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पर्सपेक्टिव: भारत का हरित ऊर्जा परिवर्तन

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चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय वित्त मंत्री ने अंतरिम बजट पेश किया। यह भारत के निम्न कार्बन जलवायु लचीली अर्थव्यवस्था में परिवर्तन को गति देगा।

  • भारत का लक्ष्य पेरिस मझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान के अनुरूप अपने नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों और कार्बन उत्सर्जन में कमी के लक्ष्यों को पूरा करना है।
  • भारत के प्रधानमंत्री ने प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना के माध्यम से घरों पर सौर पैनल स्थापित करने की योजना की घोषणा की।

 

निम्न कार्बन जलवायु लचीली अर्थव्यवस्था क्या है?

  • निम्न कार्बन जलवायु लचीली अर्थव्यवस्था एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जिसका लक्ष्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना, ग्लोबल वार्मिंग और कोयला, तेल एवं गैस की खपत को सीमित करना है। इसे हरित, वृत्ताकार या सतत् अर्थव्यवस्था के रूप में भी जाना जाता है। निम्न कार्बन जलवायु लचीली अर्थव्यवस्था की कुछ विशेषताएँ हैं:
    • यह जीवाश्म ईंधन के बजाय सौर, पवन, पनबिजली और जैव ईंधन जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करती है, जैसे यह ऊर्जा खपत तथा अपशिष्ट को कम करने के लिये ऊर्जा दक्षता, संरक्षण एवं मांग प्रबंधन को बढ़ावा देती है।
    • यह कार्बन सिंक को बढ़ाने और वनों की कटाई तथा कमी से उत्सर्जन को कम करने के लिये निम्न कार्बन एवं जलवायु-स्मार्ट कृषि, वानिकी व भूमि उपयोग का समर्थन करती है।
    • यह निम्न कार्बन और जलवायु-लचीली गतिविधियों तथा उत्पादों के लिये संसाधन एवं प्रोत्साहन जुटाने हेतु हरित वित्त, निवेश व व्यापार को प्रोत्साहित करती है।
    • यह सुनिश्चित करने के लिये कि संक्रमण के लाभ व लागत को उचित रूप से साझा कर, जिससे सबसे कमज़ोर समूहों को संरक्षित एवं सशक्त बनाया जाता है, सामाजिक व पर्यावरणीय न्याय, समानता और समावेशन को बढ़ावा देती है।

पेरिस समझौता क्या है?

  • परिचय:
    • जलवायु परिवर्तन और इसके नकारात्मक प्रभावों से निपटने के लिये पेरिस में संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP21) में विश्व नेता 12 दिसंबर, 2015 को एक ऐतिहासिक समझौते के लिये पेरिस पहुँचे।
    • यह समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है, जोकि 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ।
    • 195 पार्टियाँ (194 राज्य और यूरोपीय संघ) पेरिस समझौते में शामिल हो गई हैं।
    • यह शुद्ध-शून्य उत्सर्जन वाली विश्व की ओर बदलाव की शुरुआत का प्रतीक है।
    • सतत् विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिये समझौते का कार्यान्वयन भी आवश्यक है।
  • लक्ष्य:
    • वैश्विक तापमान वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखने के लिये वैश्विक GHG उत्सर्जन को पर्याप्त रूप से कम करना और इसे पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने के प्रयास करना, यह मानते हुए कि इससे जलवायु परिवर्तन के जोखिमों तथा प्रभावों में काफी कमी आएगी।
    • समय-समय पर इस समझौते के उद्देश्य और इसके दीर्घकालिक लक्ष्यों को प्राप्त करने की दिशा में सामूहिक प्रगति का आकलन करना।
    • जलवायु परिवर्तन को कम करने, लचीलेपन को मज़बूत करने और जलवायु प्रभावों के अनुकूल क्षमताओं को बढ़ाने के लिये विकासशील देशों को वित्तपोषण प्रदान करना।
  • कार्य: 
    • पेरिस समझौता देशों द्वारा की जाने वाली बढ़ती महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्रवाई के पाँच वर्ष के चक्र पर काम करता है।
    • प्रत्येक पाँच वर्ष में प्रत्येक देश से एक अद्यतन राष्ट्रीय जलवायु कार्य योजना प्रस्तुत करने की अपेक्षा की जाती है जिसे राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) के रूप में जाना जाता है।

भारत का राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान क्या है?

  • UNFCCC और उसके पेरिस समझौते के एक पक्ष के रूप में, भारत ने वर्ष 2015 में अपना पहला राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (NDC) प्रस्तुत किया, जिसमें निम्नलिखित दो मात्रात्मक लक्ष्य शामिल थे:
    • वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक अपने सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता को 33 से 35% तक कम करना।
    • वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40% संचयी विद्युत स्थापित क्षमता प्राप्त करना।
  • अगस्त 2022 में भारत ने अपने NDC को अद्यतन किया जिसके अनुसार इसका लक्ष्य:
    • उत्सर्जन को कम करने के लिये अपने सकल घरेलू उत्पाद की तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 45% तक बढ़ाना है।
    • गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से संचयी विद्युत स्थापित क्षमता का लक्ष्य वर्ष 2030 तक 50% तक बढ़ाना है।
    • भारत ने पेरिस समझौते के तहत अपनी प्रतिबद्धता प्रदर्शित करते हुए वर्ष 2030 तक 500 गीगावॉट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता प्राप्त करना है।

प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना क्या है?

  • परिचय: 
    • भारतीय प्रधानमंत्री ने ‘प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना’ शुरू की, जो एक नवाचार युक्त सरकारी पहल है जिसका उद्देश्य देशभर के एक करोड़ घरों की छत पर सौर ऊर्जा प्रणाली या रूफटॉप सोलर पैनल स्थापित करना है।
    • रूफटॉप सोलर एक फोटोवोल्टिक प्रणाली है जिसमें विद्युत उत्पादन करने वाले सौर पैनल आवासीय या व्यावसायिक भवन या संरचना की छत पर लगे होते हैं।
  • लाभ:
    • यह ग्रिड से जुड़ी विद्युत की खपत को कम करता है और उपभोक्ता के लिये विद्युत लागत को बचाता है।
    • रूफटॉप सोलर प्लांट से उत्पन्न अधिशेष सौर ऊर्जा इकाइयों को मीटरिंग प्रावधानों के अनुसार ग्रिड में निर्यात किया जा सकता है।
    • उपभोक्ता प्रचलित नियमों के अनुसार अधिशेष निर्यातित विद्युत के लिये मौद्रिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
  • रूफटॉप सोलर प्रोग्राम:
    • सरकार ने वर्ष 2014 में रूफटॉप सोलर प्रोग्राम लॉन्च किया, जिसका लक्ष्य वर्ष 2022 तक 40,000 मेगावाट (MW) या 40 गीगावाट (GW) की संचयी संस्थापित क्षमता हासिल करना था।
      • हालाँकि यह लक्ष्य प्राप्त नहीं किया जा सका। जिस केपरिणामस्वरूप, सरकार ने इसकी समय-सीमा वर्ष 2022 से बढ़ाकर वर्ष 2026 तक कर दी है।
    • कुछ रिपोर्टों के अनुसार, प्रधानमंत्री सूर्योदय योजना 40 गीगावॉट रूफटॉप सोलर क्षमता के लक्ष्य तक पहुँचने में मदद करने का एक बड़ा प्रयास है।

भारत में वर्तमान सौर क्षमता क्या है?

  • कुल स्थापित क्षमता: नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार दिसंबर 2023 तक भारत में छतों पर स्थापित सोलर प्रणाली की क्षमता लगभग 73.31 गीगावॉट तक पहुँच गई है। कुल सौर क्षमता के मामले में राजस्थान 18.7 गीगावॉट उत्पादन के साथ शीर्ष पर है। गुजरात 10.5 गीगावॉट के साथ दूसरे स्थान पर है।
  • छत पर सौर क्षमता: दिसंबर 2023 तक कुल छत पर सौर स्थापित क्षमता लगभग 11.08 गीगावॉट है। छत पर स्थापित सोलर प्रणाली क्षमता के संदर्भ में गुजरात 2.8 गीगावॉट के साथ सूची में सबसे ऊपर है इसके बाद महाराष्ट्र 1.7 गीगावॉट के साथ दूसरे स्थान पर है।
    • ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (CEEW) की हालिया रिपोर्ट के अनुसार कुल रूफटॉप सोलर प्रणाली के लगभग 20% की स्थापना आवासीय क्षेत्र में की गई हैं तथा अधिकांश रूफटॉप सोलर प्रणालियाँ वाणिज्यिक एवं औद्योगिक क्षेत्रों में हैं।
      • रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लगभग 25 करोड़ घर छतों पर कुल 637 गीगावॉट की क्षमता की सोलर प्रणाली स्थापित करने में सक्षम हैं तथा इसकी कुल क्षमता का मात्र एक-तिहाई हिस्सा देश में संपूर्ण आवासीय क्षेत्रों की विद्युत की मांग को पूरा कर सकता है।

जलवायु परिवर्तन की दिशा में भारत की अन्य पहल क्या हैं?

  • EV को भारत का समर्थन:
    • भारत उन गिने-चुने देशों में शामिल है जो वैश्विक ‘EV30@30 अभियान’ का समर्थन करते हैं, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक नए वाहनों की बिक्री में इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को न्यूनतम 30% तक करना है।
    • ग्लासगो में आयोजित COP26 में जलवायु परिवर्तन शमन के लिये भारत द्वारा पाँच तत्त्वों (जिसे ‘पंचामृत’ कहा गया है) का समर्थन इसी दिशा में जताई गई प्रतिबद्धता है।
  • निम्न-कार्बन संक्रमण में उद्योगों की भूमिका:
    • भारत में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र पहले से ही जलवायु चुनौतियों से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं, जहाँ ग्राहकों एवं निवेशकों में बढ़ती जागरूकता के साथ-साथ बढ़ती नियामक तथा प्रकटीकरण आवश्यकताओं से सहायता प्राप्त हो रही है।
  • राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन:
    • यह हरित हाइड्रोजन के व्यावसायिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने और भारत को ईंधन का शुद्ध निर्यातक बनाने हेतु एक कार्यक्रम है।
    • यह मिशन हरित हाइड्रोजन की मांग में वृद्धि लाने के साथ-साथ इसके उत्पादन, उपयोग और निर्यात को बढ़ावा देगा।
  • वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन:
    • वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA) को हाल ही में भारत की G20 अध्यक्षता के तहत जैव ईंधन के वैश्विक उत्थान में तेज़ी लाने के लिये वैश्विक नेताओं द्वारा गठित किया गया है। यह गठबंधन अमेरिका, ब्राज़ील और भारत जैसे प्रमुख जैव ईंधन उत्पादक एवं उपभोक्ता देशों को एक साथ लाता है।
    • वैश्विक स्तर पर अभी तक 19 देश और 12 अंतर्राष्ट्रीय संगठन GBA में सम्मिलित होने या इसका समर्थन करने के लिये सहमति जता चुके हैं। GBA हरित संवहनीय भविष्य के लिये वैश्विक जैव ईंधन व्यापार को सुदृढ़ करने का लक्ष्य रखता है।
  • PM कुसुम:
    • पीएम-कुसुम योजना को नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में ऑफ-ग्रिड सौर पंपों की स्थापना तथा ग्रिड से जुड़े क्षेत्रों में ग्रिड पर निर्भरता कम करने के लिये इसे वर्ष 2019 में शुरू किया गया था।
    • इसका उद्देश्य किसानों को उनकी शुष्क भूमि पर सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित करने और इसे ग्रिड को बेचने में सक्षम बनाना है।
    • यह ग्रिड को अधिशेष सौर ऊर्जा बेचने की अनुमति देकर किसानों की आय बढ़ाने में भी मदद करता है।

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