Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

राजस्थान में लुभावनी-मुफ्त योजनाओं की राजनीति में छिपे अर्थशास्त्र को समझ रही जनता,

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राजस्थान में तमाम दलों ने जनता से कई लुभावनी योजनाएं की हैं। कांग्रेस और बीजेपी के चुनावी वादों को लेकर चर्चा गरम है। हालांकि राज्य की जनता इसे बखूबी समझ रही है। रोजगार कानून व्यवस्था और स्थानीय विकास के मुद्दे चुनावी पेंडुलम की दिशा तय करेंगे। लाभार्थियों में एक ऐसा भी वर्ग है जो मान रहा कि आखिर में इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष बोझ तो जनता को ही उठाना पड़ेगा।

राजस्थान की चुनावी फिजा में गहलोत सरकार की लुभावनी योजनाओं से लेकर कांग्रेस-भाजपा के मुफ्त चुनावी वादों की चर्चा गरम है, मगर दिलचस्प यह है कि जनता इस राजनीति में छिपे अर्थशास्त्र को भी बखूबी समझ रही है। बेशक बुनियादी जरूरतों के लिए भी संघर्ष कर रहे वर्ग को लुभावनी-मुफ्त योजनाएं आकर्षित कर रही हैं, मगर लाभार्थियों में एक ऐसा भी वर्ग है जो मान रहा कि आखिर में इसका प्रत्यक्ष या परोक्ष बोझ तो जनता को ही उठाना पड़ेगा।

मतदाता तय करेंगे उम्मीदवारों की किस्मत

पार्टियों की विधानसभा चुनाव में उम्मीदवारों की किस्मत लिखने वाले मतदाताओं के बीच मुफ्त के वादों को लेकर हो रही मिश्रित चर्चा से एक बात यह भी साफ है कि रोजगार, कानून व्यवस्था और स्थानीय विकास के मुद्दे चुनावी पेंडुलम की दिशा तय करेंगे। अलवर-दौसा राजमार्ग पर स्थित वसवा के ग्रामीण चौक पर सुबह नौ बजे दर्जन भर से अधिक बर्जुर्गों और युवाओं की टोली चाय की चुस्की के साथ स्थानीय उम्मीदवारों के मजबूत कमजोर पक्ष से लेकर उनकी पार्टियों की चुनावी सेहत का पोस्टमार्टम कर रही थी। इसी दरमियान राजेंद्र सैनी महंगाई की मार की चर्चा उठाते हुए गहलोत सरकार की चिरंजीवी स्कीम, महंगाई किट, मोबाइल से लेकर फ्री बिजली से उनके जैसे मेहनतकश परिवारों को राहत मिलने की बात कहते हैं।

राशन किट की गुणवत्ता संदेहास्पद

श्यामलाल मीणा और इमदाद हुसैन भी इसका समर्थन करते हैं, पर योगेश सिंह और भुवन अग्रवाल जैसे युवा कहते हैं कि योजनाओं का लाभ उन्हें भी मिल रहा, लेकिन इससे बहुत फर्क नहीं पड़ रहा। उलटे राशन किट में मिल रहे मिर्च-मसाले की गुणवत्ता भी संदेहास्पद है और कई बार खाने लायक नहीं होती। पर सरकारी खजाने से इस पर पैसा तो खर्च हो ही रहा है और अंत में इसका बोझ तो हमें ही उठाना है। वहीं, पार्टियों पर कटाक्ष करते हुए ओमप्रकाश सांवरिया कहते हैं कि चुनाव से कुछ महीने जनता का दुख-दर्द सरकारों को क्यों याद आता है, यह लोग भी अब समझते हैं और मुफ्त के वादों पर ही अपना वोट नहीं तय करेंगे।

दौसा के बूंटोली और कंवरपुरा गांवों में प्रचार के लिए आए प्रदेश की कांग्रेस सरकार के मंत्री मुरारी लाल मीणा से रूबरू होने के बाद चुनावी चर्चा में शामिल स्थानीय निवासी शंकर शर्मा भी कुछ इसी तरह की राय जाहिर करते हुए कहते हैं कि मुफ्त योजनाओं से कुछ दिन कटेंगे जीवन नहीं। वे कहते हैं कि उनका भाई जयपुर में परीक्षाओं की तैयारी बीते दो साल से कर रहा, मगर कई बार पेपर लीक हो गया और ऐसे में 10 हजार रुपए महीने का उसे खर्च भेजते रहना मुश्किल होता जा रहा है, इसलिए हमारे जैसे लोग तो पेपर लीक से लेकर कानून-व्यवस्था जैसे स्थानीय विकास और मुद्दों को तवज्जो देंगे न कि मुफ्त योजनाओं से प्रभावित होंगे।

मोबाइल की दुकान चलाने वाले शंकर कहते हैं कि चोरी और अपराध के डर से वे रोज बैग में भरकर मोबाइल घर ले जाते हैं और सुबह लाते हैं। दौसा से भाजपा प्रत्याशी शंकरलाल वर्मा के चुनाव कार्यालय में यहां के नागोटी मोड़ के मुस्लिम युवक शाहरुख खान भी कुछ ऐसी ही राय जाहिर करते हुए कहते हैं कि दौसा जिले से गहलोत सरकार में तीन मंत्री हैं, जिसमें मुरारी लाल के अलावा ममता भूपेश और प्रसादी लाल मीणा हैं मगर उनके इलाके में कोई काम नहीं हुआ, इसलिए उनके मुहल्ले के युवाओं की टीम भाजपा के शंकरलाल के लिए काम कर रही।

वहीं, दौसा कांग्रेस कार्यालय में जुटे समर्थकों की एक टोली में शामिल अरुण कहते हैं कि गहलोत सरकार की योजनाओं का सबसे ज्यादा फायदा गरीबों, एसी-एसटी वर्ग को हुआ है और जिले की पांचों सीट पर इसका असर होगा। हालांकि वे इस हकीकत को भी स्वीकार कर रहे कि इस बार दौसा में सचिन पायलट का फैक्टर शांत है। पिछले चुनाव में पायलट मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे इसलिए उनके पिता राजेश पायलट के समय से इस परंपरागत इलाके में कांग्रेस को इसका फायदा मिला था। मगर अबकी बार कांग्रेस के लिए यह फैक्टर नहीं है और इसलिए चुनावी चुनौती पिछली बार से कहीं ज्यादा है।

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