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भारत का तकनीकी प्रक्षेपवक्र

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विश्व प्रौद्योगिकीय वर्चस्व के लिये एक अभूतपूर्व दौड़ का साक्षी बन रहा है, जहाँ अप्रैल 2024 तक दुनिया भर में 5.44 बिलियन लोग इंटरनेट का उपयोग कर रहे थे, जो विश्व की कुल आबादी के 67.1% के बराबर है।

प्रमुख अर्थव्यवस्थाएँ उनके भविष्य को आकार देने में उन्नत प्रौद्योगिकियों की महत्त्वपूर्ण भूमिका को चिह्नित कर रही हैं। चीन ने प्रौद्योगिकी एवं नवाचार को रणनीतिक उद्देश्य के रूप में प्राथमिकता देने में महत्त्वपूर्ण प्रगति की है, जैसा कि उसके ‘मेड इन चाइना 2025’ योजना में परिलक्षित होता है, जिसका उद्देश्य विदेशी प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता को कम करना है। दूसरी ओर, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप ने भी महत्त्वपूर्ण प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में अपनी नेतृत्वकारी स्थिति की पुनः प्राप्ति के लिये और इसे बनाए रखने के लिये अपने प्रयासों को तेज़ कर दिया है।

अपनी समृद्ध वैज्ञानिक विरासत और प्रौद्योगिकी-संचालित अर्थव्यवस्था की आकांक्षाओं के साथ भारत स्वयं को एक ऐसे चौराहे पर देख रहा है जहाँ उसे इस वैश्विक प्रौद्योगिकीय दौड़ में चुनौतियों और अवसरों दोनों का सामना करना पड़ रहा है।

भारत के प्रौद्योगिकी क्षेत्र की स्थिति:

  • वर्तमान परिदृश्य: भारतीय प्रौद्योगिकी उद्योग के अगले 5 वर्षों में 300-350 बिलियन अमेरिकी डॉलर के राजस्व स्तर तक पहुँचने की उम्मीद है (जो वर्तमान में 250 बिलियन अमेरिकी डॉलर के आँकड़े को पार कर गया है)।
    • भारत का दूरसंचार उद्योग विश्व का दूसरा सबसे बड़ा दूरसंचार उद्योग है जो 1.1 बिलियन उपभोक्ता आधार रखता है (फ़रवरी 2024 में)।
    • भारत विश्व में मोबाइल हैंडसेट के दूसरे सबसे बड़े विनिर्माता के रूप में भी उभरा है।
    • 1.25 लाख से अधिक स्टार्टअप और 110 यूनिकॉर्न के साथ भारत विश्व के तीसरे सबसे बड़े (अमेरिका और चीन के बाद) स्टार्टअप पारितंत्र के रूप में भी उभरा है।
  • भारत के तकनीकी विकास को गति देने वाले प्रमुख उप-क्षेत्र:
    • आईटी (IT) और बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग (BPO) सेवाएँ: भारत का सेवा निर्यात समग्र निर्यात वृद्धि को आगे ले जा रहा है।
      • IT एवं BPO सेवाएँ सबसे प्रमुख घटक हैं और भारत के सेवा निर्यात में इनका योगदान 60% से अधिक है।
    • ई-कॉमर्स: भारत का ई-कॉमर्स बाज़ार—जिसमें ऑनलाइन यात्रा, फूड डिलीवरी, हेल्थ-टेक जैसे विभिन्न क्षेत्र शामिल हैं, तेज़ी से विकास कर रहा है।
      • बड़े उपभोक्ता आधार, विविध जनसांख्यिकी, लागत-प्रभावी डिजिटल अवसंरचना और सुदृढ़ आपूर्ति शृंखला पारितंत्र जैसे कारकों से प्रेरित इस क्षेत्र के वर्ष 2030 तक 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
    • फिनटेक और डिजिटल फाइनेंस: भारत में विश्व के सबसे तेज़ी से विकास करते वित्तीय प्रौद्योगिकी बाज़ारों में से एक मौजूद है।
      • डिजिटल भुगतान—विशेष रूप से यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI) के माध्यम से, इस क्षेत्र में विकास का प्राथमिक चालक है।
      • ‘इंवेस्ट इंडिया’ के अनुसार, भारतीय फिनटेक बाज़ार के वर्ष 2025 तक 150 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है।
      • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, जून 2023 में कुल डिजिटल भुगतान 2.4 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर दर्ज किया गया।
    • एडटेक: एडटेक (Edtech) क्षेत्र ने उल्लेखनीय प्रगति की है (विशेष रूप से कोविड-19 महामारी के दौरान), जहाँ विभिन्न कंपनियाँ ऑनलाइन शिक्षण प्लेटफॉर्म, वर्चुअल क्लासरूम और नवीन शैक्षिक समाधान पेश कर रही हैं।
      • भारत ई-लर्निंग के लिये अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा बाज़ार है जिसका बाज़ार आकार 6 बिलियन अमेरिकी डॉलर का है और वर्ष 2025 तक इसके 10 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
    • क्लीनटेक और नवीकरणीय ऊर्जा: सौर एवं पवन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर भारत के केंद्रित ध्यान ने क्लीनटेक (Cleantech) या स्वच्छ प्रौद्योगिकी उप-क्षेत्र में विकास को बढ़ावा दिया है।
      • विभिन्न कंपनियाँ ऊर्जा भंडारण, स्मार्ट ग्रिड और ऊर्जा दक्षता प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में नवोन्मेषी समाधान विकसित कर रही हैं, जो देश के संवहनीयता लक्ष्यों में योगदान दे रही हैं।
      • कुल नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता वृद्धि के मामले में भारत वैश्विक स्तर पर चौथे स्थान पर है। भारत ने गैर-जीवाश्म ईंधन से 40% स्थापित विद्युत क्षमता का अपना लक्ष्य नवंबर 2021 में ही प्राप्त कर लिया है।
    • अंतरिक्ष क्षेत्र: भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में 2%-3% का योगदान देता है।
      • भारत वर्ष 2030 तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में लगभग 10% की वृहत हिस्सेदारी प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है।
      • चंद्रयान-3 और आदित्य L1 जैसे हाल के सफल मिशनों के साथ भारत अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी क्षेत्र में अग्रणी देश के रूप में उभर रहा है जो वर्ष 2025 तक अपने स्वयं के अंतरिक्ष स्टेशन के निर्माण का लक्ष्य रखता है।

प्रौद्योगिकीय विकास को बढ़ावा देने वाली प्रमुख सरकारी पहलें:

  • भारत का सेमीकंडक्टर मिशन: इसे वर्ष 2021 में लॉन्च किया गया, जो देश में संवहनीय सेमीकंडक्टर एवं डिस्प्ले पारितंत्र के विकास के लिये व्यापक कार्यक्रम का अंग है।
  • इंडिया-एआई मिशन (IndiaAI Mission): 10,300 करोड़ रुपए से अधिक के आवंटन के साथ इंडिया-एआई मिशन का उद्देश्य AI कंप्यूटिंग अवसंरचना, नवाचार केंद्रों, डेटासेट प्लेटफॉर्मों, एप्लीकेशन विकास, फ्यूचर-स्किल्स (FutureSkills) कार्यक्रमों एवं स्टार्टअप वित्तपोषण जैसी पहलों के माध्यम से भारत के AI पारितंत्र को सुदृढ़ करना है। यह AI नेतृत्व को बढ़ावा देने, इसकी नैतिक तैनाती करने और AI लाभों का लोकतंत्रीकरण करने का लक्ष्य रखता है।
  • डिजिलॉकर (DigiLocker): डिजिलॉकर एक निःशुल्क, सुरक्षित, ऑनलाइन प्लेटफॉर्म है जो उपयोगकर्ताओं को क्लाउड में दस्तावेज़ों एवं प्रमाणपत्रों को संग्रहित, साझा एवं सत्यापित करने की अनुमति देता है। यह भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ कार्यक्रम की एक प्रमुख पहल है, जिसका उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त समाज बनाना है।
  • यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (UPI): यह भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम (NPCI) द्वारा विकसित एक रियल-टाइम भुगतान प्रणाली है।
    • यह व्यक्तियों को अपने स्मार्टफोन का उपयोग कर बैंक खातों के बीच त्वरित रूप से धन हस्तांतरित करने में सक्षम बनाता है।
  • मिशन ऑन एडवांस्ड एंड हाई-इम्पैक्ट रिसर्च (MAHIR): वर्ष 2023 में शुरू की गई यह पहल बिजली क्षेत्र पर केंद्रित है।
    • इसका उद्देश्य स्वच्छ ऊर्जा समाधान और स्मार्ट ग्रिड जैसी अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के अनुसंधान, विकास एवं प्रदर्शन में तेज़ी लाना है।
  • PLI योजनाएँ:
  • सरकार ने सेमीकंडक्टर और इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण जैसे विभिन्न क्षेत्रों के लिये उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजनाएँ शुरू की हैं।
  • राष्ट्रीय सुपरकंप्यूटिंग मिशन: यह देश की कंप्यूटिंग शक्ति को बढ़ावा देने का अपनी तरह का पहला प्रयास है।
    • यह विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) और इलेक्ट्रॉनिकी एवं सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के संयुक्त मार्गदर्शन में संचालित है तथा इसका क्रियान्वयन सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC), पुणे तथा भारतीय विज्ञान संस्थान (IISc), बेंगलुरु द्वारा किया जाता है।

भारत में प्रौद्योगिकी से संबंधित प्रमुख चुनौतियाँ: 

  • ‘डिजिटल डिवाइड’ (Digital Divide): यद्यपि भारत में इंटरनेट उपयोगकर्ताओं का एक वृहत एवं वृद्धिशील आधार मौजूद है, लेकिन शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के बीच एक उल्लेखनीय अंतराल पाया जाता है।
    • ‘ऑक्सफैम’ (Oxfam) की ‘इंडिया इनइक्वलिटी रिपोर्ट’ 2022 ने असमानता पर डिजिटल डिवाइड के प्रभाव पर प्रकाश डाला है, जहाँ उजागर हुआ है कि भारत के लगभग 70% लोगों के पास उपयुक्त सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तक पहुँच का अभाव है।
    • भारतनेट (BharatNet) जैसे प्रयासों के बावजूद ग्रामीण कनेक्टिविटी अभी भी बदतर स्थिति रखती है, जहाँ केवल 2.7% गरीब परिवारों के पास कंप्यूटर और 8.9% के पास इंटरनेट की सुविधा है।
  • प्रासंगिक कौशल का अभाव: भारतीय IT क्षेत्र अपनी IT सेवाओं के लिये प्रसिद्ध है, लेकिन AI, साइबर सुरक्षा और डेटा साइंस जैसे क्षेत्रों में विशेष कौशल की मांग बढ़ रही है।
    • भारतीय शिक्षा प्रणाली में वर्तमान में विशिष्ट कौशल का अभाव पाया जाता है, जिसके कारण प्रासंगिक प्रौद्योगिकीय विशेषज्ञता से संपन्न कुशल पेशेवरों की कमी है।
  • अनुसंधान एवं विकास (R&D) पर पर्याप्त ध्यान का अभाव: विकसित देशों की तुलना में भारत R&D पर अपेक्षाकृत कम निवेश करता है (GDP का मात्र 0.64%)।
    • इससे नवाचार और अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के घरेलू उत्पादन में बाधा उत्पन्न होती है।
  • साइबर सुरक्षा संबंधी खतरे: जैसे-जैसे भारत अधिकाधिक प्रौद्योगिकी को एकीकृत कर रहा है, साइबर सुरक्षा संबंधी खतरे भी बढ़ रहे हैं। प्रौद्योगिकी की उन्नति के साथ साइबर धोखाधड़ी, ऑनलाइन वित्तीय धोखाधड़ी और डीप फेक महत्त्वपूर्ण चुनौतियों के रूप में उभरे हैं जो नैतिक एवं सुरक्षा संबंधी चिंताएँ बढ़ा रहे हैं। इसका निर्णय-निर्माण प्रक्रिया पर उल्लेखनीय प्रभाव पड़ सकता है।
    • वर्ष 2022 में भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया टीम (CERT-In) ने देश भर में रिपोर्ट की गई 1.3 मिलियन से अधिक सुरक्षा घटनाओं पर प्रतिक्रिया दी।
    • वर्ष 2023 में ‘एम्स दिल्ली रैनसमवेयर अटैक’ जैसी घटनाएँ इस मुद्दे की संवेदनशीलता को उजागर करती हैं।
  • AI पर व्यापक विनियमन का अभाव: भारत में वर्तमान में AI को विनियमित करने के लिये कोई एकल, व्यापक कानून मौजूद नहीं है।
    • विभिन्न पहलें और दिशानिर्देश मौजूद हैं, लेकिन वे कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं हैं। यह व्यवसायों के लिये अनिश्चितता पैदा करता है और संभावित जोखिमों के बारे में चिंताएँ बढ़ाता है।

आगे की राह

  • ‘क्वांटम लीप एलायंस’ (Quantum Leap Alliances): भारत क्वांटम कंप्यूटिंग जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों की दौड़ में आगे बने रहने के लिये विभिन्न अग्रणी देशों और अनुसंधान संस्थानों के साथ रणनीतिक ‘क्वांटम लीप एलायंस’ का निर्माण कर सकता है।
    • ये गठबंधन अगली पीढ़ी की क्वांटम प्रौद्योगिकियों को विकसित करने के लिये संयुक्त अनुसंधान परियोजनाओं, ज्ञान साझाकरण और सहयोगात्मक प्रयासों को सुविधाजनक बना सकते हैं।
  • AI-संचालित ग्रामीण उद्यमिता केंद्र (AI-powered Rural Entrepreneurship Hubs): भारत ग्रामीण क्षेत्रों में AI-संचालित कियोस्क स्थापित कर सकता है। स्थानीय भाषा इंटरफेस और AI असिस्टेंट से सुसज्जित ये कियोस्क इच्छुक ग्रामीण उद्यमियों को प्रशिक्षण, संसाधन एवं परामर्श प्रदान कर सकते हैं। वे ऑनलाइन मार्केटप्लेस, लॉजिस्टिक्स प्रदाताओं और वित्तपोषण विकल्पों से उनका संपर्क बना सकते हैं।
  • मूनशॉट इनोवेशन लैब्स (Moonshot Innovation Labs): भारत अमेरिका के DARPA (Defense Advanced Research Projects Agency) की तर्ज पर ‘मूनशॉट लैब्स’ का एक नेटवर्क स्थापित कर सकता है।
    • ये प्रयोगशालाएँ अगली पीढ़ी की सामग्रियों और मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस जैसे क्षेत्रों में उच्च-जोखिम, उच्च-प्रतिफल अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करेंगी।
  • भविष्य के लिये ‘टेक्नोस्किलिंग’: भारत को उभरते प्रौद्योगिकी रुझानों और बाज़ार की मांगों के अनुरूप पाठ्यक्रम को सहयोगात्मक रूप से अभिकल्पित एवं कार्यान्वित करने के लिये उद्योग जगत, शिक्षा क्षेत्र एवं सरकार के बीच ‘टेक्नोस्किल्स एलायंस’ (TechnoSkills Alliances) को बढ़ावा देने की आवश्यकता है।
    • ‘इमर्सिव लर्निंग एनवायरनमेंट’ (Immersive Learning Environments) के निर्माण की भी आवश्यकता है जो व्यावहारिक प्रशिक्षण के साथ वर्चुअल एवं ऑगमेंटेड रियलिटी सिमुलेशन (virtual and augmented reality simulations) को संयुक्त करती है। इससे अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी का अनुभवात्मक अधिगम संभव किया जा सकता है।
    • इसके साथ ही, लचीले एवं मॉड्यूलर लर्निंग पैथवे का सृजन कर ‘कौशल गतिशीलता’ (Skill Mobility) को बढ़ावा दिया जाना चाहिये जो व्यक्तियों को नए कौशल प्राप्त करने और उनके करियर के दौरान विभिन्न प्रौद्योगिकीय डोमेन में संक्रमण करने की अनुमति देता है।
  • साइबर सुरक्षा को बढ़ाना: भारत को अधिक प्रबल साइबर प्रत्यास्थता ढाँचे (Cyber Resilience Framework) को लागू करने की आवश्यकता है जो खतरे की अग्रसक्रिय खुफिया सूचना, उन्नत सुरक्षा उपायों और विभिन्न महत्त्वपूर्ण अवसंरचना एवं प्रमुख क्षेत्रों में घटना प्रतिक्रिया क्षमताओं को एकीकृत करे।
    • इसके अतिरिक्त, प्रौद्योगिकी विकास और तैनाती के आरंभिक चरणों से ही साइबर सुरक्षा विचारों को एकीकृत कर ‘सिक्योर-बाय-डिज़ाइन’ (Secure-by-Design) के सिद्धांतों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये।

अभ्यास प्रश्न: आर्थिक विकास, सामाजिक परिवर्तन और वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता पर भारत की प्रौद्योगिकीय प्रगति के प्रभाव का आकलन कीजिये। भारत में संवहनीय प्रौद्योगिकी-आधारित विकास के लिये रणनीतिक उपायों को बताइये।

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