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राजस्थान में बाल विवाह

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चर्चा में क्यों?

राजस्थान उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि राज्य में कोई भी बाल विवाह न हो और यदि ऐसे विवाह होते हैं तो ग्राम प्रधान एवं पंचायत सदस्यों को ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा।

मुख्य बिंदु:

  • न्यायालय का आदेश 10 मई 2024 को अक्षय तृतीया त्योहार से पहले आया, क्योंकि राजस्थान में अक्षय तृतीया पर कई बाल विवाह संपन्न होते हैं।
  • न्यायालय ने बाल विवाह को रोकने के लिये न्यायालय के हस्तक्षेप की मांग करने वाली जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रन एलायंस की जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए कहा कि बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 के बावजूद राज्य में अभी भी बाल विवाह हो रहे हैं।
    • बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 की धारा 11 के तहत, यदि सरपंच और पंच लापरवाही से बाल विवाह को रोकने में विफल रहते हैं तो उन्हें ज़िम्मेदार ठहराया जाएगा।
  • राजस्थान पंचायती राज नियम, 1996 के अनुसार बाल विवाह को प्रतिबंधित करने का कर्त्तव्य सरपंच पर डाला गया है।

बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम, 2006 

  • इस अधिनियम ने बाल विवाह निषेध अधिनियम, 1929 का स्थान लिया जो ब्रिटिश काल के दौरान लागू किया गया था।
  • बाल विवाह में बच्चे का तात्पर्य 21 वर्ष से कम उम्र के पुरुष और 18 वर्ष से कम उम्र की महिला से है।

संबंधित पहल:

  • धनलक्ष्मी योजना: यह बीमा कवरेज के साथ एक बालिका के लिये सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है।
    • इसका उद्देश्य माता-पिता को चिकित्सा खर्चों के लिये बीमा कवरेज की पेशकश और लड़कियों की शिक्षा को प्रोत्साहित करके समाज में बाल विवाह की प्रथा का उन्मूलन करना भी है।
  • बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ (BBBP): इसका उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा के माध्यम से लड़कियों को सशक्त बनाना तथा बाल विवाह को हतोत्साहित करना है।

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