चर्चा में क्यों?
हाल ही में इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च ऑर्गेनाइज़ेशन (IUFRO) की एक प्रमुख वैज्ञानिक समीक्षा में पाया गया कि वन संरक्षण के लिये बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण, जैसे कार्बन ऑफसेट और वनों की कटाई-मुक्त प्रमाणीकरण योजनाएँ, पेड़ों की रक्षा करने या निर्धनता कम करने में अत्यधिक विफल रही हैं।
हाल के अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?
- 120 देशों में किये गए वैश्विक अध्ययन ने निष्कर्ष निकाला कि व्यापार और वित्त-संचालित पहलों ने वनों की कटाई को रोकने में “सीमित” प्रगति की है तथा कुछ मामलों में आर्थिक समानता बिगड़ गई है।
- रिपोर्ट बाज़ार-आधारित दृष्टिकोणों पर “कट्टरपंथी पुनर्विचार” का सुझाव देती है क्योंकि वैश्विक स्तर पर विभिन्न क्षेत्रों में गरीबी और वन हानि जारी है, जहाँ बाज़ार तंत्र दशकों से मुख्य नीति विकल्प रहे हैं।
- यह कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, मलेशिया और घाना के उदाहरण भी प्रदान करता है, जहाँ बाज़ार-आधारित परियोजनाएँ स्थानीय समुदायों को लाभ पहुँचाने या वनों की कटाई को रोकने में विफल रही हैं।
- जटिल व अतिव्यापी बाज़ार-आधारित योजनाओं में वृद्धि हुई है “वित्तीय अभिकर्ता और शेयरधारक अक्सर दीर्घकालिक न्यायसंगत एवं स्थायी वन प्रशासन की तुलना में अल्पकालिक लाभ में रुचि रखते हैं”।
- अध्ययन में अमीर देशों की हरित व्यापार नीतियों के बारे में चिंता व्यक्त की गई है, उनका तर्क है कि उचित कार्यान्वयन के बिना विकासशील देशों के लिये उनके नकारात्मक परिणाम हो सकते हैं।
- रिपोर्ट को उच्च-स्तरीय संयुक्त राष्ट्र मंच पर प्रस्तुत करने की योजना है, जिसमें वन संरक्षण के क्षेत्र में नीति निर्माताओं और हितधारकों के लिये इसके निष्कर्षों एवं अनुशंसाओं के महत्त्व पर ज़ोर दिया जाएगा।
वन संरक्षण के लिये बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण क्या हैं?
- परिचय:
- यह परंपरागत रूप से, वन संरक्षण नियमों और सरकारी हस्तक्षेप पर निर्भर था।
- बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण वनों के पर्यावरणीय लाभों को महत्त्व देते हैं और लोगों के लिये उनकी सुरक्षा से लाभ कमाने के लिये आवश्यक तंत्र का निर्माण करते हैं।
- इसका लक्ष्य एक ऐसा बाज़ार तैयार करना है जहाँ सतत् प्रथाएँ वनों की कटाई की तुलना में अधिक आकर्षक बनें।
- बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण के उदाहरण:
- कार्बन ऑफसेट: कार्बन उत्सर्जन उत्पन्न करने वाली कंपनियाँ उन परियोजनाओं में निवेश कर सकती हैं जो वनों की रक्षा करती हैं, जो कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं। इससे उन्हें अपने उत्सर्जन पदचिह्न की भरपाई करने की अनुमति मिलती है।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (PES) के लिये भुगतान: जो भूस्वामी वनों का सतत् तरीके से प्रबंधन करते हैं, वे वनों द्वारा प्रदान की जाने वाली पर्यावरणीय सेवाओं, जैसे स्वच्छ जल अथवा जैवविविधता आवास के लिये सरकारों, गैर सरकारी संगठनों या व्यवसायों से भुगतान प्राप्त कर सकते हैं।
वनों की कटाई-मुक्त प्रमाणनः इसमें स्वतंत्र सत्यापन शामिल है कि उत्पाद स्थायी रूप से प्रबंधित वनों से आते हैं, जिससे उपभोक्ताओं को वन-अनुकूल विकल्प चुनने की अनुमति मिलती है।
वन संरक्षण पर बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण (MBA) के प्रभाव क्या हैं?
- सकारात्मक प्रभाव:
- संरक्षण को प्रोत्साहित: यह वनों को संरक्षित रखने के लिये आर्थिक मूल्यों को निर्धारित करता है। यह उन भूस्वामियों को प्रेरित कर सकता है जो वन कटाई और वन संरक्षण में लाभ देख सकते हैं।
- उदहारण: कार्बन ऑफसेट वनों की रक्षा करने वाले समुदायों के लिये आय प्रदान करता है जो कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में एक आवश्यक तंत्र है।
- बाज़ार दक्षता: यह पारंपरिक नियमों की तुलना में अधिक कुशल है। वे बाज़ार को संरक्षण लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये सर्वाधिक लागत प्रभावी तरीके खोजने की अनुमति देते हैं।
- उदहारण: पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं (PES) कार्यक्रमों के लिये भुगतान संसाधनों को भूमि मालिकों की ओर निर्देशित कर सकता है जो स्पष्ट रूप से सबसे महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिक लाभ प्रदान कर सकते हैं।
- सतत् प्रथाओं को बढ़ावा देना: यह वनों की कटाई पर सतत् प्रथाओं को प्रोत्साहित करके दीर्घकालिक वन प्रबंधन को बढ़ावा देता है।
- उदहारण: वनों की कटाई-मुक्त प्रमाणन योजनाएँ उपभोक्ताओं को ऐसे उत्पाद चुनने का विकल्प देती हैं जो ज़िम्मेदार वानिकी को बढ़ावा देते हैं, जिससे स्थायी प्रथाओं के लिये बाज़ार पर दबाव बनता है।
- संरक्षण को प्रोत्साहित: यह वनों को संरक्षित रखने के लिये आर्थिक मूल्यों को निर्धारित करता है। यह उन भूस्वामियों को प्रेरित कर सकता है जो वन कटाई और वन संरक्षण में लाभ देख सकते हैं।
- नकारात्मक प्रभाव:
- असमान लाभः यह मौजूदा असमानताओं को बढ़ा सकता है। जिससे अमीर कंपनियों या भूमि मालिकों को अत्यधिक लाभ हो सकता है, जबकि निर्धन समुदाय प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिये संघर्ष करते हैं।
- उदाहरण के लिये: कार्बन ऑफसेट बाज़ारों में जटिलताएँ कुछ स्थानीय समुदायों को लूप से बाहर कर सकती हैं, जिससे वन संरक्षण से लाभ कमाने की समुदायों की क्षमता सीमित हो सकती है।
- निगरानी चुनौतियाँ: यह सुनिश्चित करने के लिये कि परियोजनाएँ वास्तविक संरक्षण लाभ प्रदान करें, मज़बूत निगरानी की आवश्यकता है। लापरवाही बरतने से “ग्रीनवॉशिंग” हो सकती है, जहाँ परियोजनाएँ लाभकारी दिखाई देती हैं परंतु उनका वास्तविक प्रभाव बहुत कम होता है।
- उदहारण: PES कार्यक्रमों को वन स्वास्थ्य में सुधार मापने के लिये स्पष्ट आधार रेखा और संरक्षण प्रयासों के फर्ज़ी दावों को रोकने के लिये प्रभावी सत्यापन की आवश्यकता है।
- अनिश्चित दीर्घकालिक प्रभाव: MBA की दीर्घकालिक प्रभावशीलता का अभी भी मूल्यांकन किया जा रहा है।
- असमान लाभः यह मौजूदा असमानताओं को बढ़ा सकता है। जिससे अमीर कंपनियों या भूमि मालिकों को अत्यधिक लाभ हो सकता है, जबकि निर्धन समुदाय प्रभावी ढंग से भाग लेने के लिये संघर्ष करते हैं।
इंटरनेशनल यूनियन ऑफ फॉरेस्ट रिसर्च ऑर्गनाइज़ेशन (IUFRO) के हालिया अध्ययन में पाया गया कि वन संरक्षण के लिये बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण, जैसे कार्बन ऑफसेट एवं वनों की कटाई-मुक्त प्रमाणीकरण योजनाएँ, वृक्षों की रक्षा करने या गरीबी कम करने में काफी हद तक विफल रही हैं।
ग्रीनवॉशिंग:
- ग्रीनवॉशिंग एक भ्रामक पद्धति है जहाँ कंपनियाँ या यहाँ तक कि सरकारें जलवायु परिवर्तन को कम करने पर अपने कार्यों और उनके प्रभाव को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करती हैं, तथा भ्रामक जानकारी अथवा अप्रमाणित दावे करती हैं।
- यह पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों की बढ़ती माँग की पूर्ति करने का एक प्रयास है।
- यह काफी व्यापक है और संस्थाएँ अक्सर विभिन्न गतिविधियों को बिना सत्यापन के जलवायु-अनुकूल बताने का प्रयत्न करती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध वास्तविक प्रयासों को कमज़ोर करती हैं।
आगे की राह
- भूमि स्वामित्व अधिकारों एवं क्षमता निर्माण के माध्यम से स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना तथा निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उनकी भागीदारी सुनिश्चित करना, सतत् वन प्रबंधन के लिये एक दृढ़ आधार तैयार कर सकता है।
- MBA के साथ नियमों में स्पष्टता तथा इन नियमों का कठोरता से प्रवर्तन वनों की कटाई को नियंत्रित करने तथा सतत् पर्यावरणीय प्रक्रियाओं को सुनिश्चित करने में सहायता कर सकते हैं।
- समान लाभ-साझाकरण तंत्र के अंतर्गत, वन संरक्षण के लिये बाज़ार-आधारित पद्धतियाँ विकसित करना जो स्थानीय समुदायों को प्राथमिकता देने एवं निर्धनता कम करने के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- प्रभावी निगरानी प्रणालियों में निवेश करने तथा परियोजना कार्यान्वयन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने से ग्रीनवॉशिंग को रोका जा सकता है एवं वास्तविक संरक्षण परिणाम सुनिश्चित किये जा सकते हैं।
निष्कर्ष:
बाज़ार-आधारित दृष्टिकोण वन संरक्षण के लिये एक मूल्यवान उपकरण हो सकते हैं, लेकिन उन्हें सावधानीपूर्वक एवं रणनीतिक रूप से लागू किया जाना चाहिये। IUFRO अध्ययन समुदाय-संचालित समाधानों को प्राथमिकता देने, नियमों को मज़बूत करने एवं समानता को बढ़ावा देने हेतु जानकारी प्रदाता के रूप में कार्य करता है। अधिक समग्र दृष्टिकोण अपनाकर हम वनों की दीर्घकालिक सुरक्षा एवं उन पर निर्भर समुदायों के कल्याण को सुनिश्चित कर सकते हैं।