शहरीकरण एक गतिशील एवं जटिल प्रक्रिया है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर जनसंख्या का संक्रमण होता है, जिससे भूमि उपयोग, आर्थिक गतिविधियों और सामाजिक संरचनाओं में व्यापक परिवर्तन होता है।
संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा जनसंख्या वृद्धि, आबादी की आयु वृद्धि और प्रवास के साथ-साथ इस परिघटना को भी प्रमुख जनसांख्यिकीय रुझानों में से एक के रूप में चिह्नित किया गया है जहाँ यह केवल जनसंख्या में बदलाव तक सीमित मामले के रूप में नहीं देखा जाता है। इसमें शहर की सीमाओं का विस्तार, आर्थिक विविधीकरण, सांस्कृतिक परिवर्तन और शासन प्रणालियों का विकास भी शामिल है।
वर्ष 2011 की जनगणना में भारत की शहरीकरण दर 31.2% दर्ज की गई, जो 2001 में दर्ज 27.8% की दर से अधिक है। अनुमान है कि वर्ष 2030 तक लगभग 590 मिलियन लोग शहरी क्षेत्रों में वास कर रहे होंगे। तीव्र शहरीकरण के साथ, विकास के रुझानों और आबादी पर उनके प्रभाव का विश्लेषण करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
शहरीकरण विभिन्न रूपों में प्रकट होता है, जिसमें सरकारी एजेंसियों द्वारा सतत विकास को बढ़ावा देने के लिये डिज़ाइन की गई योजनाबद्ध बस्तियाँ और स्वतःस्फूर्त उभरने वाली अनियोजित बस्तियाँ शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रायः अनौपचारिक और कभी-कभी अनिश्चित जीवन दशाएँ उत्पन्न होती हैं। भारत में शहरीकरण तेज़ी से बढ़ रहा है जिसका शहर की अवसंरचना, आर्थिक उत्पादन और सामाजिक गतिशीलता पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ रहा है।
शहरी विकास के वादे के बावजूद, जिससे वर्ष 2030 तक सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार सृजन में व्यापक वृद्धि होने का अनुमान है, अपर्याप्त अवसंरचना, पारगमन संबंधी मुद्दे, सुरक्षा संबंधी समस्याएँ, पर्यावरण क्षरण और सामाजिक-आर्थिक असमानता जैसी चुनौतियाँ बनी हुई हैं। शहरीकरण की बहुआयामी प्रकृति को समझना और इन चुनौतियों का समाधान करना प्रत्यास्थी एवं संवहनीय शहरी वातावरण को बढ़ावा देने के लिये महत्त्वपूर्ण है।
शहरीकरण (Urbanization) क्या है ?
- परिचय: शहरीकरण ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर जनसंख्या स्थानांतरण की जटिल, बहुआयामी प्रक्रिया है, जिसके साथ भूमि उपयोग, आर्थिक गतिविधियों और सामाजिक संरचनाओं में भी परिवर्तन होता है।
- इसमें जनसांख्यिकीय परिवर्तन, शहरों का स्थानिक विस्तार, आर्थिक विविधीकरण, सांस्कृतिक बदलाव और विकसित होती शासन प्रणालियाँ शामिल हैं, जिसके परिणामस्वरूप शहरी जनसंख्या घनत्व में वृद्धि हुई है और निर्मित परिवेशों (built environments) का विकास हुआ है।
- संयुक्त राष्ट्र ने शहरीकरण को जनसंख्या वृद्धि (population growth), आबादी की आयु वृद्धि (aging) और अंतर्राष्ट्रीय प्रवास (international migration) के साथ चार प्रमुख जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियों में से एक माना है।
- शहरी बस्तियों के प्रकार:
- नियोजित बस्तियाँ (Planned Settlements): ये ऐसे शहरी क्षेत्र हैं जो सरकारी एजेंसियों या आवासीय सोसाइटियों द्वारा आधिकारिक योजनाओं के आधार पर विकसित किये जाते हैं।
- संवहनीय एवं वास योग्य परिवेश के निर्माण के उद्देश्य से, ऐसी योजनाओं में संगठित विकास सुनिश्चित करने के लिये भौतिक, सामाजिक और आर्थिक विचारों सहित विभिन्न कारकों को ध्यान में रखा जाता है।
- अनियोजित बस्तियाँ (Unplanned Settlements): ये बस्तियाँ बिना किसी आधिकारिक मंज़ूरी के, प्रायः सरकारी या निजी भूमि पर, अव्यवस्थित तरीके से विकसित होती हैं।
- इन क्षेत्रों में आमतौर पर स्थायी, अर्द्ध-स्थायी एवं अस्थायी संरचनाओं का मिश्रण होता है और ये आमतौर पर शहर के बड़े नालों, रेलवे पटरियों, बाढ़-प्रवण क्षेत्रों या कृषि भूमि एवं हरित पट्टियों (green belts) के पास अवस्थित होती हैं।
- नियोजित बस्तियाँ (Planned Settlements): ये ऐसे शहरी क्षेत्र हैं जो सरकारी एजेंसियों या आवासीय सोसाइटियों द्वारा आधिकारिक योजनाओं के आधार पर विकसित किये जाते हैं।
- शहरीकरण के रुझान:
- इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) के ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स (Global Liveability Index) 2023 में नई दिल्ली और मुंबई 141वें स्थान पर हैं, जबकि चेन्नई 144वें स्थान पर है।
- यह रैंकिंग दर्शाती है कि भारतीय शहरों का पाँच प्रमुख मापदंडों—स्थिरता, स्वास्थ्य सेवा, संस्कृति एवं पर्यावरण, शिक्षा और आधारभूत संरचना—में निम्न स्कोर रहा है।
- भारत में शहरीकरण में लगातार वृद्धि हुई है, जहाँ शहरी जनसंख्या वर्ष 2001 में 27.7% से बढ़कर 2011 में 31.1% हो गई।
- रोज़गार, शिक्षा और सुरक्षा जैसे कारकों के कारण अब ध्यान बड़े टियर-1 शहरों से हटकर मध्यम आकार के क़स्बों (towns) की ओर स्थानांतरित हो गया है।
- भारतीय उद्योग परिसंघ (Confederation of Indian Industry- CII) के अनुसार, वर्ष 2030 तक शहरी क्षेत्रों द्वारा सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 70%, कुल कर राजस्व में 85% और नए रोज़गार अवसरों में 70% का योगदान किये जाने का अनुमान है।
- इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट (EIU) के ग्लोबल लिवेबिलिटी इंडेक्स (Global Liveability Index) 2023 में नई दिल्ली और मुंबई 141वें स्थान पर हैं, जबकि चेन्नई 144वें स्थान पर है।
- शहरीकरण के कारण:
- व्यापार एवं उद्योग: व्यापार एवं उद्योग का विकास श्रम को आकर्षित करता है, अवसंरचना के विकास को बढ़ावा देता है और बाज़ारों एवं नवाचार केंद्रों तक अभिगम्यता का निर्माण करता है।
- आर्थिक अवसर: शहरों में ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में रोज़गार के अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं, क्योंकि यहाँ कारोबार, कारख़ाने और अन्य संस्थान संकेंद्रित होते हैं।
- शिक्षा: शहरी क्षेत्रों में आमतौर पर विद्यालय और विश्वविद्यालय सहित बेहतर शैक्षिक सुविधाएँ उपलब्ध होती हैं, जो बड़ी संख्या में उन लोगों को आकर्षित करती हैं जो अपनी शिक्षा और करियर की संभावनाओं को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं।
- बेहतर जीवनशैली: शहर अस्पताल एवं पुस्तकालय जैसी बेहतर सेवाओं की पेशकश करते हैं और वृहत सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवसरों के साथ जीवंत जीवनशैली प्रदान करते हैं।
- प्रवासन (Migration): प्रवासन भारत में शहरीकरण को वृहत रूप से बढ़ावा देता है, जिसके परिणामस्वरूप अनौपचारिक बस्तियों का विस्तार होता है।
- अधिक स्थापित शहरी क्षेत्रों में जीवन-यापन की उच्च लागत के कारण प्रवासी प्रायः अनियोजित क्षेत्रों की ओर चले जाते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनेक अनौपचारिक बस्तियों (जैसे झुग्गी-झोपड़ियों एवं अनधिकृत कॉलोनियों) का उभार होता है, जहाँ स्वच्छ जल एवं स्वच्छता जैसी आवश्यक सुविधाओं का अभाव होता है।
शहरी विकास से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
- शहरी बाढ़ (Urban Flooding): यह शहरीकरण के लिये एक बड़ी चुनौती है, जो अपर्याप्त जल निकासी प्रणालियों और प्राकृतिक जल निकायों पर अतिक्रमण के कारण उत्पन्न होती है।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली (2024 एवं 2023), नागपुर (सितंबर 2023), बेंगलुरु एवं अहमदाबाद (2022), चेन्नई (नवंबर 2021) और हैदराबाद (2020 एवं 2021) में शहरी बाढ़ की घटनाओं ने अवसंरचना की गंभीर कमियों को उजागर किया और बेहतर बाढ़ प्रबंधन एवं शहरी नियोजन की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला।
- शहरों का ‘गुरुग्रामीकरण’: गुरुग्रामीकरण (Gurugramisation) से तात्पर्य तीव्र शहरीकरण के माध्यम से शहरों के रूपांतरण से है, जिसमें व्यापक वाणिज्यिक एवं आवासीय विकास, आधुनिक अवसंरचना और आसपास के अविकसित क्षेत्रों में अनियोजित शहरी विस्तार (urban sprawl) शामिल हैं।
- गुरुग्राम के विस्तार में स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाली यह प्रवृत्ति प्रायः सामाजिक-आर्थिक विभाजन, पर्यावरणीय तनाव और संतुलित शहरी विकास एवं संवहनीयता को बनाए रखने में विभिन्न चुनौतियों को जन्म देती है।
- राजमार्ग-उन्मुख विकास (Highway-Oriented Development): शहरीकरण को प्रतिस्पर्द्धात्मक अलाभों से चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे कि शहर अधिक लाभ के लिये राजमार्ग विकास को प्राथमिकता देते हैं, जिसके परिणामस्वरूप पारगमन-उन्मुख विकास (Transit-oriented development- TOD) का आकर्षण कम हो जाता है और परिधीय क्षेत्रों में भीड़भाड़ बढ़ जाती है।
- परिगमन और नगर नियोजन एजेंसियों के बीच समन्वय संबंधी समस्याओं के कारण अकुशलताएँ पैदा होती हैं, जबकि गैर-लचीले नियोजन अभ्यास एवं सांस्कृतिक प्रतिरोध TOD में बाधा डालते हैं।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली मेट्रो रेल कॉर्पोरेशन जैसी पारगमन एजेंसी और दिल्ली विकास प्राधिकरण जैसे नगर नियोजन प्राधिकरण के बीच समन्वय की कमी है। इसके परिणामस्वरूप राजस्व-साझाकरण और अकुशल TOD कार्यान्वयन पर विवाद उत्पन्न होते रहे हैं।
- यातायात भीड़ और परिवहन संबंधी चुनौतियाँ: तीव्र शहरीकरण, परिवहन विकल्पों की कमी और निजी वाहनों की वृद्धि के कारण गंभीर यातायात भीड़ उत्पन्न हुई है, जिससे यात्रा का समय बढ़ गया है और उत्पादकता कम हो गई है।
- वायु प्रदूषण और पर्यावरण क्षरण: भारत के शहरी क्षेत्रों में वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियों और निर्माण कार्यों के कारण गंभीर वायु प्रदूषण हो रहा है।
- उदाहरण के लिये, विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2023 से पता चलता है कि विश्व के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 9 भारत में हैं और दिल्ली का लगातार चौथी बार विश्व के सबसे प्रदूषित राजधानी शहर के रूप में उभार हुआ है।
- अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव और हरित स्थानों की कमी: शहरी क्षेत्रों के तीव्र विस्तार और हरित स्थानों (green spaces) की कमी ने अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव (Urban Heat Island Effect) को तीव्र कर दिया है, जिसके परिणामस्वरूप तापमान में वृद्धि हुई है और ऊर्जा की खपत बढ़ी है।
- उदाहरण के लिये, दिल्ली में मई 2024 में भीषण हीटवेव (heatwave) की स्थिति उत्पन्न हुई, जिससे शहर की बिजली की मांग 8,000 मेगावाट से अधिक हो गई।
- जल की कमी और अपर्याप्त जल प्रबंधन: तीव्र शहरी विकास, बढ़ती आबादी और घटते भूजल स्तर के कारण कई शहरों को जल की गंभीर कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2024 में दिल्ली के जल संकट और 2019 में चेन्नई के जल संकट ने निवासियों को पानी के टैंकरों और विलवणीकरण संयंत्रों पर निर्भर रहने के लिये विवश किया। बेंगलुरु में भी हाल में ऐसे ही संकट का सामना करना पड़ा जो इस समस्या की गंभीरता को रेखांकित करता है।
- अपर्याप्त आवास और मलिन बस्तियों का प्रसार: आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय का अनुमान है कि वर्ष 2012 से 2027 तक भारत में लगभग 18.78 मिलियन आवास इकाइयों की कमी रही, जहाँ 65 मिलियन से अधिक लोग मलिन या अनौपचारिक बस्तियों में रहने को विवश थे।
- यह स्थिति अवसंरचना पर दबाव डालती है, गरीबी बढ़ाती है और नियोजित विकास में बाधा उत्पन्न करती है, जिससे समग्र वास-योग्यता या ‘लिवेबिलिटी’ एवं सामाजिक सामंजस्य प्रभावित होता है।
- अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन: भारतीय शहरों को ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिणामस्वरूप कचरा जमा होता जाता है और स्वास्थ्य संबंधी जोखिम उत्पन्न होते हैं।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के अनुसार भारतीय शहरों में प्रतिवर्ष लगभग 62 मिलियन टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (municipal solid waste) उत्पन्न होता है, जिसमें से केवल 20% का ही पर्याप्त रूप से प्रसंस्करण या उपचार किया जाता है।
TOD सतत् शहरी विकास को किस प्रकार बढ़ावा देता है?
- यातायात भीड़ में कमी: TOD उच्च घनत्व एवं मिश्रित-उपयोग क्षेत्रों (mixed-use neighborhoods) को कुशल सार्वजनिक परिवहन प्रणालियों के साथ एकीकृत कर यातायात भीड़ को कम करने में मदद करता है।
- TOD सार्वजनिक परिवहन और पैदल यात्रा योग्य डिज़ाइनों को प्राथमिकता देकर निजी वाहनों पर निर्भरता कम करता है, जिससे यातायात प्रवाह सुगम होता है और यात्रा समय में कमी आती है। यह बदलाव न केवल गतिशीलता को बढ़ाता है बल्कि वाहन उत्सर्जन से संबद्ध पर्यावरणीय प्रभाव को भी कम करता है।
- उप-नगरीय अनियोजित विस्तार का शमन: TOD सघन, सुनियोजित शहरी क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर उप-नगरीय अनियोजित विस्तार (Suburban Sprawl) के मुद्दों को संबोधित करता है।
- यह दृष्टिकोण भूमि के कुशल उपयोग को बढ़ावा देता है, पर्यावरण क्षरण को कम करता है और जीवंत एवं संवहनीय समुदायों का संपोषण करता है।
- TOD ऐसे शहरी क्षेत्रों का निर्माण कर जहाँ आवासीय, वाणिज्यिक और मनोरंजन स्थल आसपास होते हैं, निम्न-घनत्व एवं कार-निर्भर विकास (जहाँ लोग दूर-दूर रहते हैं और कहीं आने-जाने के लिये कार का उपयोग करना पड़ता है) के प्रसार का मुक़ाबला करता है।
- उन्नत शहरी जीवनशैली: TOD पारगमन स्टेशनों से निकट पैदल दूरी के भीतर विविध भूमि उपयोगों को एकीकृत कर शहरी जीवनशैली को उन्नत बनाता है।
- यह डिज़ाइन जीवन की उच्च गुणवत्ता का समर्थन करता है, जहाँ निवासियों को कार्यस्थलों, सुविधाओं और मनोरंजन क्षेत्रों तक सुगमता से पहुँचने की अनुमति मिलती है। पैदल यात्रा की सुविधा और मिश्रित-उपयोग विकास पर ध्यान केंद्रित करने से शहरी परिवेश अधिक आकर्षक एवं स्वस्थ बनता है।
- पर्यावरणीय एवं आर्थिक लाभ: TOD प्रदूषण और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम कर संवहनीयता में योगदान देता है। यह निम्न उत्सर्जन और निम्न अनियोजित विस्तार के माध्यम से पर्यावरणीय लक्ष्यों का समर्थन करता है।
- आर्थिक दृष्टिकोण से, TOD स्थानीय व्यवसायों को बढ़ावा देता है, परिवहन लागत को कम करता है और निवेश को आकर्षित करता है, जिससे समग्र आर्थिक प्रतिस्पर्द्धात्मकता बढ़ती है। शहरी नियोजन के लिये यह एकीकृत दृष्टिकोण दीर्घकालिक सतत् विकास लक्ष्यों का समर्थन करता है।
सफल TOD कार्यान्वयन के उदाहरण:
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शहरी विकास के लिये कौन-से कदम उठाए गए हैं?
- सरकारी पहलें:
- बजट 2024-25: बजट 2024-25 में 30 लाख से अधिक आबादी वाले 14 प्रमुख शहरों के लिये पारगमन उन्मुख विकास (TOD) योजनाओं के सृजन की घोषणा की गई है।
- बजट में अगले पाँच वर्षों में शहरी आवास के लिये 2.2 लाख करोड़ रुपए की केंद्रीय सहायता के साथ ही शहरी आवास कार्यों के लिये सस्ती दरों पर ऋण की सुविधा हेतु ब्याज सब्सिडी योजना की घोषणा की गई है।
- स्मार्ट सिटीज़ मिशन: इस कार्यक्रम का उद्देश्य अवसंरचना और सेवाओं में सुधार के लिये स्मार्ट समाधान लागू कर भारत भर में 100 शहरों का विकास करना है।
- यह जल आपूर्ति, स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन, शहरी गतिशीलता और ई-गवर्नेंस जैसे क्षेत्रों पर केंद्रित है।
- अटल कायाकल्प और शहरी परिवर्तन मिशन (Atal Mission for Rejuvenation and Urban Transformation- AMRUT): अमृत (AMRUT) के अंतर्गत 500 शहरों को लक्षित किया गया है, जहाँ जलापूर्ति, सीवरेज, शहरी परिवहन और हरित स्थानों के विकास जैसी बुनियादी अवसंरचना सेवाएँ सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- इसका उद्देश्य बेहतर सुविधाओं और अवसंरचना के माध्यम से इन शहरों में जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना है।
- प्रधान मंत्री आवास योजना- शहरी: इस योजना का उद्देश्य ‘सबके लिये आवास” उपलब्ध कराना है। यह शहरी गरीबों को गृह निर्माण या नवीनीकरण के लिये वित्तीय सहायता प्रदान करती है।
- इस कार्यक्रम में वहनीय आवास स्टॉक बढ़ाने के लिये ऋण-लिंक्ड सब्सिडी और निजी डेवलपर्स के साथ साझेदारी करना भी शामिल है।
- स्वच्छ भारत मिशन- शहरी: यह मिशन खुले में शौच को समाप्त करने, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार लाने और स्वच्छता के बारे में जागरूकता बढ़ाने पर केंद्रित है।
- इसमें व्यक्तिगत एवं सामुदायिक शौचालयों का निर्माण करना और आधुनिक अपशिष्ट प्रबंधन पद्धतियों का क्रियान्वयन शामिल है।
- डिजिटल इंडिया: यह पहल शहरी क्षेत्रों में डिजिटल अवसंरचना प्रदान करने और ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने पर केंद्रित है।
- इसमें सार्वजनिक वाई-फाई हॉटस्पॉट, सरकारी सेवाओं की डिजिटल डिलीवरी और ‘स्मार्ट’ शहरी पारितंत्र के निर्माण हेतु कैशलेस लेनदेन को प्रोत्साहित करने जैसी परियोजनाएँ शामिल हैं।
- पूंजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता योजना 2022-23 (6000 करोड़ रुपए): यह शहरी नियोजन सुधारों पर केंद्रित है जिसमें भवन उपनियमों का आधुनिकीकरण, हस्तांतरणीय विकास अधिकार (TDR) का अंगीकरण, स्थानीय क्षेत्र योजनाओं (LAP) एवं नगर नियोजन योजनाओं (TPS) का कार्यान्वयन, पारगमन उन्मुख विकास (TOD) का कार्यान्वयन, ‘स्पंज सीटीज़’ (Sponge Cities) का निर्माण, सार्वजनिक परिवहन के लिये बसों के संचालन पर कराधान को हटाना आदि शामिल हैं।
- पूंजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता योजना 2023-24 (15000 करोड़ रुपए): यह मानव संसाधन संवर्द्धन, नगर नियोजन योजनाओं, भवन उपनियमों के आधुनिकीकरण, स्व-स्थाने मलिन बस्ती पुनर्वास, TOD और शहरी पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने के माध्यम से शहरी नियोजन को उन्नत बनाने पर बल देती है।
- बजट 2024-25: बजट 2024-25 में 30 लाख से अधिक आबादी वाले 14 प्रमुख शहरों के लिये पारगमन उन्मुख विकास (TOD) योजनाओं के सृजन की घोषणा की गई है।
- संवैधानिक और विधिक ढाँचा:
- अनुच्छेद 243Q और 243W: स्थानीय सरकारों (नगर निकायों) को अपने क्षेत्रों में शहरी नियोजन और विकास के लिये शक्तियाँ प्रदान करते हैं।
- 74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992: इसके माध्यम से शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया और संविधान में भाग IX-A जोड़ा गया।
- 12वीं अनुसूची: नगर निकायों की शक्तियों, प्राधिकार और उत्तरदायित्वों को रेखांकित करती है।
संवहनीय एवं प्रत्यास्थी शहरी विकास के लिये और कौन-से उपाय किये जा सकते हैं?
- शहरी विकास के लिये ‘म्यूनिसिपल बॉण्ड’ का लाभ उठाना: म्यूनिसिपल बॉण्ड शहरों को महत्त्वपूर्ण अवसंरचना परियोजनाओं के लिये वित्तपोषण प्राप्त करने में सक्षम बनाने के रूप में शहरी विकास के लिये एक आशाजनक उपाय प्रस्तुत करते हैं।
- यह दृष्टिकोण न केवल तत्काल वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराता है, बल्कि दीर्घकालिक शहरी आधुनिकीकरण एवं प्रत्यास्थता को भी समर्थन प्रदान करता है।
- उनके प्रभाव को अधिकतम करने के लिये, शहरों को पारदर्शी प्रक्रियाओं एवं प्रभावी परियोजना प्रबंधन के माध्यम से निवेशकों का भरोसा बढ़ाना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि धन का कुशलतापूर्वक उपयोग हो और निवासियों को ठोस लाभ प्राप्त हो।
- समावेशी शहरी विकास का एकीकरण: विभिन्न विकास क्षेत्रों को एकीकृत करने और शहरी नियोजन में समावेशिता को प्राथमिकता देने के रूप में एक समग्र दृष्टिकोण अपनाया जाए।
- इसका अर्थ है विविध हितधारकों को शामिल करना और यह सुनिश्चित करना कि विकास से समाज के सभी वर्गों को लाभ मिले, समतामूलक विकास को बढ़ावा मिले और असमानताओं को दूर किया जा सके।
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: ये तकनीक-संचालित समाधान न केवल परिचालन प्रभावशीलता में सुधार करते हैं, बल्कि अधिक प्रत्यास्थी एवं पर्यावरणीय दृष्टिकोण से अनुकूल शहरी परिवेश के निर्माण में भी योगदान करते हैं।
- उदाहरण के लिये, इंदौर की नवोन्मेषी अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली कार्यकुशलता बढ़ाने के लिये स्मार्ट कूड़ेदानों और स्वचालित पृथक्करण का उपयोग करती है।
- इसी प्रकार, सौर ऊर्जा और पवन टर्बाइन जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों को एकीकृत करने से शहरों के कार्बन उत्सर्जन में कमी आ सकती है तथा संवहनीयता में वृद्धि हो सकती है।
- वैज्ञानिक डेटा विधियों का उपयोग: शहरी विकास योजनाओं के आकलन एवं निगरानी के लिये उन्नत डेटा विश्लेषण और साक्ष्य-आधारित विधियों को लागू किया जाए।
- यह दृष्टिकोण सुनिश्चित करता है कि निर्णय सटीक आँकडों पर आधारित हों, जिससे शहरी नियोजन के परिणाम अधिक प्रभावी एवं कुशल हों।
- नागरिक सहभागिता में वृद्धि करना: भौतिक और डिजिटल दोनों प्लेटफॉर्मों के माध्यम से नागरिक सहभागिता को बढ़ावा दिया जाए, जहाँ यह सुनिश्चित किया जाए कि शासन में उनकी आवाज़ भी सुनी जाए।
- यह भागीदारी शहरी नीतियों को सामुदायिक आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं के साथ संरेखित करने में मदद करेगी, जिससे शहरी सेवाओं की गुणवत्ता एवं जवाबदेही में वृद्धि होगी।
- रणनीतिक निवेश और समन्वय: सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों को शामिल करते हुए रणनीतिक निवेश एवं समन्वित कार्यों को बढ़ावा दिया जाए।
- प्रभावशील शहरी विकास के लिये चुनौतियों का समाधान करने और संसाधनों का कुशलतापूर्वक उपयोग करने के लिये सभी एजेंसियों के बीच एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
- पर्यावरण केंद्रित पहल: ‘स्पंज सिटीज़’, वितरित अपशिष्ट-से-ऊर्जा प्रणाली (waste-to-energy systems) और स्मार्ट जल प्रबंधन जैसे संवहनीय शहरी अभ्यासों को क्रियान्वित किया जाए।
- इन पहलों का उद्देश्य शहरी परिदृश्य में पर्यावरणीय प्रत्यास्थता एवं संवहनीयता में सुधार करना है।
- स्मार्ट प्रौद्योगिकियों को अपनाना: स्मार्ट सिटी अवसंरचना को लागू किया जाए, जिसमें प्रिडिक्टिव मॉडलिंग के लिये ‘डिजिटल ट्विन्स’ (digital twins) एवं IoT-सक्षम सेवाओं को शामिल करें, ताकि शहरी दक्षता और जीवन की गुणवत्ता को उन्नत बनाया जा सके।
- उभरते खतरों से महत्त्वपूर्ण डिजिटल अवसंरचना की सुरक्षा के लिये सुदृढ़ साइबर सुरक्षा उपायों में निवेश किया जाए।
- बेहतर अभिगम्यता और जागरूकता: प्रभावी संचार और सहभागी शासन के माध्यम से शहरी सेवाओं तक अभिगम्यता में वृद्धि और जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया जाए।
- इससे यह सुनिश्चित होगा कि शहरीकरण के प्रयास समावेशी हैं और शहरी आबादी की विविध आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं।
निष्कर्ष:
शहरीकरण वैश्विक और राष्ट्रीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण मोड़ का प्रतिनिधित्व करता है, जो अवसर और चुनौतियाँ दोनों प्रस्तुत करता है। शहरों के विकास के साथ व्यापक नियोजन और सुधार को अपनाना आवश्यक है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि शहरीकरण आर्थिक समृद्धि और जीवन की गुणवत्ता में सकारात्मक योगदान दे।
भारत में स्मार्ट सिटीज़ मिशन और ‘अमृत’ जैसी पहलों का उद्देश्य अवसंरचना की कमी को दूर करना तथा शहरी वास-योग्यता/लिवेबिलिटी को बेहतर बनाना है। हालाँकि, व्याप्त बाधाओं को दूर करने के लिये पारगमन उन्मुख विकास का प्रभावी कार्यान्वयन, एजेंसियों के बीच बेहतर समन्वय और योजना-निर्माण अभ्यासों का आधुनिकीकरण आवश्यक है। शहर सतत विकास पर ध्यान केंद्रित कर, अवसंरचना को बढ़ाकर और शासन में सुधार कर शहरीकरण के लाभों का दोहन कर सकते हैं तथा इसकी चुनौतियों को कम करके एक अधिक समावेशी एवं प्रत्यास्थी शहरी भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं।