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बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा आईटी नियम 2023 को रद्द किया जाना

चर्चा में क्यों? हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2023 को रद्द कर दिया है, जो केंद्र सरकार को सोशल मीडिया पर फर्जी, झूठी और भ्रामक सूचनाओं की पहचान करने के लिये फैक्ट चेक यूनिट (FCU) स्थापित करने का अधिकार देता था। FCU के संबंध में उच्च न्यायालय की टिप्पणी? सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम, 2023 के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), अनुच्छेद 19 (भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) और 19(1)(g) (व्यवसाय की स्वतंत्रता और अधिकार) का उल्लंघन होता है। फर्जी या भ्रामक समाचार की परिभाषा अस्पष्ट बनी हुई है, इसमें स्पष्टता और सटीकता का अभाव है। कानूनी रूप से स्थापित “सत्य के अधिकार” के अभाव में राज्य यह सुनिश्चित करने के लिये बाध्य नहीं है कि नागरिकों को केवल वही जानकारी उपलब्ध कराई जाए जिसे फैक्ट चेक यूनिट (FCU) द्वारा सटीक माना गया हो। इसके अतिरिक्त ये उपाय आनुपातिकता के मानक को पूरा करने में विफल रहे हैं। फेक न्यूज़ के बारे में मुख्य तथ्य राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार वर्ष 2020 में फेक न्यूज़ के कुल 1,527 मामले दर्ज किये गए, जो 214% की वृद्धि दर्शाते हैं (वर्ष 2019 में 486 मामले और वर्ष 2018 में 280 मामले दर्ज किये गए थे)। पीआईबी की फैक्ट चेक यूनिट ने नवंबर 2019 में अपनी स्थापना के बाद से फेक न्यूज़ के 1,160 मामलों को खारिज किया है। फैक्ट चेक यूनिट (FCU) क्या है? परिचय: FCU भारत सरकार से संबंधित फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने और उसका समाधान करने के लिये एक आधिकारिक निकाय है। इसका प्राथमिक कार्य तथ्यों की पहचान करना और उनका सत्यापन करना है तथा सार्वजनिक संवाद में सटीक जानकारी का प्रसार सुनिश्चित करना है। FCU की स्थापना: अप्रैल 2023 में MeitY ने सूचना प्रौद्योगिकी नियम, 2021 में संशोधन करके फैक्ट-चेक यूनिट (FCU) की स्थापना की थी। कानूनी मुद्दा: मार्च 2024 में सर्वोच्च न्यायालय ने प्रेस सूचना ब्यूरो के तहत फैक्ट-चेक यूनिट (FCU) की स्थापना पर रोक लगा दी। सरकार ने FCU का पक्ष लिया, क्योंकि इसका उद्देश्य फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकना है और यह फेक न्यूज़ से निपटने के लिये सबसे कम प्रतिबंधात्मक उपाय है। अनुपालन और परिणाम: FCU द्वारा संबंधित विषय-वस्तु पर निर्णय  लिया जाएगा तथा इसके निर्देशों का अनुपालन करने में मध्यस्थों की विफलता के परिणामस्वरूप आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 79 के तहत सुरक्षित हार्वर प्रावधानों का उल्लंघन करने के लिये कार्रवाई की जा सकती है। सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम, 2023 क्या है? परिचय: ये नियम सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 द्वारा प्रदत्त शक्तियों के अंतर्गत स्थापित किये गए थे। यह नियम सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश) नियम, 2011 का स्थान लेगा। मध्यस्थों का उचित उत्तरदायित्व: मध्यस्थों को अपने प्लेटफॉर्म पर नियम, विनियम, गोपनीयता नीतियाँ और उपयोगकर्त्ता समझौतों को प्रमुखता से प्रदर्शित करना होगा। मध्यस्थों को अश्लील, अपमानजनक या भ्रामक जानकारी सहित गैर-कानूनी सामग्री के प्रकाशन को रोकने के लिये कदम उठाने चाहिये। उपयोगकर्त्ताओं की शिकायतों को निपटाने के लिये मध्यस्थों द्वारा शिकायत निवारण तंत्र स्थापित किया जाना चाहिये। प्रमुख मध्यस्थों के लिये अतिरिक्त उत्तरदायित्व: प्रमुख सोशल मीडिया मध्यस्थों को एक मुख्य अनुपालन अधिकारी और एक शिकायत अधिकारी नियुक्त करना होगा। इन मध्यस्थों को शिकायतों और की गई कार्रवाई सहित मासिक अनुपालन की रिपोर्ट देनी होगी। शिकायत निवारण तंत्र: मध्यस्थों को 24 घंटे के अंदर शिकायतों की पावती देनी होगी तथा 15 दिनों के अंदर उनका समाधान करना होगा। गोपनीयता का उल्लंघन करने वाली या हानिकारक सामग्री वाली सामग्री से संबंधित शिकायतों का समाधान 72 घंटों के अंदर किया जाना चाहिये। प्रकाशकों के लिये आचार संहिता: समाचार और ऑनलाइन सामग्री के प्रकाशकों को आचार संहिता का पालन करना होगा तथा यह सुनिश्चित करना होगा कि संबंधित सामग्री से भारत की संप्रभुता के साथ किसी मौजूदा कानून का उल्लंघन न हो। ऑनलाइन गेम्स का विनियमन: ऑनलाइन गेमिंग मध्यस्थों को जीत और उपयोगकर्त्ता पहचान सत्यापन के बारे में विस्तृत नीतियाँ बनानी होंगी। वास्तविक धन वाले ऑनलाइन गेम को स्व-नियामक निकाय द्वारा सत्यापित किया जाना चाहिये। स्व -नियामक निकाय (SRB) को एक ऐसे संगठन के रूप में परिभाषित किया गया है जिसे डिजिटल मीडिया और मध्यस्थों के लिये नैतिक मानकों, दिशानिर्देशों और सर्वोत्तम प्रथाओं के अनुपालन की निगरानी एवं प्रवर्तन के लिये स्थापित किया गया है। नोट:  मध्यस्थ: मध्यस्थ ऐसी संस्थाएँ हैं जो इंटरनेट पर सामग्री या सेवाओं के प्रसारण या होस्टिंग की सुविधा प्रदान करती हैं। ये उपयोगकर्त्ताओं और इंटरनेट के बीच संचार माध्यम के रूप में कार्य करती हैं, जिससे सूचनाओं का आदान-प्रदान संभव होता है। उदाहरण के लिये: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे, फेसबुक, ट्विटर) ई-कॉमर्स वेबसाइटें (जैसे, अमेज़न, फ्लिपकार्ट) सर्च इंजन (जैसे, गूगल) इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) क्लाउड सेवा प्रदाता प्रमुख मध्यस्थ: इन्हें व्यापक उपयोगकर्त्ता आधार और सार्वजनिक संवाद पर अधिक प्रभाव के आधार पर परिभाषित किया जाता है। आईटी नियम, 2021 के तहत भारत में 5 मिलियन से अधिक उपयोगकर्त्ताओं वाले मध्यस्थों को प्रमुख मध्यस्थों के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अपनी व्यापक पहुँच के कारण इन्हें अतिरिक्त नियामक आवश्यकताओं को पूरा करना पड़ता है। संशोधित आईटी नियम, 2023 से संबंधित प्रमुख चिंताएँ क्या हैं? सेंसरशिप और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: माना जाता है कि इन नियमों द्वारा सरकार को फेक या भ्रामक सामग्री को हटाने का निर्देश देने में सक्षम बनाकर वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मूल अधिकार का उल्लंघन होता है। स्पष्टता का अभाव: फेक और भ्रामक शब्दों को अभी भी ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है, जिससे इनकी मनमाने ढंग से व्याख्या और प्रवर्तन के बारे में चिंताएँ पैदा होती हैं। अत्यधिक सरकारी नियंत्रण: पीआईबी के अंतर्गत FCU की स्थापना से सूचना प्रसार के क्षेत्र में अत्यधिक सरकारी निगरानी की आशंका पैदा होती है, जिससे स्वतंत्र मीडिया और नागरिक समाज की भूमिका कमज़ोर होती है। मध्यस्थों पर प्रभाव: सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और इंटरनेट सेवा प्रदाताओं पर सरकारी निर्देशों का पालन करने के लिये अनुचित दबाव पड़ सकता है यदि वे अनिवार्य रूप से संबंधित सामग्री को हटाने में विफल रहते हैं, तो उनकी सुरक्षित हार्वर स्थिति को खतरा हो सकता है, जिससे स्व-सेंसरशिप की स्थिति हो सकती है। जवाबदेही में कमी आना: ये नियम सरकार की जवाबदेही को कम कर सकते हैं क्योंकि FCU का उपयोग पारदर्शी तथ्य-जाँच के बजाय

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बहुपक्षवाद का पुनःप्रचलन: वैश्विक सुधार के मार्ग

वैश्विक शासन एक महत्त्वपूर्ण मोड़ पर है और 22, 23 सितंबर, 2024 को भविष्य का आगामी संयुक्त राष्ट्र शिखर सम्मेलन शीघ्र ही आयोजित होने वाला है। कोविड-19 महामारी और यूक्रेन तथा गाज़ा में युद्ध जैसे संकटों के बाद बहुपक्षवाद में विश्वास कम होने के साथ, शिखर सम्मेलन का मुख्य मघ्यालंकरण- भविष्य के लिये समझौता – संयुक्त राष्ट्र सुधार और वैश्विक सहयोग के लिये एक दृष्टिकोण की रूपरेखा निर्मित करने के लिये लक्षित है। यद्यपि संशयवादी प्रश्न उठाते हैं कि क्या यह शिखर सम्मेलन वास्तव में संयुक्त राष्ट्र के लंबे समय से चले आ रहे संरचनात्मक मुद्दों, विशेष रूप से सुरक्षा परिषद की पुरानी शक्ति संरचना को संबोधित कर सकता है। चुनौतियों के बावजूद, शिखर सम्मेलन वैश्विक मुद्दों पर सामूहिक कार्रवाई के लिये एक दुर्लभ अवसर प्रदान करता है एवं संयुक्त राष्ट्र प्रणाली के भीतर वास्तविक सुधार को उत्प्रेरित कर सकता है। चर्चाओं में नागरिक समाज और निजी क्षेत्र के अभिकर्त्ताओं को सम्मिलित करने से बहुपक्षवाद  पुनरुज्जीवित हो सकता है। यद्यपि शिखर सम्मेलन की सफलता अंततः सदस्य देशों की पृष्ठीय सहमति से आगे बढ़ने और ठोस प्रतिबद्धताओं की आकांक्षा पर निर्भर करेगी। हालाँकि भविष्य के लिये समझौता तत्काल परिवर्तनकारी बदलाव नहीं ला सकता है, परंतु यह वैश्विक शासन को पुनः जीवंत करने और यह प्रदर्शित करने के लिये एक प्रारंभिक बिंदु के रूप में कार्य कर सकता है कि बहुपक्षवाद, यद्यपि कमज़ोर हो गया है तथापि अभी भी समाप्त नहीं हुआ है। बहुपक्षीय संस्थाओं का महत्त्व क्या है?  संघर्ष समाधान और शांति स्थापना: बहुपक्षीय संस्थाएँ संघर्ष के रोकथाम और समाधान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वर्ष 1948 से अब तक संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों को 71 बार परिनियोजित किया गया है, जिससे कई क्षेत्रों में संघर्षों को समाप्त करने और स्थिरता को बढ़ावा देने में सहायता मिली है। मई 2023 तक, अफ्रीका, एशिया, यूरोप और मध्य पूर्व के 12 संघर्ष क्षेत्रों में 87,000 महिलाएँ तथा पुरुष शांति सैनिक के रूप में सेवा प्रदान कर रहे हैं। आर्थिक स्थिरीकरण: अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक जैसी संस्थाएँ वैश्विक आर्थिक स्थिरता के संधारण हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। वर्ष 2008 के वित्तीय संकट के दौरान, IMF ने अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने में सहायता हेतु 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक ऋण देने का वादा किया था। हाल ही में IMF वर्तमान में 35 से अधिक देशों को लगभग 200 बिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दे रहा है, जिनमें विशेष रूप से अर्जेंटीना, इक्वाडोर, मिस्र, इराक, जॉर्डन, ट्यूनीशिया, यूक्रेन और उप-सहारा अफ्रीका के 16 देश शामिल हैं। वैश्विक स्वास्थ्य प्रबंधन: वैश्विक स्वास्थ्य संकटों के समाधान और उपचार में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़ा रहता है। कोविड-19 महामारी के दौरान, WHO ने COVAX के माध्यम से इतिहास में सबसे बड़े वैक्सीन वितरण का समन्वय किया। चेचक उन्मूलन (वर्ष 1980 में घोषित) तथा वर्ष 1988 से पोलियो के मामलों में 99% की कमी लाने में संगठन के प्रयास वैश्विक स्वास्थ्य पर इसके दीर्घकालिक प्रभाव को प्रदर्शित करते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विनियम 196 देशों को स्वास्थ्य संबंधी खतरों से निपटने के लिये मिलकर कार्य करने हेतु एक रूपरेखा प्रदान करते हैं। जलवायु परिवर्तन शमन: जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क अभिसमय (UNFCCC) जैसी संस्थाओं द्वारा सुगमित बहुपक्षीय पर्यावरण समझौते, जलवायु परिवर्तन को न्यूनीकृत करने हेतु महत्त्वपूर्ण हैं। वर्ष 2015 में 196 पक्षकारों द्वारा अंगीकृत पेरिस समझौते ने वैश्विक तापमान वृद्धि को 2°C से नीचे सीमित रखने के लिये एक वैश्विक रूपरेखा निर्धारित की। मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल अभिनव और सफल सिद्ध हुआ है तथा यह विश्व के सभी देशों द्वारा सार्वभौमिक अनुसमर्थन प्राप्त करने वाली पहली संधि है। मानवाधिकार का पक्षसमर्थन: संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद और अन्य बहुपक्षीय निकाय वैश्विक स्तर पर मानवाधिकारों के प्रोत्साहन तथा संरक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। सार्वभौमिक आवधिक समीक्षा प्रक्रिया ने वर्ष 2008 में अपनी स्थापना के बाद से सभी 193 संयुक्त राष्ट्र सदस्य देशों के मानवाधिकार रिकॉर्ड का मूल्यांकन किया है। ये संस्थाएँ मानवाधिकारों में वैश्विक उत्तरदायित्व और मानक निर्धारण के लिये तंत्र प्रदान करती हैं। सतत् विकास: संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्य (SDG) को वर्ष 2015 में सभी सदस्य देशों द्वारा अंगीकृत किया गया, जो शांति और समृद्धि के लिये एक साझा रूपरेखा प्रदान करते हैं। इन लक्ष्यों ने अतिशय निर्धनता के उन्मूलन के प्रयासों को गति प्रदान की है, जिसके परिणामस्वरूप वैश्विक अतिशय निर्धनता दर वर्ष 1990 में 36% से घटकर वर्ष 2019 में 8.4% हो गई है।  विश्व बैंक समूह जैसे बहुपक्षीय विकास बैंकों ने विकासशील देशों को कोविड-19 महामारी के स्वास्थ्य, आर्थिक और सामाजिक प्रभावों से निपटने में सहायता करने हेतु वर्ष 2020-2021 में 157 बिलियन अमरीकी डॉलर देने की प्रतिबद्धता जताई है, जो वैश्विक विकास प्रयासों में उनकी भूमिका को प्रदर्शित करता है। अंतर्राष्ट्रीय मानक निर्धारण: बहुपक्षीय संस्थाएँ वैश्विक मानदंड और मानक स्थापित करने में सहायक होती हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) ने श्रम मानक निर्धारित करने हेतु विभिन्न अभिसमयों को अंगीकृत किया है। अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) ने मानक निर्धारित किये हैं जिनके कारण विमानन परिवहन के सबसे सुरक्षित साधनों में से एक बन गई है। वैज्ञानिक और शैक्षिक उन्नति: यूनेस्को जैसे संगठन शिक्षा, विज्ञान और संस्कृति में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के प्रोत्साहन में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं। जुलाई 2024 तक, 168 देशों में कुल 1,199 विश्व धरोहर स्थल (933 सांस्कृतिक, 227 प्राकृतिक और 39 मिश्रित संपत्तियाँ) विद्यमान हैं। शिक्षा के क्षेत्र में संगठन के प्रयासों से वैश्विक साक्षरता दर वर्ष 1820 के 12% से बढ़कर वर्ष 2020 में 87% हो गई है। वैज्ञानिक बहुपक्षवाद का एक प्रमुख उदाहरण, सर्न (यूरोपीय नाभिकीय अनुसंधान संगठन), ने वर्ष 2012 में हिग्स बोसोन जैसी अभूतपूर्व खोज की। बहुपक्षीय संस्थाओं की भूमिका क्यों कम हो रही है?  वैश्विक शक्ति गतिकी में परिवर्तन: द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की व्यवस्था, जिसने अनेक बहुपक्षीय संस्थाओं को जन्म दिया, अब विशीर्ण हो रही है, क्योंकि शक्ति पश्चिम से पूर्व की ओर स्थानांतरित हो रही है। आर्थिक महाशक्ति के रूप में चीन का उदय, भारत का बढ़ता प्रभाव और रूस के पुनरुत्थान ने पश्चिमी नेतृत्व वाली संस्थाओं के प्रभुत्व को चुनौती दी है। ब्रिक्स समूह (ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) का विस्तार हुआ है, जो अब वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद का 37.3% प्रतिनिधित्व करता है। इस स्थानांतरण के कारण

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शहरी बाढ़: एक संभावित खतरा

भारत में शहरी बाढ़ एक गंभीर मुद्दा बन गया है। हाल ही में कई राज्यों में अधिक वर्षा (इस मानसून के मौसम में सामान्य औसत से 20% से अधिक) और बाढ़ का सामना करना पड़ा। चरम मौसमी घटनाओं में यह वृद्धि मुख्य रूप से जलवायु संकट के कारण है। पिछले दशक में 64% से अधिक भारतीय उप-ज़िलों में पिछले 30 वर्षों की तुलना में अधिक वर्षा की स्थिति देखी गई। हालाँकि मानवीय गतिविधियों, निम्न स्तरीय भूमि-उपयोग नीतियों और अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से जल निकासी की समस्या और भी बढ़ जाती है, जिससे शहरी क्षेत्रों में जल अपवाह में रूकावट के साथ जलभराव की समस्या हो जाती है। इस चुनौती से निपटने के लिये भारतीय शहरों को प्रतिक्रियात्मक उपायों से हटकर सक्रिय बाढ़ जोखिम प्रबंधन की ओर बढ़ना होगा। इसमें नियमित रूप से वर्षा पैटर्न का पुनर्मूल्यांकन करना और तदनुसार जल अवसंरचना को रूपांतरित करना, व्यापक जोखिम आकलन के माध्यम से बाढ़ “हॉटस्पॉट” की पहचान करना और कई तरह के अल्पकालिक, मध्यम और दीर्घकालिक हस्तक्षेपों को लागू करना शामिल है। जल नियोजन के लिये वर्ष भर चलने वाले जोखिम-सूचित दृष्टिकोण को अपनाकर भारतीय शहरों में बाढ़ के बढ़ते खतरे से जीवन, आजीविका और शहरी अवसंरचना की बेहतर सुरक्षा की जा सकती है। शहरी बाढ़ क्या है?  शहरी बाढ़ से तात्पर्य अधिक वर्षा, नदियों के उफान, खराब जल निकासी प्रणालियों या अन्य जल-संबंधी घटनाओं के कारण सघन आबादी वाले क्षेत्रों में भूमि या संपत्ति के जलमग्न होने से है। ग्रामीण या प्राकृतिक परिवेश में होने वाली पारंपरिक बाढ़ के विपरीत, शहरी बाढ़ शहरों में अभेद्य सतहों (जैसे सड़कें, फुटपाथ और इमारतें) के कारण और भी विकराल हो जाती है, जिससे जल का जमीन के अंदर प्रवाह नहीं हो पाता है। इससे जलभराव होता है, परिवहन बाधित होता है, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचता है तथा शहरी आबादी के लिये स्वास्थ्य संबंधी खतरा पैदा होता है।   भारतीय शहरों में बाढ़ का खतरा क्यों बढ़ रहा है?  अभेद्य खतरा: तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण भारतीय शहरों में व्यापक स्तर पर कंक्रीट की सतहों का निर्माण हो रहा है, जिससे प्राकृतिक पारगम्य सतहों के स्थान पर अभेद्य सतहों में वृद्धि हो रही है। जल अवशोषण क्षमता में यह कमी अधिक वर्षा के दौरान जल निकासी प्रणालियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। उदाहरण के लिये मुंबई में पिछले 27 वर्षों में निर्मित सतही क्षेत्र में 99.9% की वृद्धि देखी गई। इसके कारण सतही अपवाह में वृद्धि हुई, कुछ क्षेत्रों में प्राकृतिक परिदृश्यों की तुलना में 30 गुना अधिक अपवाह देखा गया, जिससे बाढ़ के जोखिम में भी वृद्धि हुई। नालियों की समस्या: कई भारतीय शहर दशकों पहले डिज़ाइन की गई जल निकासी प्रणालियों पर निर्भर हैं, जो वर्तमान जनसंख्या घनत्व एवं वर्षा की तीव्रता को प्रबंधित करने के लिये अपर्याप्त हैं। दिल्ली के लिये अंतिम जल निकासी मास्टर प्लान वर्ष 1976 में बनाया गया था। ये पुरानी प्रणालियाँ अक्सर मलबे एवं कचरे से अवरुद्ध हो जाती हैं, जिससे उनकी क्षमता और कम हो जाती है। दिल्ली में 42 वर्षों से लगभग एक सा ढाँचा बना हुआ है जबकि जनसंख्या चार गुना बढ़ गई है। चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न बदल रहा है तथा चरम मौसमी घटनाएँ अधिक सामान्य और गंभीर हो रही हैं।  भारतीय शहरों में अभूतपूर्व वर्षा होने से मौजूदा बुनियादी ढाँचा प्रभावित हो रहा है। उदाहरण के लिये चेन्नई में नवंबर 2015 में 1,218.6 मिमी वर्षा हुई, जो एक सदी में सबसे अधिक थी, जिसके कारण भयावह बाढ़ आई। मध्य भारत में व्यापक स्तर पर अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ वर्ष 1950 के बाद से तीन गुना बढ़ गई हैं।  यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है तथा अनुमान है कि सदी के अंत तक मानसूनी वर्षा की तीव्रता में 20-40% की वृद्धि होगी। प्राकृतिक जल प्रणालियों की हानि: शहरीकरण के कारण प्राकृतिक जल निकायों का अतिक्रमण और विनाश हुआ है जो कभी बाढ़ अवरोधक के रूप में कार्य करते थे।  निर्माण कार्यों के लिये झीलों, तालाबों और आर्द्रभूमियों को पाटा जा रहा है, जिससे प्रमुख जल भंडारण और अंतःसंचय क्षेत्र नष्ट हो रहे हैं। बंगलूरु (जो कभी अपनी असंख्य झीलों के लिये जाना जाता था) के 79% जल निकाय समाप्त हो गए हैं, जिससे इसकी बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है। पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से संवेदनशील क्षेत्रों में अनियोजित विकास: पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण से भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है और प्राकृतिक जल प्रवाह पैटर्न में बदलाव आया है।  देहरादून और शिमला जैसे शहरों का आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में तेज़ी से विस्तार होने से प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियाँ बाधित हुई हैं। अनियोजित विकास के कारण वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ के कारण व्यापक विनाश हुआ। गंगा और उसकी सहायक नदियों के निकट पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से संवेदनशील क्षेत्रों में अवैध रूप से निर्मित 300 से अधिक बहुमंज़िला इमारतें, होटल और व्यवसायिक प्रतिष्ठान अचानक आई बाढ़ में बह गए या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए। ठोस अपशिष्ट का रिसाव- शहरी नालों का अवरुद्ध होना: भारतीय शहरों में अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के कारण नालियाँ जाम हो जाती हैं और इनकी जल प्रवाह क्षमता कम हो जाती है। तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण अपशिष्ट उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है, जिससे मौजूदा निपटान प्रणाली चरमरा गई है। भारत में प्रतिदिन 1.5 लाख टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) उत्पन्न होता है लेकिन केवल 83% अपशिष्ट ही एकत्रित किया जाता है और 30% से भी कम का उपचार किया जाता है, जो समस्या की गंभीरता को दर्शाता है। तटीय समस्या: भारत के कई प्रमुख शहर जैसे मुंबई, चेन्नई और कोलकाता, समुद्र तट के निकट स्थित हैं जिससे ये समुद्र स्तर में वृद्धि और भूमि अवतलन दोनों के प्रति संवेदनशील हैं। जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से इन क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है। फरवरी 2021 में मैकिज़े इंडिया ने एक रिपोर्ट में कहा था कि वर्ष 2050 तक मुंबई में समुद्र के स्तर में आधा मीटर की वृद्धि के साथ-साथ अचानक आने वाली बाढ़ की तीव्रता में 25% की वृद्धि देखी जाएगी। शहरी बाढ़ के प्रमुख प्रभाव क्या हैं?  शहरी केंद्रों में आर्थिक नुकसान: शहरी बाढ़ से गंभीर

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भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में AI की भूमिका

भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे, स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी और लोगों की गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल तक असमान पहुँच सहित कुछ प्रमुख चुनौतियों से ग्रस्त है। हाल के वर्षों में स्वास्थ्य सेवा में इन कमियों को दूर करने के लिये कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का लाभ उठाने में रुचि बढ़ रही है। AI तकनीकें दक्षता बढ़ाने, चिकित्सा सुविधाओं तक पहुँच में सुधार करने और संभावित रूप से ऐसे देश में स्वास्थ्य सेवा वितरण में क्रांतिकारी बदलाव लाने में निर्णायक हैं जहाँ संसाधन अक्सर कम होते हैं। हालाँकि स्वास्थ्य सेवा में AI का एकीकरण (विशेष रूप से भारत जैसे देश में) व्यवहार्यता, स्थिरता और नैतिक निहितार्थों के बारे में महत्त्वपूर्ण प्रश्न उठाता है। AI, डेटा को संसाधित करने और दोहराए जाने वाले कार्यों को स्वचालित करने में उत्कृष्ट है लेकिन इसमें स्वास्थ्य सेवा के लिये आवश्यक महत्त्वपूर्ण मानवीय गुणों का अभाव है, जैसे समानुभूति, सांस्कृतिक समझ और रोगी की स्थितियों को समझने की क्षमता। भारत की स्वास्थ्य सेवा में AI की क्षमता का पता लगाने के साथ इसके संभावित लाभों को सावधानीपूर्वक समझना चाहिये और यह सुनिश्चित करने के लिये व्यापक नियम विकसित करने चाहिये कि AI उपकरण “कोई नुकसान न करें” जिससे मूल चिकित्सा नैतिकता का पालन हो सके। स्वास्थ्य सेवा में AI का क्या महत्त्व है?  निदान में क्रांतिकारी परिवर्तन: कृत्रिम बुद्धिमत्ता अभूतपूर्व सटीकता और गति के साथ चिकित्सा निदान में परिवर्तन ला रही है।  रेडियोलॉजी में AI एल्गोरिदम से सूक्ष्म असामान्यताओं का पता लग सकता है जिसे मानव आँख से नहीं देखा जा सकता है। उदाहरण के लिये वर्ष 2020 में नेचर में प्रकाशित एक अध्ययन से पता चला है कि AI सिस्टम के परिणामस्वरूप बायोप्सी-स्तन कैंसर की पुष्टि से संबंधित फाल्स-पॉजिटिव और फाल्स-निगेटिव पहचान की त्रुटियों की दरों में 1.2% और 2.7% की कमी आई है। जैसे-जैसे AI का विकास जारी है इसके द्वारा नेत्र विज्ञान से लेकर पैथोलॉजी तक विभिन्न चिकित्सा क्षेत्रों में निदान सटीकता देने की संभावना है। व्यक्तिगत उपचार योजनाएँ: AI व्यक्तिगत उपचार योजनाएँ बनाने के लिये बड़ी मात्रा में रोगी डेटा का विश्लेषण करके सटीक चिकित्सा के युग की शुरुआत कर रहा है । किसी व्यक्ति की आनुवंशिक संरचना, जीवनशैली कारकों और चिकित्सा इतिहास पर विचार करके AI से उच्च प्रभावकारिता और कम दुष्प्रभावों के साथ लक्षित उपचारों को बढ़ावा मिल सकता है। उदाहरण के लिये आईबीएम वाटसन ऑन्कोलॉजी का उपयोग विश्व भर में 230 से अधिक अस्पतालों में किया गया है जो ऑन्कोलॉजिस्टों को व्यक्तिगत कैंसर उपचार योजनाएँ विकसित करने में सहायता करता है। यह अनुकूलित दृष्टिकोण न केवल रोगी के परिणामों में सुधार करता है बल्कि स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में संसाधन आवंटन को भी अनुकूलित करता है। दवा की खोज और विकास: AI से दवा की खोज और विकास प्रक्रिया को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे संभावित रूप से जीवन रक्षक दवाओं को तेजी से और कम लागत पर बाज़ार में लाया जा सकता है। मशीन लर्निंग एल्गोरिदम जैविक डेटा का विश्लेषण कर सकते हैं, लक्षित-दवा अंतःक्रियाओं की भविष्यवाणी कर सकते हैं और आणविक संरचनाओं को अनुकूलित कर सकते हैं जिससे प्रारंभिक चरण की दवा खोज के लिये आवश्यक समय और संसाधनों में काफी कमी आ सकती है। वर्ष 2020 में इंसिलिको मेडिसिन ने केवल 46 दिनों में फाइब्रोसिस के लिये एक नई दवा को डिज़ाइन करने, संश्लेषित करने और मान्य करने के लिये AI का उपयोग किया। पारंपरिक रूप से ऐसी प्रक्रिया में वर्षों लगते हैं। क्लिनिकल प्रणाली को तीव्र करना: AI क्लिनिकल प्रणाली को सुव्यवस्थित कर रहा है, प्रशासनिक बोझ को कम कर रहा है और स्वास्थ्य पेशेवरों को रोगी देखभाल पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की अनुमति दे रहा है। प्राकृतिक भाषा प्रसंस्करण (NALP) एल्गोरिदम स्वचालित रूप से डॉक्टर-रोगी वार्तालाप को लिपिबद्ध और सारांशित कर सकता है, इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड को अद्यतन कर सकता है और नैदानिक ​​नोट्स तैयार कर सकता है। इसके अतिरिक्त AI-संचालित शेड्यूलिंग प्रणालियाँ रोगी के लिये सुलभता कर सकती हैं, प्रतीक्षा समय को कम कर सकती हैं और अस्पतालों में संसाधन आवंटन में सुधार कर सकती हैं। रिमोट मॉनिटरिंग और टेलीमेडिसिन: AI रिमोट मॉनिटरिंग और टेलीमेडिसिन समाधानों के माध्यम से स्वास्थ्य सेवा की पहुँच का विस्तार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। AI-संचालित पहनने योग्य उपकरण और IoT डिवाइस, रोगी के महत्त्वपूर्ण संकेतों की निगरानी कर सकते हैं, विसंगतियों का पता लगा सकते हैं और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को संभावित समस्याओं के बारे में सचेत कर सकते हैं। कोविड-19 महामारी के दौरान टेलीमेडिसिन में AI का उपयोग बढ़ गया, बेबीलोन हेल्थ जैसे प्लेटफाॅर्मों ने मरीजों को प्राथमिकता देने और प्रारंभिक परामर्श प्रदान करने के लिये AI चैटबॉट का उपयोग किया। यह तकनीक विशेष रूप से ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों के लिये महत्त्वपूर्ण है, जहाँ विशेषज्ञों तक पहुँच सीमित है। डब्ल्यूएचओ की सारा एक डिजिटल स्वास्थ्य प्रमोटर का प्रोटोटाइप है जो वीडियो या टेक्स्ट के माध्यम से आठ भाषाओं में 24/7 उपलब्ध है। वह तनाव दूर करने एवं सही खानपान को बढ़ावा देने के साथ तंबाकू और ई-सिगरेट छोड़ने के सुझाव देने के साथ-साथ कई अन्य स्वास्थ्य विषयों पर जानकारी भी दे सकती है। हालाँकि वह चिकित्सीय सलाह देने के लिये उपयुक्त नहीं है। चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण को बढ़ावा देना: AI व्यक्तिगत शिक्षण अनुभव प्रदान करके और जटिल नैदानिक ​​परिदृश्यों का अनुकरण करके चिकित्सा शिक्षा और प्रशिक्षण में क्रांति ला रहा है। AI द्वारा संचालित आभासी वास्तविकता (VR) और संवर्धित वास्तविकता (AR) प्लेटफॉर्म मेडिकल छात्रों और पेशेवरों के लिये इमर्सिव प्रशिक्षण वातावरण बना सकते हैं। उदाहरण के लिये फंडामेंटलवीआर जैसी कंपनियाँ AI-संचालित हैप्टिक VR सिस्टम प्रदान करती हैं जो सर्जनों को यथार्थवादी फीडबैक के साथ बेहतर प्रक्रियाओं को अपनाने की अनुमति देती हैं। AI-संचालित अनुकूली शिक्षण प्रणालियाँ चिकित्सा पाठ्यक्रम को व्यक्तिगत छात्रों की आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार कर सकती हैं, जिससे सीखने की प्रक्रिया में तेजी आएगी और अधिक सक्षम स्वास्थ्य देखभाल पेशेवर तैयार होंगे। भारत के स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में AI से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? बुनियादी ढाँचे की सीमाएँ: भारत के स्वास्थ्य सेवा बुनियादी ढाँचे को प्रमुख बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है जो AI प्रौद्योगिकियों को व्यापक रूप से अपनाने में चुनौती दे रहे हैं। कई स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में (विशेष रूप से ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में) AI प्रणालियों को समर्थन देने के लिये आवश्यक

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भारत में सिकल सेल और उसका निदान

विगत वर्ष भारत के प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के शहडोल से राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन का शुभारंभ किया था, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा बन चुके सिकल सेल रोग (SCD) को वर्ष 2047 तक समाप्त करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया था। SCD से भारत के जनजातीय और ग्रामीण समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। SCD संबंधी स्वास्थ्य सेवा में प्रगति के बावजूद कई क्षेत्रों में सिकल सेल रोग का निदान अभी भी काफी कम होने के साथ इसका प्रबंधन भी ठीक से नहीं किया जाता है, जिससे इसके खिलाफ अधिक समग्र कार्रवाई की आवश्यकता को बल मिलता है। सिकलसेल रोग (SCD) क्या है? परिचय: सिकल सेल रोग (SCD) एक वंशानुगत हीमोग्लोबिन विकार है, जिसका कारण आनुवंशिक उत्परिवर्तन है, जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएंँ (RBCs) अपने सामान्य गोल आकार के बजाय दरांती या अर्धचंद्राकार आकार की हो जाती हैं। सिकल सेल रोग से पीड़ित रोगियों का जीवनकाल काफी कम (औसतन लगभग 40 वर्ष) हो जाता है। इनके जीवन की गुणवत्ता कई प्रकार की स्वास्थ्य जटिलताओं से प्रभावित होती है, जिसमें बार-बार होने वाले संक्रमण, लगातार दर्द, सूजन और प्रमुख अंगों की क्षति शामिल है। SCD से पीड़ित व्यक्ति त्वरित और दीर्घकालिक दोनों प्रकार की जटिलताओं से पीड़ित होते हैं, जिनमें क्रमिक दर्द शामिल है, जिसे आमतौर पर वासो-ऑक्लूसिव क्राइसिस (VOC) – एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम (ACS) कहा जाता है इसमें हड्डी का एसेप्टिक नेक्रोसिस, प्लीहा, मस्तिष्क और गुर्दे का विकार, संक्रमण, स्ट्रोक और अंततः शरीर के प्रत्येक अंग का प्रभावित होना शामिल है। कारण :  SCD एक आनुवंशिक स्थिति है जो जन्म से ही मौजूद होती है। यह रोग बच्चे को माता-पिता से विरासत में मिलता है। सामान्य प्रकार:  किसी व्यक्ति में SCD का विशिष्ट प्रकार उसके माता-पिता से विरासत में मिले जीन पर निर्भर करता है। SCD से पीड़ित लोगों के जीन में असामान्य हीमोग्लोबिन के लिये निर्देश या कोड शामिल होते हैं। HbSS­­­­: जिन लोगों में SCD का यह रूप होता है उन्हें दो जीन विरासत में मिलते हैं (एक माता से एक पिता से) जो हीमोग्लोबिन “S” के लिये कोडित होता है। HbSC: जिन लोगों में SCD का यह रूप होता है उन्हें एक पेरेंट से हीमोग्लोबिन S जीन तथा दूसरे पेरेंट से “C” नामक एक अलग प्रकार के असामान्य हीमोग्लोबिन के लिये जीन विरासत में मिलता है। यह आमतौर पर SCD का सामान्य रूप होता है। HbS बीटा थैलेसीमिया: SCD के इस रूप से पीड़ित लोगों को एक पेरेंट से हीमोग्लोबिन S जीन और दूसरे से बीटा थैलेसीमिया (हीमोग्लोबिन असामान्यता का एक अन्य प्रकार) संबंधी जीन विरासत में मिलता है। HbSD, HbSE, and HbSO: जिन लोगों में SCD के ये रूप होता है उनमें एक हीमोग्लोबिन S जीन तथा अन्य असामान्य प्रकार के हीमोग्लोबिन (“D,” “E,” or “O”) के लिये कोडित जीन विरासत में मिलता है। लक्षण: सिकल सेल रोग के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं- क्रोनिक एनीमिया, जिसके कारण थकान, कमजोरी और पीलापन आ जाता है। दर्दनाक स्थिति (जिसे सिकल सेल क्राइसिस के नाम से भी जाना जाता है) के तहत हड्डियों, छाती, पीठ, बाँहों और पैरों में अचानक एवं तीव्र दर्द होना। शरीर एवं यौवन के विकास में बिलंब। उपचार प्रक्रियाएँ: रक्त आधान: इससे एनीमिया से राहत मिल सकती है और दर्द संबंधी संकट का खतरा कम हो सकता है। हाइड्रोक्सीयूरिया: यह दवा दर्दनाक घटनाओं की आवृत्ति को कम करने और रोग की कुछ दीर्घकालिक जटिलताओं को रोकने में मदद कर सकती है। जीन थेरेपी: इसका उपचार अस्थि मज्जा या स्टेम सेल प्रत्यारोपण जैसे क्लस्टर्ड रेगुलर इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट्स (CRISPR) द्वारा भी किया जा सकता है । भारत में सिकल सेल रोग का प्रचलन: सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने सिकल सेल रोग (SCD) को भारत की जनजातीय आबादी को असमान रूप से प्रभावित करने वाली दस प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं में से एक माना है। वैश्विक भार: भारत विश्व में SCD का दूसरा सबसे बड़ा भागीदार है, जहाँ 1 मिलियन से अधिक लोग इस रोग से प्रभावित हैं। SCD वाले बच्चों की जन्म दर: SCD वाले बच्चों के जन्मों की संख्या के मामले में भारत विश्व स्तर पर नाइजीरिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के बाद तीसरे स्थान पर है । वाहक दर: विभिन्न जनजातीय समूहों में सिकल सेल वाहकों की व्यापकता 1 से 40% तक है। भौगोलिक वितरण : SCD के अधिकांश रोगी आदिवासी क्षेत्र में केंद्रित हैं जो ओडिशा , झारखंड , छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से संबंधित हैं । भारत में SCD स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं? कोई स्थायी इलाज नहीं: वर्तमान में सिकल सेल रोग का कोई स्थायी इलाज नहीं है । यद्यपि जीन थेरेपी पर चल रहा अनुसंधान आशाजनक है, फिर भी यह उपलब्ध होने के बाद भी अधिकांश प्रभावित आबादी के लिये वहनीय नहीं होगा। निदान न हो पाना: इसका सटीक निदान प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि कई व्यक्ति इस स्थिति से जुड़े कलंक के कारण सहायता लेने में अनिच्छुक रहते हैं। परिणामस्वरूप ये प्रायः पारंपरिक चिकित्सकों की ओर रुख करते हैं, जो अक्सर रोग का सही निदान नहीं कर पाते हैं। अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना: कई ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में SCD के प्रबंधन के लिये विशेष स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों का अभाव है। इससे समय पर हस्तक्षेप और प्रभावी रोग प्रबंधन में बाधा आती है। अपर्याप्त रोकथाम कार्यक्रम: नवजात में इस रोग की शीघ्र पहचान जैसी पहल के अभाव के परिणामस्वरूप प्रारंभिक स्तर पर इसमें हस्तक्षेप नहीं हो पाता है। जनजातीय क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के प्रति अविश्वास है, जिसके कारण इनके टेस्ट की दर कम है। दवाओं तक सीमित पहुँच: इसमें हाइड्रोक्सीयूरिया जैसी दवाएँ प्रभावी हैं, लेकिन इन दवाओं तक पहुँच असमान बनी रहती है। भारत में सिकल सेल रोग से प्रभावित केवल 18% लोगों को ही नियमित उपचार मिल रहा है। उच्च उपचार लागत: दवाओं की लागत, नियमित टेस्ट और अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता के कारण SCD का दीर्घकालिक प्रबंधन कई परिवारों के लिये आर्थिक रूप से बोझिल हो सकता है। CRISPR जैसे उपचारों की लागत 1-2 मिलियन डॉलर होती है तथा अस्थि मज्जा का दानकर्त्ता ढूँढना मुश्किल होता है। अपर्याप्त अनुसंधान और डेटा: SCD पर सीमित अनुसंधान (विशेष

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भारत का डीप टेक विज़न

भारत का तकनीकी परिदृश्य पारंपरिक रूप से सॉफ्टवेयर और उपभोक्ता इंटरनेट पर केंद्रित रहा है। हालाँकि जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य सेवा जैसी वैश्विक चुनौतियों के समाधान की बढ़ती आवश्यकता ने उसे ‘डीप टेक’ (deep tech) की ओर आगे बढ़ने के लिये प्रेरित किया है। ये अत्याधुनिक स्टार्ट-अप अभूतपूर्व समाधान (solutions) के सृजन के लिये वैज्ञानिक खोज और इंजीनियरिंग नवाचार का लाभ उठा रहे हैं। भारतीय नवाचार की यह नई लहर AI, रोबोटिक्स और जैव प्रौद्योगिकी जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों के साथ जटिल समस्याओं को संबोधित कर रही है। अंतरिक्ष प्रक्षेपण से संबद्ध स्काईरूट एरोस्पेस (Skyroot Aerospace) और ड्रोन से संबद्ध आईडिया फोर्ज (Idea Forge) जैसे स्टार्ट-अप ऐसे अग्रणी समाधान विकसित कर रहे हैं, जिनमें कभी स्थापित अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों का वर्चस्व रहा था। राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्ट-अप नीति (Deep Tech Startup Policy) और शोध संस्थानों के लिये वित्तपोषण में वृद्धि जैसी पहलों के साथ सरकार भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। इस समर्थनकारी पारितंत्र के साथ भारत की सुदृढ़ STEM शिक्षा और जीवंत स्टार्ट-अप संस्कृति देश को वैश्विक डीप टेक दौड़ में नेतृत्वकारी भूमिका निभा सकने के लिये तैयार कर रही है। जबकि चुनौतियाँ अभी भी बनी हुई हैं, जैसे विनियमन संबंधी चुनौतियों के बीच आगे बढ़ना और प्रतिभा को आकर्षित करना, लेकिन डीप टेक की दिशा में भारत के प्रयास देश को नवाचार में अग्रणी बनाने की व्यापक क्षमता रखते हैं। डीप टेक (Deep Tech) क्या है?  परिचय: ‘डीप टेक’ या ‘डीप टेक्नोलॉजी’ वैज्ञानिक खोजों और इंजीनियरिंग सफलताओं से प्रेरित है, जो सैद्धांतिक अवधारणाओं को वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों में साकार करती है। वृद्धिशील सुधारों पर केंद्रित पारंपरिक तकनीक के विपरीत डीप टेक उद्यम प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ के लिये अभिनव प्रौद्योगिकियों का लाभ उठाते हैं, जिसके लिये प्रायः सुदीर्घ एवं अनिश्चित अनुसंधान एवं विकास (R&D) प्रक्रियाओं से गुज़रते हैं। डीप टेक की मुख्य विशेषताएँ:  वैज्ञानिक गहनता: आधारभूत वैज्ञानिक खोजों या इंजीनियरिंग नवाचारों में निहित। सुदीर्घ अनुसंधान एवं विकास चक्र: डीप टेक के लिये आमतौर पर अनुसंधान एवं विकास की विस्तारित समयावधि आवश्यक होती है। उच्च पूंजी गहनता: सामान्यतः विशिष्ट उपकरण और प्रतिभा में पर्याप्त पूंजी निवेश की आवश्यकता होती है। विघटनकारी प्रभाव की क्षमता: इसमें नए बाज़ार के सृजन या मौजूदा बाज़ारों को व्यापक रूप से रूपांतरित करने की सक्षमता होती है। डीप टेक के मुख्य क्षेत्र: AI एवं मशीन लर्निंग, रोबोटिक्स एवं ऑटोमेशन, क्वांटम कंप्यूटिंग, बायोटेक्नोलॉजी एवं सिंथेटिक बायोलॉजी, एडवांस्ड मैटेरियल्स साइंस, नैनोटेक्नोलॉजी, ब्लॉकचेन और डिस्ट्रिब्यूटेड लेजर टेक्नोलॉजी आदि।   डीप टेक में भारत की स्थिति: भारत वर्तमान में अपने 3,600 स्टार्ट-अप्स के साथ (जिन्हें वर्ष 2023 में 850 मिलियन अमेरिकी डॉलर का वित्तपोषण प्राप्त हुआ) वैश्विक स्तर पर शीर्ष 9 डीप टेक पारितंत्रों में छठे स्थान पर है। संस्थापक और निवेशक कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) पर सबसे अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, जहाँ वर्ष 2023 में 74% नए डीप टेक स्टार्ट-अप्स AI पर केंद्रित थे, जबकि वित्तपोषित स्टार्ट-अप के 86% AI पर केंद्रित थे। पेटेंट फाइलिंग में भी AI का ही वर्चस्व है, जो सभी डीप टेक पेटेंटों में 41% हिस्सेदारी रखता है। भारत में डीप टेक के विकास को प्रोत्साहन देने वाले प्रमुख कारक   सरकार का नीतिगत प्रोत्साहन: भारत सरकार की अग्रसक्रिय नीतियाँ डीप टेक के विकास को बढ़ावा देने में सहायक रही हैं। 8,000 करोड़ रुपए के बजटीय परिव्यय के साथ लॉन्च किया गया क्वांटम प्रौद्योगिकी और अनुप्रयोग पर राष्ट्रीय मिशन (National Mission on Quantum Technologies and Applications) इस प्रतिबद्धता की पुष्टि करता है। राष्ट्रीय डीप टेक स्टार्ट-अप नीति 2023 का मसौदा प्रौद्योगिकीय विकास में तेज़ी लाने और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने पर लक्षित है। अनुसंधान नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (ANRF) अपनी 1 लाख करोड़ रुपए की निधि के साथ विभिन्न क्षेत्रों में अनुसंधान में भारी निवेश कर रहा है। इन पहलों से डीप टेक नवाचार के लिये अनुकूल वातावरण का निर्माण होता है, जहाँ वे वित्तीय समर्थन और ऐसे नियामक ढाँचे प्रदान करते हैं जो प्रयोग करने और जोखिम उठाने को प्रोत्साहित करते हैं। उद्यम पूंजी निवेश में वृद्धि: वर्तमान में डीप टेक वैश्विक वार्षिक उद्यम पूंजी निवेश में लगभग 20% की हिस्सेदारी रखती है, जो कि एक दशक पहले 10% थी। अकेले 2023 में ही, आर्थिक मंदी के बावजूद, डीप टेक स्टार्ट-अप्स ने वैश्विक स्तर पर लगभग 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर जुटाए। यह प्रवृत्ति भारत में भी दिखाई देती है, जहाँ Observe.AI जैसी कंपनियों ने अपने कंवर्सेशनल इंटेलिजेंस प्लेटफॉर्म के लिये 214 मिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक की धनराशि जुटाई है। दीर्घावधिक और उच्च-जोखिमपूर्ण टेक परियोजनाओं को समर्थन देने में निवेशकों की बढ़ती रुचि एक परिपक्व पारिस्थितिकी तंत्र और भारत की नवोन्मेषी क्षमताओं में बढ़ते भरोसे का संकेत देती है। स्वदेशी समाधानों की बढ़ती मांग: आत्मनिर्भरता पर भारत का ज़ोर, विशेष रूप से रक्षा और अंतरिक्ष जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में, स्वदेशी डीप टेक समाधानों की मांग को प्रेरित कर रहा है। स्काईरूट एयरोस्पेस (Skyroot Aerospace) द्वारा वर्ष 2022 में विक्रम-S रॉकेट का सफल प्रक्षेपण इस प्रवृत्ति को परिलक्षित करता है। रक्षा एवं सुरक्षा अनुप्रयोगों के लिये आइडियाफोर्ज टेक्नोलॉजी (ideaForge Technology) के उन्नत ड्रोन भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि डीप टेक क्षेत्र के स्टार्ट-अप्स द्वारा महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय आवश्यकताओं की पूर्ति की जा रही है। यह मांग न केवल डीप टेक नवाचारों के लिये एक तैयार बाज़ार उपलब्ध कराती है, बल्कि भारत की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुरूप अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के विकास को भी प्रोत्साहन देती है। सशक्त STEM प्रतिभा पूल: विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (Science, Technology, Engineering, and Mathematics- STEM) शिक्षा में भारत का मज़बूत आधार डीप टेक नवाचार के लिये एक समृद्ध प्रतिभा पूल प्रदान करता है। प्रतिवर्ष 1.5 मिलियन से अधिक इंजीनियरिंग स्नातकों के साथ भारत के पास तकनीकी विशेषज्ञता का व्यापक भंडार मौजूद है। चुनौती इसमें निहित है कि इस प्रतिभा को किस प्रकार बनाए रखा जाए और इन्हें डीप टेक उद्यमिता की ओर आगे बढ़ाया जाए। उद्योग-अकादमिक सहयोग में वृद्धि के साथ इस चुनौती को संबोधित करने का प्रयास किया जा रहा है। बड़ी चुनौतियों के समाधान पर फोकस: भारत में डीप टेक स्टार्ट-अप्स स्वास्थ्य सेवा, जलवायु परिवर्तन और संवहनीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों की बड़ी चुनौतियों के समाधान पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। बायोकॉन (Biocon) और सिंजिन (Syngene) जैसी बायोटेक कंपनियाँ जीनोमिक्स एवं वैयक्तिक चिकित्सा अनुसंधान में अग्रणी स्थान रखती हैं। इलेक्ट्रिक मोबिलिटी समाधानों पर सेल प्रोपल्शन (Cell

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भारत-संयुक्त अरब अमीरात संबंध: परंपरा से परिवर्तन तक

हाल के वर्षों में भारत-UAE द्विपक्षीय संबंधों में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है और ऐतिहासिक बंधन और भी गहरे हुए हैं। अबू धाबी के क्राउन प्रिंस की हाल की भारत यात्रा इस रणनीतिक साझेदारी के महत्त्व को रेखांकित करती है। संबंधों में राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण प्रगति हुई है, जहाँ UAE भारत का दूसरा सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य, तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार और चौथा सबसे बड़ा निवेशक बन गया है। मई 2022 में लागू किया गया व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता (Comprehensive Economic Partnership Agreement- CEPA) एक ‘गेम-चेंजर’ रहा है, जिसने कुल व्यापार को लगभग 15% बढ़ाया है और वर्ष 2023-24 में गैर-तेल व्यापार में 20% की उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। दोनों देश पारंपरिक शक्ति केंद्रों से आगे बढ़कर भारत के उभरते शहरों तक अपनी साझेदारी का विस्तार करने के लिये प्रतिबद्ध हैं। UAE-भारत सांस्कृतिक परिषद और UAE-भारत स्टार्ट-अप ब्रिज जैसी पहलों का उद्देश्य सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करना तथा उद्यमशीलता को बढ़ावा देना है। यह बहुआयामी दृष्टिकोण UAE-भारत संबंधों के लिये एक उज्ज्वल भविष्य का वादा करता है, जिसमें एक प्रत्यास्थी, समावेशी एवं समृद्ध साझेदारी का निर्माण करने की क्षमता है।   भारत के लिये UAE का क्या महत्त्व है? आर्थिक महाशक्ति – खाड़ी का प्रवेश-द्वार: संयुक्त अरब अमीरात मध्य-पूर्व एवं उत्तरी अफ्रीका (Middle East and North Africa- MENA) क्षेत्र में भारत के आर्थिक आधार या ‘स्प्रिंगबोर्ड’ के रूप में कार्य करता है। UAE भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और द्विपक्षीय व्यापार वित्त वर्ष 2022-23 में 84.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया। मई 2022 में क्रियान्वित व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता CEPA) ‘गेम-चेंजर’ सिद्ध हुआ, जिसने संयुक्त अरब अमीरात के लिये 80% भारतीय निर्यात पर टैरिफ को समाप्त कर दिया है। इसके परिणामस्वरूप वर्ष 2023 की पहली छमाही में गैर-तेल व्यापार में 5.8% की वृद्धि हुई और वर्ष 2030 तक इसके 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने का अनुमान है। संयुक्त अरब अमीरात की रणनीतिक अवस्थिति और विश्वस्तरीय आधारभूत संरचना इसे अफ्रीका एवं यूरोप में भारतीय वस्तुओं के लिये एक आदर्श पुनःनिर्यात केंद्र के रूप में स्थापित करती है। ऊर्जा सुरक्षा: भारत के चौथे सबसे बड़े कच्चे तेल आपूर्तिकर्ता के रूप में UAE भारत की ऊर्जा सुरक्षा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जनवरी 2024 में UAE से तेल आयात में 81% की वृद्धि हुई। पारंपरिक हाइड्रोकार्बन के अलावा, दोनों देश नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं पर भी सहयोग कर रहे हैं। यह साझेदारी वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करने के भारत के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य के अनुरूप है, जो भारत के ऊर्जा संक्रमण में UAE के महत्त्व को दर्शाता है। निवेश उत्प्रेरक: संयुक्त अरब अमीरात से भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) वर्ष 2021-22 में 1.03 बिलियन अमेरिकी डॉलर से तीन गुना बढ़कर 3.35 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया। ‘निवेश पर संयुक्त अरब अमीरात-भारत उच्चस्तरीय संयुक्त कार्यबल’ निवेश को सुविधाजनक बनाने में सहायक रहा है। अबू धाबी इंवेस्टमेंट अथॉरिटी ने रिलायंस रिटेल वेंचर्स लिमिटेड में 4,966.80 करोड़ रुपए का निवेश किया है। रणनीतिक साझेदारी: UAE मध्य-पूर्व में, विशेष रूप से आतंकवाद का मुक़ाबला करने और समुद्री सुरक्षा सुनिश्चित करने में, भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार बन गया है। दोनों देशों ने वर्ष 2021 में द्विपक्षीय नौसैनिक अभ्यास ‘ज़ायद तलवार’ का आयोजन किया, जो उनके बीच बढ़ते रक्षा सहयोग को प्रकट करता है। संयुक्त अरब अमीरात के अल धफरा एयर बेस (Al Dhafra air base) तक भारत की पहुँच से उसकी सामरिक पहुँच की वृद्धि हुई है। धन प्रेषण और ‘सॉफ्ट पावर’: संयुक्त अरब अमीरात में 3.5 मिलियन भारतीय प्रवासियों की उपस्थिति भारत के लिये धन प्रेषण (remittances) और ‘सॉफ्ट पावर’ (soft power) का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत है। भारत को वर्ष 2022 में विश्व भर से लगभग 111 बिलियन अमेरिकी डॉलर का धन प्रेषण प्राप्त हुआ, जिसमें संयुक्त अरब अमीरात धन प्रेषण के सबसे बड़े स्रोतों में से एक था। आर्थिक योगदान के अलावा, प्रवासी समुदाय सांस्कृतिक संबंधों और लोगों के परस्पर (p2p) संपर्क को भी बढ़ाता है। अबू धाबी में BAPS हिंदू मंदिर का निर्माण UAE की धार्मिक सहिष्णुता का प्रतीक है और यह द्विपक्षीय सांस्कृतिक संबंधों को सुदृढ़ करता है। संयुक्त अरब अमीरात गए हुए भारतीय पर्यटक और अमीरात में रहने वाले वे लोग जिनके पास भारत में बैंक खाते हैं, UPI नेटवर्क का उपयोग कर सकते हैं। प्रौद्योगिकी और नवाचार केंद्र: UAE-भारत साझेदारी प्रौद्योगिकी और नवाचार पर अधिकाधिक ध्यान केंद्रित कर रही है। वर्ष 2021 में गठित I2U2 (भारत, इज़राइल, संयुक्त अरब अमीरात, संयुक्त राज्य अमेरिका) समूह का उद्देश्य विशेष रूप से स्वच्छ ऊर्जा और खाद्य सुरक्षा जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकीय सहयोग को बढ़ावा देना है। भारत के विभिन्न भागों में फूड पार्क की स्थापना में UAE का 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का निवेश (जिसकी घोषणा 2022 में की गई थी) इस सहयोग की पुष्टि करता है। इसके अतिरिक्त, वर्ष 2018 में लॉन्च किया गया ‘UAE-भारत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ब्रिज’ AI में ज्ञान के आदान-प्रदान और संयुक्त अनुसंधान की सुविधा प्रदान करता है, जिससे दोनों देश चतुर्थ औद्योगिक क्रांति में अग्रणी देश बन सकेंगे। भारत और संयुक्त अरब अमीरात के बीच टकराव के प्रमुख क्षेत्र कौन-से हैं? श्रम अधिकार संबंधी कठिनाइयाँ: सुधारों के बावजूद, संयुक्त अरब अमीरात में भारतीय कर्मकारों के लिये श्रम अधिकारों के मुद्दे अभी भी बने हुए हैं। पासपोर्ट जब्त करने, पूर्ण वेतन भुगतान नहीं करने और खराब जीवन स्थितियों की ख़बरें लगातार सामने आती रहती हैं। खाड़ी देशों में भारतीय कर्मकार औसतन प्रतिदिन एक श्रम शिकायत दर्ज कराते हैं। जबकि UAE ने वेतन संरक्षण प्रणाली जैसे सुधारों को लागू किया है, लेकिन इनका क्रियान्वयन एक चुनौती बना हुआ है। भारत के लिये अपने नागरिकों की सुरक्षा और संयुक्त अरब अमीरात के साथ सुदृढ़ आर्थिक संबंध बनाए रखने के बीच का नाजुक संतुलन द्विपक्षीय संबंधों में तनाव पैदा करता है। भू-राजनीतिक जोड़-तोड़: इज़रायल के साथ भारत के गहरे होते संबंध और अब्राहम समझौते के माध्यम से UAE का इज़रायल के साथ संबंध सामान्यीकरण एक जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य का निर्माण करता है। यद्यपि इससे त्रिपक्षीय सहयोग के अवसर खुलते हैं (जैसा कि I2U2 पहल में देखा गया है), लेकिन इससे भारत के क्षेत्रीय प्रतिद्वंद्विता में उलझने, विशेष रूप से ईरान के साथ, का भी खतरा है। चीन के साथ UAE के बढ़ते संबंध, जिसका पुष्टि चीन के

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पीएम जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने जनजातीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार के लिये प्रधानमंत्री जनजातीय उन्नत ग्राम अभियान (PMJUGA ) को मंजूरी दी । PMJUGA के बारे में मुख्य तथ्य क्या हैं? परिचय: यह जनजातीय बहुल गाँवों और आकांक्षी ज़िलों में जनजातीय परिवारों के कल्याण के लिये एक केंद्र प्रायोजित योजना है । लक्षित क्षेत्र और कवरेज: यह 30 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के सभी आदिवासी बाहुल्य गाँवों के 549 ज़िलों और 2,740 ब्लॉकों को कवर करेगा । इससे लगभग 63,000 गाँव और 5 करोड़ से अधिक जनजातीय लोग लाभान्वित होंगे। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी 10.42 करोड़ (8.6%) है, जिसमें 705 से अधिक जनजातीय समुदाय शामिल हैं । उद्देश्य: इसका उद्देश्य भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं के माध्यम से इनके बीच स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका जैसे सामाजिक बुनियादी ढाँचे के संदर्भ में अंतराल को कम करना है। मिशन के लक्ष्य: इसमें 25 हस्तक्षेप शामिल हैं, जिन्हें अनुसूचित जनजातियों के लिये विकास कार्य योजना (DAPST) के तहत आवंटित धनराशि के माध्यम से 17 मंत्रालयों द्वारा अगले 5 वर्षों में कार्यान्वित किया जाएगा ताकि निम्नलिखित लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। सक्षम बुनियादी ढाँचे का विकास:  पात्र परिवारों के लिये पक्का आवास: पात्र एसटी परिवारों को PMAY (ग्रामीण) के तहत पक्का आवास मिलेगा, जिसमें नल का जल ( जल जीवन मिशन ) और विद्युत् की आपूर्ति शामिल है। पात्र एसटी परिवारों को आयुष्मान भारत कार्ड (PMJAY) का भी लाभ मिलेगा । गाँव के बुनियादी ढाँचे में सुधार: अनुसूचित जनजाति बाहुल्य गाँवों में सभी मौसम के लिये सड़क संपर्क सुनिश्चित करना (PMGSY), मोबाइल कनेक्टिविटी ( भारत नेट ) और इंटरनेट तक पहुँच प्रदान करना, स्वास्थ्य, पोषण और शिक्षा में सुधार के लिये बुनियादी ढाँचे ( राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन, समग्र शिक्षा और पोषण अभियान ) को बढ़ावा देना। आर्थिक सशक्तीकरण  को बढ़ावा: यह प्रशिक्षण ( कौशल भारत मिशन ) तक पहुँच प्रदान करके, जनजातीय बहुउद्देशीय विपणन केंद्र (TMMC) से विपणन सहायता के साथ वन अधिकार अधिनियम, 2006 (FRA) पट्टा धारकों के लिये कृषि, पशुपालन और मत्स्य पालन क्षेत्रों में सहायता के माध्यम से कौशल विकास, उद्यमिता संवर्द्धन और उन्नत आजीविका (स्वरोज़गार) पर केंद्रित है। गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुँच का सार्वभौमिकरण: स्कूल और उच्च शिक्षा में सकल नामांकन अनुपात (GER) को बढ़ाने और ज़िला/ब्लॉक स्तर पर स्कूलों में आदिवासी छात्रावासों की स्थापना करके अनुसूचित जनजाति के छात्रों के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को सस्ती और सुलभ बनाने के प्रयास किये जाएंगे (समग्र शिक्षा अभियान) । स्वस्थ जीवन और सम्मानजनक वृद्धावस्था: इसका उद्देश्य उन क्षेत्रों में मोबाइल मेडिकल इकाइयों के माध्यम से IMR, MMR और टीकाकरण कवरेज के राष्ट्रीय मानकों तक पहुँचना है, जो उप केंद्र मैदानी क्षेत्रों में 10 किलोमीटर से अधिक और पहाड़ी क्षेत्रों में 5 किलोमीटर से अधिक दूर हैं । मानचित्रण और निगरानी: इस मिशन के अंतर्गत शामिल जनजातीय गाँवों को पीएम गति शक्ति पोर्टल पर अंकित किया जाएगा, जिसमें संबंधित मंत्रालय द्वारा योजना विशिष्ट आवश्यकताओं के लिये पहचाने गए अंतरालों को शामिल करने के साथ सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले ज़िलों को पुरस्कृत किया जाएगा। नोट: DAPST भारत में जनजातीय विकास के लिये एक रणनीति है। जनजातीय मामलों का मंत्रालय और 41 अन्य मंत्रालय एवं विभाग DAPST के तहत जनजातीय विकास परियोजनाओं के लिये धन आवंटित करते हैं । इन परियोजनाओं में शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिंचाई, सड़क, आवास, विद्युतीकरण और रोज़गार शामिल हैं । PMJUGA के तहत आदिवासियों के बीच आजीविका को बढ़ावा देने हेतु अभिनव योजनाएँ क्या हैं? जनजातीय गृह प्रवास: जनजातीय क्षेत्रों में पर्यटन को बढ़ावा देने और वैकल्पिक आजीविका प्रदान करने के लिये, पर्यटन मंत्रालय द्वारा स्वदेश दर्शन योजना  के तहत 1,000 गृह प्रवासों को बढ़ावा दिया जाएगा। पर्यटन की संभावना वाले गाँवों को 5-10 होमस्टे के लिये वित्त पोषण मिलेगा, जिसमें प्रत्येक परिवार को दो नए कमरे बनाने के लिये 5 लाख रुपये, मौजूदा कमरों के नवीनीकरण के लिये 3 लाख रुपये और ग्राम समुदाय की आवश्यकता के लिये 5 लाख रुपये तक का अनुदान मिलेगा। वन अधिकार धारकों के लिये सतत् आजीविका: इस मिशन का विशेष ध्यान वन क्षेत्रों में वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत 22 लाख पट्टा धारकों पर है। इसका उद्देश्य वन अधिकारों की मान्यता में तेजी लाना, आदिवासी समुदायों को सशक्त बनाना और विभिन्न सरकारी योजनाओं के माध्यम से इन्हें सतत् आजीविका प्रदान करना है। सरकारी आवासीय विद्यालयों और छात्रावासों के बुनियादी ढाँचे में सुधार: इस पहल में स्थानीय शैक्षिक संसाधनों को उन्नत बनाने, नामांकन को बढ़ावा देने और इन संस्थानों में छात्रों को बनाए रखने के लिये आदिवासी आवासीय विद्यालयों, छात्रावासों एवं आश्रम विद्यालयों के बुनियादी ढाँचे में सुधार करना शामिल है । सिकल सेल रोग के निदान हेतु उन्नत सुविधाएँ: एम्स और उन राज्यों के प्रमुख संस्थानों में सक्षमता केंद्र (CoC) स्थापित किये जाएंगे जहाँ सिकल सेल रोग प्रचलित है। CoC के पास प्रसवपूर्व निदान हेतु नवीनतम सुविधाएँ, प्रौद्योगिकी, कार्मिक और अनुसंधान क्षमताएँ होंगी, जिसकी लागत 6 करोड़ रुपये/CoC होगी। जनजातीय बहुउद्देशीय विपणन केंद्र (TMMCs): जनजातीय उत्पादों के प्रभावी विपणन तथा विपणन अवसंरचना, जागरूकता, ब्रांडिंग, पैकेजिंग और परिवहन सुविधाओं में सुधार के लिये 100 TMMC स्थापित किये जाएंगे ।   PMJUGA की आवश्यकता क्या है? निर्धनता: जनजातीय समुदाय अक्सर निर्धन होने के साथ संसाधनों तक इनकी पहुँच सीमित होती है। पूर्ववर्ती योजना आयोग ने अनुमान लगाया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अनुसूचित जनजाति के व्यक्तियों का प्रतिशत 45.3% (2011-12) और शहरी क्षेत्रों में 24.1% (2011-12 ) था। PMJUGA के तहत रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने और गरीबी में कमी लाने के लिये आदिवासी ज़िलों में कौशल केंद्र खोले जाएंगे । भूमि अधिकार और विस्थापन: कई आदिवासी समुदायों को विकास परियोजनाओं, खनन एवं वनों की कटाई के कारण विस्थापित होना पड़ता है । आदिवासियों के पास अक्सर औपचारिक भूमि नहीं होती है, जिससे असुरक्षित स्वामित्व के साथ इनके शोषण को बढ़ावा मिलता है। PMJUGA के तहत अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के तहत उनके भूमि अधिकारों को मान्यता देते हुए 22 लाख FRA पट्टे जारी होंगे । निम्न साक्षरता दर: जनजातीय आबादी में साक्षरता दर राष्ट्रीय औसत से काफी कम है। जनगणना 2011 के अनुसार अनुसूचित जनजातियों (ST) की साक्षरता दर 59% थी जबकि अखिल भारतीय स्तर पर समग्र साक्षरता

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केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा एक साथ चुनाव को मंज़ूरी

चर्चा में क्यों?  हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी, जिसके तहत पूरे भारत में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ होंगे। यह निर्णय पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव‘ योजना पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद लिया गया। एक साथ चुनाव संबंधी समिति की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं? संविधान में संशोधन: दो विधेयकों में एक साथ चुनाव कराने के लिये संविधान में संशोधन किया जाना चाहिये। विधेयक 1: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसके लिये संविधान संशोधन के लिये राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी। विधेयक 2: नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव, लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ इस प्रकार समन्वयित किये जाएंगे कि स्थानीय निकाय के चुनाव, लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के अंदर कराए जाएँ। इसके लिये कम से कम आधे राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होगी। आवश्यक संशोधन: एक साथ चुनाव कराने के लिये समिति ने भारत के संविधान में 15 संशोधनों की सिफारिश की थी। कुछ प्रमुख संशोधनों में शामिल हैं: अनुच्छेद 82A: कोविंद समिति द्वारा अनुशंसित पहला विधेयक संविधान में एक नया अनुच्छेद 82A जोड़ने से शुरू होगा। अनुच्छेद 82A द्वारा वह प्रक्रिया स्थापित होगी जिसके द्वारा देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने की प्रणाली लागू होगी। इसने सिफारिश की है कि अनुच्छेद 327 के तहत संसद की शक्ति का विस्तार करके इसमें “एक साथ चुनाव कराने” को भी शामिल किया जाना चाहिये। अनुच्छेद 83 और अनुच्छेद 172: इसने सिफारिश की कि अनुच्छेद 83(4) और 172(4) के तहत लोकसभा या राज्य विधानसभा शेष “अधूरे कार्यकाल” के लिये कार्य करेगी और फिर निर्धारित समय के तहत एक साथ चुनाव कराए जाने के अनुसार उसे भंग कर दिया जाएगा। अनुच्छेद 324A: इस समिति ने संविधान में एक नया अनुच्छेद 324A शामिल करने का सुझाव दिया है। यह नया अनुच्छेद संसद को यह सुनिश्चित करने के लिये कानून बनाने का अधिकार देगा कि नगर पालिका और पंचायत चुनाव, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ-साथ आयोजित किये जाएँ। एकल मतदाता सूची और निर्वाचन पहचान पत्र: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) राज्य निर्वाचन आयोगों (SEC) के परामर्श से चुनाव के सभी तीन स्तरों के लिये एकल मतदाता सूची और निर्वाचन पहचान पत्र तैयार कर सकता है। राज्य स्तर पर मतदाता सूची और निर्वाचन पहचान पत्र के संबंध में राज्य निर्वाचन आयोग की शक्ति को भारत निर्वाचन आयोग को हस्तांतरित करने के लिये संविधान संशोधन के लिये कम से कम आधे राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होगी। त्रिशंकु विधानसभा या समयपूर्व विघटन: त्रिशंकु सदन अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में सदन की शेष अवधि के लिये नई लोकसभा या राज्य विधानसभा का गठन करने के लिये चुनाव कराए जाने चाहिये। रसद आवश्यकताओं को पूरा करना: भारत निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन आयोगों के परामर्श से अग्रिम रूप से योजना बनाएगा और आकलन करेगा तथा जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों, ईवीएम/वीवीपीएटी आदि  के नियोजन हेतु कदम उठाएगा। चुनावों का समन्वयन: चुनावों का समन्वयन करने के लिये समिति ने सुझाव दिया है कि राष्ट्रपति आम चुनावों के बाद लोकसभा की पहली बैठक पर जारी अधिसूचना के माध्यम से एक ‘नियत तिथि’ निर्धारित करें । यह तिथि नये चुनावी चक्र की शुरुआत का प्रतीक होगी । प्रस्तावित अनुच्छेद 82A के तहत , “नियत तिथि” के बाद आयोजित किसी भी आम चुनाव में निर्वाचित सभी राज्य विधानसभाएँ, लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के अंत में समाप्त होंगी , भले ही उन्होंने अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया हो या नहीं। उदाहरण: पश्चिम बंगाल (2026) और कर्नाटक (2028) में अगले विधानसभा चुनाव के बाद मई या जून 2029 में इन विधानसभाओं का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा और अगली लोकसभा के कार्यकाल के साथ इनको समन्वित किया जाएगा।   एक साथ चुनाव कराने पर पूर्व की सिफारिशें क्या हैं? विधि आयोग: वर्ष 2018 में स्थापित 21 वें विधि आयोग ने प्रस्ताव दिया कि एक साथ चुनाव कराने से कई लाभ होंगे जिसमें लागत बचत एवं प्रशासनिक संरचनाओं और सुरक्षा बलों पर दबाव कम होना आदि शामिल हैं । वर्ष 1999 में भारत के विधि आयोग ने देश में चुनाव प्रणाली में सुधार के उपायों की जाँच करते हुए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी। कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 79 वीं रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने के लिये  एक वैकल्पिक और व्यावहारिक पद्धति की सिफारिश की थी। नीति आयोग: नीति आयोग ने वर्ष 2017 में एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया गया था। एक साथ चुनाव क्या हैं ? परिचय: एक साथ चुनाव का अर्थ लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों अर्थात नगर पालिकाओं और पंचायतों का एक साथ चुनाव कराना है। इसका प्रभावी अर्थ यह है कि एक मतदाता एक ही दिन और एक ही समय में सरकार के सभी स्तरों के सदस्यों के चुनाव के लिये अपना वोट डालता है। वर्तमान में  ये सभी चुनाव एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से होते हैं तथा प्रत्येक निर्वाचित निकाय की शर्तों के अनुसार समय-सीमा निर्धारित की जाती है। इसका तात्पर्य यह नहीं है कि देश भर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये मतदान एक ही दिन में हो जाना चाहिये । इसे चरणबद्ध तरीके से कराया जा सकता है। इसे लोकप्रिय रूप से एक राष्ट्र, एक चुनाव के रूप में जाना जाता है। इतिहास: वर्ष 1967 के चौथे आम चुनाव तक एक साथ चुनाव प्रचलन में थे। हालाँकि उत्तरोत्तर केंद्र सरकारों ने संवैधानिक प्रावधानों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकारों को उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही बर्खास्त कर दिया तथा राज्यों और केंद्र में गठबंधन सरकारें विघटित होती रहीं , इसलिये एक साथ चुनाव कराने की प्रथा समाप्त हो गई। इसके बाद एक साथ चुनाव कराने के चक्र के बाधित होने से देश में अब एक वर्ष में पाँच से छह चुनाव होते हैं। यदि नगर पालिका और पंचायत चुनावों को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो चुनावों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी।

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रोज़गार बाज़ार में बढ़ता कौशल अंतराल

चर्चा में क्यों? भारत के रोज़गार बाज़ार में अर्द्ध-कुशल और उच्च-कुशल रोज़गार के बीच विभाजन बढ़ रहा है। विगत दो दशकों में सेवा क्षेत्र (विशेष रूप से आईटी, बैंकिंग और वित्त) आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक रहा है । इसके विपरीत, परिधान और फुटवियर जैसे पारंपरिक उद्योग (जो अर्द्ध-कुशल रोज़गार प्रदान करते हैं) स्थिर हो रहे हैं। भारत के विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के वर्तमान रुझान क्या हैं? सेवा क्षेत्र: सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार में योगदान: भारत के सेवा क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 50% से अधिक का योगदान है तथा इससे लगभग 30.7% आबादी को रोज़गार मिलता है एवं यह सॉफ्टवेयर सेवाओं हेतु वैश्विक केंद्र के रूप में कार्य करता है। रिकवरी और संवृद्धि: सेवा क्षेत्र में वित्त वर्ष 2022-23 में उल्लेखनीय सुधार हुआ और वर्ष-दर-वर्ष (YoY) 8.4% की वृद्धि दर दर्ज की। भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग बाज़ार वर्ष 2021 और 2024 के बीच 6-8 % तक बढ़ने का अनुमान है। GII रैंकिंग: सितंबर 2023 में भारत ने तकनीकी रूप से गतिशील, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार योग्य सेवाओं की प्रगति से प्रेरित होकर वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) में अपना 40वाँ स्थान बनाए रखा। FDI: सेवा क्षेत्र में सर्वाधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित हुआ, जो अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक 109.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा। विनिर्माण क्षेत्र: विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14% (जो लक्षित 25% से कम है) बना हुआ है,  जिससे उच्च-कुशल और अर्द्ध-रोज़गार के बीच का अंतराल बढ़ रहा है। विनिर्माण की कमज़ोर स्थिति: भारत का विनिर्माण क्षेत्र बांग्लादेश, थाईलैंड और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धियों से पीछे है, जिससे अर्द्ध-कुशल रोज़गार सृजन प्रभावित हो रहा है। अर्थशास्त्री इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भारत अपनी 1.4 अरब विशाल जनसंख्या के कारण केवल सेवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं रह सकता है। रोज़गार सृजन की आवश्यकता: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 7.85 मिलियन गैर-कृषि रोज़गारों की आवश्यकता होगी, जो बढ़ते कार्यबल को समायोजित करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गारों के सृजन की व्यापक आवश्यकता पर प्रकाश डालता है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के अनुसार, जून 2024 में राष्ट्रीय बेरोज़गारी दर 7% से बढ़कर 9% हो जाएगी। विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार में गिरावट के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं? विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता (GDP में मात्र 14% का योगदान) से श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में बाधा उत्पन्न हुई है। भारत का सेवा निर्यात वैश्विक वाणिज्यिक सेवा निर्यात का 4.3% है, जबकि इसका वस्तु निर्यात वैश्विक वस्तु बाज़ार का केवल 1.8% है। इस असंतुलन के कारण भारत के विनिर्माण क्षेत्र में सीमित रोज़गार सृजित होते हैं। उच्च-कौशल वाले उद्योगों की ओर बदलाव: विनिर्माण क्षेत्र को नज़रअंदाज़ करते हुए वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के उदय से उच्च-कौशल वाले आईटी पेशेवरों के लिये  रोज़गार के अवसरों में वृद्धि हुई है लेकिन यह बदलाव पर्याप्त अर्द्ध-कौशल वाले रोज़गार सृजन में परिणत नहीं हुआ है। भारत में GCC की संख्या में वृद्धि हुई है, जिनमें से लगभग 1,600 बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्थापित किये गए हैं, जो डेटा एनालिटिक्स और सॉफ्टवेयर विकास पर केंद्रित हैं। निर्यात-संबंधी रोज़गार में गिरावट: विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में निर्यात-संबंधी रोज़गार वर्ष 2012 के कुल घरेलू रोज़गार के 9.5% से घटकर वर्ष 2020 में 6.5% हो गए हैं। इस गिरावट का कारण भारत के सेवा क्षेत्र और उच्च कौशल विनिर्माण का निर्यात क्षेत्र में प्रभुत्व होना है, जो व्यापक कार्यबल हेतु रोज़गार सृजन में कम प्रभावी है , जिसके परिणामस्वरूप व्यापार से संबंधित रोज़गार सृजन में कमी आई है। वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में सीमित भागीदारी: GVC में भारत की घटती भागीदारी के कारण रोज़गार सृजन सीमित हो गया है जबकि GVC की वैश्विक व्यापार में 70% भागीदारी है। विश्व बैंक के अनुसार, कच्चे माल की कमी और उच्च परिवहन लागत जैसी चुनौतियों ने भारत की व्यापार भागीदारी को कम कर दिया है। उच्च टैरिफ: मध्यवर्ती वस्तुओं पर उच्च टैरिफ ने भारतीय निर्माताओं के लिये उत्पादन लागत बढ़ा दी है, जिससे उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो गई है। भारत का औसत टैरिफ वर्ष 2014 के 13% से बढ़कर संभावित रूप से वर्ष 2022 में 18.1% हो गया, जिससे वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन होने के साथ अर्द्ध-कुशल रोज़गार के अवसरों में कमी आई है। अर्द्ध-कौशल संबंधी विनिर्माण में भारत द्वारा अवसर का लाभ न उठा पाना: भारत को वर्ष 2015 से 2022 के बीच अर्द्ध-कौशल विनिर्माण से चीन के बाहर हो जाने से उत्पन्न अवसर का लाभ उठाने में संघर्ष का सामना करना पड़ा। परिधान, चमड़ा, वस्त्र और फुटवियर जैसे उद्योगों में चीन की कम होती उपस्थिति से बांग्लादेश, वियतनाम जैसे देशों तथा यहाँ तक कि जर्मनी एवं नीदरलैंड जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को भी लाभ हुआ है। कौशल विकास का अभाव: भारत के केवल 16% श्रम बल को कौशल प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है , जिसके परिणामस्वरूप अपर्याप्त व्यावसायिक कौशल और शिक्षा के कारण रोज़गार की संभावना में कमी बनी हुई है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट के अनुसार केवल 45% स्नातक ही रोज़गार योग्य हैं। भारत में विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये क्या पहल की गई हैं? PM मित्र पार्क: सरकार ने वर्ष 2023 में परिधान क्षेत्र में विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिये 4,445 करोड़ रुपए के निवेश के साथ 7 पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (PM-MITRA) पार्कों की स्थापना को मंज़ूरी दी। राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम: आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 28,602 करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश के साथ 12 औद्योगिक स्मार्ट शहरों की स्थापना को मंज़ूरी दी, जिसका उद्देश्य विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना है। टैरिफ में कटौती: केंद्रीय बजट 2024-25 में चिकित्सा उपकरण और वस्त्र सहित विभिन्न वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती की घोषणा की गई , जिसका उद्देश्य उत्पादन लागत को कम करना तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना है। प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह योजना गैर-कृषि इकाइयाँ स्थापित करने में उद्यमियों को सहायता प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक कारीगरों तथा बेरोज़गार युवाओं के लिये रोज़गार सृजित करना है। वर्ष 2018-19 से 30 जनवरी, 2024 तक इस कार्यक्रम के तहत अनुमानित 37.46 लाख रोज़गार सृजित होना संभावित है। प्रधानमंत्री

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