चार हजार किलोमीटर दूर रूस के साइबेरिया क्षेत्र से हजारों की तादाद में दुर्लभ घोषित पीली आंख वाले कबूतर बीकानेर के जोड़बीड़ .. रिजर्व कन्जर्वेटिव क्षेत्र में आकर प्रवास करने लगे हैं। एक दशक पहले तक यह उत्तर भारत में कुछ जगह सौ से पांच सौ की संख्या में आया करते थे। परन्तु साल दर साल पाकिस्तान से भारत में प्रवेश करने के बाद अधिकांश ने बीकानेर की तरफ रुख करना शुरू कर दिया। इस साल तो रेकॉर्ड दस हजार से ज्यादा कबूतर बीकानेर के जोड़बीड़ क्षेत्र में प्रवास कर रहे हैं। इसके पीछे कारण शिकार का भय नहीं, घास में इनके पसंदीदा खाने के बीज आदि भोजन का मिलना है। वाइड लाइफ फोटोग्राफर व पक्षी प्रेमी राकेश शर्मा बताते हैं कि साइबेरिया व ठंडे प्रदेशों में इसका शिकार बहुत ज्यादा होने से माना गया कि इसकी आबादी दुनिया में महज एक प्रतिशत ही बची है। प्रवासी पक्षियों ने यहां बना लिया है अपना स्थायी बसेरा पांच हजार से ज्यादा शिकारी और मांस भक्षी पक्षी भी जोड़बीड़ में सर्दियों में रहते है। इनमें कई प्रजातियों के गिद्ध, बाज, चील शामिल हैं। कुछ प्रजातियों ने यहां स्थाई रूप से रहना भी शुरू कर दिया है। कॉमन बब्बलर भी करीब 1500 की संख्या में यहां स्थाई रूप से रहने लगी हैं। यह गौरेया चिड़िया के जैसी होती है. लेकिन आक्रामक स्वभाव की मानी जाती है। पांच महीने करते हैं प्रवास यह कबूतर कोलम्बा इवेर्समैननी परिवार से सम्बंधित है। यह दक्षिण कजाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, तजाकिस्तान, अफगानिस्तान, पाकिस्तान होकर अक्टूबर-नवम्बर में समूह में आते हैं। इसके बाद फरवरी-मार्च में रवाना हो जाते हैं। यह करीब तीन किमी दूर से किसान और बीकानेर के जोड़बीड़ में बड़ी संख्या में •लॉन्ग लेग्ड बजर्ड भी आता है। इसे साधारण भाषा में चूहे मार बाज कहते हैं। किसान इसके आगमन को अच्छा मानते हैं। यह खेतों में चूहों और सांड़ा आदि को मारकर खा जाता है। इसी यह देख लेता है। जोड़बीड़ के 57 वर्ग किमी संरक्षित क्षेत्र को स्थाई आश्रय स्थल बना लिया है। इन कबूतरों की चोंच भी पीले रंग की होती है और इनका पैर गुलाबी रंग का होता है। मुख्य रूप से मूक कबूतर है, परन्तु यह मिलन के समय ऊं ऊं की आवाज निकालता है। पर्यावरण मित्र और पत्रिका patrika तरह गिद्ध मृत पशुओं के मांस को खाते हैं। एशिया की सबसे बड़ी मृत पशुओं की डम्पिंग साइट जोड़बीड़ है। जहां सालभर में डाले गए पशुओं के मांस को गिद्ध खाते हैं। इस से गिद्ध पर्यावरण मित्र भी हैं। अ