

चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्वविद्यालयों के एक समूह ने एक संयुक्त नोट लिखकर अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) से मानवाधिकारों से जुड़े पर्यावरणीय क्षरण से निपटने के लिये कदम उठाने का आग्रह किया है।
ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के अनुसार, सामान्यतः गंभीर पर्यावरणीय क्षति पहुँचाने वाली मानवीय गतिविधियाँ मानव अधिकारों का भी उल्लंघन करती हैं, जो कि नरसंहार जैसे मानवता के विरुद्ध अपराध के समान होती हैं।
यह परिप्रेक्ष्य स्वच्छ, स्वस्थ और सतत् पर्यावरण (R2hE) के अधिकार को महत्त्वपूर्ण मानते हुए अधिकार-आधारित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर ज़ोर देता है।
मानवाधिकार और पर्यावरण का संबंध:
मानवाधिकार:
संयुक्त राष्ट्र (UN) के अनुसार, मानवाधिकार नस्ल, लैंगिक, राष्ट्रीयता, जातीयता, भाषा, धर्म या किसी अन्य स्थिति की परवाह किये बिना सभी मनुष्यों के अंतर्निहित अधिकार हैं।
मानवाधिकार अंतर्निहित अधिकार होते हैं, जो हमारे पास हैं क्योंकि हम मनुष्य के रूप में मौज़ूद हैं, वे हमें किसी भी राज्य द्वारा प्रदान नहीं किये जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 10 दिसंबर, 1948 को पेरिस में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को सभी देशों और लोगों के लिये उपलब्धि के एक सामान्य मानक के रूप में अपनाया।
इसमें जीवन व स्वतंत्रता का अधिकार, अधीनता और यातना से स्वतंत्रता, राय और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, कार्य करने व शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार आदि शामिल हैं।
बिना किसी भेदभाव के प्रत्येक जीव इन अधिकारों का हकदार है।
मानवाधिकार के रूप में पर्यावरण की आवश्यकता:
सामान्य तौर पर मानवाधिकार की अवधारणा द्वितीय विश्व युद्ध के बाद उभरी, लेकिन उन मानवाधिकारों में से एक के रूप में स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार कभी भी प्राथमिकता नहीं थी।
स्वस्थ पर्यावरण जीवन के अधिकार का एक अनिवार्य पहलू है, न केवल मनुष्यों के लिये बल्कि ग्रह पर अन्य जानवरों के लिये भी।
स्वस्थ पर्यावरण के अधिकार का उल्लंघन संभवतः जीवन के मूल अधिकार का उल्लंघन है।
जब पर्यावरणीय अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो ग्रह और ग्रह के लोगों के समक्ष स्वास्थ्य एवं खुशहाली में कमी जैसी स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।
पर्यावरणीय क्षरण अंततः वर्तमान और भविष्य की पीढ़ियों के जीवन को खतरे में डाल सकता है।
स्वच्छ, स्वस्थ और सतत् पर्यावरण (R2hE) के अधिकार को मान्यता प्रदान करना:
R2hE एक मौलिक मानव अधिकार है, जिसमें सभी व्यक्तियों को ऐसे वातावरण में रहने का अधिकार शामिल है जो उनके स्वास्थ्य एवं हितों के अनुकूल है और उनकी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है।
यह अधिकार मानव कल्याण और पर्यावरण को बनाए रखने के बीच अंतर्संबंध को मान्यता प्रदान करता है।
स्वस्थ पर्यावरण से संबंधित चुनौतियाँ और चिंताएँ:
कानूनी बाधाएँ: अपराधियों को जवाबदेह ठहराना, चाहे वे राजनेता हों, कॉर्पोरेट संस्थाएँ हों, या आपराधिक सिंडिकेट हों या ऐसे व्यक्ति जो गंभीर कानूनी बाधाएँ उत्पन्न करते हों।
ड्रग्स और अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कार्यालय (UNODC) की एक रिपोर्ट में बेहतर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और दृढ़ राष्ट्रीय विधिक आवश्यकता पर ध्यान देते हुए इन चुनौतियों पर प्रकाश डाला गया है।
ह्यूमन राइट्स वॉच, 2020 की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि कैसे पर्यावरणीय विनाश हाशिये पर रहने वाले समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है, जिनके पास लड़ने की सीमित क्षमता होती है, जिससे उनके स्वास्थ्य, आजीविका और स्वच्छ जल तक पहुँच प्रभावित होती है।
पर्यावरणीय अपराधों की अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति: पर्यावरणीय प्रणालियों की परस्पर जुड़ी प्रकृति, प्राकृतिक संसाधनों में वैश्विक व्यापार एवं सीमा पार प्रदूषकों की आवाजाही के कारण पर्यावरणीय अपराधों के लिये एक अंतर्राष्ट्रीय आयाम को प्रदर्शित करती है।
पर्यावरणीय अपराध से मनी लॉन्ड्रिंग: पर्यावरणीय अपराध से मनी लॉन्ड्रिंग पर वित्तीय कार्रवाई कार्य बल (FATF), 2021 की रिपोर्ट में पाया गया कि अपराधी संसाधन आपूर्ति शृंखलाओं में कानूनी एवं अवैध वस्तुओं के साथ-साथ शीघ्रता से भुगतानों को प्राप्त करने वाली कंपनियों का उपयोग करके अत्यधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
अवैध वित्तीय प्रवाह: संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरणीय अपराधों के माध्यम से अर्जित धन का एक गंतव्य बन गया है (वर्ष 2023 में वित्तीय जवाबदेही एवं कॉर्पोरेट पारदर्शिता गठबंधन द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार) जो अवैध वित्तीय प्रवाह को रोकने तथा जलवायु संकट से निपटने के वैश्विक उपायों को कमज़ोर करता है।
भारत में स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार:
भारत में जीवन के अधिकार का विविध प्रकार से उपयोग किया गया है। इसमें अन्य बातों के साथ-साथ, एक प्रजाति के रूप में जीवित रहने का अधिकार, जीवन की गुणवत्ता, सम्मान के साथ जीने का अधिकार तथा आजीविका का अधिकार शामिल हैं। भारत में इसे संवैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में कहा गया है: ‘कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं के अतिरिक्त किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन तथा व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।’
सर्वोच्च न्यायालय ने इस नकारात्मक अधिकार का दो प्रकार से विस्तार किया।
सर्वप्रथम, व्यक्तिगत स्वतंत्रता को प्रभावित करने वाला कोई भी कानून उचित, निष्पक्ष और न्यायपूर्ण होना चाहिये।
दूसरा, न्यायालय ने अनुच्छेद 21 द्वारा निहित कई अव्यक्त स्वतंत्रताओं को मान्यता दी।
इसी दूसरी पद्धति से सर्वोच्च न्यायालय ने जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की व्याख्या करते हुए स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार को इसमें शामिल किया।