बहुपक्षवाद का पुनःप्रचलन: वैश्विक सुधार के मार्ग
वैश्विक शासन एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है और 22, 23 सितंबर, 2024 को भविष्य का आगामी संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन शीघ्र ही आयोजित होने वाला है। कोविड-19 महामारी और यूक्रेन तथा गाज़ा में युद्ध जैसे संकटों के बाद बहुपक्षवाद में विश्वास कम होने के साथ, शिखर सम्मेलन का मुख्य मघ्यालंकरण- भविष्य के लिये समझौता – संयुक्त राष्ट्र सुधार और वैश्विक सहयोग के लिये एक दृष्टिकोण की रूपरेखा निर्मित करने के लिये लक्षित है। यद्यपि संशयवादी प्रश्न उठाते हैं कि क्या यह शिखर सम्मेलन वास्तव में संयुक्त राष्ट्र के लंबे समय से चले आ रहे संरचनात्मक मुद्दों, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद की पुरानी शक्ति संरचना को संबोधित कर सकता है। चुनौतियों के बावजूद, शिखर सम्मेलन वैश्विक मुद्दों पर सामूहिक कार्रवाई के लिये एक दुर्लभ अवसर प्रदान करता है एवं संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर वास्तविक सुधार को उत्प्रेरित कर सकता है। चर्चाओं में नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के अभिकर्त्ताओं को सम्मिलित करने से बहुपक्षवाद पुनरुज्जीवित हो सकता है। यद्यपि शिखर सम्मेलन की सफलता अंततः सदस्य देशों की पृष्ठीय सहमति से आगे बढ़ने और ठोस प्रतिबद्धताओं की आकांक्षा पर निर्भर करेगी। हालाँकि भविष्य के लिये समझौता तत्काल परिवर्तनकारी बदलाव नहीं ला सकता है, परंतु यह वैश्विक शासन को पुनः जीवंत करने और यह प्रदर्शित करने के लिये एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में कार्य कर सकता है कि बहुपक्षवाद, यद्यपि कमज़ोर हो गया है तथापि अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। बहुपक्षीय संस्थाओं का महत्त्व क्या है? संघर्ष समाधान और शांति स्थापना: बहुपक्षीय संस्थाएँ संघर्ष के रोकथाम और समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वर्ष 1948 से अब तक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों को 71 बार परिनियोजित किया गया है, जिससे कई क्षेत्रों में संघर्षों को समाप्त करने और स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता मिली है। मई 2023 तक, अफ्रीका, एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के 12 संघर्ष क्षेत्रों में 87,000 महिलाएँ तथा पुरुष शांति सैनिक के रूप में सेवा प्रदान कर रहे हैं। आर्थिक स्थिरीकरण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसी संस्थाएँ वैश्विक आर्थिक स्थिरता के संधारण हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के दौरान, IMF ने अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने में सहायता हेतु 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक ऋण देने का वादा किया था। हाल ही में IMF वर्तमान में 35 से अधिक देशों को लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दे रहा है, जिनमें विशेष रूप से अर्जेंटीना, इक्वाडोर, मिस्र, इराक, जॉर्डन, ट्यूनीशिया, यूक्रेन और उप-सहारा अफ्रीका के 16 देश शामिल हैं। वैश्विक स्वास्थ्य प्रबंधन: वैश्विक स्वास्थ्य संकटों के समाधान और उपचार में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहता है। कोविड-19 महामारी के दौरान, WHO ने COVAX के माध्यम से इतिहास में सबसे बड़े वैक्सीन वितरण का समन्वय किया। चेचक उन्मूलन (वर्ष 1980 में घोषित) तथा वर्ष 1988 से पोलियो के मामलों में 99% की कमी लाने में संगठन के प्रयास वैश्विक स्वास्थ्य पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम 196 देशों को स्वास्थ्य संबंधी खतरों से निपटने के लिये मिलकर कार्य करने हेतु एक रूपरेखा प्रदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन शमन: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) जैसी संस्थाओं द्वारा सुगमित बहुपक्षीय पर्यावरण समझौते, जलवायु परिवर्तन को न्यूनीकृत करने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। वर्ष 2015 में 196 पक्षकारों द्वारा अंगीकृत पेरिस समझौते ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित रखने के लिये एक वैश्विक रूपरेखा निर्धारित की। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अभिनव और सफल सिद्ध हुआ है तथा यह विश्व के सभी देशों द्वारा सार्वभौमिक अनुसमर्थन प्राप्त करने वाली पहली संधि है। मानवाधिकार का पक्षसमर्थन: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और अन्य बहुपक्षीय निकाय वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के प्रोत्साहन तथा संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा प्रक्रिया ने वर्ष 2008 में अपनी स्थापना के बाद से सभी 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड का मूल्यांकन किया है। ये संस्थाएँ मानवाधिकारों में वैश्विक उत्तरदायित्व और मानक निर्धारण के लिये तंत्र प्रदान करती हैं। सतत् विकास: संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य (SDG) को वर्ष 2015 में सभी सदस्य देशों द्वारा अंगीकृत किया गया, जो शांति और समृद्धि के लिये एक साझा रूपरेखा प्रदान करते हैं। इन लक्ष्यों ने अतिशय निर्धनता के उन्मूलन के प्रयासों को गति प्रदान की है, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक अतिशय निर्धनता दर वर्ष 1990 में 36% से घटकर वर्ष 2019 में 8.4% हो गई है। विश्व बैंक समूह जैसे बहुपक्षीय विकास बैंकों ने विकासशील देशों को कोविड-19 महामारी के स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों से निपटने में सहायता करने हेतु वर्ष 2020-2021 में 157 बिलियन अमरीकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई है, जो वैश्विक विकास प्रयासों में उनकी भूमिका को प्रदर्शित करता है। अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारण: बहुपक्षीय संस्थाएँ वैश्विक मानदंड और मानक स्थापित करने में सहायक होती हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने श्रम मानक निर्धारित करने हेतु विभिन्न अभिसमयों को अंगीकृत किया है। अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) ने मानक निर्धारित किये हैं जिनके कारण विमानन परिवहन के सबसे सुरक्षित साधनों में से एक बन गई है। वैज्ञानिक और शैक्षिक उन्नति: यूनेस्को जैसे संगठन शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रोत्साहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। जुलाई 2024 तक, 168 देशों में कुल 1,199 विश्व धरोहर स्थल (933 सांस्कृतिक, 227 प्राकृतिक और 39 मिश्रित संपत्तियाँ) विद्यमान हैं। शिक्षा के क्षेत्र में संगठन के प्रयासों से वैश्विक साक्षरता दर वर्ष 1820 के 12% से बढ़कर वर्ष 2020 में 87% हो गई है। वैज्ञानिक बहुपक्षवाद का एक प्रमुख उदाहरण, सर्न (यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन), ने वर्ष 2012 में हिग्स बोसोन जैसी अभूतपूर्व खोज की। बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका क्यों कम हो रही है? वैश्विक शक्ति गतिकी में परिवर्तन: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था, जिसने अनेक बहुपक्षीय संस्थाओं को जन्म दिया, अब विशीर्ण हो रही है, क्योंकि शक्ति पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रही है। आर्थिक महाशक्ति के रूप में चीन का उदय, भारत का बढ़ता प्रभाव और रूस के पुनरुत्थान ने पश्चिमी नेतृत्व वाली संस्थाओं के प्रभुत्व को चुनौती दी है। ब्रिक्स समूह (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) का विस्तार हुआ है, जो अब वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 37.3% प्रतिनिधित्व करता है। इस स्थानांतरण के कारण
बहुपक्षवाद का पुनःप्रचलन: वैश्विक सुधार के मार्ग Read More »