31 अक्तूबर, 2020 को देश के पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की 36वीं पुण्यतिथि पर प्रधानमंत्री मोदीजी ने श्रद्धांजलि अर्पित की। गौरतलब है कि इसी दिन देश ने अपने प्रिय नेता को खो दिया था, जो न कि सिर्फ देश अपितु पूरे विश्व के लिये एक अपूर्णीय क्षति थी। इस दिन को याद करते हुए श्रीमती इंदिरा गांधी के जीवन पर चर्चा करना अपेक्षित हो जाता है।
पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुत्री श्रीमती इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर, 1917 को एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। इंदिराजी ने इकोले नौवेल्ले, बेक्स (स्विट्जरलैंड); इकोले इंटरनेशनल, जिनेवा; पूना और बंबई में स्थित प्यूपिल्स ओन स्कूल; बैंडमिंटन, ब्रिस्टल; विश्व भारती, शांति निकेतन और समरविले कॉलेज ऑक्सफोर्ड जैसे प्रमुख संस्थानों से शिक्षा प्राप्त की थी। प्रभावशाली शैक्षिक पृष्ठभूमि के कारण उन्हें कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा विशेष योग्यता प्रमाण दिया गया था। श्रीमती गांधी शुरू से ही स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रही थी। बचपन में उन्होंने ‘बाल चरखा संघ’ की स्थापना की थी और असहयोग आंदोलन के दौरान कॉन्ग्रेस पार्टी की सहायता के लिये 1930 में बच्चों के सहयोग से ‘वानर सेना’ का निर्माण किया था। सिंतबर 1947 में वे जेल भी गई थी। 1947 में इंदिरा गांधी ने महात्मा गांधीजी के मार्गदर्शन में दिल्ली के दंगा प्रभावित क्षेत्रों में भी कार्य किया था।
26 मार्च, 1942 को इंदिरा गांधी की शादी फिरोज़ गांधी से हुई। 1955 में श्रीमती इंदिरा गांधी कॉन्ग्रेस कार्य समिति और केंद्रीय चुनाव समिति की सदस्य बनी। 1956 में वे अखिल भारतीय युवा कॉन्ग्रेस और एआईसीसी महिला विभाग की अध्यक्ष बनी। इंदिरा गांधी वर्ष 1959 से 1960 तक भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद पर आसीन रही एवं जनवरी 1978 में उन्होंने पुन: यह पद ग्रहण किया।
1964 से 1966 तक वे सूचना और प्रसारण मंत्री के पद पर रही एवं इसके बाद जनवरी 1966 से मार्च 1977 तक वे भारत के प्रधानमंत्री के रूप में कार्यरत रहीं । उन्होंने विदेश मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी संभाला था। वर्ष 1970 से 1973 तक उन्होंने गृहमंत्रालय और 1972 से 1977 तक अंतरिक्ष मामले मंत्रालय का प्रभार भी संभाला। जनवरी 1980 में उन्होंने पुन: प्रधानमंत्री के पद को प्राप्त किया। उन्होंने योजना आयोग के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया। जनवरी 1980 में श्रीमती इंदिरा गांधी को रायबरेली (उत्तर प्रदेश) और मेडक (आंध्र प्रदेश) से सातवीं लोकसभा के लिये चुना गया था। श्रीमती इंदिरा गांधी ने रायबरेली की सीट का परित्याग कर मेडक में प्राप्त सीट का चयन किया।
उपलब्धियाँ |
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1972 | भारत रत्न पुरस्कार |
1972 | मैक्सिकन अकादमी पुरस्कार (बांग्लादेश की स्वतंत्रता हेतु) |
1976 |
साहित्य वाचस्पति (हिंदी) पुरस्कार (बागरी प्रचारिणी सभा द्वारा) |
1953 | मदर पुरस्कार (अमेरिका) इसावेला डी ‘एस्टे पुरस्कार (इटली) हॉलैंड मेमोरियल पुरस्कार (येल विश्वविद्यालय) |
1967-1968 | फ्रांस की सबसे लोकप्रिय महिला |
1971 | पशुओं के संरक्षण हेतु (अर्जेंटीना सोसायटी द्वारा सम्मानित) |
मुख्य प्रकाशन |
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द इयर्स ऑफ चैलेंज (1966-69) | |
द इयर्स ऑफ एंडेवर (1969-72) | |
‘इंडिया’ (लंदन) 1975 | |
इंडे (लौस्सैन) 1979 |
इंदिरा गांधी एवं आपातकाल
आज़ादी के महज़ 28 साल बाद ही देश को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के फैसले के कारण आपातकाल के दंश से गुजरना पड़ा था। 25-26 जून की रात को आपातकाल के आदेश पर राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद के हस्ताक्षर के साथ ही देश में आपातकाल लागू हो गया था।
मुख्य कारण
1971 के लोकसभा चुनाव में श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी राजनारायण को पराजित किया था। परंतु चुनाव परिणाम निकलने के चार साल बाद राजनारायण द्वारा हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी गई । 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी के चुनाव को निरस्त करते हुए उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया। इसके साथ ही श्रीमती इंदिरा गांधी के चिर प्रतिद्वंद्वी राजनारायण सिंह को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया गया।
राजनारायण सिंह के अनुसार इंदिरा गांधी द्वारा चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया गया, तय सीमा से अधिक पैसा खर्च किया गया और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिये गलत तरीकों का इस्तेमाल किया गया। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया , हालाँकि श्रीमती गांधी द्वारा इस्तीफा देने से इंकार कर दिया गया था। इसी समय गुजरात में चिमनभाई पटेल के विरूद्ध विपक्षी जनता मोर्चे को भारी विजय मिली थी। इस दोहरी हार से इंदिरा गांधी इतनी असहज हो गई थी कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने की घोषणा करते हुए 26 जून को आपातकाल लागू कर दिया। आपातकाल लागू करने की वजह अनियंत्रित आंतरिक स्थितियाँ बताई गई। धारा-352 के तहत सरकार को असीमित अधिकार संबंधी प्रावधान दिये गए-
- इंदिरा गांधी को इच्छानुसार समय तक सत्ता में रहने का अधिकार
- लोकसभा-विधानसभा हेतु चुनाव की आवश्यकता नहीं
- मीडिया और अखबार की स्वतंत्रता समाप्त
- सरकार को किसी भी प्रकार के कानून को पारित करने का अधिकार
मीसा एवं डीआईआर
इसके तहत देश में एक लाख से ज्यादा लोगों को जेल में डाल दिया गया।
संजय गांधी का पाँच सूत्रीय कार्यक्रम
संजय गांधी ने देश को आगे बढ़ाने के नाम पर पाँच सूत्रीय एजेंडे परिवार नियोजन, दहेज प्रथा का अंत, वयस्क शिक्षा, पेड़ लगाना, जाति प्रथा उन्मूलन पर कार्य करना आरंभ किया।
दिल्ली का तुर्कमान गेट मामला
सुंदरीकरण के नाम पर संजय गांधी ने एक ही दिन में दिल्ली के तुर्कमान गेट की झुग्गियों को साफ करवा दिया था।
परंतु आपातकाल लगने के 19 महीने में इंदिरा गांधी को इस गलती का एहसास हुआ एवं 18 जनवरी, 1977 को उन्होंने मार्च में लोकसभा चुनाव कराने की घोषणा की। 16 मार्च को संपादित इस चुनाव में इंदिरा गांधी एवं संजय गांधी पराजित हुए एवं 21 मार्च को आपातकाल खत्म हो गया।
आपातकाल के प्रभाव
आपातकाल के दौरान नागरिकों के संवैधानिक अधिकार, मीडिया की स्वतंत्रता आदि के अभाव में भारतीय लोकतंत्र अपने मूल स्वरूप से अलग हो चुका था। सरकार ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर हस्तक्षेप करते हुए संसदीय संप्रभुता को न्यायपालिका की स्वतंत्रता से ज्यादा महत्त्व दिया। यह संविधान के मूल ढाँचे के खिलाफ था। इसी दौरान संविधान की उद्देशिका में समाजवाद एवं पंचनिरपेक्ष शब्द भी जोड़े गए। इस प्रकार 42वाँ संविधान संशोधन, संविधान का अब तक का सबसे बड़ा संशोधन बन गया।
आपातकाल के बाद श्री मोरारजी देसाई भारत के प्रधानमंत्री बने। 42वें संविधान संशोधन के ऐसे प्रावधान, जो लोकतंत्र के मूलभूत आदर्शों के विरूद्ध थे, 1978 में 44वें संविधान संशोधन द्वारा बदल दिये गए, जैसे- प्रधानमंत्री द्वारा लिये जाने वाले प्रमुख फैसलों में कैबिनेट की सहमति की अनिवार्यता, न्यायपालिका की सर्वोच्चता आदि।
देखा जाए तो 1975 की आपातकाल की घोषणा भारतीय लोकतंत्र की दुखद घटना थी, लेकिन इस आपातकाल ने संविधान के उन स्तंभों को बहुत मज़बूत भी किया, जिससे भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति दोबारा न हो सके।
आपात उपबंध
- भारतीय संविधान में आपात उपबंधों को तीन भागों में बाँटा गया है- राष्ट्रीय आपात (अनुच्छेद-352), राज्यों में संवैधानिक तंत्र की विफलता/राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद-356) और वित्तीय आपात (अनुच्छेद-360)।
भारतीय संविधान में आपात उपबंध
- आपात उपबंध भारत शासन अधिनियम-1935 से लिये गए हैं।
- भारतीय संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352 से 360 तक आपातकाल से संबंधित उपबंध उल्लिखित हैं।
- ये प्रावधान केंद्र को किसी भी असामान्य स्थिति से प्रभावी रूप से निपटने में सक्षम बनाते हैं।
- संविधान में इन प्रावधानों को जोड़ने का उद्देश्य देश की संप्रभुता, एकता, अखंडता, लोकतांत्रिक राजनीतिक व्यवस्था तथा संविधान की सुरक्षा करना है।
उद्घोषणा- अनुच्छेद 352 में निहित है कि ‘युद्ध’ – ‘बाह्य आक्रमण’ या ‘सशस्त्र विद्रोह’ के कारण संपूर्ण भारत या इसके किसी हिस्से की सुरक्षा खतरें में हो तो राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है।
- मूल संविधान में ‘सशस्त्र विद्रोह’ की जगह ‘आंतरिक अशांति’ शब्द का उल्लेख था।
- 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1972 द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ को हटाकर उसके स्थान पर ‘सशस्त्र विद्रोह’ शब्द किया गया।
- जब आपातकाल की घोषणा युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर की जाती है, तब इसे बाह्य आपातकाल के नाम से जाना जाता है।
- दूसरी ओर, जब इसकी घोषणा सशस्त्र विद्रोह के आधार पर की जाती है तब इसे ‘आंतरिक आपातकाल’ के नाम से जाना जाता है।
- राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा संपूर्ण देश अथवा केवल इसके किसी एक भाग पर लागू हो सकती है।
- मिनर्वा मिल्स मामले (1980) में उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा को अदालत में चुनौती दी जा सकती है।
उद्घोषणा की प्रक्रिया एवं अवधि
- अनुच्छेद 352 के आधार पर राष्ट्रपति तब तक राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा नहीं कर सकता जब तक संघ का मंत्रिमंडल लिखित रूप से ऐसा प्रस्ताव उसे न भेज दे।
- यह प्रावधान 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा जोड़ा गया।
- ऐसी उद्घोषणा का संकल्प संसद के प्रत्येक सदन की कुल सदस्य संख्या के बहुमत तथा उपस्थिति व मतदान करने वाले सदस्यों को 2/3 बहुमत द्वारा पारित किया जाना आवश्यक होगा।
- राष्ट्रीय आपात की घोषणा को संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखा जाता है तथा एक महीने के अंदर अनुमोदन न मिलने पर यह प्रवर्तन में नहीं रहती, किंतु एक बार अनुमोदन मिलने पर छह माह के लिये प्रवर्तन में बनी रह सकती है।
उद्घोषणा की समाप्ति
- राष्ट्रपति द्वारा आपातकाल की उद्घोषणा को किसी भी समय एक दूसरी उद्घोषणा से समाप्त किया जा सकता है।
- ऐसी उद्घोषणा के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होगी।
- इसके अतिरिक्त राष्ट्रपति के लिये ऐसी उद्घोषणा को समाप्त कर देना आवश्यक होता है जिसे जारी रखने के अनुमोदन प्रस्ताव को लोकसभा निरस्त कर दे।
प्रभाव
1. केंद्र-राज्य संबंध पर प्रभाव
(अ) कार्यपालक
- केंद्र को किसी राज्य को किसी भी विषय पर कार्यकारी निर्देश देने की शक्ति प्राप्त हो जाती है।
- यद्यपि, राज्य सरकारों को निलंबित नहीं किया जाता।
(ब) विधायी
- संसद को राज्य सूची में वर्णित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
- यद्यपि, किसी राज्य विधायिका की विधायी शक्तियों को निलंबित नहीं किया जाता।
- उपरोक्त कानून, आपातकाल की समाप्ति के बाद छह माह तक प्रभावी रहते हैं।
- यदि संसद का सत्र नहीं चल रहा हो तो राष्ट्रपति, राज्य सूची के विषयों पर भी अध्यादेश जारी कर सकता है।
(स) वित्तीय
- राष्ट्रपति, केंद्र तथा राज्यों के मध्य करों के संवैधानिक वितरण को संशोधित कर सकता है।
- ऐसे संशोधन उस वित्त वर्ष की समाप्ति तक जारी रहते हैं, जिसमें आपातकाल समाप्त होता है।
2. लोकसभा तथा राज्य विधानसभा के कार्यकाल पर प्रभाव
- लोकसभा के कार्यकाल को इसके सामान्य कार्यकाल (5 वर्ष) से आगे बढ़ाने के लिये संसद द्वारा विधि बनाकर इसे एक समय में एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ाया जा सकता है।
- इसी प्रकार, संसद किसी राज्य विधानसभा का कार्यकाल भी प्रत्येक बार एक वर्ष के लिये (कितने भी समय तक) बढ़ा सकती है।
- उपरोक्त दोनों विस्तार आपातकाल की समाप्ति के बाद अधिकतम छह माह तक के लिये ही लागू रहते हैं।
3. मूल अधिकारों पर प्रभाव
- आपातकाल के समय मूल अधिकारों के स्थगन का प्रावधान जर्मनी के वाइमर संविधान से लिया गया है।
- अनुच्छेद 358 तथा 359 राष्ट्रीय आपातकाल में मूल अधिकार पर पड़ने वाले प्रभाव का वर्णन करते हैं।
- अनुच्छेद 358, अनुच्छेद 19 द्वारा दिये गए मूल अधिकारों के निलंबन से संबंधित है।
- जबकि अनुच्छेद 359 अन्य मूल अधिकारों के निलंबन (अनुच्छेद 20 तथा 21 द्वारा प्रदत्त अधिकारों को छोड़कर) से संबंधित है।
(अ)
- अनुच्छेद 358 के अनुसार, जब राष्ट्रीय आपत की उद्घोषणा की जाती है तब अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त छह मूल अधिकार स्वत: ही निलंबित हो जाते हैं।
- जब राष्ट्रीय आपातकाल समाप्त हो जाता है तो अनुच्छेद 19 स्वत: पुनर्जीवित हो जाता है।
- अनुच्छेद 19 द्वारा प्रदत्त 6 मूल अधिकारों को युद्ध अथवा बाह्य आक्रमण के आधार पर घोषित आपातकाल में ही निलंबित किया जा सकता है।
(ब)
- अनुच्छेद 359 के अंतर्गत मूल अधिकार नहीं अपितु उनका लागू होना निलंबित होता है। (अनुच्छेद 20 व 21 को छोड़कर)
- यह निलंबन उन्हीं मूल अधिकारों से संबंधित होता है जो राष्ट्रपति के आदेश में वर्णित होते हैं
- अनुच्छेद 359 के अंतर्गत निलंबन आपातकाल की अवधि अथवा आदेश में वर्णित अल्पावधि हेतु लागू हो सकता है और निलंबन का आदेश पूरे देश अथवा किसी भाग पर लागू किया जा सकता है।
अब तक की गई ऐसी घोषणाएँ
- अब तक तीन बार राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा की जा चुकी है-
1. अक्तूबर 1962 से जनवरी 1968 तक-चीन द्वारा 1962 में अरुणाचल प्रदेश के नेफा (North-East Fronfier Agency) क्षेत्र पर हमला करने के कारण।
2. दिसंबर 1971 से मार्च 1977 तक पाकिस्तान द्वारा भारत के विरुद्ध अघोषित युद्ध छेड़ने के कारण।
3. जून 1975 से मार्च 1977 तक आंतरिक अशांति के आधार पर।
सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि 1975 का यह आपातकाल मनमाने नियम के खतरे के खिलाफ एक चेतावनी के रूप में कार्य करता है, जो 1970 के दशक के बाद से नहीं देखा गया। आपातकाल द्वारा मिलने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण सबक यह है कि भारत के लोग हालाँकि शांतिप्रिय हैं, परंतु वे कभी भी सत्तावाद को बर्दाश्त नहीं करेंगे। यह तथ्य कि लोगों ने शांति से एक निरंकुश शासन को उखाड़ फेंका था, जो न केवल भारतीय मतदाताओं की परिपक्वता को दर्शाता है, बल्कि भारत के संसदीय लोकतंत्र के लचीलेपन को भी दिखाता है। स्वतंत्रता लोकतंत्र की जीवन रेखा है और संविधान के तहत गारंटीकृत अधिकारों के गला घोंटे जाने पर वह जनता तक जरूर सुनाई देती है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इंदिरा गांधी का जीवन विश्व में भारतीय महिला को एक सशक्त महिला के रूप में पहचान दिलाता है। हालाँकि उनके व्यक्तित्व को दो पक्षों द्वारा समझा जाता है क्योंकि उनके समर्थकों के साथ ही विरोधियों की भी संख्या काफी है। उनके द्वारा लिये गए कई राजनीतिक और सामाजिक फैसले भी अक्सर चर्चा का विषय रहे हैं, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इंदिरा गांधी के कार्यकाल में भारत ने विकास के कई आयाम स्थापित