Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

भारत-आसियान: साझेदारी में विकास

FavoriteLoadingAdd to favorites

भारतीय प्रधानमंत्री की आगामी सिंगापुर यात्रा भारत-सिंगापुर साझेदारी के विकास में एक महत्त्वपूर्ण क्षण है। भारत और सिंगापुर लगभग आधा दर्जन समझौतों पर हस्ताक्षर करने वाले हैं, जिसमें सेमीकंडक्टर पारितंत्र के निर्माण पर एक महत्त्वपूर्ण समझौता भी शामिल है। हाल ही में भारत-सिंगापुर मंत्रिस्तरीय गोलमेज सम्मेलन के दौरान चिह्नित किये गए नए क्षेत्रों या ‘न्यू एंकर्स’ (new anchors) पर आगे बढ़ते हुए दोनों देशों का द्विपक्षीय संबंध एक बड़ी छलांग के लिये तैयार है। आसियान (ASEAN) में भारत के सबसे बड़े व्यापार भागीदार के रूप में और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के एक प्रमुख स्रोत के रूप में सिंगापुर की स्थिति इस संबंध के आर्थिक महत्त्व को रेखांकित करती है।

सिंगापुर के साथ भारत की संलग्नता आसियान के साथ अपने व्यापक संबंधों को सुदृढ़ करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है। चूँकि भारत अपनी ‘एक्ट ईस्ट’ नीति को गहन करना चाहता है और हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपने प्रभाव का विस्तार करना चाहता है, एक प्रमुख आसियान सदस्य के रूप में सिंगापुर के साथ संबंधों को बढ़ाना रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है।

 

भारत के लिये आसियान का क्या महत्त्व है?

  • ऐतिहासिक संदर्भ और साझेदारी का स्तर:
    • वर्ष 1992: भारत आसियान का ‘क्षेत्रीय वार्ता साझेदार’ बना, जिससे औपचारिक सहभागिता की शुरुआत हुई।
    • वर्ष 1995: भारत को ‘वार्ता साझेदार’ के स्तर पर पदोन्नत किया गया, जहाँ विदेश मंत्री स्तर तक वार्ता की वृद्धि हुई।
    • वर्ष 2002: संबंधों को शिखर सम्मेलन स्तर तक उन्नत किया गया और पहला शिखर सम्मेलन (2002) आयोजित किया गया।
    • वर्ष 2012: नई दिल्ली में आयोजित 20-वर्षीय स्मारक शिखर सम्मेलन (Commemorative Summit) में वार्ता साझेदारी को रणनीतिक साझेदारी के रूप में उन्नत किया गया।
    • वर्ष 2018: 25-वर्षीय स्मारक शिखर सम्मेलन के दौरान भारत और आसियान समुद्री क्षेत्र में सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने के लिये सहमत हुए।
    • वर्ष 2022: आसियान-भारत संबंधों की 30वीं वर्षगाँठ मनाई गई, जिसे आसियान-भारत मैत्री वर्ष के रूप में नामित किया गया। इसका समापन रणनीतिक साझेदारी को व्यापक रणनीतिक साझेदारी में उन्नत करने के रूप में हुआ।
  • आर्थिक महाशक्ति – दक्षिण-पूर्व एशियाई बाज़ारों का प्रवेश-द्वार: आसियान भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण आर्थिक ब्लॉक का प्रतिनिधित्व करता है, जो 3.2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के संयुक्त सकल घरेलू उत्पाद के साथ 650 मिलियन से अधिक लोगों के बाज़ार तक पहुँच प्रदान करता है।
    • आसियान-भारत मुक्त व्यापार क्षेत्र ने वर्ष 2021-2022 में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 110.39 बिलियन अमेरिकी डॉलर कर दिया है।
    • आसियान भारत के प्रमुख व्यापार साझेदारों में से एक है, जो भारत के वैश्विक व्यापार में 11% हिस्सेदारी रखता है।
    • सिंगापुर आसियान में भारत का सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है और विश्व भर में छठा सबसे बड़ा व्यापार साझेदार है। पिछले वित्त वर्ष के दौरान यह 11.77 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ भारत के लिये FDI का सबसे बड़ा स्रोत था।
  • रणनीतिक प्रतिसंतुलन: बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों के संदर्भ में, विशेष रूप से चीन के साथ, आसियान भारत के लिये एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार के रूप में कार्य करता है।
    • भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ नीति और आसियान का ‘आउटलुक ऑन दी इंडो-पैसिफिक’ क्षेत्रीय स्थिरता के लिये पूरक दृष्टिकोण साझा करते हैं।
    • वर्ष 2022 में भारत-आसियान संबंधों को व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक उन्नत करना इस संरेखण को रेखांकित करता है।
    • पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन (East Asia Summit) और आसियान क्षेत्रीय मंच (ASEAN Regional Forum) जैसे मंचों पर आसियान के साथ भारत की सहभागिता, क्षेत्र में एक समग्र सुरक्षा प्रदाता के रूप में अपनी भूमिका को मुखर करने, चीन के प्रभाव का मुक़ाबला करने और नियम-आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये एक आधार प्रदान करती है।
  • संपर्क उत्प्रेरक: आसियान भारत के उन्नत क्षेत्रीय कनेक्टिविटी के दृष्टिकोण में केंद्रीय स्थिति रखता है।
    • भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमाhttps://indianepicenter.com/र्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट जैसी परियोजनाएँ, देरी के बावजूद, दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ भौतिक एकीकरण के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती हैं।
    • डिजिटल कनेक्टिविटी संबंधी पहलें, जिसमें 5G और साइबर सुरक्षा सहयोग पर हाल में केंद्रित ध्यान भी शामिल है, इन संबंधों को और मज़बूत बनाती है।
    • ये कनेक्टिविटी परियोजनाएँ केवल आधारभूत संरचना होने तक सीमित नहीं हैं, बल्कि एक एकीकृत आर्थिक एवं सांस्कृतिक अवसर के निर्माण की दिशा में रणनीतिक निवेश भी हैं जो इस क्षेत्र में चीन की बेल्ट एंड रोड पहल (BRI) को टक्कर दे सकते हैं।
  • सांस्कृतिक संगम: भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के बीच गहरे ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संबंध भारत को ‘सॉफ्ट पावर’ कूटनीति के लिये एक अद्वितीय आधार प्रदान करते हैं।
    • आसियान-भारत आर्टिस्ट कैंप और संगीत महोत्सव जैसी पहलें इस साझा विरासत का उत्सव मनाती हैं।
    • वर्ष 2022 में आसियान-भारत विश्वविद्यालय नेटवर्क की स्थापना से शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान को और मज़बूती मिलेगी।
    • ये सांस्कृतिक संबंध ऐसे युग में और भी महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं जहाँ सार्वजनिक कूटनीति अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है, जिससे भारत को इस क्षेत्र में सद्भावना और प्रभाव के प्रसार में मदद मिलती है।
  • प्रौद्योगिकीय तालमेल: आसियान की तेज़ी से डिजिटल होती अर्थव्यवस्थाएँ भारत के IT क्षेत्र और स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र के लिये महत्त्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती हैं।
    • पहले आसियान-भारत स्टार्ट-अप फेस्टिवल ने फिनटेक, ई-कॉमर्स और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) जैसे क्षेत्रों में सहयोग की संभावनाओं को प्रदर्शित किया है।
    • आसियान-भारत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विकास कोष को हाल ही में 5 मिलियन अमेरिकी डॉलर की सहायता दी गई है, जो अत्याधुनिक क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान को समर्थन प्रदान करेगा।
  • समुद्री सुरक्षा सहयोग: आसियान भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति में, विशेष रूप से हिंद-प्रशांत क्षेत्र के संदर्भ में, एक प्रमुख भागीदार है।
    • आसियान क्षेत्रीय मंच और विस्तारित आसियान समुद्री मंच जैसे निकायों में समुद्री डकैती, अवैध मत्स्यग्रहण आपदा प्रबंधन जैसे मुद्दों पर सहयोग भारत के ‘सागर’ (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) सिद्धांत के अनुरूप है।
    • पहला आसियान-भारत समुद्री अभ्यास मई 2023 में दक्षिण चीन सागर में आयोजित किया गया।
  • ऊर्जा सुरक्षा और संवहनीयता: आसियान के ऊर्जा संपन्न सदस्य देश भारत के लिये अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने के अवसर प्रदान करते हैं, जो इसकी बढ़ती अर्थव्यवस्था के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • इसके साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा (विशेष रूप से सौर ऊर्जा) के क्षेत्र में भारत की विशेषज्ञता आसियान के संवहनीयता लक्ष्यों के अनुरूप है।
    • हाल ही में नवीकरणीय ऊर्जा पर आयोजित आसियान-भारत उच्चस्तरीय सम्मेलन इस तालमेल का उदाहरण है।
    • सेमीकंडक्टर, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों एवं सतत् विकास अभ्यासों में सहयोग, भारत और आसियान दोनों को ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में अग्रणी स्थान प्रदान करता है।
  • आपूर्ति शृंखला प्रत्यास्थता: उत्तर-कोविड युग में, आसियान भारत के प्रत्यास्थी आपूर्ति शृंखलाओं के निर्माण के प्रयासों में एक प्रमुख भागीदार के रूप में उभरा है।
    • कोविड महामारी ने वैश्विक आपूर्ति नेटवर्क की कमज़ोरियों को उजागर कर दिया है, जिससे एकल स्रोतों पर अत्यधिक निर्भरता पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता अनुभव की गई है।
    • फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोबाइल जैसे क्षेत्रों में भारत-आसियान सहयोग विविध एवं सुदृढ़ आपूर्ति शृंखला के निर्माण के लिये महत्त्वपूर्ण है।
    • यह सहयोग भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी वाली आपूर्ति शृंखला प्रत्यास्थता पहल (Supply Chain Resilience Initiative- SCRI) जैसी व्यापक पहलों के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य चीन पर निर्भरता कम करना और अधिक सुरक्षित क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाएँ स्थापित करना है।

भारत-आसियान संबंधों से संबद्ध प्रमुख चिंताएँ क्या हैं?

  • व्यापार असंतुलन: आसियान के साथ भारत के व्यापार घाटे में वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2010 में मुक्त व्यापार समझौते (FTA) के कार्यान्वयन के बाद से दोगुने से भी अधिक हो गया है।
    • यह असंतुलन विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट है।
    • उदाहरण के लिये, वित्त वर्ष 2022-2023 में आसियान देशों को भारत का निर्यात 44.04 बिलियन अमेरिकी डॉलर का था, जबकि आयात इससे पर्याप्त अधिक रहा, जो इसी अवधि के दौरान 87.58 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया।
  • अवसंरचना संपर्क: यद्यपि भारत और आसियान ने डिजिटल एवं सांस्कृतिक संपर्क में प्रगति की है, लेकिन भौतिक अवसंरचना संपर्क अभी भी अविकसित हैं।
    • एक प्रमुख परियोजना के रूप में भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के क्रियान्वयन में व्यापक विलंब हुआ है और अभी तक पूरा नहीं किया जा सका है।
    • इसी प्रकार, कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट प्रोजेक्ट को भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है।
    • इन विलंबों से व्यापार प्रवाह और लोगों के बीच संपर्क में बाधा उत्पन्न होती है।
  • भू-राजनीतिक संतुलन – ‘चाइना फैक्टर’ से निपटना: दक्षिण-पूर्व एशिया में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत-आसियान संबंधों के लिये एक जटिल चुनौती पेश करता है।
    • आसियान के सदस्य देश तेज़ी से चीन के आर्थिक प्रलोभनों और सुरक्षा चिंताओं के बीच फँसते जा रहे हैं।
    • ‘क्वाड’(Quad) गठबंधन के माध्यम से चीन के प्रतिकार हेतु स्वयं को स्थापित करने के भारत के प्रयासों को आसियान देशों की ओर से मिश्रित प्रतिक्रिया ही मिली है, जहाँ वे चीन या भारत का खुला पक्ष लेने से कतराते हैं।
    • दक्षिण चीन सागर का विवाद इस समीकरण को और जटिल बना देता है।
      • उदाहरण के लिये, वियतनाम और फिलीपींस ने दक्षिण चीन सागर में भारत की अधिक सक्रिय भूमिका का स्वागत किया है, जबकि अन्य आसियान देश इस मामले में अधिक सतर्क बने हुए हैं।
  • नियामक बाधाएँ: भारत और आसियान देशों के बीच नियामक मानकों एवं प्रक्रियाओं में भिन्नता व्यापार और निवेश के लिये महत्त्वपूर्ण नॉन-टैरिफ बाधाएँ उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण के लिये, भिन्न खाद्य सुरक्षा मानक और प्रमाणन प्रक्रियाएँ कृषि व्यापार में बाधा डालती हैं।
    • संव्यावसायिक सेवाओं में पारस्परिक मान्यता समझौतों का अभाव कुशल संव्यावसायिकों/पेशेवरों की आवाजाही को सीमित करता है।

भारत को आसियान के साथ व्यापार घाटे का सामना क्यों करना पड़ रहा है?

  • टैरिफ विषमता: आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (AIFTA) के कारण टैरिफ में विषमता आई है, जिससे भारत को नुकसान हो रहा है।
    • जबकि भारत ने आसियान देशों के लिये अपनी टैरिफ लाइनों के लगभग 74% टैरिफ में कमी की है, वहीं आसियान देशों ने अपनी टैरिफ लाइनों के केवल लगभग 56% के लिये ही ऐसा किया है।
    • यह असंतुलन विशेष रूप से कृषि और वस्त्र जैसे क्षेत्रों में अधिक स्पष्ट है।
    • इस टैरिफ संरचना ने आसियान से आयात में वृद्धि में योगदान दिया है, जिससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ गया है (जो वर्ष 2021-22 में 25.76 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया)।
  • नॉन-टैरिफ बाधाएँ: आसियान देश विभिन्न नॉन-टैरिफ बाधाएँ (NTBs) आरोपित करते हैं जो भारतीय निर्यात में बाधा डालती हैं।
    • इनमें जटिल विनियामक आवश्यकताएँ, कठोर स्वच्छता एवं पादप स्वच्छता संबंधी उपाय और व्यापार में तकनीकी बाधाएँ शामिल हैं।
    • उदाहरण के लिये, भारतीय दवा निर्यात को कई आसियान देशों में लंबी एवं महंगी पंजीकरण प्रक्रियाओं का सामना करना पड़ता है।
    • इसी प्रकार, भारतीय कृषि उत्पाद प्रायः आसियान के सख्त खाद्य सुरक्षा मानकों को पूरा करने में संघर्ष करते हैं।
  • विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता: कई आसियान देशों, विशेषकर वियतनाम और थाईलैंड ने भारत की तुलना में उच्च उत्पादकता स्तर के साथ सुदृढ़ विनिर्माण क्षेत्र विकसित किया है।
    • इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में यह व्यापक रूप से प्रकट है।
    • उदाहरण के लिये, वियतनाम को भारत का निर्यात 5.47 बिलियन अमेरिकी डॉलर (7.43% की गिरावट के साथ) मूल्य का है, जबकि वियतनाम से भारतीय आयात 9.34 बिलियन अमेरिकी डॉलर (6.26% की वृद्धि के साथ) तक पहुँच गया है।
    • भारत की अपेक्षाकृत निम्न श्रम उत्पादकता और उच्च लॉजिस्टिक्स लागत (GDP का 14%, जबकि आसियान में 5-10%) इस प्रतिस्पर्द्धात्मकता अंतराल में योगदान करते हैं।
  • क्षेत्रीय मूल्य शृंखला से एकीकरण की कमी: आसियान-केंद्रित क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं में भारत का सीमित एकीकरण व्यापार असंतुलन को बढ़ाता है।
    • आसियान देशों ने वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं में, विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और ऑटोमोटिव क्षेत्रों में, स्वयं को प्रमुख केंद्रों के रूप में सफलतापूर्वक स्थापित किया है।
    • उदाहरण के लिये, थाईलैंड जापानी कार निर्माताओं के लिये एक प्रमुख ऑटो पार्ट्स आपूर्तिकर्ता है, जबकि वियतनाम इलेक्ट्रॉनिक्स आपूर्ति शृंखला में एक महत्त्वपूर्ण कड़ी है।
    • इन क्षेत्रीय उत्पादन नेटवर्कों में भारत की भागीदारी सीमित बनी हुई है, जिससे आसियान और उससे आगे मूल्य-वर्द्धित निर्यात करने की इसकी क्षमता कम हो रही है।
  • सेवा व्यापार में बाधाएँ: जबकि भारत को सेवाओं में (IT एवं ITeS में) तुलनात्मक लाभ प्राप्त है, भाषा और अन्य कारकों के कारण आसियान में सेवा व्यापार की बाधाएँ भारत की वस्तु व्यापार घाटे की भरपाई करने की क्षमता को सीमित करती हैं।
    • पेशेवरों की आवाजाही पर नियंत्रण, योग्यताओं के लिये पारस्परिक मान्यता समझौतों का अभाव और कुछ आसियान देशों में डेटा स्थानीयकरण की आवश्यकताएँ भारत के सेवा निर्यात में बाधा उत्पन्न करती हैं।
  • ‘रूल्स ऑफ ओरिजिन’ का दुरुपयोग: AIFTA में उद्गम क्षेत्र नियम (Rules of Origin) के कमज़ोर होने से गैर-आसियान देशों, विशेष रूप से चीन को, भारत में अपने निर्यात को आसियान के माध्यम से भेजने की अनुमति मिल जाती है, जिससे भारत का व्यापार घाटा बढ़ता है।
    • यह ‘व्यापार विचलन’ (trade deflection) विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में समस्याजनक रहा है।
    • यह मुद्दा न केवल आसियान के साथ व्यापार घाटे को बढ़ाता है, बल्कि चीन के आयात पर निर्भरता कम करने के भारत के प्रयासों को भी कमज़ोर करता है।

भारत-आसियान संबंधों को बढ़ाने के लिये क्या उपाय किये जा सकते हैं?

  • आसियान-भारत मुक्त व्यापार समझौते (AIFTA) का पुनर्निर्धारण: भारत को व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिये AIFTA की व्यापक समीक्षा और पुनर्निर्धारण पर बल देना चाहिये।
    • इसमें अधिक संतुलित टैरिफ कटौतियों के लिये समझौता वार्ता करना शामिल हो सकता है, विशेष रूप से फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र एवं IT सेवाओं जैसे क्षेत्रों में जहाँ भारत को प्रतिस्पर्द्धात्मक लाभ प्राप्त है।
    • उदाहरण के लिये, भारत संवेदनशील कृषि उत्पादों पर टैरिफ में चरणबद्ध कटौती का प्रस्ताव कर सकता है, जबकि अपने सेवा क्षेत्र के लिये अधिक बाज़ार पहुँच की मांग कर सकता है।
  • अवसंरचनात्मक संपर्क बढ़ाना: भारत को भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग जैसी प्रमुख कनेक्टिविटी परियोजनाओं को पूरा करने में तेज़ी लाने और इसे कंबोडिया, लाओस एवं वियतनाम तक विस्तारित करने की आवश्यकता है।
    • भारत आसियान के कनेक्टिविटी मास्टर प्लान 2025 के अनुरूप एक व्यापक कनेक्टिविटी मास्टर प्लान का प्रस्ताव कर सकता है।
    • इसमें डिजिटल कनेक्टिविटी पहल शामिल हो सकती है, जैसे कि प्रस्तावित भारत-आसियान सबमेरीन केबल परियोजना, जो डिजिटल व्यापार और सेवाओं को व्यापक बढ़ावा देगी।
    • इन परियोजनाओं के समय पर पूरा होने से मध्यम अवधि में भारत-आसियान व्यापार में संभावित रूप से 20-30% की वृद्धि हो सकती है।
  • विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता को बढ़ावा देना: विनिर्माण प्रतिस्पर्द्धात्मकता के अंतराल को दूर करने के लिये भारत को क्षेत्र-विशिष्ट हस्तक्षेपों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये।
    • उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना, जिसने इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे क्षेत्रों में आशाजनक परिणाम दिखाए हैं, को आसियान व्यापार से संबंधित अधिकाधिक उद्योगों को इसमें शामिल करने के लिये विस्तारित किया जाना चाहिये।
    • भारत आसियान देशों के साथ संयुक्त विनिर्माण पहल का भी प्रस्ताव कर सकता है जहाँ एक-दूसरे की क्षमता का लाभ उठाया जाए।
    • उदाहरण के लिये, एक संयुक्त भारत-वियतनाम इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण केंद्र भारत की सॉफ्टवेयर क्षमताओं को वियतनाम की हार्डवेयर विशेषज्ञता के साथ संयुक्त कर सकता है।
      • ऐसी पहल से भारत को क्षेत्रीय मूल्य शृंखलाओं में बेहतर एकीकरण में मदद मिल सकती है।
  • ऊर्जा सहयोग बढ़ाना: भारत को ऊर्जा सुरक्षा, स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण और प्रौद्योगिकी सहयोग पर ध्यान केंद्रित करते हुए एक व्यापक ‘आसियान-भारत ऊर्जा साझेदारी’ का प्रस्ताव करना चाहिये।
    • इसमें नवीकरणीय ऊर्जा प्रौद्योगिकियों, सेमीकंडक्टर्स का संयुक्त अन्वेषण एवं विकास तथा ऊर्जा दक्षता पर ज्ञान साझाकरण शामिल हो सकता है।
    • हरित हाइड्रोजन और ऊर्जा भंडारण जैसे उभरते क्षेत्रों पर भी संयुक्त अनुसंधान शुरू किया जा सकता है। ऊर्जा सहयोग में वृद्धि से भारत को अपने ऊर्जा स्रोतों में विविधता लाने में मदद मिल सकती है, साथ ही आसियान के सतत विकास उद्देश्यों का समर्थन भी किया जा सकता है।
  • रणनीतिक एवं रक्षा सहयोग बढ़ाना: भारत को आसियान के साथ अपने रणनीतिक सहयोग को, विशेष रूप से समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में, और गहरा करना चाहिये।
    • भारत आसियान देशों को समुद्री क्षेत्र जागरूकता, समुद्री डकैती विरोधी अभियान तथा मानवीय सहायता एवं आपदा राहत (HADR) जैसे क्षेत्रों में क्षमता निर्माण में सहायता प्रदान कर सकता है।
    • सूचना संलयन केंद्र – हिंद महासागर क्षेत्र (IFC-IOR) का उपयोग समुद्री सहयोग बढ़ाने के लिये किया जा सकता है।
    • भारत को सिंगापुर और इंडोनेशिया जैसे तकनीकी रूप से उन्नत आसियान देशों के साथ संयुक्त रक्षा उत्पादन पहल पर भी विचार करना चाहिये, जिससे अंतर-संचालनीयता (interoperability) और रणनीतिक भरोसे की वृद्धि हो सकती है।
  • जलवायु परिवर्तन और संवहनीयता पर समन्वय: भारत को जलवायु परिवर्तन शमन, नवीकरणीय ऊर्जा और सतत विकास पर ध्यान केंद्रित करते हुए ‘आसियान-भारत हरित साझेदारी’ का प्रस्ताव करना चाहिये।
    • इसमें सौर ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण शामिल हो सकता है, जहाँ भारत ने अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) जैसी पहलों के माध्यम से महत्त्वपूर्ण प्रगति की है।
    • जलवायु परिवर्तन के प्रति साझा संवेदनशीलता को देखते हुए, जलवायु-प्रत्यास्थी कृषि पर संयुक्त अनुसंधान परियोजनाएँ भी शुरू की जा सकती हैं।
    • ऐसी पहलें भारत को साझा पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने में एक ज़िम्मेदार भागीदार के रूप में स्थापित कर सकती हैं।

भारत आसियान के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने के लिये सिंगापुर का लाभ किस प्रकार उठा सकता है?

  • आर्थिक प्रवेश-द्वार: सिंगापुर की रणनीतिक अवस्थिति और एक प्रमुख वित्तीय केंद्र के रूप में इसकी स्थिति इसे आसियान क्षेत्र में भारत के लिये एक आदर्श आर्थिक प्रवेश-द्वार बनाती है। इस संबंध में भारत निम्नलिखित प्रयास कर सकता है:
    • भारतीय कंपनियों, विशेष रूप से स्टार्ट-अप और प्रौद्योगिकी फर्मों के लिये दक्षिण-पूर्व एशियाई बाज़ारों में विस्तार हेतु सिंगापुर को आधार के रूप में उपयोग करना
    • अन्य आसियान देशों के साथ व्यापार और निवेश प्रवाह को बढ़ावा देने के लिये व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (CCEA) का लाभ उठाना
    • आसियान में डिजिटल वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिये UPI-PayNow लिंकेज जैसे सफल प्रयासों का लाभ उठाते हुए सिंगापुर के साथ सहयोग करना
  • समुद्री सुरक्षा सहयोग: मलक्का जलडमरूमध्य में सिंगापुर की रणनीतिक अवस्थिति और क्षेत्रीय समुद्री सुरक्षा में भारत की भूमिका के प्रति उसके समर्थन को देखते हुए, भारत निम्नलिखित प्रयास कर सकता है:
    • SIMBEX जैसे संयुक्त नौसैनिक अभ्यासों का विस्तार कर अन्य आसियान देशों को भी इसमें शामिल करना, जिससे क्षेत्रीय समुद्री सहयोग में वृद्धि हो
    • आसियान के भीतर समुद्री सुरक्षा पहलों, जैसे कि आसियान-भारत समुद्री अभ्यास, को बढ़ावा देने के लिये सिंगापुर के साथ सहयोग करना
  • प्रौद्योगिकी और नवाचार केंद्र: सिंगापुर का नवाचार और प्रौद्योगिकी पर बल भारत की डिजिटल महत्वाकांक्षाओं के साथ सुसंगत है। इस दिशा में भारत निम्नलिखित प्रयास कर सकता है:
    • ब्लॉकचेन, AI और साइबर सुरक्षा जैसी उभरती प्रौद्योगिकियों में संयुक्त पहल विकसित करने के लिये सिंगापुर के साथ साझेदारी करना, जिसे अन्य आसियान देशों तक विस्तारित किया जा सकता है
    • भारतीय तकनीकी नवाचारों को आसियान में लागू करने से पहले सिंगापुर को परीक्षण केंद्र के रूप में उपयोग करना
  • आपूर्ति शृंखला प्रत्यास्थता: कोविड-19 महामारी के दौरान स्थापित हुए सहयोग के आधार पर भारत निम्नलिखित प्रयास कर सकता है:
    • अन्य आसियान देशों के साथ संपर्क बढ़ाने के लिये लॉजिस्टिक्स और आपूर्ति शृंखला प्रबंधन में सिंगापुर की विशेषज्ञता का उपयोग करना
    • संकट के दौरान पूरे क्षेत्र में आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं के मुक्त प्रवाह को सुनिश्चित करने के लिये विभिन्न पहलों पर सहयोग स्थापित करना

निष्कर्ष:

आसियान के साथ भारत की रणनीतिक संलग्नता, जो सिंगापुर के साथ विकसित हो रही साझेदारी से रेखांकित होती है, गहन आर्थिक, प्रौद्योगिकीय एवं सुरक्षा सहयोग की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव को चिह्नित करती है। चूँकि भारत अपनी क्षेत्रीय उपस्थिति को बढ़ाने के लिये सिंगापुर की स्थिति एवं विशेषज्ञता का लाभ उठा रहा है, आसियान के साथ संबंधों को सुदृढ़ करने की जारी प्रतिबद्धता पर्याप्त पारस्परिक लाभ प्रदान कर सकती है। व्यापार असंतुलन को संबोधित करना और प्रमुख क्षेत्रों में सहयोग का विस्तार करना इस गतिशील संबंध की पूरी क्षमता को साकार करने के लिये महत्त्वपूर्ण होगा।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »
Scroll to Top