चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को मंज़ूरी दी, जिसके तहत पूरे भारत में लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के चुनाव एक साथ होंगे।
- यह निर्णय पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली एक उच्च स्तरीय समिति द्वारा ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव‘ योजना पर रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद लिया गया।
एक साथ चुनाव संबंधी समिति की प्रमुख सिफारिशें क्या हैं?
- संविधान में संशोधन: दो विधेयकों में एक साथ चुनाव कराने के लिये संविधान में संशोधन किया जाना चाहिये।
- विधेयक 1: लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाएंगे। इसके लिये संविधान संशोधन के लिये राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी।
- विधेयक 2: नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव, लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के साथ इस प्रकार समन्वयित किये जाएंगे कि स्थानीय निकाय के चुनाव, लोक सभा और राज्य विधानसभाओं के चुनावों के 100 दिनों के अंदर कराए जाएँ।
- इसके लिये कम से कम आधे राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
- आवश्यक संशोधन: एक साथ चुनाव कराने के लिये समिति ने भारत के संविधान में 15 संशोधनों की सिफारिश की थी। कुछ प्रमुख संशोधनों में शामिल हैं:
- अनुच्छेद 82A: कोविंद समिति द्वारा अनुशंसित पहला विधेयक संविधान में एक नया अनुच्छेद 82A जोड़ने से शुरू होगा।
- अनुच्छेद 82A द्वारा वह प्रक्रिया स्थापित होगी जिसके द्वारा देश में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने की प्रणाली लागू होगी।
- इसने सिफारिश की है कि अनुच्छेद 327 के तहत संसद की शक्ति का विस्तार करके इसमें “एक साथ चुनाव कराने” को भी शामिल किया जाना चाहिये।
- अनुच्छेद 83 और अनुच्छेद 172: इसने सिफारिश की कि अनुच्छेद 83(4) और 172(4) के तहत लोकसभा या राज्य विधानसभा शेष “अधूरे कार्यकाल” के लिये कार्य करेगी और फिर निर्धारित समय के तहत एक साथ चुनाव कराए जाने के अनुसार उसे भंग कर दिया जाएगा।
- अनुच्छेद 324A: इस समिति ने संविधान में एक नया अनुच्छेद 324A शामिल करने का सुझाव दिया है।
- यह नया अनुच्छेद संसद को यह सुनिश्चित करने के लिये कानून बनाने का अधिकार देगा कि नगर पालिका और पंचायत चुनाव, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के साथ-साथ आयोजित किये जाएँ।
- एकल मतदाता सूची और निर्वाचन पहचान पत्र: भारत निर्वाचन आयोग (ECI) राज्य निर्वाचन आयोगों (SEC) के परामर्श से चुनाव के सभी तीन स्तरों के लिये एकल मतदाता सूची और निर्वाचन पहचान पत्र तैयार कर सकता है।
- राज्य स्तर पर मतदाता सूची और निर्वाचन पहचान पत्र के संबंध में राज्य निर्वाचन आयोग की शक्ति को भारत निर्वाचन आयोग को हस्तांतरित करने के लिये संविधान संशोधन के लिये कम से कम आधे राज्यों के अनुमोदन की आवश्यकता होगी।
- त्रिशंकु विधानसभा या समयपूर्व विघटन: त्रिशंकु सदन अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी घटना की स्थिति में सदन की शेष अवधि के लिये नई लोकसभा या राज्य विधानसभा का गठन करने के लिये चुनाव कराए जाने चाहिये।
- रसद आवश्यकताओं को पूरा करना: भारत निर्वाचन आयोग, राज्य निर्वाचन आयोगों के परामर्श से अग्रिम रूप से योजना बनाएगा और आकलन करेगा तथा जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों, ईवीएम/वीवीपीएटी आदि के नियोजन हेतु कदम उठाएगा।
- चुनावों का समन्वयन: चुनावों का समन्वयन करने के लिये समिति ने सुझाव दिया है कि राष्ट्रपति आम चुनावों के बाद लोकसभा की पहली बैठक पर जारी अधिसूचना के माध्यम से एक ‘नियत तिथि’ निर्धारित करें ।
- यह तिथि नये चुनावी चक्र की शुरुआत का प्रतीक होगी ।
- प्रस्तावित अनुच्छेद 82A के तहत , “नियत तिथि” के बाद आयोजित किसी भी आम चुनाव में निर्वाचित सभी राज्य विधानसभाएँ, लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के अंत में समाप्त होंगी , भले ही उन्होंने अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूरा किया हो या नहीं।
- उदाहरण: पश्चिम बंगाल (2026) और कर्नाटक (2028) में अगले विधानसभा चुनाव के बाद मई या जून 2029 में इन विधानसभाओं का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा और अगली लोकसभा के कार्यकाल के साथ इनको समन्वित किया जाएगा।
एक साथ चुनाव कराने पर पूर्व की सिफारिशें क्या हैं?
- विधि आयोग: वर्ष 2018 में स्थापित 21 वें विधि आयोग ने प्रस्ताव दिया कि एक साथ चुनाव कराने से कई लाभ होंगे जिसमें लागत बचत एवं प्रशासनिक संरचनाओं और सुरक्षा बलों पर दबाव कम होना आदि शामिल हैं ।
- वर्ष 1999 में भारत के विधि आयोग ने देश में चुनाव प्रणाली में सुधार के उपायों की जाँच करते हुए लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी।
- कार्मिक, लोक शिकायत, विधि और न्याय संबंधी विभाग-संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने अपनी 79 वीं रिपोर्ट में एक साथ चुनाव कराने के लिये एक वैकल्पिक और व्यावहारिक पद्धति की सिफारिश की थी।
- नीति आयोग: नीति आयोग ने वर्ष 2017 में एक साथ चुनाव कराने के विचार का समर्थन किया गया था।
एक साथ चुनाव क्या हैं ?
- परिचय: एक साथ चुनाव का अर्थ लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों अर्थात नगर पालिकाओं और पंचायतों का एक साथ चुनाव कराना है।
- इसका प्रभावी अर्थ यह है कि एक मतदाता एक ही दिन और एक ही समय में सरकार के सभी स्तरों के सदस्यों के चुनाव के लिये अपना वोट डालता है।
- वर्तमान में ये सभी चुनाव एक-दूसरे से स्वतंत्र रूप से होते हैं तथा प्रत्येक निर्वाचित निकाय की शर्तों के अनुसार समय-सीमा निर्धारित की जाती है।
- इसका तात्पर्य यह नहीं है कि देश भर में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिये मतदान एक ही दिन में हो जाना चाहिये । इसे चरणबद्ध तरीके से कराया जा सकता है।
- इसे लोकप्रिय रूप से एक राष्ट्र, एक चुनाव के रूप में जाना जाता है।
- इतिहास: वर्ष 1967 के चौथे आम चुनाव तक एक साथ चुनाव प्रचलन में थे।
- हालाँकि उत्तरोत्तर केंद्र सरकारों ने संवैधानिक प्रावधानों का प्रयोग करते हुए राज्य सरकारों को उनके कार्यकाल की समाप्ति से पहले ही बर्खास्त कर दिया तथा राज्यों और केंद्र में गठबंधन सरकारें विघटित होती रहीं , इसलिये एक साथ चुनाव कराने की प्रथा समाप्त हो गई।
- इसके बाद एक साथ चुनाव कराने के चक्र के बाधित होने से देश में अब एक वर्ष में पाँच से छह चुनाव होते हैं।
- यदि नगर पालिका और पंचायत चुनावों को भी इसमें शामिल कर लिया जाए तो चुनावों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी।
- एक साथ चुनाव की आवश्यकता: एक साथ चुनाव की वांछनीयता पर लागत, शासन, प्रशासनिक सुविधा और सामाजिक सामंजस्य के दृष्टिकोण से चर्चा की जा सकती है।
- लागत में कमी: लोकसभा के लिये आम चुनाव कराने में केंद्र सरकार को लगभग 4,000 करोड़ रुपये का खर्च करना होता है। राज्य के आकार के आधार पर राज्य विधानसभा चुनावों में भी काफी खर्च होता है।
- एक साथ चुनाव कराने से इन समग्र लागतों में कमी आ सकती है।
- अभियान मोड: मंत्रियों सहित राजनीतिक दल अक्सर राज्य में लगातार होने वाले चुनावों के कारण ‘अभियान’ में लगे रहते हैं जिससे प्रभावी नीति-निर्माण एवं शासन में बाधा उत्पन्न होती है।
- आदर्श आचार संहिता: चुनाव अवधि के दौरान (जो 45-60 दिनों तक चलती है) आदर्श आचार संहिता लागू होने के कारण केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा नई योजनाओं या परियोजनाओं की घोषणा नहीं की जा सकती है, जिससे शासन पर और अधिक प्रभाव पड़ता है।
- कार्यकुशलता पर प्रभाव: चुनावों के दौरान प्रशासनिक प्रक्रिया शिथिल हो जाती है क्योंकि पूरा ध्यान चुनाव कराने पर केंद्रित हो जाता है। इसके साथ ही चुनावों में अर्द्धसैनिक बलों को भी शामिल किया जाता है ।
- सामाजिक सामंजस्य: प्रतिवर्ष चुनावों के कारण ध्रुवीकरण अभियान से बहु-धार्मिक और बहुभाषी देश में सामाजिक विभाजन और भी गहरा हो सकता है।
- अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता: असमय चुनाव, अनिश्चितता और अस्थिरता का कारण बनते हैं जिससे आपूर्ति श्रृंखला, व्यावसायिक निवेश और आर्थिक विकास बाधित होते हैं।
- मतदाताओं पर प्रभाव: बार-बार चुनाव होने से मतदाताओं की भागीदारी सुनिश्चित करने में चुनौती आती है। एक साथ चुनाव होने से एक बार में ही वोट डालने का अवसर मिलता है।
- लागत में कमी: लोकसभा के लिये आम चुनाव कराने में केंद्र सरकार को लगभग 4,000 करोड़ रुपये का खर्च करना होता है। राज्य के आकार के आधार पर राज्य विधानसभा चुनावों में भी काफी खर्च होता है।
एक साथ चुनाव कराने से संबंधित चिंताएँ क्या हैं?
- संघीय भावना का कमज़ोर होना: राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को क्षेत्रीय दलों पर बढ़त मिलने से संघीय भावना कमजोर हो सकती है ।
- इससे क्षेत्रीय दल हाशिये पर जा सकते हैं जो स्थानीय मुद्दों और जमीनी स्तर के प्रचार पर निर्भर रहते हैं जबकि राष्ट्रीय दलों को बड़े संसाधनों और मीडिया प्रभाव से लाभ मिलता है ।
- पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस.वाई. कुरैशी ने एक साथ चुनाव कराने की आलोचना करते हुए कहा कि इससे राष्ट्रीय और स्थानीय मुद्दों के बीच का अंतर कम हो जाता है , जिससे संघवाद कमज़ोर होता है।
- चुनावी फीडबैक: चुनाव सरकारों के लिये फीडबैक तंत्र के रूप में कार्य करते हैं । हर पाँच वर्ष में केवल एक बार चुनाव कराने से प्रभावी शासन के लिये ज़रूरी समय पर फीडबैक लूप बाधित हो सकता है ।
- समयपूर्व विघटन: यदि एक साथ चुनाव कराए जाते हैं और सरकार लोकसभा में अपना बहुमत खो देती है तो यह प्रश्न उठता है कि क्या सभी राज्यों में नए चुनाव कराने की आवश्यकता होगी, भले ही सत्तारूढ़ दल के पास उन राज्यों में पूर्ण बहुमत हो।
- संवैधानिक संशोधन: एक साथ चुनाव कराने के लिये संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172 और 174 में संशोधन की आवश्यकता होगी , जो लोकसभा और राज्य विधानसभाओं की अवधि और विघटन से संबंधित हैं।
- अनुच्छेद 356 में भी परिवर्तन करने की आवश्यकता होगी, जिससे राष्ट्रपति शासन के तहत राज्य विधानसभाओं को भंग करने की अनुमति मिलती है।
- मतदाता समन्वय: क्षेत्रीय दल मतदाताओं को शामिल करने के लिये व्यक्तिगत तरीकों पर निर्भर होते हैं जैसे घर-घर जाकर प्रचार करना, स्थानीय बैठकें और छोटी रैलियाँ आयोजित करना आदि। एक साथ होने वाले चुनावों में मतदाता कॉर्पोरेट मीडिया के प्रभाव और बड़ी संगठित रैलियों से प्रभावित हो सकते हैं।
- एक अध्ययन में पाया गया कि 77% संभावना है कि दोनों चुनाव एक साथ होने पर मतदाता एक ही पार्टी को वोट देंगे।
एक साथ चुनाव से संबंधित चिंताओं का समाधान?
- भारतीय शासन की लोकतांत्रिक प्रकृति: राजनेताओं को अपने कार्यकाल के अंत में पुनः चुनाव लड़ना पड़ता है , जिससे वे विधायिका के “स्थायी सदस्य” बनने से वंचित हो जाते हैं।
- भारतीय शासन की इस लोकतांत्रिक संरचना से यह सुनिश्चित होता है कि राजनेता अपने मतदाताओं के प्रति जवाबदेह रहें।
- जवाबदेही तंत्र की स्थापना: मंत्रिपरिषद, विधायिका के प्रति जवाबदेह है और न्यायिक निगरानी राजनीतिक जवाबदेही बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- इसलिये बार-बार चुनाव कराना राजनेताओं को जवाबदेह बनाए रखने का एकमात्र या सबसे प्रभावी साधन नहीं है।
- भ्रष्टाचार पर लगाम: चुनावों में काफी खर्च की आवश्यकता होती है और राजनेता अक्सर चुने जाने के बाद इस खर्च की भरपाई करना चाहते हैं। इससे भ्रष्टाचार और समानांतर ब्लैक इकॉनमी को बढ़ावा मिलता है।
- एक साथ चुनाव कराने से भ्रष्टाचार पर काफी हद तक अंकुश लग सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय उदाहरण: दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन और जर्मनी जैसे संसदीय लोकतंत्रों ने अपने विधानमंडलों का कार्यकाल निश्चित कर रखा है।
- दक्षिण अफ्रीका में हर पाँच वर्ष में एक साथ राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव होते हैं।
- स्वीडन और जर्मनी अपने प्रधानमंत्री और चांसलर का चुनाव हर चार वर्ष में करते हैं तथा इनमें समय से पहले चुनाव कराए बिना अविश्वास की स्थिति से निपटने की व्यवस्था होती है।
निष्कर्ष:
एक साथ चुनाव कराने से लागत में कमी, प्रशासनिक दक्षता में वृद्धि तथा शासन में कम व्यवधान जैसे संभावित लाभ मिलते हैं। हालाँकि इसमें संवैधानिक संशोधनों, तार्किक जटिलताओं और संघवाद पर चिंताओं सहित चुनौतियाँ भी शामिल हैं। परिवर्तनकारी उपायों के साथ अक्सर अल्पकालिक कठिनाइयाँ आती हैं, जिससे उन्हें लागू करना राजनीतिक रूप से जोखिम भरा हो जाता है । हितधारकों के परामर्श और चरणबद्ध कार्यान्वयन एवं संतुलित दृष्टिकोण से इन चिंताओं को दूर करने के साथ ही पूरे भारत में एक साथ चुनाव कराने के लाभों को प्राप्त किया जा सकता है।