उत्तर :
ऐतिहासिक काल के आरंभ में तमिल लोगों के जीवन के संबंध में जानकारी के आधार के रूप में संगम साहित्य महत्त्वपूर्ण है। संगम साहित्य के ग्रंथों को मोटे तौर पर दो समूहों, आख्यानात्मक अर्थात् मेलकपक्कु एवं उपदेशात्मक अर्थात् कीलकणक्कु में विभाजित किया जा सकता है। आख्यानात्मक ग्रंथों में तमिल महापाषाणिक जीवन का आभास मिलता है।
- सबसे पुराने महापाषाणिक लोग पशुचारक थे। इसका कुछ प्रतिरूप हमें संगम साहित्य में मिलता है जिसमें पशुहरणों की निरंतर चर्चा की गई है।
- महापाषाणिक समाज में युद्ध के दौरान की गई लूट से लोगों का अच्छा जीवन निर्वाह होता था। वे लोग मूलत: शिकारी थे। संगम साहित्य में बारंबार युद्धों का उल्लेख है। लगता है कि यह उल्लेख महापाषाणिक संस्कृति के बारे में ही है।
- संगम साहित्य में कहा गया है कि जब वीर मरता है तो वह पत्थर के टुकड़े के तुल्य हो जाता है। वह हमें पत्थरों के टुकड़ों के उस घेरे की याद दिलाता है जो कि महापाषाणिक लोगों की कब्रों पर लगाए जाते थे। शायद बाद में इसी से गाय या अन्य वस्तुओं के लिये लड़ते-लड़ते मरने वालों के सम्मान में वीरकल अर्थात् स्मारक स्वरूप वीर प्रस्तर खड़ा करने की परंपरा चली।
इस प्रकार संगम साहित्य में वर्णित उपर्युक्त आरंभिक सामाजिक जीवन की विशेषताएँ तमिल महापाषाणिक संस्कृति से मेल खाती है। अत: संभव है कि संगम साहित्य में वर्णित सामाजिक विकास की आरंभिक अवस्था महापाषाणिक अवस्था से संबद्ध हो।