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शहरी बाढ़: एक संभावित खतरा

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भारत में शहरी बाढ़ एक गंभीर मुद्दा बन गया है। हाल ही में कई राज्यों में अधिक वर्षा (इस मानसून के मौसम में सामान्य औसत से 20% से अधिक) और बाढ़ का सामना करना पड़ा। चरम मौसमी घटनाओं में यह वृद्धि मुख्य रूप से जलवायु संकट के कारण है। पिछले दशक में 64% से अधिक भारतीय उप-ज़िलों में पिछले 30 वर्षों की तुलना में अधिक वर्षा की स्थिति देखी गई। हालाँकि मानवीय गतिविधियों, निम्न स्तरीय भूमि-उपयोग नीतियों और अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन से जल निकासी की समस्या और भी बढ़ जाती है, जिससे शहरी क्षेत्रों में जल अपवाह में रूकावट के साथ जलभराव की समस्या हो जाती है।

इस चुनौती से निपटने के लिये भारतीय शहरों को प्रतिक्रियात्मक उपायों से हटकर सक्रिय बाढ़ जोखिम प्रबंधन की ओर बढ़ना होगा। इसमें नियमित रूप से वर्षा पैटर्न का पुनर्मूल्यांकन करना और तदनुसार जल अवसंरचना को रूपांतरित करना, व्यापक जोखिम आकलन के माध्यम से बाढ़ “हॉटस्पॉट” की पहचान करना और कई तरह के अल्पकालिक, मध्यम और दीर्घकालिक हस्तक्षेपों को लागू करना शामिल है। जल नियोजन के लिये वर्ष भर चलने वाले जोखिम-सूचित दृष्टिकोण को अपनाकर भारतीय शहरों में बाढ़ के बढ़ते खतरे से जीवन, आजीविका और शहरी अवसंरचना की बेहतर सुरक्षा की जा सकती है।

शहरी बाढ़ क्या है? 

  • शहरी बाढ़ से तात्पर्य अधिक वर्षा, नदियों के उफान, खराब जल निकासी प्रणालियों या अन्य जल-संबंधी घटनाओं के कारण सघन आबादी वाले क्षेत्रों में भूमि या संपत्ति के जलमग्न होने से है।
  • ग्रामीण या प्राकृतिक परिवेश में होने वाली पारंपरिक बाढ़ के विपरीत, शहरी बाढ़ शहरों में अभेद्य सतहों (जैसे सड़कें, फुटपाथ और इमारतें) के कारण और भी विकराल हो जाती है, जिससे जल का जमीन के अंदर प्रवाह नहीं हो पाता है।
    • इससे जलभराव होता है, परिवहन बाधित होता है, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचता है तथा शहरी आबादी के लिये स्वास्थ्य संबंधी खतरा पैदा होता है।

 

भारतीय शहरों में बाढ़ का खतरा क्यों बढ़ रहा है? 

  • अभेद्य खतरा: तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण भारतीय शहरों में व्यापक स्तर पर कंक्रीट की सतहों का निर्माण हो रहा है, जिससे प्राकृतिक पारगम्य सतहों के स्थान पर अभेद्य सतहों में वृद्धि हो रही है।
    • जल अवशोषण क्षमता में यह कमी अधिक वर्षा के दौरान जल निकासी प्रणालियों पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है।
    • उदाहरण के लिये मुंबई में पिछले 27 वर्षों में निर्मित सतही क्षेत्र में 99.9% की वृद्धि देखी गई। इसके कारण सतही अपवाह में वृद्धि हुई, कुछ क्षेत्रों में प्राकृतिक परिदृश्यों की तुलना में 30 गुना अधिक अपवाह देखा गया, जिससे बाढ़ के जोखिम में भी वृद्धि हुई।
  • नालियों की समस्या: कई भारतीय शहर दशकों पहले डिज़ाइन की गई जल निकासी प्रणालियों पर निर्भर हैं, जो वर्तमान जनसंख्या घनत्व एवं वर्षा की तीव्रता को प्रबंधित करने के लिये अपर्याप्त हैं।
    • दिल्ली के लिये अंतिम जल निकासी मास्टर प्लान वर्ष 1976 में बनाया गया था
    • ये पुरानी प्रणालियाँ अक्सर मलबे एवं कचरे से अवरुद्ध हो जाती हैं, जिससे उनकी क्षमता और कम हो जाती है।
      • दिल्ली में 42 वर्षों से लगभग एक सा ढाँचा बना हुआ है जबकि जनसंख्या चार गुना बढ़ गई है।
  • चरम मौसमी घटनाओं में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण वर्षा का पैटर्न बदल रहा है तथा चरम मौसमी घटनाएँ अधिक सामान्य और गंभीर हो रही हैं। 
    • भारतीय शहरों में अभूतपूर्व वर्षा होने से मौजूदा बुनियादी ढाँचा प्रभावित हो रहा है।
    • उदाहरण के लिये चेन्नई में नवंबर 2015 में 1,218.6 मिमी वर्षा हुई, जो एक सदी में सबसे अधिक थी, जिसके कारण भयावह बाढ़ आई।
      • मध्य भारत में व्यापक स्तर पर अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ वर्ष 1950 के बाद से तीन गुना बढ़ गई हैं। 
    • यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है तथा अनुमान है कि सदी के अंत तक मानसूनी वर्षा की तीव्रता में 20-40% की वृद्धि होगी।
  • प्राकृतिक जल प्रणालियों की हानि: शहरीकरण के कारण प्राकृतिक जल निकायों का अतिक्रमण और विनाश हुआ है जो कभी बाढ़ अवरोधक के रूप में कार्य करते थे। 
    • निर्माण कार्यों के लिये झीलों, तालाबों और आर्द्रभूमियों को पाटा जा रहा है, जिससे प्रमुख जल भंडारण और अंतःसंचय क्षेत्र नष्ट हो रहे हैं।
    • बंगलूरु (जो कभी अपनी असंख्य झीलों के लिये जाना जाता था) के 79% जल निकाय समाप्त हो गए हैं, जिससे इसकी बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता कम हो गई है।
  • पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से संवेदनशील क्षेत्रों में अनियोजित विकास: पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से संवेदनशील क्षेत्रों में अनियंत्रित निर्माण से भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है और प्राकृतिक जल प्रवाह पैटर्न में बदलाव आया है। 
    • देहरादून और शिमला जैसे शहरों का आसपास के पहाड़ी क्षेत्रों में तेज़ी से विस्तार होने से प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियाँ बाधित हुई हैं।
    • अनियोजित विकास के कारण वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ के कारण व्यापक विनाश हुआ।
      • गंगा और उसकी सहायक नदियों के निकट पारिस्थितिकी दृष्टिकोण से संवेदनशील क्षेत्रों में अवैध रूप से निर्मित 300 से अधिक बहुमंज़िला इमारतें, होटल और व्यवसायिक प्रतिष्ठान अचानक आई बाढ़ में बह गए या बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए।
  • ठोस अपशिष्ट का रिसाव- शहरी नालों का अवरुद्ध होना: भारतीय शहरों में अपर्याप्त ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के कारण नालियाँ जाम हो जाती हैं और इनकी जल प्रवाह क्षमता कम हो जाती है। तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण अपशिष्ट उत्पादन में भारी वृद्धि हुई है, जिससे मौजूदा निपटान प्रणाली चरमरा गई है।
    • भारत में प्रतिदिन 1.5 लाख टन से अधिक नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) उत्पन्न होता है लेकिन केवल 83% अपशिष्ट ही एकत्रित किया जाता है और 30% से भी कम का उपचार किया जाता है, जो समस्या की गंभीरता को दर्शाता है।
  • तटीय समस्या: भारत के कई प्रमुख शहर जैसे मुंबई, चेन्नई और कोलकाता, समुद्र तट के निकट स्थित हैं जिससे ये समुद्र स्तर में वृद्धि और भूमि अवतलन दोनों के प्रति संवेदनशील हैं।
    • जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र के जल स्तर में वृद्धि से इन क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा बढ़ रहा है।
    • फरवरी 2021 में मैकिज़े इंडिया ने एक रिपोर्ट में कहा था कि वर्ष 2050 तक मुंबई में समुद्र के स्तर में आधा मीटर की वृद्धि के साथ-साथ अचानक आने वाली बाढ़ की तीव्रता में 25% की वृद्धि देखी जाएगी।

शहरी बाढ़ के प्रमुख प्रभाव क्या हैं? 

  • शहरी केंद्रों में आर्थिक नुकसान: शहरी बाढ़ से गंभीर आर्थिक क्षति होती है, कारोबार बाधित होता है, बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचता है जिससे दीर्घकालिक वित्तीय नुकसान होता है।
    • वर्ष 2005 की मुंबई बाढ़ से अनुमानित 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आर्थिक नुकसान हुआ, जबकि वर्ष 2015 की चेन्नई बाढ़ से 3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ
    • तात्कालिक नुकसान के अलावा शहरी बाढ़ से विदेशी निवेश और पर्यटन में भी कमी आ सकती है। 
    • विश्व बैंक का अनुमान है कि यदि कोई निवारक कार्रवाई नहीं की गई तो वर्ष 2050 तक शहरी क्षेत्रों में बाढ़ से होने वाली क्षति से विश्व भर में प्रतिवर्ष 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है।
  • सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट: शहरी क्षेत्रों में बाढ़ का जल अक्सर सीवेज और औद्योगिक कचरे के साथ मिल जाता है, जिससे जलजनित बीमारियों के लिये अनुकूल वातावरण बन जाता है। 
    • वर्ष 2019 में पटना में आने वाली बाढ़ के बाद पटना के लगभग सभी गाँवों में मलेरिया और डायरिया का व्यापक स्तर पर प्रकोप हुआ था
    • वर्ष 2005 की मुंबई बाढ़ के कारण लेप्टोस्पायरोसिस का प्रकोप फैल गया। 
    • इसके दीर्घकालिक स्वास्थ्य प्रभाव गंभीर हो सकते हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि शहरी बाढ़ के जल के संपर्क में आने वाले बच्चों में जठरांत्र संबंधी बीमारियों का खतरा 50% बढ़ जाता है।
  • शहरी गतिशीलता में कमी: शहरी बाढ़ के कारण शहरों में ठहराव आ जाता है, परिवहन नेटवर्क क्षतिग्रस्त हो जाता है तथा उत्पादकता में कमी के कारण आर्थिक नुकसान होता है। 
    • वर्ष 2022 की बंगलूरु बाढ़ के दौरान आईटी कंपनियों में कर्मचारियों के कार्य पर न पहुँच पाने के कारण प्रतिदिन 225 करोड़ रुपये के नुकसान की संभावना जताई गई।
  • शहरी गरीबों पर असंगत प्रभाव: शहरी बाढ़ से झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों और निम्न आय वाले समुदायों पर असंगत प्रभाव पड़ता है, जिससे मौजूदा सामाजिक-आर्थिक असमानताएँ और बढ़ जाती हैं। 
    • मुंबई में लगभग 41-42% आबादी झुग्गी-झोपड़ियों में रहती है, जिनमें से अधिकांश निचले इलाकों या बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में रहते हैं।
    • वर्ष 2005 की बाढ़ के दौरान ये क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित हुए थे।
    • इन समुदायों पर दीर्घकालिक प्रभावों में ऋण में वृद्धि, शिक्षा तक पहुँच में कमी तथा गरीबी चक्र का जारी रहना शामिल है।
  • क्रमिक बाढ़ का मनोवैज्ञानिक प्रभाव: शहरी बाढ़ का मनोवैज्ञानिक प्रभाव बहुत गहरा होता है और अक्सर इसका आकलन कम किया जाता है। 
    • एक अध्ययन में पाया गया कि बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के शहरी निवासियों में मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में 67% की वृद्धि हुई है।
    • बाढ़ प्रभावित शहरी आबादी में पोस्ट-ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) की दर 30-40% तक हो सकती है, जो घटना के बाद कई वर्षों तक बनी रहती है।
    • इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव का व्यापक सामाजिक प्रभाव पड़ता है जो शहरी क्षेत्रों में उत्पादकता, सामाजिक सामंजस्य और जीवन की समग्र गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
  • सांस्कृतिक विरासत को खतरा: शहरी बाढ़ सांस्कृतिक विरासत स्थलों (जिनमें से कई शहर की पहचान और पर्यटन अर्थव्यवस्था के अभिन्न अंग हैं) के लिये एक बड़ा खतरा बन गई है।
    • यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल और लोकप्रिय शहरी पर्यटन स्थल हम्पी में वर्ष 2019 की बाढ़ से व्यापक क्षति हुई।
    • भौतिक क्षति के अलावा सांस्कृतिक स्थलों की क्षति या क्षरण का शहरी पहचान और पर्यटन पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ सकता है।

शहरी बाढ़ से संबंधित सरकारी पहल क्या हैं?

भारतीय शहरों की बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिये क्या उपाय अपनाए जा सकते हैं?

  • स्पंज सिटी क्रांति:”स्पंज सिटी” अवधारणा को लागू करने से प्राकृतिक जल चक्रों को अपनाकर शहरी बाढ़ प्रतिरोधक क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
    • इस दृष्टिकोण में वर्षा जल को अवशोषित करने और फिल्टर करने के लिये पारगम्य सतहों, वर्षा उद्यानों और बायोस्वाल्स का निर्माण करना शामिल है।
    • चीन के स्पंज सिटी कार्यक्रम ने आशाजनक परिणाम दिखाए हैं, जिसमें पायलट शहरों में औसत वार्षिक वर्षा जल का 70-90% हिस्सा संरक्षित किया जा रहा है
    • 30% शहरी क्षेत्रों में स्पॉन्ज सिटी सिद्धांतों को लागू करने से अधिकतम अपवाह में 50% तक की कमी आ सकती है, जिससे बाढ़ के जोखिम में उल्लेखनीय कमी आएगी।
    • इस दृष्टिकोण से न केवल बाढ़ का प्रबंधन होगा बल्कि भूजल भी रिचार्ज होगा जिससे शहरी जैवविविधता में सुधार होगा।
  • स्मार्ट स्टॉर्मवॉटर प्रणालियाँ: स्टॉर्मवॉटर प्रबंधन में इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) प्रौद्योगिकी को एकीकृत करने से बाढ़ की भविष्यवाणी और प्रतिक्रिया में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है।
    • जल निकासी प्रणालियों में स्मार्ट सेंसर जल स्तर और प्रवाह दर पर रियल टाइम डेटा प्रदान कर सकते हैं, जिससे सक्रिय बाढ़ प्रबंधन संभव हो सकेगा।
    • सिंगापुर का स्मार्ट वाटर असेसमेंट नेटवर्क (SWAN) जल की गुणवत्ता और बाढ़ की निगरानी के लिये सेंसर का उपयोग करता है, जिससे बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में कमी आती है।
    • प्रमुख भारतीय शहरों में इसी प्रकार की प्रणालियों को लागू करने से बाढ़ की भविष्यवाणी की सटीकता में सुधार हो सकता है और बाढ़ से होने वाली क्षति की लागत में कमी आ सकती है।
  • शहरी आर्द्रभूमि का पुनरुद्धार: शहरी आर्द्रभूमि को बहाल करने और संरक्षित करने से अधिक वर्षा के दौरान अतिरिक्त जल को अवशोषित करने की शहर की क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हो सकती है।
    • आर्द्रभूमियाँ प्राकृतिक स्पंज की तरह कार्य करती हैं, जो प्रति एकड़ 1 मिलियन गैलन तक जल सोख लेती हैं।
    • कोलकाता के ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स प्रतिदिन 750 मिलियन लीटर अपशिष्ट जल का प्राकृतिक रूप से उपचार करते हैं और बाढ़ से सुरक्षा प्रदान करते हैं।
    • भारत के शीर्ष 10 बाढ़-प्रवण शहरों में व्यापक आर्द्रभूमि पुनरुद्धार कार्यक्रमों के क्रियान्वयन से लाखों शहरी निवासियों को बाढ़ से सुरक्षा मिल सकती है तथा बाढ़ से होने वाली क्षति में प्रतिवर्ष करोड़ों रुपये की बचत हो सकती है।
  • बाढ़ अवरोधक के रूप में हरित गगनचुंबी इमारतें: शहरी वास्तुकला में हरित इमारतों को शामिल करने से वायु की गुणवत्ता और जैवविविधता में सुधार के साथ-साथ जल के अनुचित अपवाह को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
    • ये हरित इमारतें अपने ऊपर गिरने वाले 70% वर्षा जल को अवशोषित कर लेती हैं, जिससे जल निकासी प्रणालियों पर दबाव कम हो जाता है।
    • मिलान का बोस्को वर्टिकल (जिसमें दो आवासीय टावरों पर 800-900 पेड़ हैं) प्रतिवर्ष कई टन CO2 को अवशोषित करता है तथा अपवाह को काफी हद तक कम करता है।
  • बाढ़-प्रतिरोधी अवसंरचना: बाढ़-प्रतिरोधी अवसंरचना सिद्धांतों को अपनाने से शहरी क्षेत्रों को बाढ़ अनुकूल क्षेत्रों में परिवर्तित किया जा सकता है।
    • इसमें जल-पारगम्य डिज़ाइन शामिल हैं।
    • न्यू ऑरलियन्स में फ्लोट हाउस यह दर्शाता है कि अवसंरचना, बाढ़ के खतरों के अनुकूल कैसे हो सकती है।
    • बाढ़-प्रवण शहरी क्षेत्रों में नई विनिर्माण संरचनाओं में इन सिद्धांतों को लागू करने से प्रतिवर्ष लाखों घरों को बाढ़ से होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है, तथा पुनर्निर्माण लागत में अरबों की बचत हो सकती है।
  • समुदाय-नेतृत्व वाले सूक्ष्म हस्तक्षेप: सूक्ष्म स्तर पर बाढ़ प्रबंधन में समुदायों को शामिल करने से शहरी बाढ़ के प्रति लचीलापन काफी हद तक बढ़ सकता है।
    • इस दृष्टिकोण में स्थानीय समूहों को वर्षा जल संचयन और पारगम्य फुटपाथ जैसे छोटे पैमाने के हस्तक्षेपों को लागू करने के लिये प्रशिक्षित करना शामिल है।
    • उदाहरण के लिये, बाढ़ की समस्याओं से निपटने के लिये रॉटरडैम ने “वॉटर स्क्वेयर” नामक बहुक्रियाशील सार्वजनिक स्थान डिज़ाइन किये हैं।
      • ये स्थान अधिक वर्षा के दौरान अतिरिक्त वर्षा जल को एकत्रित और संग्रहीत करते हैं, जिससे बाढ़ का खतरा कम होता है और साथ ही निवासियों के लिये मनोरंजन क्षेत्र भी उपलब्ध होते हैं।
    • महाराष्ट्र के नागदरवाड़ी की सफलता की कहानी इस दृष्टिकोण की क्षमता को दर्शाती है। यह छोटा सा गाँव व्यापक वर्षा जल संचयन के माध्यम से जल की कमी वाले क्षेत्र से पर्याप्त जल वाले क्षेत्र में बदल गया।

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