संदर्भ
सितंबर 2019 से शुरू हुई ऑस्ट्रेलिया की भीषण वनाग्नि के चलते जहाँ एक ओर व्यापक स्तर पर जान-माल की क्षति हो रही है वहीं दूसरी ओर पर्यावरण के लिये यह एक भयावह संकट की स्थिति बन गई है। इस वनाग्नि में ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स और क्वींसलैंड जैसे क्षेत्र मुख्य रूप से प्रभावित हुए हैं। हालाँकि इन क्षेत्रों के लिये वनाग्नि कोई नई बात नहीं है, क्योंकि यहाँ प्रत्येक वर्ष इस अवधि में ऐसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं, किंतु इस वर्ष की वनाग्नि ने पिछले सभी वर्षों के रिकॉर्ड तोड़ते हुए समस्त विश्व को पुन: इस विषय में गंभीरता से विचार-विर्मश करने और आवश्यक कदम उठाने के लिये विवश कर दिया है।
इस लेख में हम ऑस्ट्रेलिया की भीषण वनाग्नि से उपजे दस प्रमुख प्रभावों के विषय में बात कर रहे हैं।
1. प्रत्यक्ष, भौतिक रूप से परिलक्षित प्रभाव
- मीडिया रिपोर्टों के अनुसार, जनवरी 2020 के मध्य तक ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि (हालाँकि अंग्रेज़ी में इसके लिये बुशफायर पद का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसका अर्थ है झाड़ियों में लगी आग, परंतु विस्तृत संदर्भ में इसके लिये वनाग्नि पद का प्रयोग किया जा रहा है) के कारण 18 मिलियन हेक्टेयर भू-भाग जल चुका है, जिसके चलते 2,800 से अधिक घरों सहित 5,900 इमारतें नष्ट हो गई हैं। जान-माल के साथ-साथ बहुत बड़ी संख्या में वन्यजीवों को भी इससे क्षति पहुँची है।
2. पारिस्थितिक और जैव-विविधता पर पड़ने वाला प्रभाव
- आग की शुरुआती तबाही के बाद इसके प्रभाव अभी भी जारी है। एक अनुमान के अनुसार, निवास स्थान तथा खाद्य पदार्थों की क्षति के कारण आने वाले हफ्तों और महीनों में कुल मिलाकर अरबों की संख्या में वन्यजीवों, पक्षियों और कीटों के मरने की संभावना है। यह क्षति जैव-विविधता में आ रही भारी गिरावट का एक स्याह पक्ष प्रस्तुत करती है।
- विश्व की स्थलीय जैव-विविधता वनों में केंद्रित है: ये विश्व की वन्यजीवों, वनस्पतियों और कीट-पतंगों की सभी स्थलीय प्रजातियों के 80 प्रतिशत से अधिक भाग के आवास स्थान हैं। इसलिये जब वनों में आग लगती हैं, तो वह जैव-विविधता जिस पर मनुष्य अपने दीर्घकालिक अस्तित्व के लिये निर्भर है, भी राख में परिवर्तित हो जाती है। \
- वर्तमान में 1 मिलियन से अधिक प्रजातियों को विलुप्ति का सामना करना पड़ रहा है यदि हमने अपनी गतिविधियों में कोई परिवर्तन नहीं किया तो चरम मौसम की घटनाओं जैसे “भीषण वनाग्नि” प्रजातियों के अस्तित्व के लिये गंभीर चिंता का विषय बन जाएगा।
3. जन स्वास्थ्य
- जनवरी 2020 में प्राप्त जानकारी के अनुसार, आग से निकले धुएँ और इससे होने वाले वायु प्रदूषण के कारण कैनबरा की वायु गुणवत्ता (विश्व के किसी भी बड़े शहर की तुलना में) सबसे खराब पाई गई।
- वनाग्नि से हानिकारक धुआँ उत्पन्न होता है, उत्सर्जित (कार्बन के) महीन कण वायु प्रदूषण में मौजूद हानिकारक गैसों के साथ मिलकर प्रत्यक्ष रूप से मानव स्वास्थ्य के लिये खतरा उत्पन्न करते हैं। इससे न केवल आँखों में जलन और श्वसन प्रणाली में परेशानी आती हैं बल्कि फेफड़े को भी क्षति पहुँचती हैं, ब्रोंकाइटिस, अस्थमा का अटैक और समय से पहले मृत्यु, ऐसी बहुत-सी समस्याएँ है जिनका आधार वनाग्नि के कारण वायु प्रणाली में प्रवेश करने वाले महीन कण हो सकते हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, विशेष रूप से वृद्ध लोग, कार्डियोरेस्पिरेटरी रोग से पीड़ित रोगी, बच्चे और प्रत्यक्ष रूप से बाह्य वातावरण में कार्य करने वाले लोग (मज़दूर इत्यादि) इससे सर्वाधिक प्रभावित होते हैं।
4. सीमा-पार तक वनाग्नि के प्रभाव
- वनाग्नि से निकलने वाला धुआँ एक निश्चित सीमा से बंधा हुआ नहीं होता है, यदि ऑस्ट्रेलिया भीषण वनाग्नि का सामना कर रहा है तो ऐसा बिलकुल नहीं है और न ही होगा कि इसका असर केवल इस महाद्वीप तक ही सीमित रहें। अक्सर यह देखने को मिलता है कि वनाग्नि से उत्सर्जित ऊष्मा से उत्पन्न दबाव के चलते धुआँ समताप मंडल में प्रवेश कर जाता है।
- विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organization) के अनुसार, ऑस्ट्रेलिया की झाड़ियों में लगी आग का धुँआ प्रशांत महासागर को पार कर चुका है, जो जल्द ही अंटार्कटिक क्षेत्र में प्रवेश कर सकता है। इससे पूरे ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख शहरों की वायु गुणवत्ता को खतरनाक स्थिति में पहुँचा दिया है, इतना ही नहीं इसने न्यूजीलैंड और दक्षिण अमेरिका के शहरों की वायु गुणवत्ता को भी प्रभावित किया है, जल्द ही इसके अर्जेंटीना एवं चिली तक पहुँचने की संभावना है।
5. मानसिक स्वास्थ्य लागत
- वनों को क्षति पहुँचाने वाली इस प्रकार की घटनाओं से न केवल भौतिक रूप से नुकसान होता है; बल्कि मानसिक क्षति भी इसका एक स्याह रूप प्रकट करती है। घर, वस्तुएँ, पालतू जानवर, पशुधन या आजीविका के अन्य स्रोतों को खोने तथा जीवन की रक्षा हेतु आपातकालीन निकासी का भयावह अनुभव मानसिक आघात भी पहुँचाता है, जिससे बाहर निकलना कभी-कभी संघर्षपूर्ण हो जाता है। ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि के मामले में ऐसे बहुत-से उदाहरण देखने को मिले जो इस स्थिति को बेहतर ढंग से स्पष्ट कर सकते हैं।
- वनाग्नि की घटना के दौरान कुछ लोगों के क्षेत्र की विद्युत आपूर्ति बाधित हो गई, तो कहीं पर ईंधन स्टेशनों ने कार्य करना बंध कर दिया, तो मार्ग अवरुद्ध हो जाने के कारण लोग समय पर (बगैर किसी क्षति के) उस स्थान को खाली नहीं कर पाए और उच्च जोखिम वाले उन क्षेत्रों में फंसे रहे। सुरक्षा की तलाश में कुछ लोगों को समुद्र तट और नावों पर शरण लेने के लिये मजबूर होना पड़ा, ऐसी स्थिति में प्रभावित लोगों पर घटना का स्थायी मानसिक आघात होना, एक सामान्य स्थिति है।
6. आर्थिक लागत
- ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि के चलते देश की अर्थव्यवस्था को जो नुकसान पहुँचा है, उसका अभी भी विश्लेषण किया जा रहा है, लेकिन यह स्पष्ट है कि बुनियादी ढाँचा क्षतिग्रस्त हो चुका है और इसका प्रभाव खेती और पर्यटन जैसे उद्योगों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। कुछ व्यवसाय और संस्थान वायु प्रदूषण के उच्च स्तर के चलते अपने कार्य को बंद करने के लिये मजबूर हो गए हैं।
- रोज़गार, उत्पादन, आपूर्ति और आवागमन/परिवहन के ढाँचे को जिस स्तर पर क्षति पहुँची है उसने न केवल देश की अर्थव्यवस्था को कई बरस पीछे कर दिया गया है, बल्कि प्रतिस्पर्द्धा के इस दौर में इस समय देश का पूर्ण फोकस केवल अपने बुनियादी ढाँचे को दुरस्त करने और जीवन को सामान्य करने पर लगा हुआ है, जो एक चिंताजनक एवं कष्टकारी परिदृश्य है।
7. जलवायु प्रतिक्रिया एक फांस के रूप में
- 2019-20 की ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि तक यह माना जाता था कि ऑस्ट्रेलियाई वन, देश भर में हुई छोटी-बड़ी वनाग्नि की घटनाओं में उत्सर्जित कार्बन को अवशोषित करने के लिये पर्याप्त है। इसका अर्थ है कि ऑस्ट्रेलियाई वनों को शुद्ध शून्य कार्बन उत्सर्जन का दर्जा प्राप्त था। हालाँकि कोपरनिकस मॉनिटरिंग प्रोग्राम के अनुसार, जलवायु परिवर्तन ने वनाग्नि की घटनाओं को अधिक तीव्रता एवं बारंबारता प्रदान की है। वर्ष 2019-2020 की घटना के दौरान अभी तक 400 मेगाटन कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में उत्सर्जित हो चुकी हैं, इसके प्रत्यक्ष प्रभाव की कल्पना भी असहनीय है।
- पिछले तीन महीनों में हुआ यह कार्बन उत्सर्जन ऑस्ट्रेलिया के औसत वार्षिक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के बराबर है। यह न केवल ऑस्ट्रेलिया के वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक जलवायु परिवर्तन में भी योगदान करेगा और वनाग्नि की बारंबारता की संभावना में भी वृद्धि करेगा जिससे और अधिक कार्बन उत्सर्जन होगा। यह जलवायु प्रतिक्रिया लूप अथवा फांस से संबंधित एक गंभीर विषय है।
8. पर्यावरणीय लागत: प्रदूषण
- ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि का एक अन्य गंभीर प्रभाव प्रदूषण के रूप में भी देखने को मिल रहा है। वनाग्नि से निकली राख खेल के मैदानों, घरों, ऑस्ट्रेलिया के समुद्र तटों और मीठे पानी के स्रोतों जैसे महत्त्वपूर्ण स्थानों में प्रवेश कर रही है, वहाँ जमती जा रही है। पीने के पानी के स्रोत आमतौर पर वन क्षेत्रों में होते हैं, इसलिये वे वनाग्नि से उत्पन्न प्रदूषण की चपेट में आ रहे हैं।
- वनाग्नि की राख में भारी मात्रा में पोषक तत्त्व जैसे- नाइट्रोजन और फॉस्फोरस निहित होते हैं। पोषक तत्त्वों की बढ़ी हुई मात्रा सायनोबैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा दे सकती है, जिसे आमतौर पर नीले-हरे शैवाल के रूप में जाना जाता है। सायनोबैक्टीरिया रसायनों को उत्पादित करता है जो खराब स्वाद, गंध और कभी-कभी विषाक्त रसायनों सहित पानी की खराब गुणवत्ता जैसी समस्याओं का कारण बन सकते हैं।
- यदि यह राख समुद्र में अथवा जलधाराओं और नदियों में प्रवेश करती हैं तो संबंधित जल स्रोत की पारिस्थितिकी पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
यदि अतीत के कुछ उदाहरणों को संदर्भ के रूप में इस्तेमाल करने तो हम पाएंगे कि वनाग्नि से उत्पन्न धुएँ एवं राख ने समुद्री पारिस्थिकी तंत्र पर गंभीर रूप से नकारात्मक प्रभाव डाले हैं: 1990 के दशक के उत्तरार्ध में इंडोनेशिया में लगी भीषण वनाग्नि से उत्पन्न हुई धुंध ने व्यापक स्तर पर कोरल रीफ को नष्ट कर दिया था।
9. कृषि पर पड़ने वाले प्रभाव
- वनाग्नि के चलते व्यापक स्तर पर चारागाह नष्ट हो गए हैं, पशुधन के साथ-साथ अंगूर के बाग भी नष्ट हो गए हैं, ऐसी स्थिति में पहले से ही सूखे की चुनौती का सामना कर रहे क्षेत्र में पुनर्वृद्धि से जल संसाधनों पर अतिरिक्त भार पड़ेगा।
- मीडिया रिपोर्टों से ऐसे संकेत मिल रहें हैं कि इस वनाग्नि से देश की डेयरी आपूर्ति के गंभीर रूप से प्रभावित होने की संभावना है, हालाँकि अभी तक कोई स्पष्ट आँकड़ें प्राप्त नहीं हुए है तथापि विक्टोरिया और न्यू साउथ वेल्स के साथ-साथ ऑस्ट्रेलिया के प्रमुख दुग्ध उत्पादक राज्य वृहद स्तर पर फार्मलैंड और बुनियादी ढाँचे के नुकसान का सामना कर रहे हैं। इतना ही नहीं इसके चलते व्यापक स्तर पर मांस, ऊन और शहद का उत्पादन भी प्रभावित हो सकता है।
- मीट एंड लाइवस्टॉक ऑस्ट्रेलिया (Meat & Livestock Australia) के अनुसार, राष्ट्रीय स्तर पर भेड़ के झुंडों का लगभग 13 प्रतिशत उन क्षेत्रों में पाया जाता हैं जो वनाग्नि के कारण आंशिक रूप से प्रभावित हुए हैं और 17 प्रतिशत ऐसे क्षेत्रों से है जो इस घटना के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं।
- जलवायु परिवर्तन और भूमि पर 2019 की IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन के चलते उष्मन, वर्षा के बदलते पैटर्न और कुछ चरम मौसमी घटनाओं की उच्च आवृत्ति के कारण खाद्य सुरक्षा और कृषि उद्योग पहले से ही काफी प्रभावित है। कुछ शुष्क क्षेत्रों में, भूमि की सतह के वायु तापमान और वाष्पीकरण में वृद्धि हुई है, इससे वर्षा की मात्रा में कमी आई है जिससे मरुस्थलीकरण में इज़ाफा हुआ है। जलवायु परिवर्तन से प्रभावित इन क्षेत्रों में ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है।
ऐसी पर्यावरणीय स्थिति में इतने व्यापक स्तर पर वनाग्नि की घटना का यदि अल्पकालिक प्रभाव इतना गंभीर है तो इसके दीर्घकालिक प्रभाव की कल्पना कितनी भयावह होगी, इसका अंदाजा लगाना भी कठिन कार्य है।
10. बदलता सार्वजनिक दृष्टिकोण
- हालाँकि मीडिया रिपोर्टों में बार-बार इस बात पर बल दिया जा रहा है कि ऑस्ट्रेलियाई वनाग्नि के संबंध में झूठी सूचनाएँ प्रसारित की जा रही है, इस प्रकार की सूचनाओं का आधार जलवायु परिवर्तन और भीषण वनाग्नि अथवा बुशफायर के मध्य संबंध को क्षीण बनाना है।
- इसके इतर ऑस्ट्रेलिया की इस घटना ने न केवल ऑस्ट्रेलियाई लोगों बल्कि संपूर्ण विश्व को जलवायु परिवर्तन एवं उष्मन के मानवीय, पारिस्थितिकीय और आर्थिक विनाश की एक अंतर्दृष्टि प्रदान की है। इन दोनों के मध्य क्या संबंध है और वह कितना क्षीण अथवा दृढ़ है, इसका अनुमान लगाना बेहद सरल है।