Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

भारत में सिकल सेल और उसका निदान

FavoriteLoadingAdd to favorites

विगत वर्ष भारत के प्रधानमंत्री ने मध्य प्रदेश के शहडोल से राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन का शुभारंभ किया था, जिसमें सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये खतरा बन चुके सिकल सेल रोग (SCD) को वर्ष 2047 तक समाप्त करने का महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य रखा गया था। SCD से भारत के जनजातीय और ग्रामीण समुदायों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

SCD संबंधी स्वास्थ्य सेवा में प्रगति के बावजूद कई क्षेत्रों में सिकल सेल रोग का निदान अभी भी काफी कम होने के साथ इसका प्रबंधन भी ठीक से नहीं किया जाता है, जिससे इसके खिलाफ अधिक समग्र कार्रवाई की आवश्यकता को बल मिलता है।

सिकलसेल रोग (SCD) क्या है?

  • परिचय:
    • सिकल सेल रोग (SCD) एक वंशानुगत हीमोग्लोबिन विकार है, जिसका कारण आनुवंशिक उत्परिवर्तन है, जिसके कारण लाल रक्त कोशिकाएंँ (RBCs) अपने सामान्य गोल आकार के बजाय दरांती या अर्धचंद्राकार आकार की हो जाती हैं।
    • सिकल सेल रोग से पीड़ित रोगियों का जीवनकाल काफी कम (औसतन लगभग 40 वर्ष) हो जाता है।
    • इनके जीवन की गुणवत्ता कई प्रकार की स्वास्थ्य जटिलताओं से प्रभावित होती है, जिसमें बार-बार होने वाले संक्रमण, लगातार दर्द, सूजन और प्रमुख अंगों की क्षति शामिल है।
    • SCD से पीड़ित व्यक्ति त्वरित और दीर्घकालिक दोनों प्रकार की जटिलताओं से पीड़ित होते हैं, जिनमें क्रमिक दर्द शामिल है, जिसे आमतौर पर वासो-ऑक्लूसिव क्राइसिस (VOC) एक्यूट चेस्ट सिंड्रोम (ACS) कहा जाता है इसमें हड्डी का एसेप्टिक नेक्रोसिस, प्लीहा, मस्तिष्क और गुर्दे का विकार, संक्रमण, स्ट्रोक और अंततः शरीर के प्रत्येक अंग का प्रभावित होना शामिल है।
  • कारण : 
    • SCD एक आनुवंशिक स्थिति है जो जन्म से ही मौजूद होती है। यह रोग बच्चे को माता-पिता से विरासत में मिलता है।
  • सामान्य प्रकार: 
    • किसी व्यक्ति में SCD का विशिष्ट प्रकार उसके माता-पिता से विरासत में मिले जीन पर निर्भर करता है। SCD से पीड़ित लोगों के जीन में असामान्य हीमोग्लोबिन के लिये निर्देश या कोड शामिल होते हैं।
  • HbSS­­­­: जिन लोगों में SCD का यह रूप होता है उन्हें दो जीन विरासत में मिलते हैं (एक माता से एक पिता से) जो हीमोग्लोबिन “S” के लिये कोडित होता है।
  • HbSC: जिन लोगों में SCD का यह रूप होता है उन्हें एक पेरेंट से हीमोग्लोबिन S जीन तथा दूसरे पेरेंट से “C” नामक एक अलग प्रकार के असामान्य हीमोग्लोबिन के लिये जीन विरासत में मिलता है। यह आमतौर पर SCD का सामान्य रूप होता है।
  • HbS बीटा थैलेसीमिया: SCD के इस रूप से पीड़ित लोगों को एक पेरेंट से हीमोग्लोबिन S जीन और दूसरे से बीटा थैलेसीमिया (हीमोग्लोबिन असामान्यता का एक अन्य प्रकार) संबंधी जीन विरासत में मिलता है।
  • HbSD, HbSE, and HbSO: जिन लोगों में SCD के ये रूप होता है उनमें एक हीमोग्लोबिन S जीन तथा अन्य असामान्य प्रकार के हीमोग्लोबिन (“D,” “E,” or “O”) के लिये कोडित जीन विरासत में मिलता है।
    • लक्षण: सिकल सेल रोग के लक्षण अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन इसके कुछ सामान्य लक्षण हैं-
      • क्रोनिक एनीमिया, जिसके कारण थकान, कमजोरी और पीलापन आ जाता है।
      • दर्दनाक स्थिति (जिसे सिकल सेल क्राइसिस के नाम से भी जाना जाता है) के तहत हड्डियों, छाती, पीठ, बाँहों और पैरों में अचानक एवं तीव्र दर्द होना।
      • शरीर एवं यौवन के विकास में बिलंब।
  • उपचार प्रक्रियाएँ:
    • रक्त आधान: इससे एनीमिया से राहत मिल सकती है और दर्द संबंधी संकट का खतरा कम हो सकता है।
    • हाइड्रोक्सीयूरिया: यह दवा दर्दनाक घटनाओं की आवृत्ति को कम करने और रोग की कुछ दीर्घकालिक जटिलताओं को रोकने में मदद कर सकती है।
    • जीन थेरेपी: इसका उपचार अस्थि मज्जा या स्टेम सेल प्रत्यारोपण जैसे क्लस्टर्ड रेगुलर इंटरस्पेस्ड शॉर्ट पैलिंड्रोमिक रिपीट्स (CRISPR) द्वारा भी किया जा सकता है ।

भारत में सिकल सेल रोग का प्रचलन:

  • सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता: स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने सिकल सेल रोग (SCD) को भारत की जनजातीय आबादी को असमान रूप से प्रभावित करने वाली दस प्रमुख स्वास्थ्य समस्याओं में से एक माना है।
  • वैश्विक भार: भारत विश्व में SCD का दूसरा सबसे बड़ा भागीदार है, जहाँ 1 मिलियन से अधिक लोग इस रोग से प्रभावित हैं।
  • SCD वाले बच्चों की जन्म दर: SCD वाले बच्चों के जन्मों की संख्या के मामले में भारत विश्व स्तर पर नाइजीरिया और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के बाद तीसरे स्थान पर है
  • वाहक दर: विभिन्न जनजातीय समूहों में सिकल सेल वाहकों की व्यापकता 1 से 40% तक है।
  • भौगोलिक वितरण :
    • SCD के अधिकांश रोगी आदिवासी क्षेत्र में केंद्रित हैं जो ओडिशा , झारखंड , छत्तीसगढ़ , मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से संबंधित हैं

भारत में SCD स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के समक्ष प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

  • कोई स्थायी इलाज नहीं: वर्तमान में सिकल सेल रोग का कोई स्थायी इलाज नहीं है ।
    • यद्यपि जीन थेरेपी पर चल रहा अनुसंधान आशाजनक है, फिर भी यह उपलब्ध होने के बाद भी अधिकांश प्रभावित आबादी के लिये वहनीय नहीं होगा।
  • निदान न हो पाना: इसका सटीक निदान प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि कई व्यक्ति इस स्थिति से जुड़े कलंक के कारण सहायता लेने में अनिच्छुक रहते हैं।
    • परिणामस्वरूप ये प्रायः पारंपरिक चिकित्सकों की ओर रुख करते हैं, जो अक्सर रोग का सही निदान नहीं कर पाते हैं।
  • अपर्याप्त स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना: कई ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में SCD के प्रबंधन के लिये विशेष स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं और प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मियों का अभाव है।
    • इससे समय पर हस्तक्षेप और प्रभावी रोग प्रबंधन में बाधा आती है।
  • अपर्याप्त रोकथाम कार्यक्रम: नवजात में इस रोग की शीघ्र पहचान जैसी पहल के अभाव के परिणामस्वरूप प्रारंभिक स्तर पर इसमें हस्तक्षेप नहीं हो पाता है।
    • जनजातीय क्षेत्रों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के प्रति अविश्वास है, जिसके कारण इनके टेस्ट की दर कम है।
  • दवाओं तक सीमित पहुँच: इसमें हाइड्रोक्सीयूरिया जैसी दवाएँ प्रभावी हैं, लेकिन इन दवाओं तक पहुँच असमान बनी रहती है।
    • भारत में सिकल सेल रोग से प्रभावित केवल 18% लोगों को ही नियमित उपचार मिल रहा है।
  • उच्च उपचार लागत: दवाओं की लागत, नियमित टेस्ट और अस्पताल में भर्ती होने की आवश्यकता के कारण SCD का दीर्घकालिक प्रबंधन कई परिवारों के लिये आर्थिक रूप से बोझिल हो सकता है।
    • CRISPR जैसे उपचारों की लागत 1-2 मिलियन डॉलर होती है तथा अस्थि मज्जा का दानकर्त्ता ढूँढना मुश्किल होता है।
  • अपर्याप्त अनुसंधान और डेटा: SCD पर सीमित अनुसंधान (विशेष रूप से भारत की विविध आबादी के संदर्भ में) से स्थानीय आवश्यकताओं के अनुरूप प्रभावी उपचार रणनीतियों और सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेपों के विकास में बाधा आती है।
  • सांस्कृतिक और सामाजिक बाधाएँ: SCD के प्रति सामाजिक दृष्टिकोण से व्यक्ति उपचार लेने या स्क्रीनिंग कार्यक्रमों में भाग लेने से हतोत्साहित होने के साथ समग्र स्वास्थ्य परिणाम प्रभावित हो सकते हैं।

SCD के संबंध में सरकार की क्या पहल हैं?

  • राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन:
    • इसका उद्देश्य सिकल सेल रोग (SCD) के सभी रोगियों की देखभाल को बेहतर बनाना तथा स्क्रीनिंग और जागरूकता अभियानों को शामिल करते हुए एक एकीकृत दृष्टिकोण के माध्यम से इस रोग की व्यापकता को कम करना है।
    • इसका वर्ष 2047 तक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता के रूप में सिकल सेल रोग को पूर्ण रूप से समाप्त करने का लक्ष्य है।
  • राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (NHM) 2013:
    • यह भारत सरकार का एक प्रमुख कार्यक्रम है, जिसमें रोग की रोकथाम और प्रबंधन के प्रावधान के साथ सिकल सेल एनीमिया जैसी आनुवंशिक विसंगतियों पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
    • NHM के अंतर्गत समर्पित कार्यक्रम जागरूकता बढ़ाने, इसकी शीघ्र पहचान की सुविधा प्रदान करने तथा सिकल सेल एनीमिया का समय पर उपचार सुनिश्चित करने पर केंद्रित हैं।
    • NHM के तहत “आवश्यक दवाओं की सूची” में SCD के उपचार हेतु हाइड्रोक्सीयूरिया जैसी दवाओं को शामिल किया गया है।
  • स्टेम सेल अनुसंधान हेतु राष्ट्रीय दिशानिर्देश, 2017:
    • इसके तहत SCD हेतु अस्थि मज्जा प्रत्यारोपण (BMT) को छोड़कर स्टेम सेल उपचारों के व्यावसायीकरण को नैदानिक ​​परीक्षणों तक सीमित किया गया है।
      • इसके तहत स्टेम कोशिकाओं में जीन एडिटिंग की अनुमति केवल इन-विट्रो अध्ययन हेतु प्रदान की गई।
    • जीन थेरेपी उत्पाद विकास और नैदानिक ​​परीक्षण 2019 के लिये राष्ट्रीय दिशानिर्देश: इसके तहत वंशानुगत आनुवंशिक विकारों के लिये जीन थेरेपी के विकास और नैदानिक ​​परीक्षण हेतु दिशानिर्देश प्रदान किये गए हैं।
      • भारत ने सिकल सेल एनीमिया के उपचार हेतु CRISPR तकनीक विकसित करने के लिये पाँच वर्षीय परियोजना को भी मंजूरी दी है।
  • मध्य प्रदेश राज्य हीमोग्लोबिनोपैथी मिशन:
    • इसका उद्देश्य रोग की जाँच और प्रबंधन में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना है।
  • दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016:
    • SCD को उन 21 विकलांगताओं में शामिल किया गया है, जिनके अंतर्गत मानक विकलांगता वाले व्यक्तियों एवं उच्च सहायता की आवश्यकता वाले व्यक्तियों के लिये उच्च शिक्षा में आरक्षण (न्यूनतम 5%), सरकारी नौकरियों में आरक्षण (न्यूनतम 4%) और भूमि आवंटन में आरक्षण (न्यूनतम 5%) जैसे लाभ प्रदान किये जाते हैं।
    • 6 से 18 वर्ष के बीच के मानक विकलांगता वाले प्रत्येक बच्चे के लिये निःशुल्क शिक्षा की गारंटी दी गई है।

नोट

  • हाल ही में अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने सिकल सेल रोग के लिये तैयार की गई दो जीन थेरेपी को मंजूरी दी है।
  • इन अनुमोदित चिकित्सा पद्धतियों में लाइफजेनिया और कैसगेवी शामिल हैं।
    • दोनों उपचारों को 12 वर्ष और उससे अधिक आयु के व्यक्तियों के लिये मंजूरी प्राप्त हुई है।
    • कैसगेवी को ब्रिटेन में भी मंजूरी मिल गई है। यह पहली CRISPR-आधारित थेरेपी है जिसे विनियामक अनुमोदन प्राप्त हुआ है।
    • लाइफजेनिया के तहत CRISPR का उपयोग नहीं होता है बल्कि रक्त स्टेम कोशिकाओं को बदलने के लिये इस प्रक्रिया में वायरल वेक्टर का उपयोग शामिल है।
  • इन दोनों उपचारों में रोगी की रक्त स्टेम कोशिकाओं को एकत्रित करना, उन्हें संशोधित करना तथा अस्थि मज्जा की क्षतिग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट करने के लिये कीमोथेरेपी देना शामिल है।
  • इसके बाद संशोधित कोशिकाओं को हेमाटोपोइएटिक स्टेम सेल प्रत्यारोपण के माध्यम से रोगी के शरीर में प्रविष्ट कराया जाना शामिल है।

इस रोग से प्रभावी ढंग से निपटने हेतु कौन से कदम उठाए जाने चाहिये?

  • सामाजिक धारणाओं में परिवर्तन: 
    • सिकल सेल रोग से प्रभावी ढंग से निपटने के लिये इससे संबंधित कलंक को कम करना और सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थाओं में विश्वास को बढ़ावा देना आवश्यक है।
    • भारत अपने पिछले स्वास्थ्य अभियानों (जैसे पोलियो और HIV के विरुद्ध अभियान) से प्राप्त सफल रणनीतियों का लाभ उठाकर लोगों में में जागरूकता बढ़ाने के साथ उन्हें शिक्षित कर सकता है।
  • शीघ्र पहचान एवं परीक्षण:
    • इसकी पहचान एवं परीक्षण में देरी होने के कारण नवजात शिशुओं की परीक्षण प्रणाली को मज़बूत बनाना निर्णायक हो सकता है।
    • आनुवंशिक परामर्श और परीक्षण कार्यक्रमों को सुदृढ़ और विस्तारित करना चाहिये।
    • तात्कालिक आवश्यकताओं के लिये हाइड्रोक्सीयूरिया जैसे बुनियादी उपचारों को प्राथमिकता देना आवश्यक है।
  • देखभाल सुविधाओं तक पहुँच बढ़ाना : 
    • स्थानीय स्वास्थ्य एवं कल्याण केंद्रों पर दवाएँ और अनुपालन सहायता आसानी से उपलब्ध होनी चाहिये।
    • जटिलताओं के प्रबंधन के लिये ज़िला या संभाग स्तर पर अंतःविषय उत्कृष्टता केंद्र स्थापित और संचालित किये जाने चाहिये।
  • कैच-अप टीकाकरण कार्यक्रम का कार्यान्वयन : 
    • यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि सभी ज्ञात रोगियों को अनुमोदित टीके प्राप्त हों और इसके लिये कैच-अप टीकाकरण कार्यक्रमों का कार्यान्वयन आवश्यक हो सकता है।
  • अनुसंधान और विकास:
    • इस दिशा में चल रहे चिकित्सा अनुसंधान के लिये अधिक संसाधन आवंटित करने चाहिये।
    • अधिक प्रभावी उपचार विकल्प एवं संभावित इलाज विकसित करने के लिये SCD के आनुवंशिक एवं आणविक पहलुओं के बारे में गहन जानकारी प्राप्त करनी चाहिये।
    • इसके लिये परोपकारी लोगों एवं नागरिक समाज के सदस्यों को केंद्र तथा राज्य सरकारों के साथ मिलकर प्रेरक की भूमिका निभानी चाहिये।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »
Scroll to Top