चर्चा में क्यों?
हाल ही में जलवायु परिवर्तन के गंभीर खतरे के जवाब में, जलवायु वित्त पर नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (New Collective Quantified Goal on Climate Finance NCQG) जलवायु चुनौतियों से निपटने के लिये विकासशील देशों के लिये संसाधनों के संग्रहण के उद्देश्य से एक महत्त्वपूर्ण पहल के रूप में उभरा है।
- यह संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन फ्रेमवर्क सम्मेलन (United Nations Framework Convention on Climate Change UNFCCC) के आगामी 29वें पार्टियों के सम्मेलन (COP29) के लिये एक महत्त्वपूर्ण विषय है, जो वर्ष 2024 के अंत में बाकू, अज़रबैजान में होगा।
जलवायु वित्त पर नया सामूहिक परिमाणित लक्ष्य (NCQG) क्या है?
- परिचय:
- NCQG एक नया वार्षिक वित्तीय लक्ष्य है जिसे विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने के लिये वर्ष 2025 से पूरा करना होगा।
- यह प्रति वर्ष 100 बिलियन अमरीकी डाॅलर की पूर्व प्रतिबद्धता का स्थान लेगा जिसे विकसित देशों ने वर्ष 2009 में देने का वचन किया था लेकिन इसे पूरा करने में विफल रहे।
- NCQG एक नया वार्षिक वित्तीय लक्ष्य है जिसे विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों को जलवायु वित्त प्रदान करने के लिये वर्ष 2025 से पूरा करना होगा।
- NCQG का महत्त्व:
- विकासशील देशों को सशक्त बनाना: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कम योगदान देने के बावज़ूद विकासशील देश अक्सर जलवायु परिवर्तन से असंगत रूप से प्रभावित होते हैं।
- NCQG उन्हें स्वच्छ ऊर्जा, अनुकूलन उपायों और जलवायु-अनुकूल अवसंरचना में निवेश करने के लिये आवश्यक वित्तीय संसाधन प्रदान करता है।
- जलवायु कार्रवाई में तेज़ी लाना: जलवायु परिवर्तन शमन और अनुकूलन संबंधी कार्यों के लिये महत्त्वपूर्ण निवेश की आवश्यकता है।
- NCQG पेरिस समझौते के लक्ष्यों के अनुरूप महत्त्वाकांक्षी जलवायु कार्य योजनाओं को लागू करने के लिये विकासशील देशों के लिये आवश्यक वित्तपोषण कर सकता है।
- एक उचित परिवर्तन को बढ़ावा देना: NCQG कम कार्बन और जलवायु-लचीली अर्थव्यवस्था में एक उचित परिवर्तन का समर्थन कर सकता है, आर्थिक रूप से कमज़ोर समुदायों की रक्षा करते हुए नए रोज़गार के अवसर सृजित कर सकता है।
- वैश्विक सहयोग को बढ़ावा देना: NCQG को पूरा करने के लिये विकसित और विकासशील देशों के मध्य सहयोग की आवश्यकता है।
- यह अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देता है और जलवायु परिवर्तन के प्रति वैश्विक प्रतिक्रिया को मज़बूत करता है।
- विकासशील देशों को सशक्त बनाना: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कम योगदान देने के बावज़ूद विकासशील देश अक्सर जलवायु परिवर्तन से असंगत रूप से प्रभावित होते हैं।
पेरिस जलवायु समझौता:
- वैधानिक स्थिति: यह जलवायु परिवर्तन पर वैधानिकरूप से बाध्यकारी अंतर्राष्ट्रीय संधि है।
- अभिग्रहण: इसे दिसंबर, वर्ष 2015 में पेरिस में पार्टियों के सम्मेलन COP 21 में 196 देशों द्वारा अपनाया गया था।
- लक्ष्य: ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे सीमित करना और पूर्व-औद्योगिक स्तरों की तुलना में इसे अधिमानतः 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करना।
- उद्देश्य: दीर्घकालिक तापमान लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये, देशों का लक्ष्य सदी के मध्य तक जलवायु-तटस्थ दुनिया को प्राप्त करने के लिये ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के वैश्विक चरम पर पहुँचाना है।
- भारत पेरिस समझौते का हस्ताक्षरकर्त्ता है। भारत ने अगस्त, वर्ष 2022 में UNFCCC को एक अद्यतन NDC प्रस्तुत करके समझौते के प्रति अपनी प्रतिबद्धता की पुष्टि की। NDC 2021-2030 के लिये भारत के लक्ष्यों की रूपरेखा तैयार करता है।