उत्तराखंड में 1973 में शुरू किया गया ऐतिहासिक पर्यावरण आंदोलन चिपको आंदोलन के हाल ही में 50 वर्ष पूर्ण हो गए हैं।
चिपको आंदोलन क्या था?
- प्रारंभ:
- यह आंदोलन 1970 के दशक में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ जब यह क्षेत्र बाहरी ठेकेदारों की व्यावसायिक गतिविधियों के कारण बड़े पैमाने पर वनों की कटाई का सामना कर रहा था।
- इसकी शुरुआत तब हुई जब रेनी और मंडल के हिमालयी गाँवों की महिलाएँ जंगलों को वाणिज्यिक लकड़हारे से बचाने के लिये पास के जंगलों में पेड़ों से चिपक गईं।
- परिचय:
- इस आंदोलन का नाम ‘चिपको’ ‘वृक्षों के आलिंगन’ के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया।
- इसकी सबसे बड़ी जीत लोगों के वनों पर अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कि कैसे ज़मीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित कर सकती है।
- इसने वर्ष 1981 में 30 डिग्री ढलान से ऊपर और 1,000 msl (माध्य समुद्र तल-msl) से ऊपर के वृक्षों की व्यावसायिक कटाई पर प्रतिबंध को प्रोत्साहित किया।
- प्रमुख हस्तियाँ और नेता:
- चंडी प्रसाद भट्ट: वह एक गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्त्ता और पर्यावरणविद् थे, जो आंदोलन के शुरुआती चरण के दौरान सक्रिय थे।
- उन्होंने दशोली ग्राम स्वराज्य मंडल (DGSM) नामक एक संगठन की स्थापना की।
- इसने आंदोलन को आकार देने और निरंतर वनों की कटाई के विरुद्ध ग्रामीणों को एकजुट करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- सुंदरलाल बहुगुणा: वे अहिंसा और समाजवाद के गांधीवादी दर्शन से प्रेरित थे।
- उन्होंने स्थानीय समुदायों को संगठित करने और वनों के महत्त्व के बारे में जागरूकता प्रसार करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- उनके प्रयास लोगों को संगठित करने में सहायक थे।
- गौरा देवी: वह एक ग्रामीण महिला थीं जो प्रतिरोध का प्रतीक बन गईं।
- उन्होंने रेनी गाँव में महिलाओं के एक समूह का नेतृत्व किया, जिन्होंने लकड़हारों का सामना किया और पेड़ों को शारीरिक रूप से गले लगाया, जिससे पेड़ों की कटाई को प्रभावी रूप से रोका जा सका।
- इसके साथ ही चिपको मुख्य रूप से महिलाओं के नेतृत्व वाला आंदोलन बन गया। इससे देश के अन्य हिस्सों की महिलाओं को भी प्रेरणा मिली।
- चंडी प्रसाद भट्ट: वह एक गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्त्ता और पर्यावरणविद् थे, जो आंदोलन के शुरुआती चरण के दौरान सक्रिय थे।
- आंदोलन के पीछे का दर्शन:
- गांधीवादी दर्शन के अहिंसा और प्रकृति के साथ सद्भाव में रहना।
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना और उनके प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में उन्हें आवाज़ देना।
- इसका उद्देश्य बाहरी ठेकेदारों की शोषणकारी प्रथाओं को चुनौती देना और वन प्रबंधन के लिये अधिक समावेशी एवं भागीदारी दृष्टिकोण को बढ़ावा देना था।
- प्रभाव:
- इसने भारत के विभिन्न हिस्सों में इसी तरह के आंदोलन जैसे कि नर्मदा बचाओ आंदोलन, अप्पिको आंदोलन (कर्नाटक) और साइलेंट वैली मूवमेंट को प्रेरित किया।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चिपको आंदोलन पर्यावरण विनाश के विरुद्ध प्रतिरोध का प्रतीक बन गया।
- इस आंदोलन ने भारत में नीतिगत बदलावों को भी प्रभावित किया, जिससे अवैध वनों की कटाई और स्वदेशी समुदायों के अधिकारों के विरुद्ध सख्त नियम एवं कानून बने।
- इसे वनों के संरक्षण हेतु महिलाओं की सामूहिक लामबंदी के लिये अधिक याद किया जाता है, जिन्होंने सामाजिक स्थिति के विगत दृष्टिकोण में परिवर्तन लाया।
- वर्ष 2024 में चिपको आंदोलन की प्रासंगिकता:
- यह आंदोलन पर्यावरणीय चुनौतियों से निपटने के दौरान प्रेरणा का स्रोत और सामूहिक कार्रवाई के सामर्थ्य की याद दिलाता है।
- सततता, सामुदायिक भागीदारी और अहिंसक प्रतिरोध के इसके सिद्धांत जलवायु परिवर्तन के विरुद्ध संघर्ष तथा हमारे पारिस्थितिक तंत्र की सुरक्षा में प्रासंगिक बने हुए हैं।
- यह ज़मीनी स्तर के कार्यों, महिलाओं की भागीदारी और योजना में स्थानीय समुदायों को शामिल करने के लिये एक प्रेरणा के रूप में भी कार्य करता है।
अन्य इसी प्रकार के पर्यावरण आंदोलन:
आंदोलन का नाम | वर्ष | स्थान | नेतृत्वकर्त्ता | विवरण |
बिश्नोई आंदोलन | 1700 | राजस्थान में खेजुली, मनवर क्षेत्र | अमृता देवी | लोग वृक्षों की कटाई को रोकने के लिये उनसे लिपट जाते थे। |
चिपको आंदोलन | 1973 | उत्तराखंड | सुंदरलाल बहुगुणा | इसका मुख्य उद्देश्य हिमालय की ढलानों पर वृक्षों को टिहरी बाँध परियोजना के ठेकेदारों से बचाना था। |
साइलेंट वैली आंदोलन | 1978 | साइलेंट वैली, केरल | केरल शास्त्र साहित्य परिषद | साइलेंट वैली पनविद्युत परियोजना के विरुद्ध एक आंदोलन। नवंबर, 1983 में साइलेंट वैली पनविद्युत परियोजना को रद्द कर दिया गया था। वर्ष 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान का उद्घाटन किया। |
अप्पिको आंदोलन | 1982 | झारखंड के सिंहभूम ज़िले में करिपुझा नदी | आदिवासी | प्राकृतिक वन के स्थान पर सागौन के बागान लगाने की सरकारी योजना के विरुद्ध। |
सेव आरे मूवमेंट | 2019 | मुंबई में आरे राष्ट्रीय उद्यान | मेधा पाटकर, अरुंधति रॉय और विभिन्न गैर सरकारी संगठन | मुंबई मेट्रो लिमिटेड (MMRLC) परियोजना के लिये आरे कॉलोनी में पेड़ों की कटाई के विरुद्ध। |
सेव देहिंग-पटकाई | नवंबर 2019 | देहिंग-पटकाई वन्यजीव अभयारण्य, असम | रोहित चौधरी, आदिल हुसैन, रणदीप हुडा और जोई जादव पायेंग | देहिंग-पटकाई अभयारण्य में खनन की अनुमति देने के राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड (NBWL) के फैसले के विरुद्ध एक आंदोलन। |
सेव सुंदरबन | वर्ष 2019-2020 | सुंदरबन, पश्चिम बंगाल | ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन तथा ऑल असम मटक यूथ स्टूडेंट्स यूनियन | मई 2020 में चक्रवात अम्फान के बाद सुंदरबन मैंग्रोव वन के खतरों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये एक अभियान। |