Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

वैश्विक तापमान में वृद्धि

FavoriteLoadingAdd to favorites

चर्चा में क्यों? 

विश्व भर में तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच रहा है, ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह और भी बढ़ गया है। एक सदी पहले कैलिफोर्निया के डेथ वैली (Death Valley) में 56.7 डिग्री सेल्सियस तापमान तथा हाल ही में दिल्ली में 52.9 डिग्री सेल्सियस तकतापमान दर्ज़ किये गए।

  • यदि दिल्ली स्थित एक स्टेशन पर दर्ज़ 52.9°C तापमान की पुष्टि हो जाती है तो यह भारत में अब तक दर्ज़ किया गया सर्वाधिक तापमान होगा।

नोट:

  • हाल ही में दिल्ली के मुंगेशपुर में 52.9 डिग्री सेल्सियस का रिकॉर्ड तापमान दर्ज़ किया गया, जो भारत में अब तक का सबसे अधिक दर्ज़ तापमान है। हालाँकि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (India Meteorological Department- IMD) ने बाद में स्पष्ट किया कि यह दर्ज़ किया गया तापमान सेंसर में त्रुटि या स्थानीय कारकों के कारण था।

वैश्विक तापमान रिकॉर्ड का ऐतिहासिक संदर्भ क्या है?

  • ऐतिहासिक ऊँचाई: पृथ्वी पर अब तक का सर्वाधिक तापमान 1913 में कैलिफोर्निया के डेथ वैली में 56.7°C दर्ज़ किया गया था।
    • यूनाइटेड किंगडम: जुलाई 2022 में पहली बार 40 डिग्री सेल्सियस तापमान को पार किया।
    • चीन: पिछले वर्ष उत्तर-पश्चिमी शहर में 52°C का उच्चतम तापमान दर्ज़ किया गया।
    • यूरोप: इटली के सिसिली में वर्ष 2021 में तापमान 48.8°C तक पहुँच गया, जो इस महाद्वीप में  रिकॉर्ड किया गया सर्वाधिक तापमान है।
    • भारत: राजस्थान के फलौदी में वर्ष 2016 में सबसे अधिक तापमान 51°C दर्ज़ किया गया।
  • वैश्विक रुझान: एक विश्लेषण से पता चलता है कि पृथ्वी के लगभग 40% भाग ने वर्ष 2013 और 2023 के बीच अपने उच्चतम दैनिक तापमान का अनुभव किया।
    • इसमें अंटार्कटिका से लेकर एशिया, यूरोप और अमेरिका के विभिन्न हिस्से शामिल हैं।
    • वर्तमान में वैश्विक औसत तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से लगभग 1.61°C अधिक है।

 

ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक तापमान को कैसे बढ़ा रही है?

  • परिभाषा: ग्लोबल वार्मिंग से तात्पर्य मानवीय गतिविधियों, मुख्य रूप से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और मीथे(CH4) जैसी ग्रीनहाउस गैसों (GHG) के उत्सर्जन के कारण पृथ्वी की सतह के औसत तापमान में दीर्घकालिक वृद्धि से है।
  • ग्रीनहाउस गैसें और तापमान: पृथ्वी की ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल की ऊष्मा को रोक लेती हैं तथा उसे अंतरिक्ष में जाने से रोकती हैं।
    • इन गैसों की बढ़ी हुई सांद्रता इसके प्रभाव को बढ़ाती है, जिससे गर्मी स्थिर रहती है और वैश्विक तापमान में वृद्धि होती है।
  • वैश्विक तापमान वृद्धि: 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध से ग्रह की सतह का औसत तापमान लगभग 1°C बढ़ गया है, यह परिवर्तन मुख्य रूप से वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते उत्सर्जन और अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण हुआ है।
    • पिछले दशक में अब तक के कई सबसे गर्म वर्ष दर्ज़ किये गए हैं, वर्ष 2023-2024 में भी तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है।
    • मई 2023 से अप्रैल 2024 तक की अवधि अभी तक दर्ज़ की गई सबसे गर्म 12 महीने की अवधि थी, जिसमें वैश्विक तापमान पूर्व-औद्योगिक स्तर से लगभग 1.61°C अधिक था।
  • वैश्विक तापमान की प्रवृत्तियों के संबंध में भारत: भारत की तापमान वृद्धि वैश्विक औसत से कम है।
    • वर्ष 1900 के बाद से भारत के तापमान में 0.7 °C, जबकि वैश्विक तापमान में 1.59°C की वृद्धि हुई है। महासागरों को शामिल करने पर, वैश्विक तापमान अब पूर्व-औद्योगिक स्तरों से लगभग 1.1°C अधिक है।
  • ग्लोबल वार्मिंग और हीटवेव: ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक तापमान में वृद्धि और हीटवेव की आवृत्ति का कारण बन रहा है।
    • भारत में हीटवेव आमतौर पर मार्च से जून तक आती हैं और कुछ असाधारण परिस्थितियों में जुलाई तक भी जारी रहती हैं। देश के उत्तरी भागों में प्रतिवर्ष औसतन पाँच-छह बार हीटवेव आती हैं।
    • भारत में हीटवेव अधिक गंभीर होती जा रही है, यहाँ तक ​​कि यह फरवरी में भी जारी रहती है, जबकि सर्दियों का महीना ऐसा होता है जिसके लिये हीटवेव की सीमा निर्धारित नहीं की गई है।
      • दिल्ली और उत्तर भारत में वर्तमान में मौज़ूद उच्च तापमान वर्ष 1981-2010 के औसत तापमान की तुलना में असामान्य प्रतीत होता है।
      • भविष्य में 45°C और उससे अधिक तापमान लोगों के लिये सामान्य हो सकता है तथा तब 50°C का तापमान असामान्य नहीं माना जाएगा।
  • भौगोलिक परिवर्तनशीलता: ग्लोबल वार्मिंग के कारण प्रत्येक स्थान पर तापमान में एक समान वृद्धि नहीं हो रही है। कुछ क्षेत्रों में निम्न कारकों के कारण तापमान में तेज़ी से वृद्धि हो रही है:
    • ध्रुवीय प्रवर्धन (Polar Amplification): समुद्री बर्फ और पर्माफ्रॉस्ट के पिघलने के कारण आर्कटिक तथा अन्य ध्रुवीय क्षेत्र बहुत तेज़ी से गर्म हो रहे हैं।
    • भूमि बनाम जल: भूमि महासागरों की तुलना में अधिक तेज़ी से गर्म होती है, इसलिये महाद्वीपीय आंतरिक भाग तटीय क्षेत्रों की तुलना में अधिक तेज़ी से गर्म होते हैं।
    • ऊँचाई: अधिक ऊँचाई वाले क्षेत्रों में तापमान वृद्धि धीमी होती है, क्योंकि इन क्षेत्रों में वायुमंडल सामान्यतः कम ऊष्मा को अवशोषित करता है।
    • महासागरीय धाराएँ: गल्फ स्ट्रीम जैसी गर्म धाराओं से प्रभावित क्षेत्र तेज़ी से गर्म होते हैं।
    • स्थल-रुद्ध देश: स्थल-रुद्ध क्षेत्रों में वाष्पीकरण शीतलन और महाद्वीपीय प्रभाव कम होता है, जिसके कारण तापमान में अत्यधिक उतार-चढ़ाव होता है।
  • नगरीय ऊष्मा द्वीप (Urban Heat Islands- UHI): UHI महानगरीय क्षेत्र हैं जो ऊष्मा अवशोषित करने वाली सतहों और ऊर्जा उपयोग के कारण आसपास के क्षेत्रों की तुलना में काफी गर्म होते हैं।
    • जैसे-जैसे वैश्विक तापमान में वृद्धि होगी UHI की तीव्रता में भी वृद्धि की संभावना बढ़ेगी, जिससे शहरों में हीटवेव में वृद्धि होगी।
    • शहरी क्षेत्रों में उच्च तापमान के कारण जीवाश्म ईंधन से चलने वाली शीतलन क्षमता भी बढ़ जाती है, जिससे ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन और गर्मी बढ़ती है।
    • अमेरिका में जनसंख्या विशेष रूप से UHI और जलवायु परिवर्तन के संयुक्त प्रभावों से उत्पन्न स्वास्थ्य जोखिमों के प्रति संवेदनशील है।

वैश्विक तापमान बढ़ने के क्या परिणाम हैं?

  • समुद्र का जलस्तर बढ़ना: जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है, ग्लेशियर और हिम परतें पिघलती हैं, जिससे समुद्र का जलस्तर बढ़ जाता है। इससे तटीय क्षेत्र जलमग्न हो जाते हैं, समुदाय विस्थापित हो जाते हैं और पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है।
    • 1880 के बाद से वैश्विक समुद्री जलस्तर में लगभग 8 इंच की वृद्धि हुई है और अनुमान है कि 2100 तक इसमें कम से कम एक फुट की वृद्धि हो जाएगी। उच्च उत्सर्जन परिदृश्य में, यह संभावित रूप से 6.6 फुट तक बढ़ सकता है।
  • महासागरीय अम्लीकरण: महासागर वायुमंडल में छोड़ी गई CO2 की एक महत्त्वपूर्ण मात्रा को अवशोषित करते हैं। इससे महासागरों की अम्लीयता बढ़ती है, जिससे समुद्री जीवों को हानि पहुँचती है और ग्रह के स्वास्थ्य के लिये महत्त्वपूर्ण समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है।
    • जलवायु के उष्ण होने के साथ ही तूफानों के अधिक शक्तिशाली और तीव्र होने की संभावना है, जिसके परिणामस्वरूप वर्षा की दर में वृद्धि होगी।
  • सूखा और हीटवेव: सूखा और हीटवेव अधिक तीव्र होने की संभावना है, जबकि शीत लहरों के सामान्य और न्यूनतम आवृत्ति में आने की संभावना है।
  • वनाग्नि की समय अवधि: बढ़ते तापमान एवं दीर्घकालिक सूखे के कारण वनाग्नि की समय अवधि और तीव्र हो गयी है, जिससे वनों में आग लगने का संकट बढ़ गया है।
    • मानव-जनित जलवायु परिवर्तन के कारण पहले ही वनों में आग लगने वाले क्षेत्र की संख्या दोगुनी हो चुकी है तथा अनुमान है कि वर्ष 2050 तक पश्चिमी देशों में वनाग्नि द्वारा भस्म होने वाली भूमि की मात्रा में अधिक वृद्धि होगी।
  • जैवविविधता हानि: बढ़ता तापमान तथा बदलता मौसम प्रतिरूप पारिस्थितिकी तंत्र एवं पर्यावासों को बाधित करता है, जिससे कई पौधों और पशुओं की प्रजातियाँ पर विलुप्त होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • जलवायु परिवर्तन: उत्कृष्ट मौसम के कारण खाद्य उत्पादन बाधित होता है, जिससे खाद्यान्नों की कमी होती है और मूल्य में वृद्धि होती है, जिससे संकटग्रस्त जनसंख्या को नुकसान पहुँचता है।
    • बढ़ते तापमान के कारण वायु की गुणवत्ता खराब होती है, गर्मी के कारण होने वाली बीमारियाँ बढ़ती हैं तथा रोग संक्रामकता में वृद्धि होती है।
    • इसके आर्थिक परिणाम गंभीर हैं, जिसमें बुनियादी ढाँचे के जीर्णोद्धार की उच्च लागत, कृषि उपज का क्षरण तथा आपदा राहत में वृद्धि शामिल है।

 

आगे की राह 

  • छह-क्षेत्रीय समाधान: संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के रोडमैप का पालन करना, जिसमें ऊर्जा, उद्योग, कृषि, वन, परिवहन और भवन जैसे क्षेत्रों में उत्सर्जन को कम करना शामिल है।
  • कार्बन ऑफसेटिंग: ऐसी परियोजनाओं में निवेश करना जो वायुमंडल से कार्बन को कम करती है, जैसे कि पुनर्वनीकरण या कार्बन कैप्चर और भंडारण।
  • ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी: सौर, पवन, भूतापीय और जल विद्युत जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर संक्रमण से जीवाश्म ईंधन पर हमारी निर्भरता काफी कम हो सकती है।
    • आवास स्थानों, उद्योगों और परिवहन में ऊर्जा-दक्षता पद्धति को लागू करने से ऊर्जा की खपत में कमी हो सकती है।
  • सतत् कृषि: जलवायु के अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाना चाहिये, जैसे सतत् सिंचाई तकनीक, सूखा प्रतिरोधी फसल किस्में और कृषि वानिकी
    • उत्कृष्ट मौसम की घटनाओं के दौरान क्षति को कम करने और भोजन तक पहुँच सुनिश्चित करने हेतु खाद्य भंडारण एवं वितरण प्रणालियों को बेहतर बनाना।
    • वनोन्मूलन को कम करना, पुनर्योजी कृषि तकनीकों का उपयोग करना तथा पौधों पर आधारित आहार को बढ़ावा देना, सभी इसमें योगदान दे सकते हैं।
  • जलवायु परिवर्तन के प्रति संवेदनशील जनसंख्या को सहायता प्रदान करना: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति सर्वाधिक संवेदनशील समुदायों की सहायता करना, जैसे कि निचले तटीय क्षेत्रों और विकासशील देशों में रहने वाले लोग।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »
Scroll to Top