महाभारत और रामायण लंबे अर्से से लोकप्रय रहे हैं। पुराणों और महाभारत दोनों को ही व्यास नाम के ऋषि ने संकलित किया था। संस्कृत रामायण के लेखक वाल्मीकि मैने जाते है।

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क्या बताती हैं किताबें और कब्रें

प्राचीनतम ग्रंथ वेद  :- वेद का शब्दिक अर्थ – ज्ञान वेदो का संकलन कृष्ण द्वैपायन (वेदव्यास) ने किया वेद चार है –  ऋग्वेद , सामवेद , यजुर्वेद , अथर्वेद    ऋग्वेद :-  यह  सबसे पुराना वेद है, ऋग्वेद की रचना 3500 साल पहले हुई। ऋग्वेद में एक हज़ार से ज़्यादा प्रार्थनाएँ हैं जिन्हें , सूक्त कहा गया है। इसमें 10 मण्डल , 1028 सूक्त , 10600 मंत्र है। ऋग्वेद की भाषा प्राकृ संस्कृत या वैदिक संस्कृत है। इसमें  तीन देवता महत्वपूर्ण है  – अग्नि , इन्द्र और सोम (पौधा)  भूर्ज वृक्ष :- 150 वर्ष पहले ऋग्वेद भूर्ज वृक्ष की छाल पर लिखा गया यह पाण्डुलिपि पुणे , महाराष्ट्र के एक पुस्कालय में सुरक्षित है।   प्रार्थनाएँ :- ऋग्वेद में मवेशियों ( खासकर पुत्रों ) और घोड़ों की प्राप्ति , रथ खींचने , लड़ाईयाँ के लिए अनेक प्रार्थनाएँ हैं । ऋग्वेद में अनेक नदियों का जिक्र है जैसे : व्यास , सतलुज , सरस्वती , सिंधु , तथा गंगा , यमुना का बस एक बार जिक्र मिलता है। लोगों का वर्गीकरण :- काम , भाषा , परिवार या समुदाय , निवास स्थान या सांस्कृतिक परंपरा के आधार पर किया जाता रहा है।   लोगो के लिए शब्द  :  लोगो का वर्गीकरण काम, भाषा , परिवार या समुदाय निवास स्थान या संस्कृति परंपरा के आधार पर किया जाता रहा है काम के आधार पर : ऐसे दो समहू थे समाज में  पुरोहित : जिन्हे कभी कभी ब्राह्मण कहा जाता था यह यघ व अनुष्ठान कार्य करते थे राजा : यह आधुनिक समय जैसे नहीं थे ये न महल में रहते थे न राजधानिया में न ही सेना रखते न कर वसूलते और उनकी मृत्यु के बाद उनका बेटा अपने आप शासक नहीं बनता था। जनता व पुरे समाज के लिए : जन इसका प्रयोग आज भी होता है।  दूसरा शब्द था विश जिसका वैश्य शब्द निकला है। जिन लोगो ने प्रार्थनाओ की रचना की वे खुद को आर्य कहते थे व विरोधियो को दास या दस्यु कहते थे   समाज मुख्य रूप से 4 वर्गों में बना हुआ था ब्राह्मण  यज्ञ और अनुष्ठान वैश्य – व्यापारी श्रत्रिय – सेना शूद्र – दास   महापाषाण :- 3000 साल पहले शुरू हुई। ये शिलाखण्ड महापाषाण ( महा : बड़ा , पाषाण : पत्थर ) ये पत्थर दफ़न करने की जगह पर लोगों द्वारा बड़े करीने से लगाए गए थे यह प्रथा दक्कन , दक्षिण भारत , उत्तर -पूर्वी भारत और कश्मीर में प्रचलित थी। मृतकों के साथ लोहे के औज़ार , हथियार , पत्थर , सोने के गहने , घोड़े के कंकाल। महापाषाण कल 3000 साल पहले लोहे क प्रयोग आरम्भ हो गया।

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आंरभिक नगर

हड़प्पा की कहनी :- लगभग 150 साल पहले जब पंजाब में पहली बार रेलवे लाइनें बिछाई जा रही थीं , तो इस काम में जुटे इंजीनियरों को अचानक हड़प्पा पुरास्थल मिला , जो आधुनिक पाकिस्तान में है। यह सभ्यता सिंघु नदी के निकट विकसित हुई। यह सभ्यता 4700 साल पहले विकसित हुई।   हड़प्पाई नगरों की विशेषता :- इन नगरों को हम दो या उससे ज्यादा हिस्सों में बाँट सकते है 1. नगर दुर्ग – यह पश्चिम भाग था और यह ऊँचाई पर बना था तथा अपेक्षाकृत छोटा था 2. निचला -नगर – यह पूर्वी भाग था और यह निचले हिस्से पर बना था यह बड़ा भाग था। दोनों हिस्सों की चारदीवारी पक्की ईट की बनाई गई थी   मोहनजोदड़ो :- इस नगर में विशाल स्नानागार मिला यह स्नानागार ईट व प्लास्टर से बनाया गया था इसमें पानी का रिसाव रोकने के लिए प्लास्टर लिए प्लास्टर के ऊपर चॉकोल की परत चढ़ाई गई थी। इस सरोवर में दो तरफ़ से उतरने के लिए सीढ़ियाँ बनाई गयी थीऔर चारों ओर कमरे बनाए गए थे। कालीबंगा और लोथल से अग्निकुंड मिले है। हड़प्पा और मोहनजोदड़ो से भंडार ग्रह मिले है। भवन , नाले , और   भवन , नाले , और सड़कें :-  इन नगरों के घर आमतौर पर एक या दो मंजिले होते थे। घर के आँगन के चारों ओर कमरे बनाए जाते थे। अधिकांश घरो में एक अलग स्नानघर होता था और कुछ घरों में कुएँ भी होते थे। कई नगरों में ढके हुए नाले थे। जल निकासी प्रणाली काफी विकसित थी। घर , नाले और सड़को का निर्माण योजनाबद्ध तरिके से किया गया था।   नगरीय जीवन :- हड़प्पा के नगरों में बड़ी हलचल रहा करती होगी। नगरों में लोग निर्माण कार्य में संलगन थे तथा यहॉँ पर धातु , बहुमूल्य पत्थर , मनके , सोने , चाँदी से बने आभूषण प्राप्त हुए है। लिपिक – कुछ लोग मुहरों पर लिखते थे। कुछ लोग शिल्पकर थे ताँबे और काँसे – औजार , हथियार , घने बर्तन बनाए जाते थे। चाँदी और सोने – गहने एवं बर्तन बाट – चर्ट पत्थर मनके – कार्निलियन पत्थर हड़प्पा के लोग पत्थर की मुहरे बनाते थे फेयॉन्स – बालू या स्फटिक पत्थरो के चूर्ण को गोंद में मिलाकर तैयार किया गया पदार्थ।   कच्चा मॉल -जो प्राकृतिक रूप से मिलते है या फिर किसान या पशुपालक उनका उत्पादन करते है। मेहरगढ़ – 7000 साल पहले कपास की खेती होती थी।   कच्चे माल का आयत :- ताँबा – राजस्थान और ओमान से,  सोना – कर्नाटक, टिन – ईरान , बहुमूल्य पत्थर – गुजरात ईरान अफगनिस्तान अफगनिस्तान बहुमूल्यपत्थर   भोजन :- हड़प्पाई लोग जानवर पालते थे और अनाज उगते थे – यहाँ लोग गेंहूँ , जौ , दाल , मटर , धन , तिल और सरसों उगाते थे – जुताई के लिए हल का प्रयोग होता था और सिंचाई के लिए जल संचय किया जाता होगा।   हड़प्पा के लोग – गाय , भैंस , भेड़ ,बकरियाँ पालते थे तथा बेर को इकट्ठा करना मच्छलियाँ पकड़ना तथा हिरण जैसे जानवरो का शिकार करते थे।   धौलावीरा :- ( गुजरात )खदिर बेट के किनारे बसा था। इस नगर को तीन भागों में बाँटा गया था हर हिस्से के चारो और पत्थर की ऊँची दीवारे बनाई गई थी।  इसमें बड़े बड़े प्रवेश द्वार थे एक खुला मैदान था जिसमे  सार्वजानिक कार्यक्रम आयोजन किये जाते होंगे इस स्थान पर हड़प्पा  लिपि के बड़े बड़े अक्षर को पत्थर में खुदा पाया गया है। लोथल :-  खम्भात की खड़ी में मिलने वाली साबरमती उपनदी के किनारे बसा था.  यहाँ शंख , मुहरे , मुद्रांकन या मुहरबंदी , भंडार गृह  मिले है   सभ्यता के अंत के कारण :- 1. नदियाँ सुख गई 2. जंगलो का विनाश 3. बाढ़ आ गई 4. चरागाह समाप्त हो गए

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क्या ,कब, कहाँ और कैसे

लोग कहाँ रहते थे :- नर्मदा (मध्य प्रदेश ) कई लाख वर्ष पहले से लोग यहाँ रह रहे थे , वह कुशल संग्राहक थे , भोजन जड़ , फलो , जंगलो  के उत्पादों पर निर्भर ,जानवरो का शिकार करते थे   उत्तर-पश्चिम सुलेमान व् किरथर पहाड़ियाँ (पाक- अफगनिस्तान सीमा ) :-इस स्थान पर आठ वर्ष पूर्व स्त्री -पुरषों ने सबसे पहले गेंहूँ और जौ फसलों को अपनाया आरंभ किया तथा भेड़ , बकरी , गाय , बैल को पालतू बनाया और गाँवो में रहते थे लोग   उत्तर-पूर्व में गारो तथा मध्य भारत में विंध्य पहाड़ियाँ :- गारो -असम विंध्य पहाड़ियाँ – मध्य प्रदेश यहाँ पर कृषि का विकाश हुआ , सर्वप्रथम चावल विंध्य के उत्तर में उपजाया गया था   सिंध व सहायक नदी :- 4700 वर्ष पूर्व आंरभिक नगर फल , फुले , गंगा व तटवर्ती इलाके में 2500 वर्ष पूर्व नगरों का विकास गंगा व सोन नदी – गंगा के दक्षिण में प्रचीन काल में ‘ मगध की स्थापना ‘    देश का नाम :– ‘इण्डिया ‘ शब्द इंडस से निकला है जिसे संस्कृत में सिंधु कहा जाता है ईरान और यूनान वासियों ने सिंधु को हिंडोस अथवा इंडोस कहा और इस नदी के पूर्व के भूमि प्रदेश को इण्डिया कहा भारत नाम का प्रयोग उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगो के एक समूह के लिए किया जाता जाता था इसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है   अतीत के बारे में कैसे जानें :- पाण्डुलिपि – ये पुस्तकें हाथ से लिखी होती थी (ताड के पत्तो व भुर्ज पेड़ का छाल से निर्मित ) यह भोजपत्र पर लिखी जाती थी अंग्रेजी में इसके लिए ‘ मैन्यूसिक्रप्ट ” शब्द लैटिन शब्द ” मेनू ” जिसका अर्थ हाथ है – इन पाण्डुलिपि में , धार्मिक मान्यता , व्यवहार , राजाओ के जीवन , औषधियो तथा विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषय की चर्चा मिलती है यह संकृत प्राकृत व तमिल भाषा में लिखे है – प्राकृत आम लोगो की भाषा थी   अभिलेख :– अतीत के बारे में जानने का एक ओर महत्वपूर्ण स्रोत अभिलेख है यह कठोर सतह पर उत्क्रीर्ण किए जाते है    पुरातत्वविद :- वे व्यक्ति जो अतीत में बनी वस्तुओं का अध्याय करते है जैसे – पत्थर व ईट से बनी इमारते , अवशेष , चित्र , मुर्तिया इत्यादि   इतिहासकार :- जो लोग अतीत का अध्ययन करते है तिथियों का अर्थ BC – बिफ़ोर क्राश्स्त – ई.पू – ईसा के जन्म से पहले AD – एनो डॉमिनी – ई. – ईसा मसीह के जन्म के बाद   कृषि का आरंभ – 8000 वर्ष पूर्व

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लोकतांत्रिक सरकार के मुख्य तत्व

जब हम बोलते है की कोई सरकार लोकतान्त्रिक है या अलोकतांत्रिक तब हमारा अर्थ क्या होता है ? इस अध्याय में आप को लोकतान्त्रिक सरकार के कुछ महत्वपूर्ण लक्षणों को बताया गया है की लोकतान्त्रिक सरकार के मुख्य लक्षण क्या होते है और आप एक लोकतान्त्रिक सरकार को कैसे परिभाषित कर सकते हो।   भागीदारी – लोकतान्त्रिक सरकार का सबसे पहला लक्षण है भागीदारी लोकतंत्र में लोग निर्णय लेते है चुनाव में वोट देकर वे अपने प्रतिनिधि चुनते है इस प्रकार नियमित चुनाव होने से लोगो का सरकार पर नियंत्रण बना रहता है जैसे : भारत हर 5 वर्ष के बाद चुनाव होते है और एक सरकार चुनाव जीत कर सरकार बनती है वोट के माध्यम से जनता की भागीदरी सुनिश्चित होती है।   भागीदरी के अन्य तरीके – लोग सरकार के कार्य में रूचि लेकर और उसकी आलोचना कर के भी अपनी भागीदारी निभाते है।  कई तरीके है जिस के माध्यम से लोग अपनी राय व्यक्त कर सकते है जैसे : धरना, जुलुस, हड़ताल , हस्तक्षेप अभियान , इत्यादि आंदोलन के जरिये भी लोग अपनी बात सरकार तक पंहुचा सकते है और उन मुद्दों को सरकार के सम्मुख ला सकते है जिन पर सरकार ध्यान नहीं दे रही है , भारत में अनेको बार आंदोलन के जरिये सरकार के सम्मुख मुद्दों को उठाया गया है जैसे : चिपको आंदोलन, नर्मदा बचाओ आंदोलन   विवादों का समाधान  विवाद तब उभरते है जब विभिन सांस्कृतिक , धर्म , जगह , और आर्थिक पृष्ट्भूमि के लोग एक दूसरे के साथ तालमेल नहीं बैठा पाते है। और कई बार भेदभाव की दशा में भी कुछ मुद्दे है जो विवाद का विषय बन जाते है जैसे : धार्मिक जुलुस और उत्सव विवाद का विषय , नदी (जल विवाद)   समानता एवं न्याय  लोकतान्त्रिक सरकार का सबसे महत्वपूर्ण विचार है समानता इसी लिए भारत के सविधान में समानता जैसे अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में वर्णित किया गया है और इस की सुरक्षा स्वयं सविधान करता है।

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विविधता की समझ

विविधता की समझ    गैर बराबरी  – गैर बराबरी का मतलब है की कुछ लोगो के पास न अवसर है  न ही जमीन या पैसे जैसे संसाधन, जो दुसरो के पास है। इसलिए गरीबी और अमीरी विवधता का रूप नहीं है।  यह लोगो के बिच मौजूदा असमानता यानि गैर बराबरी है।   जाति व्यवस्था – असमानता का एक और उदहारण है।  इस बटवारे का आधार था लोग किस- किस तरह का काम करते है. किस जाति में पैदा होते है।   भारत में विविधता –  भारत विविधताओं का देश है यहाँ भिन्न त्यौहार , धर्म , भाषा , खान-पान , के लोग रहते है लेकिन वास्तव में हम गहराई से सोचे तो हम एक ही तरह की चीजे करते है केवल तरिके अलग है   विविधता के कारण –  प्राचीन काल में लोग युद्ध भोजन व अकाल अन्य कारण से एक इस्थान से दूसरे इस्थान चले जाते थे और यात्रा के साधन के आभाव में वही रहने लगते थे इस कारन वह वहाँ की संस्कृति ,भाषा को सिख लेते थे और अपनी पुरानी संस्कृति व नई संस्कृति के साथ सामंजस्य बना कर नई संस्कृति उभरने लगती थी विविधता के लिए भौगोलिक कारक भी महत्त्वपूर्ण है जैसे , जलवायु , मृदा , मानसून, जल, मैदान , इत्यादि लोग अपनी भौगोलिक परिस्थितियो  के अनुरूप व संस्कृति परम्पराओ को ढाल लेते है।   नेहरू की पुस्तक : भारत की खोज  ” यह बहुत ही गहरी है जिसके अंदर अलग- अलग तरह के विश्वास और प्रथाओ को स्वीकार करने की भावना है इसमें विवधता को पहचाना और प्रोत्साहन किया जाता है ”   ” अनेकता में एकता का विचार – नेहरू द्वारा दिया गया है “

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मानव विकास सूचकांक क्या होता है?

मानव विकास को मानव विकास सूचकांक (Human Development Index, HDI) के रूप में मापा जाता है. इसे मानव विकास की आधारभूत उपलब्धियों पर निर्धारित एक साधारण समिश्र सूचक (composite indicator) के रूप में मापा जाता है और विभिन्न देशों द्वारा स्वास्थ्य, शिक्षा तथा संसाधनों तक पहुँच  के क्षेत्र में की गई उन्नति के आधार पर उन्हें श्रेणी (rank) प्रदान करता है. यह श्रेणी 0 से 1 के बीच के स्कोर पर आधारित होता है, जो एक देश, मानव विकास के महत्त्वपूर्ण सूचकों में अपने रिकॉर्ड से प्राप्त करता है. मानव विकास सूचकांक UNDP (United Nation Development Programme) द्वारा नापा जाता है.  UNDP का headquarter न्यूयॉर्क में है. इसकी स्थापना 1965 को हुई थी. चलिए जानते हैं मानव विकास सूचकांक क्या होता है और इसको मापने के लिए किन पैमानों (measures) का प्रयोग किया जाता है? स्वास्थ्य स्वास्थ्य के सूचक को निश्चित करने के लिए जन्म के समय जीवन-प्रत्याशा को चुना गया है. इसका अर्थ यह है कि लोगों को लम्बा एवं स्वास्थ्य जीवन व्यतीत करने का अवसर मिलता है. जितनी उच्च जीवन-प्रत्याशा होगी, उतनी ही अधिक विकास का सूचकांक (HDI) होगा. शिक्षा यहाँ पर शिक्षा का अभिप्राय प्रौढ़ साक्षरता दर तथा सकल नामांकन अनुपात से है. इसका अर्थ यह है कि पढ़ और लिख सकने वाले वयस्कों की संख्या तथा विद्यालयों में नामांकित बच्चों की संख्या अधिक होने से सूचकांक (index) में वृद्धि होती है. संसाधनों तक पहुँच संसाधनों तक पहुँच को करी शक्ति (अमेरिकी डॉलर में) के सन्दर्भ में मापा जाता है. सूचकांक निर्मित करने के लिए प्रत्येक सूचक के लिए सर्वप्रथम न्यूनतम तथा अधिकतम मान निश्चित कर लेते हैं: जन्म के समय जीवन प्रत्याशा: 25 वर्ष और 85 वर्ष सामान्य साक्षरता दर: 0 प्रतिशत और 100 प्रतिशत प्रतिव्यक्ति वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (PPP) $100 अमेरिकी डॉलर और $40, 000 अमेरिकी डॉलर. इनमें से प्रत्येक आयाम को 1/3 भारिता (weights) दी जाती है. मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) इन सभी आयामों को दिए गए weights का कुल योग होता है. स्कोर, 1 के जितना निकट होता है, मानव विकास का स्तर उतना ही अधिक होता है. इस प्रकार 0.983 का स्कोर अति उच्च स्तर का, जबकि 0.268 मानव विकास का अत्यंत निम्न स्तर माना जायेगा. मानव विकास सूचकांक 2019 से जुड़े मुख्य तथ्य भारत का प्रदर्शन भारत के पड़ोसी देशों का प्रदर्शन प्राप्तियाँ और कमियाँ (Attainment and Shortfalls) मानव विकास सूचकांक (HDI) मानव विकास में प्राप्तियों एवं कमियों को मापता है. प्राप्तियाँ (Attainments): प्राप्तियाँ मानव विकास के प्रमुख क्षत्रों में की नई उन्नति की सूचक हैं. ये सर्वाधिक विश्वनीय माप नहीं है, क्योंकि ये वितरण (distribution) के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं देती. कमियाँ (Shortfalls): मानव गरीबी सूचकांक, मानव विकास सूचकांक (Human Development Index) से सम्बंधित है और मानव विकास में कमियों को मापता है. इनमें कई पक्षों को सम्मिलित किया जाता है, जैसे – 40 वर्ष कम आयु तक जीवित न रह पाने की संभाव्यता (feasibility), प्रौढ़ निरक्षरता दर (adult illiteracy rate), स्वच्छ जल तक पहुँच न रखने वाले लोगों की संख्या और अल्प्भार वाले छोटे बच्चों की संख्या (number of underweight children) आदि.

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चन्द्र ग्रहण कैसे होता है?

साधारणतः पूर्णिमा की रात को चंद्रमा पूर्णतः गोलाकार दिखाई पड़ना चाहिए, किन्तु कभी-कभी अपवादस्वरूप चंद्रमा के पूर्ण बिम्ब पर धनुष या हँसिया के आकार की काली परछाई दिखाई देने लगती है. कभी-कभी यह छाया चाँद को पूर्ण रूप से ढँक लेती है. पहली स्थिति को चन्द्र अंश ग्रहण या खंड-ग्रहण (partial lunar eclipse) कहते हैं और दूसरी स्थिति को चन्द्र पूर्ण ग्रहण या खग्रास (total lunar eclipse) कहते हैं. चंद्र ग्रहण कब लगता है? चंद्रमा सूर्य से प्रकाश प्राप्त करता है. उपग्रह होने के नाते चंद्रमा अपने अंडाकार कक्ष-तल पर पृथ्वी का लगभग एक माह में पूरा चक्कर लगा लेता है. चंद्रमा और पृथ्वी के कक्ष तल एक दूसरे पर 5° का कोण बनाते हुए दो स्थानों पर काटते हैं. इन स्थानों को ग्रंथि कहते हैं. साधारणतः चंद्रमा और पृथ्वी परिक्रमण करते हुए सूर्य की सीधी रेखा में नहीं आते हैं इसलिए पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर नहीं पड़ पाती है. किन्तु पूर्णिमा की रात्रि को परिक्रमण करता हुआ चंद्रमा पृथ्वी के कक्ष (orbit) के समीप पहुँच जाए और पृथ्वी की स्थिति सूर्य और चंद्रमा के बीच ठीक एक सीध में  हो तो पृथ्वी की छाया चंद्रमा पर पड़ती है. चंद्रमा की ऐसी स्थिति को चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) कहते हैं. पर सदा ऐसी स्थिति नहीं आ पाती क्योंकि पृथ्वी की छाया चंद्रमा के अगल-बगल होकर निकल जाती है और ग्रहण नहीं लग पाता. चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) लगने की दो अनिवार्य दशाएँ हैं – चंद्रमा पूरा गोल चमकता हो और यह पृथ्वी के orbit के अधिक समीप हो. Umbra और Penumbra सूर्य पृथ्वी से 109 गुना बड़ा है और गोल है इसलिए पृथ्वी की परछाई दो शंकु बनाती है. परछाई के एक शंकु को प्रच्छाया (Umbra) तथा दूसरे को खंड छाया या उपच्छाया (Penumbra) कहते हैं. चंद्रमा पर पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) पड़ने से ही ग्रहण लगता है क्योंकि यह छाया सघन होने के कारण पृथ्वी और चंद्रमा की स्थिति के अनुसार कभी चाँद को आंशिक रूप से और कभी पूर्ण रूप से ढँक लेती है. ये स्थितियाँ क्रमशः अंश-ग्रहण तथा पूर्णग्रहण कहलाती हैं. अंश-ग्रहण कुछ ही मिनट तथा पूर्ण ग्रहण कुछ घंटों तक लगता है. चंद्रमा परिक्रमण करते हुए आगे बढ़ जाता है और पृथ्वी की छाया से मुक्त होकर फिर से सूर्य के प्रकाश से प्रतिबिम्बित होने लगता है. चन्द्र ग्रहण का Diagram प्रस्तुत चित्र को देखें जिसमें पृथ्वी की उपच्छायाएँ तथा प्रच्छाया दिखाई गई हैं. यदि कोई पृथ्वी की उपच्छाया (Penumbra) में खड़ा होकर चंद्रमा को देखेगा तो उसको चंद्रमा द्वारा प्रच्छाया (Umbra) वाला कटा हुआ भाग दिखाई नहीं देगा तथा उसे आंशिक चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) ही दृष्टिगोचर होगा, किन्तु यदि वह पृथ्वी के प्रच्छाया क्षेत्र में खड़ा होकर चाँद को देखेगा तो उसे प्रच्छाया (Umbra) से पूर्ण रूप से ढँका होने के कारण चाँद पूर्ण ग्रहण के रूप में दिखाई देगा. पृथ्वी की उपच्छाया (Penumbra) का चंद्रमा पर विशेष प्रभाव नहीं पड़ता. ग्रहण लगते समय चंद्रमा हमेशा पश्चिम की ओर से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है इसलिए सबसे पहले इसके पूर्वी भाग में ग्रहण लगता है और यह ग्रहण सरकते हुए पूर्व की ओर से निकल कर बाहर चला जाता है. चंद्रमा एक स्थान से पश्चिम से पृथ्वी की प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश करता है. सर्वप्रथम इसका पूर्वी भाग प्रच्छाया (Umbra) में जाता है. दूसरे स्थान तक पहुँचने में चन्द्रमा को 1 घंटा 1 मिनट लगता है और तीसरे स्थान तक 2 घंटा 42 मिनट. इस प्रकार प्रच्छाया (Umbra) के केंद्र में पहुँचने के लिए चंद्रमा को लगभग 2 घंटे और मुक्त होने में लगभग 3 घंटे लग जाते हैं. प्रच्छाया (Umbra) से निकल कर चंद्रमा उपच्छाया (Penumbra) में प्रवेश करता है किन्तु इसके प्रकाश में कोई विशेष अंतर नहीं आता. औसतन प्रति दस वर्षों में 15 चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) घटित होते हैं. एक वर्ष की अवधि में अधिक से अधिक 3 और कम से कम शून्य चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) लगते हैं. चन्द्र ग्रहण (Lunar Eclipse) के समय चंद्रमा एकदम काला न दिखाई देकर धुंधला लाल या ताम्बे के रंग का दृष्टिगोचर होता है. यह प्रकाश चंद्रमा से प्रतिबिम्बित नहीं होता वरन् सूर्य का होता है. सूर्य का प्रकाश पृथ्वी के विपरीत भाग के वायुमंडल से परावर्तित होकर प्रच्छाया (Umbra) में प्रवेश हो जाता है जिसके कारण ग्रहण की अवस्था में चंद्रमा धुंधला हल्का लाल दिखाई देता है.

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