बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा आईटी नियम 2023 को रद्द किया जाना
चर्चा में क्यों? हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2023 को रद्द कर दिया है, जो केंद्र सरकार को सोशल मीडिया पर फर्जी, झूठी और भ्रामक सूचनाओं की पहचान करने के लिये फैक्ट चेक यूनिट (FCU) स्थापित करने का अधिकार देता था। FCU के संबंध में उच्च न्यायालय की टिप्पणी? सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(g) (व्यवसाय की स्वतंत्रता और अधिकार) का उल्लंघन होता है। फर्जी या भ्रामक समाचार की परिभाषा अस्पष्ट बनी हुई है, इसमें स्पष्टता और सटीकता का अभाव है। कानूनी रूप से स्थापित “सत्य के अधिकार” के अभाव में राज्य यह सुनिश्चित करने के लिये बाध्य नहीं है कि नागरिकों को केवल वही जानकारी उपलब्ध कराई जाए जिसे फैक्ट चेक यूनिट (FCU) द्वारा सटीक माना गया हो। इसके अतिरिक्त ये उपाय आनुपातिकता के मानक को पूरा करने में विफल रहे हैं। फेक न्यूज़ के बारे में मुख्य तथ्य राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में फेक न्यूज़ के कुल 1,527 मामले दर्ज किये गए, जो 214% की वृद्धि दर्शाते हैं (वर्ष 2019 में 486 मामले और वर्ष 2018 में 280 मामले दर्ज किये गए थे)। पीआईबी की फैक्ट चेक यूनिट ने नवंबर 2019 में अपनी स्थापना के बाद से फेक न्यूज़ के 1,160 मामलों को खारिज किया है। फैक्ट चेक यूनिट (FCU) क्या है? परिचय: FCU भारत सरकार से संबंधित फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने और उसका समाधान करने के लिये एक आधिकारिक निकाय है। इसका प्राथमिक कार्य तथ्यों की पहचान करना और उनका सत्यापन करना है तथा सार्वजनिक संवाद में सटीक जानकारी का प्रसार सुनिश्चित करना है। FCU की स्थापना: अप्रैल 2023 में MeitY ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन करके फैक्ट-चेक यूनिट (FCU) की स्थापना की थी। कानूनी मुद्दा: मार्च 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेस सूचना ब्यूरो के तहत फैक्ट-चेक यूनिट (FCU) की स्थापना पर रोक लगा दी। सरकार ने FCU का पक्ष लिया, क्योंकि इसका उद्देश्य फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकना है और यह फेक न्यूज़ से निपटने के लिये सबसे कम प्रतिबंधात्मक उपाय है। अनुपालन और परिणाम: FCU द्वारा संबंधित विषय-वस्तु पर निर्णय लिया जाएगा तथा इसके निर्देशों का अनुपालन करने में मध्यस्थों की विफलता के परिणामस्वरूप आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 79 के तहत सुरक्षित हार्वर प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिये कार्रवाई की जा सकती है। सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023 क्या है? परिचय: ये नियम सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अंतर्गत स्थापित किये गए थे। यह नियम सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश) नियम, 2011 का स्थान लेगा। मध्यस्थों का उचित उत्तरदायित्व: मध्यस्थों को अपने प्लेटफॉर्म पर नियम, विनियम, गोपनीयता नीतियाँ और उपयोगकर्त्ता समझौतों को प्रमुखता से प्रदर्शित करना होगा। मध्यस्थों को अश्लील, अपमानजनक या भ्रामक जानकारी सहित गैर-कानूनी सामग्री के प्रकाशन को रोकने के लिये कदम उठाने चाहिये। उपयोगकर्त्ताओं की शिकायतों को निपटाने के लिये मध्यस्थों द्वारा शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये। प्रमुख मध्यस्थों के लिये अतिरिक्त उत्तरदायित्व: प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों को एक मुख्य अनुपालन अधिकारी और एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करना होगा। इन मध्यस्थों को शिकायतों और की गई कार्रवाई सहित मासिक अनुपालन की रिपोर्ट देनी होगी। शिकायत निवारण तंत्र: मध्यस्थों को 24 घंटे के अंदर शिकायतों की पावती देनी होगी तथा 15 दिनों के अंदर उनका समाधान करना होगा। गोपनीयता का उल्लंघन करने वाली या हानिकारक सामग्री वाली सामग्री से संबंधित शिकायतों का समाधान 72 घंटों के अंदर किया जाना चाहिये। प्रकाशकों के लिये आचार संहिता: समाचार और ऑनलाइन सामग्री के प्रकाशकों को आचार संहिता का पालन करना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि संबंधित सामग्री से भारत की संप्रभुता के साथ किसी मौजूदा कानून का उल्लंघन न हो। ऑनलाइन गेम्स का विनियमन: ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थों को जीत और उपयोगकर्त्ता पहचान सत्यापन के बारे में विस्तृत नीतियाँ बनानी होंगी। वास्तविक धन वाले ऑनलाइन गेम को स्व-नियामक निकाय द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिये। स्व -नियामक निकाय (SRB) को एक ऐसे संगठन के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे डिजिटल मीडिया और मध्यस्थों के लिये नैतिक मानकों, दिशानिर्देशों और सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुपालन की निगरानी एवं प्रवर्तन के लिये स्थापित किया गया है। नोट: मध्यस्थ: मध्यस्थ ऐसी संस्थाएँ हैं जो इंटरनेट पर सामग्री या सेवाओं के प्रसारण या होस्टिंग की सुविधा प्रदान करती हैं। ये उपयोगकर्त्ताओं और इंटरनेट के बीच संचार माध्यम के रूप में कार्य करती हैं, जिससे सूचनाओं का आदान-प्रदान संभव होता है। उदाहरण के लिये: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे, फेसबुक, ट्विटर) ई-कॉमर्स वेबसाइटें (जैसे, अमेज़न, फ्लिपकार्ट) सर्च इंजन (जैसे, गूगल) इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) क्लाउड सेवा प्रदाता प्रमुख मध्यस्थ: इन्हें व्यापक उपयोगकर्त्ता आधार और सार्वजनिक संवाद पर अधिक प्रभाव के आधार पर परिभाषित किया जाता है। आईटी नियम, 2021 के तहत भारत में 5 मिलियन से अधिक उपयोगकर्त्ताओं वाले मध्यस्थों को प्रमुख मध्यस्थों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अपनी व्यापक पहुँच के कारण इन्हें अतिरिक्त नियामक आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है। संशोधित आईटी नियम, 2023 से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं? सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: माना जाता है कि इन नियमों द्वारा सरकार को फेक या भ्रामक सामग्री को हटाने का निर्देश देने में सक्षम बनाकर वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन होता है। स्पष्टता का अभाव: फेक और भ्रामक शब्दों को अभी भी ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है, जिससे इनकी मनमाने ढंग से व्याख्या और प्रवर्तन के बारे में चिंताएँ पैदा होती हैं। अत्यधिक सरकारी नियंत्रण: पीआईबी के अंतर्गत FCU की स्थापना से सूचना प्रसार के क्षेत्र में अत्यधिक सरकारी निगरानी की आशंका पैदा होती है, जिससे स्वतंत्र मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका कमज़ोर होती है। मध्यस्थों पर प्रभाव: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं पर सरकारी निर्देशों का पालन करने के लिये अनुचित दबाव पड़ सकता है यदि वे अनिवार्य रूप से संबंधित सामग्री को हटाने में विफल रहते हैं, तो उनकी सुरक्षित हार्वर स्थिति को खतरा हो सकता है, जिससे स्व-सेंसरशिप की स्थिति हो सकती है। जवाबदेही में कमी आना: ये नियम सरकार की जवाबदेही को कम कर सकते हैं क्योंकि FCU का उपयोग पारदर्शी तथ्य-जाँच के बजाय
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