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कॉर्पोरेट्स में महिलाओं का प्रतिनिधित्व

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चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (NCAER) की एक रिपोर्ट से पता चला है कि भारत में शीर्ष प्रबंधन और कंपनी बोर्डों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है, लेकिन अभी भी यह वैश्विक औसत से काफी कम है।

विश्व बैंक के एक अन्य अध्ययन में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारत को ऋण तक आसान पहुँच के लिये महिलाओं के नेतृत्व वाले ग्रामीण उद्यमों के लिये एक विशिष्ट प्राथमिकता क्षेत्र का दर्जा देने की आवश्यकता है।

राष्ट्रीय अनुप्रयुक्त आर्थिक अनुसंधान परिषद (NCAER)

यह भारत का अग्रणी स्वतंत्र आर्थिक अनुसंधान संस्थान है। वर्ष 1956 में स्थापित यह सर्वेक्षण और डेटा संग्रह के माध्यम से व्यावहारिक आर्थिक विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करता है।

प्राथमिक क्षेत्र में योगदान:

RBI ने बैंकों को अपने फंड का एक निश्चित हिस्सा कृषि, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME), निर्यात ऋण, शिक्षा, आवास, सामाजिक बुनियादी ढाँचा तथा नवीकरणीय ऊर्जा जैसे अन्य क्षेत्रों को ऋण प्रदान का आदेश दिया है।
सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों और विदेशी बैंकों (भारत में एक बड़ी उपस्थिति के साथ) को इन क्षेत्रों को ऋण प्रदान करने के लिये अपने समायोजित शुद्ध बैंक ऋण (ANDC) का 40% अलग रखना अनिवार्य है।
क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों, सहकारी बैंकों और लघु वित्त बैंकों को ANDC का 75% PSL को आवंटित करना होगा।
इसके पीछे यह सुनिश्चित करना है कि पर्याप्त संस्थागत ऋण अर्थव्यवस्था के कमज़ोर क्षेत्रों तक पहुँचे, जो अन्यथा लाभप्रदता के दृष्टिकोण से बैंकों के लिये आकर्षक नहीं हो सकते हैं।

भारतीय कॉर्पोरेट्स में महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर NCAER के प्रमुख निष्कर्ष क्या हैं?

शीर्ष प्रबंधन पदों पर महिलाओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2014 में लगभग 14% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में लगभग 22% हो गई।
भारत में कंपनी बोर्ड में महिलाओं की हिस्सेदारी वित्त वर्ष 2014 में लगभग 5% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में लगभग 16% हो गई।
भारत में मध्यम और वरिष्ठ प्रबंधन भूमिकाओं में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 20% है, जबकि वैश्विक औसत 33% है।
NSE सूचीबद्ध फर्मों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की हिस्सेदारी:
अध्ययन की गई लगभग 60% फर्मों, जिनमें बाज़ार पूंजीकरण के हिसाब से शीर्ष 10 NSE-सूचीबद्ध फर्मों में से 5 शामिल हैं, की मार्च 2023 तक उनकी शीर्ष प्रबंधन टीमों में कोई महिला नहीं थी।
लगभग 10% फर्मों में मात्र एक महिला थी।

नोट:

विश्व बैंक के आँकड़ों के अनुसार, महिलाओं की वैश्विक श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) 50% से थोड़ी अधिक है, जबकि पुरुषों की 80% है।
श्रम शक्ति भागीदारी दर (LFPR) कुल श्रम शक्ति को कुल कार्यशील आयु वर्ग की आबादी से विभाजित करने का अनुपात है। जो कार्यशील आयु वर्ग की आबादी 15 से 64 वर्ष की आयु के लोगों को संदर्भित करती है।
भारत में महिलाओं की LFPR वर्ष 2017 में 23% से बढ़कर वर्ष 2023 में लगभग 37% हो गई है।

भारत में महिलाओं के लिये रोज़गार के अवसर बढ़ाने पर विश्व बैंक की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?

महिलाओं के नेतृत्व वाले ग्रामीण उद्यमों हेतु प्राथमिकता क्षेत्र का टैग प्रदान करना: विश्व बैंक के अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं के सूक्ष्म उद्यमों को दिये जाने वाले ऋणों को अलग से प्राथमिकता नहीं दी जाती है।
यह उच्च विकास क्षमता वाले महिलाओं के स्वामित्व वाले उद्यमों को विशेष रूप से पूरा करने के लिये सूक्ष्म उद्यम क्षेत्र के भीतर एक नवीन उप-श्रेणी निर्माण का सुझाव देता है।
डिजिटल विभाजन को कम करना: रिपोर्ट ने महिला उद्यमियों को डिजिटल साक्षरता से युक्त करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया, जिसमें उनकी वित्तीय प्रबंधन क्षमताओं को बढ़ाने के लिये डिजिटल बहीखाता और भुगतान प्रणालियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रम शामिल हैं।
स्थायी विकास हेतु स्नातक कार्यक्रम: रिपोर्ट में सूक्ष्म ऋणकर्त्ताओं को मुख्यधारा के वाणिज्यिक वित्त में मदद करने के लिये स्नातक कार्यक्रमों को लागू करने का सुझाव दिया गया है।
यह ग्रामीण भारत में महिलाओं की उद्यमिता को प्रभावी ढंग से बढ़ावा देने और सूचित निर्णय लेने के लिये बैंकों सहित हितधारकों द्वारा ज़िला-स्तरीय डेटा एनालिटिक्स के रणनीतिक उपयोग का भी समर्थन करता है।
संस्थागत पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करना: रिपोर्ट में मेंटरशिप और व्यावसायिक सहायता के लिये ग्रामीण क्षेत्रों में इनक्यूबेशन केंद्रों को विकेंद्रीकृत करने की सिफारिश की गई है।
यह समुदाय और सहकर्मी प्रशिक्षण को बढ़ावा देने के लिये महिला उद्यमी संघों को विकसित करने का भी सुझाव देता है।

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