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रोज़गार बाज़ार में बढ़ता कौशल अंतराल

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चर्चा में क्यों?

भारत के रोज़गार बाज़ार में अर्द्ध-कुशल और उच्च-कुशल रोज़गार के बीच विभाजन बढ़ रहा है। विगत दो दशकों में सेवा क्षेत्र (विशेष रूप से आईटी, बैंकिंग और वित्त) आर्थिक विकास का एक प्रमुख चालक रहा है । इसके विपरीत, परिधान और फुटवियर जैसे पारंपरिक उद्योग (जो अर्द्ध-कुशल रोज़गार प्रदान करते हैं) स्थिर हो रहे हैं।

भारत के विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्र के वर्तमान रुझान क्या हैं?

  • सेवा क्षेत्र:
    • सकल घरेलू उत्पाद और रोज़गार में योगदान: भारत के सेवा क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 50% से अधिक का योगदान है तथा इससे लगभग 30.7% आबादी को रोज़गार मिलता है एवं यह सॉफ्टवेयर सेवाओं हेतु वैश्विक केंद्र के रूप में कार्य करता है।
    • रिकवरी और संवृद्धि: सेवा क्षेत्र में वित्त वर्ष 2022-23 में उल्लेखनीय सुधार हुआ और वर्ष-दर-वर्ष (YoY) 8.4% की वृद्धि दर दर्ज की।
      • भारतीय आईटी आउटसोर्सिंग बाज़ार वर्ष 2021 और 2024 के बीच 6-8 % तक बढ़ने का अनुमान है।
    • GII रैंकिंग: सितंबर 2023 में भारत ने तकनीकी रूप से गतिशील, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार योग्य सेवाओं की प्रगति से प्रेरित होकर वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) में अपना 40वाँ स्थान बनाए रखा।
    • FDI: सेवा क्षेत्र में सर्वाधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) आकर्षित हुआ, जो अप्रैल 2000 से मार्च 2024 तक 109.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा।
  • विनिर्माण क्षेत्र:
    • विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: विनिर्माण क्षेत्र सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14% (जो लक्षित 25% से कम है) बना हुआ है,  जिससे उच्च-कुशल और अर्द्ध-रोज़गार के बीच का अंतराल बढ़ रहा है।
    • विनिर्माण की कमज़ोर स्थिति: भारत का विनिर्माण क्षेत्र बांग्लादेश, थाईलैंड और वियतनाम जैसे प्रतिस्पर्द्धियों से पीछे है, जिससे अर्द्ध-कुशल रोज़गार सृजन प्रभावित हो रहा है।
      • अर्थशास्त्री इस बात पर ज़ोर देते हैं कि भारत अपनी 1.4 अरब विशाल जनसंख्या के कारण केवल सेवा क्षेत्र पर निर्भर नहीं रह सकता है।
    • रोज़गार सृजन की आवश्यकता: आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुमान के अनुसार प्रतिवर्ष 7.85 मिलियन गैर-कृषि रोज़गारों की आवश्यकता होगी, जो बढ़ते कार्यबल को समायोजित करने के लिये विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गारों के सृजन की व्यापक आवश्यकता पर प्रकाश डालता है।

विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार में गिरावट के लिये कौन-से कारक ज़िम्मेदार हैं?

  • विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता: विनिर्माण क्षेत्र में स्थिरता (GDP में मात्र 14% का योगदान) से श्रम-प्रधान क्षेत्रों में रोज़गार सृजन में बाधा उत्पन्न हुई है।
    • भारत का सेवा निर्यात वैश्विक वाणिज्यिक सेवा निर्यात का 4.3% है, जबकि इसका वस्तु निर्यात वैश्विक वस्तु बाज़ार का केवल 1.8% है। इस असंतुलन के कारण भारत के विनिर्माण क्षेत्र में सीमित रोज़गार सृजित होते हैं
  • उच्च-कौशल वाले उद्योगों की ओर बदलाव: विनिर्माण क्षेत्र को नज़रअंदाज़ करते हुए वैश्विक क्षमता केंद्रों (GCC) के उदय से उच्च-कौशल वाले आईटी पेशेवरों के लिये  रोज़गार के अवसरों में वृद्धि हुई है लेकिन यह बदलाव पर्याप्त अर्द्ध-कौशल वाले रोज़गार सृजन में परिणत नहीं हुआ है।
    • भारत में GCC की संख्या में वृद्धि हुई है, जिनमें से लगभग 1,600 बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा स्थापित किये गए हैं, जो डेटा एनालिटिक्स और सॉफ्टवेयर विकास पर केंद्रित हैं।
  • निर्यात-संबंधी रोज़गार में गिरावट: विश्व बैंक की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में निर्यात-संबंधी रोज़गार वर्ष 2012 के कुल घरेलू रोज़गार के 9.5% से घटकर वर्ष 2020 में 6.5% हो गए हैं
    • इस गिरावट का कारण भारत के सेवा क्षेत्र और उच्च कौशल विनिर्माण का निर्यात क्षेत्र में प्रभुत्व होना है, जो व्यापक कार्यबल हेतु रोज़गार सृजन में कम प्रभावी है , जिसके परिणामस्वरूप व्यापार से संबंधित रोज़गार सृजन में कमी आई है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखलाओं (GVC) में सीमित भागीदारी: GVC में भारत की घटती भागीदारी के कारण रोज़गार सृजन सीमित हो गया है जबकि GVC की वैश्विक व्यापार में 70% भागीदारी है।
    • विश्व बैंक के अनुसार, कच्चे माल की कमी और उच्च परिवहन लागत जैसी चुनौतियों ने भारत की व्यापार भागीदारी को कम कर दिया है।
  • उच्च टैरिफ: मध्यवर्ती वस्तुओं पर उच्च टैरिफ ने भारतीय निर्माताओं के लिये उत्पादन लागत बढ़ा दी है, जिससे उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता कम हो गई है।
    • भारत का औसत टैरिफ वर्ष 2014 के 13% से बढ़कर संभावित रूप से वर्ष 2022 में 18.1% हो गया, जिससे वियतनाम और थाईलैंड जैसे देशों के साथ प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन होने के साथ अर्द्ध-कुशल रोज़गार के अवसरों में कमी आई है।
  • अर्द्ध-कौशल संबंधी विनिर्माण में भारत द्वारा अवसर का लाभ न उठा पाना: भारत को वर्ष 2015 से 2022 के बीच अर्द्ध-कौशल विनिर्माण से चीन के बाहर हो जाने से उत्पन्न अवसर का लाभ उठाने में संघर्ष का सामना करना पड़ा।
    • परिधान, चमड़ा, वस्त्र और फुटवियर जैसे उद्योगों में चीन की कम होती उपस्थिति से बांग्लादेश, वियतनाम जैसे देशों तथा यहाँ तक कि जर्मनी एवं नीदरलैंड जैसी उन्नत अर्थव्यवस्थाओं को भी लाभ हुआ है।
  • कौशल विकास का अभाव: भारत के केवल 16% श्रम बल को कौशल प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है , जिसके परिणामस्वरूप अपर्याप्त व्यावसायिक कौशल और शिक्षा के कारण रोज़गार की संभावना में कमी बनी हुई है। इंडिया स्किल्स रिपोर्ट के अनुसार केवल 45% स्नातक ही रोज़गार योग्य हैं।

भारत में विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये क्या पहल की गई हैं?

  • PM मित्र पार्क: सरकार ने वर्ष 2023 में परिधान क्षेत्र में विश्व स्तरीय बुनियादी ढाँचे को विकसित करने के लिये 4,445 करोड़ रुपए के निवेश के साथ 7 पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (PM-MITRA) पार्कों की स्थापना को मंज़ूरी दी।
  • राष्ट्रीय औद्योगिक गलियारा विकास कार्यक्रम: आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने 28,602 करोड़ रुपए के अनुमानित निवेश के साथ 12 औद्योगिक स्मार्ट शहरों की स्थापना को मंज़ूरी दी, जिसका उद्देश्य विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ावा देना है
  • टैरिफ में कटौती: केंद्रीय बजट 2024-25 में चिकित्सा उपकरण और वस्त्र सहित विभिन्न वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती की घोषणा की गई , जिसका उद्देश्य उत्पादन लागत को कम करना तथा प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाना है।
  • प्रधानमंत्री रोज़गार सृजन कार्यक्रम (PMEGP): यह योजना गैर-कृषि इकाइयाँ स्थापित करने में उद्यमियों को सहायता प्रदान करती है, जिसका उद्देश्य ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पारंपरिक कारीगरों तथा बेरोज़गार युवाओं के लिये रोज़गार सृजित करना है।
    • वर्ष 2018-19 से 30 जनवरी, 2024 तक इस कार्यक्रम के तहत अनुमानित 37.46 लाख रोज़गार सृजित होना संभावित है।
  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (PMMY): इस योजना के तहत स्वरोज़गार को बढ़ावा देने के लिये व्यक्तियों और सूक्ष्म/लघु व्यवसायों को 10 लाख रुपए तक का ज़मानत-मुक्त ऋण प्रदान करना शामिल है।
    • 29 मार्च, 2024 तक इस योजना के तहत लगभग 47.7 करोड़ ऋण स्वीकृत किये  जा चुके हैं।

आगे की राह

  • कौशल पहचान के लिये विकेंद्रीकृत सामुदायिक कार्रवाई: यह दृष्टिकोण संभावित श्रमिकों की पहचान करने और उन्हें विशिष्ट कौशल की आवश्यकता वाले उद्योगों के साथ जोड़ने में मदद कर, विनिर्माण क्षेत्र को लक्षित कार्यबल प्रदान करता है।
  • एकीकृत मानव विकास: स्थानीय स्तर पर शिक्षा, स्वास्थ्य, कौशल और रोज़गार को एकीकृत करके तथा महिला समूहों का सहयोग प्राप्त कर अधिक स्वस्थ, अधिक कुशल कार्यबल का निर्माण किया जा सकता हैं, जो विनिर्माण क्षेत्र की उत्पादकता एवं समावेशिता दोनों के लिये महत्त्वपूर्ण है।
  • वैश्विक मूल्य शृंखला (GVC) भागीदारी को बढ़ावा देना: कम टैरिफ और सरलीकृत व्यापार के माध्यम से GVC में एकीकरण में सुधार करके, भारतीय निर्माता बड़े बाज़ारों, आधुनिक प्रौद्योगिकियों तथा वैश्विक नेटवर्क तक पहुँच सकते हैं, जिससे विनिर्माण क्षेत्र में प्रतिस्पर्द्धा में वृद्धि होगी।
    • केंद्रीय बजट 2024-25  में कई प्रमुख वस्तुओं पर टैरिफ में कटौती की घोषणा की गई है, लेकिन विश्व बैंक का सुझाव है कि लागत असमानताओं को खत्म करने और प्रतिस्पर्द्धात्मकता में सुधार करने के लिये तथा अधिक कटौती आवश्यक है।
  • कौशल विकास में निवेश: आधुनिक विनिर्माण की उभरती मांगों को पूरा करने के लिये उच्च और अर्द्ध-कुशल दोनों रोज़गार क्षेत्रों में श्रमिकों को प्रशिक्षित करना आवश्यक है, विशेष रूप से तब जब यह अधिक तकनीकी रूप से संचालित हो रहा है।
  • स्नातक डिग्री के साथ व्यावसायिक कार्यक्रम: व्यावसायिक शिक्षा को पारंपरिक डिग्री के साथ संयोजित करने से छात्रों को विनिर्माण क्षेत्र में आवश्यक व्यावहारिक कौशल प्राप्त होने की अधिक संभावना होती है, जिससे इस क्षेत्र में उनकी रोज़गार क्षमता में सुधार होता है।
  • प्रशिक्षुता लागतों को साझा करना: सरकार और उद्योग के बीच प्रशिक्षुता लागतों को साझा करने से अधिक प्रशिक्षुता को बढ़ावा मिलेगा, विनिर्माण फर्मों को प्रशिक्षित श्रमिकों तक पहुँच मिलेगी साथ ही श्रमिकों को उद्योग-प्रासंगिक अनुभव प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  • महिला उद्यमियों के लिये सुव्यवस्थित ऋण: महिलाओं के नेतृत्व वाले उद्यमों के लिये ऋण तक पहुँच को सरल बनाकर उन महिला उद्यमियों, जो आपूर्ति शृंखलाओं में योगदान देती हैं या अपना स्वयं का विनिर्माण उद्यम शुरू करती हैं, को समर्थन प्रदान कर विनिर्माण को बढ़ावा देने में मदद मिल सकती है।

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