चर्चा में क्यों?
हाल ही में विधि एवं न्याय मंत्रालय ने 1 सितंबर, 2024 से 31 अगस्त, 2027 तक तीन वर्ष की अवधि के लिये 23वें विधि आयोग का गठन किया है।
23वें विधि आयोग के विषय में मुख्य विवरण क्या हैं?
- अधिदेश: वर्ष 2020 में गठित 22वें विधि आयोग के संदर्भ की शर्तों केअनुसार, नवगठित पैनल को राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के आलोक में वर्तमान कानूनों का आकलन करने का कार्य सौंपा गया है।
- संदर्भ की शर्तें:
- राज्य के नीति निदेशक सिद्धांतों के संबंध में मौजूदा कानूनों की जाँच करना तथा निदेशक सिद्धांतों और संवैधानिक प्रस्तावना के उद्देश्यों के अनुरूप सुधार का सुझाव देना।
- खाद्य सुरक्षा और बेरोज़गारी पर वैश्वीकरण के प्रभाव की जाँच करना।
- हाशिये पर पड़े लोगों के हितों की सुरक्षा के लिये उपायों की सिफारिश करना।
- न्यायिक प्रशासन की समीक्षा करना तथा उसे और अधिक उत्तरदायी व कुशल बनाने के लिये उसमें सुधार करना।
- इसका उद्देश्य विलंब को कम करना, उच्च न्यायालय के नियमों को सरल बनाना और केस प्रवाह प्रबंधन ढाँचा स्थापित करना।
विधि आयोग क्या है?
- परिचय: यह विधि और न्याय मंत्रालय, भारत सरकार की अधिसूचना के माध्यम से कानूनी सुधारों के लिये कानून के क्षेत्र में अनुसंधान करने के लिये गठित एक गैर-सांविधिक निकाय है।
- विधि आयोग एक निश्चित कार्यकाल के लिये स्थापित किया जाता है और विधि एवं न्याय मंत्रालय के लिये एक सलाहकार निकाय के रूप में कार्य करता है।
- विधि आयोग का इतिहास: प्रथम विधि आयोग की स्थापना चार्टर अधिनियम, 1833 के तहत वर्ष 1834 में लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में की गई थी।
- इसने भारतीय दंड संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता के संहिताकरण की सिफारिश की।
- इसके बाद क्रमशः 1853, 1861 एवं 1879 में दूसरे, तीसरे तथा चौथे विधि आयोग का गठन किया गया।
- भारतीय सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908, भारतीय संविदा अधिनियम, 1872, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 और संपत्ति अंतरण अधिनियम, 1882 पहले चार विधि आयोगों द्वारा निर्मित किये गये थे।
- स्वतंत्रता के बाद विधि आयोग का गठन: भारत सरकार ने वर्ष 1955 में स्वतंत्र भारत के पहले विधि आयोग की स्थापना की, जिसके अध्यक्ष भारत के तत्कालीन महान्यायवादी श्री एम. सी. सीतलवाड़ थे।
- तब से अब तक 23 विधि आयोग गठित किये जा चुके हैं, जिनमें से प्रत्येक का कार्यकाल तीन वर्ष का है।
- विधि आयोग के कार्य:
- अप्रचलित कानूनों की समीक्षा/निरसन: अप्रचलित और अप्रासंगिक कानूनों की पहचान करना तथा उन्हें निरस्त करने की सिफारिश करना।
- कानून और गरीबी: गरीबों को प्रभावित करने वाले कानूनों की जाँच करना और सामाजिक-आर्थिक कानून का पश्च-लेखा-परीक्षण (post-audit) करना।
- नए कानूनों का प्रस्ताव: निदेशक सिद्धांतों को लागू करना और प्रस्तावना के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये नए कानूनों का प्रस्ताव करना।
- न्यायिक प्रशासन: सरकार द्वारा संदर्भित कानून और न्यायिक प्रशासन के मुद्दों पर समीक्षा करना तथा सिफारिशें करना।
- महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट: भारतीय विधि आयोग ने अब तक विभिन्न मुद्दों पर 289 रिपोर्ट प्रस्तुत की हैं, जिनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण रिपोर्ट इस प्रकार हैं:
- रिपोर्ट संख्या 283 (सितंबर, 2023): यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम, 2012 के तहत सहमति की आयु।
- रिपोर्ट संख्या 271 (जुलाई 2017): मानव DNA प्रोफाइलिंग।
- रिपोर्ट संख्या 273 (अक्तूबर 2017): यातना के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन का कार्यान्वयन।
- रिपोर्ट संख्या 274 (अप्रैल 2018): न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की समीक्षा