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उपग्रह-आधारित संचार

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हाल ही में इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिये उपग्रह-आधारित संचार सर्वव्यापी और परिपक्व हो गया है, हालाँकि इसका विकास उपयोगकर्त्ता-केंद्रित से हटकर किया गया है, जिससे भारत में उपयोगकर्त्ताओं के लिये इसकी व्यवहार्यता पर सवाल उठ रहे हैं।
उपग्रह-आधारित संचार क्या है?

परिचय:
संचार उपग्रह एक प्रकार का कृत्रिम उपग्रह है, जिसे स्रोत और गंतव्य के बीच संचार संबंधी आँकड़ें भेजने और प्राप्त करने के लिये पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया जाता है। वर्तमान में कई कक्षाओं में तीन हज़ार से ज़्यादा संचार उपग्रहों के साथ संपूर्ण विश्व में लाखों लोग रेडियो, टेलीविज़न और सैन्य अनुप्रयोगों का इस्तेमाल करने के लिये उपग्रह संचार पर निर्भर हैं। उपग्रह संचार ने विश्व भर में उन स्थानों और डेटा संचार सेवाओं तक पहुँच सुनिश्चित की है जहाँ स्थलीय सेलुलर और ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी उपलब्ध नहीं है या नेटवर्क कवरेज़ की सुविधा खराब है।
प्रकार:
कक्षा के आधार पर संचार उपग्रहों को चार श्रेणियों में विभाजित किया गया हैं:
भू-स्थैतिक कक्षा (GEO)
मध्यम कक्षा (MEO)
निम्न कक्षा (LEO)
अत्यधिक दीर्घवृत्ताकार कक्षा (HEO)

कार्य:
उपग्रह संचार में पृथ्वी पर स्थित बिंदुओं के बीच माइक्रोवेव के माध्यम से सूचना प्रसारित करने और रिले करने के लिये पृथ्वी की परिक्रमा करने वाले उपग्रहों और ग्राउंड स्टेशनों का उपयोग किया जाता है।
इस प्रक्रिया में तीन चरण होते हैं:
अपलिंक
ट्रांसपोंडर
डाउनलिंक
उदाहरण के लिये लाइव टेलीविज़न में,
अपलिंक- एक प्रसारणकर्त्ता उपग्रह को संकेत भेजता है,
ट्रांसपोंडर- भेजे गए संकेत की आवृत्ति में परिवर्तन और वृद्धि करता है,
डाउनलिंक- फिर उसे पृथ्वी के स्टेशनों पर वापस भेजता है।

भारत में सैटकॉम सेवाओं की वर्तमान स्थिति:
यद्यपि भारत के लिये संचार संबंधी प्रौद्योगिकियाँ तैयार है, फिर भी भारत में सैटकॉम सेवाएँ की शुरूआत अभी तक नहीं हो पाई हैं, जिसका मुख्य कारण सरकार द्वारा उपग्रह बैंडविड्थ का आवंटन लंबित होना है।
हाल ही में रिलायंस इंडस्ट्रीज़ के जियो प्लेटफॉर्म्स को भारत के अंतरिक्ष नियामक, IN-SPACe से गीगाबिट फाइबर इंटरनेट सेवाओं के लिये उपग्रहों को स्थापित करने की मंज़ूरी मिल गई है, तथा परिचालन शुरू करने के लिये दूरसंचार विभाग से अतिरिक्त मंज़ूरी मिलनी बाकी है।
लक्षित सेवाएँ:
सैटकॉम ऑपरेटर व्यक्तिगत रूप से उपभोक्ताओं और उद्यमों दोनों को लक्षित कर योजना बना रहे हैं।
स्टारलिंक, पोर्टेबल राउटर के साथ उपभोक्ता-केंद्रित दृष्टिकोण के लिये जाना जाता है, जबकि एयरटेल और रिलायंस जियो, उपभोक्ता और उद्यम दोनों बाज़ारों पर नियंत्रण बनाए हुए हैं।

तकनीकी तत्परता:
डिवाइस संगतता एक मुद्दा है क्योंकि उपग्रह संकेतों को प्राप्त करने के लिये विशेष एंटेना की आवश्यकता होती है, जिससे उपभोक्ताओं के लिये लागत में वृद्धि हो जाती है। इसके अलावा, ऐप्पल और क्वालकॉम जैसी कंपनियों के प्रयासों के बावजूद, उपभोक्ता उपकरणों में उपग्रह रिसीवर का उपयोग अब तक सीमित रहा है।
चुनौतियाँ और सीमाएँ:
सैटकॉम सेवाओं को खासकर उपभोक्ता अनुप्रयोगों के लिये ‘हाई सेटअप’ लागत जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। विशिष्ट एंटेना सहित उपकरणों की लागत एक बाधा बनी हुई है साथ ही इनका मूल्य निर्धारण एक और चिंता का विषय है क्योंकि सैटकॉम सेवाएँ ब्रॉडबैंड की तुलना में अधिक महँगी होती हैं।
भविष्य का दृष्टिकोण:
भारत में सैटकॉम सेवाएँ विनियामक अनुमोदन, तकनीकी प्रगति और लागत संबंधी चिंताओं के समाधान पर निर्भर करती है। प्रोजेक्ट कुइपर जैसे नए सेवा प्रदाताओं के प्रवेश से बाज़ार में प्रतिस्पर्द्धा एवं नवाचार में संभावित रूप से वृद्धि हो सकती है।

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