Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

Economics

खुशहाल गाँव और समृद्ध शहर

लोहे के औज़ार और खेती  :- उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ। महापाषाण कब्रों में लोहे के औज़ार और हथियार बड़ी संख्या में मिले हैं।जंगलों को साफ करने के लिए कुल्हाड़ियाँ , जुताई के लिए हलों के फाल का इस्तेमाल शामिल है।   कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उठाए गए कुछ कदम  :- कृषि के विकास में नए औज़ार तथा रोपाई महत्वपूर्ण कदम थे , उसी तरह सिंचाई के लिए नहरें , तालाब , क्त्रीम जलाशय बनाए गए।   गाँवों में कौन रहते थे :- इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी तथा उत्तरी हिस्सों के अधिकांश गाँवों में कम से कम तीन तरह के लोग रहते थे। तमिल क्षेत्र में – बड़े भूस्वामियों जो वेल्लला कहलाते थे।  साधारण हलवाहों को उणवारऔर भूमिहीन मजदूर , दास कडैसियार और आदिमई कहलाते थे।   देश के उत्तरी हिस्से में – ग्राम भोजक – गाँव का प्रधान व्यक्ति ग्राम -भोजक कहलाता था। यह गांव का प्रधान होता था और अक्सर यह एक ही परिवार के लोग इस पद पर कई पीढ़ियों तक रहते थे , यह एक अनुवांशिक पद था यह गांव का बड़ा भू स्वामी होता था अपनी जमीं पर दास , मजदुर से काम लेता था  यह गांव में कर वसूलता और राजा को देता था यह कभी कभी न्यायधीश और पुलिस का काम भी करता था   स्वतंत्र कृषक – ग्राम-भोजकों के आलावा अन्य स्वतंत्र कृषक भी होते थे , जिन्हे गृहपति कहते थे। इन में ज्यादातर छोटे किसान ही होते थे   दास या कर्मकार –  इनके पास स्वयं की जमींन नहीं होती थी और यह दुसरो की जमीं पर कार्य करते थे  कछ लोहार , कुम्हार , बढ़ई , बुनकर , शिल्पकार तथा कुछ दास कर्मकार भी थे। संगम साहित्य – तमिल की प्राचीन रचनाओं को संगम साहित्य कहते है  इनकी रचना 2300 साल पहले की गई, संगम साहित्य इसलिए कहा जाता है क्योकि मदुरै के कवियों के सम्मलेन में इनका संकलन किया गया है।   आहात सिक्के :- सबसे पुराने आहत सिक्के थे , जो करीब 500 साल चले। चाँदी या ताँबे के सिक्को पर विभिन्न आकृतियों को आहत क्र बनाए जाने के कारण इन्हे आहत सिक्का कहा जाता था।   नगर :- अनेक गतिविधियों के केंद्र अक्सर कई कारणों से महत्वपूर्ण हो जाते थे , उदाहरण के लिए मथुरा 2500 साल से भी ज़्यादा समय से एक महत्वपूर्ण नगर रह है। 2000 साल पहले मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी बनी। मथुरा बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र था। मथुरा एक धर्मिक केंद्र बह रहा है।   शिल्प तथा शिल्पकार :- पुरास्थलों से शिल्पों के नमूने मिले हैं। इनमें मिट्टी के बहुत ही पतले और सुंदर बर्तन मिले , जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है क्योंकि ये ज़्यादातर उपमहाद्वीप के ऊपरी भाग में मिले हैं। अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने-अपने संघ बनाने लगे थे जिन्हे श्रेणी कहते थे। काम प्रशिक्षण देना , कच्चा मॉल उपलब्ध करना , मेल का वितरण करना था।

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ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका

ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका हम यह पहले भी पढ़ चुके हैं कि किस प्रकार किसी क्षेत्र का पर्यावरण वहां पर रहने वाले लोगों पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है वहां के पेड़ पौधे वहां की फसलें या दूसरी चीजें किस तरह उनके लिए महत्वपूर्ण हो जाती हैं इस अध्याय में हम गांव में लोग किन विभिन्न तरीकों से अपनी आजीविका चलाते हैं तथा सभी लोगों को एक प्रकार से आजीविका चलाने के समान अवसर उपलब्ध हैं इन सब समस्याओं को हम जानने का प्रयास करेंगे   कालपट्टू गाँव तमिलनाडु के समुद्र तट के पास एक गांव है कल पट्टू यहां लोग कई तरह के काम करते हैं दूसरे गांव की तरह यहां भी खेती के अलावा कई काम होते हैं जैसे टोकरी बर्तन घड़े ईट बैलगाड़ी इत्यादि बनानातथा इस गांव में कुछ लोग सेवाएं भी प्रदान करते हैं जैसे नर्स शिक्षक धोबी बुनकर नई साइकिल ठीक करने वाले तथा लोहार इसके अलावा यहां पर छोटी दुकानें भी दिखाई देती हैं जैसे चाय सब्जी कपड़े की दुकान तथा दो दुकानों बीज और खाद की तथा कुछ दुकानों पर टिफिन भी मिलता है यहां का मुख्य भोजन इडली डोसा उपमा यह गांव छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है सिंचाई जमीन पर मुख्यता धान की खेती होती है और ज्यादातर परिवार खेती के द्वारा अपनी आजीविका कमाते हैं यहां आम और नारियल के काफी बाग हैं कपास गन्ना और अकेला भी उगाया जाता है     तुलसी तुलसी एक भूमिहीन मजदूर है जो इस छोटे से गांव में एक जमीदार के यहां मजदूरी करती है तथा उसकी मजदूरी वर्षभर नियमित नहीं है क्योंकि वह खेत में केवल निराई कटाई वर उपाय के समय ही कार्य करती है तथा वर्ष के अन्य समय वह छोटे-मोटे काम करके अपना जीवन यापन करती है जमीदार के यहां उससे ₹40 मजदूरी मिलती है जो की न्यूनतम मजदूरी से भी कम है तथा तुलसी के पति पास की नदी से बालू ढोने का काम करते हैं तथा तुलसी वर्ष के अन्य दिनों में घर के काम जैसे खाना बनाना कपड़े धोना व साफ सफाई करने का कार्य करती है तथा कम पैसों में अपनी आजीविका चलाती है हमारे देश में ग्रामीण परिवार में से करीब 40% खेतिहर मजदूर हैं कुछ के पास जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं बाकी मजदूर भूमिहीन है कई बार जब पूरे साल उन्हें काम नहीं मिलता तो वह दूरदराज के इलाकों में काम की तलाश में पलायन करते हैं     शेखर शेखर एक किसान है जो अपनी भूमि पर कृषि करता है तथा उसे कृषि करने के लिए धन की आवश्यकता होती है जिसके लिए वह व्यापारी से खाद और बीज उधार लेता है और बदले में अपनी फसल उसी व्यक्ति को भेजता है इस पूरे लेनदेन में शेखर को कम फसल प्राप्त हो पाती है तथा वह अपनी आजीविका चलाने के लिए कृषि के अलावा चावल की मिल में कार्य करता है और अपनी गाय का दूध सहकारी समिति में भेज देता है      साहूकारों द्वारा कर्ज लेने पर   शेखर की तरह कई छोटे किसान साहूकारों से कर्ज लेते हैं तथा उस पैसे को बीज खाद व कीटनाशक में इस्तेमाल करते हैं फसल के खराब होने की स्थिति में किसानों की लागत भी नहीं निकल पाती और उन्हें अपने आजीविका चलाने के लिए साहूकारों से और कर्ज लेना पड़ता है धीरे-धीरे यह कर्ज इतना बढ़ जाता है कि किसान उसे चुका नहीं पाते कई क्षेत्रों में किसानों ने कर्ज के बोझ से दब कर आत्महत्या कर ली   रामलिंगम और करुथम्मा रामलिंगम के पास चावल की मील बीज व कीटनाशक की दुकान और भूमि का बड़ा टुकड़ा मौजूद था और सरकारी बैंक से कुछ पैसा कर्ज लिया हुआ था इस प्रकार रामलिंगम के पास अच्छा खासा पैसा मौजूद था यह साहूकार आसपास के गांव से ही धान खरीदते हैं मेल का चावल आसपास के शहरों के व्यापारियों को बेचा जाता है इससे उनकी अच्छी खासी कमाई हो जाती है    भारत के खेतिहर मजदूर और किसान कलपट्टू गांव में तुलसी की तरह के खेतिहर मजदूर हैं शेखर की तरह के छोटे किसान हैं और रामलिंगम की तरह साहूकार हैं भारत में प्रत्येक 5 ग्रामीण परिवारों में से लगभग 2 परिवार खेतिहर मजदूर हैं ऐसी सभी परिवार अपनी कमाई के लिए दूसरों के खेतों पर निर्भर करते हैं इनमें से कई भूमिहीन है और कई के पास जमीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं छोटे किसानों को ले तो उनकी जरूरतों के हिसाब से खेत बहुत ही छोटे पढ़ते हैं भारत में 80% किसानों की यही हालात हैं भारत में केवल 20% किसान बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं ऐसे किसान गांव की अधिकतर जमीन पर खेती करते हैं उनकी उपज का बहुत बड़ा भाग बाजार में बेचा जाता है कई बड़े किसानों के अन्य काम धंधे भी शुरू कर दिए हैं जैसे दुकान चलाना शुद्ध पर पैसा देना छोटी-छोटी फैक्ट्रियां चलाना इत्यादि मध्य भारत के कुछ गांव में खेती और जंगल की उपज दोनों ही आजीविका के लिए महत्वपूर्ण साधन है महुआ बनाने तेंदू के पत्ते इकट्ठा करने शहद निकालने और इन्हें व्यापारियों को बेचने जैसे काम अतिरिक्त आय में मदद करते हैं इसी तरह सहकारी समिति को यह पास के शहर के लोगों को दूध बेचना भी कई लोगों के लिए आजीविका कमाने का मुख्य साधन है    अरुणा और पारीवेलन पुडुपेट कल पट्टू से ज्यादा दूर नहीं है यहां लोग मछली पकड़ कर अपनी आजीविका चलाते हैं उनके घर समुद्र के पास होते हैं और जहां चारों और जाल केटामरैंन की पंक्तियां दिखाई देती हैं सुबह 7:00 बजे समुद्र किनारे पड़ी गहमागहमी रहती है इस समय सारे लोग मछलियां पकड़ कर लौट आते हैं मछली खरीदने और बेचने के लिए बहुत सारी औरतें इकट्ठा हो जाती हैं   यहां पर ज्यादातर लोग मछलियां की नीलामी करके अपनी आजीविका चलाते हैं तथा बैंकों से पैसा उधार लेकर अपनी छोटी नाव व जाल खरीदते हैं तथा मछलियां बेचकर बैंकों को पैसा वापस लौट आते हैं नीलामी में जो औरतें यहां से मछलियां खरीदती हैं वे टोकरी भर भर कर पास के गांव में बेचने के लिए जाती हैं कुछ व्यापारी भी है जो शहर की दुकानों के लिए मछलियां खरीदते हैं

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अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन – आरडीएसओ

अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन – आरडीएसओ भारतीय मानक ब्यूरो पर “वन नेशन वन स्टैंडर्ड” नामक मिशन के तहत मानक विकास संगठन – एसडीओ के रूप में घोषित होने वाला देश का पहला संस्थान बन गया है। अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन – अवलोकन आरडीएसओ – ऐतिहासिक पृष्ठभूमि आरडीएसओ और एक राष्ट्र, एक मानक योजना भारतीय उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण उत्पाद सुनिश्चित करने के उद्देश्य से “एक राष्ट्र, एक मानक” मिशन के पदचिह्नों के बाद, भारतीय रेलवे का अनुसंधान डिजाइन और मानक संगठन ब्यूरो के तहत मानक विकास संगठन घोषित होने वाला देश का पहला मानक निकाय बन गया है। भारतीय मानक। भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) क्या है? बीआईएस भारत का राष्ट्रीय मानक निकाय है जिसकी स्थापना बीआईएस अधिनियम 2016 के तहत माल के मानकीकरण, अंकन और गुणवत्ता प्रमाणन की गतिविधियों के सामंजस्यपूर्ण विकास के लिए की गई है। यह उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के अधीन कार्य करता है। यह भारत में एकमात्र मानक-निर्धारण प्राधिकरण है। ECOMARK के बारे में भी पढ़ें, भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) द्वारा उन उत्पादों के लिए जारी किया गया एक प्रमाणन चिह्न जो पारिस्थितिक रूप से सुरक्षित हैं और BIS द्वारा निर्धारित मानकों का पालन करते हैं। एसडीओ मान्यता के लाभ एक राष्ट्र, एक मानक मिशन- आरडीएसओ के साथ आगे का रास्ता

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