यह एडिटोरियल 08/04/2024 को ‘हिंदू बिज़नेसलाइन’ में प्रकाशित “Will e-mobility go the biofuel way?” लेख पर आधारित है। इसमें चर्चा की गई है कि बैटरी की उपलब्धता/निपटान जैसी समस्याओं के कारण भारत के इलेक्ट्रिक वाहन (EVs) क्षेत्र की वृद्धि किस प्रकार प्रभावित हो सकती है और इस संबंध में व्यवहार्य समाधान प्रस्तावित किया गया है।
प्रिलिम्स के लिये:ई-मोबिलिटी, लिथियम, हाइब्रिड और इलेक्ट्रिक वाहनों को तेज़ी से अपनाने तथा विनिर्माण (FAME) योजना, वाहन स्क्रैपिंग नीति, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना। मेन्स के लिये:भारत में सतत् इलेक्ट्रिक मोबिलिटी से संबंधित चुनौतियाँ, ई-मोबिलिटी को अपनाने की राह। |
भारत वर्तमान में इलेक्ट्रिक वाहनों (Electric Vehicles- EVs) को लेकर एक उत्साह अनुभव कर रहा है जो स्वच्छ परिवहन के संभावित भविष्य की ओर लेकर जाएगा। EVs की ओर यह संक्रमण हमारे शहरों में उत्सर्जन को कम कर महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय लाभ प्रदान करने की आशा जगाता है।
हालाँकि, ई-मोबिलिटी की क्षमता को पूरी तरह से साकार करने के लिये कुछ प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान देना अत्यंत आवश्यक है। इसमें भारत का ऊर्जा मिश्रण (energy mix), चार्जिंग अवसंरचना का विकास, घरेलू बैटरी विनिर्माण और उत्तरदायी बैटरी निपटान अभ्यास शामिल हैं। ये सभी भारत में एक सुदृढ़ एवं संवहनीय ई-मोबिलिटी पारितंत्र के निर्माण के लिये अत्यंत महत्त्वपूर्ण पहलू हैं।
ई-मोबिलिटी:
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी (Electric mobility- e-mobility) एक ऐसी विधि है जो विभिन्न प्रकार के वाहनों को ऊर्जा प्रदान करने के लिये आंशिक या पूर्ण रूप से विद्युत प्रणोदन का उपयोग करती है। इसके उदाहरणों में कार, बस और साइकिल एवं स्कूटर जैसे व्यक्तिगत वाहन शामिल हैं। ई-मोबिलिटी के दो मुख्य प्रकार हैं: शुद्ध इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड।
- इलेक्ट्रिक वाहन:
- इलेक्ट्रिक वाहन (EVs) इलेक्ट्रिक मोटरों द्वारा संचालित होते हैं जो बैटरी में संग्रहित ऊर्जा का उपयोग करते हैं। EVs में आंतरिक दहन इंजन (ICE) के बजाय एक इलेक्ट्रिक मोटर मौजूद होती है।
- चूँकि EVs बिजली से चलते हैं, वाहन के टेलपाइप से कोई उत्सर्जन नहीं होता है; यानी इसमें शून्य टेलपाइप उत्सर्जन होता है और इसमें फ्यूल पंप, फ्यूल लाइन या फ्यूल टैंक जैसे घटक शामिल नहीं होते हैं।
- EVs प्रत्यक्ष रूप से सतत् विकास लक्ष्य 7 (SDG 7) में योगदान करते हैं, जिसका उद्देश्य सभी के लिये सस्ती, विश्वसनीय एवं संवहनीय ऊर्जा तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
- EVs जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हुए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा देते हैं और COP26 जलवायु शिखर सम्मेलन में भारत द्वारा व्यक्त ‘पंचामृत’ लक्ष्यों में योगदान करते हैं।
- भारत में ई-मोबिलिटी की वर्तमान स्थिति:
- ऊर्जा दक्षता ब्यूरो (Bureau of Energy Efficiency- BEE) के अनुसार, भारत में इलेक्ट्रिक वाहन उद्योग अभी बहुत पीछे है और कुल वाहन बिक्री में 1% से भी कम की हिस्सेदारी रखता है।
- वर्तमान में भारतीय सड़कों पर पारंपरिक वाहनों का प्रभुत्व है और लगभग 0.4 मिलियन इलेक्ट्रिक दोपहिया वाहन और कुछ हज़ार इलेक्ट्रिक कारें ही मौजूद हैं।
- EVs के लिये लक्ष्य: नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, भारत सरकार वर्ष 2030 तक बसों के लिये 40 प्रतिशत, निजी कारों के लिये 30 प्रतिशत, वाणिज्यिक वाहनों के लिये 70 प्रतिशत और दोपहिया वाहनों के लिये 80 प्रतिशत तक EVs अपनाने का लक्ष्य रखती है।
EVs क्यों महत्त्वपूर्ण हैं?
- पर्यावरणीय लाभ: EVs में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को उल्लेखनीय रूप से कम करने और जलवायु परिवर्तन से निपटने की क्षमता है ।
- EVs जीवाश्म ईंधन इंजन से संचालित वाहनों के विपरीत शून्य टेलपाइप उत्सर्जन उत्पन्न करते हैं।
- EVs कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) और अन्य प्रदूषकों को कम करने में मदद करते हैं जो वायु प्रदूषण, धुंध (smog) और ग्लोबल वार्मिंग में योगदान करते हैं।
- EVs नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), पार्टिकुलेट मैटर (PM) और वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (volatile organic compounds- VOCs) जैसे हानिकारक प्रदूषकों को कम करने में मदद करते हैं।
- इसका सार्वजनिक स्वास्थ्य पर प्रत्यक्ष सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि स्वच्छ हवा श्वसन और हृदय संबंधी रोगों के जोखिम को कम करती है।
- ऊर्जा विविधता और सुरक्षा: EVs तेल आयात पर निर्भरता को कम कर ऊर्जा विविधता में योगदान करते हैं।
- बिजली ग्रिड को सौर और पवन जैसे नवीकरणीय स्रोत सहित ऊर्जा स्रोतों के मिश्रण से संचालित किया जा सकता है। इस प्रकार, EVs परिवहन को स्वच्छ एवं अधिक संवहनीय ऊर्जा विकल्पों की ओर स्थानांतरित करने का अवसर प्रदान करते हैं।
- प्रौद्योगिकीय उन्नति और रोज़गार सृजन: EVs के विकास एवं अंगीकरण से बैटरी प्रौद्योगिकी, इलेक्ट्रिक ड्राइवट्रेन और चार्जिंग अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में प्रौद्योगिकीय उन्नति हुई है।
- इन उन्नतियों से न केवल ऑटोमोटिव क्षेत्र को लाभ हुए हैं बल्कि इनके अन्य व्यापक अनुप्रयोग भी हैं, जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों के लिये ऊर्जा भंडारण और ग्रिड स्थिरता।
- इलेक्ट्रिक मोबिलिटी बैटरी निर्माण, नवीकरणीय ऊर्जा और चार्जिंग अवसंरचना जैसे क्षेत्रों में रोज़गार एवं नवाचार उत्पन्न कर रही है।
- दीर्घकालिक लागत बचत: इलेक्ट्रिक वाहनों की परिचालन लागत कम होती है, क्योंकि बिजली आमतौर पर गैसोलीन या डीजल की तुलना में सस्ती होती है।
- इसके अलावा, EVs में मूविंग पार्ट्स कम होते हैं और इन्हें कम रखरखाव की आवश्यकता होती है, जिसके परिणामस्वरूप समय के साथ सर्विसिंग एवं मरम्मत में कम खर्च करना पड़ता है।
- शहरों में भीड़भाड़ कम करना: इलेक्ट्रिक वाहन साझा मोबिलिटी (shared mobility) और कॉम्पैक्ट डिज़ाइन को बढ़ावा देकर शहरों में भीड़ कम करने में मदद कर सकते हैं।
- साझा मोबिलिटी से तात्पर्य है वाहनों का उपयोग व्यक्तिगत संपत्ति के बजाय सेवा के रूप में करना। इससे सड़क पर वाहनों की संख्या और पार्किंग स्थल की आवश्यकता कम हो सकती है।
- कॉम्पैक्ट डिज़ाइन से तात्पर्य है छोटे और हल्के वाहनों का उपयोग, जो शहरी स्थानों में अधिक आसानी से फिट हो सकते हैं। इससे भीड़भाड़ और उत्सर्जन को कम किया जा सकता है।
- लघु इंट्रा-सिटी दूरी, डे-ट्रिप्स और इसी तरह की अन्य यात्राओं के लिये नवोन्मेषी एवं भविष्योन्मुखी स्मार्ट EVs को बड़ी बैटरी की आवश्यकता नहीं होगी। इसका अर्थ यह है कि उन्हें रिचार्ज करने में कम समय लगेगा और कम लागत आएगी।
भारत में ई-मोबिलिटी से संबद्ध प्रमुख उभरती हुई चुनौतियाँ:
- सीमित पर्यावरणीय लाभ:
- जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन पर भारत की वर्तमान निर्भरता इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े संभावित पर्यावरणीय लाभों को काफी हद तक कम कर देती है।
- इंडिया एनर्जी आउटलुक 2021 के अनुसार, यदि भारत अपने वर्तमान ऊर्जा मिश्रण (जीवाश्म ईंधन के 75 प्रतिशत प्रभुत्व के साथ) को जारी रखता है तो संभव है कि EVs की ओर संक्रमण से कार्बन उत्सर्जन में उल्लेखनीय कमी नहीं आएगी।
- जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन पर भारत की वर्तमान निर्भरता इलेक्ट्रिक वाहनों से जुड़े संभावित पर्यावरणीय लाभों को काफी हद तक कम कर देती है।
- रेंज संबंधी चिंता और अवसंरचनात्मक बाधाएँ:
- रेंज संबंधी चिंता से तात्पर्य गाड़ी चलाते समय बैटरी चार्ज खत्म होने के भय या चिंता से है। EVs अंगीकरण के लिये सीमित ड्राइविंग रेंज एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
- भारत के विद्युत मंत्रालय की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में राजमार्गों पर प्रत्येक 25 किमी पर एक चार्जिंग स्टेशन का होना निर्दिष्ट किया गया है। हालाँकि, वर्ष 2023 तक की स्थिति के अनुसार भारत में लगभग 1,800 चार्जिंग स्टेशन ही उपलब्ध हैं, जिनमें से अधिकांश दिल्ली, मुंबई और बेंगलुरु जैसे प्रमुख शहरों में केंद्रित हैं।
- इसके अतिरिक्त, पारंपरिक वाहनों में ईंधन भरने में लगने वाले समय की तुलना में चार्जिंग में अधिक लंबा समय लगता है।
- चार्जिंग स्टेशन स्थापित करना महंगा है, जिसके लिये भूमि और प्रौद्योगिकी में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होती है। EVs के व्यापक अंगीकरण से शीर्ष मांग घंटों के दौरान बिजली ग्रिड पर भी दबाव पड़ सकता है।
- रेंज संबंधी चिंता से तात्पर्य गाड़ी चलाते समय बैटरी चार्ज खत्म होने के भय या चिंता से है। EVs अंगीकरण के लिये सीमित ड्राइविंग रेंज एक महत्त्वपूर्ण चुनौती है।
- उच्च टायर उत्सर्जन (Higher Tyre Emissions):
- EVs पारंपरिक वाहनों की तुलना में भारी होते हैं जो संभावित रूप से टायरों से पार्टिकुलेट मैटर के अधिक उत्सर्जन की ओर ले जाते हैं। इससे EVs से प्राप्त टेलपाइप उत्सर्जन में कमी के कुछ लाभ घट जाते हैं।
- बैटरी निर्भरता और आपूर्ति शृंखला संबंधी मुद्दे:
- भारत घरेलू बैटरी विनिर्माण में पीछे है और आयात पर अत्यधिक निर्भर है। ग्लोबल इलेक्ट्रिक व्हीकल आउटलुक 2022 के अनुसार यह अपने कुल आयात का 77 प्रतिशत चीन से प्राप्त करता है।
- इससे भविष्य में बैटरी की कीमतों में वृद्धि के बारे में, विशेष रूप से कुछ कच्चे माल के सीमित भौगोलिक स्रोतों को देखते हुए, चिंताएँ पैदा होती हैं।
- उल्लेखनीय है कि भारत में जैव ईंधन (Biofuel) का विकास उस तरह से नहीं हो पाया है जैसा ब्राजील में हुआ है। यह स्थिति मुख्य रूप से भारत में जैव ईंधन के फीडस्टॉक की कमी के कारण है।
- इसके अतिरिक्त, उत्तरदायी बैटरी निपटान के लिये एक सुदृढ़ प्रणाली अभी तक स्थापित नहीं की गई है, जो संभावित पर्यावरणीय खतरा उत्पन्न करती है।
- कार्बन सीमा समायोजन तंत्र (Carbon Border Adjustment Mechanism- CBAM): यूरोपीय संघ (EU) द्वारा CBAM के कार्यान्वयन से हमारे कई उद्योग प्रभावित होंगे। CBAM उन विकासशील देशों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित कर सकता है जो अमीर देशों को निर्यात करने पर निर्भर हैं।
EVs अंगीकरण को बढ़ावा देने के लिये कुछ प्रमुख सरकारी पहलें:
- नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2024
- इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (FAME) योजना II
- राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना (NEMMP)
- परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन
- उत्पादन-आधारित प्रोत्साहन (PLI) योजना
- ‘गो इलेक्ट्रिक’ अभियान
- भारत उन कुछ देशों में से एक है जो वैश्विक EV30@30 अभियान का समर्थन करता है, जिसका लक्ष्य वर्ष 2030 तक कम से कम 30% नए वाहनों की बिक्री इलेक्ट्रिक श्रेणी से करना है।
भारत में ई-मोबिलिटी को बढ़ावा देने के संभावित उपाय:
- नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना: EVs के पर्यावरणीय लाभों को अधिकतम करने के लिये सौर और पवन ऊर्जा जैसे नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की ओर संक्रमण अत्यंत आवश्यक है।
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, वैश्विक जैव ईंधन गठबंधन (GBA), पीएम-कुसुम जैसी सरकारी पहलों का उद्देश्य नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन में भारत की क्षमता को बढ़ाना है। यह EVs की चार्जिंग के लिये स्वच्छ बिजली उत्पादन सुनिश्चित करेगा।
- चार्जिंग अवसंरचना का विस्तार करना: रेंज संबंधी चिंता को कम करने के लिये, विशेष रूप से राजमार्गों और ग्रामीण क्षेत्रों में चार्जिंग स्टेशनों का एक नेटवर्क विकसित करना आवश्यक है। बैटरी स्वैपिंग स्टेशनों जैसे नवीन समाधानों की खोज से चार्जिंग समय को काफी कम किया जा सकता है। हालाँकि, इस उपाय के लिये बैटरी डिज़ाइन का मानकीकरण और हितधारकों के बीच सहयोग आवश्यक है।
- परिवर्तनकारी गतिशीलता और बैटरी भंडारण पर राष्ट्रीय मिशन, उत्पादन आधारित प्रोत्साहन योजना जैसी सरकारी पहलों का उद्देश्य EVs की चार्जिंग से संबंधित अवसंरचनात्मक चुनौतियों का समाधान करना है।
- घरेलू बैटरी विनिर्माण को प्रोत्साहित करना: आयात निर्भरता को कम करने, बैटरी की लागत को नियंत्रित करने और नए रोज़गार के अवसर पैदा करने के लिये घरेलू बैटरी उत्पादन क्षमताओं में निवेश करना अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। सरकार और उद्योग के बीच सहयोग एक सुदृढ़ घरेलू बैटरी आपूर्ति शृंखला के विकास को बढ़ावा दे सकता है।
- इलेक्ट्रिक वाहनों का तीव्र अंगीकरण और विनिर्माण (FAME) योजना II जैसी सरकारी पहलों से EVs के लिये घरेलू बैटरी विनिर्माण में सहायता मिलने की संभावना है।
- बैटरी निपटान संबंधी चुनौतियों का समाधान करना: प्रयुक्त EVs बैटरियों के निपटान के लिये एक सुपरिभाषित प्रणाली का होना पर्यावरणीय संवहनीयता के लिये महत्त्वपूर्ण है। उत्तरदायी बैटरी निपटान अभ्यासों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाना और कुशल पुनर्चक्रण सुविधाओं में निवेश करना आवश्यक कदम होंगे।
- नई इलेक्ट्रिक वाहन नीति 2024 और वाहन स्क्रैपिंग नीति जैसी सरकारी पहलों से बैटरी निपटान संबंधी चुनौतियों का समाधान होने की संभावना है।
निष्कर्ष:
एक सफल ई-मोबिलिटी पारितंत्र के निर्माण के लक्ष्य की पूर्ति के लिये सरकार, उद्योग और विभिन्न हितधारकों के सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है। सरकार को EVs अंगीकरण और घरेलू बैटरी विनिर्माण के लिये वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान कर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी चाहिये। उद्योग को एक सुदृढ़ एवं कुशल ई-मोबिलिटी पारितंत्र का निर्माण करने के लिये अवसंरचना विकास, अनुसंधान और नवाचार में निवेश करने की आवश्यकता है जो सभी के लिये सस्ती/वहनीय स्वच्छ ऊर्जा तक पहुँच के SDG-7 लक्ष्य की पूर्ति कर सके।