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भारत 2024 में 46वीं ATCM और 26वीं CEP की बैठक की मेज़बानी करेगा

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चर्चा में क्यों

भारत, केरल के कोच्चि में 20 से 30 मई 2024 तक, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MOES) तथा राष्ट्रीय ध्रुवीय और महासागर अनुसंधान केंद्र (National Centre for Polar and Ocean Research- NCPOR) के माध्यम से, 46वीं अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक (ATCM 46) एवं पर्यावरण संरक्षण समिति (CEP 26) की 26वीं बैठक की मेज़बानी करने के लिये तैयार है

यह अंटार्कटिका क्षेत्र में पर्यावरण संरक्षण तथा वैज्ञानिक सहयोग पर वैश्विक बातचीत के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

अंटार्कटिक संधि परामर्शदात्री बैठक (ATCM) क्या है?

  • परिचय:
    • ATCM, अंटार्कटिक संधि के मुख्य 12 देशों तथा अनुसंधान के माध्यम से अंटार्कटिका में रुचि दिखाने वाले अन्य देशों की एक वार्षिक बैठक है।
      • 1959 में हस्ताक्षरित अंटार्कटिक संधि ने अंटार्कटिका को शांतिपूर्ण उद्देश्यों, वैज्ञानिक सहयोग और पर्यावरण संरक्षण के लिये समर्पित क्षेत्र घोषित किया।
        • विगत कुछ वर्षों में इस संधि को व्यापक समर्थन मिला है तथा वर्तमान में 56 देश इसमें सम्मिलित हैं।
        • भारत वर्ष 1983 से अंटार्कटिक संधि के सलाहकार पक्ष के समर्थन में रहा है। वर्ष 2022 में भारत ने अंटार्कटिक संधि के प्रति अपनी प्रतिबद्धता सुनिश्चित करते हुए अंटार्कटिक अधिनियम लागू किया
    • वर्ष 1961 से 1994 तक ATCM की सामान्यतः पर प्रत्येक दो वर्ष में एक बार बैठक होती थी, परंतु 1994 के बाद से बैठकें वार्षिक रूप से होने लगी हैं।
  • 46वाँ ATCM एजेंडा:
    • इसमें अंटार्कटिका और उसके संसाधनों के स्थायी प्रबंधन के लिये रणनीतिक योजना, नीतियाँ, विधिक, जैवविविधता की खोज, निरीक्षण तथा सूचना डेटा का आदान-प्रदान, अनुसंधान, सहयोग, क्षमता निर्माण व सहयोग, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को संबोधित करना, पर्यटन ढाँचे का विकास एवं जागरूकता को बढ़ावा देना सम्मिलित है।
  • ATCM में भारत की भागीदारी:
    • भारत एक सलाहकार पक्ष के रूप में, अन्य सलाहकारी पक्षों के साथ निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग लेता है
    • अंटार्कटिक अनुसंधान स्टेशन:
      • स्थापना: 1983 में इसका पहला अंटार्कटिक अनुसंधान केंद्र, दक्षिण गंगोत्री था
        • मैत्री (1989) और भारती (2012) भारत द्वारा अंटार्कटिका में संचालित दो वर्षीय अनुसंधान स्टेशनों के नाम हैं।
      • अंटार्कटिका में भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा अभियान 1981 से प्रतिवर्ष आयोजित किये जाते रहे हैं।

पर्यावरण संरक्षण समिति (CEP) क्या है?

  • परिचय:
    • CEP की स्थापना वर्ष 1991 में अंटार्कटिक संधि (मैड्रिड प्रोटोकॉल) के पर्यावरण संरक्षण प्रोटोकॉल के तहत की गई थी
    • CEP अंटार्कटिका में पर्यावरण सुरक्षा और संरक्षण पर ATCM को सलाह देता है
    • अंटार्कटिका के सुभेद्द पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा और क्षेत्र में वैज्ञानिक अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिये अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के चल रहे प्रयासों में ATCM तथा CEP महत्त्वपूर्ण हैं।
    • अंटार्कटिक संधि प्रणाली के तहत प्रतिवर्ष आहूत की जाने वाली ये बैठकें अंटार्कटिका के महत्त्वपूर्ण पर्यावरण, वैज्ञानिक और शासन संबंधी मुद्दों को संबोधित करने के लिये अंटार्कटिक संधि सलाहकार दलों तथा अन्य हितधारकों के लिये एक मंच के रूप में कार्य करती हैं।
  • 26वीं CEP एजेंडा:
    • यह अंटार्कटिक पर्यावरण का मूल्यांकन करने, प्रभावों का आकलन करने, प्रबंधन एवं रिपोर्टिंग; जलवायु परिवर्तन का जवाब देने; समुद्री स्थानिक संरक्षण सहित क्षेत्र संरक्षण और प्रबंधन योजनाओं को विकसित करने; तथा अंटार्कटिक जैवविविधता के संरक्षण पर केंद्रित है।

1991 में अंटार्कटिक संधि (मैड्रिड प्रोटोकॉल) के लिये पर्यावरण संरक्षण पर प्रोटोकॉल:

  • प्रोटोकॉल अंटार्कटिका को “शांति और विज्ञान के लिये समर्पित प्राकृतिक रिज़र्व” के रूप में नामित करता है।
  • यह अंटार्कटिका में मानव गतिविधियों के लिये आधारभूत सिद्धांत निर्धारित करता है और वैज्ञानिक अनुसंधान को छोड़कर खनिज संसाधन गतिविधियों को प्रतिबंधित करता है
  • प्रोटोकॉल को केवल 2048 तक सभी सलाहकार दलों की सर्वसम्मत सहमति से संशोधित किया जा सकता है और खनिज संसाधन गतिविधियों पर प्रतिबंध को बाध्यकारी कानूनी व्यवस्था के बिना हटाया नहीं जा सकता है।
  • प्रोटोकॉल अंटार्कटिक पर्यावरण की रक्षा में संधि की प्रभावशीलता को बढ़ाने तथा सुधार करने हेतु अंटार्कटिक संधि और अनुशंसाओं पर आधारित है।

राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR):

  • NCPOR, MoES के तहत वर्ष 1998 में स्थापित एक स्वायत्त संस्थान है।
  • ध्रुवीय क्षेत्रों (आर्कटिक और अंटार्कटिक), हिमालय तथा दक्षिणी महासागर में भारत के वैज्ञानिक एवं रणनीतिक प्रयास गोवा में NCPOR के तहत संचालित होते हैं।

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