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विश्व नारियल दिवस 2024

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विश्व नारियल दिवस (World Coconut Day- WCD) प्रतिवर्ष 2 सितंबर को मनाया जाता है, जो हमारे जीवन में नारियल के महत्त्व पर ज़ोर देता है तथा सतत् कृषि पद्धतियों को बढ़ावा देता है

  • यह दिन नारियल के विभिन्न उपयोगों के बारे में जागरूकता बढ़ाने और उनके वैश्विक उपभोग को प्रोत्साहित करने के लिये समर्पित है।
  • विश्व नारियल दिवस 2024 की थीम है: “कोकोनेट फॉर ए सर्कुलर इकोनॉमी: बिल्डिंग पार्टनरशिप फॉर मैक्सिमम वैल्यू”।
  • विश्व नारियल दिवस पहली बार वर्ष 2009 में मनाया गया था, जिसकी स्थापना अंतर्राष्ट्रीय नारियल समुदाय, एक एशिया एवं प्रशांत के लिये संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक आयोग (United Nations Economic and Social Commission for Asia and the Pacific – UNESCAP) अंतर-सरकारी संगठन द्वारा की गई थी।
    • 21 नारियल उत्पादक देशों का प्रतिनिधित्व करने वाली इंटरनेशनल कोकोनट कम्युनिटी (International Coconut Community- ICC) ने वर्ष 1969 में अपनी स्थापना के उपलक्ष्य में 2 सितंबर को विश्व नारियल दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत की। भारत इसका संस्थापक सदस्य है।
    • ICC का सचिवालय जकार्ता, इंडोनेशिया में स्थित है।
    • ICC को वर्ष 2018 तक एशियाई और प्रशांत नारियल समुदाय के रूप में जाना जाता था।
  • नारियल के लाभ: नारियल हृदय-संवहनी स्वास्थ्य को बढ़ावा देता है, लाल रक्त कोशिका उत्पादन में सहायता और मधुमेह का प्रबंधन करता है तथा एंटीऑक्सीडेंट सुरक्षा प्रदान करता है।
  • अपने समृद्ध पोषक तत्त्वों के कारण वे त्वचा के स्वास्थ्य, पाचन, जलयोजन और समग्र कल्याण में सहायता करते हैं।
  • भारत का नारियल विकास बोर्ड (CDB): कृषि मंत्रालय के तहत स्थापित एक वैधानिक निकाय है, जिसका उद्देश्य बेहतर उत्पादकता और उत्पाद विविधीकरण के माध्यम से नारियल की खेती तथा उद्योग को बढ़ावा देना है।
    • भारत में शीर्ष नारियल उत्पादक राज्य केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु हैं।
    • भारत में कुल नारियल उत्पादन 20,535.88 मिलियन टन (2022-23) है।

अधिक पढ़ें: CPCRI ने नारियल और कोको की खेती के लिये पेश की नई

 

 


चर्चा में क्यों

हाल ही में नेशनल एरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने पहली बार पृथ्वी के छिपे हुए उभयध्रुवीय/एंबिपोलर विद्युत क्षेत्र का पता लगाया है, जो आवेशित कणों को सुपरसोनिक गति से अंतरिक्ष में भेजने वाले ‘धुवीय पवनों’ के संचालन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है

  • जर्नल नेचर में प्रकाशित यह खोज पृथ्वी के आयनमंडल और अंतरिक्ष के साथ इसकी परस्पर-क्रियाओं की हमारी समझ में एक महत्त्वपूर्ण प्रगति को चिह्नित करती है।

एंबिपोलर विद्युत क्षेत्र क्या है?

  • परिभाषा: एंबिपोलर विद्युत क्षेत्र पृथ्वी पर व्याप्त एक दुर्बल विद्युत क्षेत्र है, जो पृथ्वी के वायुमंडल में आवेशित कणों की गति को प्रभावित करता है। इसे गुरुत्वाकर्षण और चुंबकत्व के समान ही मौलिक माना गया था। एंबिपोलर क्षेत्र की परिकल्पना सबसे पहले 1960 के दशक में की गई थी।
  • गतिकी: लगभग 150 मील की ऊँचाई पर उत्पन्न विद्युत क्षेत्र, आवेशित कणों (आयन तथा इलेक्ट्रॉन) के साथ परस्पर क्रिया करता है। यह आवेशों के पृथक्करण को रोकता है और कुछ आयनों को अंतरिक्ष में पलायन के लिये पर्याप्त ऊँचाई तक उन्नयन में सहायता करता है।
    • एंबिपोलर क्षेत्र ‘द्विदिशात्मक’ है, जिसका अर्थ है कि यह दोनों दिशाओं में कार्य करता है। जब आयन गुरुत्वाकर्षण के कारण तेज़ी से गिरते हैं तो इलेक्ट्रॉन उन्हें नीचे की ओर खींचते हैं, जबकि मुक्त आकाश में पलायन के दौरान इलेक्ट्रॉन आयनों को अधिक ऊँचाई तक उठाते/उन्नत करते हैं। एंबीपोलर क्षेत्र का शुद्ध प्रभाव वायुमंडल की ऊँचाई को बढ़ाना है, जिससे कुछ आयन इतने ऊपर उठ जाते हैं कि ध्रुवीय पवन के साथ उनका पलायन हो जाता है।
  • खोज़: यह खोज़ एंड्योरेंस मिशन के हिस्से के रूप में लॉन्च किये गए NASA सबऑर्बिटल रॉकेट के प्रयोग द्वारा की गई थी जिसने एंबिपोलर क्षेत्र की पुष्टि की और इसकी शक्ति का आकलन किया।

एंबिपोलर क्षेत्र पृथ्वी के वायुमंडल को किस प्रकार प्रभावित करता है?

  • बढ़ी हुई स्केल ऊँचाई: एंबिपोलर फील्ड आयनमंडल की ‘स्केल ऊँचाई’ को 271% तक बढ़ा देता है। इसका मतलब है कि उच्च अक्षांश पर बिना एंबिपोलर क्षेत्र के आयनमंडल की सघनता अधिक होती है। बढ़ा हुआ घनत्व ध्रुवीय पवन में योगदान देता है, जो आवेशित कणों को मुक्त आकाश में स्थानांतरित करता है।
  • आयनमंडल ऊपरी वायुमंडल की एक परत है, जहाँ आवेशित कण प्रचुर मात्रा में होते हैं।
  • ध्रुवीय पवन उच्च-अक्षांश आयनमंडल से मैग्नेटोस्फीयर (चुंबकीय क्षेत्र द्वारा प्रभावित पृथ्वी के आसपास का क्षेत्र) में थर्मल प्लाज़्मा का एक एंबिपोलर (द्विदिशात्मक) बहिर्वाह है, जिसमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन, हीलियम और ऑक्सीजन के आयन व इलेक्ट्रॉन होते हैं।
  • हाइड्रोजन आयनों पर प्रभाव: यह क्षेत्र हाइड्रोजन आयनों पर गुरुत्वाकर्षण से 10.6 गुना अधिक बल लगाता है। यह महत्त्वपूर्ण बल उन्हें सुपरसोनिक गति से अंतरिक्ष में स्थानांतरित करता है, जिससे वायुमंडलीय पलायन बढ़ जाता है।
  • व्यापक निहितार्थ: इस क्षेत्र को समझने से पृथ्वी के वायुमंडलीय विकास के संदर्भ में जानकारी मिलती है और इसे शुक्र एवं मंगल जैसे वायुमंडल वाले अन्य ग्रहों पर लागू किया जा सकता है। इससे यह समझने में भी मदद मिल सकती है कि कौन-से ग्रह जीवन के लिये अनुकूल हो सकते हैं।

एंड्योरेंस मिशन

  • यह NASA द्वारा वित्तपोषित मिशन था, जिसे वर्जीनिया में NASA के वॉलॉप्स फ्लाइट सुविधा में साउंडिंग रॉकेट प्रोग्राम के माध्यम से संचालित किया गया था।
  • इसका प्राथमिक लक्ष्य पृथ्वी की वैश्विक विद्युत शक्ति का आकलन करना है, जिसे बहुत क्षीण/दुर्बल माना जाता है। यह विद्युत क्षमता यह समझने के लिये महत्त्वपूर्ण है कि शुक्र जैसे अन्य ग्रहों के विपरीत पृथ्वी जीवन का समर्थन क्यों कर सकती है।

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