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साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में गुप्तकाल की उपलब्धियों पर प्रकाश डालिये।

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उत्तर :

 

गुप्तकाल में साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में खूब उन्नति हुई। इस समय साहित्य में लौकिक, धार्मिक व शास्त्रीय साहित्य तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी में गणित, खगोलशास्त्र एवं शिल्प के विकास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ रही।

साहित्य के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियाँ

  • गुप्तकाल में लौकिक साहित्य के सृजन के रूप में विभिन्न नाटक लिखे गए, जैसे- भारत के तेरह नाटक, शूद्रक का मृच्छकरटिकम् और कालिदास का अभिज्ञानशाकुन्तलम् आदि।
  • गुप्तकालीन नाटकों के बारे में दो बातें उललेखनीय है। पहली, ये सभी नाटक सुखांत है तथा दूसरी  इन नाटकों में विभिन्न वर्गों के लोग भिन्न-भिन्न भाषाएँ बोलते हैं, जैसे- स्त्री एवं शूद्र प्राकृत बोलते हैं और भद्रजन संस्कृत।
  • धार्मिक साहित्य के रूप में रामायण एवं महाभारत भी इसी काल में आकर पूर्ण हुए। ये दोनों गाथा काव्य धार्मिक एवं सामाजिक प्रभाव डालने के कारण महत्त्वपूर्ण है।
  • भगवदगीता भी महाभारत से जुड़ा हुआ अंग है, जिसमें वर्ण और जाति के अनुसार जिसका जो कर्त्तव्य है, उसे उसका पालन निष्काम भावना से करना चाहिये।
  • इसी काल में उपर्युक्त महाकाव्यों के ढर्रे पर पुराणों की रचना की गई। मिथकों, आख्यानों और प्रवचनों पर आधारित इन ग्रंथों का उद्देश्य सामान्य लोगों को शिक्षा और बुद्धि विवेक प्रदान करना  था।
  • धार्मिक साहित्य के रूप में बहुत-सी स्मृतियाँ भी इसी काल में लिखी गई जिसमें सामाजिक और धार्मिक नियम-कानून पद्य के रूप में संकलित किये गए हैं।
  • शास्त्रीय साहित्य के इतिहास में भी गुप्तकाल उज्ज्वल अध्याय है। इस काल में पाणिनि ‘अष्टाध्यायी’ और पतंजलि के ‘योग सूत्र’ के आधार पर संस्कृत व्याकरण का विकास हुआ। चंद्रगुप्त द्वितीय के दरबार के एक नवरत्न अमरसिंह द्वारा संकलित ‘अमरकोश’ के लिये यह काल विशेष उल्लेखनीय है।
  • हालाँकि इस काल में ब्राह्मण-धर्म-विषयक साहित्य की बहुतायत है, फिर भी इस काल में पहली बार बहुत-सी धर्मनिरपेक्ष रचनाएँ भी पाई जाती है, जैसे- वराहमिहिर की ‘पंच सिद्धांतिका’ एवं ‘वृहत् संहिता’।

विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में गुप्तकाल का योगदान

  • इस काल के विद्वान आर्यभट्ट गणित की विभिन्न प्रकार की गणनाओं को करने में पारंगत थे। आर्यभट्ट की पुस्तक ‘आर्यभट्टीयम्’ इस काल में गणित के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण ग्रंथ है।
  • खगोल के क्षेत्र में भी इस काल में खूब प्रगति हुई, जैसे- वराहमिहिर और आर्यभट्ट इस काल के प्रमुख खगोलशास्त्री थे।
  • गुप्तकालीन शिल्पकारों ने भी लौह और कांस्य शिल्पाकृतियों में अपना चमत्कार दिखाया है। इस समय बुद्ध की अनेक कांस्य मूर्तियों का बड़े पैमाने पर निर्माण हुआ। लोहे की वस्तुओं में दिल्ली के महरौली में लौह स्तंभ प्रमुख उदाहरण है। चौथी सदी में निर्मित यह स्तंभ आज तक जंग के प्रभाव से मुक्त है, जो तत्कालीन महान तकनीकी कौशल का परिणाम है।

इस प्रकार गुप्तकाल साहित्य, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण उपलब्धियों का काल है।

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