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भारत का MSME क्षेत्र

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सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (Micro, Small and Medium Enterprises- MSMEs) क्षेत्र भारत की अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख चालक बन गया है, जो कम पूंजी निवेश के साथ उद्यमशीलता को बढ़ावा देता है और रोज़गार के उल्लेखनीय अवसर सृजित करता है। यह देश के समावेशी औद्योगिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जहाँ सहायक इकाइयों के रूप में बड़े उद्योगों को पूरकता प्रदान करता है।

हालाँकि इस महत्त्वपूर्ण योगदान के बावजूद, MSME क्षेत्र वित्त तक पहुँच, प्रौद्योगिकी अंगीकरण और वैश्विक बाज़ार की प्रतिस्पर्द्धात्मकता सहित कई गंभीर चुनौतियों से जूझ रहा है।

MSMEs:

  • परिचय: सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम (MSMEs) ऐसे व्यवसाय हैं जो वस्तुओं एवं पण्यों (कमोडिटी) का उत्पादन, प्रसंस्करण और संरक्षण करते हैं।
    • इन्हें मोटे तौर पर विनिर्माण के लिये संयंत्र और मशीनरी या सेवा उद्यमों के लिये साधन में उनके निवेश के साथ-साथ उनके वार्षिक कारोबार के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
  • भारत में MSME विनियमन: वर्ष 2007 में लघु उद्योग मंत्रालय और कृषि एवं ग्रामीण उद्योग मंत्रालय का परस्पर विलय कर सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय का गठन किया गया।
    • यह मंत्रालय MSMEs को समर्थन देने और उनके विकास में सहायता प्रदान करने के लिये नीतियाँ विकसित करता है, कार्यक्रमों को सुगम बनाता है तथा कार्यान्वयन की निगरानी करता है।
    • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम विकास अधिनियम, 2006 ( Micro, Small, and Medium Enterprises Development Act of 2006) MSME क्षेत्र को प्रभावित करने वाले विभिन्न मुद्दों को संबोधित करता है, MSMEs के लिये एक राष्ट्रीय बोर्ड की स्थापना करता है, ‘उद्यम’ की अवधारणा को परिभाषित करता है और MSME की प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ाने के लिये केंद्र सरकार को सशक्त करता है।

 

भारत की विकास यात्रा में MSMEs का महत्त्व:

  • GDP में योगदान और रोज़गार सृजन: MSMEs वर्तमान में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में लगभग 30% का योगदान देते हैं, जो आर्थिक विकास को गति देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • इसके अलावा , MSMEs श्रम-प्रधान क्षेत्र हैं और विभिन्न क्षेत्रों में रोज़गार के अवसर पैदा करने में अत्यंत महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे वर्तमान में भारत में 11 करोड़ से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान कर रहे हैं।
    • उदाहरण के लिये, वस्त्र उद्योग—जिसमें लघु-स्तरीय इकाइयों का प्रभुत्व है, कताई, बुनाई और परिधान निर्माण जैसी गतिविधियों में बड़ी संख्या में कामगारों को रोज़गार प्रदान करता है।
  • विनिर्माण उत्पादन में योगदान: MSMEs देश के विनिर्माण उत्पादन में, विशेष रूप से खाद्य प्रसंस्करण, इंजीनियरिंग और रसायन जैसे क्षेत्रों में, महत्त्वपूर्ण योगदान देते हैं।
    • उदाहरण के लिये, आगरा का फुटवियर उद्योग (जहाँ मुख्य रूप से MSMEs सक्रिय हैं) भारत के फुटवियर निर्यात में 28% की हिस्सेदारी रखता है।
  • निर्यात संवर्द्धन: वर्तमान में MSMEs भारत के कुल निर्यात में लगभग 45% का योगदान करते हैं। उनकी विविध उत्पाद शृंखला, जो प्रायः विशिष्ट बाज़ारों (niche markets) की मांग को पूरा करती है, वैश्विक व्यापार क्षेत्र में भारत की उपस्थिति को सुदृढ़ करती है।
    • भारतीय हस्तशिल्प क्षेत्र (जहाँ छोटे पैमाने के कारीगरों एवं उद्यमों का प्रभुत्व है) का अपना एक वैश्विक बाज़ार है और यह देश के लिये उल्लेखनीय मात्रा में निर्यात राजस्व उत्पन्न करता है।
  • ग्रामीण औद्योगीकरण: MSMEs ग्रामीण औद्योगीकरण को आगे बढ़ाने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • नवाचार और उद्यमिता: MSME क्षेत्र नवाचार और उद्यमिता को बढ़ावा देता है, क्योंकि छोटे व्यवसायों के लिये बदलती बाज़ार स्थितियों के अनुकूल बनना और नए उत्पादों या सेवाओं को पेश करना प्रायः आसान होता है।
    • उदाहरण के लिये, भारत में स्टार्टअप पारितंत्र (विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप पारितंत्र), जो कि बड़े पैमाने पर MSMEs द्वारा संचालित है, ने ई-कॉमर्स और फिनटेक जैसे विभिन्न क्षेत्रों में कई नवोन्मेषी समाधानों को जन्म दिया है।

MSMEs से संबंधित भारत सरकार की प्रमुख पहलें:

  • प्रधानमंत्री मुद्रा योजना: यह गैर-कॉर्पोरेट, गैर-कृषि लघु/सूक्ष्म उद्यमों को 10 लाख रुपए तक का ऋण प्रदान करती है। इन ऋणों को मुद्रा ऋण (MUDRA loans) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • क्रेडिट गारंटी योजनाएँ: यह बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों के लिये जोखिम को कम करने हेतु ‘सूक्ष्म और लघु उद्यमों के लिये क्रेडिट गारंटी फंड ट्रस्ट’ (Credit Guarantee Fund Trust for Micro and Small Enterprises- CGTMSE) द्वारा पेश किया जाता है, जिससे MSMEs के लिये ऋण प्राप्त करना आसान हो जाता है।
  • MSME समाधान (MSME SAMADHAAN): यह सूक्ष्म और लघु उद्यम सुविधा परिषद (Micro and Small Enterprise Facilitation Council) द्वारा शासित एक ऑनलाइन विलंबित भुगतान निगरानी प्रणाली (Delayed Payment Monitoring System) है, जो पीड़ित MSMEs द्वारा विलंबित भुगतान पर संदर्भ प्राप्त करने या फाइलिंग पर विवादों का निपटान करती है। पीड़ित MSMEs ऑनलाइन माध्यम से अपने मामले दर्ज कर सकते हैं और अद्यतन स्थिति की जानकारी पा सकते हैं।
  • गवर्नमेंट ई-मार्केटप्लेस (GeM): यह ऑनलाइन प्लेटफॉर्म MSMEs से सार्वजनिक खरीद की सुविधा प्रदान करता है, जिससे उन्हें व्यापक बाज़ार तक पहुँच प्राप्त होती है।
  • उद्यम पंजीकरण (Udyam Registration): यह MSMEs के लिये सरकारी लाभ एवं योजनाओं का लाभ उठा सकने के लिये एक सरल ऑनलाइन पंजीकरण प्रक्रिया है।
  • चैंपियंस पोर्टल (CHAMPIONS Portal): यह एक ICT संचालित नियंत्रण कक्ष एवं प्रबंधन सूचना प्रणाली है जो आधुनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से उत्पादन और राष्ट्रीय सामर्थ्य बढ़ाने पर केंद्रित है।
    • इसका उद्देश्य भारतीय MSMEs को उनकी समस्याओं का समाधान करने और मार्गदर्शन, समर्थन एवं सहायता प्रदान करने के माध्यम से राष्ट्रीय एवं वैश्विक चैंपियन बनने में मदद करना है।

MSMEs से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ:

  • वित्त तक पर्याप्त पहुँच का अभाव: मुद्रा ऋण जैसी सरकारी योजनाओं के बावजूद, MSMEs के लिये ऋण प्राप्त करना अभी भी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।
    • पारंपरिक बैंक सीमित क्रेडिट हिस्ट्री एवं संपार्श्विक के कारण प्रायः उन्हें उच्च जोखिम उधारकर्ता के रूप में देखते हैं।
    • इससे विस्तार, नवाचार और कार्यशील पूंजी में निवेश करने की MSMEs की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • विलंबित भुगतान: बड़े उद्यमों या सरकारी एजेंसियों से विलंबित भुगतान का मुद्दा MSMEs के समक्ष विद्यमान प्रमुख चुनौतियों में से एक है।
    • इससे उनकी कार्यशील पूंजी और नकदी प्रवाह पर गंभीर दबाव पड़ सकता है, जिससे सुचारू परिचालन की उनकी क्षमता प्रभावित हो सकती है।
    • प्रदत्त वस्तुओं या सेवाओं के लिये भुगतान प्राप्त करने में देरी के कारण किसी छोटे आपूर्तिकर्ता या ठेकेदार के लिये गंभीर वित्तीय कठिनाइयाँ उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे उनके लिये व्यावसायिक गतिविधियों को बनाये रखना खतरे में पड़ सकता है।
  • सीमित कुशल कार्यबल: कई MSMEs को उन्नत मशीनरी के संचालन या नई तकनीकों के क्रियान्वयन के लिये आवश्यक कौशल रखने वाले कामगारों की खोज में संघर्ष करना पड़ता है। इससे अक्षमता, उत्पादन में देरी और उत्पाद की गुणवत्ता में कमी की स्थिति बन सकती है।
  • सीमित ब्रांडिंग और आउटरीच: MSMEs के पास प्रायः अपने उत्पादों का प्रभावी ढंग से विपणन करने और ब्रांड जागरूकता पैदा करने के लिये संसाधनों एवं विशेषज्ञता की कमी होती है। इससे बड़ी कंपनियों या स्थापित ब्रांडों के साथ, विशेष रूप से ऑनलाइन मार्केटप्लेस में, प्रतिस्पर्द्धा करना कठिन हो जाता है।
  • अवसंरचना संबंधी बाधाएँ: खराब सड़क संपर्क, अविश्वसनीय बिजली आपूर्ति और आधुनिक सुविधाओं तक पहुँच की कमी जैसी अपर्याप्त अवसंरचना MSMEs के संचालन एवं विकास में गंभीर बाधा उत्पन्न कर सकती है।
    • ग्रामीण क्षेत्र में अवस्थित किसी लघु खाद्य प्रसंस्करण इकाई को सड़क की बदहाल स्थिति के कारण अपने उत्पादों को बाज़ार तक पहुँचाने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है या अनियमित बिजली आपूर्ति के कारण उत्पादन कार्य में बार-बार व्यवधान का सामना करना पड़ सकता है।

आगे की राह 

  • MSME इनोवेशन हब: भौतिक या आभासी MSME इनोवेशन हब या नवाचार केंद्र की स्थापना करना। ये नवाचार केंद्र MSMEs को उद्योग विशेषज्ञों, शोधकर्ताओं और सलाहकारों से जोड़ने में मदद कर सकते हैं।
    • वे ज्ञान साझेदारी, नवोन्मेषी उत्पादों के सह-निर्माण और उन्नत प्रौद्योगिकियों या डिज़ाइन विशेषज्ञता तक पहुँच को सुगम बना सकते हैं।
    • इस नवाचार केंद्र में कोई MSME परिधान निर्माता किसी डिज़ाइन विशेषज्ञ के साथ सहयोग स्थापित कर एक नई वस्त्र शृंखला विकसित कर सकता है, जिससे उन्हें नवाचार को बढ़ावा देने और बाज़ार में भिन्न या विशिष्ट स्थिति प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
  • ब्लॉकचेन-संचालित स्मार्ट अनुबंध: ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी और स्मार्ट अनुबंधों का लाभ उठाने से MSMEs के लिये भुगतान चक्र में क्रांतिकारी बदलाव आ सकता है।
    • MSMEs और उनके ग्राहकों (बड़े उद्यम या सरकारी एजेंसियाँ) के बीच सुरक्षित एवं पारदर्शी लेनदेन की सुविधा के लिये ब्लॉकचेन-आधारित प्लेटफॉर्म विकसित किया जा सकता है।
  • AI-संचालित मेंटरशिप कार्यक्रम: AI-संचालित मेंटरशिप कार्यक्रम विकसित किया जाना चाहिये जो MSMEs को उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं और उद्योग डेटा के आधार पर व्यक्तिगत मार्गदर्शन एवं सलाह प्रदान करेगा।
    • इससे विशेष रूप से दूरदराज के स्थानों पर स्थित MSMEs के लिये मेंटरशिप तक पहुँच में विद्यमान अंतराल को दूर किया जा सकता है।
  • डिजिटल परिवर्तन को अपनाना: इस डिजिटल युग में MSMEs को प्रतिस्पर्द्धी बने रहने के लिये प्रौद्योगिकी को अपनाना होगा।
    • इसमें ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म का लाभ उठाना, डिजिटल मार्केटिंग रणनीतियों को अपनाना और उनके परिचालन में ऑटोमेशन एवं डिजिटलीकरण को लागू करना शामिल है।
    • कौशल उन्नयन कार्यक्रम, डिजिटल साक्षरता अभियान और प्रौद्योगिकी अंगीकरण के लिये प्रोत्साहन जैसी पहलें इस डिजिटल परिवर्तन को गति प्रदान कर सकती हैं।
  • सतत् उद्यमिता को बढ़ावा देना: MSMEs के बीच सतत/संवहनीय और सामाजिक रूप से उतरदायी व्यावसायिक अभ्यासों को प्रोत्साहित करने से पर्यावरण एवं समाज पर सकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
    • इसमें पर्यावरण अनुकूल उत्पादन विधियों को बढ़ावा देना, हरित उद्यमिता का समर्थन करना तथा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल हो सकता है।
  • वैश्विक बाज़ार में पहुँच बनाना: वैश्वीकरण के उदय के साथ, MSMEs को अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में पैठ बनाने के लिये तैयार रहना चाहिये।
    • निर्यात संवर्द्धन कार्यक्रम, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार सुविधा केंद्र और सफल निर्यातकों से मार्गदर्शन जैसी पहलें MSMEs को वैश्विक व्यापार की जटिलताओं से निपटने में मदद कर सकती हैं।

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