

यह एडिटोरियल 09/04/2024 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित “Marching ahead with technology absorption” लेख पर आधारित है। इसमें भारतीय रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण की तत्काल आवश्यकता की पड़ताल की गई है और इन पहलुओं पर विचार किया गया है कि आवश्यकताओं को सूक्ष्म तरीके से समझते हुए प्रौद्योगिकी के अवशोषण को बनाए रखने की चुनौती से कैसे निपटा जाए।
प्रिलिम्स के लिये:रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO), अग्नि और पृथ्वी श्रृंखला की मिसाइलें, हल्के लड़ाकू विमान, तेजस, सैन्य मामलों का विभाग (DMA), एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम, S-400 वायु रक्षा प्रणाली, सुखोई-30 MKI विमान। मेन्स के लिये:रक्षा क्षेत्र का स्वदेशीकरण, रक्षा क्षेत्र से संबंधित चुनौतियाँ, भारत के रक्षा क्षेत्र में तकनीकी दोहन। |
भारतीय सेना वर्ष 2024 को ‘प्रौद्योगिकी अवशोषण वर्ष’ (Year of Technology Absorption) के रूप में मना रही है। सैन्य भाषा में अवशोषण (Absorption) का तात्पर्य मौजूदा संरचनाओं—जिन्हें विरासत प्रणाली (legacy systems) कहा जाता है, में प्रौद्योगिकियों के अधिग्रहण, अनुकूलन एवं एकीकरण (acquisition, adaptation and integration) से है। इस थीम का चयन स्वयं को रूपांतरित करने के लिये प्रौद्योगिकी के अवशोषण पर सेना के दृढ़ फोकस को रेखांकित करता है ताकि युद्ध के नए उभरते चरित्र के संदर्भ में शत्रुओं से बेहतर स्थिति में रहा जा सके। इस संबंध में साधन और साध्य की कल्पना आत्मनिर्भरता के दायरे में की जा रही है।
अनिश्चितता के इस युग में ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ के लक्ष्य अत्यंत आवश्यक आपूर्ति शृंखलाओं में व्यवधान या हेरफेर के कारण होने वाले जोखिमों को कम करेंगे। ये उस तरह की चुनौतियाँ हैं जिन्होंने यूक्रेन को रूस के साथ संघर्ष में कमज़ोर रखा है।
प्रौद्योगिकी का यह अवशोषण मुख्य रूप से विघटनकारी प्रौद्योगिकी (Disruptive Technology- DT) के संदर्भ में होगा जिसमें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), ड्रोन जैसी स्वायत्त हथियार प्रणालियाँ, सेंसर, रोबोटिक्स, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और हाइपरसोनिक हथियार प्रणालियाँ शामिल होंगी । अमेरिका और चीन सहित कई देशों ने DT के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल की हैं। भविष्य में रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा और संलग्नताएँ अनिवार्य रूप से इस बात से तय होंगी कि किसी राष्ट्र के पास इन प्रौद्योगिकियों को आत्मसात करने की कितनी क्षमता है।
रक्षा क्षेत्र में विघटनकारी प्रौद्योगिकी के विभिन्न पहलू:
- परिचय:
- विघटनकारी प्रौद्योगिकी उन नवाचारों को संदर्भित करती है जो उद्योगों या क्षेत्रों के मौजूदा परिदृश्य को महत्त्वपूर्ण रूप से बदल देते हैं, प्रायः पिछली प्रौद्योगिकियों को अप्रचलित बना देते हैं और पारंपरिक अभ्यासों को नया आकार प्रदान करते हैं।
- रक्षा क्षेत्र में, विघटनकारी प्रौद्योगिकियों में युद्ध को व्यापक रूप से बदल देने, सैन्य क्षमताओं को पुनर्परिभाषित करने और राष्ट्रीय सुरक्षा की गतिशीलता को रूपांतरित कर देने की क्षमता है।
- विशेषताएँ:
- ‘गेम-चेंजिंग’ प्रभाव: DT में युद्ध-क्षेत्र में शक्ति संतुलन को उल्लेखनीय रूप से बदल देने वाली नवीन क्षमताओं या दृष्टिकोणों के प्रवेश के माध्यम से युद्ध के तरीके को व्यापक रूप से रूपांतरित कर देने की क्षमता है।
- द्रुत प्रगति: वे प्रायः AI, रोबोटिक्स, साइबर सुरक्षा, नैनो टेक्नोलॉजी और जैव प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में द्रुत प्रगति से उभरते हैं, जिससे सैन्य क्षमताओं में तेज़ी से सुधार होता है।
- लागत-दक्षता: विघटनकारी प्रौद्योगिकियाँ पारंपरिक प्रणालियों की तुलना में लागत-प्रभावी समाधान प्रदान कर सकती हैं, जो सेनाओं को कम संसाधनों के साथ अधिक प्रभावशीलता प्राप्त करने में सक्षम बनाती हैं।
- विघटनकारी प्रौद्योगिकियों के उदाहरण:
- मानवरहित हवाई वाहन (Unmanned Aerial Vehicles- UAVs): UAVs, जिन्हें आमतौर पर ड्रोन के रूप में जाना जाता है, ने सैन्य टोही, निगरानी और हमला क्षमताओं में क्रांति ला दी है। वे त्वरित रूप से खुफिया जानकारी एकत्र करने, सटीक लक्ष्यीकरण और परिचालन लचीलेपन में सक्षम बनाते हैं, जिससे सैन्य रणनीतियों एवं चालों का रूपांतरण हो रहा है।
- साइबर युद्ध (Cyber Warfare): साइबर युद्ध में शत्रुओं की प्रणालियों और आधारभूत संरचना को बाधित करने, अक्षम करने या उन्हें क्षति पहुँचाने के लिये कंप्यूटर नेटवर्क का उपयोग करना शामिल है। साइबर हमले महत्त्वपूर्ण अवसंरचना, संचार नेटवर्क और कमांड-एंड-कंट्रोल सिस्टम को लक्षित कर सकते हैं, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये गंभीर खतरा पैदा हो सकता है।
- हाइपरसोनिक हथियार (Hypersonic Weapons): हाइपरसोनिक हथियार मैक 5 (Mach 5) से अधिक गति से यात्रा करते हैं, जिससे उन्हें रोकना अत्यंत कठिन हो जाता है और वे दूरस्थ लक्ष्यों के विरुद्ध द्रुत गति से हमला करने की क्षमता प्रदान करते हैं। इन हथियारों में प्रतिक्रिया समय को कम कर और परिचालन लचीलेपन को बढ़ाकर पारंपरिक युद्ध के समीकरण को बदल देने की क्षमता है।
- सैन्य अभियानों पर प्रभाव:
- उन्नत स्थितिजन्य जागरूकता: उन्नत सेंसर, डेटा एनालिटिक्स और AI जैसी विघटनकारी प्रौद्योगिकियाँ सेना की स्थितिजन्य जागरूकता में सुधार करती हैं, जिससे सैन्य कमांडरों को वास्तविक समय में सूचित निर्णय लेने और गतिशील युद्धक्षेत्र दशाओं के अनुकूल बनने की सक्षमता प्राप्त होती है।
- परिशुद्धता और घातकता: विघटनकारी प्रौद्योगिकियाँ परिशुद्धता-निर्देशित युद्ध सामग्री (precision-guided munitions), स्वायत्त प्रणाली और उन्नत लक्ष्यीकरण क्षमता प्रदान करती हैं, जिसके परिणामस्वरूप सैन्य संचालन में अधिक सटीकता एवं घातकता प्राप्त होती है जबकि संपार्श्विक क्षति कम हो जाती है।
- असममित युद्ध: विघटनकारी प्रौद्योगिकियाँ छोटे लेकिन प्रौद्योगिकीय रूप से उन्नत सैन्य बलों को साइबर हमले, ड्रोन स्वार्म (drone swarms) और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सहित विभिन्न असममित युद्ध रणनीतियों के माध्यम से पारंपरिक सैन्य शक्तियों को चुनौती देने में सक्षम बनाती हैं।
रक्षा क्षेत्र के आधुनिकीकरण में ‘आत्मनिर्भर भारत’ की प्रासंगिकता:
- परिचय:
- भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसने चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान, परमाणु पनडुब्बी, सफल सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM) प्रणाली, मुख्य युद्धक टैंक (MBT), एक ICBM और एक स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली का डिज़ाइन निर्माण एवं उत्पादन किया है।
- ऐसी उच्च-स्तरीय क्षमताओं के प्रदर्शन के बावजूद रक्षा अधिग्रहण बजट का 50% से अधिक प्रत्यक्ष रूप से आयात की ओर जाता है।
- अन्य 50% (जो भारतीय विक्रेताओं को जाता है) में से 60% हथियार प्रणाली में आयातित घटकों के उपयोग के कारण अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों को जाता है। मेक-इन-इंडिया कार्यक्रम और आत्मनिर्भर भारत को ध्यान में रखते हुए रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (DAP)- 2020 शुरू की गई थी।
- यह यात्रा ‘सेल्फ-सफिशियेंट’ से ‘सेल्फ-रिलायंट’, फिर ‘को-प्रोडक्शन’ से ‘प्राइवेट सेक्टर पार्टिसिपेशन’ से ‘मेक इन इंडिया’ की ओर आगे बढ़ती हुई अंततः ‘आत्मनिर्भर भारत’ तक पहुँची है।
- भारत उन कुछ देशों में से एक है जिसने चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमान, परमाणु पनडुब्बी, सफल सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM) प्रणाली, मुख्य युद्धक टैंक (MBT), एक ICBM और एक स्वदेशी बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली का डिज़ाइन निर्माण एवं उत्पादन किया है।
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया (Defence Acquisition Procedure- DAP)- 2020:
- रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया- 2020 ने खरीद अनुबंधों में 50% स्वदेशी सामग्री (indigenous content- IC) निर्धारित की है। भारत में रखरखाव और विनिर्माण सुविधाएँ स्थापित करने के लिये विदेशी मूल उपकरण निर्माताओं (OEMs) को प्रोत्साहित करने के लिये एक नई खरीद श्रेणी— Buy (Global-Manufacture in India) — शुरू की गई है।
- इससे स्पेयर पार्ट्स का आरंभिक स्वदेशीकरण संभव हो सकेगा। रक्षा मंत्रालय (MoD) ने विभिन्न ‘सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियाँ’ (Positive Indigenisation Lists) जारी की हैं जिनमें उन वस्तुओं का उल्लेख है जिन्हें केवल घरेलू स्रोतों से खरीदा जाना चाहिये।
- रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र इकाइयों (DPSUs) द्वारा लगभग 5,000 वस्तुओं का आयात किया जाता है और तीनों सेनाएँ इस सूची में शामिल हैं।
- रक्षा क्षेत्र में मेक-इन-इंडिया: ‘मेक इन इंडिया’ के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए और ‘सैन्य क्षमता शून्यता’ (Military Capability Voids) को पूरा करने के लिये पूंजी अधिग्रहण के स्रोत को मोटे तौर पर ‘भारतीय’ या ‘गैर-भारतीय’ में वर्गीकृत किया गया है।
- भारतीय: किसी उत्पाद को ‘भारतीय’ के रूप में वर्गीकृत करने और ‘मेक इन इंडिया’ के दृष्टिकोण को पूरा करने के लिये विक्रेता और उसकी हथियार प्रणाली को निम्नलिखित में से एक या सभी शर्त की पूर्ति करनी होगी:
- प्रोडक्शन लाइन भारत में स्थापित हो।
- प्रौद्योगिकी का स्वामित्व एक भारतीय फर्म के पास हो।
- भारतीयों के लिये रोज़गार सृजन किया जाता हो।
- करों का भुगतान भारत सरकार को किया जाता हो।
- आपूर्ति शृंखला प्रबंधन भारत में स्थापित किया गया हो।
- बाज़ार में एक ‘भारतीय ब्रांड’ के रूप में आता हो।
- ‘भारतीय’ वर्गीकरण से खरीद की प्राथमिकता इस तरह हो सकती है: –
- प्राथमिकता- I: भारत में अभिकल्पित, विकसित और विनिर्मित; या
- प्राथमिकता- II: भारत में विकसित और विनिर्मित; या
- प्राथमिकता- III: भारत में अधिग्रहित और विनिर्मित; या
- प्राथमिकता- IV: एक विदेशी विक्रेता के साथ साझेदारी, लेकिन भारत में विनिर्मित।
- ‘भारतीय’ श्रेणी के अंतर्गत उपर्युक्त सभी ‘मेक इन इंडिया’ के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को पूरा करेंगे और रक्षा उत्पादन विभाग द्वारा इसका विश्लेषण एवं प्रमाणन किया जाना चाहिये।
- गैर-भारतीय: जो उपकरण ‘मेक इन इंडिया’ के राष्ट्रीय दृष्टिकोण को पूरा नहीं करते हैं, उन्हें ‘गैर-भारतीय’ के रूप में वर्गीकृत किया जाना चाहिये, जहाँ न तो प्रौद्योगिकी भारत में आती है और न ही विनिर्माण लाइन भारत में स्थापित की जाती है:
- क्षमता प्रदान करने के लिये भारत में एक अस्थायी विनिर्माण लाइन, या
- एक विदेशी विक्रेता से प्रत्यक्ष आयात।
- भारतीय: किसी उत्पाद को ‘भारतीय’ के रूप में वर्गीकृत करने और ‘मेक इन इंडिया’ के दृष्टिकोण को पूरा करने के लिये विक्रेता और उसकी हथियार प्रणाली को निम्नलिखित में से एक या सभी शर्त की पूर्ति करनी होगी: