

राजस्थान विधानसभा के चुनाव में वैसे तो तीसरे विकल्प की गुंजाइश अब भी नहीं है मगर जातीय समीकरणों पर आधारित छोटी पार्टियों के साथ बागी उम्मीदवार कांग्रेस और भाजपा दोनों की चुनावी सिरदर्दी बढ़ाते नजर आ रहे हैं। हनुमान बेनीवाल जहां जाट बिरादरी का कार्ड खेल रहे। वहीं चंद्रशेखर की आसपा अब खुद को बसपा की जगह दलित समाज की उभरती सियासी छतरी के रूप में पेश कर रही है।
राजस्थान विधानसभा के चुनाव में वैसे तो तीसरे विकल्प की गुंजाइश अब भी नहीं है, मगर जातीय समीकरणों पर आधारित छोटी पार्टियों के साथ बागी उम्मीदवार सत्ताधारी कांग्रेस और भाजपा दोनों की चुनावी सिरदर्दी बढ़ाते नजर आ रहे हैं।
सत्ता सियासत की होड़ में शामिल दोनों पार्टियां चाहे जैसा भी दावा करें पर कोई एकतरफा चुनावी बयार जैसी सूरत अभी तक दिखाई नहीं दे रही है। ऐसे में राजस्थान के चुनावी मुकाबले में बागियों के साथ छोटी पार्टियों के वोट काटने का असर चुनावी करवट की दशा-दिशा तय करने में निर्णायक साबित हो सकता है। इस लिहाज से हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (ASP) के जातीय समीकरणों का नया प्रयोग राजस्थान में कांग्रेस और भाजपा दोनों को कई पॉकेट में परेशान कर रहा है।