भारत में बलात्संग संबंधी मामलों में वृद्धि
चर्चा में क्यों? भारत में बलात्संग संबंधी मामलों में वृद्धि ने यौन हिंसा के मामलों को संबोधित करने के लिये व्यापक विधिक सुधारों और सामाजिक व्यवहार में लिये मृत्युदंड सहित कठोर दंड के प्रावधान एवं महिलाओं के लिये सुरक्षित वातावरण हेतु तत्काल परिवर्तन की मांग को पुनः जागृत किया है। इन घटनाओं ने बलात्संग के कार्रवाई की मांग को बढ़ावा दिया है। भारत में बलात्संग के संबंध में विधिक ढाँचा क्या है? बलात्संग क्या है: भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के अनुसार, बलात्संग तब होता है जब कोई पुरुष किसी महिला की सहमति के बिना, उसकी इच्छा के विरुद्ध, दबाबपूर्वक, धोखे से या जब महिला की आयु 18 वर्ष से कम हो या सहमति देने में असमर्थ हो, उसके साथ यौन संबंध बनाता है। भारत में बलात्संग के प्रकार: गंभीर बलात्संग: पीड़ित पर अधिकारिता या विश्वास की स्थिति रखने वाले किसी व्यक्ति (जैसे- पुलिस अधिकारी, अस्पताल कर्मचारी या अभिभावक) द्वारा किया गया बलात्संग । बलात्संग और हत्या: जब बलात्संग के कारण पीड़ित की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है। सामूहिक बलात्संग: जब एक महिला के साथ कई व्यक्तियों द्वारा एक साथ बलात्संग किया जाता है। वैवाहिक बलात्संग: ‘वैवाहिक बलात्संग ‘ का तात्पर्य पति और पत्नी के मध्य किसी भी पक्ष की सहमति के बिना जबरन यौन संबंध बनाने से है। भारत में बलात्संग से संबंधित विधियाँ: भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023: नव अधिनियमित BNS, 2023, जो औपनिवेशिक युग की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 को स्थनान्तरित करती है, यौन अपराधों के उपचार में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन प्रस्तुत करती है। BNS बलात्संग के गंभीर रूपों को परिभाषित करती है, जिसमें सामूहिक बलात्संग भी शामिल है। इसमें 18 वर्ष की आयु से कम उम्र की नाबालिगों के साथ सामूहिक बलात्संग के लिये कठोर दंड का प्रावधान है, जिसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड भी शामिल है। दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013: वर्ष 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया बलात्संग मामले के कारण दंड विधि (संशोधन) अधिनियम 2013 के माध्यम से संशोधन किया गया, जिसके तहत बलात्संग के लिये न्यूनतम दंड सात वर्ष का कारावास से बढ़ाकर दस वर्ष कर दिया गया। जिन मामलों में पीड़ित की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है, उनमें न्यूनतम दंड को बढ़ाकर बीस वर्ष का कारावास कर दिया गया। इसके अलावा, दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 के माध्यम से भी 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्संग के लिये मृत्युदंड सहित और भी कठोर दंडात्मक प्रावधान किये गए थे। लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) : यह विधि बच्चों को यौन हिंसा, उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से संरक्षित करती है। भारत में बलात्संग पीड़ितों के अधिकार: ज़ीरो FIR का अधिकार: पीड़ित किसी भी पुलिस स्टेशन में ज़ीरो FIR दर्ज करा सकते हैं, चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो। FIR को अन्वेषण हेतु उचित स्टेशन पर स्थानांतरित कर दिया जाएगा। निशुल्क चिकित्सा उपचार: दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 (जिसे अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है) की धारा 357 C के तहत, सभी अस्पतालों को बलात्संग पीड़ितों को निशुल्क चिकित्सा उपचार प्रदान करना होगा। टू फिंगर टेस्ट की समाप्ति: किसी भी डॉक्टर को चिकित्सा परीक्षण करते समय टू फिंगर टेस्ट करने का अधिकार नहीं होगा, जिसे पीड़ित की गरिमा का उल्लंघन माना जाता है। उत्पीड़न-मुक्त समयबद्ध जाँच: बयान महिला पुलिस अधिकारी या किसी अन्य अधिकारी द्वारा पीड़ित के लिये सुविधाजनक समय और स्थान पर दर्ज किया जाएगा। बयान पीड़ित के माता-पिता या अभिभावक की मौजूदगी में दर्ज किया जाएगा। अगर पीड़ित गूंगा या मानसिक रूप से विकलांग है, तो संकेत को समझने के लिये एक विश्लेषक की मौजूदगी आवश्यक होगी। मुआवज़े का अधिकार: CrPC की धारा 357A राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मुआवज़ा योजना के अंतर्गत पीड़ितों के लिये मुआवज़े का प्रावधान करती है। मुकदमें की कार्रवाई के दौरान गरिमा और संरक्षण: मुकदमें कैमरे के समक्ष चलाए जाने चाहिये, जिसमें पीड़ित के यौन इतिहास के बारे में कोई अनुचित प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिये और यदि संभव हो तो महिला न्यायाधीश द्वारा मुकदमा चलाया जाना चाहिये। भारत में बलात्संग के मामलों में वृद्धि क्यों हो रही है? बलात्संग का सामान्यीकरण: यह एक समाजशास्त्रीय वातावरण को संदर्भित करता है जहाँ यौन हिंसा को सामान्य माना जाता है और उसे माफ कर दिया जाता है, जिसके कारण बलात्संग के मामलों में वृद्धि होती है। यह कई तरह के व्यवहार एवं दृष्टिकोण पर आधारित है। बलात्संग के संबंध में अनुचित दृष्टिकोण: यौन हिंसा के बारे में अनुचित टिप्पणियों से ऐसे अपराधों की गंभीरता को कमतर आँका जाता है। लिंगभेदी व्यवहार: ऐसे कार्य और दृष्टिकोण जो महिलाओं को अपमानित करते हैं, अक्सर नकारात्मक रूढ़िवादिता को बनाए रखते हैं। पीड़ित को दोषी ठहराना: अपराधियों पर ध्यान देने के बजाय, पीड़ित को ही हिंसा के लिये ज़िम्मेदार ठहराने से इसकी जटिलता बढ़ती है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण में पीड़ितों को उनके पहनावे के लिये दोषी ठहराया जाता है, भारत में सर्वेक्षण किये गए 68% न्यायाधीशों ने यही दृष्टिकोण अपनाया है। यह नकारात्मक दृष्टिकोण पीड़ितों को दोषी ठहराने की संस्कृति को मज़बूत करता है। पीड़ितों को अक्सर शर्मिंदा किया जाता है तथा उन पर आरोप लगाया जाता है, जिससे उनका मानसिक आघात और बढ़ जाता है एवं वे अपराध की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित हो जाते हैं। रिपोर्ट न करने की यह कमी बलात्संग की घटनाओं में वृद्धि में योगदान देती है। यह संस्कृति न केवल उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कम करती है बल्कि उनके अवसरों और सामाजिक प्रतिष्ठा को भी सीमित करती है। शराब की लत: शराब का सेवन बलात्संग की बढ़ती दरों में एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यह निर्णय लेने की क्षमता को कम करता है और अधिक आक्रामक तथा हिंसक व्यवहार को जन्म दे सकता है। मीडिया में महिला विरोधी चित्रण: भारत में फिल्में और शो अक्सर महिलाओं को वस्तु के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह चित्रण नकारात्मक रूढ़िवादिता तथा व्यवहार को मज़बूत करता है जो बलात्संग संस्कृति में योगदान देता है। लिंग अनुपात असंतुलन: जनसंख्या में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की अधिक संख्या बलात्संग की दर में वृद्धि से संबंधित है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश का लिंग अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 940 महिलाएँ
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