उत्तर :
सातवाहन शासक ब्राह्मण थे और उन्होंने ब्राह्मणवाद के विजयाभिमान का नेतृत्व किया। आरंभ से ही सातवाहनों ने अश्वमेघ , बाजपेय आदि यज्ञ किये तथा यज्ञानुष्ठानों में ब्राह्मणों को प्रचुर भूमि दान दिया। फिर भी सातवाहनों ने बौद्ध धर्म को पर्याप्त बढ़ावा दिया, जो इस काल की कला और वास्तु के विकास में आसानी से दिखाई देता है।
- सातवाहन काल में पश्चिमोत्तर दक्कन अथवा महाराष्ट्र में अत्यंत दक्षता के साथ चट्टानों काटकर बौद्ध मंदिरों के रूप में अनेक चैत्यों का निर्माण किया गया। पश्चिमी दकन में कार्ले का चैत्य शिला वास्तुकला का प्रभावोत्पादक उदाहरण है।
- बौद्ध भिक्षुओं के निवास के लिये चैत्यों के पास विहारों का भी निर्माण किया गया। नासिक में तीन विहार हैं , जिनमें गौतमीपुत्र के अभिलेख उत्कीर्णित है।
- स्वतंत्र बौद्ध संरचना के रूप में अमरावती का स्तूप विशेष उल्लेखनीय है। इस स्तूप का निर्माण 200 ई . पूर्व में आरंभ हुआ। किंतु ईसा की दूसरी सदी के उत्तरार्द्ध में आकर यह पूर्ण निर्मित हुआ। अमरावती का स्तूप भिति – प्रतिमाओं से भरा हुआ है , जिनमें बुद्ध के जीवन के विभिन्न दृश्य उकेरे गए हैं।
- बौद्ध स्मारकों की दृष्टि से नागार्जुनकोंड अत्यंत महत्वपूर्ण स्थल है। सातवाहनों के उत्तराधिकारी इक्ष्वाकुओं के काल में यह अपने उत्कर्ष पर पहुँचा। अपने बौद्ध स्तूपों और महाचैत्यों से अलंकृत यह स्थान ईसा की आरंभिक सदियों में मूर्तिकला में सबसे ऊँचा प्रतीत होता है।
- मौर्यकाल में अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये अधिकांश अभिलेखों में ब्राह्मी लिपि का प्रयोग किया। सातवाहनों के भी सभी अभिलेख इसी लिपि में मिले हैं।
सातवाहन राज्य में खासकर शिल्पियों के बीच महायान धर्म का बहुत बोलबाला था। शासकों ने भी भिक्षुओं को ग्रामदान देकर बौद्ध धर्म को बढ़ावा दिया। इसी कारण अमरावती और नागार्जुनकोंडा नगर सातवाहनों के शासन में और विशेषकर उनके उत्तराधिकारी इक्ष्वाकुओं के शासन में बौद्ध संस्कृति के महत्त्वपूर्ण केंद्र बन गए। इन सबकी झलक इस काल में कला और वास्तु के विकास में आसानी से परिलक्षित होती है ।