चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक ने एक रेसिपी फॉर अ लिवेबल प्लेनेट रिपोर्ट जारी की, जिसमें स्पष्ट किया है कि वर्ष 2030 तक कृषि खाद्य उत्सर्जन को आधा करने के साथ ही वर्ष 2050 तक शुद्ध शून्य लक्ष्य प्राप्त करने के लिये 260 बिलियन अमेरिकी डॉलर का वार्षिक निवेश आवश्यक है।
- रिपोर्ट में स्पष्ट किया है कि यह आँकड़ा वर्तमान में कृषि सब्सिडी पर व्यय की जाने वाली राशि का दोगुना है।
रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- परिचय:
- “रेसिपी फॉर अ लिवेबल प्लेनेट रिपोर्ट” जलवायु परिवर्तन पर कृषि खाद्य प्रणाली के प्रभाव को कम करने हेतु एक वैश्विक रणनीतिक ढाँचा प्रदान करता है।
- यह रेखांकित करता है कि कैसे विश्व का खाद्य उत्पादन वैश्विक खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए ग्रीनहाउस गैस (GHGs) उत्सर्जन को कम कर सकता है।
- कृषि खाद्य प्रणाली सुधार की संभावनाएँ एवं लाभ:
- कमी की संभावना: वैश्विक कृषि खाद्य प्रणाली व्यवहार्य एवं सुलभ उपायों के माध्यम से वैश्विक रूप से GHG उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई कम कर सकती है।
- ये उपाय खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के साथ-साथ खाद्य प्रणाली पर जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम कर सकते है, परिणामस्वरूप कमज़ोर समुदायों की सुरक्षा प्राप्त होगी।
- कमी की संभावना: वैश्विक कृषि खाद्य प्रणाली व्यवहार्य एवं सुलभ उपायों के माध्यम से वैश्विक रूप से GHG उत्सर्जन का लगभग एक तिहाई कम कर सकती है।
- जलवायु परिवर्तन में कृषि खाद्य की भूमिका:
- उत्सर्जन में योगदानः कृषि खाद्य वैश्विक GHG उत्सर्जन में लगभग एक तिहाई का योगदान देते है, जो दुनिया की कुल ऊष्मा एवं बिजली उत्सर्जनों से अधिक है।
- उत्सर्जन के मुख्य योगदानककर्त्ता: इनमें से लगभग तीन-चौथाई उत्सर्जन विकासशील देशों से उत्पन्न होता है, जिससे क्षेत्र की विशिष्ट आवश्यकताओं के अनुसार, लक्षित शमन कार्रवाई की आवश्यकता होती है।
- खाद्य मूल्य शृंखला से उत्सर्जन: भूमि उपयोग परिवर्तन सहित संपूर्ण खाद्य मूल्य शृंखला से उत्सर्जन को संबोधित करना महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आधे से अधिक उत्सर्जन कृषि स्तर से परे होते हैं।
बड़े अवसर रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ:
- अप्रयुक्त क्षमता: कृषि खाद्य क्षेत्र जलवायु कार्रवाई के लिये महत्त्वपूर्ण, लागत प्रभावी अवसर प्रदान करता है, जिसमें उन्नत भूमि प्रबंधन के माध्यम से वातावरण से कार्बन प्रग्रहण भी शामिल है।
- निवेश पर रिटर्न: वर्ष 2030 तक कृषि खाद्य उत्सर्जन को आधा करने के लिये आवश्यक वित्तीय परिव्यय से पर्याप्त रिटर्न मिलेगा, जो स्वास्थ्य, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर लाभकारी प्रभाव के साथ लागत से कहीं अधिक होगा।
- देशों और विश्व स्तर पर कार्रवाई के अवसर:
- उच्च आय वाले देशों की भूमिका: इन देशों को अपनी कृषि खाद्य ऊर्जा माँगों को कम करना चाहिये, वित्तपोषण और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के माध्यम से कम आय वाले देशों का समर्थन करना चाहिये तथा उच्च उत्सर्जन वाले खाद्य पदार्थों से दूर उपभोक्ता आहार को संशोधित करना चाहिये।
- मध्य-आय वाले देशों की भूमिका: ये देश बेहतर भूमि उपयोग प्रबंधन और कृषि पद्धतियों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण उत्सर्जन में कमी ला सकते हैं।
- निम्न आय वाले देशों की भूमिका: उच्च उत्सर्जन वाले बुनियादी ढाँचे के बोझ के बिना सतत् विकास पर ध्यान केंद्रित करें, उत्पादकता और लचीलेपन को बढ़ावा देने के लिये कृषि वानिकी जैसी रणनीतियों का लाभ उठाएँ।
- देश और वैश्विक स्तर पर कार्रवाई:
- निवेश और नीति पहल: कृषि खाद्य शमन में निजी क्षेत्र के निवेश को बढ़ाएँ, सब्सिडी का पुनर्वितरण करें तथा न्यून उत्सर्जन प्रौद्योगिकियों के उपयोग की नीतियों को लागू करें।
- नवाचार और संस्थागत समर्थन: उत्सर्जन डेटा के लिये डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करें तथा कृषि खाद्य प्रणाली को बदलने के लिये नई प्रौद्योगिकियों में निवेश करें, जिससे उचित परिवर्तन के लिये समावेशी हितधारक भागीदारी सुनिश्चित हो सके।
रिपोर्ट में भारत से संबंधित मुख्य बिंदु क्या हैं?
- वैश्विक कृषि खाद्य उत्सर्जन में भारत का योगदान:
- रिपोर्ट में भारत को चीन और ब्राज़ील के साथ कुल वार्षिक कृषि खाद्य प्रणाली उत्सर्जन के मामले में शीर्ष 3 देशों में से एक के रूप में पहचाना गया है।
- भारत में लागत प्रभावी शमन क्षमता:
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे देशों में कृषि में लगभग 80% तकनीकी शमन क्षमता अकेले लागत-बचत उपायों को अपनाकर प्राप्त की जा सकती है।
- यह भारत के लिये उत्सर्जन को कम करने के साथ-साथ कृषि उत्पादकता एवं आय में सुधार करने का एक बड़ा अवसर है।
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे देशों में कृषि में लगभग 80% तकनीकी शमन क्षमता अकेले लागत-बचत उपायों को अपनाकर प्राप्त की जा सकती है।
- भारत के लिए प्रमुख शमन विकल्प:
- भारत के लिये प्रमुख शमन विकल्पों में बेहतर पशुधन आहार (हरित धारा, एक एंटी-मिथेनोज़ेनिक चारा) और प्रजनन, उर्वरक प्रबंधन तथा जल सघन फसलों में बेहतर जल प्रबंधन शामिल हैं।
- भारत के कृषि क्षेत्र के लिये सीमांत उपशमन लागत वक्र से पता चलता है कि ये कुछ सबसे अधिक लागत प्रभावी उपाय हैं जिन्हें भारत वर्ष 2030 तक कृषि खाद्य उत्सर्जन में काफी हद तक कमी करने के लिये अपना सकता है।
- भारत को कृषि उत्पादन से मीथेन उत्सर्जन पर अंकुश लगाने की ज़रूरत है।
- धीरे-धीरे सिंचाई करने जैसी पद्धतियों को अपनाने तथा कम मीथेन उत्सर्जित करने वाली फसल किस्मों को वृद्धि करने से उत्सर्जन शमन के अवसर मिलते हैं।
- भारत में भोजन हानि और बर्बादी की दर उच्च है। खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 के अनुसार, भारतीय परिवार प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष 50 किलोग्राम खाद्य अपशिष्ट उत्पन्न करते हैं।
- भारत में खाद्य हानि और बर्बादी को कम करने के साथ-साथ अन्य उच्च प्रभाव वाले अवसरों से आर्थिक रूप से लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
- भारत के लिये प्रमुख शमन विकल्पों में बेहतर पशुधन आहार (हरित धारा, एक एंटी-मिथेनोज़ेनिक चारा) और प्रजनन, उर्वरक प्रबंधन तथा जल सघन फसलों में बेहतर जल प्रबंधन शामिल हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय समर्थन की आवश्यकता: भारत को अपनी कृषि-खाद्य शमन क्षमता का एहसास करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय और तकनीकी सहायता की आवश्यकता होगी।
आगे की राह
- निवेश: सरकारों और व्यवसायों को मिश्रित वित्त, कॉर्पोरेट जवाबदेही तथा विस्तारित कार्बन बाज़ारों के माध्यम से कृषि खाद्य में निजी जलवायु निवेश को जोखिम से मुक्त करना चाहिये।
- प्रोत्साहन: नीति निर्माताओं को कृषि खाद्य प्रणाली परिवर्तन जैसे हानिकारक सब्सिडी का पुन: उपयोग करना और नीति सुसंगतता सुनिश्चित करने में तेज़ी लाने के लिये उपायों को लागू करना चाहिये।
- जानकारी: डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग करके GHG निगरानी, रिपोर्टिंग और सत्यापन (MRV) प्रणालियों में सुधार करने से क्षेत्र के लिये जलवायु वित्त को अनलॉक करने में सहायता मिल सकती है।
- नवाचार: लागत प्रभावी शमन प्रौद्योगिकियों का विस्तार और अनुसंधान एवं विकास निवेश में वृद्धि से कृषि खाद्य प्रणालियों के भविष्य में परिवर्तन को बढ़ावा मिल सकता है।
- संस्थाएँ: अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे, राष्ट्रीय नीतियों और उपराष्ट्रीय पहलों को समन्वित तरीके से कृषि खाद्य शमन के अवसरों को सुविधाजनक बनाना चाहिये।
- समावेशन: परिवर्तन को हितधारक जुड़ाव, लाभ साझाकरण और सामाजिक सशक्तीकरण के माध्यम से छोटे किसानों जैसे कमज़ोर समूहों की रक्षा करके एक उचित परिवर्तन सुनिश्चित करना चाहिये।