विश्व परमाणु खतरों के पुनः उभार का सामना कर रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध और चीन की मुखरता परमाणु निरोध रणनीतियों पर पुनर्विचार को प्रेरित कर रही है। यूरोप में नाटो (NATO) की परमाणु शक्ति को सशक्त करने और फ्राँस एवं ब्रिटेन के बीच सहयोग की बात ज़ोर पकड़ रही है। इसी तरह, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर मौजूद चिंताएँ अरब देशों को परमाणु क्षमता प्राप्त करने की ओर धकेल रही हैं। इस बीच, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और रोबोटिक हथियारों का उदय परमाणु निर्णय-निर्माण के स्वचालन के बारे में चिंताएँ बढ़ा रहा है।
भारत के लिये, जबकि पाकिस्तान का परमाणु शस्त्रागार चिंता का विषय बना हुआ है, चीन के तेज़ी से आगे बढ़ते परमाणु कार्यक्रम से एक बड़ा खतरा उभर रहा है। इन चुनौतियों का मुकाबला करने के लिये भारत को अपने परमाणु शस्त्रागार और असैन्य परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के आधुनिकीकरण को प्राथमिकता देनी चाहिये।
वैश्विक स्तर पर परमाणु परिदृश्य किस प्रकार विकसित हो रहा है?
- रूस-यूक्रेन युद्ध: यूक्रेन संघर्ष के दौरान रूस द्वारा परमाणु हथियारों के उपयोग की धमकी ने यूरोप की सुरक्षा की भावना को नष्ट कर दिया है।
- इससे नाटो के भीतर अपनी परमाणु शक्ति को सशक्त करने और फ्राँस एवं ब्रिटेन के बीच अपने परमाणु शस्त्रागार पर संभावित सहयोग के बारे में चर्चा शुरू हो गई है।
- रूस ने व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (Comprehensive Nuclear Test Ban Treaty- CTBT) के अनुसमर्थन से भी अपना हाथ पीछे खींच लिया है।
- चीन का परमाणु विस्तार: चीन तेज़ी से अपने परमाणु शस्त्रागार का विस्तार कर रहा है और अनुमान किया जाता है कि वर्ष 2035 तक इसमें दस गुना वृद्धि हो सकती है।
- परमाणु शस्त्रागार का यह विस्तार और एशिया में चीन के आक्रामक क्षेत्रीय दावे उसके पड़ोसी देशों को चिंतित कर रहे हैं।
- जापान और दक्षिण कोरिया जैसे देश अमेरिकी ‘परमाणु छत्र’ पर अपनी निर्भरता का पुनर्मूल्यांकन कर रहे हैं तथा अपने स्वयं के क्षमतावान परमाणु कार्यक्रमों पर विचार कर रहे हैं।
- ईरान का परमाणु कार्यक्रम: ईरान का जारी परमाणु कार्यक्रम, इसे रोकने के अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बावजूद, मध्य-पूर्व के लिये चिंता का विषय बना हुआ है।
- इससे क्षेत्रीय परमाणु हथियारों की दौड़ की आशंकाएँ बढ़ गई हैं, क्योंकि सऊदी अरब जैसे अरब देश कथित तौर पर ईरान की क्षमता का मुकाबला करने के लिये परमाणु क्षमता हासिल करने के विकल्प तलाश रहे हैं।
- उत्तर कोरिया की परमाणु गतिविधि: उत्तर कोरिया द्वारा बैलिस्टिक मिसाइलों और परमाणु हथियारों का निरंतर विकास एवं परीक्षण पूर्वी एशिया में एक प्रमुख सुरक्षा खतरा बना हुआ है।
- इससे दक्षिण कोरिया के साथ उसका तनाव बढ़ गया है तथा इस भूभाग में चिंताओं की वृद्धि हुई है।
- परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण: यहाँ तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस जैसी स्थापित परमाणु शक्तियाँ भी अपने परमाणु शस्त्रागार का आधुनिकीकरण कर रही हैं, जिससे संभावित हथियारों की दौड़ के बारे में चिंताएँ बढ़ रही हैं और परमाणु उपयोग की सीमा निम्नतर हो रही है।
- शस्त्र नियंत्रण संधियों का क्षरण: अमेरिका और रूस (तत्कालीन सोवियत संघ) के बीच मध्यम दूरी परमाणु शक्ति संधि (Intermediate-Range Nuclear Forces Treaty) जैसी प्रमुख शस्त्र नियंत्रण संधियों के विघटन ने परमाणु भंडार के प्रबंधन और परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों को बढ़ावा देने के अंतर्राष्ट्रीय ढाँचे को कमज़ोर कर दिया है।
परमाणु ऊर्जा और परमाणु हथियारों के उपयोग पर भारत का ऐतिहासिक दृष्टिकोण:
- 1948: भारत के परमाणु कार्यक्रम को गति देने के लिये होमी जे. भाभा की अध्यक्षता में परमाणु ऊर्जा आयोग (Atomic Energy Commission) की स्थापना की गई।
- 1956: भारत के पहले परमाणु रिएक्टर ‘अप्सरा’ के संचालन के साथ उसके परमाणु अनुसंधान कार्यक्रम की शुरुआत हुई।
- यह न केवल भारत में बल्कि पूरे एशिया में पहला परमाणु रिएक्टर था।
- 1968: भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (Nuclear Non-Proliferation Treaty- NPT) पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
- 1969: भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका और अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) के बीच समझौते के तहत भारत का पहला वाणिज्यिक परमाणु ऊर्जा संयंत्र (तारापुर परमाणु ऊर्जा स्टेशन) स्थापित किया गया।
- 1974: भारत ने पोखरण में अपना पहला भूमिगत परमाणु परीक्षण किया, जिसका कूट-नाम ‘स्माइलिंग बुद्धा’ रखा गया था और इसे आधिकारिक तौर पर शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण करार दिया गया।
- 1995-1996: भारत ने NPT के अनिश्चितकालीन विस्तार का विरोध किया और CTBT पर भी हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया।
- 1998: भारत ने पोखरण में कई परमाणु परीक्षण किये जिसे ‘ऑपरेशन शक्ति’ कूट-नाम दिया दिया गया था और स्वयं को एक परमाणु संपन्न देश घोषित किया।
- भारत किसी अन्य देश पर परमाणु हथियारों का ‘पहले प्रयोग न करने’ (No First Use- NFU) की स्व-घोषित प्रतिबद्धता रखता है।
- 2003: भारत और पाकिस्तान कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) पर युद्धविराम के लिये सहमत हुए, जिससे परमाणु संघर्ष का खतरा कम हो गया।
- 2005: संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच ऐतिहासिक असैन्य परमाणु समझौता संपन्न हुआ, जिससे परमाणु सहयोग और ईंधन आपूर्ति का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- 2008: परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (Nuclear Suppliers Group- NSG) ने भारत को छूट प्रदान की, जिससे उसे अपनी गैर-NPT स्थिति के बावजूद परमाणु व्यापार में संलग्न होने की अनुमति मिल गई।
- 2016: भारत को मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण व्यवस्था (Missile Technology Control Regime- MTCR) में प्रवेश मिल गया।
- 2019: भारत ने अपनी उपग्रह रोधी मिसाइल क्षमता का सफलतापूर्वक परीक्षण किया, जिससे निम्न-कक्षा के उपग्रहों को मार गिराने की उसकी क्षमता का प्रदर्शन हुआ।
- 2024: भारत ने तमिलनाडु के कलपक्कम में देश के प्रोटोटाइप फास्ट ब्रीडर रिएक्टर (PFBR) की कोर लोडिंग शुरू की, जिसने भारत के परमाणु कार्यक्रम में एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर चिह्नित हुआ।
- PFBR भारत की उस त्रि-चरणीय योजना का अंग है जिसके तहत वह अपने थोरियम भंडारों का उपयोग सतत परमाणु ऊर्जा के लिये करना चाहता है।
भारत ने NPT और CTBT पर हस्ताक्षर क्यों नहीं किये?
- परमाणु अप्रसार संधि (NPT): भारत NPT को भेदभावपूर्ण मानता है क्योंकि यह देशों को ‘परमाणु हथियार संपन्न राज्य’ (Nuclear Weapon States- NWS) और ‘गैर-परमाणु हथियार संपन्न राज्य’ (Non-Nuclear Weapon States- NNWS) के रूप में वर्गीकृत करता है।
- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्राँस और चीन जैसे NWS अपने परमाणु शस्त्रागार को बनाए रख सकते हैं, जबकि NNBS को परमाणु हथियारों की खोज छोड़ने के लिये बाध्य किया गया है।
- भारत इसे अनुचित मानता है तथा आत्मरक्षा के अपने अधिकार के लिये बाधाकारी समझता है।
- भारत सार्वभौमिक, गैर-भेदभावपूर्ण और सत्यापन-योग्य परमाणु निरस्त्रीकरण के लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्ध है, जिसकी NPT में स्पष्ट रूप से मांग नहीं की गई है।
- अमेरिका, रूस, ब्रिटेन, फ्राँस और चीन जैसे NWS अपने परमाणु शस्त्रागार को बनाए रख सकते हैं, जबकि NNBS को परमाणु हथियारों की खोज छोड़ने के लिये बाध्य किया गया है।
- व्यापक परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT): भारत संभावित खतरों (विशेष रूप से पड़ोसी पाकिस्तान और चीन की ओर से) के विरुद्ध एक विश्वसनीय न्यूनतम परमाणु निरोध बनाए रखने के महत्त्व पर बल देता है।
- CTBT—जो सैन्य या असैन्य उद्देश्यों के लिये सभी परमाणु परीक्षणों पर प्रतिबंध लगाता है, पर हस्ताक्षर करने से भारत की अपने परमाणु शस्त्रागार को आगे और विकसित करने तथा परिष्कृत करने की क्षमता सीमित हो सकती है।
भारत के समक्ष विद्यमान प्रमुख परमाणु खतरे
- पड़ोसी देशों से परमाणु खतरे: पाकिस्तान के पास अनुमानित रूप से 170 वारहेड्स के साथ एक बड़ा परमाणु शस्त्रागार है। कश्मीर और सीमा-पार आतंकवाद जैसे मुद्दों पर भारत और पाकिस्तान के बीच लंबे समय से जारी तनाव के कारण संघर्ष की स्थिति में परमाणु हमले का वास्तविक खतरा मौजूद है।
- चीन द्वारा अनेक मिसाइल साइलो के निर्माण और रोड-मोबाइल इंटर-कॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइलों (ICBMs) की तैनाती ने क्षेत्र में बदलते परमाणु संतुलन के संबंध में भारत की चिंताएँ बढ़ा दी हैं।
- कमान एवं नियंत्रण संबंधी कमज़ोरियाँ: परमाणु कमान एवं नियंत्रण प्रणालियों की सुरक्षा अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और किसी भी प्रकार की कमज़ोरी या अनधिकृत पहुँच या साइबर हमलों की संभावना के गंभीर परिणाम उत्पन्न हो सकते हैं।
- उदाहरण: भारत के कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र पर वर्ष 2019 में कथित साइबर हमला हुआ (हालाँकि आधिकारिक रूप से इससे इनकार किया गया), जिसने परमाणु क्षेत्र में सुदृढ़ साइबर सुरक्षा उपायों की आवश्यकता को उजागर किया।
- पर्यावरण एवं स्वास्थ्य संबंधी जोखिम: परमाणु दुर्घटनाओं, रेडियोधर्मी संदूषण और दीर्घकालिक पर्यावरणीय एवं स्वास्थ्य संबंधी प्रभावों से जुड़े जोखिम भारत के विस्तारित परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिये चुनौतियाँ उत्पन्न करते हैं।
- उदाहरण: जापान में वर्ष 2011 में सामने हुई फुकुशिमा परमाणु आपदा ने परमाणु प्रतिष्ठानों के लिये कड़े सुरक्षा प्रोटोकॉल और आपातकालीन तैयारी उपायों की आवश्यकता को रेखांकित किया।
- उभरती प्रौद्योगिकियाँ और क्षेत्रीय हथियार होड़: हाइपरसोनिक मिसाइलों, स्वायत्त हथियार प्रणालियों और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) का तेज़ी से विकास परमाणु निवारक रणनीतियों के लिये नई चुनौतियाँ खड़ी करता है।
- भारत द्वारा अपनी स्वयं की हाइपरसोनिक मिसाइल क्षमताओं का विकास, जिसका उद्देश्य निवारण/निरोध है, क्षेत्रीय हथियार होड़ में योगदान दे सकता है।
भारत को अपने परमाणु कार्यक्रम को सशक्त करने के लिये क्या उपाय करने चाहिये?
- उत्तरदायी परमाणु आधुनिकीकरण का अनुसरण: भारत को विश्वसनीय न्यूनतम निरोध बनाए रखते हुए उत्तरदायी परमाणु आधुनिकीकरण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
- इसमें उन्नत वितरण प्रणालियों का विकास करना, अपनी परमाणु शक्ति की उत्तरजीविता एवं विश्वसनीयता में सुधार करना और निर्देशित ऊर्जा प्रणालियों जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों की खोज करना शामिल है।
- परमाणु जोखिम न्यूनीकरण उपायों को बेहतर बनाना: भारत को पड़ोसी परमाणु-सशस्त्र राज्यों, विशेषकर पाकिस्तान और चीन के साथ परमाणु जोखिम न्यूनीकरण उपायों में सक्रिय रूप से संलग्न होना चाहिये।
- इसमें विश्वास-निर्माण उपाय, संकट संचार तंत्र और संकट के दौरान अनजाने में तनाव की वृद्धि या गलतफहमियों को रोकने के लिये संपन्न समझौते शामिल हो सकते हैं।
- उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों में निवेश: भारत को उन्नत परमाणु प्रौद्योगिकियों, जैसे थोरियम आधारित रिएक्टर, छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर और अगली पीढ़ी के परमाणु ऊर्जा संयंत्र डिज़ाइन में निवेश जारी रखना चाहिये।
- इससे पर्यावरण और सुरक्षा संबंधी जोखिमों को न्यूनतम करते हुए भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद मिल सकती है।
- असैन्य परमाणु सहयोग बढ़ाना: भारत को समान विचारधारा वाले देशों और संगठनों के साथ असैन्य परमाणु सहयोग बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये।
- इसमें संयुक्त अनुसंधान एवं विकास परियोजनाएँ, प्रौद्योगिकी साझाकरण और परमाणु अपशिष्ट प्रबंधन, परमाणु चिकित्सा एवं परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण अनुप्रयोग जैसे क्षेत्रों में सहयोग करना शामिल हो सकता है।
- वैश्विक परमाणु शासन पहलों में भागीदारी: भारत को वैश्विक परमाणु शासन पहलों, जैसे परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन (Nuclear Security Summits) और परमाणु आतंकवाद से निपटने के लिये वैश्विक पहल (Global Initiative to Combat Nuclear Terrorism- GICNT) में सक्रिय रूप से भाग लेना चाहिये।
- इससे परमाणु अप्रसार और परमाणु प्रौद्योगिकी के शांतिपूर्ण उपयोग के प्रति भारत की प्रतिबद्धता प्रदर्शित होगी।
अभ्यास प्रश्न: हाल के भू-राजनीतिक घटनाक्रमों के संदर्भ में उभरती वैश्विक परमाणु गतिशीलता पर चर्चा कीजिये। भारत को परमाणु चुनौतियों, विशेष रूप से पड़ोसी देशों द्वारा प्रस्तुत चुनौतियों, पर किस प्रकार प्रतिक्रिया देनी चाहिये?