Current Affairs For India & Rajasthan | Notes for Govt Job Exams

पंजाब के इतिहास के बारे में

FavoriteLoadingAdd to favorites

‘पंजाब’ शब्द के उल्लेख का पहला ज्ञात दस्तावेज इब्न बतूता के लेखन में मिलता है. इब्नबतूता ने चौदहवीं शताब्दी में इस क्षेत्र का दौरा किया था. और यह शब्द सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में व्यापक रूप से उपयोग में आया, और इसका इस्तेमाल तारिख-ए-शेर शाह सूरी (1580) पुस्तक में किया गया. इस पुस्तक में ‘पंजाब के शेर खान’ द्वारा एक किले के निर्माण का वर्णन मिलता है. 

पंजाब’ का संदर्भ अबुल फजल द्वारा लिखित “आइन-ए-अकबरी” के खंड एक में पाया गया था , जहां ‘पंजाब’ नाम से उस क्षेत्र का वर्णन मिलता है जिसे लाहौर और मुल्तान के प्रांतों में विभाजित किया जा सकता है. इसी तरह, आइन-ए-अकबरी के दूसरे खंड में, एक अध्याय के शीर्षक में ‘पंचनद’ शब्द का भी उल्लेख मिलता है. हालाँकि, ‘पंजाब’ के संस्कृत समकक्ष का पहला उल्लेख महान महाकाव्य महाभारत में मिलता है, जहाँ इसे पंच-नद के रूप में वर्णित किया गया है, जिसका अर्थ है ‘पाँच नदियों का देश’. मुगल राजा जहांगीर ने भी ‘तुज़क-ए-जहाँगीरी’ में पंजाब शब्द का उल्लेख किया है, जो फारसी से लिया गया है और भारत के तुर्क विजेताओं द्वारा पेश किया गया है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “पांच” (पंज) “जल” (आब), की भूमि. पाँच नदियाँ इस क्षेत्र से होकर गुजरती हैं. इस वजह से इसे ब्रिटिश भारत का अन्न भंडार बनाया गया था. पंजाब एक विशिष्ट संस्कृति के साथ दुनिया की सबसे प्राचीन सभ्यताओं में से एक है.

पंजाब का प्राचीन इतिहास-

अधिकतर विद्वानों का यह मानना है कि पंजाब के क्षेत्र में मानव निवास के प्राचीनतम साक्ष्य सिन्धु और झेलम नदी के बीच की सोन घाटी से मिले हैं. यह समय दूसरे हिमयुग के पहले इंटरग्लैसिअल चरण का है. पंजाब और उसके आसपास के क्षेत्रों में सिन्धु घाटी सभ्यता (हड़प्पा सभ्यता) के भग्नावशेष भी मिलते हैं. सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थलों में शामिल हड़प्पा, राखीगढ़ी और रोपड़ पंजाब के क्षेत्रों में हीं हैं.

पंजाब का इतिहास – वैदिक काल

ऋग्वेदिक काल का एक अत्यंत महत्वपूर्ण प्रसंग “दशराज्ञ युद्ध” का है जो कि परुषिणी नदी (आज की रावी नदी) के किनारे तृत्सु वंश के राजा सुदास (वशिष्ठ ऋषि के मार्गदर्शन में) और पुरु वंश के संवरण राजा (विश्वामित्र के मार्गदर्शन में) के बीच लड़ा गया था. पुरु वंश ने एक संगठन बनाया था जिसमें नौ राजा थे – अलीन, अनु, भृगु, भालन, द्रुह्यु, मत्स्य, परसु, पुरू और पणि. कुल मिलकर दस राजाओं ने युद्ध में हिस्सा लिया था. युद्ध में वशिष्ठ ऋषि के मार्गदर्शन में लड़ रहे सुदास विजयी रहे और विश्वामित्र के मार्गदर्शन में लड़ रहे राजाओं की हार हुई.

दूसरा युद्ध जिसे पौराणिक ग्रंथों में “महाभारत” कहकर संबोधित किया जाता है, पंजाब के “कुरुक्षेत्र” (आज हरियाणा में) में लड़ा गया था. वैदिक काल में पंजाब को सप्त सिन्धु कहा जाता था, जिसका मतलब है सात नदियों की भूमि. ये सात नदियाँ थीं – परुषिणी (रावी), विपाशा (व्यास), सतुदरी (सतलज), वितस्ता (झेलम), असिक्नी (चेनाब), सरस्वती और सिन्धु.

पंजाब का आधुनिक इतिहास

महाराजा रणजीत सिंह सिख साम्राज्य के नेता थे, जिसने 19वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में उत्तर पश्चिमी भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन किया था. 1839 तक उनके नेतृत्व में पंजाब क्षेत्र में उनका साम्राज्य विकसित हुआ. उनके शासनकाल के दौरान राजनीतिक, धार्मिक क्षेत्रों में आधुनिकीकरण, बुनियादी ढांचे में निवेश और सामान्य समृद्धि के साथ कई सुधार किए गए. उन्हें लोकप्रिय रूप से शेर-ए-पंजाब, या “पंजाब के शेर” के रूप में जाना जाता था. महाराजा रणजीत सिंह ने लगभग चार दशकों (1801-39) तक पंजाब पर शासन किया. 

उनके शासन के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों की सीमा:

  • रणजीत सिंह का साम्राज्य कई राज्यों में फैला था. उनके साम्राज्य में काबुल और पूरे पेशावर के अलावा लाहौर और मुल्तान के पूर्व मुगल प्रांत शामिल थे.
  • उनके राज्य की सीमाएँ लद्दाख तक जाती थीं – जम्मू के एक सेनापति जोरावर सिंह ने रणजीत सिंह के नाम पर पूर्वोत्तर में लद्दाख पर विजय प्राप्त की थी
  • उनका साम्राज्य उत्तर-पश्चिम में खैबर दर्रे तक और दक्षिण में पंचनद तक फैला हुआ था (जहाँ पंजाब की पाँच नदियाँ सिंधु में गिरती थीं)
  • उनके शासन के दौरान, पंजाब छह नदियों की भूमि थी, छठी नदी सिंधु थी.

अंग्रेजों द्वारा पंजाब विजय और आंग्ल-सिख युद्ध:

  • महाराज रणजीत सिंह (1839) की मृत्यु के बाद की अवधि में पंजाब में बड़ी अस्थिरता देखी गई
  • अंततः, सत्ता बहादुर और देशभक्त लेकिन पूरी तरह से अनुशासनहीन सेना के हाथों में चली गई, जिसे खालसा कहा जाता था.
  • महाराजा रणजीत सिंह के पुत्र दलीप सिंह सिंहासन पर थे, लेकिन राज्य पर उनकी मां रानी जिंदन ने अपने पसंदीदा अधिकारियों की मदद से शासन किया करती थीं.
  • अंग्रेजों ने 1809 में रणजीत सिंह के साथ स्थायी मित्रता की संधि पर हस्ताक्षर किए थे, लेकिन वे पंजाब को जीतने के लिए बस सही अवसर की तलाश में थे.

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Translate »
Scroll to Top