Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

Educational News

भारत में बलात्संग संबंधी मामलों में वृद्धि

चर्चा में क्यों?  भारत में बलात्संग संबंधी मामलों में वृद्धि ने यौन हिंसा के मामलों को संबोधित करने के लिये व्यापक विधिक सुधारों और सामाजिक व्यवहार में लिये मृत्युदंड सहित कठोर दंड के प्रावधान एवं महिलाओं के लिये सुरक्षित वातावरण हेतु तत्काल परिवर्तन की मांग को पुनः जागृत किया है। इन घटनाओं ने बलात्संग के कार्रवाई की मांग को बढ़ावा दिया है। भारत में बलात्संग के संबंध में विधिक ढाँचा क्या है? बलात्संग क्या है: भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023 के अनुसार, बलात्संग तब होता है जब कोई पुरुष किसी महिला की सहमति के बिना, उसकी इच्छा के विरुद्ध, दबाबपूर्वक, धोखे से या जब महिला की आयु 18 वर्ष से कम हो या सहमति देने में असमर्थ हो, उसके साथ यौन संबंध बनाता है। भारत में बलात्संग के प्रकार: गंभीर बलात्संग: पीड़ित पर अधिकारिता या विश्वास की स्थिति रखने वाले किसी व्यक्ति (जैसे- पुलिस अधिकारी, अस्पताल कर्मचारी या अभिभावक) द्वारा किया गया बलात्संग । बलात्संग और हत्या: जब बलात्संग के कारण पीड़ित की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है। सामूहिक बलात्संग: जब एक महिला के साथ कई व्यक्तियों द्वारा एक साथ बलात्संग किया जाता है। वैवाहिक बलात्संग: ‘वैवाहिक बलात्संग ‘ का तात्पर्य पति और पत्नी के मध्य किसी भी पक्ष की सहमति के बिना जबरन यौन संबंध बनाने से है। भारत में बलात्संग से संबंधित विधियाँ: भारतीय न्याय संहिता (BNS), 2023: नव अधिनियमित BNS, 2023, जो औपनिवेशिक युग की भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), 1860 को स्थनान्तरित करती है, यौन अपराधों के उपचार में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन प्रस्तुत करती है। BNS बलात्संग के गंभीर रूपों को परिभाषित करती है, जिसमें सामूहिक बलात्संग भी शामिल है। इसमें 18 वर्ष की आयु से कम उम्र की नाबालिगों के साथ सामूहिक बलात्संग के लिये कठोर दंड का प्रावधान है, जिसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड भी शामिल है। दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2013: वर्ष 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया बलात्संग मामले के कारण दंड विधि (संशोधन) अधिनियम 2013 के माध्यम से संशोधन किया गया, जिसके तहत बलात्संग के लिये न्यूनतम दंड सात वर्ष का कारावास से बढ़ाकर दस वर्ष कर दिया गया। जिन मामलों में पीड़ित की मृत्यु हो जाती है या वह अचेत अवस्था में चली जाती है, उनमें न्यूनतम दंड को बढ़ाकर बीस वर्ष का कारावास कर दिया गया। इसके अलावा, दंड विधि (संशोधन) अधिनियम, 2018 के माध्यम से भी 12 वर्ष से कम उम्र की लड़की के साथ बलात्संग के लिये मृत्युदंड सहित और भी कठोर दंडात्मक प्रावधान किये गए थे। लैंगिक अपराधों से बालकों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO) : यह विधि बच्चों को यौन हिंसा, उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से संरक्षित करती है। भारत में बलात्संग पीड़ितों के अधिकार: ज़ीरो FIR का अधिकार: पीड़ित किसी भी पुलिस स्टेशन में ज़ीरो FIR दर्ज करा सकते हैं, चाहे उसका क्षेत्राधिकार कुछ भी हो। FIR को अन्वेषण हेतु उचित स्टेशन पर स्थानांतरित कर दिया जाएगा। निशुल्क चिकित्सा उपचार: दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 (जिसे अब भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS), 2023 के रूप में प्रतिस्थापित किया गया है) की धारा 357 C के तहत, सभी अस्पतालों को बलात्संग पीड़ितों को निशुल्क चिकित्सा उपचार प्रदान करना होगा। टू फिंगर टेस्ट की समाप्ति: किसी भी डॉक्टर को चिकित्सा परीक्षण करते समय टू फिंगर टेस्ट करने का अधिकार नहीं होगा, जिसे पीड़ित की गरिमा का उल्लंघन माना जाता है। उत्पीड़न-मुक्त समयबद्ध जाँच: बयान महिला पुलिस अधिकारी या किसी अन्य अधिकारी द्वारा पीड़ित के लिये सुविधाजनक समय और स्थान पर दर्ज किया जाएगा। बयान पीड़ित के माता-पिता या अभिभावक की मौजूदगी में दर्ज किया जाएगा। अगर पीड़ित गूंगा या मानसिक रूप से विकलांग है, तो संकेत को समझने के लिये एक विश्लेषक की मौजूदगी आवश्यक होगी। मुआवज़े का अधिकार: CrPC की धारा 357A राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा निर्धारित मुआवज़ा योजना के अंतर्गत पीड़ितों के लिये मुआवज़े का प्रावधान करती है। मुकदमें की कार्रवाई के दौरान गरिमा और संरक्षण: मुकदमें कैमरे के समक्ष चलाए जाने चाहिये, जिसमें पीड़ित के यौन इतिहास के बारे में कोई अनुचित प्रश्न नहीं पूछे जाने चाहिये और यदि संभव हो तो महिला न्यायाधीश द्वारा मुकदमा चलाया जाना चाहिये। भारत में बलात्संग के मामलों में वृद्धि क्यों हो रही है? बलात्संग का सामान्यीकरण: यह एक समाजशास्त्रीय वातावरण को संदर्भित करता है जहाँ यौन हिंसा को सामान्य माना जाता है और उसे माफ कर दिया जाता है, जिसके कारण बलात्संग के मामलों में वृद्धि होती है। यह कई तरह के व्यवहार एवं दृष्टिकोण पर आधारित है। बलात्संग के संबंध में अनुचित दृष्टिकोण: यौन हिंसा के बारे में अनुचित टिप्पणियों से ऐसे अपराधों की गंभीरता को कमतर आँका जाता है। लिंगभेदी व्यवहार: ऐसे कार्य और दृष्टिकोण जो महिलाओं को अपमानित करते हैं, अक्सर नकारात्मक रूढ़िवादिता को बनाए रखते हैं। पीड़ित को दोषी ठहराना: अपराधियों पर ध्यान देने के बजाय, पीड़ित को ही हिंसा के लिये ज़िम्मेदार ठहराने से इसकी जटिलता बढ़ती है। सांस्कृतिक दृष्टिकोण में पीड़ितों को उनके पहनावे के लिये दोषी ठहराया जाता है, भारत में सर्वेक्षण किये गए 68% न्यायाधीशों ने यही दृष्टिकोण अपनाया है। यह नकारात्मक दृष्टिकोण पीड़ितों को दोषी ठहराने की संस्कृति को मज़बूत करता है। पीड़ितों को अक्सर शर्मिंदा किया जाता है तथा उन पर आरोप लगाया जाता है, जिससे उनका मानसिक आघात और बढ़ जाता है एवं वे अपराध की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित हो जाते हैं। रिपोर्ट न करने की यह कमी बलात्संग की घटनाओं में वृद्धि में योगदान देती है।  यह संस्कृति न केवल उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता को कम करती है बल्कि उनके अवसरों और सामाजिक प्रतिष्ठा को भी सीमित करती है। शराब की लत: शराब का सेवन बलात्संग की बढ़ती दरों में एक महत्त्वपूर्ण कारक है। यह निर्णय लेने की क्षमता को कम करता है और अधिक आक्रामक तथा हिंसक व्यवहार को जन्म दे सकता है। मीडिया में महिला विरोधी चित्रण: भारत में फिल्में और शो अक्सर महिलाओं को वस्तु के रूप में प्रस्तुत करते हैं। यह चित्रण नकारात्मक रूढ़िवादिता तथा व्यवहार को मज़बूत करता है जो बलात्संग  संस्कृति में योगदान देता है। लिंग अनुपात असंतुलन: जनसंख्या में महिलाओं की तुलना में पुरुषों की अधिक संख्या बलात्संग की दर में वृद्धि से संबंधित है।  वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार देश का लिंग अनुपात प्रति 1,000 पुरुषों पर 940 महिलाएँ

भारत में बलात्संग संबंधी मामलों में वृद्धि Read More »

तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत

चर्चा में क्यों? हाल ही में  राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) द्वारा 27 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के तालुकों, ज़िलों और उच्च न्यायालयों में वर्ष 2024 की तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत का आयोजन किया गया। इसका आयोजन भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं नालसा के कार्यकारी अध्यक्ष न्यायमूर्ति संजीव खन्ना के नेतृत्व में किया गया। तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत, 2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं ? निपटाए गए मामलों की संख्या: तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत, 2024 के दौरान 1.14 करोड़ से अधिक मामलों का निपटारा किया गया। यह अदालतों में बढ़ते लंबित मामलों को कम करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। निपटाए गए मामलों का विवरण: लोक अदालत में निपटाए गए 1,14,56,529 मामलों में से 94,60,864 मुकदमे-पूर्व मामले थे तथा 19,95,665 मामले विभिन्न अदालतों में लंबित थे। निपटाए गए मामलों के प्रकार: इन मामलों में समझौता योग्य आपराधिक अपराध , यातायात चालान, राजस्व, बैंक वसूली, मोटर दुर्घटना, चेक का विवेचक (dishonor), श्रम विवाद, वैवाहिक विवाद (तलाक के मामलों को छोड़कर), भूमि अधिग्रहण, बौद्धिक संपदा अधिकार और अन्य सिविल मामले शामिल हैं। निपटान का वित्तीय मूल्य: इन मामलों में कुल निपटान राशि का अनुमानित मूल्य 8,482.08 करोड़ रुपए था। सकारात्मक सार्वजनिक प्रतिक्रिया: इस कार्यक्रम में लोगों की भारी भागीदारी देखी गई, जो लोक अदालतों में जनता के मज़बूत विश्वास को दर्शाता है। यह विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 और राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (लोक अदालत) विनियम, 2009 में निर्धारित उद्देश्यों के अनुरूप है। लोक अदालत क्या है? लोक अदालत या जन अदालत: न्यायालय में लंबित या मुकदमे-पूर्व विवादों को समझौते या सौहार्दपूर्ण समाधान के माध्यम से निपटान हेतु एक वैकल्पिक मंच है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा है कि लोक अदालत न्यायनिर्णयन की एक प्राचीन भारतीय प्रणाली है जो आज भी प्रासंगिक है और गांधीवादी सिद्धांतों पर आधारित है। यह वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR ) प्रणाली का एक हिस्सा है, जिसका उद्देश्य लंभित मामले के संदर्भ में भारतीय न्यायालयों को राहत प्रदान करना है। उद्देश्य: इसका उद्देश्य नियमित न्यायालयों में होने वाली लंबी और महँगी प्रक्रियाओं के बिना  त्वरित न्याय प्रदान करना है। लोक अदालत में किसी की हार या जीत नहीं होती है, इसमें विवाद समाधान हेतु एक सामंजस्यपूर्ण दृष्टिकोण अपनाया जाता है। ऐतिहासिक विकास: स्वतंत्र भारत में पहला लोक अदालत शिविर 1982 में गुजरात में आयोजित किया गया था, जिसकी सफलता के बाद इसका विस्तार संपूर्ण देश में किया गया। कानूनी ढाँचा: प्रारंभ में कानूनी प्राधिकार के बिना एक स्वैच्छिक संस्था के रूप में कार्य करते हुए, विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम, 1987 द्वारा लोक अदालतों को  वैधानिक दर्जा प्रदान किया गया। इस अधिनियम द्वारा संस्था को न्यायालय के आदेश के समान प्रभाव वाले अधिकार प्रदान किये गए। आयोजक एजेंसियाँ: लोक अदालतों का आयोजन नालसा, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, ज़िला विधिक सेवा प्राधिकरण, सर्वोच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति, उच्च न्यायालय विधिक सेवा समिति या तालुक विधिक सेवा समिति द्वारा आवश्यक समझे जाने वाली अवधि और स्थानों पर किया जा सकता है। संरचना: एक लोक अदालत में आमतौर पर एक न्यायिक अधिकारी (अध्यक्ष), एक वकील और एक सामाजिक कार्यकर्त्ता शामिल होते हैं। क्षेत्राधिकार: लोक अदालत को न्यायालय के क्षेत्राधिकार में आने वाले लंबित मामलों और मुकदमे-पूर्व मामलों सहित विवादों पर क्षेत्राधिकार प्राप्त है। यह वैवाहिक विवाद , समझौता योग्य आपराधिक अपराध, श्रम विवाद, बैंक वसूली, आवास और उपभोक्ता शिकायतों जैसे विभिन्न मामलों का निपटान करता है। लोक अदालत का गैर-समझौता युक्त अपराधों , जैसे गंभीर आपराधिक मामलों पर क्षेत्राधिकार नहीं है , क्योंकि इन्हें समझौते के माध्यम से सुलझाया नहीं जा सकता। लोक अदालत को मामले भेजना: मामले लोक अदालत को भेजे जा सकते हैं, यदि पक्षकार लोक अदालत में विवाद निपटान हेतु सहमत होते हैं। इनमें से एक पक्षकार द्वारा मामले को लोक अदालत में स्थानांतरित हेतु न्यायालय में आवेदन किया जाता है। मामला लोक अदालत द्वारा संज्ञान लेने योग्य है। मुकदमा-पूर्व स्थानांतरण: मुकदमा-पूर्व विवादों को किसी भी पक्ष से आवेदन प्राप्त होने पर स्थानांतरित किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि विवादों का निपटारा न्यायालय में पहुँचाने से पहले ही कर दिया जाए। शक्तियाँ: लोक अदालत को निम्नलिखित मामलों के संबंध में मुकदमे की सुनवाई करते समय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 के तहत सिविल न्यायालय में निहित शक्तियाँ प्राप्त होंगी। किसी भी गवाह को बुलाना और उसकी उपस्थिति सुनिश्चित करना। किसी भी दस्तावेज़ की खोज और जाँच। शपथ-पत्र पर साक्ष्य प्राप्त करना। न्यायालयों या कार्यालयों से सार्वजनिक अभिलेखों या दस्तावेज़ों की मांग करना। लोक अदालत की कार्यवाही:  स्व-निर्धारित प्रक्रिया: लोक अदालत विवादों के निपटान हेतु स्वयं की प्रक्रिया निर्दिष्ट कर सकती है, जिससे औपचारिक न्यायालयों की तुलना में प्रक्रिया सरल और अनौपचारिक हो जाती है। न्यायिक कार्यवाही: सभी लोक अदालतों की कार्यवाही को भारतीय दंड संहिता, 1860 (भारतीय न्याय संहिता, 2023) के तहत न्यायिक कार्यवाही माना जाता है और दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023) के तहत सिविल न्यायालय का दर्जा प्राप्त है। निर्णय की बाध्यकारिता: सिविल न्यायालय का निर्णय: लोक अदालत द्वारा दिये गए निर्णयों को सिविल न्यायालय के निर्णय के समान दर्जा प्राप्त होता है, यह अंतिम और सभी पक्षों पर बाध्यकारी होते हैं। अपील न किये जाने योग्य: निर्णयों के विरुद्ध किसी भी न्यायालय में अपील नहीं की जा सकती है,  इसलिये लोक अदालतों में लंबी अपील संबंधी प्रक्रियाओं की आवश्यकता के बिना विवादों का तीव्र निपटान किया जा सकता है।   लोक अदालत के क्या लाभ हैं? न्यायालय शुल्क: लोक अदालत कोई न्यायालय शुल्क नहीं लेती है , बल्कि विवाद का निपटारा लोक अदालत में किया जाता है तो भुगतान की गई शुल्क वापस कर दी जाती है। प्रक्रिया का सरल होना: प्रक्रियाएँ सरल हैं और साक्ष्य या सिविल प्रक्रिया के तकनीकी नियमों के प्रावधानों के अधीन नही हैं, जिसके कारण ही विवादों का शीघ्र निपटारा संभव हो पाता है। प्रत्यक्ष संवाद: विवाद के पक्षकार अपने वकील के माध्यम से सीधे न्यायाधीश के साथ संवाद कर सकते हैं , जो कि  न्यायालयों में संभव नहीं हो पाता है। अंतिम एवं बाध्यकारी निर्णय: लोक अदालत द्वारा दिया गया निर्णय पक्षकारों पर बाध्यकारी होता है जिसे सिविल न्यायालय का दर्जा प्राप्त होता है तथा यह अपील योग्य नहीं होता है , जिससे विवादों के अंतिम रूप से निपटान में देरी नहीं होती। निम्न समय

तीसरी राष्ट्रीय लोक अदालत Read More »

जूट उद्योग में सुधार

चर्चा में क्यों?  हाल ही में भारतीय जूट मिल्स एसोसिएशन ने जूट की खेती के महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश डाला, जिसमें इस क्षेत्र के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ भी शामिल हैं। जूट से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं? परिचय:  जूट एक प्राकृतिक रेशा (फाइबर) है जो सन, भांग, केनाफ और रेमी जैसे बास्ट फाइबर की श्रेणी अंतर्गत आता है। यह पारंपरिक रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी भाग में इसका उत्पादन किया जाता है, जो वर्तमान भारत के पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के मैदानी इलाकों का हिस्सा है। भारत में पहली जूट मिल वर्ष 1855 में कोलकाता के पास रिषड़ा में स्थापित की गई थी। आदर्श स्थिति: जूट कई प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, लेकिन इसके उत्पादन के लिये उपजाऊ दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। 40-90% के बीच सापेक्ष आर्द्रता और 17°C तथा 41°C के बीच तापमान, साथ ही 120 सेमी. से अधिक अच्छी तरह से वितरित वर्षा जूट की खेती एवं विकास के लिये अनुकूल है। प्रजातियाँ: सामान्यतः दो प्रजातियाँ क्रमशः टोसा और सफेद जूट का व्यावसायिक स्तर पर उत्पादन किया जाता है। एक अन्य बास्ट फाइबर (Bast Fibre) फसल जिसे आमतौर पर मेस्टा के नाम से जाना जाता है, की दो प्रजातियाँ उगाई जाती हैं- हिबिस्कस कैनाबिनस (Hibiscus cannabinus) और हिबिस्कस सब्दारिफा (Hibiscus Sabdariffa)। कटाई की तकनीक: बास्ट फाइबर (Bast Fibre) फसल को वानस्पतिक वृद्धि की एक निश्चित अवधि के बाद, आमतौर पर 100 से 150 दिनों के बीच, किसी भी अवस्था में काटा जा सकता है। जूट की फसल की कटाई कली-पूर्व या कली अवस्था (Pre-Bud or Bud Stage) में करने से सर्वोत्तम गुणवत्ता वाला रेशा प्राप्त होता है, हालाँकि पैदावार कम होती है।  ओल्डर क्रॉप्स प्रक्रिया से अधिक उत्पादन होता है, लेकिन रेशा मोटा हो जाता है और तना पर्याप्त रूप से पुनर्विकसित नहीं होता है। रीटिंग प्रक्रिया एक ऐसी विधि है जिसमें पौधे के रेशों को तने से अलग करने के लिये नमी और सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है। इसलिये, यह निर्धारित किया गया है कि अधि उत्पादन और गुणवत्ता के बीच संतुलन के रूप में कटाई फल विकसित होने के प्रारंभिक चरण (Pod Formation Stage) में सबसे अच्छी होती है। गलाने की प्रक्रिया: जूट के तने के बंडलों को पानी में रखा जाता है इसके बाद उन्हें आमतौर पर परतों के क्रम में रखकर एक साथ बाँध दिया जाता है। वे जलकुंभी या किसी अन्य ऐसे खरपतवार से ढके होते हैं जिनसे टैनिन और लौह का उत्सर्जन नहीं होता है। धीमी गति से बहते साफ पानी में रीटिंग सबसे अच्छी होती है। इष्टतम तापमान लगभग 34 डिग्री सेल्सियस है। रीटिंग की प्रक्रिया द्वारा रेशे को लकड़ी से आसानी से बाहर निकल दिया जाता है। अस्थिरता: यह लंबी, मज़बूत घास 2.5 मीटर तक बढ़ती है और इसके प्रत्येक भाग का विभिन्न कार्यों में उपयोग किया जाता हैं। तने की बाहरी परत से रेशे का निर्माण होता है जिसका उपयोग जूट के उत्पाद बनाने में किया जाता है। इसकी पत्तियों का उपयोग कर सूप, स्टू, करी और सब्ज़ी के व्यंजन तैयार किये जाते हैं। इसके लकड़ी युक्त तने का उपयोग कागज़ बनाने के लिये किया जा सकता है। फसल कटाई के बाद ज़मीन में बची हुई जड़ें अगली फसलों हेतु उपयोगी होती हैं। उत्पादन: पश्चिम बंगाल, असम और बिहार देश में प्रमुख जूट उत्पादक राज्य हैं तथा यहाँ मुख्य रूप से सीमांत एवं छोटे किसानों द्वारा जूट की खेती की जाती हैं। रोज़गार: जूट एक श्रम-प्रधान फसल है, जो स्थानीय किसानों को रोज़गार के बड़े अवसर और लाभ प्रदान करती है। कच्चे जूट की खेती और व्यापार लगभग 14 मिलियन लोगों की आजीविका का साधन है।  महत्त्व: स्वर्ण रेशे के रूप में जाना जाने वाला जूट, खेती और उपयोग की दृष्टि से कपास के बाद भारत में दूसरी सबसे महत्त्वपूर्ण नकदी फसल है। भारत विश्व में जूट का सबसे बड़ा उत्पादक है।   जूट के उपयोग के क्या लाभ हैं? जैव-निम्नीकरणीय: कई देश प्लास्टिक वस्तुओं, विशेषकर प्लास्टिक बैगों के उपयोग को कम करने का प्रयास कर रहे हैं। प्लास्टिक बैगों के बजाय जूट के बैग जैव-निम्नीकरणीय (बायोडिग्रेडेबल) और पर्यावरण-अनुकूल प्रमुख विकल्प हैं। मूल्य-वर्द्धित उत्पाद: पारंपरिक उपयोग के साथ-साथ, जूट मूल्य-वर्द्धित उत्पादों जैसे- कागज़, लुगदी, कंपोजिट, वस्त्र, वाल कवरिंग, फर्श, परिधान और अन्य सामग्रियों के उत्पादन में योगदान दे सकता है। किसानों की आय में वृद्धि: एक एकड़ ज़मीन से लगभग नौ क्विंटल फाइबर या रेशा उत्पन्न किया जाता है। जिसका मूल्य 3,500-4,000 रुपए प्रति क्विंटल है। पत्तियाँ और उनके लकड़ी के तने की कीमत लगभग 9,000 रुपए है। अतः प्रति एकड़ पैदावार 35,000 एवं 40,000 रुपए है। स्थायित्त्व: कपास की तुलना में जूट को केवल आधी भूमि और समय की आवश्यकता होती है, सिंचाई में पानी का पाँचवाँ हिस्सा से भी कम उपयोग होता है साथ ही इसमें बहुत कम रसायनों की आवश्यकता होती है। यह काफी हद तक कीट-प्रतिरोधी होते है और इसकी तीव्र वृद्धि खरपतवारों की वृद्धि को कम करती है। कार्बन तटस्थ फसल: चूँकि जूट पौधों से प्राप्त होता है जो एक बायोमास है, इसलिये यह स्वाभाविक रूप से कार्बन-तटस्थ होता है। कार्बन पृथक्करण: जूट प्रतिवर्ष प्रति हेक्टेयर 1.5 टन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर सकता है। यह जलवायु परिवर्तन को कम करने में मदद कर सकती है। जूट एक तेज़ी से बढ़ने वाला पौधा है, जो कम समय में बहुत अधिक मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड अवशोषित कर सकता है। जूट की खेती में क्या चुनौतियाँ शामिल हैं? प्राकृतिक जल की कम उपलब्धता: ऐतिहासिक रूप से प्रत्येक वर्ष नदी में बाढ़ आने से खेत जलमग्न हो जाते थे, जिससे जूट के बंडल सीधे खेतों में डूब जाते थे, जिससे रीटिंग प्रक्रिया सरल हो जाती है। कम बाढ़ के कारण, मौजूदा प्रक्रियाओं में रेटिंग प्रक्रिया के लिये जूट को मानव निर्मित तालाबों में ले जाया जाता है। अप्राप्त क्षमता: जूट उद्योग की कार्य क्षमता लगभग 55% की है, जिससे 50,000 से अधिक श्रमिक प्रभावित हो रहे हैं। वर्ष 2024-25 तक जूट बैग की मांग घटकर 30 लाख बेल (Bales) रह जाने का अनुमान है। पुरानी तकनीक: जूट आयुक्त कार्यालय के अनुसार, भारत में कई जूट मिलें 30 साल से ज़्यादा पुरानी मशीनरी का प्रयोग करती हैं। इससे परिचालन दक्षता कम हो जाती है और उत्पादन लागत बढ़ जाती

जूट उद्योग में सुधार Read More »

PAC द्वारा नियामक निकायों के प्रदर्शन की समीक्षा

चर्चा में क्यों? हाल ही में लोक लेखा समिति (PAC) ने भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) और भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) जैसी नियामक संस्थाओं के प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिये स्वतः पहल की है। PAC ने नियामक निकायों की समीक्षा क्यों शुरू की है? समीक्षा का उद्देश्य सार्वजनिक निधि के प्रभावी उपयोग को बढ़ाना तथा सरकारी निगरानी में सुधार करना है। यह निर्णय SEBI प्रमुख के खिलाफ हितों के टकराव के आरोपों को लेकर उठे राजनीतिक विवाद के बीच लिया गया। पैनल ने स्वप्रेरणा से जाँच के लिये 5 विषयों का चयन किया है, जिनमें “संसद के अधिनियम द्वारा स्थापित नियामक निकायों की कार्य निष्पादन समीक्षा” और “सार्वजनिक अवसंरचना एवं अन्य सार्वजनिक उपयोगिताओं पर शुल्क, टैरिफ, उपयोगकर्त्ता प्रभार आदि का अधिरोपण और विनियमन” शामिल हैं। लोक लेखा समिति (PAC) क्या है? परिचय:  PAC भारत सरकार के राजस्व और व्यय की लेखापरीक्षा के उद्देश्य से भारत की संसद द्वारा गठित चयनित संसद सदस्यों की एक समिति है। संसदीय समितियों को संविधान के अनुच्छेद 105 और अनुच्छेद 118 के तहत अधिकार प्राप्त हैं। PAC तीन वित्तीय संसदीय समितियों में से एक है, अन्य दो प्राक्कलन समिति तथा सार्वजनिक उपक्रम समिति हैं। CAG समिति का कोई भी सदस्य सरकारी मंत्री के रूप में किसी भी पद पर बना नहीं रह सकता। पृष्ठभूमि: PAC की शुरुआत 1921 में हुई थी, जिसका उल्लेख भारत सरकार अधिनियम, 1919 में पहली बार किया गया था, जिसे मोंटेगू-चेम्सफोर्ड सुधार भी कहा जाता है। इसका गठन प्रत्येक वर्ष लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियमों के नियम 308 के अंतर्गत किया जाता है। संरचना: वर्तमान में इसमें 22 सदस्य होते हैं (लोकसभा अध्यक्ष द्वारा निर्वाचित 15 सदस्य और राज्यसभा के सभापति द्वारा निर्वाचित 7 सदस्य) जिनका कार्यकाल केवल 1 वर्ष होता है। समिति के अध्यक्ष की नियुक्ति लोकसभा अध्यक्ष द्वारा की जाती है। शक्तियाँ और कार्य: व्यय के लिये सदन द्वारा दी गई निधियों के विनियोजन और सरकार के वार्षिक वित्त लेखों की जाँच करना। सदन में प्रस्तुत अन्य लेखों की समीक्षा करना, जिन्हें समिति उचित समझे, सिवाय उन लेखों के जो सार्वजनिक उपक्रमों से संबंधित हों तथा जिन्हें सार्वजनिक उपक्रमों संबंधी समिति को सौंपा गया हो। समिति राजस्व प्राप्तियों, विभिन्न मंत्रालयों/विभागों द्वारा सरकारी व्यय तथा स्वायत्त निकायों के खातों पर विभिन्न CAG लेखापरीक्षा रिपोर्टों की समीक्षा करती है। जाँच के दौरान CAG समिति की सहायता करता है। अनुशंसाएँ: PAC की सिफारिशें सलाहकारी हैं और सरकार पर बाध्यकारी नहीं हैं, क्योंकि यह एक कार्यकारी निकाय है, जो आदेश जारी नहीं कर सकता है तथा केवल संसद ही समिति के निष्कर्षों पर अंतिम निर्णय ले सकती है। भारत में नियामक निकाय क्या हैं? परिचय:  ये एजेंसियाँ प्रत्यक्ष कार्यकारी पर्यवेक्षण के साथ या उसके बिना कार्य कर सकती हैं। नियामक निकाय स्वतंत्र सरकारी संस्थाएँ हैं, जो विशिष्ट गतिविधि या संचालन के क्षेत्रों में मानक निर्धारित करने और लागू करने के लिये स्थापित की जाती हैं। कार्य: विनियम और दिशानिर्देश बनाना गतिविधियों की समीक्षा और मूल्यांकन लाइसेंस जारी करना निरीक्षण करना सुधारात्मक कार्रवाइयों का कार्यान्वयन मानकों को लागू करना उदाहरण:  भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) स्थापना: 1992 मुख्यालय: मुंबई भूमिका: प्रतिभूति बाज़ारों को विनियमित करना, निवेशकों की सुरक्षा करना और बाज़ार की अखंडता सुनिश्चित करना। संरचना: अध्यक्ष, पूर्णकालिक और अंशकालिक सदस्यों सहित बोर्ड। अपीलों का निपटारा प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (SAT) द्वारा किया जाता है, जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय में अपील की जाती है। कार्य: विनियमों का मसौदा तैयार करना, जाँच करना, जुर्माना लगाना, विदेशी उद्यम पूंजी कोष, म्यूचुअल फंड तथा धोखाधड़ी की प्रथाओं को संबोधित करना।  भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (TRAI) स्थापना: 1997 मुख्यालय: नई दिल्ली भूमिका: दूरसंचार सेवाओं को विनियमित करना, टैरिफ संशोधित करना, सेवा की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और दूरसंचार नीति पर सरकार को सलाह देना। संरचना: अध्यक्ष, दो पूर्णकालिक और दो अंशकालिक सदस्य। अपीलीय प्राधिकरण: दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय न्यायाधिकरण (TDSAT) की स्थापना वर्ष 2000 में की गई थी, जो TRAI के निर्णयों से संबंधित विवादों तथा अपीलों को संभालता है।

PAC द्वारा नियामक निकायों के प्रदर्शन की समीक्षा Read More »

हरित हाइड्रोजन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग

चर्चा में क्यों?  हाल ही में प्रधानमंत्री ने भारत मंडपम, नई दिल्ली में आयोजित दूसरे हरित हाइड्रोजन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन (ICGH-2024) को वर्चुअली संबोधित किया। प्रधानमंत्री ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन बढ़ाने, लागत कम करने तथा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता पर ज़ोर दिया। ICGH-2024 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं? भारत की उपलब्धियाँ: भारत हरित ऊर्जा पर पेरिस समझौते की प्रतिबद्धताओं को पूरा करने वाले पहले G20 देशों में से एक है। भारत की प्रतिबद्धताएँ वर्ष 2030 के लक्ष्य से 9 वर्ष पहले ही पूरी हो गईं। भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 गीगावाट तक बढ़ाने तथा कुल अनुमानित कार्बन उत्सर्जन को 1 बिलियन टन तक कम करने का संकल्प लिया। पिछले दशक में भारत में स्थापित गैर-जीवाश्म ईंधन क्षमता में लगभग 300% की वृद्धि हुई है। हरित हाइड्रोजन का उभरता महत्त्व: हरित हाइड्रोजन को वैश्विक ऊर्जा परिदृश्य में एक प्रमुख घटक के रूप में पहचाना जाता है, जिसमें रिफाइनरियों, उर्वरकों, इस्पात और भारी-भरकम परिवहन जैसे विद्युतीकरण में कठिन क्षेत्रों को कार्बन मुक्त करने की क्षमता है। यह अधिशेष नवीकरणीय ऊर्जा के भंडारण समाधान के रूप में भी कार्य कर सकता है। अनुसंधान में निवेश: सम्मेलन में अत्याधुनिक अनुसंधान और विकास में निवेश, उद्योग तथा शिक्षा जगत के बीच साझेदारी एवं ग्रीन हाइड्रोजन के स्टार्ट-अप एवं उद्यमियों को प्रोत्साहन देने का आह्वान किया गया। प्रधानमंत्री ने क्षेत्र के विशेषज्ञों और वैज्ञानिक समुदाय से हरित हाइड्रोजन को अपनाने में अग्रणी भूमिका निभाने का आग्रह किया। G-20 शिखर सम्मेलन की अंतर्दृष्टि: प्रधानमंत्री ने नई दिल्ली G-20 भागीदारों के घोषणा-पत्र को रेखांकित किया, जिसमें हाइड्रोजन पर पाँच उच्चस्तरीय स्वैच्छिक सिद्धांतों को अपनाया गया है, जो एकीकृत रोडमैप के निर्माण में सहायता कर रहे हैं। महत्त्वपूर्ण प्रश्न: प्रधानमंत्री ने इलेक्ट्रोलाइजर की दक्षता में सुधार करने, उत्पादन के लिये समुद्री जल और नगरपालिका अपशिष्ट जल का उपयोग करने तथा सार्वजनिक परिवहन, शिपिंग व जलमार्गों में हरित हाइड्रोजन की भूमिका का पता लगाने की पद्धतियों के विषय में पूछा। नोट:  भारत ने नवंबर 2024 में आयोजित होने वाले यूरोपीय हाइड्रोजन सप्ताह के साथ एक विशेष साझेदारी की घोषणा की है। यह यूरोपीय संघ के हरित नियमों को संबोधित करने की भारत की इच्छा को उजागर करता है।  इसके अतिरिक्तभारतीय रेलवे जनवरी 2025 में पहली हाइड्रोजन ईंधन वाली ट्रेन के क्षेत्रीय परीक्षण की योजना बना रहा है। परीक्षण के लिये 1200 किलोवाट डीज़ल इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट (DEMU) को हाइड्रोजन ईंधन सेल आधारित वितरित पावर रोलिंग स्टॉक (DPRS) में परिवर्तित किया जाएगा। हरित हाइड्रोजन को बढ़ावा देने में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की आवश्यकता क्यों है? उच्च उत्पादन लागत: अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) के अनुसार, हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की लागत 3 से 8 अमेरिकी डॉलर प्रति किलोग्राम तक हो सकती है, जो जीवाश्म ईंधन से उत्पादित ग्रे हाइड्रोजन की तुलना में काफी अधिक है। प्रौद्योगिकी और अवसंरचना निवेश: वर्ष 2014 और 2019 के बीच क्षारीय इलेक्ट्रोलाइज़र की लागत में 40% की कमी आई है, लेकिन हरित हाइड्रोजन को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिये लागत में और कटौती की आवश्यकता है। इलेक्ट्रोलिसिस लागत: ग्रीन हाइड्रोजन का उत्पादन इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से किया जाता है, जिसके लिये पर्याप्त मात्रा में विद्युत की आवश्यकता होती है। वर्ष 2023 तक पारंपरिक हाइड्रोजन की तुलना में ग्रीन हाइड्रोजन की उत्पादन लागत अधिक बनी हुई थी। इलेक्ट्रोलाइज़र की दक्षता: भारत के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार, वर्तमान इलेक्ट्रोलाइज़र अभी इतने कुशल नहीं हैं कि उन्हें व्यापक रूप से अपनाया जा सके। दक्षता में सुधार और लागत कम करने के लिये अनुसंधान एवं विकास की आवश्यकता है। संसाधन उपलब्धता: यूरोपीय आयोग के अनुसार, इलेक्ट्रोलाइज़र तथा ईंधन कोशिकाओं के लिये दुर्लभ मृदा तत्त्वों की उपलब्धता एक और चुनौती प्रस्तुत करती है। प्लैटिनम और इरीडियम जैसी धातुओं की आवश्यकता हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों की मापनीयता को बाधित कर सकती है। उत्पादन बढ़ाना: वैश्विक मांग को पूरा करने के लिये उत्पादन बढ़ाना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है। यूरोपीय संघ का हाइड्रोजन रोडमैप इंगित करता है कि हरित हाइड्रोजन उत्पादन के लिये  आवश्यक पैमाने को प्राप्त करने हेतु उद्योगों और सरकारों में समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है। हरित हाइड्रोजन के प्रोत्साहन में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग किस प्रकार मदद कर सकता है? उत्पादन में वृद्धि: हाइड्रोजन काउंसिल की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2030 तक एशिया को हाइड्रोजन परियोजनाओं में 90 बिलियन अमेरिकी डॉलर के निवेश की आवश्यकता है। IEA के अनुसार, संयुक्त उद्यम और सीमा पार सहयोग विविध तकनीकी क्षमताओं एवं विनिर्माण संसाधनों का लाभ उठाकर हरित हाइड्रोजन उत्पादन प्रौद्योगिकियों के विस्तार में काफी तेज़ी ला सकते हैं। पैमाने की अर्थव्यवस्थाएँ: यूरोपीय आयोग ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि संयुक्त अंतर्राष्ट्रीय पहलों से साझा निवेश और सामग्रियों की थोक खरीद के माध्यम से लागत में कमी लाई जा सकती है। उदाहरण के लिये, 30 अग्रणी यूरोपीय ऊर्जा कंपनियों के एक समूह ने आधिकारिक तौर पर ‘हाइडील एम्बिशन’ लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य समग्र यूरोप में 1.5 यूरो/किलोग्राम की कम लागत पर 100% हरित हाइड्रोजन की आपूर्ति सुनिश्चित करना है। साझा अवसंरचना: हरित हाइड्रोजन उत्पादन, भंडारण और वितरण के लिये साझा अवसंरचना निवेश से लागत में कमी आ सकती है, जो प्रौद्योगिकी को अधिक आर्थिक रूप से व्यवहार्य बना सकता है। एशिया-प्रशांत हाइड्रोजन एसोसिएशन के क्षेत्रीय नेटवर्क जैसी सहयोगात्मक अवसंरचना परियोजनाएँ दर्शाती हैं कि साझा सुविधाएँ किस प्रकार लागत कम कर सकती हैं। साझेदारी के माध्यम से नवाचार: वैश्विक साझेदारियाँ विविध अनुसंधान परिप्रेक्ष्यों और वित्तपोषण स्रोतों को एक साथ लाकर नवाचार को बढ़ावा देती हैं। उदाहरण के लिये, वैश्विक हाइड्रोजन गठबंधन एक ऐसे मंच का प्रमुख उदाहरण है, जो हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों में नवाचार को बढ़ावा देने के लिये सरकारों, उद्योग जगत के अभिकर्त्ताओं और अनुसंधान संस्थानों को एक साथ लाता है। एकीकृत नीतियाँ और विनियमन: अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से हरित हाइड्रोजन विकास का समर्थन करने वाली सुसंगत नीतियों और विनियमों को विकसित करने में मदद मिलती है। भारत की अध्यक्षता में G20 शिखर सम्मेलन- 2023 में हरित हाइड्रोजन के लिये स्वैच्छिक सिद्धांतों को अपनाया गया, जिससे एक साझा रोडमैप बनाने में मदद मिलेगी। निवेश और वित्तपोषण: संयुक्त वित्तपोषण पहल और अंतर्राष्ट्रीय स्रोतों से निवेश अनुसंधान एवं क्रियान्वयन में तेज़ी ला सकता है। उदाहरण के लिये हाइड्रोजन पर कई शोध और नवाचार परियोजनाएँ, यूरोपीय संघ के शोध एवं नवाचार फ्रेमवर्क कार्यक्रम, होराइज़न

हरित हाइड्रोजन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग Read More »

PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना

चर्चा में क्यों?  हाल ही में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना के लिये केंद्रीय वित्तीय सहायता और भुगतान सुरक्षा तंत्र हेतु प्रारूप दिशानिर्देश जारी किये हैं। केंद्रीय मंत्रिमंडल ने फरवरी 2024 में 1 करोड़ परिवारों को लाभान्वित करने के लिये 75,000 करोड़ रुपए की PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना को मंज़ूरी दी थी। प्रारूप दिशानिर्देशों के मुख्य तथ्य क्या हैं? मॉडल: प्रारूप दिशानिर्देश अक्षय ऊर्जा सेवा कंपनी (RESCO) मॉडल और रूफटॉप सोलर पैनल- ‘PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना’ के यूटिलिटी लेड एसेट (ULA) मॉडल के तहत जारी किये गए हैं। अक्षय ऊर्जा सेवा कंपनी (RESCO) मॉडल: RESCO उपभोक्ता की रूफटॉप सोलर पैनल का विकास और स्वामित्व कम-से-कम पाँच वर्षों के लिये वैधता बनाए रखती है। RESCO आवश्यकतानुसार संयंत्र के रखरखाव के लिये आवश्यक सभी परिचालन व्यय भी करती है। ग्राहक उत्पादित बिजली के लिये RESCO को भुगतान करते हैं और अपने बिजली बिल पर नेट मीटरिंग का लाभ प्राप्त करते हैं।  ग्रिड को उत्पादित बिजली की बिक्री करने के लिये RESCO और वितरण कंपनी (Discom) के बीच विद्युत क्रय समझौता (PPA) किया जा सकता है। उपयोगिता आधारित परिसंपत्ति (ULA) मॉडल: इस मॉडल में परियोजना के दौरान रूफटॉप इनस्टॉल्ड सोलर पैनल का स्वामित्व कम-से-कम पाँच वर्षों की परियोजना अवधि के लिये राज्य वितरण कंपनी डिस्कॉम (Discom) के पास रहता है, तदोपरांत स्वामित्व घर को अंतरित कर दिया जाता है। केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) के लिये पात्रता: आवासीय भवनों की छतों, छज्जों, बालकनियों और ऊँचे अवसंरचना/ढाँचों पर स्थापित सौर पैनल, जो ग्रिड से जुड़े होते हैं। समूह नेट मीटरिंग और वर्चुअल नेट मीटरिंग जैसे मीटरिंग तंत्र के अंतर्गत स्थापना। अपवर्जन: जिन घरों में पहले से ही रूफटॉप सोलर पैनल स्थापित है, वे प्रधानमंत्री सूर्य घर योजना के लिये RESCO और ULA मॉडल के अंतर्गत पात्र नहीं हैं। भुगतान सुरक्षा तंत्र: भुगतान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये 100 करोड़ रुपए का कोष स्थापित किया जाएगा, जिसका प्रबंधन एक राष्ट्रीय कार्यक्रम कार्यान्वयन एजेंसी द्वारा किया जाएगा। भुगतान सुरक्षा कोष के निर्माण से सौर परियोजनाओं के लिये वित्तीय स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित होती है। PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना क्या है? परिचय: यह पर्याप्त वित्तीय सब्सिडी प्रदान करके और इनस्टॉलेशन में सुविधा सुनिश्चित करके सोलर रूफटॉप सिस्टम को अपनाने को बढ़ावा देने के लिये एक केंद्रीय योजना है। उद्देश्य: इसका लक्ष्य भारत में एक करोड़ परिवारों को मुफ्त विद्युत ऊर्जा उपलब्ध कराना है, जो रूफटॉप सोलर पैनल वाली बिजली इकाइयाँ स्थापित करना चाहते हैं। परिवारों को प्रत्येक महीने 300 यूनिट बिजली मुफ्त मिल सकेगी। कार्यान्वयन एजेंसियाँ: योजना का क्रियान्वयन दो स्तरों पर किया जाएगा। राष्ट्रीय स्तर: राष्ट्रीय कार्यक्रम कार्यान्वयन एजेंसी (NPIA) द्वारा प्रबंधित। राज्य स्तर: राज्य कार्यान्वयन एजेंसियों (SIA) द्वारा प्रबंधित, जो संबंधित राज्यों या केंद्रशासित प्रदेशों की वितरण उपयोगिताएँ (डिस्कॉम) या विद्युत/ऊर्जा विभाग हैं। डिस्कॉम की भूमिका: SIA के रूप में डिस्कॉम रूफटॉप सौर ऊर्जा संक्रमण को बढ़ावा देने की दिशा में विभिन्न उपायों को सुविधाजनक बनाने के लिये उत्तरदायी हैं, जिसमें नेट मीटर की उपलब्धता सुनिश्चित करना, समय पर निरीक्षण करना एवं प्रतिष्ठानों को चालू करना शामिल है। सब्सिडी संरचना: यह योजना सोलर रूफटॉप सिस्टम इनस्टॉलेशन की लागत को कम करने के लिये सब्सिडी प्रदान करती है। सब्सिडी अधिकतम 3 किलोवाट क्षमता तक सीमित है। 2 किलोवाट क्षमता तक के सोलर सिस्टम के लिये 60% सब्सिडी। 2 किलोवाट से 3 किलोवाट क्षमता के बीच सोलर सिस्टम के लिये 40% सब्सिडी। योजना की अतिरिक्त विशेषताएँ:  आदर्श सौर गाँव: प्रत्येक ज़िले में एक ‘मॉडल सोलर विलेज’ विकसित किया जाएगा, जो एक प्रदर्शन परियोजना के रूप में कार्य करेगा तथा ग्रामीण क्षेत्रों में रूफटॉप सोलर सिस्टम अपनाने को बढ़ावा देगा। स्थानीय निकायों के लिये प्रोत्साहन: शहरी स्थानीय निकायों और पंचायती राज संस्थान को अपने-अपने क्षेत्रों में छतों पर सौर ऊर्जा संयंत्र लगाने को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहन मिलेगा। प्रधानमंत्री सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना के अपेक्षित लाभ क्या हैं? आर्थिक लाभ: परिवारों को बिजली बिल में कमी का लाभ मिलेगा और वे वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को अधिशेष विद्युत की बिक्री कर अतिरिक्त आय अर्जित कर सकेंगे। 3 किलोवाट की रूफटॉप सोलर सिस्टम प्रति माह 300 यूनिट से अधिक बिजली उत्पादन कर सकती है, जो योजना के उद्देश्यों के अनुसार मुफ्त बिजली उपलब्ध कराती है। सौर ऊर्जा उत्पादन: इस योजना से भवन की छतों पर सोलर सिस्टम इनस्टॉलेशन के माध्यम से 30 गीगावाट सौर क्षमता के लाभ की उम्मीद है, जिससे सोलर सिस्टम के 25 वर्ष के जीवनकाल में 1000 बिलियन यूनिट (BU) बिजली का उत्पादन होगा। कम कार्बन उत्सर्जन: इससे CO2 समतुल्य उत्सर्जन में 720 मिलियन टन की कमी आएगी, जिससे पर्यावरणीय स्थिरता में महत्त्वपूर्ण योगदान मिलेगा। रोजगार सृजन: इस योजना से विनिर्माण, लॉजिस्टिक्स, आपूर्ति शृंखला प्रबंधन, बिक्री, स्थापना, संचालन और रखरखाव (O&M) जैसे विभिन्न क्षेत्रों में लगभग 17 लाख प्रत्यक्ष रोज़गार सृजित होने का अनुमान है। योजना के कार्यान्वयन में क्या चुनौतियाँ हैं? घरेलू अनिच्छा: एक महत्त्वपूर्ण चुनौती यह है कि कई राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा मुफ्त बिजली उपलब्ध कराए जाने के कारण घरेलू परिवार रूफटॉप सोलर सिस्टम इनस्टॉल करने में रूचि नहीं दिखाते हैं। सीमित स्थान उपयोग: सीमित छत स्थान, असमान भू-भाग, छाया, कम संपत्ति स्वामित्व तथा सौर पैनलों की चोरी या तोड़फोड़ जैसे जोखिमों के कारण 1-2 किलोवाट सेगमेंट को सुविधा मुहैया कराना जटिल है। डिस्कॉम पर परिचालन संबंधी दबाव: वर्तमान नेट मीटरिंग प्रणाली डिस्कॉम के लिये वित्तीय रूप से बोझिल है, जो पहले से ही भारी घाटे का सामना कर रही है। डिस्कॉम उन गृहस्वामियों के लिये अवैतनिक भंडारण सुविधाएँ बन जाती हैं, जो दिन में तो सौर ऊर्जा आधारित बिजली का उत्पादन करते हैं, लेकिन अन्य समय में विशेषकर रात के दौरान ग्रिड से ऊर्जा का उपभोग करते हैं। भंडारण एकीकरण: रूफटॉप सोलर सिस्टम इनस्टॉल करने वाली भंडारण प्रणालियों के लिये अधिदेश की कमी से ‘डक कर्व’ जैसी ग्रिड प्रबंधन समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। डक कर्व उन दिनों में ग्रिड से बिजली की मांग का ग्राफिकल प्रतिनिधित्व है, जब सौर ऊर्जा का उत्पादन अधिक होता है और ग्रिड में मांग कम होती है। गुणवत्ता आश्वासन चुनौतियाँ: ग्राहकों को प्रायः स्थापित प्रणालियों की गुणवत्ता का आकलन करने में कठिनाई होती है, जिससे वे निम्न स्तरीय सेवा और प्रदर्शन के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। सौर ऊर्जा का उपयोग करने के लिये सरकार की

PM सूर्य घर-मुफ्त बिजली योजना Read More »

RCEP को लेकर भारत करेगा पुनर्विचार

चर्चा में क्यों? हाल ही में विश्व बैंक के नवीनतम इंडिया डेवलपमेंट अपडेट: इंडियाज़ अपरच्युनिटी इन अ चेंजिंग ग्लोबल कॉन्टेक्स्ट में, भारत को क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) में शामिल होने पर पुनर्विचार करने का सुझाव दिया गया। एक भारतीय थिंक टैंक ने इस विचार को यह कहते हुए खारिज़ कर दिया कि यह त्रुटिपूर्ण मान्यताओं और पुराने अनुमानों पर आधारित है। भारत के RCEP से हटने के बारे में विश्व बैंक का विश्लेषण क्या है? आय लाभ: विश्व बैंक के एक अध्ययन के अनुसार यदि भारत समझौते में फिर से शामिल होता है तो उसकी आय में सालाना 60 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि होगी और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो 6 बिलियन अमरीकी डॉलर की कमी आएगी। ये लाभ कच्चे माल, हल्के और उन्नत विनिर्माण एवं सेवाओं सहित विभिन्न क्षेत्रों में होंगे। निर्यात वृद्धि: RCEP में शामिल होने से विपणन, बैंकिंग और कंप्यूटर सहित सेवाओं के निर्यात में संभावित 17% की वृद्धि का अनुमान है। आर्थिक लाभ से इनकार: भारत के बिना RCEP (भारत के बिना) से वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में 186 बिलियन अमरीकी डॉलर की वृद्धि होगी और सदस्य देशों के सकल घरेलू उत्पाद में स्थायी आधार पर सालाना 0.2% की वृद्धि होगी। मुख्य लाभार्थी चीन (85 बिलियन अमरीकी डॉलर), जापान (48 बिलियन अमरीकी डॉलर) और दक्षिण कोरिया (23 बिलियन अमरीकी डॉलर) होंगे। भारत RCEP से होने वाले आर्थिक लाभ का एक बड़ा हिस्सा खो देगा। व्यापार विपथन/स्थानांतरण जोखिम: RCEP से बाहर रहने से भारत को व्यापार स्थानांतरण का सामना करना पड़ सकता है, क्योंकि व्यापार ब्लॉक के सदस्य आपूर्ति शृंखलाओं को स्थानांतरित कर सकते हैं और आपस में प्रतिस्पर्द्धा बढ़ा सकते हैं, जिससे संभावित रूप से RCEP राष्ट्रों में भारत द्वारा निर्यात को नुकसान पहुँच सकता है। संभावित नए सदस्य: बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे दक्षिण एशियाई देशों ने हाल ही में RCEP में शामिल होने में रुचि दिखाई है। वास्तव में भारत RCEP के प्रभावों से पूरी तरह मुक्त नहीं सकता, क्योंकि श्रीलंका जैसे देशों के साथ भारत के मुक्त व्यापार समझौते (FTA) है। भारत की निर्यात रणनीति और व्यापार नीति के संदर्भ में विश्व बैंक का मूल्यांकन क्या है? निर्यात विविधीकरण की आवश्यकता: समय के साथ सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में भारत का वस्तु व्यापार कम हुआ है तथा वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में इसकी भागीदारी भी कम हुई है। वस्त्र, परिधान, चमड़ा और जूते जैसे अधिक श्रम-प्रधान क्षेत्रों में विस्तार करके विविधीकरण हासिल किया जा सकता है। परिधान, चमड़ा, वस्त्र और जूते (Apparel, Leather, Textiles, and Footwear- ALTF) के वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी वर्ष 2002 के 0.9% से बढ़कर वर्ष 2013 में 4.5% के शिखर पर पहुँच गई, लेकिन वर्ष 2022 में यह हिस्सेदारी घटकर 3.5% रह गई।   GVC की भागीदारी में वृद्धि: GVC में एकीकरण करके भारत: उच्चतर मूल्यवर्धित वस्तुओं के उत्पादन में भाग लेकर अपने उत्पादन की विविधता का विस्तार करेगा। उन्नत प्रौद्योगिकियों और वैश्विक बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त करके अपनी प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाएगा। भारत में उत्पादन करने की इच्छुक बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा FDI प्रवाह में वृद्धि करेगा। उदारीकरण और संरक्षणवाद में संतुलन: भारत की व्यापार नीति में उदारीकरण और संरक्षणवाद दोनों ही उपाय शामिल हैं। उदाहरण के लिये, राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति 2022 और डिजिटल सुधार जैसी पहलों का उद्देश्य लॉजिस्टिक्स लागत को कम करना तथा व्यापार सुगमता में सुधार करना है। इसके विपरीत संरक्षणवादी उपायों में पुनः वृद्धि हुई है, जैसे टैरिफ में वृद्धि और गैर-टैरिफ बाधाएँ, जो भारत के खुले व्यापार को प्रतिबंधित करती हैं। व्यापार समझौते: हाल ही में UAE और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों के साथ हुए मुक्त व्यापार समझौते (FTA) अधिमान्य व्यापार समझौतों की ओर बदलाव का संकेत देते हैं। हालाँकि भारत संभावित लाभों के बावजूद क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी (RCEP) जैसे बड़े व्यापार ब्लॉकों में शामिल होने से बचता रहा है। भारत की टैरिफ और औद्योगिक नीतियों का पुनर्मूल्यांकन: भारत मोबाइल फोन का शुद्ध निर्यातक बन गया है क्योंकि राष्ट्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स नीति 2019, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना 2020 जैसी नीतियों के कारण आयात में गिरावट के बीच निर्यात में वृद्धि हुई है। हालाँकि प्रमुख मध्यवर्ती सुझावों पर आयात शुल्क में हाल ही में की गई वृद्धि, जिसने वर्ष 2018 और 2021 के बीच औसत शुल्क को 4% से 18% तक ला दिया है, इस क्षेत्र की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को खतरे में डालती है।  भारत के लिये अवसर: भू-राजनीतिक जोखिमों की बढ़ती धारणा ने कंपनियों को अपनी सोर्सिंग रणनीतियों में विविधता लाने हेतु प्रेरित किया है। यह भारत जैसे देशों के लिये एक अवसर प्रस्तुत करता है, जहाँ प्रचुर कार्यबल और बढ़ता हुआ विनिर्माण आधार है।   भारत RCEP में शामिल होने पर पुनर्विचार क्यों अनिश्चित रहा है? विश्व बैंक के सुझाव में त्रुटिपूर्ण धारणाएँ: विश्व बैंक के अध्ययन में वर्ष 2030 तक 60 बिलियन अमेरिकी डॉलर की आय वृद्धि का अनुमान लगाया गया है, लेकिन इसमें यह नहीं माना गया है कि इनमें से अधिकांश लाभ आयात में वृद्धि से आएगा, जिससे व्यापार असंतुलन उत्पन्न होगा। RCEP सदस्यों के बीच व्यापार घाटा: RCEP के चालू होने के बाद से चीन के साथ आसियान का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 81.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 135.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है। इसी तरह चीन के साथ जापान का व्यापार घाटा वर्ष 2020 में 22.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर 2023 में 41.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया था। दक्षिण कोरिया को वर्ष 2024 में पहली बार चीन के साथ व्यापार घाटे का भी सामना करना पड़ सकता है। चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर अत्यधिक निर्भरता: RCEP सदस्यों का बढ़ता व्यापार घाटा चीन-केंद्रित आपूर्ति शृंखलाओं पर बढ़ती निर्भरता को उजागर करता है। यह निर्भरता महत्त्वपूर्ण जोखिम प्रस्तुत करती है, विशेष रूप से वैश्विक आपूर्ति शृंखला व्यवधानों के संदर्भ में, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान अनुभव किया गया। अनुचित प्रतिस्पर्द्धा: RCEP में शामिल न होकर भारत ने अन्य व्यापार समझौतों की संभावनाओं को तलाशना जारी रखा, जो चीन के पक्ष में अनुचित रूप से न हों या उसके आर्थिक हितों के लिये खतरा न हों। चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा वर्ष 2023-24 में बढ़कर 85 बिलियन अमेरिकी डॉलर होगा। वैकल्पिक व्यापार समझौते: भारत के पास पहले से ही न्यूज़ीलैंड और चीन को छोड़कर 15

RCEP को लेकर भारत करेगा पुनर्विचार Read More »

एसएससी सीजीएल परीक्षा में कितने चरण होते हैं? सरकारी नौकरी के लिए करना होगा लंबा इंतजार

एसएससी सीजीएल परीक्षा 9 सितंबर को शुरू हुई थी और 26 सितंबर 2024 को खत्म होगी. स्टाफ सेलेक्शन कमीशन की कंबाइंड ग्रेजुएट लेवल परीक्षा में कई चरण होते हैं. इसके जरिए केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों में सरकारी नौकरी करने का अवसर मिलता है. एसएससी सीजीएल 2024 परीक्षा से जुड़े सभी लेटेस्ट अपडेट्स ऑफिशियल वेबसाइट ssc.nic.in पर चेक कर सकते हैं. हर साल लाखों युवा एसएससी सीजीएल परीक्षा देते हैं. उनमें से कुछ ही सफल होकर सरकारी नौकरी का सपना साकार कर पाते हैं (Sarkari Naukri). बता दें कि एसएससी सीजीएल परीक्षा का प्रोसेस काफी लंबा होता है. परीक्षा देने, रिजल्ट जारी होने, डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन आदि होने और फाइनली सरकारी नौकरी मिलने में 3 महीनों से ज्यादा का वक्त लग जाता है. एसएससी परीक्षा की तैयारी कर रहे सभी युवाओं को इसकी पूरी प्रक्रिया पता होनी चाहिए (SSC CGL Recruitment). एसएससी सीजीएल परीक्षा में कितने चरण हैं? ज्यादातर प्रतियोगी परीक्षाओं का प्रोसेस काफी लंबा होता है. कभी-कभी तो पूरी प्रक्रिया 10 महीने या सालभर तक भी खिंच जाती है. एसएससी सीजीएल परीक्षा में लिखित परीक्षा से लेकर इंटरव्यू तक, कई चरण होते हैं. एसएससी सीजीएल के तहत ग्रुप बी और सी पदों पर सरकारी नौकरी (SSC Jobs) के लिए जानिए मुख्य चरण- एसएससी सीजीएल का पहला चरण: भर्ती परीक्षा का नोटिफिकेशन एसएससी सीजीएल परीक्षा के पहले चरण में हर साल मई या जून में एसएससी भर्ती परीक्षा का नोटिस रिलीज किया जाता है (SSC CGL Jobs Notification). इच्छुक युवाओं को नोटिफिकेशन जारी होने के 30 दिनों के अंदर आवेदन फॉर्म भरना होता है.   एसएससी सीजीएल का दूसरा चरण: एसएससी सीजीएल टियर 1 परीक्षा एसएससी सीजीएल परीक्षा फॉर्म भरने के बाद एडमिट कार्ड जारी किए जाते हैं (SSC CGL Tier 1 Exam). फिर उम्मीदवारों को एसएससी सीजीएल टियर 1 परीक्षा देनी होती है. बता दें कि यह सरकारी भर्ती परीक्षा आवेदन प्रक्रिया खत्म होने के डेढ़ से दो महीने के अंदर आयोजित होती है. एसएससी सीजीएल का तीसरा चरण: एसएससी सीजीएल टियर 2 परीक्षा एसएससी सीजीएल टियर 1 परीक्षा में सफल हुए अभ्यर्थी टियर 2 परीक्षा देते हैं (SSC CGL Tier 2 Exam). यह एसएससी सीजीएल टियर 1 परीक्षा खत्म होने के 2 से ढाई महीने बाद आयोजित की जाती है. एसएससी सीजीएल टियर 1 परीक्षा परिणाम आने के बाद कैंडिडेट्स अपनी पोस्ट का प्रिफरेंस भरते हैं. एसएससी सीजीएल का चौथा चरण: फाइनल रिजल्ट (Sarkari Result) एसएससी सीजीएल टियर टू परीक्षा के बाद स्टाफ सेलेक्शन कमीशन कैंडिडेट्स का फाइनल रिजल्ट जारी करता है (SSC CGL Result). इसमें उनके मार्क्स के साथ ही पोस्ट प्रिफरेंस के हिसाब से मिनिस्ट्री और डिपार्टमेंट में उन्हें जगह दी जाती है. कई बार यह प्रक्रिया कुछ महीनों तक खिंच जाती है.

एसएससी सीजीएल परीक्षा में कितने चरण होते हैं? सरकारी नौकरी के लिए करना होगा लंबा इंतजार Read More »

अफ़्रीकी शहरी मंच 2024

पहला अफ्रीका शहरी फोरम 2024 4-6 सितंबर, 2024 को अदीस अबाबा में आयोजित किया गया। फोरम का ध्यान अफ्रीका में तेजी से हो रहे शहरीकरण पर केंद्रित था। फोरम का गठन शहरीकरण की चुनौतियों और अवसरों दोनों को संबोधित करने के लिए किया गया था।   प्रमुख बिंदु:    ए) इस फोरम का आयोजन अफ्रीकी नेताओं को ऐसे शहरों के निर्माण के लिए रणनीति बनाने में सक्षम बनाने के लिए किया गया था, जो पर्यावरणीय स्थिरता, सामाजिक समावेशिता और आर्थिक लचीलेपन को प्राथमिकता देते हों।   बी) तीन दिवसीय फोरम के समापन के बाद जारी एक बयान में, 54 देशों के महाद्वीप के प्रतिनिधियों ने पुष्टि की कि अफ्रीका का भविष्य का विकास इसके शहरी क्षेत्रों की प्रभावी योजना पर निर्भर करता है, क्योंकि ये क्षेत्र इसकी अधिकांश आबादी का घर होंगे।

अफ़्रीकी शहरी मंच 2024 Read More »

सारथी एप्लीकेशन

हाल ही में ओपन नेटवर्क फॉर डिजिटल कॉमर्स (ONDC) ने भाषिनी के सहयोग से सारथी एप्लीकेशन लॉन्च किया है। यह एप्लीकेशन व्यवसायों को अपने स्वयं के कस्टमाइज्ड बायर-साइड एप्लीकेशन बनाने में सहायता करता है। यह एप्लीकेशन हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, बांग्ला और तमिल जैसी कई भाषाओं को सपोर्ट करता है। भाषिनी भारत का AI आधारित भाषा अनुवाद प्लेटफॉर्म है जो भारतीय भाषाओं में इंटरनेट और डिजिटल सेवाओं तक आसान पहुंच को सक्षम बनाता है।    प्रमुख बिंदु:   ए) एआई-संचालित भाषा अनुवाद उपकरण भाषिनी के साथ मिलकर विकसित किया गया सारथी ओएनडीसी प्रतिभागियों को अधिक समावेशी डिजिटल वाणिज्य अनुभव के लिए उन्नत बहुभाषी सुविधाएँ प्रदान करेगा। बी) यह एप्लिकेशन शुरुआत में 5 भाषाओं – हिंदी, अंग्रेजी, मराठी, बांग्ला और तमिल का समर्थन करता है।  सी) यह सुनिश्चित करेगा कि व्यवसाय व्यक्तिगत और स्थानीयकृत खरीदारी का अनुभव प्रदान कर सकें, भाषा संबंधी बाधाओं को तोड़ सकें और पूरे भारत में उपयोगकर्ताओं के लिए पहुँच को बढ़ा सकें।

सारथी एप्लीकेशन Read More »

Translate »
Scroll to Top