चर्चा में क्यों?
एक हालिया रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि वर्तमान में लगभग 5 लाख भारतीय महिलाएँ ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) में कार्यरत हैं।
- ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा कई रणनीतिक कार्य करने के लिये स्थापित अपतटीय इकाइयाँ हैं।
रिपोर्ट की मुख्य बातें क्या हैं?
- GCC में वृद्धि:
- भारत लगभग 1,600 GCC की मेज़बानी करता है, जिसमें 2022-23 में 2.8 लाख कर्मचारियों की वृद्धि हुई, जिससे इसका प्रतिभा आधार 1.6 मिलियन से अधिक था।
- वर्तमान में लगभग पाँच लाख महिलाएँ भारतीय ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) में काम करती हैं, जिनमें भारत में GCC के कुल 16 लाख कर्मचारियों में से 28% शामिल हैं। डीप टेक इकोसिस्टम में लैंगिक विविधता 23% है।
- कार्यकारी एवं उच्चस्तरीय भूमिकाएँ:
- केवल 6.7% महिलाएँ GCC में और 5.1% महिलाएँ डीप टेक संगठनों में कार्यकारी भूमिका निभाती हैं।
- GCC में वरिष्ठ स्तर (9-12 वर्ष का अनुभव) पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व 15.7% है।
- स्नातक प्रतिनिधित्व:
- 2020-23 के बीच शीर्ष इंजीनियरिंग विश्वविद्यालयों से महिला स्नातकों का औसत प्रतिनिधित्व 25% है।
- चुनौतियाँ एवं प्रणालीगत बाधाएँ:
- महिलाओं की नौकरी छोड़ने की प्रवृत्ति परिवार और देखभाल की ज़िम्मेदारियों, कॅरियर में उन्नति एवं नेतृत्व के अवसरों तक सीमित पहुँच तथा खराब कार्य-जीवन संतुलन जैसे कारकों से प्रभावित होती है।
ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCC) क्या हैं?
- परिचय:
- ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (GCCs) कंपनियों द्वारा अपनी मूल संस्थाओं को कई प्रकार की सेवाएँ प्रदान करने के लिये स्थापित अपतटीय प्रतिष्ठानों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- वैश्विक कॉर्पोरेट ढाँचे के भीतर आंतरिक संस्थाओं के रूप में कार्य करते हुए, ये केंद्र आईटी सेवाओं, अनुसंधान एवं विकास, ग्राहक सहायता तथा विभिन्न अन्य व्यावसायिक कार्यों सहित विशेष क्षमताएँ प्रदान करते हैं।
- GCC लागत दक्षता का लाभ उठाने, प्रतिभा भंडारों का दोहन करने और मूल उद्यमों एवं उनके अपतटीय समकक्षों के बीच सहयोग को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र (Special Economic Zones- SEZs) कर छूट, सरलीकृत नियमों और सुव्यवस्थित नौकरशाही जैसे कई लाभ प्रदान करके GCC के विस्तार को एक मंच उपलब्ध करा सकते हैं।
- वर्तमान स्थिति:
- 2022-23 में लगभग 1,600 GCC ने 46 बिलियन अमेरिकी डॉलर का बाज़ार स्थापित किया, जिसमें 17 मिलियन लोगों को रोज़गार मिला।
- GCC के भीतर, पेशेवर और परामर्श सेवाएँ भारत के सेवा निर्यात का केवल 25% हिस्सा होने के बावजूद सबसे तेज़ी से बढ़ने वाला खंड है।
- पिछले चार वर्षों में उनकी 31% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (Compounded Annual Growth Rate- CAGR) कंप्यूटर सेवाओं (16% CAGR) और अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी) सेवाओं (13% CAGR) से काफी अधिक है।
विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) क्या हैं?
- SEZ किसी देश के भीतर ऐसे क्षेत्र हैं जो प्रायः शुल्क मुक्त (राजकोषीय रियायत) होते हैं और यहाँ मुख्य रूप से निवेश को प्रोत्साहित करने तथा रोज़गार उत्पन्न करने के लिये अलग-अलग व्यापार और वाणिज्यिक कानून होते हैं।
- SEZ इन क्षेत्रों को बेहतर ढंग से संचालित करने के लिये भी बनाए गए हैं, जिससे व्यापार सुगमता में आसानी (ease of doing business) होती है।
- एशिया का पहला निर्यात प्रसंस्करण क्षेत्र (Export Processing Zones- EPZ) वर्ष 1965 में कांडला, गुजरात में स्थापित किया गया था।
- इन EPZs की संरचना SEZ के समान थी, सरकार ने वर्ष 2000 में EPZ की सफलता को सीमित करने वाली ढाँचागत और नौकरशाही चुनौतियों के निवारण के लिये विदेश व्यापार नीति के तहत SEZ की स्थापना शुरू की।
- विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम वर्ष 2005 में पारित किया गया और वर्ष 2006 में SEZ नियमों के साथ लागू हुआ।
- भारत के SEZ को चीन के सफल मॉडल के साथ मिलकर संरचित किया गया था। वर्तमान में 379 SEZs अधिसूचित हैं, जिनमें से 265 वर्तमान में संचालित हैं। लगभग 64% SEZ पाँच राज्यों– तमिलनाडु, तेलंगाना, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में स्थित हैं।
- भारत की मौजूदा SEZ नीति का अध्ययन करने के लिये वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा बाबा कल्याणी के नेतृत्व वाली समिति का गठन किया गया था तथा उसने नवंबर 2018 में अपनी सिफारिशें प्रस्तुत की थीं।
- इसे विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organisation- WTO) के अनुकूल बनाने की दिशा में SEZ नीति का मूल्यांकन करने और क्षमता उपयोग एवं SEZ के संभावित उत्पादन को अधिकतम करने के लिये वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं को लाने के व्यापक उद्देश्य के साथ स्थापित किया गया था।