अर्थव्यवस्था की स्थिति 2022-23: पूर्ण सुधार
वर्ष 2020 के बाद से कम-से-कम तीन आघातों ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को प्रभावित किया है: कोविड-19, रूस-यूक्रेन संघर्ष और नीतिगत दर में वृद्धि।
प्रमुख बिंदु
- यह सब वैश्विक उत्पादन के महामारी-प्रेरित संकुचन के साथ शुरू हुआ, इसके बाद रूस-यूक्रेन संघर्ष ने पूरी दुनिया को मुद्रास्फीति में वृद्धि की ओर अग्रसर किया, फिर अर्थव्यवस्थाओं में फेडरल रिज़र्व के नेतृत्व में केंद्रीय बैंकों ने मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने हेतु समकालिक नीतिगत दरों में वृद्धि की।
- वर्ष 2020 के बाद से वैश्विक अर्थव्यवस्था को तीन बड़े आघातों के बाद भारत आगे बढ़ गया है। दुनिया भर की एजेंसियों का अनुमान है कि वित्त वर्ष 2023 में भारत 6.5-7.0 प्रतिशत की संवृद्धि के साथ विश्व में सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होगा।
- भारत ने कई देशों से आगे रहते हुए वित्त वर्ष 2022 में तरह से रिकवरी की और वित्त वर्ष 2023 में पूर्व-महामारी विकास की स्थिति में स्वयं को लाने में सक्षम रहा। वित्त वर्ष 2023 में भारत की आर्थिक संवृद्धि का कारण मुख्यतया निजी उपभोग और पूंजी संरचना को माना जा रहा है।
वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिये चुनौतियाँ
- इक्कीसवीं सदी का तीसरा दशक विभिन्न चुनौतियों का गवाह बना, जिसने वैश्विक वृद्धि को प्रभावित किया, ये हैं- मुद्रास्फीति, आपूर्ति शृंखलाओं की बहाली बाधित, बॉण्ड प्रतिफल का सख्त होना और आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें आदि।
- जनवरी 2020 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा अधिसूचित कोविड-19 महामारी पहली बड़ी चुनौती थी जिसने वृद्धि को कमज़ोर कर दिया।
- फरवरी 2022 में रूस-यूक्रेन संघर्ष छिड़ गया, जिसके कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था ने लगभग पिछले ग्यारह महीनों में लगभग उतने ही व्यवधानों का सामना किया है जितना कि महामारी के दो वर्षों में करना पड़ा।
- सख्त मौद्रिक नीति ने तीसरी बड़ी चुनौती पेश की, जहाँ मौद्रिक कठोरता (Tightening) चक्र की गति तेज़ रही है। केंद्रीय बैंक नीतिगत दरों में बढ़ोतरी कर रहे हैं और समकालिक रूप से मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने के लिये नकदी को कम कर रहे हैं।
देशों में वैश्विक आर्थिक विकास का पूर्वानुमान | ||||
संवृद्धि अनुमान (प्रतिशत) | डब्ल्यू ई ओ अपडेट से बदलाव
(जुलाई 2022) (प्रतिशत) |
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2022 | 2023 | 2022 | 2023 | |
दुनिया | 3.2 | 2.7 | 0 | –0.2 |
विकसित अर्थव्यवस्थाएँ | 2.4 | 1.1 | –0.1 | –0.3 |
संयुक्त राज्य अमेरिका | 1.6 | 1 | –0.7 | 0 |
यूरो क्षेत्र | 3.1 | 0.5 | 0.5 | –0.7 |
यूके | 3.6 | 0.3 | 0.4 | –0.2 |
जापान | 1.7 | 1.6 | 0 | –0.1 |
उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाएँ | 3.7 | 3.7 | 0.1 | –0.2 |
चीन | 3.2 | 4.4 | –0.1 | –0.2 |
भारत* | 6.8 | 6.1 | –0.6 | 0 |
स्रोत: आईएमएफ | ||||
नोटः भारत के लिये किया गया अनुमान उसके वित्तीय वर्ष (अप्रैल-मार्च) के लिये है, जबकि अन्य अर्थव्यवस्थाओं के लिये यह जनवरी-दिसंबर से है। |
भारतीय अर्थव्यवस्था में मैक्रोइकोनॉमिक और विकास संबंधी चुनौतियाँ
- जनवरी से नवंबर 2022 तक लगभग 10 महीनों के लिये भारत की खुदरा मुद्रास्फीति RBI की स्वीकार्य सीमा से 6% ऊपर चली गई थी।
- यूएस फेड द्वारा दरों में की गई वृद्धि ने अमेरिकी बाज़ारों में पूंजी को आकर्षित किया, जिससे अधिकांश मुद्राओं के मुकाबले अमेरिकी डॉलर का मूल्य बढ़ गया। परिणामस्वरूप चालू लेखा घाटा (Current Account Deficit- CAD) बढ़ गया और निवल आयातक अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति दबाव में वृद्धि हुई।
- सरकार ने उत्पाद और सीमा शुल्क में कटौती की और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये निर्यात को प्रतिबंधित किया, जबकि अन्य केंद्रीय बैंकों की तरह RBI ने रेपो दरों में वृद्धि की और अतिरिक्त नकदी को वापस ले लिया।
भारत का आर्थिक लचीलापन और विकास संचालक
- आईएमएफ का अनुमान है कि भारत वर्ष 2022 में तेज़ी से बढ़ती शीर्ष दो महत्त्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं में से एक होगा। यह भारत का अंतर्निहित आर्थिक लचीलापन का प्रतिबिंब है- जिसमें अर्थव्यवस्था के विकास चालकों को पुनः प्राप्त करने, नवीनीकृत करने तथा पुनः सक्रिय करने की क्षमता है।
- निर्यात, विनिर्माण और निवेश गतिविधियों ने इसके परिणामस्वरूप वित्त वर्ष 2022 और वित्त वर्ष 2023 में संकर्षण प्राप्त किया।
- GDP के प्रतिशत के रूप में निजी खपत वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में 58.4% रही, जो वर्ष 2013-14 के बाद से सभी वर्षों की दूसरी तिमाहियों में सबसे अधिक है, जिससे घरेलू क्षमता उपयोग में वृद्धि हुई है।
- सकल घरेलू उत्पाद के प्रतिशत के रूप में वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में निजी खपत 58.4 प्रतिशत रही, जो 2013-14 के बाद से सभी वर्षों की दूसरी तिमाहियों में सबसे अधिक है, जिसने घरेलू क्षमता उपयोग में वृद्धि में योगदान दिया है।
- खपत में फिर से वृद्धि को ‘‘पेंट-अप’’ मांग के जारी होने से भी समर्थन मिला है, जो प्रयोज्य (डिस्पोज़ेबल) आय में खपत के हिस्से में वृद्धि से प्रभावित एक स्थानीय घटना का प्रदर्शन करती है।
- देश के लिये अनुमानित कैपेक्स गुणक के अनुसार, देश का आर्थिक उत्पादन कैपेक्स की मात्रा से कम-से-कम चार गुना बढ़ना तय है।
- भारत सरकार के पिछले दो बजटों में कैपेक्स पर ज़ोर केवल देश में बुनियादी ढाँचे के अंतर को दूर करने के लिये एक अलग पहल नहीं थी। यह एक रणनीतिक पैकेज का हिस्सा था जिसका उद्देश्य गैर-रणनीतिक PSEs (विनिवेश) और सार्वजनिक क्षेत्र की निष्क्रिय संपत्तियों का विनिवेश करके आर्थिक परिदृश्य में निवेश आकर्षित करना था।
- केंद्र सरकार की विस्तृत आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (Emergency Credit Line Guarantee Scheme- ECLGS) की सहायता से जनवरी-नवंबर 2022 के दौरान MSME क्षेत्र में ऋण वृद्धि उल्लेखनीय रूप से 30.5 प्रतिशत से अधिक रही है।
भारत का समावेशी विकास
- क्रय शक्ति समता (Purchasing Power Parity- PPP) के अनुसार, भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और बाज़ार विनिमय दरों में पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।
- आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labour Force Survey- PLFS) से पता चलता है कि 15 वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों के लिये शहरी बेरोज़गारी दर सितंबर 2021 को समाप्त तिमाही में 9.8 प्रतिशत से घटकर एक वर्ष बाद (सितंबर 2022 को समाप्त तिमाही में) 7.2 प्रतिशत हो गई।
- आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME) को वित्तीय संकट से बचाने में सफल रही है।
- महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम (मनरेगा), दैनिक मज़दूरी रोज़गार पैदा करने के अलावा व्यक्तिगत परिवारों के लिये भी उनकी आय के स्रोतों में विविधता लाने और उनकी पूरक आय बढ़ाने हेतु संपत्ति का सृजन कर रहा है।
- ग्रामीण आबादी के आधे हिस्से को कवर करने वाले परिवारों के लिये लाभकारी पीएम-किसान जैसी योजनाएँ और पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना ने देश में गरीबी को कम करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
आउटलुक: 2023-24
- वैश्विक महामारी से भारत की रिकवरी अपेक्षाकृत तेज़ थी और आगामी वर्ष में ठोस घरेलू मांग और पूंजी निवेश में सुधार से विकास को बल मिलेगा।
- वस्तुओं की उच्च कीमतों के बीच मज़बूत घरेलू मांग से भारत के कुल आयात बिल में वृद्धि होगी तथा चालू खाता शेष में प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। वैश्विक मांग में कमी के कारण निर्यात वृद्धि को स्थिर करके इन्हें और बढ़ाया जा सकता है।
- कमोडिटी की उच्च कीमतों के बीच मजबूत घरेलू मांग भारत के कुल आयात बिल को बढ़ाएगी और चालू खाता शेष में प्रतिकूल विकास में योगदान देगी। वैश्विक मांग में कमी के कारण निर्यात वृद्धि को स्थिर करके इन्हें और बढ़ाया जा सकता है।
- वस्तु एवं सेवा कर (GST) तथा दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) जैसे संरचनात्मक सुधारों ने अर्थव्यवस्था की दक्षता व पारदर्शिता को बढ़ाया है और वित्तीय अनुशासन एवं बेहतर अनुपालन सुनिश्चित किया।
- वस्तु एवं सेवा कर तथा दिवाला एवं शोधन अक्षमता संहिता जैसे संरचनात्मक सुधारों ने अर्थव्यवस्था की दक्षता और पारदर्शिता को बढ़ाया है तथा वित्तीय अनुशासन एवं बेहतर अनुपालन सुनिश्चित किया।
- वास्तविक GDP संवृद्धि का वास्तविक परिणाम संभवतः 6.0 प्रतिशत से 6.8 प्रतिशत के बीच रहेगा, जो वैश्विक स्तर पर आर्थिक और राजनीतिक विकास की गति पर निर्भर करेगा।
भारत का मध्यावधि विकास परिदृश्यः आशापूर्ण
दृष्टि और उम्मीद के साथ
- मज़बूत मध्यावधि ग्रोथ मैग्नेट्स से हमें आशावादी दृष्टिकोण दिखाई देता है और उम्मीद है कि एक बार जब महामारी के वैश्विक आघातों के कारण वर्ष 2022 में वस्तुओं की बढ़ी हुई कीमतों में कमी आनी शुरू हो जाएगी तो आने वाले दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था तेज़ी से वृद्धि करेगी।
प्रमुख बिंदु
- देश में शुरू किये गए स्थायी संरचनात्मक और शासन में सुधार की गति को और मज़बूत करने, मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता, भारत की मध्यम अवधि के विकास के दृष्टिकोण को नियंत्रित करना आवश्यक है।
- वर्ष 2014 से पहले के सुधार मुख्य रूप से उत्पाद और पूंजी बाज़ार क्षेत्र हेतु किये गए थे। ये आवश्यक थे और इन्हें वर्ष 2014 के बाद भी जारी रखा गया।
- सरकार ने हालाँकि पिछले आठ वर्षों में इन सुधारों को एक नया आयाम प्रदान किया। जीवनयापन और व्यवसाय करने की सुविधा को बढ़ाने तथा आर्थिक दक्षता में सुधार पर अंतर्निहित बल के साथ अर्थव्यवस्था की संभावित वृद्धि को और बढ़ाने के लिये सुधारों को अच्छी तरह से स्थापित किया गया है।
- जिसमें विकास प्रक्रिया के विभिन्न हितधारकों के बीच साझेदारी सुनिश्चित करने पर ज़ोर दिया गया है, ताकि प्रत्येक सुधार से विकास होगा और इसका लाभ मिलेगा।
नए भारत के लिये सुधार
- जीवन को आसान बनाने के लिये अवसरों, दक्षताओं संबंधी सार्वजनिक सुविधाओं का सृजन करना
- सड़क संपर्क (भारतमाला), बंदरगाह अवसंरचना (सागरमाला), विद्युतीकरण, रेलवे उन्नयन और नए हवाईअड्डों/हवाई मार्गों (उड़ान) के संचालन के लिये समर्पित कार्यक्रमों के परिणामस्वरूप पिछले कुछ वर्षों में भौतिक बुनियादी ढाँचे में काफी सुधार देखा गया है।
- सरकार द्वारा भौतिक बुनियादी ढाँचे पर ज़ोर दिये जाने के अलावा पिछले कुछ वर्षों के दौरान सार्वजनिक डिजिटल बुनियादी ढाँचा तैयार कर व्यक्तियों और व्यवसायों की आर्थिक क्षमता को बढ़ाना एक गेम चेंजर साबित हुआ है।
- विश्वास-आधारित शासन
- इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड (IBC) और रियल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) अधिनियम (RERA) जैसे सुधारों के माध्यम से नियामक ढाँचे के सरलीकरण से व्यापार करने में आसानी हुई है।
- IBC ने परिसंपत्ति समाधान तंत्र की कुछ सर्वाेत्तम अंतर्राष्ट्रीय पद्धतियों को आत्मसात किया है। यह उचित व्यापार विफलताओं के लिये सम्मानजनक निकास तंत्र व्यवस्था होती है और बेहतर संसाधन आवंटन के लिये स्ट्रेस्ड एसेट्स में लॉक क्रेडिट को जारी (मुक्त) किया जा सकता है।
- RERA अधिनियम ने रियल एस्टेट ब्रोकर्स और एजेंट्स को नियामक के साथ पंजीकृत कर विवादों के त्वरित निवारण के लिये तंत्र स्थापित करने तथा डेवलपर्स को समय पर अनुमोदन के लिये सिंगल विंडो क्लीयरेंस में सक्षम बनाकर रियल एस्टेट क्षेत्र में बदलाव ला दिया है।
- व्यवसाय में वृद्धि करने के लिये एक अन्य महत्त्वपूर्ण सुधार वर्ष 2013 के कंपनी अधिनियम के अंतर्गत किया गया है और इसके तहत ‘मामूली आर्थिक अपराधों’ का वैधीकरण किया गया है। सामान्य डिफाॅल्ट से निपटने के लिये नागरिक देनदारियों (Civil Liabilities), जिसमें धोखाधड़ी शामिल नहीं है या जहाँ चूक की प्रकृति विशुद्ध रूप से प्रक्रियात्मक है, को शुरू किया गया है।
- साक्ष्य बताते हैं कि जीएसटी के बाद के काल में जीएसटी द्वारा प्रतिस्थापित अप्रत्यक्ष कर प्रणाली की उछाल में सुधार हुआ है। सकारात्मक जीएसटी राजस्व संग्रह रुझान महामारी के बावजूद और भी मज़बूत हुआ है।
- कृषि उत्पादकता बढ़ाना
- मृदा स्वास्थ्य कार्ड, सूक्ष्म सिंचाई कोष और जैविक एवं प्राकृतिक खेती जैसी नीतियों ने किसानों को संसाधनों के इष्टतम उपयोग तथा खेती की लागत को कम करने में मदद की है।
- किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) के विस्तार मंच के प्रचार ने किसानों को सशक्त बनाया है, उनके संसाधनों को बढ़ाया है और उन्हें अच्छा लाभ लेने में सक्षम बनाया है।
इस दशक में ग्रोथ मैग्नेट (2023-2030):
- महामारी के स्वास्थ्य और आर्थिक आघातों तथा वर्ष 2022 की समाप्ति के समय वस्तु मूल्यों में बढ़ोतरी से भारतीय अर्थव्यवस्था वर्ष 2003 के बाद के वृद्धि संबंधी अनुभव की तरह आने वाले दशक में अपनी क्षमता के अनुसार बढ़ने को तैयार है।
- पिछले कुछ वर्षों में विकसित और स्वस्थ वित्तीय प्रणाली ने प्रभावी ऋण सुविधा, उच्चतर निवेशों और उपयोग के माघ्यम से आने वाले वर्षों में उच्चतर वृद्धि में योगदान दिया है।
- भारत की डिजिटल क्रांति और औपचारिकरण के चलते बैंक पहले की अपेक्षा अपने ग्राहकों के ऋण जोखिमों के संबंध में अधिक जानकारी रखते है ताकि वे ऋण प्रदान करने और मूल्य संबंधी निर्णयों को पहले से बेहतर बनाने में सक्षम हों।
- इसके अलावा उभरती हुई भू-राजनीतिक स्थिति भारत के लिये वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के विविधीकरण से लाभ उठाने का अवसर प्रस्तुत करती है। सक्षम नीतिगत ढाँचे के साथ भारत स्वयं को अन्य देशों से पूंजी विविधीकरण के लिये एक विश्वसनीय गंतव्य के रूप में प्रस्तुत करता है।
राजकोषीय विकासः राजस्व सुधार
- निरंतर जारी वैश्विक जोखिमों और अनिश्चितताओं के कारण सरकारों के पास राजकोषीय अंतराल की उपलब्धता सर्वाेपरि हो गई है। हाल में वैश्विक महामारी की घटना के बाद विशेष रूप से राजकोषीय नीति विश्व स्तर पर वृहत अर्थव्यवस्था के संतुलन हेतु एक प्रभावकारी टूल बन गई है।
प्रमुख बिंदु
- वित्तीय वर्ष 2023 का केंद्रीय बजट एक व्यापक आर्थिक अनिश्चित वातावरण में प्रस्तुत किया गया था। इसे प्रस्तुत किये जाने के बाद भू-राजनीतिक संघर्ष से वैश्विक आपूर्ति अवरोध बढ़ गए और ईंधन, भोजन तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
- इस संकट के प्रति भारत सरकार की राजकोषीय नीति में एक ओर बढ़ती खाद्य और उर्वरक सब्सिडी प्रदान करना तथा दूसरी ओर ईंधन तथा कुछ आयातित उत्पादों पर करों में कटौती करने का विवेकपूर्ण संयोजन शामिल था।
- वर्ष के दौरान अतिरिक्त राजकोषीय दबावों के बावजूद केंद्र सरकार वित्तीय वर्ष 2023 में राजकोषीय घाटे की पूर्ति के लिये बजट अनुमान को प्राप्त करने के ट्रैक पर है।
- अप्रैल से नवंबर 2022 तक सकल कर राजस्व में 15.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई, जो प्रत्यक्ष करों और वस्तु एवं सेवा कर (GST) में मज़बूत वृद्धि से प्रेरित है।
- GST केंद्र और राज्य सरकारों के लिये एक महत्त्वपूर्ण स्थायी राजस्व स्रोत के रूप में है, वर्ष दर वर्ष आधार पर सकल GST संग्रह में 24.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है ।
- केंद्र सरकार का कैपेक्स GDP के 1.7 प्रतिशत (वित्त वर्ष 2009 से वित्त वर्ष 2020) के दीर्घकालिक औसत से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में GDP का 2.5 प्रतिशत हो गया है।
केंद्र सरकार की आय में वृद्धि
- केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा, जो वैश्विक महामारी के दौरान वित्तीय वर्ष 2021 में GDP के 9.2 प्रतिशत तक पहुँच गया था, वैश्विक महामारी के दौरान वित्तीय वर्ष 2022 में घटकर GDP के 6.7 प्रतिशत तक हो गया है और इसका आगे वित्तीय वर्ष 2023 में GDP के 6.4 प्रतिशत तक पहुँचने का अनुमान है।
- नवंबर 2022 के अंत में केंद्र सरकार का राजकोषीय घाटा बजट अनुमान का 58.9 प्रतिशत था, जो इसी अवधि के दौरान बजट अनुमान के 104.6 प्रतिशत के पाँच साल के चल औसत (मूविंग एवरेज) से कम है।
- आर्थिक गतिविधियों में सुधार, वर्ष के दौरान देखे गए राजस्व में उछाल और बजट में व्यापक आर्थिक परिवर्तनों की परंपरागत धारणाओं के कारण केंद्र के राजकोषीय प्रदर्शन में यह लचीलापन आया है।
- राजस्व में निरंतर वृद्धि
- राजस्व प्राप्तियों ने वित्तीय वर्ष 2022 में वृद्धि दर्ज की है,इस वृद्धि को वित्तीय वर्ष 2022 में सभी प्रमुख प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों (उत्पाद शुल्क को छोड़कर) के संग्रह में परिवर्तन करने के कारण हुआ था।
- कर प्रशासन/नीतिगत उपाय, जैसे कि फेसलेस असेसमेंट और अपील, रिटर्न फाइलिंग का सरलीकरण, करदाताओं को सिस्टम से परिचित होने में सहायता, GST प्रणाली के तहत ई-वे बिल बनाना और सरकारी विभागों तथा अन्य के बीच सूचना साझीकरण आदि ने प्रौद्योगिकी एवं आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के माध्यम से कर के अनुपालन को बढ़ावा दिया है
- सकल कर राजस्व में वृद्धि को बढ़ावा देने वाले प्रत्यक्ष कर
- प्रत्यक्ष कर, जो मोटे तौर पर सकल कर राजस्व का आधा हिस्सा हैं, ने अप्रैल से नवंबर 2022 तक 26 प्रतिशत की वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दर्ज की है, जो कॉर्पाेरेट और व्यक्तिगत आयकर वृद्धि के कारण हुई है।
- वित्तीय वर्ष 2023 के पहले आठ महीनों के दौरान प्रमुख प्रत्यक्ष करों में देखी गई वृद्धि दर उनके दीर्घावधि औसत की तुलना में बहुत अधिक थी।
- सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क का फ्रलेक्सी-फिस्कल पॉलिसी टूल के रूप में कार्य करना
- जहाँ प्रत्यक्ष करों ने राजस्व में वृद्धि सुनिश्चित की है, अप्रत्यक्ष करों जैसे कि सीमा शुल्क और उत्पाद शुल्क ने वैश्विक महामारी में राजकोषीय कार्रवाई के दौरान फ्रलेक्सीवल पॉलिसी टूल के रूप में काम किया है।
- वित्तीय वर्ष 2023 के दौरान आवश्यक आयातित उत्पादों की कीमतों में वृद्धि को देखते हुए खाद्य तेलों, दालों, सूत, स्टील आदि पर मुद्रास्फीति के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिये कई वस्तुओं पर सीमा शुल्क को कम किया गया था।
- चालू वर्ष के दौरान उच्च आयात के कारण वर्ष-दर-वर्ष अप्रैल-नवंबर 2022 की अवधि में सीमा शुल्क संग्रह में 12.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई है जो वित्तीय वर्ष 2013 से वित्तीय वर्ष 2019 की इसी अवधि के दौरान हुई औसत वृद्धि से अधिक है।
- वस्तु एवं सेवा कर आधारित रिटर्न को स्थिर करना
- GST करदाताओं की संख्या वर्ष 2017 के 70 लाख से बढ़कर वर्ष 2022 में 1.4 करोड़ से अधिक हो गई है।
- GST संग्रह में सुधार महामारी के बाद तेज़ी से हुए आर्थिक सुधार और GST चोरी करने वालों के खिलाफ राष्ट्रव्यापी अभियान के संयुक्त प्रभाव के कारण हुआ है।
- यह हाल ही में शुरू किये गए कई प्रणालीगत परिवर्तनों और अनुचित शुल्क ढाँचे को सही करने के लिये GST परिषद द्वारा किये गए विभिन्न दर युक्तिकरण उपायों के साथ जुड़ा हुआ था।
- विनिवेश के प्रति प्रतिबद्ध लेकिन विदेशी कारकों पर निर्भर
- वित्तीय वर्ष 2015 से वित्तीय वर्ष 2023 के दौरान विभिन्न तरीकों/लिखतों का उपयोग करके 154 विनिमय गतिविधियों के माध्यम से विनिवेश से प्राप्त आय के रूप में लगभग 4.07 लाख करोड़ रुपए की राशि प्राप्त हुई है।
- सरकार ने नई सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम नीति और आस्ति मुद्रीकरण रणनीति को लागू करके सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों के निजीकरण एवं रणनीतिक विनिवेश के प्रति पुनः अपनी प्रतिबद्धता प्रकट की है।
- वित्तीय वर्ष 2023 में 65,000 करोड़ रुपए की बजट राशि में से 18 जनवरी 2023 तक 48 प्रतिशत का संग्रह किया गया है।
- पुनः प्राथमिकता की व्यावहारिक व्यय नीति
- वित्तीय वर्ष 2022 में केंद्र सरकार के कुल व्यय को कम करके GDP (प्रतिवर्ष) का 16 प्रतिशत कर दिया गया था और इसका एक बड़ा हिस्सा पूंजीगत व्यय के लिये एकत्र किया गया था।
- केंद्र द्वारा पूंजीगत व्यय में GDP के 1.7 प्रतिशत (वर्ष 2008-09 से वित्तीय वर्ष 2020 तक) के दीर्घकालिक औसत से वित्तीय वर्ष 2022 में GDP के 2.5 प्रतिशत तक की लगातार वृद्धि की गई है। वित्तीय वर्ष 2023 में इसे GDP के 2.9 प्रतिशत तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है।
- जहाँ एक ओर पूंजीगत व्यय जोखिम से बचने की अवधि में कुल मांग को मज़बूत करता है और निजी खर्च में वृद्धि करता है; यह लंबी अवधि की आपूर्ति-पक्ष संबंधी उत्पादक क्षमता को भी बढ़ाता है।
- कैपेक्स आधारित वृद्धि और कर्ज़ का स्तर नियंत्रित करना
- सरकार द्वारा पूंजीगत व्यय, विशेष रूप से सड़क एवं राजमार्ग, रेलवे और आवास तथा शहरी मामलों जैसे अवसंरचनात्मक-गहन क्षेत्रों पर बल दिये जाने से विकास पर दीर्घकालिक प्रभाव पड़ा है।
- सभी क्षेत्रों से कैपेक्स बढ़ाने पर ज़ोर देने के लिये केंद्र ने लंबी अवधि के ब्याज मुक्त ऋण और कैपेक्स से जुड़े अतिरिक्त उधार प्रावधानों के रूप में राज्यों के पूंजीगत व्यय को बढ़ावा देने के लिये कई प्रोत्साहनों की घोषणा की।
- भू-राजनीतिक गतिविधियों ने राजस्व व्यय संबंधी आवश्यकताओं में वृद्धि की है
- भू-राजनीतिक संघर्ष के परिणामस्वरूप खाद्य, उर्वरक और ईंधन की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ी हैं, जिससे लोगों को सहायता प्रदान करने और वृहत स्तर पर आर्थिक स्थिरता सुनिश्चित करने के लिये उच्च खाद्य और उर्वरक सब्सिडी की आवश्यकता थी।
- वैश्विक महामारी के दौरान संसाधन संबंधी उच्चतर आवश्यकताओं और कम राजस्व संग्रह के परिणामस्वरूप केंद्र सरकार द्वारा अधिक उधारी ली गई। वैश्विक महामारी फैलने के बाद प्राप्तियों के अनुपात में ब्याज का भुगतान बढ़ गया।
- तथापि मध्यम अवधि में जैसे-जैसे हम राजकोषीय स्तर पर आगे बढ़ेंगे, राजस्व में वृद्धि, तीव्र आस्ति मुद्रीकरण, दक्षता लाभ और निजीकरण से सार्वजनिक ऋण का भुगतान करने में मदद मिलेगी, इस प्रकार ब्याज भुगतान में कमी आएगी और अन्य प्राथमिकताओं के लिये अधिक धन जारी होगा।
राज्य सरकार की वित्तीय व्यवस्था का अवलोकन
- राज्य की वित्तीय व्यवस्था का प्रदर्शन
- राज्यों का संयुक्त सकल राजकोषीय घाटा (Gross Fiscal Deficit- GFD), जो वैश्विक महामारी से प्रभावित वर्ष में GDP के 4.1 प्रतिशत तक बढ़ गया था, वित्तीय वर्ष 2022 में घटकर 2.8 प्रतिशत हो गया और राज्यों के लिये समेकित GFD-GDP अनुपात वित्तीय वर्ष 2023 में 3.4 प्रतिशत तक रहने का अनुमान लगाया गया है।
- केंद्र ने राज्यों के लिये निवल उधारी सीमा (Net Borrowing Ceilings- NBC) को वित्तीय वर्ष 2021 में GSDP के 5 प्रतिशत, वित्त वर्ष 2022 में GSDP के 4 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2023 में GSDP के 3.5 प्रतिशत तक बढ़ा दिया।
- राज्यों के संयुक्त स्वयं के कर और गैर-कर राजस्व वित्त वर्ष 2022 के मुकाबले क्रमशः 17.5 प्रतिशत और 25.6 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है और वित्तीय वर्ष 22 में राजस्व और पूंजीगत व्यय क्रमशः वित्तीय वर्ष 2022 के मुकाबले 10.4 प्रतिशत और 16 प्रतिशत बढ़ने की परिकल्पना की गई थी।
- सहकारी राजकोषीय संघवाद
- वित्तीय वर्ष 2019 और वित्तीय वर्ष 2023 के बजट अनुमानों के बीच राज्यों को कुल हस्तांतरण में वृद्धि हुई है।
- वित्त आयोग ने अंतरण के बाद राजस्व घाटा अनुदान, स्थानीय निकायों को अनुदान, स्वास्थ्य क्षेत्र अनुदान और आपदा प्रबंधन अनुदान के संबंध में वित्तीय वर्ष 2023 में 1.92 लाख करोड़ रु की राशि के आवंटन की सिफारिश की थी।
केंद्र से राज्यों को किये गए हस्तांतरण का विवरण (राज्यों के लिये अंतरण के अलावा) | |||||
वित्तीय वर्ष
2019 |
वित्तीय वर्ष
2020 |
वित्तीय वर्ष
2021 |
वित्तीय वर्ष
2022.RE |
वित्तीय वर्ष
2023.BE |
|
(लाख करोड़ रुपए में) | |||||
केंद्र प्रायोजित योजनाएँ | 3.0 | 3.1 | 3.8 | 4.2 | 4.4 |
वित्त आयोग के अनुदान | 0.9 | 1.2 | 1.8 | 2.1 | 1.9 |
अन्य अनुदान/ऋण/ हस्तांतरण | 0.9 | 2.0 | 1.9 | 2.3 | 3.0 |
स्रोतः केंद्रीय बजट दस्तावेज़ |
- संकट के दौरान राज्य के राजस्व में सहायता करना
- राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय सरकारों द्वारा एक सुस्पष्ट लक्षित राजकोषीय नीति के महत्त्व को स्वीकार करते हुए केंद्र सरकार ने राज्य की वित्तीय व्यवस्था में सहायता करने और राज्यों को सुधारवादी एजेंडे पर आगे बढ़ने के लिये प्रोत्साहित करने के लिये लगातार कदम उठाए हैं।
- राज्यों के GST मुआवज़े में हुई कमी को पूरा करने के लिये सरकार ने कोष से नियमित GST मुआवज़ा जारी करने के अलावा वित्तीय वर्ष 2021 और वित्तीय वर्ष 2022 के दौरान 2.69 लाख करोड़ रुपए उधार लिये तथा इस धनराशि को राज्यों को जारी कर दिया।
- इसके अतिरिक्त शीघ्र निधियाँ उपलब्ध कराने के लिये राज्यों को पहले उपकर भुगतान और कर अंतरण संबंधी किस्तें प्रदान कर दी गई थीं।
- राज्यों के लिये उधार लेने की बढ़ी हुई सीमा और सुधारों हेतु प्रोत्साहन
- वैश्विक महामारी फैलने के बाद से केंद्र ने राज्य सरकारों की निवल उधारी सीमा को राजकोषीय उत्तरदायित्व विधान (Fiscal Responsibility Legislation-FRL) की सीमा से ऊपर रखा है। यह वित्तीय वर्ष 2021 में GSDP का 5 प्रतिशत, वित्तीय वर्ष
- 2022 में GSDP का 4 प्रतिशत और वित्तीय वर्ष 2023 में GSDP का 3.5 प्रतिशत निर्धारित किया गया था।
- इस अतिरिक्त उधारी का एक हिस्सा उन सुधारों से जुड़ा था जो राज्यों को उन्हें शुरू करने के लिये प्रोत्साहित कर रहे थे। उदाहरण के लिये वित्तीय वर्ष 2021 में अतिरिक्त उधार सीमा का एक हिस्सा ‘एक राष्ट्र एक राशन कार्ड’ प्रणाली को लागू करने, व्यापार करने में आसानी से संबंधित सुधार, शहरी स्थानीय निकाय/संस्थाओं संबंधी सुधारों और बिजली क्षेत्र के सुधारों को लागू करने की शर्तों पर आधारित था।
- राज्यों के निर्धारित शुद्ध उधार सीमा के अलावा पंद्रहवें वित्त आयोग ने बिजली क्षेत्र में राज्यों को सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के 0.50 प्रतिशत के प्रदर्शन-आधारित अतिरिक्त उधार लेने का अवसर प्रदान करने की सिफारिश की थी।
सरकार की ऋण प्रोफाइल
- वर्ष 2020 में अभूतपूर्व राजकोषीय विस्तार को देखते हुए दुनिया भर में बढ़ती सरकारी देनदारियाँ एक गंभीर चिंता के रूप में उभरी हैं। IMF ने वर्ष 2022 में विश्व स्तर पर सरकारी ऋण सकल घरेलू उत्पाद के 91 प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया है, जो वैश्विक महामारी से पहले के स्तर से लगभग 7.5 प्रतिशत अधिक है।
- हालाँकि दुनिया भर के देशों ने वैश्विक महामारी के दौरान प्रदान की गई राजकोषीय सहायता को बंद करना शुरू कर दिया था, तथापि वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच वैश्विक वित्तीय स्थितियों को चुनौती देते हुए बजट नियंत्रणों को कड़ा कर दिया गया।। बढ़ती ब्याज दरों और धीमी वृद्धि की आशंका के साथ ये सभी कारक प्रमुख ऋणों की निरंतरता को दुनिया भर में चिंता का विषय बनाते हैं।
- भारत की केंद्र सरकार की कुल देनदारियों, जो पिछले एक दशक में GDP के प्रतिशत के रूप में अपेक्षाकृत स्थिर थीं, में महामारी वर्ष वित्तीय वर्ष 2022 में तेज़ वृद्धि देखी गई। वित्तीय वर्ष 2021 में केंद्र सरकार की कुल देनदारियाँ GDP के 59.2 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2022 में 56.7 प्रतिशत हो गई ।
- भारत का सार्वजनिक ऋण प्रोफाइल अपेक्षाकृत स्थिर है और कम मुद्रा तथा ब्याज दर जोखिम इसकी विशेषताएँ हैं। मार्च 2021 के अंत में केंद्र सरकार की कुल शुद्ध देनदारियों में 94.7 प्रतिशत देनदारियाँ घरेलू मुद्रा में अंकित थी, जबकि सार्वभौमिक बाहरी ऋण 4.9 प्रतिशत था, जो कम मुद्रा जोखिम को दर्शाता है। इसके अतिरिक्त सार्वभौमिक विदेशी ऋणों की प्राप्ति पूर्णतः आधिकारिक स्रोतों से है, जो इसे अंतर्राष्ट्रीय पूंजी बाज़ार में अस्थिरता से बचाता है।
- मार्च 2021 के अंत में भारत में सार्वजनिक ऋण मुख्य रूप से निश्चित ब्याज दरों पर आधारित है, जिसमें अस्थायी आंतरिक ऋण GDP का केवल 1.7 प्रतिशत है। यह ऋण पोर्टफोलियो ब्याज दर की अस्थिरता से अछूता है, जो ब्याज के भुगतान को स्थिरता भी प्रदान करता है।
- सरकार की दिनांकित प्रतिभूतियों के बकाया स्टॉक की भारित औसत परिपक्वता मार्च 2010 के अंत में 9.7 वर्ष थी जो मार्च 2022 के अंत में बढ़कर 11.71 वर्ष हो गई है, इस प्रकार मध्यम अवधि में रोलओवर जोखिम कम हो गया है। पिछले कुछ वर्षों में पाँच वर्षों से कम समय में परिपक्व होने वाली दिनांकित प्रतिभूतियों के अनुपात में गिरावट आई है, जबकि दीर्घावधि प्रतिभूतियों में वृद्धि की प्रवृत्ति दिखाई दी है।
चित्र 15 सार्वजनिक ऋण में विदेशी देयता का अनुपात वित्त वर्ष 2022
निष्कर्ष
भारत सरकार ने पिछले कुछ वर्षों में राजकोषीय स्थिरता की दिशा में समग्र नीति अपनाई है। निरंतर वैश्विक अनिश्चितताओं और जोखिमों के बीच भारत की आर्थिक सुधार की प्रगति के साथ राजकोषीय समेकन का पथ राजकोषीय नीति के पथ को प्रकाशित करता है। यह नीतिगत कार्रवाई अनिश्चित समय में अधिक महत्त्वपूर्ण राजकोषीय स्थान सुनिश्चित करेगी। इसके अलावा वास्तव में राजकोषीय अनुशासन कम ब्याज दरों के माध्यम से अर्थव्यवस्था के सभी वर्गों के राजकोषीय प्रोत्साहन में तब्दील हो जाता है।
मौद्रिक प्रबंधन और वित्तीय मध्यस्थता: एक अच्छा वर्ष
RBI ने अप्रैल 2022 में अपने सख्त मौद्रिक चक्र का प्रारंभ किया तथा 225 आधार अंकों (bps) की नीतिगत रेपो दर वृद्धि लागू की है। परिणामस्वरूप घरेलू वित्तीय स्थितियाँ सख्त होने लगीं जो मौद्रिक समुच्चय में कम वृद्धि के रूप में परिलक्षित हुई।
मौद्रिक विकास
- मौद्रिक नीति समिति (Monetary Policy Committee) ने मार्च 2020 और मई 2020 के बीच 115 आधार अंकों (bps) की कटौती को लागू करने के बाद मई 2020 और फरवरी 2022 के बीच नीतिगत रेपो दर को यथास्थिति बनाए रखा, साथ ही खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी 2022 के बाद से RBI के सहनशीलता बैंड की उच्चतम सीमा को पार कर गई है।
- खुदरा मुद्रास्फीति जनवरी 2022 से RBI के सहनशीलता बैंड की उच्चतम सीमा को पार कर गई है, साथ ही मूल्य स्थिरता के लिये एक गंभीर खतरा महसूस करने के कारण RBI ने सख्त मौद्रिक चक्र शुरू किया।
- अप्रैल 2022 की बैठक में समिति ने स्थायी जमा सुविधा (Standing Deposit Facility) की शुरुआत की जिसने सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में संपार्श्विक की आवश्यकता के बिना RBI के साथ बैंकों को अतिरिक्त निधि जमा करने की अनुमति प्रदान की जिससे संपार्श्विक-मुक्त तरीके से प्रभावी नकदी प्रबंधन की अनुमति मिलती है।
- SDF को 3.75% की दर से प्रस्तुत किया गया तथा जिसने रिवर्स रेपो दर को नकदी समायोजन सुविधा (Liquidity Adjustment Facility ) के नये उद्देश्य के रूप में बदल दिया।
- पिछले वर्ष के 13% की तुलना में 30 दिसंबर, 2022 को आरक्षित निधि में वर्ष-दर-वर्ष 10.3% की वृद्धि हुई, यह वर्तमान वित्तीय वर्ष 2023 के दौरान MO में विस्तार मुख्य रूप से CRR में में हुई वृद्धि साथ RBI के बैंकरों की जमाराशियों द्वारा संचालित था।
- 30 दिसंबर, 2022 तक ब्रॉड मनी स्टॉक, व्यापक धन (M3) में 8.7% की वृद्धि हुई। इन स्रोतों में वाणिज्यिक क्षेत्र के लिये बैंक ऋण ने व्यापक धन का विस्तार किया, साथ ही सरकार के निवल बैंक ऋण ने इस विस्तार को पूरक बनाया।
- धन गुणक- व्यापक धन (M3) और आरक्षित धन (M0) का अनुपात पिछले वर्ष की इसी अवधि में 5.2 की तुलना में अप्रैल-दिसंबर 2022 की अवधि में मोटे तौर पर 5.1 के औसत पर स्थिर रहा है
मौद्रिक योग | |
योग | अवयव |
आरक्षित धन (M0) | प्रचलन में मुद्रा (CiC) |
भारतीय रिज़र्व बैंक के पास बैंकरों की जमा राशि | |
संकीर्ण धन (M1) | —— |
व्यापक धन (M3) | जनता के पास मुद्रा |
मांग और सावधि जमा |
नकदी की स्थिति
- रिज़र्व बैंक के परंपरागत और अपरंपरागत मौद्रिक उपायों के उत्तर में कोविड-19 के बाद प्रचलित अधिशेष नकदी की स्थिति बदली हुई मौद्रिक नीति के रुख के अनुरूप वित्त वर्ष 2023 के दौरान नरम हो गई।
- CRR में 50 bps की वृद्धि के RBI के कदम के परिणामस्वरूप बैंकिंग प्रणाली से 87,000 करोड़ रुपए की प्राथमिक नकदी की निकासी हुई।
- अधिशेष नकदी की क्रमिक निकासी ने भारित औसत कॉल दर को मौद्रिक नीति के परिचालन लक्ष्य के औसत आधार पर नीतिगत रेपो दर के समीप ला दिया।
- विभिन्न मुद्रा बाज़ार दरों पर ब्याज दरें 91 दिवसीय ट्रेज़री बिल (T-Bills), 3 महीने के जमा प्रमाणपत्र और वाणिज्यिक पत्र रेपो दर में वृद्धि के अनुरूप धीरे-धीरे मज़बूत हुईं।
मौद्रिक नीति संचरण
- वित्त वर्ष-2023 की अवधि में बैंकों की उधार और जमा दरों में नीतिगत रेपो दर में बदलाव के अनुरूप वृद्धि हुई।
- क्रमश: वित्तीय वर्ष-2023 (दिसंबर 2022 तक) की अवधि में बाहरी बेंचमार्क आधारित उधार दर और निधि आधारित उधार दर की एक वर्ष की औसत सीमांत लागत में क्रमशः 225 bps और 115 bps की वृद्धि हुई।
सरकारी प्रतिभूति बाज़ार का विकास
- वर्ष 2020 और वर्ष 2021 तक कमज़ोर रहने के बाद वर्ष 2022 में 10 वर्ष के सरकारी बॉण्ड पर प्रतिफल बढ़ा, साथ ही भारित औसत प्रतिफल वृद्धि से कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव तथा प्रमुख केंद्रीय बैंकों के आक्रामक रुख के साथ ही वैश्विक बॉण्ड प्रतिफल में मज़बूती के साथ रुपए पर बने दबाव से उत्पन्न हुई जो घरेलू बॉण्ड बाज़ार की अस्थिरता को दर्शाती है।
- वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही की अवधि में G-Secs (T-Bills and SDLs सहित) में व्यापार में दो वर्ष के उच्च स्तर 27.7 लाख करोड़ रुपए पर पहुँच गया जिसमें 6.3% की प्रतिवर्ष वृद्धि हुई। उच्च व्यापार प्रक्रिया में सरकारी सुरक्षा बाज़ार में व्यापारियों की बढ़ती रुचि को दर्शाता है।
बैंकिंग क्षेत्र
- RBI और सरकार ने बैंकिंग प्रणाली के तुलन पत्र को संतुलित और सुदृढ़ कर विनियामक तथा पर्यवेक्षी ढाँचे को मज़बूती प्रदान करने हेतु मान्यता, संकल्प, पुनर्पूंजीकरण एवं सुधार के 4R के दृष्टिकोण को लागू करने जैसे अंशांकित नीतिगत उपायों के संदर्भ में समर्पित प्रयास किये हैं।
- GNPA अनुपात मार्च 2020 के 8.2% से घटकर सितंबर 2022 में सात वर्ष के निचले स्तर यानी 5.0% पर आ गया है, जबकि गैर-निष्पादित आस्तियाँ (NPA) कुल आस्तियों के 1.3% के साथ दस वर्षों के निचले स्तर पर आ गई हैं।
- स्लिपेज में कमी और बकाया GNPA में वसूलियाँ अपग्रेड तथा राइट-ऑफ के माध्यम से कमी के कारण हुई।
- औद्योगिक क्षेत्र में GNPA अनुपात में व्यापक आधार पर सुधार हुआ तथापि यह सुधार रत्न और आभूषण एवं निर्माण उप-क्षेत्र में अधिक देखा गया।
- इसके अतिरिक्त घटते GNPA के साथ प्रोविजनिंग कवरेज अनुपात (PCR) मार्च 2021 से लगातार बढ़ रहा है और सितंबर 2022 में 71.6% तक पहुँच गया है।
- ऋण वृद्धि सभी क्षेत्रों में व्यापक रूप से देखी गई है जिसमें मुख्य रूप से गृह ऋण की बढ़ती मांग के कारण मुद्रा ऋण में वृद्धि हुई है।
- वित्त वर्ष-2022 में आर्थिक गतिविधियों में सुधार बैंकों और कॉरपोरेट्स की बढ़ी हुई वित्तीय सुदृढ़ता के साथ जून 2021 से गैर-खाद्य बैंक ऋण के विस्तार को बल मिला है। गैर-खाद्य बैंक ऋण में वर्ष-दर-वर्ष वृद्धि दिसम्बर 2022 में बढ़कर 15.3 प्रतिशत हो गई है।
गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFCs)
- भारतीय वित्तीय प्रणाली में NBFC क्षेत्र का बढ़ता महत्त्व GDP के अनुपात के साथ-साथ SCB द्वारा दिये गए ऋण के संबंध में NBFCs के क्रेडिट में लगातार वृद्धि से परिलक्षित होता है।
- सितंबर 2022 तक कुल बकाया राशि 31.5 लाख करोड़ रुपए के साथ NBFCs द्वारा दिया जाने वाला ऋण गति पकड़ रहा है। NBFCs ने अपने तुलन पत्र से औद्योगिक क्षेत्र में सबसे बड़ी मात्रा में ऋण देना जारी रखा है तथा इसके बाद खुदरा सेवाओं और कृषि का स्थान आता है।
- आस्ति की गुणवत्ता में निरंतर सुधार NBFCs के गिरते GNPA अनुपात में महामारी की दूसरी लहर (जून 2021) की अवधि में दर्ज किये गए 7.2% से सितंबर 2022 में 5.9% तक देखा गया जो पूर्व महामारी स्तर के करीब पहुँच गया है।
- GNPAs में गिरावट के साथ NBFCs की पूंजी की स्थिति भी सितंबर 2022 के अंत में 27.4% के CRAR के साथ मज़बूत बनी हुई है, जो मार्च 2022 में 27.6% से थोड़ा कम रही।
दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता के तहत हुई प्रगति
- दिवाला और शोधन अक्षमता संहिता (IBC) ने संकटग्रस्त फर्मों को बाहर निकलने में सुविधा प्रदान की है जिससे दुर्लभ आर्थिक संसाधनों को अधिक उत्पादक उपयोग के लिये आवंटित किया गया है।
- दिसंबर 2016 में IBC की स्थापना के बाद से सितंबर 2022 के अंत तक 5,893 कॉर्पोरेट में दिवाला समाधान प्रक्रियाएँ (CIRPs) प्रारंभ हो चुकी थीं जिनमें से 67% को बंद कर दिया गया है।
- कोड एक कॉर्पोरेट देनदार (CD) को स्वेच्छा से स्वयं का परिसमापन करने के लिये प्रदान करता है जो कोड के अंतर्गत निर्धारित कुछ शर्तों की पूर्ति के अधीन है। सितंबर 2022 के अंत तक 1,351 कॉर्पारेट व्यक्तियों ने कोड के तहत स्वैच्छिक नकदीकरण की शुरुआत की।
- क्षेत्रीय विश्लेषण से पता चलता है कि वर्तमान में जारी सितंबर 2022 तक CIRPs का 52% उद्योग से संबंधित है, इसके बाद सेवा क्षेत्र में 37% है।
- इसके अतिरिक्त उद्योग के अंतर्गत प्रारंभ किये गए CIRP का 74% विनिर्माण क्षेत्र से था। इनमें से कपड़ा, मूलभूत धातु और खाद्य क्षेत्र चालू CIRP के 48% के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- जबकि सेवा क्षेत्र में चल रहे CIRP का 60% रियल एस्टेट, किराये और व्यावसायिक गतिविधियों से संबंधित है।
- RBI आँकड़ों के अनुसार, इस अवधि में लोक अदालत, SARFAESI अधिनियम और DRT जैसे अन्य चैनलों की तुलना में IBC के तहत SCB द्वारा वसूल की गई कुल राशि सर्वाधिक रही है।
पूंजी बाज़ार
- वैश्विक समष्टि-अर्थशास्त्र अनिश्चितता, अभूतपूर्व मुद्रास्फीति, मौद्रिक नीति को सख्त करना, अस्थिर बाज़ार आदि के परिणामस्वरूप निवेशकों की भावना को ठेस पहुँची है जिससे वित्त वर्ष-2023 में वैश्विक पूंजी बाज़ारों के निष्पादन में गिरावट आई है। तथापि वैश्विक व्यापक आर्थिक और वित्तीय बाज़ार के विकास ने भारतीय पूंजी बाज़ारों पर कुछ प्रभाव डाला, कुल मिलाकर भारत के पूंजी बाज़ार के लिये वर्ष अच्छा रहा।
- वित्त वर्ष-2022 की तुलना में एक्सचेंजों पर सूचीबद्ध होने वाली फर्मों की संख्या में 37% की वृद्धि हुई तथापि एकत्र की गई राशि पिछले वर्ष की तुलना में लगभग आधी हो गई।
- अप्रैल-नवंबर 2022 में प्राथमिक बाज़ार में ऋण प्रतिभूतियों को जारी करके जुटाए गए संसाधनों की मात्रा में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 5 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
- वित्त वर्ष-2022 (नवंबर 2021 तक) की तुलना में इस वर्ष न केवल IPO के साथ आने वाले SME की संख्या लगभग दोगुनी हुई बल्कि उनके द्वारा एकत्र की गई कुल धनराशि पिछले वर्ष की समान अवधि में एकत्र की गई राशि से लगभग तीन गुना अधिक थी।
- भारत VIX, जो शेयर बाज़ार में अल्पकालिक अस्थिरता को मापता है, 24 फरवरी, 2022 को रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रकोप के साथ 32.0 के उच्च स्तर पर पहुँच गया। अप्रैल-नवंबर 2022 में भारत VIX में गिरावट की प्रवृत्ति देखी गई क्योंकि वर्ष की अवधि बढ़ने के साथ संघर्ष का प्रभाव कम होने लगा।
प्रमुख शेयर बाज़ार सूचकांक | |
सूचकांक | देश |
शंघाई कम्पोज़िट | चीन |
इबोवेस्पा | ब्राज़ील |
कोस्पी | कोरिया |
नैस्डैक; डॉव जोन्स और एस एंड पी 500 | यू.एस.ए |
सी.ए.सी | फ्राँस |
डी.ए.एक्स | जर्मनी |
एफ.टी.एस.ई 100 | यू.के. |
हैंग-सेंग | हॉन्गकॉन्ग |
निक्की | जापान |
विदेशी पोर्टफोलियो निवेश
- वैश्विक आर्थिक कारकों जैसे कि मुद्रास्फीति का दबाव, केंद्रीय बैंकों द्वारा मौद्रिक दबाव और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंकाओं ने FPI पर भारतीय बाज़ारों में बिक्री के लिये दबाव डाला है।
- हालाँकि भारतीय अर्थव्यवस्था के मज़बूत मैक्रोइकोनॉमिक फंडामेंटल के कारण वैश्विक कारकों द्वारा संचालित बहिर्वाह के बावजूद बाज़ार में वृद्धि देखी गई। नवंबर 2021 की तुलना में नवंबर 2022 के अंत में FPI की कुल संपत्ति में 3.4% की वृद्धि हुई।
- वित्त वर्ष-2023 के दौरान विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों द्वारा कुल शुद्ध निवेश रुपए का बहिर्वाह दर्ज किया गया। दिसंबर 2022 के अंत में रुपए के बहिर्वाह से 16,153 करोड़ तथा दिसंबर 2021 के अंत में FY2022 के दौरान 5,578 करोड़ रुपए की इक्विटी सेगमेंट और डेट सेगमेंट दोनों में शुद्ध FPI बहिर्वाह देखा गया।
- घरेलू संस्थागत निवेशकों (DII) द्वारा किये गए निवेश ने हाल के वर्षों के दौरान FPI बहिर्गमन के विरुद्ध प्रतिसंतुलनकारी बल के रूप में काम किया जिससे भारतीय इक्विटी बाज़ार में बड़े पैमाने पर सुधार के लिये अपेक्षाकृत कम अतिसंवेदनशीलता देखी गई।
- वित्त वर्ष-2023 (नवंबर 2022 तक) के दौरान शुद्ध DII अंतर्वाह और इक्विटी में म्यूचुअल फंड के माध्यम से शुद्ध निवेश देखा गया।
IFSC – गिफ्ट सिटी |
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बीमा बाज़ार
- बीमा वित्तीय क्षेत्र का अभिन्न अंग है जो आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मृत्यु दर, संपत्ति और दुर्घटना के जोखिम से सुरक्षा एवं सुरक्षा जाल प्रदान करने के अतिरिक्त बीमा क्षेत्र बचत को प्रोत्साहित करता है तथा बुनियादी ढाँचे के विकास के लिये दीर्घकालिक धन प्रदान करता है, अतः निरंतर आर्थिक परिवर्तन का समर्थन करने के लिये बीमा क्षेत्र का विकास आवश्यक है।
- अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बीमा क्षेत्र की क्षमता और प्रदर्शन का मूल्यांकन सामान्य रूप से दो मापदंडों के आधार पर किया जाता है, अर्थात्,
- बीमा व्यापन जो एक वर्ष में कुल बीमा प्रीमियम और सकल घरेलू उत्पाद (GDP) के अनुपात को संदर्भित करता है।
- बीमा घनत्व जो जनसंख्या के लिये बीमा शुल्क के अनुपात को दर्शाता है अर्थात् प्रति व्यक्ति बीमा शुल्क को अमेरिकी डॉलर में मापा जाता है क्योंकि यह किसी देश में बीमा क्षेत्र के विकास के स्तर को दर्शाता है।
- आबादी के निम्न आय वर्ग तक बीमा की पहुँच को सुविधाजनक बनाने के लिये भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (IRDAI) ने भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण (सूक्ष्म बीमा) विनियम, 2015 निर्गत किया जो ग्रामीण तथा शहरी गरीब लोगों को सस्ते बीमा उत्पादों को वितरित करने के लिये एक मंच प्रदान करता है और वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देता है।
- वर्ष 2020 में भारत में बीमा की प्रवेश दर 2.7% से लगातार बढ़कर 4.2% हो गई और वर्ष 2021 में भी समान रहा है। वर्ष 2021 में भारत में जीवन बीमा की प्रवेश दर 3.2% थी जो उभरते बाज़ारों से लगभग दोगुनी और वैश्विक औसत से थोड़ी अधिक थी।
- सरकारी योजनाओं और वित्तीय समावेशन की पहलों द्वारा बीमा अपनाने के साथ सभी क्षेत्रों में इसका विस्तार करने के लिये प्रेरित किया गया है। फसल बीमा के लिये सरकार की प्रमुख पहल प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY) ने फसल बीमा के लिये प्रीमियम आय में महत्त्वपूर्ण वृद्धि की है। आयुष्मान भारत (AB PMJAY) का उद्देश्य अस्पताल में भर्ती होने वाले माध्यमिक और तृतीयक देखभाल के लिये स्वास्थ्य आवरण प्रदान करना है।
सरकारी बीमा योजना
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कीमतें एवं मुद्रास्फीति: नाज़ुक परिस्थितियों पर कामयाबी
बढ़ती कीमतें सदैव नीति निर्माताओं के लिये चिंता का कारण होती हैं क्योंकि वे आम आदमी को सबसे अधिक नुकसान पहुँचाती हैं। विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति का संकट अधिक महसूस किया जाता है, जहाँ विकसित देशों की तुलना में उपभोग टोकरी में आवश्यकताओं की भागीदारी अधिक होती है।
प्रमुख बिंदु
- हालिया वर्षों में भारतीय मुद्रास्फीति की दर, जो वर्ष 2017 से वर्ष 2019 तक RBI के लक्षित दर से 4 प्रतिशत से काफी नीचे है।
- वर्ष 2020 में आपूर्ति-पक्ष की बाधाओं ने मुद्रास्फीति को RBI की 6 प्रतिशत की उच्च सहिष्णुता सीमा से परे कर दिया। इस महामारी ने मांग की तुलना में आपूर्ति को बड़ा झटका दिया है। इसने देश में लागत-प्रेरित मुद्रास्फीति में वृद्धि की है।
- जैसे-जैसे महामारी कम हुई रूस-यूक्रेन संघर्ष छिड़ गया, जिससे समस्त विश्व में महँगाई में वृद्धि हुई, जो अधिकतर कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी का कारण था।
- वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार का सामना करने के लिये मुद्रास्फीति दरों को छोड़ दिया गया था। जिसके कारण क्षेत्रीय स्तर वृहत रूप में मंदी फैलने लगी।
- विकसित अर्थव्यवस्थाओं के पास ब्याज दरें बढ़ाने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं बचा था। जैसा कि अमेरिकी फेडरल रिज़र्व ने दरों में वृद्धि की, अमेरिकी डॉलर की सराहना की, जिससे डॉलर मूल्यवर्ग के ईंधन आयात और भी महँगे हो गए।
- भारत के मुद्रास्फीति प्रबंधन में महामारी से उत्पन्न आर्थिक संकट को दूर करने के लिये राजकोषीय और मौद्रिक उपाय शामिल थे, जिनके लिये भारत ने उत्तेजित होकर कोई निर्णय नहीं लिया। हालाँकि रूस-यूक्रेन संघर्ष के रुकने से मूल्य दबाव नियंत्रित हो सकते हैं।
- गर्मियों में अत्यधिक गर्मी और उसके बाद देश के कुछ हिस्सों में वर्षा ने कृषि क्षेत्र को प्रभावित किया, जिससे आपूर्ति बाधित हुई और कुछ प्रमुख उत्पादों की कीमतें बढ़ गईं।
- दिसंबर 2022 में मुद्रास्फीति की दर 5.7 प्रतिशत तक कम होने से पहले अप्रैल 2022 में भारतीय मुद्रास्फीति की दर 7.8 प्रतिशत पर पहुँच गई थी, जिसका कारण अनुकूल मानसून के साथ-साथ पर्याप्त खाद्य आपूर्ति सुनिश्चित करने वाले त्वरित सरकारी पैमाने थे।
- वैश्विक आर्थिक मंदी और ब्याज दरों में वृद्धि के परिणामस्वरूप कमोडिटी की कीमतों में गिरावट आई है, जिसने थोक मूल्य मुद्रास्फीति को काफी कम करने में भी सहायता की है।
- थोक मुद्रास्फीति में कमी आई है,जिसमें उच्च इनपुट लागतों को खुदरा कीमतों पर पारित किया गया है। इसके अलावा मांग में सुधार के साथ सर्विस मुद्रास्फीति में तेज़ी आई है।
घरेलू खुदरा मुद्रास्फीति
- आवास, कपड़ा, फार्मास्युटिकल, कृषि एवं आवासीय क्षेत्र खुदरा मूल्य मुद्रास्फीति के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- इसके अतिरिक्त ऊर्जा, खनन, रसायन और मशीनरी की कीमतों के दबाव से प्रेरित आयातित मुद्रास्फीति मुख्य रूप से थोक मूल्य मुद्रास्फीति के माध्यम से खुदरा क्षेत्र में पहुँचती है।
- वित्त वर्ष 2021 की तुलना में वित्त वर्ष 2022 में कम उपभोक्ता मूल्य सूचकांक-संयुक्त (CPI-C) आधारित खुदरा मुद्रास्फीति देखी गई। वित्त वर्ष 2022 के दौरान कुछ उप-समूहों जैसे ‘तेल एवं वसा’, ‘ईंधन एवं प्रकाश’ और ‘परिवहन तथा संचार’ ने उच्च मुद्रास्फीति की सूचना दी।
- उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) पर आधारित खाद्य मुद्रास्फीति वित्त वर्ष 2012 में 3.8% से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 में 7.0% हो गई। वित्त वर्ष 2023 में खुदरा मुद्रास्फीति मुख्य रूप से उच्च खाद्य मुद्रास्फीति द्वारा संचालित थी, जबकि मुख्य मुद्रास्फीति मध्यम स्तर पर रही।
- जबकि चालू वित्त वर्ष में ग्रामीण और शहरी मुद्रास्फीति में मामूली अंतर देखा गया लेकिन FY22 के दौरान दोनों के बीच एक बड़ा अंतर देखने को मिला। वित्त वर्ष 2022 में दोनों के बीच व्यापक अंतर देखा गया था। ग्रामीण एवं शहरी मुद्रास्फीति के बीच का अंतर खाद्य मुद्रास्फीति में आने वाले अंतर का परिणाम था। ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी क्षेत्रों में इस दौरान सब्जियों एवं तेलों की खाद्य कीमतों में तेज़ी से वृद्धि हुई।
CPI-C (प्रतिशत) के आधार पर औसत वार्षिक खुदरा मुद्रास्फीति (आधार: वर्ष 2012=100) | |||||
समूह | भार | वित्त वर्ष 2020 | वित्त वर्ष 2021 | वित्त वर्ष 2022 | वित्त वर्ष 2023* |
खाद्य एवं पेय पदार्थ | 45.9 | 6.0 | 7.3 | 4.2 | 7.0 |
पान, तंबाकू एवं नशीला पदार्थ | 2.4 | 4.2 | 9.9 | 4.5 | 2.0 |
कपड़े एवं जूते | 6.5 | 1.6 | 3.4 | 7.2 | 9.7 |
आवास | 10.1 | 4.5 | 3.3 | 3.7 | 4.1 |
ईंधन एवं प्रकाश | 6.8 | 1.3 | 2.7 | 11.3 | 10.5 |
हेडलाइन मुद्रास्फीति | 100.0 | 4.8 | 6.2 | 5.5 | 6.8 |
मूल स्फीति | 47.3 | 4.0 | 5.5 | 6.0 | 6.1 |
खाद्य मुद्रास्फीति | 39.1 | 6.7 | 7.7 | 3.8 | 7.0 |
स्रोत : सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI)
नोट: *अप्रैल-दिसंबर, दिसंबर 2022 के CPI आँकड़े अनंतिम हैं |
घरेलू थोक मूल्य मुद्रास्फीति
- खुदरा आधारित मुद्रास्फीति COVID-19 अवधि के दौरान न्यूनतम रही, आर्थिक गतिविधियों के पुनः आरंभ होने के बाद महामारी पश्चात् की अवधि में इसमें तेज़ी आने लगी। रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण यह समस्या और भी बढ़ गई क्योंकि इससे वैश्विक आपूर्ति शृंखलाएँ बिगड़ने लगीं।
- वित्त वर्ष 2012 में थोक मुद्रास्फीति की दर लगभग 13.0% तक बढ़ गई। पेट्रोलियम उत्पादों, बुनियादी धातुओं, रसायनों और रासायनिक उत्पादों, खाद्य तेलों जैसी वस्तुओं की कीमतें, अंतर्राष्ट्रीय मूल्य निर्धारण के अधिकतम जोखिम के साथ घरेलू थोक मूल्य सूचकांक मुद्रास्फीति में वृद्धि के रूप में प्रस्तुत हैं।
- WPI मुद्रास्फीति का एक भाग आयातित मुद्रास्फीति है। खाद्य तेलों पर उच्च आयात निर्भरता का अर्थ है, इन उत्पादों की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय कीमतों का अस्थायी प्रभाव घरेलू कीमतों में भी परिलक्षित होता है।
- वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही में पूंजी के बहिर्वाह ने भारत की विनिमय दर पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था, यह आयातित निविष्टियों की ऊँची कीमतों का परिणाम था, जिनका भुगतान डॉलर में होता है।
WPI और CPI मुद्रास्फीति का अभिसरण
- अंतर्राष्ट्रीय कीमतों की थोक मूल्यों पर निकासी अपेक्षाकृत शीघ्र होती है, यह खुदरा कीमतों को एक अंतराल के साथ प्रभावित करती है। यह WPI और CPI मुद्रास्फीति दरों के बीच एक अंतर उत्पन्न करती है। ऐसा दो सूचकांकों में अलग-अलग पण्यों की संरचना और भार में अंतर के कारण भी होता है।
- WPI और CPI-C आधारित हेडलाइन मुद्रास्फीति मार्च 2021 में विचलित होने लगी। CPI-C और WPI मुद्रास्फीति के बीच की खाई नवंबर 2021 में 10% पर अपने चरम पर पहुँचने से पहले विस्तृत हो गई। इसके बाद अप्रैल 2022 तक यह अंतर न्यूनतम होना शुरू हो गया।
- कच्चे तेल सहित वैश्विक पण्य कीमतों में नरमी और अनुकूल मानसून, टीकाकरण की अगुवाई वाली आर्थिक बहाली आदि जैसे मज़बूत सहायक घरेलू कारकों के प्रभाव के बाद ही यह कम होना शुरू होने लगा जो नवंबर 2022 में आकर रुक गया।
- WPI और CPI सूचकांकों के बीच अभिसरण मुख्य रूप से दो कारकों द्वारा संचालित था:
- कच्चा तेल, लोहा, एल्युमीनियम और कपास जैसी वस्तुओं की मुद्रास्फीति में कमी के कारण थोक मूल्य सूचकांक में कमी आई।
- CPI मुद्रास्फीति सेवाओं की कीमतों में वृद्धि के कारण बढ़ी। सेवाएँ CPI-C के मुख्य घटक का भाग है, लेकिन WPI टोकरी में शामिल नहीं है।
मूल्य स्थिरता के लिये मौद्रिक नीति के पैमाने
- भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने तरलता समायोजन सुविधा के तहत नीतिगत रेपो दरों में वृद्धि की।
- हालाँकि मई और दिसंबर 2022 के मध्य यह 2.25% (225 आधार अंक) बढ़कर 4.0% से 6.25% हो गई।
आवास की कीमतें: महामारी के बाद आवास क्षेत्र में सुधार
- आवास की कीमतें संपत्ति बाज़ारों में उछाल और गिरावट के माध्यम से अर्थव्यवस्था की स्थिति पर उपयोगी जानकारी प्रदान करती हैं, जो आर्थिक असंतुलन को जन्म देती हैं। साथ ही इन कीमतों में होने वाले उतार-चढ़ाव, घरेलू धन और उपभोक्ता विश्वास पर इसके प्रभाव के माध्यम से खपत खर्च को प्रभावित करते हैं।
- राष्ट्रीय आवास बैंक वित्त वर्ष 2018 को आधार वर्ष मानकर दो आवास मूल्य सूचकांक, नामतः ‘HPI मूल्यांकन मूल्य’ और ‘HPI बाज़ार मूल्य त्रैमासिक’ प्रकाशित करता है।
- HPI मूल्यांकन मूल्य प्राथमिक ऋण देने वाली संस्थाओं से एकत्रित आवासीय इकाइयों के मूल्यांकन मूल्यों पर आधारित होता है।
- इसके विपरीत HPI बाज़ार मूल्य डेवलपर्स से एकत्र की गई, बेची गई सूची के बाज़ार मूल्य पर आधारित है।
- भार के रूप में शहरों की जनसंख्या का उपयोग करके पूरे भारत के 50 शहरों के लिये एक समग्र सूचकांक की गणना की जाती है।
- 50 शहरों में से 43 में आवास मूल्य सूचकांक में वृद्धि देखी गई, जबकि 7 शहरों में वार्षिक गिरावट देखी गई।
- देश के सभी आठ प्रमुख महानगरों अर्थात् अहमदाबाद,बंगलौर, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता, मुंबई और पुणे में वार्षिक आधार पर सूचकांक में वृद्धि दर्ज की गई।
- समग्र HPI मूल्यांकन और HPI बाज़ार कीमतों में समग्र वृद्धि आवास वित्त क्षेत्र में पुनरुद्धार का संकेत प्रदान करती है।
फार्मास्यूटिकल (दवा निर्माता) कीमतों पर नियंत्रण रखना
- दवाओं की कीमतों के नियमन के सिद्धांत राष्ट्रीय फार्मास्यूटिकल्स मूल्य निर्धारण नीति, 2012 पर आधारित हैं, जो फार्मास्यूटिकल्स विभाग द्वारा प्रशासित होती है। इस नीति के प्रमुख सिद्धांत दवाओं की अनिवार्यता, सूत्रीकरण कीमतों पर नियंत्रण और बाज़ार आधारित मूल्य निर्धारण हैं।
- प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि परियोजना (PMBJP) सभी को सस्ती कीमतों पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने के लिये शुरू की गई थी। इस योजना के तहत सभी को विशेष रूप से गरीबों और वंचितों को सस्ती कीमत पर गुणवत्तापूर्ण जेनेरिक दवाएँ उपलब्ध कराने के लिये जनऔषधि केंद्र के रूप में पहचाने जाने वाले समर्पित आउटलेट खोले गए हैं।
- प्रधानमंत्री भारतीय जनऔषधि केंद्र (PMBJK) स्थायी और नियमित आय के अवसरों के साथ स्वरोज़गार भी प्रदान करते हैं। PMBJP के तहत दिसंबर 2022 तक देश भर में 9000 से अधिक PMBJK खोले जा चुके हैं।
निष्कर्ष
- भारत का मुद्रास्फीति प्रबंधन विशेष रूप से उल्लेखनीय रहा है, इसकी तुलना उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से की जा सकती है जो अभी भी स्थिर मुद्रास्फीति दरों से जूझ रहे हैं। वित्त वर्ष 2024 में मुद्रास्फीति की चुनौती इस वर्ष की तुलना में बहुत कम कठोर होगी। मौद्रिक और राजकोषीय प्राधिकरणों से इस वर्ष की तरह ही सक्रिय और सतर्क रहने की उम्मीद है।
सामाजिक अवसंरचना और रोज़गार: व्यापक व्यवस्था
- देश पिछले दशकों में आय बढ़ाने तथा जीवन स्तर में सुधार करने में अच्छी प्रगति कर रहा है। वित्त वर्ष 2023 में केंद्र और राज्य सरकारों के सामाजिक क्षेत्र परिव्यय में लगातार वृद्धि हुई है।
प्रमुख बिंदु
- भारत का सामाजिक-आर्थिक परिवेश तथा अद्वितीय लोकाचार इसकी अनेक संस्कृतियों, भाषाओं और भूगोल वाली विविध तथा विशाल आबादी में बसते हैं, जो देश की वास्तविक संपदा हैं।
- कई शहरों और गाँवों में रहने वाले युवा एवं आकांक्षी नागरिकों द्वारा पोषित अपार संभावनाओं का एहसास करने तथा परिस्थितियों की विविधता एवं विभिन्न वर्गों की विशेष आवश्यकताओं के अनुकूलन के लिये महत्त्वाकांक्षी दृष्टिकोण और सावधानीपूर्वक कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
- आधारभूत सेवाएँ और संरचनाएँ जो जीवन की बेहतर गुणवत्ता के लिये महत्त्वपूर्ण विभिन्न सुविधाओं का लाभ उठाने में समाज की सहायता करती हैं, यानी सामाजिक आधारभूत संरचना, अप्रत्यक्ष रूप से आय तथा रोज़गार के अवसरों, उत्पादकता वृद्धि तथा तकनीकी उन्नति में वृद्धि की नींव रखकर आर्थिक विकास में योगदान करती है।
- अर्थव्यवस्था के समग्र विकास से जीवन की गुणवत्ता की अवधारणा में आय के पारंपरिक मेट्रिक्स (जो भोजन एवं आश्रय जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की उपलब्धता निर्धारित करती है) तथा शिक्षा के स्तर की तुलना में कई और तत्त्वों को समाहित किया है। अब इसमें स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता, रोज़गार की संभावनाएँ, स्वास्थ्य देखभाल, सामाजिक सुरक्षा, कनेक्टिविटी आदि तक पहुँच शामिल है।
- समकालीन परिदृश्य में यह और अधिक प्रासंगिक है क्योंकि भारत ने संयुक्त राष्ट्र के सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) 2030 को अपनाया है, जो व्यापक, दूरगामी तथा जन-केंद्रित सार्वभौमिक एवं परिवर्तनकारी लक्ष्य व ध्येय है। इन सत्रह लक्ष्यों में से कई लक्ष्य व्यक्तियों के सामाजिक रहन-सहन से संबंधित हैं।
सामाजिक क्षेत्र व्यय
- वित्त वर्ष 2018 से वित्त वर्ष 2020 तक सरकार के कुल खर्च में सामाजिक सेवाओं पर खर्च का हिस्सा करीब 25 फीसदी रहा है। वित्त वर्ष 2023 (BE) में यह बढ़कर 26.6 प्रतिशत हो गया।
- जबकि वित्त वर्ष 2019 में केंद्र और राज्य सरकारों का सामाजिक क्षेत्र परिव्यय 12.8 लाख करोड़ रुपए था, यह धीरे-धीरे बढ़कर वित्त वर्ष 2023 (BE) में 21.3 लाख करोड़ रुपए हो गया है।
- सामाजिक सेवाओं पर कुल व्यय में स्वास्थ्य पर खर्च का हिस्सा वित्त वर्ष 2019 में 21 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2023 (BE) में 26 प्रतिशत हो गया है।
- साथ ही पंद्रहवें वित्त आयोग ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि संघ और राज्यों का सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यय एक साथ मिलाकर प्रगतिशील तरीके से वर्ष 2025 तक GDP के 2.5 प्रतिशत तक बढ़ाया जाना चाहिये।
- इस उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए स्वास्थ्य क्षेत्र पर केंद्र तथा राज्य सरकारों का बजटीय व्यय वित्त वर्ष 2023 (BE) में GDP के 2.1 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2022 (RE) में 2.2 प्रतिशत तक पहुँच गया, जबकि वित्त वर्ष 2021 में यह 1.6 प्रतिशत था।
मानव विकास मानदंडों में सुधार करना
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2021/2022 एचडीआई रिपोर्ट में 191 देशों और क्षेत्रों में से 132वें स्थान पर है।
- संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2021/2022 के मानव विकास सूचकांक (HDI) रिपोर्ट में 191 देशों और क्षेत्रों में से 132वें स्थान पर है।
- वर्ष 2021 में भारत का HDI मान 0.633 देश को मध्यम मानव विकास की श्रेणी में रखता है, जो वर्ष 2019 में इसके मान 0.645 से कम है। हालाँकि भारत का HDI मान दक्षिण एशिया के औसत मानव विकास से अधिक है। सार्वभौमिक स्वास्थ्य एवं शिक्षा सुनिश्चित करने सहित सामाजिक बुनियादी ढाँचे में निवेश को प्राथमिकता देने के कारण वर्ष 1990 के बाद से यह लगातार वृद्धि कर रहा है।
- लैंगिक असमानता के पैरामीटर पर भारत का लैंगिक असमानता सूचकांक (Gender Inequality Index- GII) मान वर्ष 2021 में 0.490 है और भारत 122वें स्थान पर है। यह स्कोर दक्षिण एशियाई क्षेत्र (मान 0.508) से बेहतर है और विश्व औसत 0.465 के करीब है।
- यह अधिक समावेशी विकास, सामाजिक सुरक्षा और लैंगिक-उत्तरदायी विकास नीतियों की दिशा में सरकार की पहल और निवेश को दर्शाता है।
- रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि भारत में वर्ष 2005-06 तथा वर्ष 2019-21 के बीच 41.5 करोड़ लोग गरीबी से बाहर निकले, यह दर्शाता है कि वर्ष 2030 तक राष्ट्रीय परिभाषाओं के अनुसार सभी आयामों में गरीबी में रहने वाले पुरुषों, महिलाओं और सभी उम्र के बच्चों के अनुपात को कम-से-कम आधे से कम करने के SDG लक्ष्य 1.2 को प्राप्त करना संभव है।
UNDP बहुआयामी गरीबी सूचकांक 2022 |
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आकांक्षी ज़िला कार्यक्रम
- भारत सरकार ने जनवरी 2018 में ‘आकांक्षी ज़िलों का परिवर्तन’ (Aspirational Districts Programme- ADP) पहल शुरू की, जिसमें अपने नागरिकों के जीवन स्तर को बढ़ाने और समावेशी विकास सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
- स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, वित्तीय समावेशन और कौशल विकास, और बुनियादी ढांचे से लेकर मानव विकास सूचकांक (HDI) को प्रभावित करने वाले समग्र संकेतकों के आधार पर नीति आयोग द्वारा 28 राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में 117 आकांक्षी जिलों (AD) की पहचान की गई है।
- कार्यक्रम की व्यापक रूपरेखा अभिसरण (केंद्रीय और राज्य योजनाओं), सहयोग (केंद्रीय, राज्य स्तर के नोडल अधिकारियों एवं ज़िला कलेक्टरों) तथा मासिक डेल्टा रैंकिंग के माध्यम से ज़िलों के बीच प्रतिस्पर्धा; सभी एक जन आंदोलन द्वारा संचालित हैं।
- कार्यक्रम की व्यापक रूपरेखा अभिसरण (केंद्रीय और राज्य योजनाओं का), सहयोग (केंद्रीय, राज्य स्तर के नोडल अधिकारियों और जिला कलेक्टरों का), और मासिक डेल्टा रैंकिंग के माध्यम से जिलों के बीच प्रतिस्पर्द्धा; सभी एक जन आंदोलन द्वारा संचालित।
- मुख्य संचालकों के रूप में राज्यों के साथ यह कार्यक्रम प्रत्येक ज़िले की क्षमताओं पर ध्यान केंद्रित करता है, तत्काल सुधार के लिये हर महीने ज़िलों की रैंकिंग करके प्रगति को मापता है।
- सभी ज़िलों ने विभिन्न संकेतकों में उल्लेखनीय सुधार किया है, उदाहरण के लिये स्वास्थ्य और पोषण के तहत 46 ज़िलों में 45 प्रतिशत तक सुधार हुआ है तथा 23 ज़िलों में गर्भवती महिलाओं के स्वास्थ्य से संबंधित महत्त्वपूर्ण संकेतकों में 69 प्रतिशत तक सुधार हुआ है।
प्रगामी श्रम सुधार उपाय
- वर्ष 2019 और 2020 में 29 केंद्रीय श्रम कानूनों को चार श्रम संहिताओं में समामेलित, युक्तिसंगत और सरल बनाया गया था, अर्थात््:
- मज़दूरी संहिता, 2019
- औद्योगिक संबंध संहिता, 2020
- सामाजिक सुरक्षा संहिता, 2020
- व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य और काम करने की स्थिति संहिता, 2020
- नए कानून बदलते श्रम बाज़ार के रुझानों के अनुरूप हैं और साथ ही कानून के ढाँचे के भीतर स्वरोज़गार तथा प्रवासी श्रमिकों सहित असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की न्यूनतम मज़दूरी की आवश्यकता एवं कल्याणकारी ज़रूरतों को समायोजित करते हैं।
- प्रवर्तन में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिये वेब आधारित निरीक्षण जैसी प्रौद्योगिकी का उपयोग शुरू किया गया है। श्रम संहिताओं में छोटे-मोटे अपराधों को भी गैर-अपराधीकरण प्रदान किया गया है।
- श्रम और रोज़गार मंत्रालय (MoLE) ने असंगठित श्रमिकों का एक राष्ट्रीय डेटाबेस बनाने के लिये ई-श्रम पोर्टल विकसित किया है। यह श्रमिकों का नाम, व्यवसाय, पता, व्यवसाय का प्रकार, शैक्षिक योग्यता एवं कौशल आदि जैसे विवरणों को उनकी रोज़गार क्षमता के इष्टतम प्राप्ति के लिये कैप्चर करता है तथा उन तक सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लाभों का विस्तार करता है।
रोज़गार प्रवृत्तियों में सुधार करना
- रोज़गार प्रवृत्तियों का अध्ययन किया जा सकता है:
- सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा आयोजित आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (Periodic Labor Force Survey- PLFS) जैसे घरेलू सर्वेक्षणों के माध्यम से श्रम की आपूर्ति पक्ष।
- उद्यम या स्थापना सर्वेक्षण जैसे वार्षिक सर्वेक्षण के माध्यम से श्रम के मांग पक्ष सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (ASI), श्रम ब्यूरो द्वारा त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES) आदि।
- शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्रों में श्रम बाज़ार पूर्व-कोविड-19 स्तरों से आगे निकल गए हैं, बेरोज़गारी दर वर्ष 2018-19 के 5.8 प्रतिशत से गिरकर वर्ष 2020-21 में 4.2 प्रतिशत हो गई है तथा ग्रामीण FLFPR (Female Labour Force Participation Rate) में उल्लेखनीय वृद्धि वर्ष 2018-19 के 19.7 प्रतिशत से वर्ष 2020-21 में 27.7 प्रतिशत तक हुई है।
- हाल के शहरी रोज़गार डेटा पूर्व-महामारी के स्तर से आगे की प्रगति दिखाते हैं क्योंकि जुलाई-सितंबर 2019 में बेरोज़गारी दर 8.3 प्रतिशत से घटकर जुलाई-सितंबर 2022 में 7.2 प्रतिशत हो गई।
- कृषि में लगे श्रमिकों की हिस्सेदारी वर्ष 2019-20 के 45.6 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 46.5 प्रतिशत हो गई, विनिर्माण की हिस्सेदारी 11.2 प्रतिशत से घटकर 10.9 प्रतिशत हो गई; निर्माण का हिस्सा 11.6 प्रतिशत से बढ़कर 12.1 प्रतिशत हो गया और व्यापार, होटल एवं रेस्टोरेंट का हिस्सा 13.2 प्रतिशत से घटकर 12.2 प्रतिशत हो गया।
- 75 प्रतिशत से अधिक ग्रामीण महिला श्रमिक कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं। इसका तात्पर्य है कि कृषि से संबंधित क्षेत्रों जैसे कि खाद्य प्रसंस्करण में महिलाओं के कौशल को बढ़ाने और रोज़गार सृजित करने की आवश्यकता है।
- यहाँ, स्व-सहायता समूह (SHG) ग्रामीण महिलाओं की क्षमता को वित्तीय समावेशन, आजीविका विविधीकरण और कौशल विकास के ठोस विकासात्मक परिणामों में आकार देने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- सरकार सभी पात्र और काम करने के इच्छुक लोगों के लिये रोज़गार के अवसरों की पहुँच बढ़ाने के लिये कई उपाय कर रही है। नेशनल कैरियर सर्विस (NCS) प्रोजेक्ट, ऐसा ही एक उपाय है। जुलाई 2015 में लॉन्च किया गया यह प्रोजेक्ट उम्मीदवारों और नियोक्ताओं के बीच अंतराल को कम करने की दिशा में काम करता है।
नोट: श्रम ब्यूरो द्वारा आयोजित त्रैमासिक रोज़गार सर्वेक्षण (QES) में नौ प्रमुख क्षेत्रों के दस या अधिक श्रमिकों वाले प्रतिष्ठान शामिल हैं अर्थात्् विनिर्माण, निर्माण, व्यापार, परिवहन, शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास एवं रेस्टोरेंट, IT/BPO और वित्तीय सेवाएँ। |
सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण शिक्षा सुनिश्चित करना
- सभी के लिये शिक्षा के महत्त्व पर अधिक ज़ोर दिया जाना चाहिये क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति और समाज के विकास की नींव है। जैसा कि डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने कहा था- “सीखने से रचनात्मकता आती है, रचनात्मकता सोच की ओर ले जाती है, सोच ज्ञान की ओर ले जाती है, और ज्ञान आपको महान बनाता है।”
- शिक्षा, कामकाज़ी उम्र की आबादी की रोज़गार क्षमता बढ़ाने के अतिरिक्त गरीबी और सामाजिक हाशिये के चक्र को तोड़ने में भी समान प्रभाव डालती है। ‘क्वालिटी एजुकेशन’ जिसे संयुक्त राष्ट्र एसडीजी (SDG 4) के अंतर्गत लक्ष्य 4 के रूप में सूचीबद्ध किया गया है, का उद्देश्य वर्ष 2030 तक ‘समावेशी तथा समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना है तथा सभी के लिये आजीवन सीखते रहने के अवसरों को बढ़ावा देना’ है।
- जिसका लक्ष्य देश की कई बढ़ती विकास संबंधी आवश्यकताओं का पता लगाना था। यह स्वीकार करते हुए कि शिक्षा भारत जैसे युवा देश के लिये मानव पूंजी निर्माण की जीवन दायिनी है, यह नीति शिक्षा ढाँचे के सभी पहलुओं में संशोधन और सुधार के लिये बनाई गई है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति समावेशी, सफल एवं बहुभाषी स्थिति प्रदान कर युवाओं के सर्वांगीण विकास तथा कौशल अधिग्रहण में योगदान करती है।
- वित्त वर्ष 2022 में स्कूलों में सकल नामांकन अनुपात (GER) और लिंग समानता में सुधार देखा गया। हाल के वर्षों में सभी स्तरों पर स्कूल ड्राप-आउट की दर में लगातार गिरावट देखी गई है।
- समग्र शिक्षा, शिक्षा का अधिकार अधिनियम, स्कूल के बुनियादी ढाँचे तथा सुविधाओं में सुधार, आवासीय छात्रावास भवन, शिक्षकों की उपलब्धता, शिक्षकों का नियमित प्रशिक्षण, मुफ्त पाठ्यपुस्तकें, बच्चों के लिये यूनिफॉर्म, कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालय और प्रधानमंत्री पोषण शक्ति निर्माण जैसी योजनाएँ स्कूलों में नामांकन बढ़ाने तथा बच्चों की स्कूलों में पढाई जारी रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- सरकार ने 7 सितंबर, 2022 को पीएम- स्कूल फॉर राइज़िंग इंडिया (उभरते भारत के लिये स्कूल) नामक एक केंद्र प्रायोजित योजना शुरू की। ये स्कूल राष्ट्रीय शिक्षा नीति के कार्यान्वयन का निष्पादन करेंगे और समय के साथ-साथ आस-पड़ोस के अन्य स्कूलों को नेतृत्व प्रदान करते हुए अनुकरणीय स्कूलों के रूप में उभरेंगे।
- 49 केंद्रीय विद्यालयों में 3+, 4+ और 5+ आयु वर्ग के छात्रों के लिये संज्ञानात्मक, भावात्मक क्षमताओं को विकसित करने तथा प्रारंभिक साक्षरता एवं संख्यात्मकता पर ध्यान देने के साथ प्रोजेक्ट बालवाटिका यानी ‘तैयारी कक्षा’ अक्तूबर 2022 में शुरू की गई थी।
- PRASHAST एप स्कूल स्तर पर दिव्यांगता की स्थिति की जाँच करने में मदद करेगा और समग्र शिक्षा के दिशा-निर्देशों के अनुसार प्रमाणीकरण प्रक्रिया शुरू करने तथा अधिकारियों के साथ साझा करने के लिये स्कूल-वार रिपोर्ट तैयार करेगा।
- राज्यों के लिये शिक्षण-अधिगम तथा परिणाम का सुदृढ़ीकरण (STARS) योजना को छह राज्यों अर्थात्् हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, ओडिसा तथा केरल में 5 वर्षों की अवधि में यानी वित्त वर्ष 25 तक आंशिक रूप से विश्व बैंक के ऋण द्वारा वित्तपोषित केंद्र प्रायोजित योजना के रूप में कार्यान्वित किया जा रहा है। योजना का उद्देश्य चयनित राज्यों में स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता और प्रशासन में सुधार करना है।
- समाज, कॉर्पाेरेट सामाजिक ज़िम्मेदारी (CSR) तथा निजी क्षेत्र की भागीदारी के माध्यम से देश भर के स्कूलों को सुदृढ़ कर स्कूली शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से सरकार ने विद्यांजलि (स्कूल स्वयंसेवी प्रबंधन कार्यक्रम) की शुरुआत की है। यह स्वयंसेवकों/संगठनों को उनकी पसंद के सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के साथ बातचीत करने तथा सीधा जुड़ने एवं उनके ज्ञान और कौशल को साझा करने तथा स्कूलों की आवश्यकता को पूरा करने के लिये संपत्ति/सामग्री/उपकरण के रूप में योगदान करने में सक्षम बनाता है।
सभी के लिये गुणवत्तापूर्ण और किफायती स्वास्थ्य सेवा
- नागरिकों को गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएँ उपलब्ध कराना सरकार की एक महत्त्वपूर्ण प्राथमिकता है। इस उद्देश्य की दिशा में नागरिकों के बेहतर समग्र स्वास्थ्य के लिये बहुआयामी पहलें शुरू की गई हैं और आगे बढ़ाई गई हैं।
- प्रजनन, मातृ, नवजात, शिशु, किशोर स्वास्थ्य सहित पोषण (RMNCAH+N) रणनीति के तहत किये गए प्रयासों के साथ भारत ने माताओं और बच्चों दोनों की स्वास्थ्य स्थिति में सुधार करने में पर्याप्त प्रगति की है।
- नमूना पंजीकरण प्रणाली (SRS) के आँकड़ों के अनुसार, भारत ने वर्ष 2020 तक मातृ मृत्यु दर (MMR) को 100 प्रति लाख जीवित जन्मों से नीचे लाने के लक्ष्य को (राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में निर्धारित) सफलतापूर्वक हासिल किया है। साथ ही वर्ष 2014-16 के 130 प्रति लाख जीवित जन्मों से वर्ष 2018-20 तक 97 प्रति लाख जीवित जन्म पर लाना।
- वर्ष 2030 के MMR को 70 प्रति लाख जीवित जन्म से कम करने के SDG लक्ष्य को 8 राज्यों ने पहले ही हासिल कर लिया है। इनमें केरल (19), महाराष्ट्र (33), तेलंगाना (43) आंध्र प्रदेश (45), तमिलनाडु (54), झारखंड (56), गुजरात (57) और कर्नाटक (69) शामिल हैं।
- यह हेल्थ कवरेज सुनिश्चित करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल और सामाजिक सुरक्षा के बढ़ते महत्त्व पर प्रकाश डालता है। वित्त वर्ष 2019 के लिये NHA का अनुमान बताता है कि कुल GDP में सरकारी स्वास्थ्य व्यय की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है। यह वृद्धि वित्त वर्ष 2014 के 1.2 प्रतिशत से बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 1.3 प्रतिशत हो गई है। इसके अतिरिक्त कुल स्वास्थ्य व्यय (Total Health Expenditure- THE) में सरकारी स्वास्थ्य व्यय (Government Health Expenditure- GHE) की हिस्सेदारी भी समय के साथ बढ़ी है, यह वित्तीय वर्ष 2014 में 28.6 प्रतिशत थी, जो बढ़कर वित्तीय वर्ष 2019 में 40.6 प्रतिशत हो गई।
भारत की आकांक्षी ग्रामीण अर्थव्यवस्था
- वर्ष 1960 के दशक में भारत के ग्रामीण इलाकों में रहने वाली आबादी लगभग 80 प्रतिशत थी और वर्ष 2007 तक यह 70 प्रतिशत से अधिक थी। वर्ष 2021 में 65 प्रतिशत है। इसके अलावा 47 प्रतिशत आबादी आजीविका के लिये कृषि पर निर्भर है।
- ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सरकार के जुड़ाव का उद्देश्य “ग्रामीण भारत के सक्रिय सामाजिक-आर्थिक समावेश, एकीकरण और सशक्तीकरण के माध्यम से जीवन तथा आजीविका को बदलना” है।
- ग्रामीण क्षेत्रों में जीवन की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये ग्रामीण आवास, पेयजल, स्वच्छता, स्वच्छ ईंधन, सामाजिक सुरक्षा, ग्रामीण आजीविका में वृद्धि के साथ-साथ ग्रामीण कनेक्टिविटी सहित कई उपाय किये गए हैं।
- माइक्रोफाइनेंस संस्थानों, स्वयं सहायता समूहों (SHG) और अन्य वित्तीय मध्यस्थों के माध्यम से ग्रामीण परिवारों एवं छोटे व्यवसायों की वित्तीय ज़रूरतों को पूरा किया जा रहा है। डिजिटलीकरण तथा प्रौद्योगिकी को ग्रामीण अर्थव्यवस्था तक ले जाना भी ग्रामीण विकास एजेंडे का एक प्रमुख पहलू रहा है।
समावेशी विकास के लिये ग्रामीण शासन में सुधार करना
- सरकार के विभिन्न कार्यक्रमों और योजनाओं को ज़मीनी स्तर पर लागू करने, सभी के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करने तथा ग्रामीण विकास कार्यक्रमों की स्थिरता प्राप्त करने में मदद के लिये अच्छा ग्रामीण शासन अनिवार्य है।
- पंचायती राज संस्थानों (Panchayati Raj Institution- PRI) को मज़बूत करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ राष्ट्रीय ग्राम स्वराज अभियान (RGSA) की एक केंद्र प्रायोजित योजना (Centrally Sponsored Scheme- CSS) को केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा अप्रैल 2018 में वित्तीय वर्ष 2019 से वित्त वर्ष 2022 तक कार्यान्वयन के लिये मंज़ूरी दी गई थी। PRI को सशक्त बनाने के लिये RGSA की योजना का प्रमुख फोकस क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण (CB&T) था।
- स्वामित्व (ग्रामीण क्षेत्रों में गाँवों का सर्वेक्षण और बेहतर तकनीक के साथ मानचित्रण) 24 अप्रैल, 2020 को राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस पर शुरू की गई एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। इस योजना का उद्देश्य बसे हुए ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं के घर वाले ग्रामीण परिवारों के मालिकों को ‘अधिकारों का रिकॉर्ड’ प्रदान करना है। इस योजना में विविध पहलुओं को शामिल किया गया है। ये हैं: संपत्तियों के मुद्रीकरण को सुगम बनाना तथा बैंक ऋणों को सक्षम बनाना; संपत्ति संबंधी विवादों को कम करना; व्यापक ग्राम-स्तरीय योजना आदि।
निष्कर्ष
जब मानव विकास के विभिन्न पहलुओं जैसे- शिक्षा, कौशल, रोज़गार, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास को प्रौद्योगिकी के साथ जोड़ा जाता है, तो सर्वांगीण क्रांतिकारी नवाचार के परिणामस्वरूप प्रौद्योगिकी के नेतृत्व में विकास एवं समृद्धि आती है। समान विकास के लिये भारत जैसे विशाल तथा विविधतापूर्ण देश को पर्याप्त व समान वित्तीय संसाधनों द्वारा समर्थित व्यापक-आधारित समावेशी सामाजिक नीतियों के कार्यान्वयन की आवश्यकता है।
जलवायु परिवर्तन और पर्यावरणः भविष्य का सामना करने की तैयारी
- जलवायु परिवर्तन की वैश्विक प्रकृति के कारण विश्व के सबसे प्रभावित राष्ट्रों में से भारत एक है। जहाँ भारत, उत्सर्जन की उच्च मात्रा के लिये कम ज़िम्मेदार है, यह लगातार विभिन्न उपायों को अपनाने की दिशा में वैश्विक प्रयासों का पालन कर रहा है और वर्ष 2070 तक निवल-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की प्रतिबद्धता के साथ कम-उत्सर्जन के नीतिगत मार्गों को सुनिश्चित कर रहा है।
प्रमुख बिंदु
- जलवायु परिवर्तन प्राकृतिक कारणों से तापमान और मौसम के पैटर्न में होने वाला एक दीर्घकालिक परिवर्तन है, लेकिन 19वीं शताब्दी की औद्योगिक क्रांति की शुरुआत के बाद यह मुख्य रूप से मानवजनित गतिविधियों के कारण हुआ है।
- ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन दशकों से शताब्दियों तक वातावरण में बना रहता है, जिससे सूर्य से निकलने वाली गर्मी बच नहीं पाती जबकि सीमा के भीतर यह हमारी पृथ्वी को और अधिक रहने योग्य बनाती हैं, जो स्वास्थ्यकर मौसम की स्थिति के अनुकूल हैं, और इस तरह संवर्द्धित उत्सर्जन ने समुद्र के स्तर में वृद्धि, मानसून चक्र में परिवर्तन और भूमि प्रणालियों को प्रभावित करने के साथ तापमान में वृद्धि की है।
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन मानवता और दुनिया के सामने आने वाली अनिवार्य वास्तविकता के लिये सबसे बड़ा खतरा है। कार्बन उत्सर्जन की मात्रा को कम करने और बदलती जलवायु परिस्थितियों के साथ अनुकूलित होने की तत्काल आवश्यकता है क्योंकि दुनिया पहले ही इसके परिणामों का सामना कर रही है।
- जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अधिकांश वैश्विक चिंताएँ विशेष रूप से ग्रीनहाउस गैसों और कार्बन से होने वाले उत्सर्जन के बारे में है। जितना अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है, उतना ही अधिक वे वातावरण में बने रहते हैं, जिससे ग्लोबल वार्मिंग में वृद्धि होती है।
- इसलिये यदि इसके विनाशकारी परिणामों से बचना है, तो ग्लोबल वार्मिंग को रोका जाना चाहिये, धीमा किया जाना चाहिये। इसके लिये कार्बन सहित GHG के उत्सर्जन को कम करने का ऐसा प्रयास किया जा सकता है। कई राष्ट्रों ने वर्ष 2050 तक अपने निवल गैस उत्सर्जन को शून्य तक कम करने की प्रतिज्ञा की है। कुछ राष्ट्र इसे वर्ष 2060 और 2070 तक हासिल करना चाहते हैं।
- आज के उन्नत राष्ट्रों में औद्योगीकरण के नेतृत्व वाली आर्थिक वृद्धि के कारण पहले ही पिछली ढाई शताब्दियों में कार्बन डाइऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन हो चुका है। विकसित देशों की तुलना में ग्रीनहाउस गैसों के स्टॉक में विकासशील देशों का हिस्सा न्यूनतम रहा है।
- संचयन का प्रभाव भी असाम्यपूर्ण होगा, विकासशील देशों को न केवल जलवायु परिवर्तन का खामियाज़ा भुगतना होगा बल्कि इससे निपटने की अपर्याप्त क्षमता से भी विवश होना पड़ेगा। विडंबना तो यह है कि इस अनुकूलन का बोझ उन लोगों पर सबसे अधिक पड़ेगा, जिन्होंने ग्लोबल वार्मिंग में सबसे कम योगदान दिया है।
- भारत को इसकी लंबी तटरेखा, मानसून पर निर्भर कृषि और बड़ी कृषि अर्थव्यवस्था को देखते हुए सबसे कमज़ोर देशों में से एक माना जाता है।भारत सतत् विकास के लक्ष्य को हासिल करने के लिये प्रयासरत रहा है। यह सशक्त जलवायु संबंधी कार्रवाइयों में से एक की अगुआई करता है।
भारत की जलवायु संबंधी कार्रवाई पर प्रगति
- वर्ष 2008 में भारत ने जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना (National Action Plan on Climate Change-NAPCC) की शुरुआत के साथ आठ राष्ट्रीय मिशनों की स्थापना की, जिसमें कई पहलों और सौर, जल, ऊर्जा दक्षता, वन, स्थायी आवास, संधारणीय कृषि, हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखना, क्षमता निर्माण तथा अनुसंधान एवं विकास (R&D) आदि शामिल हैं।
- जलवायु कार्रवाई के प्रति अपने महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु भारत सरकार ने दिनांक 26 अगस्त, 2022 को अपना अद्यतन NDC प्रस्तुत किया।
- NDC के वर्ष 2030 तक प्राप्त किये जाने वाले तीन मात्रात्मक लक्ष्य हैं-
- गैर-जीवाश्म स्रोतों से संचयी विद्युत ऊर्जा की संस्थापना
- सकल घरेलू उत्पाद की उत्सर्जन तीव्रता में 33 से 35% की कमी (2005 के स्तर की तुलना में)।
- अतिरिक्त वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से 2.5 से 3 बिलियन टन CO2 समतुल्य अतिरिक्त कार्बन सिंक का निर्माण करना।
- ग्लासगो में UNFCCC पार्टियों के सम्मेलन (COP 26) के दृष्टिकोण “पंचामृत” में जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से प्रभावित गरीब और कमज़ोर लोगों की रक्षा के लिये संधारणीय जीवनशैली एवं जलवायु न्याय का उल्लेख है।
- भारत के वन और वृक्ष आवरण में कार्बन स्टॉक
- इंडियन स्टेट ऑफ फॉरेस्ट रिपोर्ट (ISFR) का अनुमान है कि वर्ष 2019 में वनों और वृक्षों के आवरण का कार्बन स्टॉक लगभग 7,204 मिलियन टन होगा, जो कि वर्ष 2017 में किये गए पिछले आकलन के अनुमानों की तुलना में 79.4 मिलियन टन अधिक कार्बन स्टॉक है।
- वन और वृक्षों के आवरण के माध्यम से निष्कासित कार्बन उत्सर्जन की मात्र 30.1 बिलियन टन है।
- अरुणाचल प्रदेश के वनों में अधिकतम कार्बन स्टॉक (1023.84 मिलियन टन) है, इसके बाद मध्य प्रदेश (609.25 मिलियन टन) का स्थान है।
- नदी संरक्षण और कायाकल्प
- सरकार ने 13 प्रमुख नदियों के कायाकल्प के लिये विस्तृत परियोजना रिपोर्ट जारी की है।
- इस DPR के तहत प्रस्तावित कार्यों में नदी के किनारों पर वनीकरण, जिससे हरित आवरण में वृद्धि, मृदा के कटाव को रोकने के उपाय, भूजल तालिका का फनर्भरण, पृथक्करण कार्बन डाइऑक्साइड, जलग्रहण क्षेत्र उपचार, पारिस्थितिक बहाली, नमी संरक्षण, आजीविका सुधार और आय सृजन आदि शामिल हैं।
- अक्षय ऊर्जा स्रोतों में संक्रमण के लिये दृष्टिकोण
- भारत अब अद्यतन NDC के अनुरूप वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन-आधारित ऊर्जा संसाधनों से 50 प्रतिशत संचयी विद्युत ऊर्जा संस्थापित क्षमता के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये प्रयासरत है।
- भारत में नवीकरणीय ऊर्जा में कुल निवेश 78.1 बिलियन डॉलर का था।
- ग्रीन हाइड्रोजन: वैकल्पिक ऊर्जा का एक महत्त्वपूर्ण स्रोत
- राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन वर्ष 2030 तक ग्रीन हाइड्रोजन की मांग सृजन, उत्पादन, उपयोग और निर्यात की सुविधा देगा और 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश जुटाएगा।
- हरित हाइड्रोजन को अपनाने से वर्ष 2050 तक संचयी कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 3.6 गीगा टन की कमी आएगी।
- दीर्घावधि कम उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS)
- LT-LEDS को वैश्विक कार्बन बजट के एक समान और उचित हिस्से के लिये भारत के अधिकार ढाँचे में तैयार किया गया है और यह ‘जलवायु न्याय’ के लिये भारत के आह्वान का व्यावहारिक कार्यान्वयन है।
- LT-LEDS लाइफ, लाइफस्टाइल फाॅर एन्वायरनमेंट के विज़न से प्रेरित है, यह अविवेकपूर्ण और विनाशकारी खपत के प्रति सचेत होकर इसके संधारणीय उपयोग को दुनिया भर में प्रस्तावित करता है।
संधारणीय विकास के लिये वित्त
- भारत की जलवायु संबंधी कार्रवाइयों में वित्त एक महत्त्वपूर्ण इनपुट है। देश की जलवायु कार्रवाइयों को बड़े पैमाने पर अब तक घरेलू स्रोतों से वित्तपोषित किया गया है, जिसमें सरकारी बजटीय सहायता, बाज़ार क्रियाविधि का परस्पर मिश्रण, वित्तीय साधन और नीतिगत हस्तक्षेप शामिल हैं।
- ग्रीन बॉण्ड एक वित्तीय लिखत है, जो पर्यावरण के दृष्टिकोण से संधारणीय और जलवायु-उपयुक्त परियोजनाओं में निवेश के लिये आय उत्त्पन करते हैं। परियोजनाओं की पर्यावरणीय स्थिरता , ग्रीन बॉण्ड व्यापक रूप से जलवायु और पर्यावरणीय परियोजनाओं का समर्थन करने के लिये धन जुटाने के उद्देश्य से एक लिखत के रूप में स्वीकार किये जाते है।
- ग्रीन ऋण प्रतिभूति के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2017 से सितंबर 2022 की अवधि के दौरान 15 भारतीय कॉरपोरेट्स ने 4,539 करोड़ मूल्य के ग्रीन बॉण्ड जारी किये हैं। इनमें से अधिकांश अक्षय ऊर्जा उत्पादन से संबंधित हैं।
- अर्थव्यवस्था में कार्बन तीव्रता को उल्लेखनीय रूप से कम करने की महत्त्वाकांक्षा को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय बजट 2022-23 में सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करने की घोषणा की गई। सॉवरेन ग्रीन बॉण्ड जारी करने से सरकार को अर्थव्यवस्था की कार्बन तीव्रता को कम करने के उद्देश्य से सार्वजनिक क्षेत्र की परियोजनाओं में परिनियोजन के लिये संभावित निवेशकों से अपेक्षित वित्त प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
- समय के साथ RBI ने हरित उद्योगों और परियोजनाओं के लिये बैंक ऋण को प्रोत्साहित किया है। उदाहरण के लिये अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं को प्राथमिकता-प्राप्त क्षेत्र (PSL) के तहत शामिल किया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की पहल
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA) एक संधि-आधारित अंतर-सरकारी संगठन है जो सौर ऊर्जा का लाभ उठाने और स्वच्छ ऊर्जा अनुप्रयोगों को बढ़ावा देने के लिये एक वैश्विक बाज़ार प्रणाली का काम कर रहा है।
- आपदा रोधी अवसंरचना के लिये गठबंधन (CDRI) का उद्देश्य जलवायु और आपदा जोखिमों के लिये अवसंरचना प्रणालियों के लचीलेपन को बढ़ावा देना है, जिससे संधारणीय विकास सुनिश्चित किया जा सके।
- LeadIT उन देशों और कंपनियों को साथ लाता है जो पेरिस समझौते को हासिल करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
अन्य पर्यावरणीय मुद्दों से संबंधित पहल
- जैवविविधता का संरक्षण महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह मानव और सभी जीवित प्राणियों के भरण-पोषण के लिये आवश्यक संसाधन और सेवायें प्रदान करता है। यह पारिस्थितिक तंत्र की उत्पादकता को बढ़ाता है, जहाँ प्रत्येक प्रजाति, चाहे वह कितनी भी छोटी क्यों न हो, उन सबकी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।
- भारत और नेपाल ने अगस्त 2022 में वनों, वन्यजीव, पर्यावरण, जैवविविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन के क्षेत्र में समन्वय एवं सहयोग को मज़बूत करने तथा बढ़ाने के लिये जैवविविधता संरक्षण हेतु एक समझौता ज्ञापन (MOU) पर हस्ताक्षर किये, जिसमें गलियारों और इंटरलिंकिंग क्षेत्रों की बहाली तथा दोनों देशों के बीच ज्ञान और सर्वाेत्तम प्रथाओं को साझा करना शामिल है।
वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, इस अधिनियम का उद्देश्य है:
(i) विशेष रूप से संरक्षित जानवरों के लिये अनुसूचियों की संख्या को दो तक कम करना।
(ii) वर्मिन प्रजातियों को अनुसूची से हटाना।
(iii) CITES (अनुसूचित नमूने) के तहत परिशिष्ट में सूचीबद्ध नमूनों के लिये एक नई अनुसूची को सम्मिलित करके अनुसूचियों को युक्तिसंगत बनाना है।
- 1 जुलाई, 2022 से पूरे देश में चिह्नित एकल-उपयोग वाली उन प्लास्टिक वस्तुओं के निर्माण, आयात, स्टॉकिंग, वितरण, बिक्री और उपयोग पर प्रतिबंध लगाया गया था, जिनकी उपयोगिता कम और कूड़ा-कचरा बनने की अधिक संभावना है।
- सरकार ने 24 अगस्त, 2022 को बैटरी अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2022 प्रकाशित किया, ताकि बेकार बैटरियों का पर्यावरणीय रूप से उचित प्रबंधन सुनिश्चित किया जा सके। इस नियम में सभी प्रकार की बैटरी शामिल हैं, जैसे- इलेक्ट्रिक वाहन बैटरी, पोर्टेबल बैटरी, ऑटोमोटिव बैटरी और औद्योगिक बैटरी।
- ई-कचरा (प्रबंधन) नियम, 2022 ई-कचरा पुनर्चक्रण के लिये एक नया विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (ईपीआर) व्यवस्था शुरू करेंगे।
- इन नियमों के तहत इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक उपकरण (EEE) विनिर्माण में खतरनाक पदार्थों को कम करने का प्रावधान किया गया है।
CBD के लिये COP15 |
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निष्कर्ष
भारत स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तनों में दुनिया के सबसे महत्त्वाकांक्षी देशों में से एक रहा है और जलवायु परिवर्तन का सामना करने की अपनी प्रतिबद्धता को लेकर दृढ़ है। अर्थव्यवस्था पर कोविड-19 के प्रतिकूल प्रभावों के बावजूद भारत ने अपनी जलवायु आकांक्षा को कई गुना बढ़ा दिया है और बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाकर कम GHG उत्सर्जन विकास रणनीति की दिशा में एक दीर्घकालिक रणनीति शुरू की है।
कृषि और खाद्य प्रबंधनः खाद्य सुरक्षा से पोषण सुरक्षा तक
अपनी ठोस अग्रिम कड़ियों के साथ कृषि और संबद्ध गतिविधि क्षेत्र ने खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करके देश के समग्र प्रगति और विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रमुख बिंदु
- पिछले कई वर्षों में कृषि और संबद्ध क्षेत्र का प्रदर्शन उत्साहजनक रहा है। इस वृद्धि के लिये किसान-उत्पादक संगठनों को बढ़ावा देने, फसल विविधीकरण को प्रोत्साहित करने और कृषि उत्पादकता में सुधार करने हेतु सरकार द्वारा किये गए उपायों को माना जा सकता है।
- भारतीय कृषि क्षेत्र पिछले छह वर्षों के दौरान 4.6 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर से बढ़ रहा है। हाल के वर्षों में भारत तेज़ी से कृषि उत्पादों के शुद्ध निर्यातक के रूप में उभरा है।
खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन
- खाद्यान्न और तिलहन का उत्पादन साल-दर-साल बढ़ रहा है। वर्ष 2021-22 के चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार, दालों का उत्पादन भी पिछले पाँच वर्षों के उल्लेखनीय औसत 23.8 मिलियन टन से अधिक रहा है।
- हालाँकि जैसा कि पहले संकेत दिया गया था कि बदलती जलवायु कृषि पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। वर्ष 2022 में गेहूँ की कटाई के मौसम के दौरान शुरुआती गर्मी की लहर देखी गई, जिससे इसके उत्पादन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। इस वर्ष मानसून में देरी और कम वर्षा के कारण खरीफ मौसम में भी धान की खेती के बुआई क्षेत्र में गिरावट देखी गई।
- खरीफ मौसम में धान के बुआई क्षेत्र में गिरावट के बावजूद वर्ष 2022-23 के दौरान खरीफ के सीज़न में चावल का कुल उत्पादन 104.9 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो पिछले पाँच वर्षों (2016-17 से 2020-21) के औसत उत्पादन 100.5 मिलियन टन, से अधिक है।
उत्पादन की लागत पर प्रतिलाभ सुनिश्चित करने के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP)
- वर्ष 2018-19 के केंद्रीय बजट में घोषणा की गई कि भारत के किसानों को उत्पादन लागत का न्यूनतम डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य दिया जाएगा।
- तद्नुसार, वर्ष 2018-19 के बाद से सरकार कृषि क्षेत्र में खरीफ, रबी के सभी 22 और अन्य वाणिज्यिक फसलों के लिये न्यूनतम समर्थन मूल्य में अखिल भारतीय भारित औसत उत्पादन लागत पर न्यूनतम 50 प्रतिशत की वापसी सहित वृद्धि करती रही है।
- पोषण संबंधी आवश्यकताओं और बदलते आहार पैटर्न को देखते हुए एवं दलहन तथा तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता हासिल करने के लिये सरकार ने दालों और तिलहन के लिये अपेक्षाकृत अधिक न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया है।
कृषि संबंधी ऋण तक पहुँच में वृद्धि
- वर्ष 2022 में बैंकों ने 4,51,672 करोड़ रुपए की KCC सीमा वाले 3.89 करोड़ पात्र किसानों को किसान क्रेडिट कार्ड (KCC) जारी किये
- अक्तूबर 2022 तक मत्स्य पालन क्षेत्र के लिये 1.0 लाख किसान क्रेडिट कार्ड और पशुपालन क्षेत्र के लिये 9.5 लाख (4 नवंबर, 2022 तक) संस्वीकृत किये गए हैं।
- संशोधित ब्याज अनुदान योजना (MISS) के तहत कृषि और पशुपालन, डेयरी, पोल्ट्री, मछली पालन आदि सहित अन्य संबद्ध गतिविधियों में लगे किसानों को 3 लाख रुपए तक के अल्पकालिक कृषि ऋण 7 प्रतिशत प्रतिवर्ष की ब्याज दर पर उपलब्ध है।
फार्म मशीनीकरण: उत्पादकता में सुधार की कुंजी
- फार्म मशीनीकरण अन्य इनपुट्स और प्राकृतिक संसाधनों के समय पर और कुशल उपयोग के माध्यम से उत्पादकता बढ़ाने में मदद करते हैं, इसके साथ ही यह खेती की लागत और विभिन्न कृषि कार्यों से जुड़े कठिन परिश्रम को कम करता है।
- कृषि मशीनीकरण के उप मिशन (Sub Mission on Agricultural Mechanisation-SMAM) के तहत राज्य सरकारों को कृषि मशीनरी के प्रशिक्षण और प्रदर्शन में सहायता दी जा रही है तथा किसानों को कस्टम हायरिंग सेंटर (CHC) स्थापित करने के अलावा विभिन्न कृषि मशीनरी और उपकरण को खरीदने में मदद की जा रही है।
रसायन मुक्त भारतः जैविक और प्राकृतिक खेती
- जैविक और प्राकृतिक खेती से रासायनिक खाद और कीटनाशक मुक्त खाद्यान्न तथा अन्य फसलें प्राप्त होती हैं, यह मृदा के स्वास्थ्य में सुधार और पर्यावरण प्रदूषण को कम करती है।
- भारत में 44.3 लाख जैविक किसान हैं, जो दुनिया में सबसे अधिक संख्या है और लगभग 59.1 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को वर्ष 2021-22 तक जैविक खेती के तहत लाया गया था।
- सरकार दो समर्पित योजनाओं को लागू करके जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है:
- परंपरागत कृषि विकास योजना के अधीन कुल 6.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र के 32,384 क्लस्टर और 16.1 लाख किसानों को शामिल किया गया है।
- पूर्वाेत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन के अधीन 177 किसान उत्पादक संगठन बनाए गए हैं, जिसमें 1.5 लाख कृषक और 1.7 लाख हेक्टेयर भूमि शामिल है।
कृषि में अन्य महत्त्वपूर्ण पहल
- पीएम किसान योजनाः यह भूमि-धारक किसानों की वित्तीय ज़रूरतों को पूरा करने के लिये केंद्रीय क्षेत्र की योजना है। प्रतिवर्ष 6,000 रु का वित्तीय लाभ प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से किसान परिवारों के बैंक खातों में स्थानांतरित किया जाता है।
- कृषि अवसंरचना निधि (AIF): कृषि अवसंरचना निधि एक वित्तपोषण सुविधा है, यह वर्ष वर्ष 2020-21 से वर्ष 2032-33 तक की फसल कटाई के बाद के प्रबंधन के बुनियादी ढाँचे और सामुदायिक कृषि संपत्तियों के निर्माण के लिये 3 प्रतिशत ब्याज अनुदान तथा क्रेडिट गारंटी समर्थन सहित लाभ प्रदान करती है।
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY): यह योजना किसान पर न्यूनतम वित्तीय बोझ डालती है,जिसमें किसान रबी और खरीफ सीज़न के लिये कुल प्रीमियम का केवल 1.5 प्रतिशत और 2 प्रतिशत का भुगतान करते हैं, जबकि केंद्र और राज्य सरकारें प्रीमियम लागत का अधिकांश हिस्सा वहन करती हैं।
- बागवानी के एकीकृत विकास के लिये मिशन (MIDH): फल, सब्जियाँ, जड़ और कंद फसलों, मसालों, फूलों, रोपण फसलों आदि को शामिल करते हुए बागवानी को बढ़ावा देने की योजना वर्ष 2014-15 में शुरू की गई थी। इसके अंतर्गत उन्नत किस्मों तथा गुणवत्ता वाले बीजों को शामिल करना, रोपण फसलों के लिये प्रोत्साहन, क्लस्टर विकास एवं फसल कटाई के बाद का प्रबंधन करना शामिल है।
- राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) योजना: भारत सरकार ने वर्ष 2016 में राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) योजना शुरू की ताकि किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य सुनिश्चित करने के लिये एक ऑनलाइन पारदर्शी, प्रतिस्पर्द्धी बोली प्रणाली तैयार की जा सके।
संबद्ध क्षेत्र: पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन
- भारतीय कृषि से संबद्ध क्षेत्र- पशुधन, वानिकी और वनोत्पाद एवं मत्स्यपालन तथा जलीय कृषि का तेज़ी से विकास हो रहा है और ये बेहतर कृषि आय के संभावित स्रोत हैं।
- पशुधन क्षेत्र वर्ष 2014-15 से वर्ष 2020-21 (स्थिर कीमतों पर) के दौरान 7.9 प्रतिशत की चक्रवृद्धि वार्षिक विकास दर (Compound Annual Growth Rate-CAGR) से बढ़ा और वर्ष 2014-15 में कुल कृषि GVA (स्थिर कीमतों पर) में इसका योगदान 24.3 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2020-21 में 30.1 प्रतिशत हो गया है।
- मत्स्य पालन क्षेत्र की वार्षिक औसत वृद्धि दर वर्ष 2016-17 में लगभग 7% रही है और कुल कृषि GVA में इसकी हिस्सेदारी लगभग 6.7 प्रतिशत है।
- जबकि भारत दुनिया में दुग्ध उत्पादन में पहले स्थान पर है, यह दुनिया में अंडे के उत्पादन में तीसरे और मांस उत्पादन में आठवें स्थान पर है।
- प्रधानमंत्री मत्स्य संपदा योजना (Pradhan Mantri Matsya Sampada Yojana-PMMSY) द्वारा मत्स्यपालन के क्षेत्र में किया जा रहा निवेश इस क्षेत्र में भारत द्वारा अब तक का सबसे बड़ा निवेश है।
सहकार-से-समृद्धिः सहयोग से समृद्धि तक
- ‘‘सहकार-से-समृद्धि’’ के विज़न को साकार करने के लिये सहकारी क्षेत्र के विकास को नए सिरे से गति दी गई।
- देश में 8.5 लाख पंजीकृत सहकारी समितियाँ हैं, जिनमें 29 करोड़ से अधिक सदस्य ग्रामीण क्षेत्र में बड़े पैमाने पर हाशिये और निम्न-आय समूहों से जुड़े हैं तथा 98 प्रतिशत गाँव प्राथमिक कृषि साख समितियों में (PACS) शामिल किये गए हैं।
- वर्तमान में यह कार्य लगभग 19 प्रतिशत कृषि वित्त सहकारी समितियों के माध्यम से किया जाता है।
खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र- उभरता हुआ क्षेत्र
- वित्तीय वर्ष 2021 तक विगत पाँच वर्षों के दौरान खाद्य प्रसंस्करण उद्योग क्षेत्र लगभग 8.3 प्रतिशत की औसत वार्षिक वृद्धि दर से वृद्धि हुई है।
- उद्योगों के नवीनतम वार्षिक सर्वेक्षण वर्ष 2019-20 के अनुसार, पंजीकृत विनिर्माण क्षेत्र में लगे कुल व्यक्तियों में से 12.2 प्रतिशत खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में कार्यरत थे।
- वर्ष 2021-22 के दौरान प्रसंस्कृत खाद्य निर्यात सहित कृषि-खाद्य निर्यात का मूल्य, भारत के कुल निर्यात का लगभग 10.9 प्रतिशत था।
- प्रधानमंत्री किसान संपदा योजना (PMKSY) के अंतर्गत घटक योजनाओं के माध्यम से खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र के समग्र वृद्धि एवं विकास के लिये वित्तीय सहायता उपलब्ध कराता है।
- खाद्य प्रसंस्करण उद्योग के लिये उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (Production Linked Incentive Scheme for Food Processing Industry-PLISFPI) को वैश्विक स्तर पर खाद्य उद्द्मों के विकास के लिये निवेश को प्रोत्साहित करने का कार्य कर रही है।
- पहाड़ी क्षेत्रों, उत्तर-पूर्वी राज्यों और जनजातीय क्षेत्रों से बागवानी, मत्स्य पालन, पशुधन और प्रसंस्कृत उत्पादों सहित खराब होने वाले खाद्य उत्पादों के परिवहन पर ध्यान केंद्रित करने के लिये कृषि उड़ान 2-0 संस्करण को छह महीने की पायलट परियोजना के रूप में अक्तूबर 2021 में प्रारंभ किया गया था।
खाद्य सुरक्षा- राष्ट्र के लोगों के लिये सामाजिक और कानूनी प्रतिबद्धता
- सरकार वर्तमान में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act-NFSA), 2013 के तहत भारत की लगभग 80 करोड़ आबादी को शामिल करते हुए दुनिया में सबसे व्यापक कानून-आधारित खाद्य सुरक्षा कार्यक्रम चला रही है।
- सरकार ने 1 जनवरी, 2023 से एक वर्ष के लिये राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के अधीन लगभग 81.35 करोड़ लाभार्थियों को मुफ्त खाद्यान्न देने का फैसला किया है।
- दिसंबर 2022 तक NFSA ने 75 प्रतिशत ग्रामीण और 50 प्रतिशत शहरी आबादी को मोटे अनाज/गेहूँ/चावल के लिये क्रमशः 1, 2 और 3 रु प्रति किलोग्राम की दर से अत्यधिक सब्सिडी वाला खाद्यान्न दिया। अंत्योदय अन्न योजना (AAY) के अंतर्गत आने वाले परिवारों को 35 किलोग्राम प्रति परिवार प्रतिमाह की दर से और प्राथमिकता वाले परिवारों को 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिमाह की दर से खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया।
निष्कर्ष
कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन देश में विकास और रोज़गार के लिये महत्त्वपूर्ण बना हुआ है तथा सभी पहलों द्वारा इस क्षेत्र का सतत् एवं समावेशी विकास हुआ है। कोल्ड स्टोरेज और बेहतर लॉजिस्टिक्स जैसे बुनियादी ढाँचे के साथ एक अच्छी तरह से विकसित खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र बर्बादी को कम करने, मूल्यवर्द्धन में सुधार करने, किसानों के लिये बेहतर रिटर्न सुनिश्चित करने, रोज़गार को बढ़ावा देने तथा निर्यात आय में वृद्धि करने में मदद करता है।
उद्योग: स्थायी विकास
यह उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में एक प्रमुख स्थान रखता है जो देश में कुल सकल मूल्य वर्धित (GVA) का लगभग 30% योगदान देता है। वित्त वर्ष 2022-23 में रूसी-यूक्रेन संघर्ष शुरू होने से भारतीय उद्योग को कुछ असाधारण चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
प्रमुख बिंदु
- आर्थिक विकास और रोज़गार में योगदान देने वाले अन्य क्षेत्रों के साथ प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष संबंधों के माध्यम से इस क्षेत्र की प्रासंगिकता की पहचान की जा सकती है।
- यह सुनिश्चित करता है कि घरेलू उत्पादन घरेलू मांग को समायोजित कर सकता है और आयात पर निर्भरता कम कर सकता है। जिससे व्यापार तथा चालू खाता शेष के सुधार में सहायता मिलती है।
- औद्योगिक विकास के गुणक प्रभाव होते हैं, जो रोजगार वृद्धि में परिवर्तित होते हैं। कपड़ा और निर्माण जैसे कुछ उद्योगों में उच्च रोज़गार लोच है।
- औद्योगिक विकास बैंकिंग, बीमा, रसद आदि जैसे सेवा क्षेत्रों में विकास को बढ़ावा देता है।
औद्योगिक विकास के लिये मांग प्रोत्साहन
- समग्र खुदरा मुद्रास्फीति में परिणामी कमी ने वैश्विक महामारी के बावजूद औद्योगिक सुधार को प्रेरित करते हुए, महामारी के बाद की भारतीय अर्थव्यवस्था में उपभोक्ता मांग को बनाए रखा है।
- वैश्विक वस्तुओं की कीमतें अब भी कम हो रही हैं तथा यह भारत की थोक मुद्रास्फीति की घटती दरों में दिखाई दे रही हैं जिससे मुख्य खुदरा मुद्रास्फीति में कमी आने की उम्मीद है जिससे देश में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने के लिये घरेलू खपत की मांग और अधिक मज़बूत हो जाएगी।
- महामारी के पूर्व के वर्षों की तुलना में वर्तमान और पिछले वर्ष में केंद्र सरकार के कैपेक्स में उछाल से निवेश मांग में वृद्धि हुई है।
उद्योग की आपूर्ति प्रतिक्रिया
- PMI-विनिर्माण के उप-सूचकांकों ने इनपुट लागत दबावों की आसान गति, आपूर्तिकर्त्ता वितरण समय में सुधार, मज़बूत निर्यात आदेश और भविष्य के आउटपुट का संकेत दिया।
- पीएमआई-विनिर्माण के उप-सूचकांकों ने इनपुट लागत दबावों की आसान गति, आपूर्तिकर्ता वितरण समय में सुधार, मजबूत निर्यात आदेश और भविष्य के उत्पादन का संकेत दिया।
- उत्पादन आउटपुट की निरंतर वृद्धि समग्र IIP उत्पादक टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुओं में ‘‘पेंट-अप’’ खपत मांग के साथ देखी जा सकती है।
- औद्योगिक गतिविधियों में हुई प्रगति के साथ इन 8 उद्योगों में वृद्धि स्थिर रही है। उनकी वृद्धि इस महत्त्व को रेखांकित करती है कि राष्ट्र वैश्विक आपूर्ति शृंखला को तोड़ने वाली महामारी और रूस-यूक्रेन संघर्ष के बाद मूल स्वदेशी क्षमताओं से जुड़ रहे हैं।
उद्योग के लिये बैंक ऋण में मज़बूत वृद्धि
- एक ओर बैंक ऋण का एक बड़ा हिस्सा बड़े उद्योगों को दिया जा रहा है तो दूसरी तरफ ECLGS की शुरुआत हो जाने से सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों को भी क्रेडिट में सहायता मिली है जो लगभग 1.2 करोड़ व्यवसायों का समर्थन करता है, जिनमें से 95 प्रतिशत सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम हैं।
- कॉरपोरेट बॉण्ड आय और मार्जिनल कॉस्ट ऑफ फंड्स बेस्ड लेंडिंग रेट (MCLR) के कम होने तथा कॉरपोरेट बॉण्ड मार्केट में अधिक उतार-चढ़ाव से ऐसा लगता है कि कॉरपोरेट, बॉण्ड मार्केट से फंडिंग के अपने स्रोतों को बैंक कैपिटल में शिफ्ट कर रहे हैं, जहाँ दरें स्थिर एवं पूर्वानुमेय बनी हुई हैं।
- विनिर्माण क्षेत्र (कपड़ा उद्योग को छोड़कर) के भीतर सभी क्षेत्रों में ऋण में वृद्धि देखी गई।
विनिर्माण क्षेत्र में लचीला FDI अंतर्वाह
- विनिर्माण क्षेत्रों में FDI इक्विटी अंतर्वाह वित्त वर्ष 2021 के 12.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर से बढ़कर वित्त वर्ष 2022 में 21.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर हो गया है क्योंकि उन्नत अर्थव्यवस्थाओं की महामारी-चालित विस्तारवादी नीतियों के कारण वैश्विक प्रवाह में वृद्धि हुई।
- हालाँकि रूस-यूक्रेन संघर्ष और वैश्विक स्तर पर मौद्रिक सख्ती ने FDI इक्विटी प्रवाह को प्रतिबंधित कर दिया।
- सरकार ने एक निवेशक-अनुकूल FDI नीति लागू की है जिसके तहत अधिकांश क्षेत्रों में स्वचालित मार्ग से 100 प्रतिशत तक FDI की अनुमति है।
औद्योगिक समूह
- सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME)
- महामारी के प्रभाव के कारण वित्त वर्ष 2021 में इस क्षेत्र की हिस्सेदारी घटकर 26.8 प्रतिशत रह गई।
- वित्त वर्ष 2021 में विनिर्माण क्षेत्र के GVA में MSME का योगदान भी मामूली रूप से घटकर 36.0 प्रतिशत रह गया।
- विभिन्न सरकारी पहलों जैसे- आत्मनिर्भर भारत पैकेज, MSME पंजीकरण के लिये उद्यम पोर्टल, समाधान पोर्टल, ट्रेड रिसीवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (TReDS) प्लेटफॉर्म, चैंपियन (MSME के लिये सिंगल-विंडो शिकायत निवारण पोर्टल), एमएसएमई के प्रदर्शन को बेहतर और तेज़ करने यानी RAMP (Rising and Accelerating MSME Performance) योजना आदि ने MSME क्षेत्र के लचीलेपन में मदद की।
- इलेक्ट्रॉनिक्स उद्योग
- इस उद्योग में विकास के प्रमुख प्रेरक मोबाइल फोन, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स और औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण हैं।
- भारत विश्व स्तर पर दूसरा सबसे बड़ा मोबाइल फोन निर्माता बन गया है।
- उद्योग 4.0 में बेहतर डिजिटलीकरण और रोबोटिक्स अनुप्रयोगों के कारण औद्योगिक इलेक्ट्रॉनिक्स क्षेत्र में भी वृद्धि देखी जा रही है।
- इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण आधार को पोषित करने तथा बढ़ाने के लिये सरकार द्वारा की गई कुछ पहलों और प्रोत्साहनों में बड़े पैमाने पर इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण के लिये PLI योजना, IT हार्डवेयर के लिये PLI योजना तथा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों एवं सेमीकंडक्टर्स (SPECS) के विनिर्माण को बढ़ावा देने की योजना शामिल है।
- कोयला उद्योग
- आर्थिक गतिविधियों में पुनरुत्थान और मार्च 2022 के मध्य से मई के मध्य तक हीट वेब के चलने के कारण भारत के बड़े पैमाने पर थर्मल-आधारित बिजली उत्पादन संयंत्रों के लिये कोयले की उपलब्धता एक चुनौती बन गई।
- अंतर्राष्ट्रीय कोयले की बढ़ती कीमतों को ध्यान में रखते हुए ऊर्जा क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2020 में 69 मीट्रिक टन से वित्त वर्ष 2021 में 45 मीट्रिक टन तथा आगे वित्त वर्ष 2022 में 27 मीट्रिक टन तक कोयले के आयात में भारी कमी की।
- कोयला उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिये अनेक कदम उठाए गए हैं जिनमें कोयला उत्पादन में निजी भागीदारी, स्वचालित मार्ग के तहत FDI, वाणिज्यिक उत्पादन के लिये कोयला ब्लॉकों की नीलामी, मौजूदा खानों का विस्तार तथा नई खदानें खोलना, खनन में बड़े पैमाने पर उत्पादन प्रौद्योगिकी उपयोग, लोडिंग के लिये क्रिया-प्रणाली, निकासी अवसंरचना का विकास आदि शामिल हैं।
- इस्पात उद्योग
- वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से यूरोप तथा चीन में मंदी और घरेलू उपलब्धता बढ़ाने के लिये लगाए गए निर्यात शुल्क के कारण चालू वित्त वर्ष के पहले छह महीनों में लौह और इस्पात निर्यात में धीमापन आया है।
- वैश्विक मंदी के साथ निर्यात मांग कमज़ोर रह सकती है।
- भविष्य में अवसंरचना परियोजनाओं पर सरकार का ज़ोर, निर्माण और रियल एस्टेट गतिविधि में तीव्रता तथा ऑटोमोबाइल क्षेत्र से इस्पात उत्पादों की मांग के लिये शुभ संकेत देती है।
- कपड़ा उद्योग
- चालू वित्त वर्ष में उद्योग, वित्त वर्ष 2022 की तुलना में निर्यात में धीमी गति की चुनौती का सामना कर रहा है।
- कपड़ा क्षेत्र में FDI का प्रवाह अभी भी पूर्व-महामारी के स्तर तक नहीं पहुँच पाया है।
- कपड़ा उद्योग की संपूर्ण मूल्य शृंखला के लिये बड़े पैमाने पर एकीकृत और आधुनिक औद्योगिक अवसंरचना सुविधाओं को विकसित करने हेतु सरकार ने सात पीएम मेगा इंटीग्रेटेड टेक्सटाइल रीजन एंड अपैरल (पीएम मित्र) पार्कों की स्थापना को मंज़ूरी दी है।
- उत्पादन क्षमता को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने निवेश को बढ़ावा देने और मानव निर्मित फाइबर (MMF) परिधान का उत्पादन, एमएमएफ कपड़ों तथा तकनीकी वस्त्रों के उत्पादन को बढ़ाने के लिये 1 जनवरी, 2022 से शुरू होने वाले पाँच वर्षों में 10,683 करोड़ रुपए के स्वीकृत परिव्यय के साथ कपड़ा क्षेत्र के लिये पीएलआई योजना शुरू की है।
- औषध उद्योग
- औषधीय उत्पादों के उत्पादन में मात्रा के आधार पर भारत दुनिया भर में तीसरे और मूल्य के हिसाब से 14वें स्थान पर है।
- वित्त वर्ष 2022 में औषधि निर्यात का प्रदर्शन मज़बूत रहा है। वैश्विक व्यापार व्यवधानों और कोविड-19 से संबंधित उपचारों की मांग में गिरावट के बावजूद निरंतर वृद्धि हुई है।
- ऑटोमोबाइल बाज़ार
- दीर्घकालिक तृतीय-पक्ष वाहन बीमा प्रीमियम में वृद्धि ने कुल अग्रिम बीमा लागत में विशेष रूप से दोपहिया वाहनों के लिये लगभग 10-11 प्रतिशत की वृद्धि की है।
- निकट अवधि में रुपए में गिरावट और उच्च ऋण लागत वाला वैश्विक परिदृश्य देखने को मिल सकता है।
- बिक्री के मामले में जापान और जर्मनी को पीछे छोड़ते हुए भारत तीसरा सबसे बड़ा ऑटोमोबाइल बाज़ार बन गया। 2021 में भारत दोपहिया तथा तिपहिया वाहनों का सबसे बड़ा निर्माता तथा यात्री गाड़ियों का दुनिया का चौथा सबसे बड़ा निर्माता था।
- इलेक्ट्रिक वाहन (EV) उद्योग के विकास का समर्थन और पोषण करने के लिये सरकार ने कई कदम उठाए हैं।
वैश्विक मूल्य शृंखला में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में भारत की संभावनाएँ
- जैसा कि वैश्विक कंपनियाँ बहाली के लिये अपनी विनिर्माण और आपूर्ति शृंखला रणनीतियों को अपनाती हैं, भारत के पास इस दशक में वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनने का एक अनूठा अवसर है।
- इस अनूठे अवसर को भुनाने के लिये तीन प्राथमिक आस्तियाँ हैं:
- महत्त्वपूर्ण घरेलू मांग की क्षमता
- विनिर्माण को प्रोत्साहित करने के लिये सरकार का अभियान
- एक बड़े अनुपात में विशिष्ट जनसांख्यिकीय बढ़त
- वैश्विक मूल्य शृंखला में भारत के समेकन को और बढ़ाने के लिये मेक इन इंडिया 2.0 अब 27 क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, जिसमें 15 विनिर्माण क्षेत्र और 12 सेवा क्षेत्र शामिल हैं।
- इनमें से 24 उप-क्षेत्रों को भारतीय उद्योगों की सामर्थ्य और प्रतिस्पर्द्धी बढ़त, आयात प्रतिस्थापन की आवश्यकता, निर्यात की संभावना तथा रोज़गार में वृद्धि को ध्यान में रखते हुए चुना गया है।
- नवाचार को बढ़ावा देने की दिशा में सरकार के प्रयासों में उद्भवन (इन्क्यूबेशन), हैंडहोल्डिंग, वित्तपोषण, उद्योग-शिक्षा क्षेत्र की साझेदारी और सरंक्षण शामिल हैं।
- सरकार ने बौद्धिक संपदा कार्यालय का आधुनिकीकरण करके कानूनी अनुपालनों को घटाकर तथा स्टार्ट-अप, महिला उद्यमियों, छोटे उद्योगों और अन्य लोगों के लिये IP फाइलिंग की सुविधा देकर अपनी बौद्धिक संपदा अधिकार व्यवस्था को भी मज़बूत किया है।
- वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII) 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2007 में GII की स्थापना के बाद से भारत ने वर्ष 2022 में पहली बार शीर्ष 40 नवाचारी देशों की सूची में प्रवेश किया है जो वर्ष 2015 की 81वीं से अपनी रैंक में सुधार करते हुए वर्ष 2022 में 40 तक पहुँचा है। इसके अलावा भारत निम्न मध्य-आय वर्ग वियतनाम (48वें रैंक) को पछाड़कर प्रमुख नवाचारी राष्ट्र बन गया है जो मध्य और दक्षिणी एशिया क्षेत्र का नेतृत्व कर रहा है।
निष्कर्ष
वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वित्त वर्ष 2023 के दौरान औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई जो
लगातार मांग की स्थिति से समर्थित थी। भारत में औद्योगिक उत्पादन लचीली घरेलू मांग के आधार पर लगातार बढ़ता रहना चाहिये।
सेवाएँ: शक्ति का स्त्रोत
रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण बाह्य दबाव और महामारी का प्रभाव कम होने से विभिन्न सेवा उप-क्षेत्रों के प्रदर्शन में सुधार आया है।
प्रमुख बिंदु:
- कोविड-19 महामारी ने विशेष रूप से पर्यटन, खुदरा व्यापार, होटल एवं मनोविनोद जैसे संपर्क-गहन सेवा क्षेत्रों पर प्रभाव डालते हुए अर्थव्यवस्था के अधिकांश क्षेत्रों को नुकसान पहुँचाया है। दूसरी ओर, सूचना, संचार, वित्तीय, पेशेवर और व्यावसायिक सेवाओं जैसी गैर-संपर्क सेवाएँ लचीली बनी रहीं।
- सेवा क्षेत्र ने वित्त वर्ष 2022 में तेज़ी से वापसी की, यह पिछले वित्त वर्ष में 7.8 प्रतिशत के संकुचन की तुलना में वर्ष-दर-वर्ष 8.4 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। प्रसारण से संबंधित सेवाओं’ के उस उप-क्षेत्र की वृद्धि से सुधार हुआ जो महामारी से सर्वाधिक प्रभावित हुआ।
- वर्ष 2021 में भारत शीर्ष दस सेवा निर्यातक देशों में शामिल होने के कारण सेवा व्यापार क्षेत्र में एक प्रमुख राष्ट्र रहा है, जिसने विश्व वाणिज्यिक सेवाओं के निर्यात में अपनी हिस्सेदारी को वर्ष 2015 के 3 प्रतिशत से बढ़ाकर वर्ष 2021 में 4 प्रतिशत कर लिया है।
उच्च-आवृत्ति संकेतकों का रुझान
- क्रय प्रबंधक सूचकांक (PMI): रूस-यूक्रेन संघर्ष के प्रकोप से PMI सेवाओं को पुनः झटका लगा है। मई से सितंबर 2022 तक के संकेतक में सुधार हुआ क्योंकि कीमतों के दबाव और प्रतिकूल मौसम ने भी घरेलू मांग को प्रभावित किया। हालाँकि खुदरा मुद्रास्फीति में सुधार के कारण PMI सेवाओं में तेज़ी आई एवं यह दिसंबर 2022 में बढ़कर 58.5 हो गई।
- सेवा क्षेत्र के बैंक ऋण में अक्तूबर 2021 से वृद्धि हुई, इसका कारण यह था कि टीकाकरण कवरेज में सुधार हुआ और सेवा क्षेत्र में भी रिकवरी हुई थी। सेवा क्षेत्र के लिये ऋण में 21.3% की वृद्धि देखी गई, NBFCs के ऋण में 32.9% की वृद्धि हुई तथा शिपिंग एवं विमानन क्षेत्र के ऋण में क्रमशः 7.9% और 8.7% की गिरावट आई।
- विश्व-सेवा व्यापार की मात्रा में दूसरी तिमाही में इसके महामारी-पूर्व उच्च मात्रा की तुलना में अधिकता देखी गई। WTO की सर्विसेज़ ट्रेड बैरोमीटर इंडेक्स रीडिंग के अनुसार, अक्तूबर 2022 में इसमें 98.3 तक की कमी दर्ज की गई, जहाँ तक भारत का संबंध है, आने वाले महीनों में भारत के कुछ प्रमुख व्यापारिक (कारोबारी) साझेदारों के विकास की गति धीमी होने के कारण कुछ विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है। यदि विकसित देश मंदी का सामना करते हैं तो वित्तीय वर्ष 2024 में पर्यटन और यात्रा से आय कम हो सकती है।
- सेवाओं में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI): भारत में रुझानों से पता चलता है कि इसने वित्त वर्ष 2022 में सेवा क्षेत्र में अब तक का सबसे अधिक FDI इक्विटी प्रवाह प्राप्त किया। UNCTAD की विश्व निवेश रिपोर्ट 2022 ने अपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश सेवा क्षेत्र की सूची में भारत को वर्ष 2021 में शीर्ष 20 मेज़बान देशों में से सातवें सबसे बड़े प्राप्तकर्त्ता के रूप में दर्शाया है। विभिन्न उद्योगों में निवेश के उदारीकरण को सुनिश्चित करने के लिये सरकार ने दूरसंचार सेवाओं में 100% विदेशी भागीदारी, जीवन बीमा निगम (LIC) में 20% विदेशी निवेश की अनुमति दी है और स्वतः मार्ग के माध्यम से बीमा कंपनियों में FDI सीमा को 49% से बढ़ाकर 74% कर दिया है।
प्रमुख सेवाएँ उप-क्षेत्रवार प्रदर्शन
- पर्यटन और होटल उद्योग
- महामारी के बाद वैश्विक पर्यटन परिदृश्य धीरे-धीरे सुधर रहा है तथा महामारी-पूर्व की स्थिति में आ रहा है। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (नवंबर 2022) के विश्व पर्यटन बैरोमीटर के अनुसार, अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन ने जनवरी-सितंबर 2022 में बेहतर प्रदर्शन किया। वर्ष 2022 के शुरुआती नौ महीनों में ही अंतर्राष्ट्रीय पर्यटकों का आगमन महामारी-पूर्व पर्यटकों के आगमन का 63 प्रतिशत हो गया था।
- वित्तीय वर्ष 2023 में भारत में अनुसूचित अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों की बहाली और कोविड-19 नियमों में ढील के साथ विदेशी पर्यटकों का आगमन माह-दर-माह बढ़ रहा है।
- अवसंरचनात्मक सुविधाओं में लगातार सुधार के साथ भारत बैठकें, प्रोत्साहन, सम्मेलन, प्रदर्शनियाँ (MICE-Meetings, Incentives, Conferences, Exhibitions) आयोजनों के लिये तेज़ी से पसंदीदा स्थान बनता जा रहा है।
- मेडिकल पर्यटन एसोसिएशन द्वारा जारी मेडिकल पर्यटन इंडेक्स के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2021 में भारत दुनिया के शीर्ष 46 देशों में 10वें स्थान पर है। भारत ने जिस तरह से कोविड की स्थिति को संभाला है और भविष्य के लिये अपने को तैयार किया है, उससे भारत की मेडिकल अवसंरचनात्मक सुविधाओं पर भरोसा बढ़ा है। यह मेडिकल वैल्यू पर्यटन (MVT) को एक बड़ा संबंल देगा, जिसके वर्ष 2022 तक 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ने की उम्मीद है।
- रियल एस्टेट
- परियोजनाओं में देरी, बड़ी खरीद को टालना, संपत्ति की कीमतों में ठहराव, और डेवलपर्स के लिये फंडिंग (निधि) की कमी ने इस क्षेत्र में मांग को प्रभावित किया है। वर्क फ्रॉम-होम मॉडल अपनाए जाने के कारण कॉरपोरेट्स की ऑफिस स्पेस आवश्यकताओं की मांग पर भी प्रभाव पड़ा।
- प्रतिबंधों में ढील से आवासीय क्षेत्र में रुचि बढ़ी और इससे भी अधिक उन आवासों के प्रति लोगों की रुचि बढ़ी जो तैयार स्थिति में उपलब्ध थे। कहीं से भी काम करने के विशेषाधिकार के परिणामस्वरूप हाइब्रिड वर्क मोड ने पहली बार घर खरीदने वालों को पारंपरिक महानगरों से दूर जाने के लिये प्रोत्साहित किया तथा इससे टीयर -I और टीयर -II शहरों के आवासीय रियल एस्टेट बाज़ारों की मांग बढ़ी।
- रियल एस्टेट विनियमन अधिनियम का विस्तार (RERA) ने भी महामारी के बाद रियल एस्टेट क्षेत्र के उछाल में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है
- जोंस लैंग लासेल (JLL-Jones Lang LaSalle) के 2022 ग्लोबल रियल एस्टेट ट्रांसपेरेंसी इंडेक्स 1011 के अनुसार, भारत के रियल एस्टेट बाज़ार की पारदर्शिता वैश्विक स्तर पर शीर्ष दस सबसे बेहतर बाज़ारों में से एक है।
- सूचना प्रौद्योगिकी-बिज़नेस प्रोसेस मैनेजमेंट (IT-BPM) उद्योग
- NASSCOM की रिपोर्ट के अनुसार, प्रौद्योगिकी के अधिकाधिक उपयोग, त्वरित प्रौद्योगिकी अपनाने और डिजिटल परिवर्तन के फलस्वरूप भारत का IT-BPM उद्योग महामारी के दौरान भी लचीला बना रहा।
- IT-BPM राजस्व ने वित्तीय वर्ष 2022 के दौरान 15.5 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की, जबकि यह वृद्धि वित्तीय वर्ष 2021 में 2.1 प्रतिशत थी, इसमें सभी उप-क्षेत्रों में दोहरे अंकों वाली राजस्व वृद्धि भी शामिल थी।
- संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप (UK को छोड़कर) के साथ सभी प्रमुख बाज़ारों में निर्यात में वृद्धि देखी गई और UK प्रमुख बाज़ार बना रहा।
- ई-कॉमर्स
- डिजिटल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये सरकार द्वारा प्रोत्साहन, इंटरनेट की बढ़ती उपयोगिता, स्मार्टफोन के प्रयोग में वृद्धि, मोबाइल प्रौद्योगिकी में नवाचार और डिजिटल भुगतानों को अपनाने में वृद्धि संबंधी समस्त गतिविधियों ने ई-कॉमर्स को अपनाने तथा विकास को और अधिक तीव्र करने के लिये प्रेरित किया है।
- वर्ल्डपे FIS की ग्लोबल पेमेंट्स रिपोर्ट के अनुसार, भारत के ई-कॉमर्स बाज़ार में वर्ष 2025 तक सालाना 18 फीसदी की दर से वृद्धि होने का अनुमान है।
- बैन एंड कंपनी की नवीनतम रिपोर्ट ‘हाउ इंडिया शॉप्स ऑनलाइन 2022’ के अनुसार, उभरती श्रेणियाँ जैसे- फैशन, ग्रॉसरी, जनरल मर्चेंडाइज इत्यादि से भारत में ई-कॉमर्स को बढ़ावा मिलेगा और ई-कॉमर्स 2027 तक भारतीय बाज़ार के लगभग दो-तिहाई हिस्से पर कब्ज़ा जमा लेगा।
- MSME और ई-कॉमर्स के बीच परस्पर विचार-विमर्श के प्रभाव का विश्लेषण करने वाली संस्था भारतीय विदेश व्ययापार संस्थान ( Indian Institute of Foreign Trade-IIFT) के हालिया अध्ययन में पाया गया है कि हाल के वर्षों में डिजिटल समाधान अपनाने वाले MSME ने ऑफलाइन MSME की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है, जिससे उन्हें अधिक लागत खर्च किये बिना एक बड़े बाज़ार तक पहुँचने में मदद मिली है।
- सरकार के ई-बाज़ार (GeM) पर कुल कारोबार का 57 प्रतिशत उत्पाद MSME इकाइयों के माध्यम से आए हैं और इसमें महिला उद्यमियों ने 6 प्रतिशत से अधिक का योगदान दिया है।
- डिजिटल वित्तीय सेवाएँ
- जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी, यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस, और अन्य नियामक ढाँचे द्वारा डाली गई एक मज़बूत नींव के साथ महामारी ने लेन-देन के लिये डिजिटल प्लेटफोर्म को अपनाने में सहायता की है और बैंकों को डिजिटल वित्तीय सेवा-समाधान, NBFC, बीमाकर्त्ता एवं फिनटेक के लिये भी प्रोत्साहित किया है।
- भारत में फिनटेक अंगीकरण की दर 87 प्रतिशत रही है, जो कि नवीनतम ग्लोबल फिनटेक एडॉप्शन इंडेक्स 15 के अनुसार, 64 प्रतिशत के वैश्विक औसत से काफी अधिक है।
- नियो-बैंकिंग प्लेटफोर्म की संख्या और नियो-बैंकिंग सेग्मेंट के वैश्विक निवेश में भी लगातार वृद्धि हुई है। इन संस्थानों की समृद्धि मुख्य रूप से डिजि
- टल-कुशल युवा आबादी की ऑन-डिमांड और आसानी-से-पहुँच वाले वित्तीय समाधानों की आवश्यकताओं पर निर्भर होती है। भारत में सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (central bank digital currency-CBDC) जारी करना कई मायनों में लाभकारी है, जिसमें अन्य बातों के साथ-साथ नकदी लेन-देन प्रबंधन की परिचालन लागत में कमी, वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देना, भुगतान प्रणाली में लचीलापन, दक्षता और नवीनता लाना, देश से बाहर भुगतान में नवाचार को बढ़ावा देना इत्यादि शामिल हैं। इसके साथ ही आभासी मुद्रा से जुड़े जनसमुदाय के जोखिमों को कम करते हुए इसके सुरक्षित उपयोग के लिये सुविधाएँ देना भी इसमें शामिल है।
- डिजिटल वित्तीय सेवाओं को गति देने में दस्तावेज़ो के डिजिटलीकरण ने भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। दस्तावेज़ो के डिजिटलीकरण के कारण सुरक्षा, ऑनलाइन सत्यापन, बेहतर पहुँच में वृद्धि हुई है और धोखाधड़ी में भी कमी आई है। इससे अंतिम ग्राहक के उपयोग और सेवा प्रदाता की कार्य कुशलता में बढ़ोतरी हुई है।
आउटलुक
भारत के सेवा क्षेत्र की वृद्धि, जो पिछले 2 वित्तीय वर्षों के दौरान अत्यधिक अस्थिर और नाजुक बनी हुई थी, ने वर्ष 2022-23 में लचीलापन दिखाया है। इसका कारण स्थिर मांग, गतिशीलता, प्रतिबंध में ढील, लगभग सभी का टीकाकरण कवरेज और समयानुसार उचित सरकारी हस्तक्षेप हैI पर्यटन, होटल, रियल एस्टेट, IT-BPM, ई-कॉमर्स आदि जैसे विभिन्न उप-क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन की उज्ज्वल संभावनाएँ दिख रही हैं।
वैदेशिक क्षेत्र: सतर्क और आशावान
भारत का वैदेशिक क्षेत्र कई अनिश्चितताओं से प्रभावित है, जो वैश्विक कमोडिटी की कीमतों, अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय स्थितियों का कठिन होना, वित्तीय बाज़ार की अस्थिरता में वृद्धि, पूंजी प्रवाह में उलटफेर, मुद्रा मूल्यह्रास और वैश्विक अर्थव्यवस्था में आसन्न मंदी का रूप ले चुका है। हालाँकि यह समष्टि (मैक्रो) अर्थव्यवस्था की मूलभूत स्थितियों के विपरीत परिस्थितियों का सामना करने में सक्षम रहा है।
वैश्वीकृत विश्व का लाभ उठाने में भारत के लिये सहायक व्यापार
- व्यापार वृद्धि: मूल्य के संदर्भ में वैश्विक व्यापार वर्ष-दर-वर्ष बढ़ा है, जिसने वर्ष 2021 में 22.2% तक पहुँचकर पिछले तीन वर्षों में देखी गई मंदी को उलट दिया। हालाँकि विश्व व्यापार संगठन गुड्स ट्रेड बैरोमीटर और UNCTAD के वैश्विक व्यापार के रुझानों के अनुसार, वर्ष 2022 के समापन माह और वर्ष 2023 में व्यापारिक वृद्धि में मंदी होने की संभावना है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था को मज़बूत विपरीत परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।
- पण्य वस्तु व्यापार के रुझान: वर्ष 2022 में भारत की वाणिज्यिक निर्यात वृद्धि में कमी देखी गई है। वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण वित्त वर्ष 2022 में पेट्रोलियम उत्पाद सबसे अधिक निर्यात किये जाने वाले पण्य बने रहे, इसके बाद रत्न और आभूषण, जैविक एवं अकार्बनिक रसायन, दवाओं तथा फार्मास्यूटिकल्स का स्थान रहा।
- सेवाओं में व्यापार: भारत की सेवाओं के निर्यात में वित्त वर्ष 2011 में 23.5% और वित्त वर्ष 2012 में 32.7% की वृद्धि दर्ज की गई। सॉफ्टवेयर तथा व्यावसायिक सेवाएँ मिलकर भारत की कुल सेवाओं के निर्यात का 60% से अधिक भाग का निर्माण करती हैं, खुदरा और उपभोक्ता व्यवसाय जैसे विभिन्न क्षेत्रों की प्रमुख सूचना प्रौद्योगिकी (IT) कंपनियों में मज़बूत राजस्व; संचार एवं मीडिया; स्वास्थ्य देखभाल और बैंकिंग आदि ने व्यापार सेवाओं के निर्यात में वृद्धि में योगदान दिया है।
- विदेश व्यापार नीति: वर्ष 2022 में भारत ने संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया के साथ मुक्त व्यापार समझौते (FTAs) पर हस्ताक्षर किये। इसके तहत राज्यों की क्षमता का मूल्यांकन करने के लिये निर्यात तैयारी सूचकांक भी शुरू किया गया है। यह राष्ट्रीय और उप-राष्ट्रीय दोनों स्तरों पर निर्यात पारिस्थितिकी तंत्र को मज़बूत करने की दिशा में सभी हितधारकों का मार्गदर्शन करेगा।
- व्यापार बढ़ाने हेतु पहल: विभिन्न सरकारी पहल जैसे कि ब्याज समानता योजना, निर्यातित उत्पादों पर शुल्क और करों की छूट (RoDTEP) योजना, निर्यात ऋण सुनिश्चितता, कृषि उड़ान योजना, निर्यात योजना के लिये व्यापार बुनियादी ढाँचा, एक ज़िला एक उत्पाद पहल आदि निर्यात को सुविधाजनक बनाने के साथ ही प्रोत्साहित कर रहे हैं।
- वैश्विक व्यापारिक संबंध: वैश्वीकरण के इस युग में व्यापार समझौतों का प्रसार और प्रतिस्पर्द्धी व्यापार खंडों का उदय हुआ है। भारत क्षेत्रीय व्यापार व्यवस्थाओं (RTA) को व्यापार उदारीकरण के समग्र उद्देश्य की दिशा में ‘बिल्डिंग ब्लॉक’ एवं बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली के पूरक के रूप में मानता है।
चुनौतीपूर्ण समय में भुगतान संतुलन
- प्रतिकूल वैश्विक आर्थिक स्थिति के कारण वर्ष 2022 में भारत का भुगतान संतुलन (BoP) दबावपूर्ण रहा है।
- चालू खाता शेष
- भारत के चालू खाता शेष (CAB) ने विगत वर्ष की इसी अवधि के दौरान GDP के 1.3% की कमी के विपरीत वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही की तुलना में GDP के 4.4% की कमी दर्ज की।
- वित्त वर्ष 2023 की दूसरी तिमाही में चालू खाता घाटा (CAD) का बढ़ना मुख्य रूप से उच्च व्यापारिक घाटे और शुद्ध निवेश आय में वृद्धि का कारण था।
- अप्रैल-सितंबर 2022 (वित्त वर्ष 2023 की पहली छमाही) की अवधि के दौरान भारत ने वित्त वर्ष 2022 में 0.2% की तुलना में व्यापारिक घाटे में वृद्धि के कारण GDP के 3.3% का CAD दर्ज किया।
- अदृश्य मदें
- वित्त वर्ष 2022 की पहली छमाही में शुद्ध सेवाओं की प्राप्तियों में मुख्यतः कंप्यूटर और व्यावसायिक सेवाओं की प्राप्तियों के कारण वृद्धि हुई।
- कच्चे तेल की कीमतों में तीव्र वृद्धि और INR के मूल्यह्रास ने भारत में प्रेषण प्रवाह को बढ़ावा दिया है। भारत में सबसे बड़ी उत्प्रवासी आबादी है, विश्व बैंक के अनुसार, वर्ष 2022 में भारत 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर के लक्ष्य तक पहुँचने के लिये प्रत्याशित प्रेषण के साथ शीर्ष प्रेषण प्राप्तकर्त्ता देश रहा है।
- शुद्ध सेवाओं के निर्यात और प्रेषण ने अदृश्य खातों के अधिशेष में योगदान दिया, जिसने व्यापारिक घाटे को कम किया है।
- पूंजी खाता शेष
- विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) से मिलकर बनने वाला विदेशी निवेश, पूंजी खाते का सबसे बड़ा घटक है।
- कंप्यूटर सॉफ्टवेयर और हार्डवेयर ने FDI इक्विटी प्रवाह (23.4%) का उच्चतम हिस्सा आकर्षित किया, इसके बाद सेवा (15.4%) और व्यापार (12.2%) का स्थान रहा।
- FDI प्रवाह के संदर्भ में सिंगापुर 37.0% शेयर के साथ शीर्ष निवेश करने वाला देश था, इसके बाद मॉरीशस (12.1%), उत्तरी अरब अमीरात(11.0%), और संयुक्त राज्य अमेरिका(10.0%) का स्थान था।
- विदेशी मुद्रा भंडार
- चूँकि शुद्ध वित्तीय प्रवाह चालू खाता घाटा (CAD) से कम हो गया था, वित्त वर्ष 2022 के पहली छमाही में 63.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर की अभिवृद्धि के विपरीत वित्त वर्ष 2023 के पहली छमाही में भुगतान संतुलन के आधार पर विदेशी मुद्रा भंडार में 25.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कमी आई थी।
- IMF द्वारा संकलित आँकड़ों के अनुसार, नवंबर 2022 के अंत तक भारत विश्व का छठा सबसे बड़ा विदेशी मुद्रा भंडार धारक था।
विनिमय दरें वैश्विक विकास में सहायक हैं
- भारतीय रुपए की विनिमय दर बाज़ार को निर्धारित करती है क्योंकि विदेशी मुद्रा बाज़ार में RBI का हस्तक्षेप मुख्य रूप से अत्यधिक अस्थिरता को रोकने के लिये होता है।
- वर्ष 2022 में दिसंबर तक अमेरिकी डॉलर (27 अर्थव्यवस्थाओं) की नाममात्र प्रभावी विनिमय दर (NEER) में 7.8% की वृद्धि हुई, जबकि भारत की अंकित प्रभावी विनिमय दरों (64 अर्थव्यवस्थाओं) में 4.8% की गिरावट आई।
- इसके अतिरिक्त अमेरिकी डॉलर को छोड़कर चुनिंदा प्रमुख मुद्राओं के मुकाबले भारतीय रुपए की सराहना हुई। पाउंड स्टर्लिंग के मुकाबले INR की औसत विनिमय दर वर्ष 2021 के अप्रैल-दिसंबर की तुलना में वर्ष 2022 के अप्रैल-दिसंबर माह में 6.7% बढ़ी। जापानी येन के संबंध में यह दर 14.5% और यूरो के मुकाबले 6.4% थी।
- विनिमय दर उतार-चढ़ाव की अंतर्देशीय तुलना अक्सर मुद्रास्फीति के समायोजित आधार पर की जाती है, जिसे वास्तविक प्रभावी विनिमय दर (REER) कहा जाता है। वास्तविक रूप में, वैश्विक उछाल के कारण INR में मामूली मूल्यह्रास देखा गया।
अंतर्राष्ट्रीय निवेश की स्थिति
- अंतर्राष्ट्रीय निवेश स्थिति (IIP) एक सांख्यिकीय विवरण है जो एक समय में मूल्य और संरचना को दर्शाता है (a) एक अर्थव्यवस्था के निवासियों की वित्तीय संपत्ति जिन पर गैर-निवासी दावा करते हैं, (b) एक अर्थव्यवस्था के निवासियों की गैर-निवासियों के प्रति देनदारियाँ और (c) स्वर्ण बुलियन को आरक्षित संपत्ति के रूप में रखना।
- अर्थव्यवस्था की वित्तीय संपत्तियों और देनदारियों के बीच का अंतर अर्थव्यवस्था का शुद्ध IIP होता है, जो सकारात्मक या नकारात्मक हो सकता है। निवल IIP स्थिति यह निर्धारित करती है कि कोई देश अपनी बाहरी संपत्ति और देनदारियों में अंतर को माप कर एक शुद्ध लेनदार या ऋणी राष्ट्र है या नहीं। ये आँकड़े किसी देश की वित्तीय स्थिति और सुदृढ़ता के संकेतक के रूप में कार्य करते हैं।
- भारत के लिये सितंबर 2022 के अंत तक भारतीय निवासियों की विदेशी वित्तीय संपत्ति 847.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी, जो मार्च 2022 के अंत की तुलना में 73.0 बिलियन अमेरिकी डॉलर या 7.9 प्रतिशत कम थी। सितंबर 2022 के अंत तक अंतर्राष्ट्रीय देनदारियाँ 1,237.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर थीं। जो मार्च 2022 के अंत के स्तर की तुलना में 41.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर (3.2 प्रतिशत) कम था।
सुरक्षित और सुदृढ़ बाह्य ऋण स्थिति
- सितंबर 2022 के अंत तक भारत का बाह्य ऋण 610.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर था, जो सितंबर 2021 के अंत तक 602.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 1.3 प्रतिशत (7.6 बिलियन अमेरिकी डॉलर) बढ़ गया। हालाँकि GDP के अनुपात के रूप में बाह्य ऋण 19.2 प्रतिशत तक कम हो गया। जो एक वर्ष पहले सितंबर 2022 के अंत तक 20.3 प्रतिशत था।
- भारत के बाह्य ऋण की इष्टतम सीमा सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 23-24 प्रतिशत है। जहाँ तक बाह्य ऋण का संबंध है, भारत का संभावित विकास में सकारात्मक स्थान है। भारत के बाह्य ऋण का विवेकपूर्ण प्रबंधन, कई सहकर्मी देशों में COVID-19 के बाद सामने आए बाह्य ऋण संकट के विपरीत है।
- वर्ष 2021 में सहकर्मी देशों के साथ भारत के विभिन्न ऋण भेद्यता संकेतकों की तुलना करने से पता चलता है कि सकल राष्ट्रीय आय (GNI) के प्रतिशत के रूप में कुल ऋण के अपेक्षाकृत कम स्तर और कुल ऋृण के प्रतिशत के रूप में अल्पकालिक ऋण के मामले में देश बेहतर स्थिति में है। विदेशी ऋण का मौजूदा स्टॉक विदेशी मुद्रा भंडार के स्तर से अच्छी तरह सुरक्षित है।
बाह्य क्षेत्र का दृष्टिकोण
- संभावित प्रतिकूल घटनाक्रमों को पहचानते हुए भारत के बाह्य क्षेत्र के लिये बफर का संज्ञान लेना महत्त्वपूर्ण है।
- भारत अपने कुछ निर्यात प्रतिस्पर्द्धी उत्पादों में दक्षिण एशियाई देशों से प्रतिस्पर्द्धा का सामना कर रहा है। कपड़ा क्षेत्र में बांग्लादेश विश्व स्तर पर अपने निर्यात का विस्तार कर रहा है, वियतनाम मशीनरी और उपकरणों में अपने निर्यात का विस्तार करने के साथ-साथ कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद, कृषि उत्पाद आदि में सक्षम रहा है। हालाँकि मापक अर्थव्यवस्था के लाभ के साथ-साथ कामकाजी आबादी की न्यूनतम औसत आयु के लाभों को देखते हुए भारतीय लागत में कई उत्पादों की वैश्विक मांग को पूर्ण करने की क्षमता है।
- आयात पक्ष पर वैश्विक कच्चे तेल की कीमतों के दृष्टिकोण में अनिश्चितता के बावजूद इसकी कीमतों में हालिया नरमी भारत के POL आयात के लिये अच्छा संकेत देती है। हालाँकि गैर-तेल, गैर-स्वर्ण आयात, जो विकास के प्रति संवेदनशील हैं, में महत्त्वपूर्ण मंदी नहीं देखी जा सकती है क्योंकि अभी भी भारतीय विकास लचीला बना हुआ है।
- संक्षेप में भारत के बाह्य क्षेत्र को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, यह अपने कई साथियों की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर प्रदर्शन कर रहा है क्योंकि इसमें मौसम के अनुसार अवमंदकों को अवशोषित करने की क्षमता है।
भौतिक और डिजिटल अवसंरचना: उत्थान में संभावित वृद्धि
आर्थिक विकास में बुनियादी ढाँचे द्वारा निभाई गई भूमिका को अधिक महत्त्व नहीं दिया जा सकता है। आर्थिक विकास में तेज़ी लाने और इसे लंबे समय तक बनाए रखने के लिये उच्च गुणवत्ता वाले बुनियादी ढाँचे में निवेश करना महत्त्पूर्ण है।
भारत में अवसंरचना विकास का दृष्टिकोण
- वर्ष 2022-23, में पूंजीगत व्यय के लिये परिव्यय (लक्ष्य) 35.4% बढ़ाया गया था, साथ ही यह पिछले वर्ष 2021-22 के 5.5 लाख करोड़ रुपए से 7.5 लाख करोड़ रुपए हो गया।
- पीएम गतिशक्ति को एक बहुआयामी दृष्टिकोण के साथ भौतिक बुनियादी ढाँचे में अंतराल को भरने और विभिन्न एजेंसियों के वर्तमान प्रस्तावित बुनियादी ढाँचे के विकास की पहल को एकीकृत करने के लिये निर्मित किया गया है।
- जैसा कि भारत ने COP-27 में अपनी दीर्घकालिक कम उत्सर्जन विकास रणनीति पहले ही प्रस्तुत की है, साथ ही अगली महत्त्पूर्ण उन्नति बुनियादी ढाँचे की ओर होगा जो अधिक ऊर्जा कुशल है और एक परिपत्र अर्थव्यवस्था के विचार को सम्मिलित करते हुए निम्न कार्बन विकास की ओर जाता है।
सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPPs)
- भारत में बुनियादी ढाँचे के कार्यक्रमों में निजी भागीदारी कई PPP मॉडल का समर्थन करती है, जिसमें बिल्ड-ऑपरेट-ट्रांसफर (BOT), डिज़ाइन-बिल्ड-फाइनेंस-ऑपरेट-ट्रांसफर (DBFOT), रिहैबिलिटेट-ऑपरेट-ट्रांसफर (ROT), हाइब्रिड वार्षिकी मॉडल (HAM) और टोल-ऑपरेट-ट्रांसफर (TOT) मॉडल जैसे प्रबंधन अनुबंध सम्मिलित हैं।
- PPP परियोजनाओं के परियोजना विकास खर्चों की वित्तीय सहायता के लिये एक योजना-
- ‘इंडिया इंनफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट डेवलपमेंट फंड स्कीम’ (IIPDF)- सरकार द्वारा 3 नवंबर, 2022 को अधिसूचित की गई थी। इस योजना का उद्देश्य ऑन-बोर्डिंग लेन-देन सलाहकारों द्वारा विश्वसनीयऔर व्यवहार्य PPP परियोजनाओं की एक शेल्फ बनाने के लिये केंद्र तथा राज्य सरकारों, दोनों में परियोजना-प्रायोजक प्राधिकरणों को आवश्यक निधियन सहायता प्रदान करके गुणवत्तापूर्ण PPP परियोजनाओं को विकसित करना है।
राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (NIP)
- सरकार ने देश भर में उच्च गुणवत्ता युक्त बुनियादी ढाँचा प्रदान करने के दृष्टिकोण के साथ राष्ट्रीय अवसंरचना पाइपलाइन (एनआईपी) का शुभारंभ किया। यह परियोजना की तैयारी में सुधार और बुनियादी ढाँचे में घरेलू तथा विदेशी निवेश को आकर्षित करने की भी परिकल्पना करता है।
- NIP को इन्वेस्ट इंडिया ग्रिड (IIG) के मंच पर प्रारंभ किया गया है और यह राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों तथा मंत्रालयों को एक ही स्थान पर सभी प्रमुख बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को पूरा करने का अवसर प्रदान करता है। इस प्रकार “इन्वेस्ट इंडिया ग्रिड” सभी आर्थिक एवं सामाजिक बुनियादी ढाँचे के उप-क्षेत्रों में परियोजना की प्रगति को ट्रैक और समीक्षा करने के लिये एक केंद्रीकृत पोर्टल के रूप में कार्य करता है।
राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन
- अगस्त 2021 में घोषित राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (NMP) ‘मुद्रीकरण के माध्यम से संपत्ति निर्माण’ के सिद्धांत पर आधारित है।
- NMP तुलन पत्र को कम करने का अवसर प्रदान करता है तथा यह नई बुनियादी ढाँचागत संपत्तियों में निवेश के लिये राजकोषीय स्तिथि में हुए नए बुनियादी ढाँचे के निर्माण के लिये निजी क्षेत्र के निवेश का उपयोग करता है।
- शीर्ष 5 क्षेत्र (अनुमानित मूल्य से) कुल पाइपलाइन मूल्य का लगभग 83% अधिकृत करते हैं: सड़कें (27%) इसके बाद रेलवे (25%), बिजली (15%), तेल और गैस पाइपलाइन (8%), तथा दूरसंचार ( 6%), इसके साथ ही सड़क और रेलवे मिलकर कुल NMP मूल्य का लगभग 52% योगदान करते हैं।
राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीति
- भारत में रसद आपूर्ति लागत 8 प्रतिशत के वैश्विक मानदंड के मुकाबले सकल घरेलू उत्पाद के 14-18 प्रतिशत की सीमा में रही है।
- प्रक्रियाओं को कारगर बनाने, नियामक ढाँचे, कौशल विकास और अन्य मुद्दों के साथ-साथ लॉजिस्टिक्स को मुख्यधारा में लाने के माध्यम से रसद आपूर्ति की दक्षता में सुधार हेतु राष्ट्रीय लॉजिस्टिक नीति शुरू की गई थी।
- NLP के विज़न को प्राप्त करने हेतु निर्धारित लक्ष्य:
- वर्ष 2030 तक वैश्विक मानदंड के बराबर आने के लिये भारत में रसद आपूर्ति की लागत कम करना।
- लॉजिस्टिक प्रदर्शन सूचकांक रैंकिंग में सुधार के साथ वर्ष 2030 तक शीर्ष 25 देशों में शामिल होने का प्रयास।
- कुशल लॉजिस्टिक पारिस्थितिकी तंत्र के लिये डेटा संचालित निर्णय हेतु समर्थन तंत्र बनाना।
- व्यापार के लिये रसद आपूर्ति में सुधार हेतु संबोधित किये जाने वाले प्रमुख आयामों में शामिल हैं:
- सीमा शुल्क सहित सीमा नियंत्रण एजेंसियों द्वारा निकासी प्रक्रिया (अर्थात््, गति, सरलता और औपचारिकताओं की भविष्यवाणी) की दक्षता सुनिश्चित करना।
- व्यापार और परिवहन से संबंधित बुनियादी ढाँचे की गुणवत्ता में सुधार (जैसे- बंदरगाह, रेलमार्ग, सड़कें, सूचना प्रौद्योगिकी)।
- प्रतिस्पर्द्धी मूल्य वाले शिपमेंट की व्यवस्था को सरल बनाना।
- रसद आपूर्ति सेवाओं की क्षमता और गुणवत्ता में वृद्धि (उदाहरण के लिये परिवहन ऑपरेटर)।
- आयातित माल की ट्रैकिंग और ट्रेसिंग तथा समय के अंदर निर्धारित या अपेक्षित डिलीवरी गंतव्यों तक पहुँचने में शिपमेंट की समयबद्धता सुनिश्चित करना।
भौतिक अवसंरचना क्षेत्र में विकास
- सड़क परिवहन: सरकार द्वारा बजटीय सहायता में की गई वृद्धि से सड़क संपर्क में सुधार।
- समय के साथ राष्ट्रीय राजमार्गों (NH)/सड़कों के निर्माण में वृद्धि हुई है, वित्तीय वर्ष 2022 में 10,457 किलोमीटर सड़कों का निर्माण किया गया, जबकि वित्तीय वर्ष 2016 में यह 6,061 किलोमीटर था।
- सार्वजनिक क्षेत्र की संपत्तियों के मुद्रीकरण की दृष्टि के अनुरूप भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने वित्तीय वर्ष 2022 में न केवल सड़कों के मुद्रीकरण की सुविधा के लिये बल्कि सड़क क्षेत्र में निवेश करने के लिये विदेशी और घरेलू संस्थागत निवेशकों को आकर्षित करने हेतु अपना इंफ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट ट्रस्ट लॉन्च किया।
- रेलवे: विस्तार और आधुनिकीकरण में निरंतर सुधारात्मक प्रक्रिया।
- भारतीय रेलवे (IR) 68,031 से अधिक किलोमीटर मार्ग के साथ एकल प्रबंधन के तहत विश्व का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है।
- रेलवे के बुनियादी ढाँचे पर पूंजीगत व्यय (Capex) में पिछले चार वर्षों में निरंतर वृद्धि देखी गई है, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में कैपेक्स में लगभग 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
- नागरिक उड्डयन: घरेलू मांग द्वारा समर्थित पुनरुद्धार।
- भारत में नागरिक उड्डयन क्षेत्र में मध्यम वर्ग की बढ़ती मांग, जनसंख्या तथा पर्यटन में वृद्धि, उच्च प्रयोज्य आय, अनुकूल जनसांख्यिकी और विमानन बुनियादी ढाँचे में अधिक निवेश के कारण काफी संभावनाएँ हैं।
- इसे सरकार द्वारा UDAN जैसी योजनाओं के माध्यम से और अधिक समर्थन दिया गया है, जिसने भारत के आंतरिक क्षेत्रों में हवाई अड्डों के उद्घाटन के माध्यम से क्षेत्रीय कनेक्टिविटी में काफी वृद्धि की है।
- बंदरगाह: शासन में सुधारों के साथ बंदरगाह की उच्च क्षमता में सुधार करना।
- निरंतर बढ़ती व्यापार आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये सुविचारित अवसंरचना विकास परियोजनाओं के कार्यान्वयन के माध्यम से बंदरगाह क्षमता के विस्तार को सरकार द्वारा सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई है।
- बंदरगाह की दक्षता को और अधिक बढ़ाने के लिये सरकार पोर्ट गवर्नेंस में सुधार, कम क्षमता के उपयोग को संबोधित करने, तकनीकी कुशल लोडिंग/अनलोडिंग उपकरण के साथ पोर्ट का आधुनिकीकरण करने तथा पोर्ट कनेक्टिविटी हेतु नए चैनल बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
- अंतर्देशीय जल परिवहन: नौगम्य जलमार्गों की क्षमता का दोहन।
- भारत में नदियों, नहरों और अन्य जलमार्गों का एक बड़ा नेटवर्क है, जिसकी कुल नौगम्य लंबाई लगभग 14,850 किलोमीटर है।
- विद्युत: नवीकरणीय ऊर्जा द्वारा संचालित विद्युत स्थापित संयंत्र क्षमता में वृद्धि।
- उपयोगिता और कैप्टिव विद्युत संयंत्र (1 मेगा वाट (MW) और उससे अधिक की मांग वाले उद्योग) की कुल स्थापित विद्युत क्षमता वर्ष 2022 में 4.7 प्रतिशत बढ़ी थी।
- थर्मल ऊर्जा स्रोत का उपयोगिताओं के कुल स्थापित क्षमता में सबसे बड़ा (59.1 प्रतिशत) योगदान है, इसके बाद नवीकरणीय ऊर्जा संसाधन 27.5 प्रतिशत और हाइड्रो का 11.7 प्रतिशत है।
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर में विकास
- भारत में कुल टेलीफोन उपभोक्ताओं की संख्या 117 करोड़ है। राज्यों में व्यापक अंतर के साथ भारत में समग्र टेली-घनत्व 84.8 प्रतिशत था।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों पर विशेष ध्यान देने के साथ सरकार एक व्यापक दूरसंचार विकास योजना (CTDP) लागू कर रही है।
- NER के लिये CTDP के तहत असम, मणिपुर, मिज़ोरम, नगालैंड, त्रिपुरा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश (केवल राष्ट्रीय राजमार्ग) के दूरस्थ गाँवों में तथा राष्ट्रीय राजमार्गों के साथ 2004 2G टावर स्थापित करके मोबाइल कनेक्टिविटी प्रदान की जानी है।
- देश भर में ब्रॉडबैंड सेवाओं की सार्वभौमिक और समान पहुँच, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में राष्ट्रीय डिजिटल कनेक्टिविटी के लिये सरकार के दृष्टिकोण का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है। उस दृष्टि को साकार करने के लिये गतिशक्ति संचार पोर्टल मई 2022 में लॉन्च किया गया था।
- राष्ट्रीय AI पोर्टल को एक साथ जोड़कर और केंद्र तथा राज्य सरकारों, उद्योग, शिक्षा, गैर-सरकारी संगठनों एवं नागरिक समाजों में हो रहे नवीनतम विकास को उजागर करके देश में AI पारिस्थितिकी तंत्र को सुदृढ़ करने की दृष्टि से विकसित किया गया है।
निष्कर्ष
- निवेश में लक्षित वृद्धि सभी अवसंरचना क्षेत्रों में देखी गई है। निवेश ड्राइव को बनाए रखने में मदद करने के लिये NIP ने निवेश योग्य परियोजनाओं की एक दूरदर्शी कार्ययोजना को शामिल किया है। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री गतिशक्ति ने विकास के सात इंजनों (सड़क, रेलवे, हवाई अड्डे, बंदरगाह, जन परिवहन, जलमार्ग और लॉजिस्टिक अवसंरचना) को एकीकृत करके बुनियादी ढाँचे के विकास में तेज़ी लाने में मदद की है। भौतिक एवं डिजिटल बुनियादी ढाँचे के बीच तालमेल भारत के भविष्य की विकास गाथा में परिभाषित की गई विशेषताओं में से एक होगा।