चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत द्वारा इथेनॉल उत्पादन, विशेष रूप से मक्का आधारित इथेनॉल उत्पादन को बढ़ाने के प्रयास ने देश को एशिया के शीर्ष मक्का निर्यातक से शुद्ध आयातक में बदल दिया है।
- यह महत्त्वपूर्ण बदलाव स्थानीय उद्योगों को प्रभावित कर रहा है और वैश्विक मक्का आपूर्ति शृंखला में बदलाव ला रहा है।
मक्का के संदर्भ में मुख्य तथ्य क्या हैं?
- परिचय: मक्का (Zea mays L.) एक अत्यंत बहुपयोगी फसल है, जिसे इसकी उच्च आनुवंशिक उपज क्षमता के कारण ‘अनाज की रानी/Queen of cereals’ के रूप में जाना जाता है।
- विश्व स्तर पर मक्का अनाज उत्पादन में महत्त्वपूर्ण योगदान देती है और संयुक्त राज्य अमेरिका इसका सबसे बड़ा उत्पादक देश है तथा इसकी उत्पादकता भी सर्वाधिक है।
- भारत में मक्का तीसरी सबसे महत्त्वपूर्ण खाद्यान्न फसल है, जो राष्ट्रीय खाद्यान्न में लगभग 9% का योगदान देती है तथा कृषि सकल घरेलू उत्पाद में 100 बिलियन रुपए से अधिक का योगदान देती है।
- इस फसल का उपयोग भोजन, पशु आहार और औद्योगिक उत्पादों सहित विभिन्न क्षेत्रों में किया जाता है।
- उपज के अनुकूल स्थितियाँ: मक्का विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगती है, जिसमें दोमट रेतीली मिट्टी से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी तक शामिल है। इसके लिये अनुकूलतम स्थितियाँ अच्छी जल निकासी वाली मृदा, उच्च कार्बनिक पदार्थ और तटस्थ PH वाली मृदा हैं।
- उत्पादकता बनाए रखने के लिये खराब जल निकासी और उच्च लवणता वाले खेतों से बचना महत्त्वपूर्ण है।
- वर्षा: 50-100 सेमी.
- मौसमी खेती: भारत में मक्का खरीफ, रबी और वसंत तीनों ऋतुओं में उगाया जा सकता है।
- वर्षा आधारित परिस्थितियों और जैविक/अजैविक कारकों के कारण रबी मक्का की तुलना में खरीफ मक्का की उत्पादकता कम है।
- वैश्विक रैंकिंग: भारत विश्व में मक्का का 5वाँ सबसे बड़ा उत्पादक (दिसंबर 2023 तक) और 14वाँ सबसे बड़ा निर्यातक (2022) है।
- मक्का की आपूर्ति के लिये भारत के रणनीतिक लाभों में साल भर उत्पादन, एक प्रभावी बीज तंत्र और सुलभ बंदरगाह शामिल हैं। हालाँकि उच्च घरेलू मांग इसके वर्तमान निर्यात महत्त्व को सीमित करती है।
- प्रमुख उत्पादक राज्य: कर्नाटक, मध्य प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश।
- पहल:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)
- मोमी मक्का हाइब्रिड
- अखिल भारतीय समन्वित मक्का सुधार परियोजना (AICMIP)
- भारत मक्का शिखर सम्मेलन 2022
भारत शुद्ध मक्का आयातक क्यों बन गया है?
- इथेनॉल ब्लेंडिंग लक्ष्य: भारत द्वारा वर्ष 2025-26 तक गैसोलीन में इथेनॉल की मात्रा 20% बढ़ाने के प्रयास से मक्का आधारित इथेनॉल की मांग बढ़ गई है।
- जैव ईंधन पर राष्ट्रीय नीति (NPB) 2018 मक्का और अनाज आधारित इथेनॉल के ब्लेंडिंग की अनुमति देती है, जिससे बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये इथेनॉल उत्पादन क्षमता को बढ़ावा मिलेगा।
- गन्ने से मक्का की ओर संक्रमण: अनावृष्टि के कारण सरकार ने ईंधन के लिये गन्ने के प्रयोग पर रोक लगा दी, जिससे इथेनॉल डिस्टिलरियों को विकल्प के रूप में मक्का की ओर रुख करना पड़ा।
- भारत ने वर्ष 2023-24 में 34.6 मिलियन टन (mt) मक्का का उत्पादन किया, जिसकी आपूर्ति-मांग के अंतर को कम करने के लिये उत्पादन को दोगुना करने की योजना है।
- घरेलू आपूर्ति पर प्रभाव: इथेनॉल के लिये मक्का का प्रयोग करने की ओर संक्रमण ने पोल्ट्री और स्टार्च उद्योगों में कमी उत्पन्न कर दी है, जिससे दशकों में देश में पहली बार मक्का का आयात हुआ है।
मक्के के अत्यधिक आयात से स्थानीय उद्योगों पर क्या प्रभाव पड़ रहा है?
- मक्के के लिये प्रतिस्पर्द्धा: परंपरागत रूप से भारत के पोल्ट्री और स्टार्च उद्योग देश के मक्का उत्पादन के प्राथमिक उपभोक्ता रहे हैं। बाज़ार में इथेनॉल डिस्टिलरी की शुरुआत के साथ इन उद्योगों को अब आपूर्ति के लिये कड़ी प्रतिस्पर्द्धा का सामना करना पड़ रहा है।
- मक्के की बढ़ती कीमतें: मक्का की बढ़ती मांग ने स्थानीय कीमतों को वैश्विक बेंचमार्क से कहीं ऊपर ला दिया है, जिससे पोल्ट्री उत्पादकों, जो फीड के लिये मक्का पर बहुत अधिक निर्भर हैं, पर दबाव बढ़ गया है।
- जोखिम में कुक्कुट पालन उद्योग: फीड की बढ़ती लागत, जो उत्पादन व्यय का तीन-चौथाई हिस्सा है, ने पोल्ट्री उत्पादकों को वित्तीय संकट में डाल दिया है।
- अखिल भारतीय पोल्ट्री ब्रीडर्स एसोसिएशन ने आयात शुल्क हटाने और फीड के लिये आनुवंशिकतः रूपांतरित (GM) मक्का को मंज़ूरी देने का आह्वान किया है।
- उत्पादन लागत पोल्ट्री के विक्रय मूल्य से अधिक होने के कारण, उद्योग को अस्थिर घाटे का जोखिम है। छोटे पैमाने के पोल्ट्री उत्पादक लागत कम करने के लिये टूटे हुए चावल और गेहूँ के डंठल के अवशिष्ट जैसे वैकल्पिक फीड स्रोतों का सहारा ले रहे हैं।
- मक्के की कृषि के लिये प्रोत्साहन: मक्के की ऊँची कीमतें किसानों को अपने मक्के के रकबे को बढ़ाने के लिये प्रोत्साहित कर रही हैं, गर्मियों में बोई जाने वाली मक्के की खेती का रकबा वर्ष 2023 से 7% बढ़ा है।
- किसान वर्तमान ऊँची कीमतों से लाभान्वित हो रहे हैं, लेकिन छोटे पोल्ट्री उत्पादक नए सीज़न की आपूर्ति के साथ कीमतों के स्थिर होने तक उत्पादन को कम करने के लिये मज़बूर हैं।
भारत द्वारा मक्का के अत्यधिक आयात के कारण वैश्विक निहितार्थ क्या हैं?
- व्यापार गतिशीलता में बदलाव: भारत, जो कभी एशिया का शीर्ष मक्का निर्यातक था, अब मुख्य रूप से म्याँमार और यूक्रेन से मक्का आयात कर रहा है। इसका वैश्विक मक्का की कीमतों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है, जो पहले लगभग चार वर्ष के निचले स्तर पर रही थीं।
- निर्यातक देशों में कीमतों में वृद्धि: भारतीय मांग में वृद्धि ने म्याँमार में मक्का की कीमतों को 220 अमेरिकी डॉलर से बढ़ाकर लगभग 270 अमेरिकी डॉलर प्रति मीट्रिक टन कर दिया है, जिससे वहाँ के किसान अधिक मक्का की फसल बोने के लिये प्रोत्साहित हुए हैं।
- हालाँकि बढ़ती लागत घरेलू उद्योगों, जो परंपरागत रूप से सस्ती मक्का आपूर्ति पर निर्भर रहे हैं, के लिये चुनौती बन रही है।
- आपूर्ति शृंखला समायोजन: वियतनाम, बांग्लादेश, नेपाल और मलेशिया जैसे भारतीय मक्का के पारंपरिक क्रेता अब अपनी आपूर्ति के लिये दक्षिण अमेरिका एवं संयुक्त राज्य अमेरिका की ओर रुख कर रहे हैं, क्योंकि भारतीय मक्का बहुत महँगा हो गया है।
- स्थायी आयातक का दर्जा: NITI आयोग का अनुमान है कि वर्ष 2024-25 तक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) की 1,016 करोड़ लीटर की अपेक्षित मांग को पूरा करने के लिये भारत की इथेनॉल उत्पादन क्षमता का विस्तार करने की आवश्यकता है।
- इसके लिये मक्का आधारित इथेनॉल से बहुत बड़े योगदान की आवश्यकता होगी, जो मक्का को भारत के जैव ईंधन उद्योग के लिये एक महत्त्वपूर्ण संसाधन के रूप में स्थापित करेगा। विशेषज्ञों का अनुमान है कि घरेलू उत्पादन क्षमताओं से अधिक मांग में तेज़ी से वृद्धि के कारण भारत सालाना मक्का का आयात करना जारी रखेगा।
भारत में मक्का उत्पादन बढ़ाने के लिये क्या कदम उठाने की आवश्यकता है?
- तकनीकी अभिग्रहण: भारत की विविध कृषि-पारिस्थितिक स्थितियों के लिये विभिन्न क्षेत्रों और मौसमों में मक्का की उत्पादकता बढ़ाने के लिये अनुकूलित तकनीकी समाधानों की आवश्यकता है।
- बायोटेक विशेषताओं को अपनाकर, विशेष रूप से फॉल आर्मीवर्म (FAW) जैसे कीटों के प्रति प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाले एकल-क्रॉस संकर के अंतर्गत क्षेत्र का विस्तार करके, भारत संभावित रूप से अपनी मक्का उत्पादकता को दोगुना कर सकता है।
- अमेरिका ने बायोटेक विशेषताओं के 100% कवरेज के साथ रिकॉर्ड मक्का की पैदावार हासिल की है, जिसमें प्रति हेक्टेयर 11 टन से अधिक की कटाई की गई है, जबकि भारत में मक्के की खेती के तहत 110 लाख हेक्टेयर होने के बावजूद, भारत की औसत उपज केवल 3.3-3.8 टन प्रति हेक्टेयर है, जो वैश्विक औसत का लगभग आधा है।
- बायोटेक विशेषताओं को अपनाकर, विशेष रूप से फॉल आर्मीवर्म (FAW) जैसे कीटों के प्रति प्रतिरोधी और उच्च उपज देने वाले एकल-क्रॉस संकर के अंतर्गत क्षेत्र का विस्तार करके, भारत संभावित रूप से अपनी मक्का उत्पादकता को दोगुना कर सकता है।
- विविधीकरण और गहनता: मक्का भविष्य-आधारित समाधान प्रदान करती है क्योंकि चावल की निरंतर कृषि से इंडो-गंगा मैदान में जल स्तर कम हो जाता है।
- पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे सिंचित क्षेत्रों में मक्का की खेती करने से संसाधनों का संरक्षण हो सकता है तथा उत्पादन में वृद्धि हो सकती है, क्योंकि मक्का को चावल की तुलना में 90% कम विद्युत ऊर्जा एवं 70% कम जल की आवश्यकता होती है।
- मौजूदा सिंचाई प्रणालियों के साथ 1,200 मिमी. से कम वर्षा वाले क्षेत्रों में लंबी अवधि की एकल क्रॉस हाइब्रिड मक्का की खेती उच्च उपज दे सकती है और विद्युत ऊर्जा एवं जल पर सरकारी सब्सिडी बचा सकती है।
- सरकारी सहायता: E20 ब्लेंडिंग लक्ष्य के लिये मक्के की 165 लाख टन वाली एक बहुत बड़ी मात्रा की आवश्यकता है, जो भारत के वर्तमान उत्पादन का लगभग आधा है।
- मौजूदा मक्का आपूर्ति में बदलाव किये बिना इस मांग को पूरा करने के लिये भारत को वर्ष 2024-25 तक उत्पादन को 346 लाख टन से बढ़ाकर 420-430 लाख टन तथा वर्ष 2029-30 तक 640-650 लाख टन करने की आवश्यकता है।
- उचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), खरीद आश्वासन और परिवहन रियायतें देकर किसानों को मक्का की खेती को बढ़ावा देने के लिये प्रोत्साहित किया जा सकता है।
- मक्का मूल्य शृंखला में मेगा सहकारी समितियों को शामिल करके सुनिश्चित खरीद से दुग्ध उत्पादन (श्वेत क्रांति) क्षेत्र में सहकारी क्रांति की तरह ही क्रांति हो सकती है।
- मुर्गी पालन और पशु आहार: मक्का को बहुपयोगी अनाज के रूप में अधिक प्रयोग करके लक्ष्य प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जिससे कुक्कुट पालन उद्योग और पशु आहार की बढ़ती मांग को पूरा किया जा सकता है।
- उच्च प्रोटीन से युक्त घुलनशील पदार्थों वाले शुष्क डिस्टिलर्स अनाज (DDGS) का उत्पादन करके मक्का E20 इथेनॉल की आवश्यकता को भी पूरा किया जा सकता है, जिससे सतत् भोजन, चारा और ईंधन सुरक्षा में योगदान मिलता है।
- DDGS इथेनॉल उत्पादन का प्रमुख उपोत्पाद है और मवेशियों के लिये एक अच्छा प्रोटीन और ऊर्जा आहार है।
- उच्च प्रोटीन से युक्त घुलनशील पदार्थों वाले शुष्क डिस्टिलर्स अनाज (DDGS) का उत्पादन करके मक्का E20 इथेनॉल की आवश्यकता को भी पूरा किया जा सकता है, जिससे सतत् भोजन, चारा और ईंधन सुरक्षा में योगदान मिलता है।