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संवाद: परस्पर संबद्ध विश्व में गरीबी और असमानता

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संदर्भ क्या है? 

हाल ही में भारतीय अर्थशास्त्रियों ने परस्पर संबद्ध विश्व में गरीबी और असमानता के साथ भारत में धन असमानता पर ऑक्सफैम की सटीकता के संबंध में चर्चा की।

 

प्रमुख बिंदु क्या हैं?

  • ऑक्सफैम की रिपोर्ट अंतराल को समाप्त करने में शिक्षा के महत्त्व और असमानता को कम करने के लिये विघटनकारी तकनीक की क्षमता पर प्रकाश डालती है।
  • यह एक कल्याणकारी राज्य की आवश्यकता पर बल देती है, जो व्यक्तिगत उत्पादकता को बढ़ाती है और गरीबी रेखा को ऊपर उठाती है।
  • इसमें भारत में महिलाओं की शिक्षा और श्रम शक्ति भागीदारी में महत्त्वपूर्ण प्रगति का उल्लेख है।
  • विघटनकारी तकनीक अंतर को कम करने और वैश्विक स्तर पर समानता बढ़ाने में मदद कर सकती है।

असमानता और गरीबी को कैसे वर्गीकृत किया जाता है?

  • गरीबी का वर्गीकरण
    • संपूर्ण गरीबी: यह अविकसित देशों में आम बात है और इसे अत्यधिक गरीबी के रूप में जाना जाता है तथा जो लोग इस गरीबी से संबंधित हैं वे बुनियादी आवश्यकताओं के लिये संघर्ष करते हैं।
    • सापेक्ष गरीबी: इसे आय असमानता के लिये विकसित प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि रहने वाले परिवेश और आर्थिक मानकों के बीच समन्वय के कारण उत्पन्न  होती है।
    • परिस्थितिजन्य गरीबी: यह अस्थायी गरीबी है। यह पर्यावरणीय आपदाओं एवं गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और नौकरी छूटने के कारण होती है।
    • पीढ़ीगत गरीबी: यह सबसे जटिल गरीबी की स्थिति है जिसका असर परिवारों एवं व्यक्तियों पर पड़ता है और यह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक चलती रहती है।
    • ग्रामीण गरीबी: यह ग्रामीण क्षेत्रों में होती है क्योंकि वहाँ नौकरी के अवसर कम होते हैं, काम कम होता है और शिक्षा प्रणाली में गुणवत्ता कम होती है।
    • शहरी गरीबी: यह वह चुनौती है जिसका शहरी लोगों को सामना करना पड़ रहा है और यह सीमित शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा तथा पर्याप्त सेवा प्रणाली के कारण उत्पन्न होती है।
  • असमानता का वर्गीकरण:
    • आय असमानता: यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें लोगों के समूह के बीच आय का असमान वितरण होता है। यानी सभी लोगों के बीच आय का समान वितरण नहीं होता है और इसके परिणामस्वरूप आय असमानता की स्थिति उत्पन्न होती है जो गरीबी को बढ़ावा देती है।
    • वेतन असमानता: यह रोज़गार में विभिन्न भुगतानों की प्रक्रिया से संबंधित है जो एक संगठन में असमान रूप से वितरित की जाती है। मासिक, प्रति घंटा और वार्षिक आधार पर अलग-अलग भुगतान प्रक्रियाएँ हैं।

भारत में गरीबी का अनुमान क्या है?

  • घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) 2022-23 के अनुसार ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी वर्ष 2011-12 में 25.7% से घटकर वर्ष 2022-23 में 7.2% हो गई, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 13.7% से घटकर 4.6% हो गई।
  • नीति आयोग ने ‘वर्ष 2005-06 से भारत में बहुआयामी गरीबी’ शीर्षक से एक चर्चा पत्र जारी किया है।
    • वर्ष 2005-06 से भारत में बहुआयामी गरीबी’ शीर्षक से एक चर्चा पत्र भारत में बहुआयामी गरीबी वर्ष 2013-14 में 29.17% से घटकर वर्ष 2022-23 में 11.28% हो गई है।
    • विगत नौ वर्षों (वर्ष 2013-14 से वर्ष 2022-23) में लगभग 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी निर्धनता की स्थिति से बाहर आए हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान में MPI के आधार पर निर्धन के रूप में वर्गीकृत लोगों की संख्या में सबसे अधिक गिरावट दर्ज की गई है।
  • बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023:
    • MPI का अनुमान वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच भारत के राष्ट्रीय MPI मूल्य के लगभग आधा होने तथा बहुआयामी निर्धनता में जनसंख्या के अनुपात में 24.85% से 14.96% की गिरावट को उजागर करता है।
    • बहुआयामी निर्धनता में 9.89% की कमी यह दर्शाती है कि वर्ष 2021 में अनुमानित जनसंख्या के स्तर पर वर्ष 2015-16 और 2019-21 के बीच लगभग 135.5 मिलियन व्यक्ति निर्धनता का शिकार होने से बच गए हैं।
    • निर्धनता की तीव्रता, जो बहुआयामी निर्धनता में रहने वाले लोगों के बीच औसत अभाव को मापती है, भी 47.14% से घटकर 44.39% हो गई है।

भारत में गरीबी रेखा का आकलन क्या रहा है?

  • तेंदुलकर समिति (2009): सुरेश तेंदुलकर पद्धति में गरीबी रेखा को शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन ₹33 और ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन ₹27 प्रति व्यक्ति खर्च माना गया है।
    • इस प्रकार, तेंदुलकर समिति के अनुसार वर्ष 2011-12 में कुल जनसंख्या में भारत में गरीबों का प्रतिशत 21.9% था।
  • रंगराजन समिति (2014): रंगराजन पद्धति में शहरी क्षेत्रों में यह 47 रुपए प्रतिदिन और ग्रामीण क्षेत्रों में 30 रुपए प्रतिदिन थी।
    • इस प्रकार रंगराजन समिति के अनुसार, 2011-12 में भारतीय जनसंख्या के प्रतिशत के रूप में भारत की गरीब जनसंख्या 29.5 थी।
  • नीति आयोग द्वारा वर्तमान गरीबी रेखा की गणना: राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के परिणामों के आधार पर बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2023 के रूप में कई आयामों और गैर-आय कारकों को शामिल करने के लिये नीति आयोग द्वारा एक नया दृष्टिकोण विकसित किया गया है।
    • MPI की वैश्विक कार्यप्रणाली मज़बूत अलकाईर और फोस्टर (Alkire and Foster- AF) पद्धति पर आधारित है जो विकट गरीबी का आकलन करने के लिये डिज़ाइन किये गए सार्वभौमिक रूप से स्वीकृत मैट्रिक्स के आधार पर लोगों की गरीब के रूप में पहचान करती है, जो पारंपरिक मौद्रिक गरीबी उपायों के लिये एक पूरक परिप्रेक्ष्य प्रदान करती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा: विश्व बैंक, उस व्यक्ति को बेहद गरीब के रूप में परिभाषित करता है यदि वह प्रतिदिन 2.15 डॉलर से कम पर जीवन यापन कर रहा है, जिसे मुद्रास्फीति के साथ-साथ देशों के बीच मूल्य अंतर के लिये समायोजित किया जाता है।

भारत में असमानता की प्रवृत्तियाँ क्या हैं?

  • धन संबंधी समानताएँ: भारत, विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा है। भारतीय आबादी के सबसे अमीर 1% के पास देश की 53% संपत्ति है, जबकि आधे गरीब लोग राष्ट्रीय संपत्ति के मात्र 4.1% के लिये संघर्ष करते हैं।
  • आय असमानता: विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत विश्व के सबसे असमान देशों में से एक है, जहाँ शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 57% एवं 22% हिस्सा है। निचले 50% की हिस्सेदारी घटकर 13% रह गई है।
  • गरीबों पर कर का भार: देश में कुल वस्तु एवं सेवा कर (Goods and Services Tax- GST) का लगभग 64% निम्न वर्ग की  50% आबादी से प्राप्त होता है, जबकि केवल 4% शीर्ष 10% से आता है।
  • विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति, 2023:  भारत की लगभग 74% आबादी स्वस्थ आहार नहीं ले पाती तथा 39% को पर्याप्त पोषक तत्त्व नहीं मिल पाते।
  • ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 के अनुसार: भारत का 2023 GHI स्कोर 28.7 है, जिसे GHI गंभीरता ऑफ हंगर स्केल के अनुसार गंभीर माना जाता है।
    • ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2023 के अनुसार भारत में चाइल्ड वेस्टिंग दर 18.7% है जो कि विश्व में सर्वाधिक दर है।
  • लैंगिक असमानता: ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2023 में भारत 146 देशों में से 127वें स्थान पर रहा और कार्यबल में ‘महिलाओं की अनुपस्थिति’ लगातार बनी हुई है जो एक जटिल समस्या है।

उच्च आर्थिक विकास के बावजूद बढ़ती असमानता के क्या कारण हैं?

  • धन का संकेंद्रण: कुछ लोगों के हाथों में धन का संकेंद्रण पीढ़ियों तक असमानता को कायम रख सकता है, क्योंकि अमीर अपने लाभ की स्थिति को अपने वंशजों में स्थानांतरित कर सकते हैं।
  • अपर्याप्त भूमि सुधार: अनुपयुक्त भूमि सुधारों के परिणामस्वरूप आबादी का एक बड़ा हिस्सा भूमिहीन बना रह सकता है या उसके पास अपर्याप्त भूमि होगी, जिससे वे गरीबी और आर्थिक अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बन सकते हैं।
  • ‘क्रोनी कैपिटलिज़्म’: भ्रष्ट आचरण और पक्षपात के परिणामस्वरूप किसी चुनिंदा समूह के बीच धन संचय की स्थिति बन सकती है, जो असमानता में योगदान दे सकती है।
  • आर्थिक लाभ का विषम वितरण: आर्थिक विकास से कुछ क्षेत्रों या आय समूहों को असमान रूप से लाभ प्राप्त हो सकता है, जिससे धन के असमान वितरण की स्थिति बन सकती है।
  • वेतन/मज़दूरी अंतराल: कुशल और अकुशल श्रमिकों के बीच मज़दूरी अंतराल आय असमानता में योगदान कर सकता है। निम्न वेतन और कम लाभ वाले अनौपचारिक श्रम बाज़ार आय विभाजन को बढ़ा सकते हैं।

गरीबी और असमानता को दूर करने में क्या चुनौतियाँ हैं?

  • शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा तक सीमित पहुँच: कई विकासशील देश अपनी आबादी को पर्याप्त शिक्षा तथा स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिये संघर्ष करते हैं, जिससे मानव पूंजी विकास में कमी आती है एवं स्वास्थ्य संकटों के प्रति संवेदनशीलता बढ़ जाती है।
  • आर्थिक भेद्यता: विकासशील देशों में अक्सर ऐसी अर्थव्यवस्थाएँ होती हैं जो कुछ उद्योगों या वस्तुओं पर बहुत अधिक निर्भर होती हैं, जिससे वे बाहरी झटकों और बाज़ार के उतार-चढ़ाव के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं, जो गरीबी एवं असमानता को बढ़ा सकते हैं।
  • भ्रष्टाचार और शासन के मुद्दे: कमज़ोर शासन संरचनाएँ और उच्च स्तर का भ्रष्टाचार गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के प्रभावी कार्यान्वयन में बाधा डाल सकता है तथा अमीर एवं शक्तिशाली लोगों का पक्ष लेकर असमानता को कायम रख सकता है।
  • सामाजिक बहिष्कार और भेदभाव: जातीय अल्पसंख्यकों, महिलाओं एवं विकलांग लोगों सहित हाशिये पर रहने वाले समूहों को अक्सर भेदभाव तथा आर्थिक अवसरों से बहिष्कार का सामना करना पड़ता है, जिससे गरीबी और असमानता का चक्र बना रहता है।
  • ऋण बोझ: कई विकासशील देश उच्च स्तर के विदेशी ऋण से जूझ रहे हैं, जो गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों और आवश्यक बुनियादी ढाँचे में निवेश करने की उनकी क्षमता को सीमित कर सकता है।

आगे की राह

  • शिक्षा, स्वास्थ्य एवं कौशल विकास: गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, किफायती स्वास्थ्य और कौशल विकास कार्यक्रम प्रदान करने से व्यक्तियों को गरीबी के चक्र को विभाजित करने तथा असमानता को कम करते हुए आर्थिक विकास में योगदान करने के लिये सशक्त बनाया जा सकता है।
  • सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम और लैंगिक समानता: बेरोज़गारी भत्ता, खाद्य सहायता और आवास सहायता जैसे सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने से गरीबी के खिलाफ सुरक्षा मिल सकती है तथा असमानता कम हो सकती है।
  • प्रणालीगत भेदभाव को संबोधित करना: असमानता को कम करने और सभी के लिये समान अवसर सुनिश्चित करने हेतु नस्ल, जातीयता, धर्म एवं अन्य कारकों पर आधारित प्रणालीगत भेदभाव से निपटना महत्त्वपूर्ण है।
  • प्रगतिशील कराधान: भारत में प्रगतिशील कराधान को लागू करने से आय असमानता को कम करने में मदद मिल सकती है इससे जो लोग अधिक आय अर्जित करते हैं, उन्हें अपनी आय का हिस्सा करों के रूप में चुकाना पड़ता हैं।
    • भारतीय अरबपतियों पर मात्र 1% संपत्ति कर भारत की सबसे बड़ी स्वास्थ्य सेवा योजना ‘राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन’ को वित्तपोषित करने के लिये पर्याप्त होगा।
    • भारतीय अरबपतियों पर 2% कर लगाने से तीन वर्ष तक भारत के कुपोषित लोगों को पोषण समर्थन प्रदान किया जा सकता है।
  • निजी क्षेत्र की भागीदारी: समावेशी विकास पर ध्यान केंद्रित करने वाली कॉर्पोरेट सामाजिकउत्तरदायित्व (CSR) पहलों को प्रोत्साहित करें। निजी कंपनियों को सामाजिक क्षेत्रों में निवेश करने और सामुदायिक विकास परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये प्रोत्साहित करें।

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