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एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों में भर्ती संबंधी चिंताएँ

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चर्चा में क्यों?

देश भर में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (Eklavya Model Residential Schools- EMRS) के लिये शिक्षक भर्ती के संबंध में केंद्रीय बजट 2023 में किये गए हालिया संशोधनों जिनके अंतर्गत भर्ती के केंद्रीकरण ने हिंदी दक्षता को अनिवार्य किया है जिसने कई प्रकार की चिंताओं को उज़ागर किया है।

  • इस परिवर्तन के कारण हिंदी भाषी राज्यों से भर्ती किये गए कई शिक्षक दक्षिणी राज्यों में नियुक्ति के खिलाफ विरोध कर रहे हैं, क्योंकि ये यहाँ की भाषा, भोजन और संस्कृति से अपरिचित हैं इस कारण बड़ी संख्या में इनके द्वारा स्थानांतरण का अनुरोध किया जा रहा है।
  • इससे संबंधित एक और चिंता यह भी है कि इन परिवर्तनों ने जनजातीय विद्यार्थियों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है, जिन्हें ऐसे शिक्षकों द्वारा पढ़ाया जा रहा है जो स्थानीय भाषा और संस्कृति से अपरिचित हैं।

एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय (EMRS) क्या हैं?

  • EMRS पूरे भारत में भारतीय जनजातियों (ST-अनुसूचित जनजाति) के लिये मॉडल आवासीय विद्यालय बनाने की एक योजना है। इसकी शुरुआत वर्ष 1997-98 में हुई थी।
    • इन विद्यालयों का विकास जनजातीय विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये किया जा रहा है, जिसमें शैक्षणिक के साथ-साथ समग्र विकास की ओर भी ध्यान दिया जाएगा।
    • EMRS में CBSE पाठ्यक्रम का अनुसरण किया जाता है।
  • इस योजना का उद्देश्य जवाहर नवोदय विद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों की तरह ही विद्यालय बनाना है, जिसमें स्थानीय कला तथा संस्कृति को संरक्षित करने के लिये अत्याधुनिक सुविधाओं पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, साथ ही खेल एवं कौशल विकास में प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाएगा। वित्त वर्ष 2018-19 में EMRS योजना को नया रूप दिया गया।
  • संसद के वर्ष 2023 के बजट सत्र के दौरान, वित्त मंत्री ने घोषणा की कि EMRSमें कर्मचारियों की भर्ती की ज़िम्मेदारी राष्ट्रीय आदिवासी छात्र शिक्षा सोसायटी (National Education Society for Tribal Students- NESTS) को हस्तांतरित की जाएगी।
    • NESTS को अब देश भर में 400 से अधिक एकलव्य स्कूलों में 38,000 पदों पर स्टाफ उपलब्ध कराने का काम सौंपा गया है।
    • भर्ती के केंद्रीकरण का उद्देश्य EMRS प्रणाली में शिक्षकों की गंभीर कमी को दूर करना तथा राज्यों में भर्ती नियमों को मानकीकृत करना था।

नोट: जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) के तहत, आदिवासी छात्रों के लिये राष्ट्रीय शिक्षा सोसायटी (NESTS) की स्थापना एक स्वतंत्र संस्था के रूप में की गई थी। इसका लक्ष्य एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) में शिक्षकों एवं छात्रों के प्रशिक्षण के साथ-साथ क्षमता निर्माण करना है।

जनजातीय शिक्षा हेतु अन्य पहल

  • राजीव गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप योजना (RGNF): RGNF की शुरुआत वर्ष 2005-2006 में की गई थी जिसका उद्देश्य ST समुदाय के छात्रों को विज्ञान, मानविकी, सामाजिक विज्ञान तथा इंजीनियरिंग एवं प्रौद्योगिकी में नियमित और पूर्णकालिक एम.फिल तथा पीएचडी डिग्री जैसी उच्च शिक्षा प्राप्त करने हेतु प्रोत्साहित करना था।
  • जनजातीय क्षेत्रों में व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्र: इस योजना का उद्देश्य ST छात्रों की योग्यता और साथ ही वर्तमान बाज़ार रुझान के आधार पर उनके कौशल का विकास करना है।
  • राष्ट्रीय प्रवासी छात्रवृत्ति योजना: यह अनुसूचित जातियों, विमुक्त घुमंतू एवं अर्द्ध-घुमंतू जनजातियों, भूमिहीन कृषि मज़दूरों तथा पारंपरिक कारीगरों की श्रेणी से संबंधित निम्न आय वाले छात्रों को विदेश में अध्ययन करके उच्च शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा प्रदान करने के लिये एक केंद्रीय क्षेत्रक योजना है।
  • जनजातीय स्कूलों के डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन के लिये पहल: इस पहल का उद्देश्य सामाजिक कल्याण तथा सतत् विकास हेतु कृत्रिम बुद्धिमत्ता पाठ्यक्रम प्रदान करके, शिक्षकों के प्रशिक्षण एवं AI-आधारित परियोजनाओं पर छात्रों को परामर्श देकर एक समावेशी, कौशल-आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है।

EMRS में भर्ती से संबंधित हालिया मुद्दा क्या है?

  • हिंदी दक्षता की आवश्यकता:
    • हाल ही में भर्ती के केंद्रीकरण ने हिंदी दक्षता को अनिवार्य आवश्यकता के रूप में पेश किया है।
    • इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में हिंदी भाषी राज्यों से भर्ती किये गए कर्मचारियों को दक्षिणी राज्यों में EMRS में तैनात किया जा रहा है, जहाँ की भाषा, भोजन और संस्कृति उनके लिये अपरिचित है।
    • सरकार ने कहा है कि बुनियादी हिंदी भाषा दक्षता की आवश्यकता असामान्य नहीं है क्योंकि यह जवाहर नवोदय विद्यालयों और केंद्रीय विद्यालयों में भर्ती के लिये भी अनिवार्य है।
  • आदिवासी छात्रों पर प्रभाव:
    • एकलव्य विद्यालयों में अधिकांश आदिवासी विद्यार्थी ऐसे शिक्षकों से लाभान्वित होंगे जो उनके स्थानीय सांस्कृतिक संदर्भों को समझते हैं, क्योंकि इन समुदायों के पास बहुत विशिष्ट संदर्भ होते हैं जिनके तहत शिक्षण को अनुकूल बनाया जा सकता है।
      • सरकारी अधिकारियों ने कहा कि भर्ती किये गए शिक्षकों से दो वर्ष के भीतर स्थानीय भाषा सीखने की अपेक्षा की जाती है लेकिन भर्ती किये गए शिक्षकों में एक नई, पूर्ण रूप से अलग भाषा सीखने को लेकर आशंकाएँ हैं।
    • गैर-स्थानीय शिक्षकों की नियुक्ति से जनजातीय विद्यार्थियों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि वे ऐसे शिक्षकों के साथ तालमेल नहीं बैठा पाएंगे जो उनके सांस्कृतिक संदर्भ से परिचित नहीं हैं।

आगे की राह 

  • स्थानीयकृत भर्ती:
    • शिक्षकों का छात्रों के सांस्कृतिक और भाषाई संदर्भों से परिचित होना सुनिश्चित करने हेतु शिक्षकों की भर्ती में स्थानीय समुदायों को प्राथमिकता दी जानी चाहिये।
    • स्थानीय परंपराओं का सम्मान करते हुए शिक्षण विधियों की विविधता सुनिश्चित करने के लिये स्थानीय और गैर-स्थानीय दोनों प्रकार के शिक्षकों की भर्ती की जानी चाहिये।
  • भाषा संबंधी अनुकूल आवश्यकताएँ:
    • गैर-हिंदी भाषी क्षेत्रों में अनुकूलन की अनुमति देने के लिये भर्ती में अनिवार्य हिंदी योग्यता आवश्यकता का पुनर्मूल्यांकन किया जाना चाहिये।
    • शिक्षकों को उनके नियोजित किये गए क्षेत्रों की स्थानीय भाषाएँ सीखने के लिये भाषा सहायता कार्यक्रमों को सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया जाना चाहिये।
  • सांस्कृतिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण:
    • सभी शिक्षकों, विशेष रूप से गैर-स्थानीय क्षेत्रों के शिक्षकों को व्यापक सांस्कृतिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण प्रदान किया जाना चाहिये ताकि उन्हें उस समुदाय को समझने और उसमें एकीकृत होने में मदद मिल सके जिसकी वे सेवा करेंगे।
    • स्थानीय सांस्कृतिक संदर्भों और भाषा कौशल पर ध्यान केंद्रित करते हुए वर्तमान में जारी पेशेवर/व्यावसायिक विकास कार्यक्रमों का उन्नयन किया जाना चाहिये।
  • नीति समीक्षा:
    • शिक्षकों और छात्रों दोनों पर इसके प्रभाव का आकलन करने के लिये भर्ती नीति की नियमित समीक्षा की जानी चाहिये ताकि उभरते मुद्दों को संबोधित करने के लिये आवश्यक समायोजन किये जा सकें।
    • नीतियों का विभिन्न राज्यों के विविध सांस्कृतिक और भाषाई परिदृश्यों के अनुकूल होना सुनिश्चित किया जाना चाहिये।

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