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होयसल शैली की प्रमुख उल्लेखनीय विशेषताओं का वर्णन कीजिये।

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उत्तर :

 

ग्यारहवीं से चौदहवीं शताब्दी के मध्य कर्नाटक के दक्षिणी क्षेत्र में मंदिर वास्तुकला की होयसल शैली का विकास हुआ। इस शैली का प्रारंभिक स्वरूप ऐहोल, बादामी एवं पट्टदकल के चालुक्यकालीन मंदिरों में देखा जा सकता है, लेकिन मैसूर क्षेत्र में विकसित होने के पश्चात् ही इसका विशिष्ट स्वरूप प्राप्त हुआ। बैलूर, हेलेबिड और सोमनाथपुर के मंदिर इस शैली में निर्मित प्रमुख मंदिर है।

  • तारकीय योजना इन मंदिरों की प्रमुख विशेषता है, जैसे हेलेबिड के मंदिर में केंद्रीय वर्गाकार योजना से कोणीय प्रक्षेप आगे निकले होने के कारण वे तारे जैसा प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
  • मंडपों के प्रवेश द्वार के रूप में ‘मकर तोरणों’ का निर्माण किया गया है। इन तोरणों पर मकर की आकृति उत्कीर्णित है।
  • होयसल मंदिरों के सेला (विमान) अंदरूनी भाग में समतल और सादे तथा बाहरी भाग में विस्तृत रूप में अलंकृत है।
  • होयसल मंदिरों में एक से अधिक वेदिकाओं अथवा पवित्र स्थलों की उपस्थिति के कारण इन्हें एकाकूट (एक पवित्र स्थल), द्विकूट (दो पवित्र स्थल) और त्रिकूट (तीन पवित्र स्थल) में वर्गीकृत किया जाता है। सोमनाथपुरा का मंदिर त्रिकूट मंदिर का प्रमुख उदाहरण है।
  • इन मंदिरों के शीर्ष पर फूलदान के आकार का सुंदर कलश विद्यमान है।
  • नारीत्व की विशेषताएँ वाली पौराणिक महिला आकृति शालमंजिका/मदनिका इस शैली के मंदिरों की प्रमुख विशेषता है। यह पौराणिक महिला आकृति किसी पेड़ के पास खड़ी अथवा किसी पेड़ की शाखा पकड़ी हुई दिखाई गई है। यह संगीत, नृत्य जैसी गतिविधियों में व्यस्त रूप में मंदिरों के स्तंभों के शीर्षों तथा मकरतोरणों के प्रत्येक भाग में अंकित है। शालमंजिका पर बौद्ध मूर्तिकला का प्रभाव परिलक्षित होता है।
  • उत्कृष्ट वास्तुकलात्मकता का प्रदर्शन करते हुए इन मंदिरों में बारीक अलंकरण एवं हिंदू पौराणिक आख्यानों का प्रस्तुतीकरण बेहद सुंदरता से किया गया है। इन मंदिरों के स्तंभ और मकरतोरण रामायण, महाभारत एवं पौराणिक आख्यानों से अलंकृत है। हेलेबिड के मंदिर में पशुओं, देवी-देवताओं की आकृतियाँ तथा नीचे की चित्र वल्लरी में महावतों के साथ सैकड़ों हाथियों के जुलूस का उत्कीर्णन इसका सुंदर उदाहरण है।
  • कुछ होयसलकालीन मंदिरों में कामुक मूर्तिकला का उत्कीर्णन किया गया है, जैसे- सोमनाथपुरा के चेन्ना केशव मंदिर में इस तरह के संकेत मिलते हैं। इनमें से ज्यादातर मूर्तियाँ शाक्त संप्रदाय से संबंधित है।
  • होयसल मंदिरों पर चोल एवं चालुक्यकालीन कला का भी प्रभाव है। स्तंभों पर निर्मित आकृति ‘स्तंभ बुट्टालिका’ चोल एवं चालुक्यकालीन कला के प्रभाव का प्रमुख उदाहरण है। होयसल मंदिरों में एक मंडप पर मोहिनी की आकृति देखी गई है, जो होयसल शैली में चोलकला का उदाहरण है।

इस प्रकार चोलों और पांड्यों की शक्ति के अवसान के पश्चात् होयसलों द्वारा मंदिर स्थापत्य की नवीन विशिष्टताओं का विकास एवं अन्य पूर्ववर्ती शैलियों से उदारतापूर्ण ग्रहण की गई होयसल शैली का विकास किया, जो अपने वास्तुशिल्प नियोजन, अलंकरण, पौराणिकता एवं जटिलता के कारण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है।

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