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ज्वालामुखी क्या है और इसके प्रकार

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आज हम इस पोस्ट के माध्यम से ज्वालामुखी क्या है, यह कैसे उत्पन्न होता है और इसके कितने प्रकार हैं आदि का अध्ययन करेंगे. क्यों न इस पोस्ट की शुरुआत हम ज्वालामुखी के इतिहास से करें जिससे हमें इसके बारे में समझने में आसानी भी हो और पढ़ने में दिलचस्प भी हो.

ज्वालामुखी का इतिहास

एक हजार वर्ष से ऊपर की बात है. इतालिया (इटली/Italy) के लोगों ने सुन रखा था कि उनके देश का विसूवियस पहाड़ (Mount Vesuvius) किसी जमाने में फट पड़ा था, उससे आग निकली थी. लोग ऐसी बात सुन कर डर जरुर गए  थे पर यह कल्पना भी नहीं कर पाते थे कि वह फिर से आग उगल सकता है. कारण, उस घटना को हुए कई हजार साल बीत चुके थे और धुप, पाला, हवा, वर्षा इत्यादि से उसके झुलसे हुए मुँह और पहाड़ी ढालों आर हरियाली छा चुकी थी. उसके घाव भर गए थे. चारों ओर धरती मुस्करा रही थी और नए नगर बस गए. पम्पियाई और हरक्युलैनियम (Herculaneum) जैसे इतिहास-प्रसिद्ध नगर उसी की तलहटी में विकसित हो रहे थे.

तभी एक घटना हुई. घटना क्या उसे दुर्घटना कहना चाहिए. 24 अगस्त, सन् 79 ई. दोपहर के समय में विसूवियस के मुँह से सफ़ेद धुआँ निकलने लगा. पृथ्वी का कम्पन बढ़ा और जोर की गड़गड़ाहट के साथ विस्फोट हो गया. नगर के लोगों ने समझा कि संसार का अब अंत होने वाला है. राख, धूल और पत्थरों की वर्षा होने लगी, आकाश काले बादलों से भर गया, चारों ओर भीषण अंधेरा छा गया.  देखते-देखते नगरों के इमारतें धराशायी हो गयीं. जहाँ-तहाँ आग लग गई. कई लोग मर गए. पम्पाई में मुश्किल से 1/10 लोग (लगभग दो हजार) बाख पाए. पहाड़ की ओर से आई कीचड़ की तरह वस्तु ने नगरों को ढक लिया. दोनों नगर पूरी तरह से बरबाद हो गए.

सैंकड़ों वर्ष बाद देश के लोग यह भी भूल गए कि वे नगर कहाँ थे. इस तरह की घटनाएँ पृथ्वी के विभिन्न भागों में घटी हैं और आगे भी घटती रहेंगी. हम इन्हें ज्वालामुखी या ज्वालामुखी-उद्गार कह कर पुकारते हैं.

ज्वालामुखी क्या है?

ज्वालामुखी भूपटल पर वह प्राकृतिक छेद या दरार है जिससे होकर पृथ्वी के अन्दर का पिघला पदार्थ, गैस या भाप, राख इत्यादि बाहर निकलते हैं. पृथ्वी के अन्दर का पिघला पदार्थ, जो ज्वालामुखी से बाहर निकलता है, भूराल या लावा (Lava) कहलाता है. यह बहुत ही गर्म और लाल रंग का होता है. लावा जमकर ठोस और काला हो जाता है जो बाद में जाकर ज्वालामुखी-चट्टान के नाम से जाना जाता है. लावा में इतनी अधिक गैस होती है

कि वह एक ही बार निकल पाती है. लावा में बुलबुले इन गैसों के निकलने के कारण हो उठते हैं. लावा का बहना बंद हो जाने पर कुछ काल तक भाप निकलते देखा जाता है. पिघली चट्टान को ऊपर लाने में ये गैसें ही सहायक होती हैं मगर यह जरुरी है कि भूपटल पर कहीं कोई कमजोर परत मौजूद हो जिसे तोड़ कर, फाड़कर या छेदकर गैस लावा को ऊपर की ओर रास्ता बनाने में मदद करे. ज्वालामुखी-विस्फोट होने पर भूकंप (<< Click to read about Bhukamp) होना स्वाभाविक है.

ज्वालामुखी-विस्फोट कैसे होता है?

एक भूवेत्ता के शब्दों में “ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर उगे हुए फोड़े हैं. ये वहीं फूटते हैं जहाँ की पपड़ी कमजोर होती है, जहाँ इन्हें कोई रास्ता मिल जाता है.” हम पृथ्वी की पपड़ी को भेद कर तो नहीं देख पाते, मगर अनुमान लगाते हैं कि वहाँ की स्थिति क्या हो सकती है. हम अभी तक चार मील की गहराई तक खुदाई कर सके हैं और हम लोगों ने पाया कि गहराई के साथ-साथ तापक्रम बढ़ता जाता है. हमें सबसे गहरी खानों को इसी कारण वातानुकूलित (Air-conditioned) करना पड़ता है. नीचे की ओर बढ़ते हुए तापक्रम को देखकर ही अभी हाल-हाल तक लोगों का विश्वास था कि पृथ्वी का भीतरी भाग ठोस नहीं हो सकता, वहाँ की चट्टानें ठोस रूप में नहीं हैं बल्कि द्रव अवस्था में हैं. मगर भूकंप-लेखक यंत्रों की सहायता से भूकंप की लहरों का अध्ययन कर वैज्ञानिक इस परिणाम पर पहुँचे हैं कि 1800 मील की गहराई तक पृथ्वी की पपड़ी द्रव अवस्था में नहीं है. सच बात यह है कि पिघलने के लिए उन चट्टानों के पास जगह भी नहीं है. पृथ्वी अपने अधिक भार से उन्हें वहाँ दबाये रहती है. पिघलने में चट्टानों को फैलना पड़ता है और ऊपर की अपेक्षाकृत ठंडी परतें उन्हें इतने जोर से दबाये रहती हैं कि वे फैल नहीं पातीं, अतः पिघलने की सीमा तक गर्म होकर भी पिघलने में असमर्थ बनी रहती है.

मगर लावा तो पृथ्वी के अन्दर से निकली हुई पिघली चट्टानें हैं. यह कहाँ से और कैसे ऊपर आ जाता है? संभव है, कहीं-कहीं किन्हीं कारणों से पृथ्वी की पपड़ी का दबाव कम हो गया हो. हो सकता है, पपड़ी खिंचकर ऊपर उठ गई हो, इसलिए कि पृथ्वी धीरे-धीरे ठंडी हो रही है, सिकुड़ रही है और पपड़ी में झुर्रियाँ पड़ रही हैं. ऐसा होने से दबाव कम होगा और कुछ नीचे (50-60 मील नीचे) की चट्टानों को फैलकर द्रव बन्ने की जगह मिल जाएगी. यह भी संभव है कि पपड़ी के स्थान-विशेष की चट्टानें विशेष रूप से गर्म हो उठी हों.  कुछ सालों पहले हमने चट्टानों में रेडियो-सक्रिय तत्त्वों का पता लगाया है. ये तत्त्व टूटकर दूसरे पदार्थों में बदल जाते हैं. इस परिवर्तन के चलते ताप उत्पन्न होता है. लगातार तेजी से निकलते इस ताप से स्थान-विशेष की चट्टानें बहुत गर्म होकर पिघल जा सकती हैं और ऊपर की ठोस पपड़ी को फाड़कर निकल जा सकती हैं.

मैग्मा

इतना कहकर भी हम यह निश्चित रूप से नहीं कह सकते कि इन शक्तियों के कारण ज्वालामुखी विस्फोट हुआ करता है. पृथ्वी के भीतर पिघली हुई चट्टानों के कोष को “मैग्मा (Magma)” कहा गया है. इसकी तुलना बोतल में भरे सोडावाटर से की जा सकती है. काग खुलते ही सोडावाटर मुँह की ओर दौड़ता है, उसी तरह कमजोर भूपटल पाकर गैसयुक्त लावा ऊपर आने के लिए दौड़ पड़ता है और जहाँ-तहाँ अपना रास्ता बना ही लेता है. तेजी से आने के कारण जोरों का विस्फोट होता है और धरती को कंपा देता है. वहाँ की चट्टानें टूट-टूट कर चारों ओर बिखर जाती है; धूल, वाष्प और अन्य गैसों के बादल छा जाते हैं और फिर लावा बह निकलता है. लावा के बहने और जमने से उलटे funnel के आकार का पर्वत बन जाता है और उसके मुँह पर गड्ढा हो जाता है जिसे क्रेटर (Crater) या ज्वालामुखी कहते हैं.

ज्वालामुखी के प्रकार

सामान्य प्रकार से ज्वालामुखी का वर्गीकरण इस प्रकार किया जाता है –

  1. सक्रिय या जाग्रत (Active)
  2. सुषुप्त या निद्रित (Dormant)
  3. मृत (Extinct)

सक्रिय या जाग्रत ज्वालामुखी (Active Volcanoes)

ज्वालामुखी

सक्रिय ज्वालामुखी वे हैं जिनसे समय-समय पर विस्फोट हो जाया करता है अर्थात् जिनसे लावा, गैस, वाष्प इत्यादि निकला करता है. अभी नवीनतम गणना (data) के अनुसार संसार में इनकी संख्या लगभग 1,500 है. ये हर जगह मिलते भी नहीं. भारत में अंडमान निकोबार के Barren Island में सक्रिय ज्वालामुखी है. संसार के कुछ प्रमुख सक्रिय ज्वालामुखी (names of active volcanoes) ये हैं – हवाई द्वीप का मौना लोआ (Mauna Loa), सिसली का एटना (Mount Etna) और स्ट्राम्बोली (Stromboli volcano), इटली का विसुवियस (Italy’s Vesuvius), इक्वेडोर का कोटोपैक्सी (Ecuador’s Cotopaxi), मेक्सिको का पोपोकैटपेटल (Mexico’s Popocatepetl) , कैलिफ़ोर्निया का लासेन.

सुषुप्त या निद्रित ज्वालामुखी (Dormant Volcanoes)

वे हैं जो वर्षों से शांत, स्तब्ध या सोये हुए जान पड़ते हैं पर उनके सक्रीय या जाग्रत होने की संभावना रहती है. ऐसे ज्वालामुखी बड़े खतरनाक साबित होते हैं. लोग किसी ज्वालामुखी को शांत समझकर उसकी तलहटी में बस जाते हैं पर जब किसी दिन वह विशालकाय दैत्य जागता है तो धरती हिलने लगती है, भीतर से गड़गड़ाहट की आवाज़ आने लगती है और विध्वंस-लीला होने लगती है. आसपास के नगर और गाँव बर्बाद हो जाते हैं. सन् 79 ई. का विसुवियस विस्फोट सुषुप्त ज्वालामुखी का ही उदाहरण था जो अपनी तलहटी में बसे पम्पयाई और हरक्यूलैनियम नगरों को निगल गया. फिर यह 17वीं शताब्दी, 19वीं शताब्दी और 20वीं शताब्दी में (सन् 1906 ई. में) जगा और

अपार क्षति पहुँचा गया. जापान का फ्यूजीयामा जो संसार का सबसे सुन्दर ज्वालामुखी कहा जाता है, सुषुप्त ज्वालामुखी के अन्दर आता है. पता नहीं, वह कब विध्वंस की लीला शुरू कर दे, फिर भी जापानियों को वह बहुत प्रिय है. फिलीपीन का मेयन भी एक सुन्दर ज्वालामुखी है जिसे “फिलीपीन का फ्यूजीयामा” कहा जाता है. यह भी कई बार फूट चुका है. जावा और सुमात्रा के बीच क्राकाटोआ विस्फोट (सन् 1883 ई. का) भी सुषुप्त ज्वालामुखी का ही उदाहरण प्रस्तुत कर गया. इसने एकाएक वह प्रलय लाने वाला दृश्य उपस्थित किया जो किसी ने न देखा था और न सुना था. इतने जोर का विस्फोट हुआ कि उसकी आवाज़ हजारों मील तक सुनाई पड़ी थी. समुद्र में इतनी बड़ी लहरें उत्पन्न हुई थीं कि वे पृथ्वी की परिक्रमा करने लगीं. आकाश में उससे इतनी अधिक धूल और राख फैली कि तीन वर्ष तक उड़ती रही. उस समय विस्फोट से वायु में इतनी तेज लहरें पैदा हुईं कि वे तीन बार पृथ्वी की परिक्रमा कर आयीं. उस विस्फोट में लगभग 36 हज़ार आदमी मरे और सारा द्वीप नष्ट हो गया.

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