बोबल (Bay of Bengal Boundary Layer Experiment – BoBBLE) के अंतर्गत मानसून, उष्णकटिबंधीय चक्रवात और मौसम से जुड़ी सटीक भविष्यवाणी के लिए बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान और यूनाइटेड किंगडम के ईस्ट एंगलिया विश्वविद्यालय ने मिलकर एक कार्ययोजना बनाई है.
BoBBLE क्या है?
- BoBBLE एक संयुक्त भारत-यूनाइटेड किंगडम परियोजना है जो मानसून प्रणाली पर बंगाल की खाड़ी में चलने वाली सामुद्रिक प्रक्रियाओं के प्रभाव की जाँच करती है.
- इस परियोजना के लिए वित्त का प्रावधान भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रलाय और यूनाइटेड किंगडम की प्राकृतिक शोध परिषद् के द्वारा किया जाता है.
- ज्ञातव्य है कि दक्षिण-एशियाई क्षेत्र में मानसून के सन्दर्भ में बंगाल की खाड़ी एक आधारभूत भूमिका का निर्वाह करती है.
दक्षिण बंगाल की खाड़ी में चलने वाली मुख्य प्रक्रियाएँ
- दक्षिण पश्चिम मानसून की नमकीन धारा (saline Southwest Monsoon Current) बंगाल की खाड़ी में नमक और समुद्री सतह के तापमान को नियंत्रित करने वाली एक प्रमुख धारा है जो स्वयं स्थानीय (पवन दबाव कर्ल) और दूरस्थ (विषुवतरेखीय लहर प्रसार) कारकों से नियंत्रित होती है. यह धारा हिन्द महासागर के व्यापक क्षेत्र में मौसम में होने वाले बदलाव से जुड़ी होती है.
- दक्षिण-पश्चिम मानसून धारा में नमक की अधिक मात्रा पश्चिमी विषुवतरेखीय हिन्द महासागर के कारण होती है, जो सोमालियाई धारा, विषुवतीय अंतर धारा तथा दक्षिण-पश्चिम मानसून धारा के माध्यम से बंगाल की खाड़ी से जुड़ा होता है.
- सोमालियाई धारा और दक्षिण-पश्चिम मानसून धारा जंक्शनों पर होने वाले मौसमी बदलाव रेल मार्ग की स्विच (railroad switches) के जैसा काम करते हैं और उत्तरी-हिन्द महासागर की अलग-अलग घाटियों की ओर जलप्रवाह को मोड़ देते हैं.
- दक्षिणी बंगाल की खाड़ी में पर्णहरित (Chlorophyll) कितना होगा यह मिश्रित परत प्रक्रियाओं और बाधा परत (barrier layer) की सुदृढ़ता से सीधे निर्धारित होता है.
मानसून क्या होता है?
- मानसून उन मौसमी हवाओं को कहते हैं जो मौसम में बदलाव के साथ अपनी दिशा बदल देते हैं. गर्मी में ये हवाएँ समुद्र से धरती की ओर तथा जाड़े में धरती से समुद्र की ओर बहा करती हैं.
- मानसून इन भूभागों में होता है – भारतीय उपमहाद्वीप, दक्षिण-पूर्वी एशिया, मध्य-पश्चिम अफ्रीका के कुछ भाग आदि.
- भारतीय मानसून में बड़े प्रमाण में ताप का संवहन होता है.
- मानसून एल-नीनो जैसी प्रत्येक दूसरे से लेकर सातवें वर्ष होने वाली घटना और ला लीना से जुड़ा होता है.
एल-निनो और भारतीय मानसून
- एल-निनो एक संकरी गर्म जलधारा है जो दिसम्बर महीने में पेरू के तट के निकट बहती है. स्पेनिश भाषा में इसे “बालक ईसा (Child Christ)” कहते हैं क्योंकि यह धारा क्रिसमस के आस-पास जन्म लेती है.
- यह पेरूबियन अथवा हम्बोल्ट ठंडी धारा की अस्थायी प्रतिस्थापक है जो सामान्यतः तट के साथ-साथ बहती है.
- यह हर तीन से सात साल में एक बार प्रवाहित होती है और विश्व के उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर बाढ़ और सूखे की वहज बनती है.
- कभी-कभी यह बहुत गहन हो जाती है और पेरू के तट के जल के तापमान को 10 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा देती है.
- प्रशांत महासागर के उष्ण कटिबंधीय जल की यह उष्णता भूमंडलीय स्तर पर वायु दाब तथा हिन्द महासागर की मानसून सहित पवनों को प्रभावित करती है.
- एल निनो के अध्ययन से यह पता चलता है कि जब दक्षिणी प्रशांत महासागर में तापमान बढ़ता है तब भारत में कम वर्षा होती है.
- भारतीय मानसून पर एल-नीनो का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है और इसका प्रयोग मानसून की लम्बी अवधि के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है.
- मौसम वैज्ञानिकों का विचार है कि भारत में 1987 का भीषण सूखा एल-निनो के कारण ही पड़ा था.
- 1990-1991 में एल-निनो का प्रचंड रूप देखने को मिला था. इसके कारण देश के अधिकांश भागों में मानसून के आगमन में 5 से 12 दिनों की देरी हो गई थी.
ला-निना
एल-निनो के बाद मौसम सामान्य हो जाता है. परन्तु कभी-कभी सन्मार्गी पवनें इतनी प्रबल हो जाती हैं कि वे मध्य तथा पूर्वी प्रशांत क्षेत्र में शीतल जल का असामान्य जमाव पैदा कर देती हैं. इसे ला-निना कहते हैं जोकि एल-निनो के ठीक विपरीत होता है. ला-निना से चक्रवातीय मौसम का जन्महोता है. परन्तु भारत में यह अच्छा समाचार लाता है क्योंकि यह मानसून की भारी वर्षा का कारण बनता है.