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गिग वर्कर्स के लिये सामाजिक सुरक्षा

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चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक, राजस्थान के बाद गिग वर्कर्स के लिये कानून लाने वाला दूसरा राज्य बना।

कर्नाटक सरकार ने इस कानून {कर्नाटक प्लेटफॉर्म-आधारित गिग कर्मकार (सामाजिक सुरक्षा और कल्याण) विधेयक} का प्रारूप संस्करण प्रस्तुत किया जिसका लक्ष्य बोर्ड, कल्याण कोष और शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित कर राज्य में प्लेटफॉर्म-आधारित गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा तथा कल्याण को विनियमित करना है।

गिग वर्कर्स यूनियन ने हीटवेव को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने की मांग की

तेलंगाना में गिग वर्कर्स की यूनियन ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) से गिग वर्कर्स पर हीटवेव के प्रभाव पर विचार करने की मांग की।
यूनियन की मांग है कि हीटवेव को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाना चाहिये और श्रमिकों के लिये सहायता प्रणाली स्थापित की जानी चाहिये।
इसमें स्वच्छ पेयजल, ओरल रिहाइड्रेशन, सुलभ शौचालय, विश्राम हेतु छायादार स्थल, अत्यधिक गर्मी की स्थिति में कार्य के उपयुक्त घंटों के विकल्प के साथ अनिवार्य विराम की सुविधा उपलब्ध कराने के मामले में राज्य सरकार के हस्तक्षेप सहित 10 मांगें रखी गई हैं।

विधेयक से संबंधित प्रमुख बिंदु क्या हैं?

कल्याण बोर्ड का गठन: कर्नाटक के श्रम मंत्री, दो एग्रीगेटर अधिकारी, दो गिग वर्कर और एक सिविल सोसायटी सदस्य को शामिल करते हुए एक बोर्ड का गठन किया जाएगा।
प्रारूप विधेयक में श्रमिकों के लिये दो-स्तरीय शिकायत निवारण तंत्र और प्लेटफॉर्मों द्वारा नियोजित स्वचालित निगरानी तथा निर्णय लेने की प्रणालियों के संबंध में अधिक पारदर्शिता की परिकल्पना की गई है।
समय पर भुगतान: इस प्रारूप में एग्रीगेटर्स द्वारा वर्कर को प्रत्येक सप्ताह भुगतान करने और भुगतान में कटौती के कारणों के बारे में उन्हें सूचित करने का आदेश दिया गया है।
विशिष्ट पहचान: गिग वर्कर बोर्ड के साथ पंजीकरण करने के साथ सभी प्लेटफॉर्म पर प्रयोज्य विशिष्ट पहचान प्राप्त करने के लिये आवेदन कर सकते हैं।
सामाजिक सुरक्षा और शिकायत निवारण: इसमें गिग वर्कर्स के लिये शिकायत निवारण तंत्र के साथ-साथ योगदान के आधार पर सामान्य और विशिष्ट सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुँच सुनिश्चित की जाएगी।
स्वायत्तता एवं संविदात्मक अधिकार: अनुबंधों को समाप्त करने की अधिक स्वतंत्रता तथा नियोक्ताओं द्वारा अत्यधिक कार्य दबाव से बचना, इस विधेयक के दो लक्ष्य हैं।
एग्रीगेटर किसी भी कर्मचारी को लिखित में वैध कारण बताए बिना तथा 14 दिन की पूर्व सूचना दिये बिना नौकरी से नहीं हटाएगा।
कार्यात्मक वातावरण एवं सुरक्षा: एग्रीगेटर्स के लिये यह अनिवार्य है कि वे गिग वर्कर्स हेतु सुरक्षित कार्यात्मक वातावरण बनाए रखें।
कल्याण निधि: प्रस्तावित निधि का वित्तपोषण राज्य और श्रमिक योगदान के साथ-साथ एग्रीगेटर्स से प्राप्त कल्याण शुल्क द्वारा किया जाएगा।
दंड: विधेयक के अंतर्गत शर्तों का उल्लंघन करने वाले एग्रीगेटर्स के लिये मूल ज़ुर्माना 5,000 रुपए से बढ़ाकर 1 लाख रुपए किया जा सकता है।

गिग वर्कर्स कौन हैं?

गिग वर्कर्स: सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 के अनुसार, गिग इकॉनमी एक श्रम बाज़ार है जो पूर्णकालिक स्थायी कर्मचारियों के बजाय स्वतंत्र ठेकेदारों और फ्रीलांसरों द्वारा भरे गए अस्थायी और अंशकालिक पदों पर बहुत अधिक निर्भर करता है तथा साथ ही वे ऐसी गतिविधियों से लाभ अर्जित करते हैं।
गिग इकोनाॅमी: एक मुक्त बाज़ार प्रणाली जिसमें अस्थायी पद सामान्य होते हैं और संगठन अल्पकालिक अनुबंधों के लिये स्वतंत्र श्रमिकों के साथ अनुबंध करते हैं।
नीति आयोग की 2022 की रिपोर्ट का अनुमान है कि वर्ष 2029-30 तक भारत में 23.5 मिलियन गिग वर्कर्स होंगे।

गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की क्या आवश्यकता है?

बारंबार समापन: श्रमिकों का पक्ष सुने बिना उन्हें ब्लैक लिस्ट में डालने या नौकरी से बर्खास्त करने की घटनाएँ बढ़ी हैं।
आर्थिक सुरक्षा: यह क्षेत्र मांग पर निर्भर करता है, जिसके कारण नौकरी की असुरक्षा और आय की अनिश्चितता बनी रहती है, जिससे बेरोज़गारी बीमा, विकलांगता कवरेज तथा सेवानिवृत्ति बचत कार्यक्रम जैसे सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
स्वास्थ्य बीमा: नियोक्ता द्वारा प्रायोजित स्वास्थ्य बीमा और अन्य स्वास्थ्य सेवा लाभों तक पहुँच की कमी के कारण गिग कर्मचारी अप्रत्याशित चिकित्सा व्यय के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। उनके स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता देने से एक स्वस्थ तथा अधिक उत्पादक कार्यबल का निर्माण होगा।
समान अवसर: पारंपरिक रोज़गार सुरक्षा से छूट से असमानताएँ उत्पन्न होती हैं, जहाँ गिग वर्कर्स को शोषणकारी कार्य स्थितियों और अपर्याप्त मुआवज़े का सामना करना पड़ता है। सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने से समान अवसर मिलेंगे।
दीर्घकालिक वित्तीय सुरक्षा: नियोक्ता द्वारा प्रायोजित सेवानिवृत्ति योजनाओं के बिना गिग वर्कर्स को अपनी सेवानिवृत्ति के बाद की आवश्यकताओं के लिये पर्याप्त बचत करने में कठिनाई हो सकती है।

गिग वर्कर्स को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने में मुख्य चुनौतियाँ क्या हैं?

वर्गीकरण और अत्यधिक लचीलापन: ‘गिग इकोनाॅमी’ (Gig Economy) को इसके लचीलेपन के लिये जाना जाता है, जहाँ कामगारों को यह तय करने की अनुमति मिलती है कि वे कब, कहाँ और कितना कार्य करें।
इस लचीलेपन को समायोजित करने वाले तथा गिग श्रमिकों की विविध आवश्यकताओं को पूरा करने वाले सामाजिक सुरक्षा लाभों को डिज़ाइन करना एक जटिल कार्य है।
वित्तपोषण और लागत वितरण: पारंपरिक सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ नियोक्ता और कर्मचारी के योगदान पर निर्भर करती हैं, जहाँ नियोक्ता आमतौर पर लागत के एक उल्लेखनीय भाग का वहन करते हैं।
पारंपरिक सामाजिक सुरक्षा प्रणालियाँ नर्स और कर्मचारियों के योगदान पर निर्भर करती हैं, जहाँ नर्स आमतौर पर लागत के एक उल्लेखनीय भाग का वहन करती हैं।
समन्वय और डेटा साझाकरण: विभिन्न सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों के लिये गिग वर्कर्स के आय अर्जन, योगदान एवं पात्रता का सटीक आकलन करने के लिये गिग प्लेटफॉर्म, सरकारी एजेंसियों एवं वित्तीय संस्थानों के बीच कुशल डेटा साझाकरण और समन्वयन आवश्यक है।
लेकिन चूँकि गिग वर्कर्स प्रायः कई प्लेटफॉर्म या क्लाइंट्स के लिये कार्य करते हैं, जिससे इस संदर्भ में समन्वय करना और उचित कवरेज सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है।
शिक्षा और जागरूकता: कई गिग श्रमिक सामाजिक सुरक्षा लाभों के संबंध में अपने अधिकारों और पात्रता से अनभिज्ञ भी हो सकते हैं।
इनकी जागरूकता बढ़ाना और सामाजिक सुरक्षा, पात्रता मानदंड एवं आवेदन प्रक्रिया के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।

गिग वर्कर्स से संबंधित सरकार की पहल

सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 में ‘गिग अर्थव्यवस्था’ पर एक अलग खंड शामिल है और यह गिग नियोक्ताओं पर एक सामाजिक सुरक्षा कोष में योगदान करने का दायित्व डालता है, जिसे सरकार के नेतृत्व वाले बोर्ड द्वारा नियंत्रित किया जाएगा।
वेतन संहिता 2019, गिग श्रमिकों सहित संगठित और असंगठित क्षेत्रों में सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन तथा न्यूनतम वेतन का प्रावधान करती है।
राजस्थान विधानसभा ने हाल ही में एक विधेयक पारित किया जिसका उद्देश्य गिग श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करना है।

गिग वर्कर्स की सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु क्या उपाय किये जा सकते हैं?

सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 का क्रियान्वयन: हालाँकि सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020 में गिग वर्कर्स के लिये उपबंध मौजूद हैं, लेकिन विभिन्न राज्यों द्वारा इस संदर्भ में नियमों को तैयार किया जाना अभी शेष है और बोर्ड की स्थापना के संबंध में भी अधिक कुछ नहीं किया गया है। सरकार को इस दिशा में त्वरित कार्रवाई करनी चाहिये।
नियोक्ता की ज़िम्मेदारियों का विस्तार: गिग श्रमिकों के लिये मज़बूत समर्थन उन गिग कंपनियों की तरफ से आना चाहिये जो इस दक्ष एवं निम्न लागत वाली कार्यव्यवस्था से लाभान्वित होती हैं।
गिग वर्कर्स को स्व-नियोजित या स्वतंत्र अनुबंधकर्त्ता के रूप में वर्गीकृत किया जाए, व्यवहार्यतः यह उचित नहीं भी हो सकता है।
कंपनियों को नियमित कर्मचारी के समान लाभ प्रदान किये जाने चाहिये।
शिक्षा एवं प्रशिक्षण: सरकार को गिग श्रमिकों के कौशल में सुधार लाने तथा उनकी कमाई की क्षमता बढ़ाने के लिये शिक्षा और प्रशिक्षण कार्यक्रमों में निवेश करना चाहिये।
सरकारी सहायता: सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रदान करने की ज़िम्मेदारी साझा करने हेतु निष्पक्ष एवं पारदर्शी तंत्र स्थापित करने के लिये सरकारों, गिग प्लेटफॉर्मों एवं श्रमिक संगठनों के बीच सहयोग स्थापित करना।
उदाहरण के लिये, आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं को नियोक्ता के साथ लागत साझा करते हुए गिग श्रमिकों को भी कवर करने हेतु बढ़ाया जाना चाहिये।
अंतर्राष्ट्रीय उदाहरणों को अपनाना: ब्रिटेन ने गिग श्रमिकों को “श्रमिक” के रूप में वर्गीकृत करके एक मॉडल स्थापित किया है, जो कर्मचारियों तथा स्व-रोज़गार वाले लोगों के बीच की श्रेणी है।
इससे उन्हें न्यूनतम वेतन, सवैतनिक छुट्टियाँ, सेवानिवृत्ति लाभ योजनाएँ और स्वास्थ्य बीमा सुरक्षित होता है।
उन्हें इंडोनेशिया में स्वास्थ्य, दुर्घटना और मृत्यु बीमा आदि के अधिकार प्राप्त हैं।
महिला सशक्तीकरण को गिग इकोनॉमी से जोड़ना: ऐसे भौतिक और सामाजिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण की आवश्यकता है जो गिग कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी का समर्थन करे।

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